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Powari Sanskrati

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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज के छत्तीस कुल

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 क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज के छत्तीस कुल  १.अम्बुले(अमुले),      २.बघेले(बघेल),          ३.भगत,            ४.भैरम,     ५.भोएर,      ६.बिसेन,           ७.बोपचे,   ८.चौहान,          ९.चौधरी,      १०.डालिया,      ११.फ़रीदाले,      १२.गौतम,                 १३.हनवत,          १४.हरिनखेड़े,   १५.जैतवार,     १६.कटरे (गोंदिया-गोरेगांव क्षेत्र में देशमुख भी लिखते हैं),                  १७.कोल्हे,          १८.क्षीरसागर,   १९.पटले(वारासिवनी-कटंगी क्षेत्र में देशमुख भी लिखते हैं)           २०.परिहार,           २१.पारधी,          २२.पुण्ड,   २३.राहंगडाले,     २४.रणमत्त,    २५.रिनायत,   २६.राणा(राणे),      २७.रणदेवा,         २८.रजहांस,       २९.रावत,     ३०.शरणागत,      ३१.सहारे,       ३२.सोनवाने,   ३३.ठाकरे(ठाकुर),  ३४.टेम्भरे ,          ३५.तुरकर,        ३६.येड़े

आमरो अस्तित्व

 आमरो अस्तित्व आमरो समुदाय का अच्छा संस्कार, सीधोपना, शुध्द अना सहज वृत्ति, एकदूसरो को प्रति आत्मीयता, 36 कुल मा आपस मा रिश्ता नाता ये सब आमरी अनमोल धरोहर आय, या टिकनला होना । तुमी आपलो समाज को कोणी को च घर चली जाव असो लगे जसो वु तुमरो रिश्तेदार आय भले कोणती बी रिश्तेदारी रहे न रहे । आमला आमरो समाज को पाया मजबूत करनो जरूरी से। पोवारी संस्कृति, नीतिमूल्य नवी पीढ़ी को हर दिल मा जिंदा रहे येकी जबाबदारी आमरो पिढीला निभावनो पड़े। पोवार समाज मा कही अगर अतिक्रमण होत रहे त् वोको कसके विरोध करनो पड़े  समाज की पहचान त् आमला बनायके राखनो पड़े। मजबूती हर घर लका, हर व्यक्ति को द्वारा आये। आमी काइ अलग आजन असो देखावन को चक्कर मा बंदर वानी देखासिखी करनो को बजाए आमी खुद परा गर्व करबिन त् दुनिया आमरी इज्जत करे। आपलो संस्कृति को अस्तित्व को कारण आमरी इज्जत बनी रहे । आपली बोली की महत्ता, आपलो इतिहास की महत्ता खुद पहले स्विकारनो पड़े, दुनिया मंग मंग आमरो अस्तित्व की महत्ता स्वीकार कर लेये।  बस आपलो भीतर ताकद भरण की जरूरत से .... .

पोवार

 🌷🌷🌷 पोवार🌷🌷🌷 या धरती से अलबेली जहां वैनगंगा की धार हवा मा गुंजायमान सेती यहा शौर्य का गान। अग्निवंशीयको शौर्य की गाथा गावसे हर पात माता गढ़कालिकाको से आशिर्वादको  हात।। आबूपर यज्ञ करीन मुनिन् प्रगट्या क्षत्रीय पोवार अग्निकुंड लक प्रगट भया नाव उनको परमार। शस्त्रधारी क्षत्रिय प्रतापी चमकसे हातमा तलवार वध करसे दृष्टो को जनजीवन को बनेव आधार।। उज्जैनी महान विक्रमादित्य भृतहरी लक विख्यात दसवीं सदीमा बसाइस बैरीसिहन् सुंदर नगरी धार। मालवामा मूंज भोज न करिन साम्राज्य  विस्तार भोजशाला बनाइस करिस ज्ञान को प्रचार प्रसार।। विदर्भपर राज करीन मालवाधिस पोवार सरदार आया धारलक जगदेव पोवार चालुक्यको दरबार। विरयोद्धा जगदेव पोवार बन्या चांदा का महाराज शासनमा उनकी जनता होती बड़ी सुखी खुशाल।। मालवा पर आक्रमण करीन मुगल न जनता बेहाल संकट आयेव भारी बिखऱ् गया मालवा का पोवार। वैनगंगा किनारा पर आया सोड देईन नगरी धार बंजर भुमी मा खेती करस्यार बन गया  किसान।। ✍️सौ. छाया सुरेंद्र पारधी