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आमरो सामाजिक कर्तव्य

  आमरो सामाजिक कर्तव्य हर व्यक्ति मा आपलो जीवन मा काइ न काइ सामाजिक कार्य  करन की इच्छा रव्हसे ।  या इच्छा जरूरी बी से काहे की यव आमरो जीवन को महत्वपूर्ण कर्तव्य बी आय ।  जीवन को अर्थ खाय पियके सोयके समय गवानो त् नोहोय। आया सेजन त् काइ त् अच्छो कार्य करनला होना ।  प्रश्न यव आवसे की आमी दुनियालाइक का कर सकसेजन ।  दुनिया सोडो कमसे कम आपलो समाजलाइक त् काइ कर सकसेजन का यव बिचार करनो जरूरी से ।  आमला का मिले समाज कार्य करेलक असो प्रश्न बी आवसे मन मा । तसो सोचो त्  समाज कार्य लक व्यक्तित्वको निर्माण होसे । आत्मिक आनंद मिलसे । आत्म विश्वास बढसे । दूय लोग संग पहचान नाहाय असी अलिप्त जिंदगानी गुमनाम कवनो पड़े । गुमनाम जिंदगानी को बजाए अगर आमरो जवर थोड़ो बी समय से त् आपलो लोगइन संग बाटन ला होना । सम्मिलित् तौर परा सर्व समावेशक काइ सृजनात्मक कार्य होय सके त् करनला होना ।  या बात ध्यान मा राखनोलाइक से की सबको विकास मा कोनतो न कोनतो रूप मा आपलो विकास बी समाहित से । सब विकसित होयेती त् आमी सक्षम समाज का भाग बनबीन ।  समाज को एक आम व्यक्ति को द्वारा कोनतो प्रकारको समाज कार्य आवश्यक से , कोनतो समाज कार्य

धरम की स्थापना

धरम की स्थापना आब सही मा आवश्यक भय गयी से कि वैश्विक तौर परा धरम की स्थापना हो ।  मूलतः धर्ममा भिन्नता कदापि नही होय सक,  न धरम मा कोनतो भेद होय सक । समस्त जगत मा धर्म की व्याख्या बदल नही सक ।  जेको पास पानी से वोको धर्म से की वोन प्यासो व्यक्ति ला पानी पिवनला देनो । विद्यार्थी को धरम से वु अध्ययन करे ।  धर्म दरअसल मनुष्यता को कर्तव्य आय ।  धर्म नीतिमत्ता आय । असो धरम समुदाय ,  देश अना काल को अनुसार कसो भला बदल सकसे । धरम त् सनातन से । जो भलो व्यक्ति से वोला धर्म को पालन करनेवालो व्यक्ति कवनो पडे । आमी असो  धर्मला धारण कऱ्या सेजन जो परम सत्य ला जानन की कोशिश करसे । आमी वोन धरम ला धारण करसेजन जो धर्म  अज्ञान रहित से । आमी स्वयमला जानन की प्रक्रिया वालो धर्मला धारण करसेजन । आमी आत्मोकर्ष को तरफ बढ़ने वालो धर्मला धारण करसेजन । आमी वोन  धर्म ला धारण करसेजन जो शाश्वत आंनद अना अज्ञान लक मुक्ति को तरफ आमला लेयकर जासे । आमरो धरम यानी सब सुखी रहेती , सबको कल्याण होये, कोणी दुखी न होय असी कामना बी आय ।

नेतृत्वलक आस

 नेतृत्वलक आस *********************** नेतृत्व करनो से त श्रेष्ठ बनकर करो । नेतृत्व करनो से त् असो काइ करो कि समाज को नाम होये, असो नेतृत्व करो कि समाजकी गरिमा बढ़े । दीन हीन बनकर नेतृत्व करके समाज ला गर्त मा धकेलन को काम नको करो । समाज की पहचान बीघाड़नको सामाजिक काम करनो यानी नेतृत्व नही बल्कि अतिस्वार्थ की निशानी आय ।
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आपलो कुल नाम जो से वु च लिखनो जरूरी से

 आपलो कुल नाम जो से वु च लिखनो जरूरी से आपलो कुल नाम जो से वु च लिखनो जरूरी से। अना जाती पोवार या पंवार लिखनला होना। कएक लोग आपलो कुलनाव सोडके पवार परमार लिखता चोवसेत । पवार परमार ये सरनेम SC ST वर्ग मा सेत। पर उनकी जाति पोवार या पंवार नही रव्ह। जाती दूसरी रव्हसे। मुन अगर जिनको इरादा आरक्षण प्राप्तिलाइक पवार परमार सरनेम लिखकर सरकारी सिस्टम ला धोका देनको से त् वय गलत सेत । जाती बदल नही होय सक। पुराणों रेकॉर्ड देखयव जासे । आमरो 36 कुल पोवार लोगईनला आपला कुल लुकावन की जरूरत नाहाय। आमरा कुल एनबेंड नहाती । आमरा कुल ज्यादातर प्रख्यात मुख्य कुल आत जिनको इतिहास मा उल्लेख मिलसे। जिनका कुल अजीब सेत जिनको उल्लेख नही मिल वय पवार सरनेम लिखके आपलो पुरखाईनकी असल पहचान छुपावन को काम करसेत। पर आमला जरूरत नाहाय ।

बुराई कसी फैल से

बुराई कसी फैल से पहले गाव मा कोणी बी एक दुसरो को झाड़ को आंबा नही तोड़त होता । सब ईमानदारी लका रव्हत । आम्बा को झाड़ वालो खुद आम्बा उतारकर घर आनके मंग सबला मोहल्ला मा बाटत होतो । पाड को आम्बा पड़त लक आम्बा झाड़ परा रव्हत होतो ।  एकदूसरो को प्रति बड़ी सदभावना होती । चोरी चकाटी नोहोती ।  बीस साल पहले की बात रहे । गाव मा को एक दुर्जन नावको आदमीकी मति फिर गयी । मति फिरन को कारण होतो गलत संगत । वोन बाजू को गाव को दूसरों कोनिको आम्बा को फर रातोरात उतारकर दूय गाड़ा भरके आनिस ।  मंग झुंझुरका उठके शहर मा जायके बिक टाकीस । आजूबाजू वालो कुटुम ला या बात समझ आय गयी। दुर्जन न बिचार करीस की अगर वोकि करतूत लका मिल्यव पैसा वु चुपचाप खाय लेये त् गड़बड़ होये । लोग सोडन का नही । मीटिंग भरे । दण्ड होये । वोन दुसरो च दिवस गाव को समाज संघठना ला वोकि आम्बा लका मिली कमाई को 20% हिस्सा दान देइस । संघठन बड़ो खुश भयव ।  मंग कोणी न वोला टोकन की हिम्मत नही करिन । दुर्जन की हिम्मत बढ़ी । वोन अखिन आपलो कार्य सुरु ठेय के बहुत पैसा जमाय लेइस । पैसा देखके वोला दिवारी को मंडई को कार्यक्रमको अध्यक्ष बनाय देइन । गाव को टुरु पोटुइनला

उज्जैनका पंवार (प्रमार) वंशीय सम्राट विक्रमादित्य

कवि कालिदास कृत 'ज्योतिर्विदाभरणम' येन ग्रंथमा कवि कालिदास उज्जैनका पंवार (प्रमार) वंशीय सम्राट विक्रमादित्य इनको सैन्य को निम्नलिखित वर्णन करसेत् । सैन्यवर्णनम्   यस्याष्टादशयोजनानि कटके पादातिकोटित्रयं वाहानामयुतायतं च नवतिस्त्रिघ्ना कृतिर्हस्तिनाम् ।  नौकालक्षचतुष्टयं विजयिनो यस्य प्रयाणे भवत्  सोऽयं विक्रमभूपतिविजयते नान्यो धरित्रीधरः ॥ १२ ॥  सम्राट विक्रमादित्य की सेना १८ योजन (यानी 230 कीलोमीटर) लक फैलीसे । वोकोमा तीन करोड़  पैदल सेना से , अयुतायुत १०००००००० घुड़सवार अना ९० को वर्ग को तीन गुना ( ९ ० ) २ x ३ = ८१०० X ३ = २४३०० हथ्थीसेना , अना चार लाख नौका ( जलसेना ) सम्मिलित से । येन सेना को प्रस्थान मात्र लक  विजय होय जासे । असो विक्रम नामक भूपति (सम्राट)  , जिनको समान अन्य कोणी राजा नाहाय , उनकी सदा जय हो ॥ १२ ॥ अगर या सैन्य संख्या सही मा होती , त् सम्राट विक्रमादित्य सरीखो सम्राट येन दुनिया अजलक नही भयोव ।  सम्राट विक्रमादित्य महान को दूसरों कोणी नही भयव ।  आमरो लाइक गर्व की बात से की आमरो वंश मा असा महान लोग भया ।  इतिहास संकलन  इंजी. महेन पटले

सामान्य जन की संघठनलक अपेक्षा

 सामान्य जन की संघठनलक अपेक्षा जेतरा बी संघठन सेत उनमा सभी पदाधिकारी वय च होना जिनन पोवारी की मर्यादा को पालन करीन ।  उनला च संघठन को पदाधिकारी बननला होना,  जिनको परिवार मा सब च 36 कुल पोवार या पंवार रहेती ।  जो खुद मर्यादा को पालन नही कर सकत वय समाज को सही मार्गदर्शन ,नेतृत्व नही कर सकत। जीनन खुद 36 कुल को बाहर की रस्ता पकड़ी सेन वय समाजला 36 कुल को बंधन मा बांध के नही राख सकत।   पोवारी नेतृत्व आदर्श होना तबच पोवारी बनी रहे ।

पोवारी मा नैवेद्य का नाम

 पोवारी मा नैवेद्य का नाम  निवोतनि देनो - बिहया मा कांकन बाँधनो को बाद नैवेद्य देएव जासे वोला निवोतनी कसे। जनावनों - सामान्यतः कोनतो बी समय निंगरा परा देवी देवता ला नैवेद्य समर्पित करनो यानी जनावनो , जनानो । दिवारी परा डोकरी जनावसेत ।  कागुर देनो --  पोरा को दिन जो नैवेद्य देएव जासे वोला कागुर देनो कसेत । बिरानी देनो- श्राध्द , तीज, देव उतरावन को समया जो नैवेद्य देएव जासे वोला बिरानी कसेत ।

। पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से ।

 । पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से । पुरो संसारमा बहुत प्रकार की संस्कृति अस्तित्वमा सेत। परिस्थिति , सोच, अनुभव , एकदूसरो की देखासिखी , मानसिक उत्थान अना ज्ञान को विकास को आधार परा जगत मा संस्कृति को निर्माण भयी से । आमी 36 कुल पोवार लोगइनकी बी एक विशिष्ट संस्कृति से । आमरी बोली , रीति रिवाज, परम्परा , दस्तूर, जीवनशैली , खानपान, पहनावा ये सब  पोवारी संस्कृति ला एक विशिष्ट स्वरूप देसेत । येन संस्कृतिमा मानवी जीवनमूल्य बस्या सेत । मनुष्यता को दर्शन यानी आमरी पोवारी संस्कृति आय । संस्कृतिमा आमरी परम्परागत सोच बसी से । समाजमा शांतिपूर्ण जीवन को संदेश आमरी संस्कृति देसे । एकदूसरो को सन्मान को साथ सहजीवन को संदेश देने वाली आमरी संस्कृति बेजोड़ से । आमरी संस्कृति दरअसल भारतीयताको दर्शन आय । आमरी बोली भाषा मा कई पुराना शब्दरचना सेत । आमरो पुरखाईनकी परंपरा स्वच्छ , सुंदर , शांति व स्वास्थ्य पूर्ण जीवन साती अच्छी होती । पर आब धीरे धीरे सबकुछ बदल रही से । कई पुरानी बोली गायब होय रही सेत । संग संग वोन बोलीमा को पुरानो अच्छो अनुभव , ज्ञान, सोच बी मिट रही से । आमरो संस्कृति मा एकदूसरो साती

पटला कुल की वंशावली

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 हम जब छोटे थे तब हमारे पोवार समुदाय के बुजुर्ग सदा  "आमी पोवार आजन , आमी धारानगरी लका इतन आया, धारानगरी को राजा भोज बी आमरोच समाज का होथा"   ऐसा हमे बताते थे । हम अब पटले कुल लिखते है । हमारे दादा दादी जब भी कुल नाम बताते थे तब वे स्वयम को "आमी पटला आजन" कहते थे । पोवारी में हमारे पटले कुलनाम को पटला कहा जाता है ।  मन मे प्रश्न उठा की अगर हम पटला है तो अवश्य हमारे नाम के लोग पंवार जाती के इतिहास में होने चाहिए । अगर हम राजा भोज से सबंधित है तो हमारे कुल नाम वाले कोई तो राजा भोज के संबधी होंगे ही । प्राचीन इतिहास की किताबो में हमारा कुलनाम जरूर होना चाहिए ।  और वे गलत नही थे ,  यह नाम मिला भी ।  इतिहास की किताबो में वंशावली भी मिली जो 1287 तक कि है । यह इतिहास पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों द्वारा शिलालेखों के आधार पर लिखा गया है ।  सन 1287  के पहले की वंशावली इस तरह हैं--- पटला कुल की वंशावली  वाक्पति मुंज  अरण्यराज  धंधुक कृष्ण द्वितीय  योगराजा रामदेव यशोधवल  धारावर्ष  सोमसिंह  कृष्णराज  प्रतापसिंह पटला  ...... (सन 1287) पोवार या प्रमारो की इस शाखा का यह नाम आजभी नए

Powari Sanskar

  पोवारी साहित्य  की गरिमा बनायके राखन को जबाबदारी हर पोवार की से ।  हर प्रकार को साहित्य समाज संस्कृति को आइना आय ।  पोवारी संस्कार अच्छा सेत उनला  संरक्षित करके मजबूती देन की जरूरत से । आमरा एक रिश्तेदार सेत वय खुद ला अलग, नवो जमानाका देखावन को चक्कर मा नहानोपना लका च आपलो बेटाबेटीइनला पोवार समाज लका दूर राखिन ।  अज असो हाल से की उनको हाल देखकर आमरो डोरा मा आंसू आव सेत । 😐 मुन आपला संस्कार नही सोडनको । आपली बोली कि इज्जत करनो जरूरी से । संस्कार को असो से जसो बीज फोकबिन तसी फसल आये ।                                                                              ************** करीब 850 साल पयले कवि चंद बरदाई पृथ्वीराज रासो मा लिखसे --- धरं धावरं धीर ,  पांवार पांवार संघं ।  चल्यौ तोवरं पार ,  सौं साहि वत्थं ॥१३ ॥  असो लगसे पंवार संघ ला धीर धरन कहै रही से ।  आमला आपलो पुरखाइनकी विरासत बनायके राखनलाइक दृढ़ता पूर्वक महामेरू को समान उभो रव्हनो पड़े । जरूरत पड़े त् समाजधर्म अना कर्तव्य की रक्षालाइक वीरता को प्रदर्शन करनो बी पड़े ।  आमरो पोवार समुदाय अगर 12 लाख संख्या को से त् निश्चित तौर परा  पो
  जेन समाजमा नारी पूज्य रहै , जहान नारीला देवी समझयव जाहै , जेन समाज की संस्कृति की संरक्षक नारी रहै , जेन समाज मा नीति, संस्कार अना धर्म की प्रतिमूर्ति नारी रहै वोन समाज को पतन कबि नही होय सक ।  या देवी सर्वभूतेषु , नारी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥  .........Mahen 

पोवारी चिंतन

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               पोवारी चिंतन **************** आम्हरो रक्त की उबाल असी से की वोको कारण वीरता को संग संग उग्र स्वभाव , अति महत्वाकांक्षा , अहम , शीघ्र क्रोध आदि गुण जुड़के कब सामने आय जाहैत् पता नही चल। मुन खुद परा आमला नियंत्रण राखनो पड़े। कोनतो बी महान कार्य लम्बो समया चले वोकोलाइक वीरता को संग बहुत सोची समझी रणनीति , शांत चित्त , अच्छो सोच बिचार , निस्वार्थता , लक्ष्य केंद्रित अविरत कार्य करन की जबरदस्त क्षमता विकसित करनो पड़े। कोनतो बी कार्य पूर्ण करनो से त् वोको मा निरंतरता व योजनाबध्द ठोस कार्य आवश्यक रव्हसे या बात आमला ध्यान मा राखनो पड़े। स्वार्थ की इच्छा लेयकर जो कार्य करे वु ज्यादा समय सही समाज कार्य मा नही टिक सके। राष्ट्रहित , समाज हित को लक्ष्य अंतरात्मालका उठे अना वोको मा आपलो स्वार्थ न रहे त् कार्य अविरत चले। आपली पहचान , संस्कृति को प्रति प्रेम हृदय को गहराई मा रहे त् कार्य अविरत होये। समाज को गर्व अना वोको अस्तित्वलाइक लड़न की जिद त

आम्हरो कर्तव्य

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  आम्हरो कर्तव्य यव सोचनो गलत से की पुरानो जो होतो वु पुरानो लोगइनको संग गयव, आमी आपलो हिसाब लका रवहबीन। असो नही चलनको। गलत व्यवहार आपलो कुल वंश को प्रति घात होये। आमी प्राचीन संस्कृति का वर्तमान धरोहर आजन। आम्हरो द्वारा पुरखाइनको धरम , नीति को पालन अनिवार्य से। यव आम्हरो कर्तव्य आय। जीवन यापन करतो समया सिर्फ स्वार्थ देखनो असी आमरी रीत नोहोय। आमी आपलो पुरखाइनका नवा रूप आजन यव भूलनो गलत से। आम्हरी रीत, धर्म, कर्तव्य, नीति आम्हरो संस्कार मा समाहित से। आब उनको जतन करनो से। आमी पोवार तबच रव्हबीन जब आमी आपली परम्परा , रिश्ता , धर्म, कर्तव्य निभावबीन। आमी खुद की इज्जत करबिन त् दुनिया आमरी इज्जत करे। दुसरो की नकल करनो ठीक नाहाय। आमी जसा आजन तसाच ठीक सेजन। अखिन उत्तम बनबीन। भीड़ को हिस्सा बननो नहाय। पोवार बनके रव्हनो मा भलाई से। खुदकी महत्ता पहचानके जीवनयापन करनो पड़े। समाज को अस्तित्व तबच बन्यव रहे....   महेन पटले    

पोवार होनको मतलब

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  पोवार होनको मतलब आमी पोवार आजन , यव कवनो मा बहुत आसान लगसे। पर देख्यव जाहे त् येन वाक्य की महत्ता बहुत ज्यादा से। यको असल अर्थ बहुत गहन से। पोवार होनको को अर्थ दरअसल नीतिमत्ता , कर्तव्य , धर्म निभावनो आय। पोवार यानी उत्तमता को प्रतीक व्यक्तित्व। आमला आमरी असी पहचान बनावनो से की आदर्श समुदाय को उदाहरण अगर कही देनो रहे त् पोवार समुदाय को नाव सबदुन सामने रहे। तबच असो होये की आमीन आपलो पूर्वजइनको मान राख्या। आमरो येन पीढ़ी परा बड़ी जिम्मेदारी से। बदलतो जमाना मा आदर्श , नीतिमत्ता , संस्कार टिकायके राखन की जिमेदारी आमला निभावनो से। आमला देखके अन्य बी आमरो अनुकरण करेती असो आमरो दर्शन होना। सांस्कृति , वैचारिक , धार्मिक , नैतिक पतन को अंधारो मा आमला दिवो सरिसो भलाई को प्रकाश प्रसारित करनो से। आमला पुनः एक बार धर्म को धुरकोरी बननो पड़े। आमला धरती परा पुनः एक बार पुरुषार्थ करनो पड़े। आमी पुरुषार्थ को लायक सेजन मुन आमला नेतृत्व बी करनो पड़े , दुनिया को उज्ज्वल भविष्यलाइक .... 〽 ️ahen Patle

पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से

 । पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से । पुरो संसारमा बहुत प्रकार की संस्कृति अस्तित्वमा सेत। परिस्थिति , सोच, अनुभव , एकदूसरो की देखासिखी , मानसिक उत्थान अना ज्ञान को विकास को आधार परा जगत मा संस्कृति को निर्माण भयी से । आमी 36 कुल पोवार लोगइनकी बी एक विशिष्ट संस्कृति से । आमरी बोली , रीति रिवाज, परम्परा , दस्तूर, जीवनशैली , खानपान, पहनावा ये सब  पोवारी संस्कृति ला एक विशिष्ट स्वरूप देसेत । येन संस्कृतिमा मानवी जीवनमूल्य बस्या सेत । मनुष्यता को दर्शन यानी आमरी पोवारी संस्कृति आय । संस्कृतिमा आमरी परम्परागत सोच बसी से । समाजमा शांतिपूर्ण जीवन को संदेश आमरी संस्कृति देसे । एकदूसरो को सन्मान को साथ सहजीवन को संदेश देने वाली आमरी संस्कृति बेजोड़ से । आमरी संस्कृति दरअसल भारतीयताको दर्शन आय । आमरी बोली भाषा मा कई पुराना शब्दरचना सेत । आमरो पुरखाईनकी परंपरा स्वच्छ , सुंदर , शांति व स्वास्थ्य पूर्ण जीवन साती अच्छी होती । पर आब धीरे धीरे सबकुछ बदल रही से । कई पुरानी बोली गायब होय रही सेत । संग संग वोन बोलीमा को पुरानो अच्छो अनुभव , ज्ञान, सोच बी मिट रही से । आमरो संस्कृति मा एकदूसरो साती