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जय पोवार. जय पोवारी..

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 जय पोवार. जय पोवारी.. जय चौरी.. माय मोरी पोवारी.. देवधर को सम्मान.. पोवारी को स्वाभिमान.. पोवारी की मयरी.. संस्कार की बलिहारी.. तीज त्यौहार.. आती पोवारी संस्कार.. जीवती अखाड़ी.. पोवारी की बाराखड़ी.. पोवारी का सन त्यौहार.. आती हमारा मनभावन संस्कार.. ✒️ऋषिकेश गौतम 🚩🙏

प्रेरणादायक कहानि

 प्रेरणादायक कहानि एक रेस्टोरेंट मा कई बार मीन देखेव कि, एक व्यक्ति आवसे अना भीड़ देख कर चुपका लका नाश्ता करके बिना बिल देयकन चुपका ल निकल जासे. एक दिन जब वू खाय रहेव होतो त मीन चुपका लका रेस्टोरेंट मालिकला सूचित करेव कि अमुक आदमी बिना बिल चुकायेव चुपका ल निकल जाये. मोरी बात आयकश्यानी रेस्टोरेंट को मालिक मुस्कराय कन कसे,  वोला बिना काही कहेव जान देव, आम्ही एको बारेमा बाद मा बात करबिन. हमेशा को तरीका लका नाश्ता करिस अना भीड़ को फायदा ल बिना बिल चुकायेव निकल गयेव. वोको जान को बाद मीन रेस्टोरेंट को मालिक ला पूछेव कि मोला सांगो तुम्ही वोन व्यक्ति ला जान काहे देयात?🤔 रेस्टोरेंट को मालिक द्वारा देयेव गयेव जवाब होतो कि, तुम्ही एकटा नाहाव कि वोला देख्यात अना मोला सांग्यात. वू रेस्टोरेंट को सामने बस से अना जब देख से कि भीड़ से, त चुपका ल खाना खाय लेसे. मीन हमेशा नजरअंदाज करेव अना वोला कभी रोकेव नहीं, वोला कभी पकडेव नहीं, ना ही कभी वोको अपमान करन कि कोसिस करेव..काहेकि मोला असो लगसे कि मोरो दुकान कि भीड़ वोन भाई कि प्राथना को कारण लका से. वू मोरो रेस्टोरेंट को सामने बस स्यानी प्रार्थना करसे कि जल्द

आध्यात्मिक चिंतन

 आध्यात्मिक चिंतन  सांख्य-दर्शन सविस्तार                अना  प्रकृति(जड़)- पुरुष(चेतन) भेद दर्शन  सांख्य-दर्शन का प्रणेता महर्षि कपिल मान्या जासेती. येव सबसे पुरानो दर्शन मानेव जासे. 'सिद्धानां कपिलो मुनि:' अर्थात मी सिद्ध मा कपिल मुनि आव येव कथन श्री कृष्ण न भगवद्गीता मा कही सेत. कपिल मुनि ला बुद्ध पासून एक शताब्दी पूर्व मानेव जासे. सांख्य-दर्शन को मूल आधार ईश्वरकृष्ण द्वारा लिखित  'सांख्यकारिका' से. सांख्य को अर्थ से 'सम्यक् ज्ञान' अर्थात पुरुष अना प्रकृति को बीच भिन्नता को ज्ञान. येव ज्ञान न होनोच बंधन को कारण आय. सांख्य को सारो दर्शन कार्य-कारण सिधाँत पर आधारित से. कार्य उत्पत्ति को पूर्व उपादान कारण मा अव्यक्त रुप ल मौजूद रहव से. अपरिवर्तनशील ब्रह्म को रूपान्तर परिवर्तनशील विश्व को रुप मा माननो भ्रांतिमूलक अना महाभ्रम आय. सांख्य-दर्शन प्रत्यक्ष,अनुमान अना शब्द तीन प्रमाण(ज्ञान प्राप्त करन का साधन) मानसे. प्रकृति सक्रिय होनो को बावजूद जड़ से. एकोमा गति अन्तर्भूत से. येलाच त्रिगुणमयी कहेव गयी से. प्रकृति सिर्फ पुरुषलाच बंधन ग्रस्त नहीँ बनाव, बल्कि एको विपरीत पु

आध्यात्मिक चिंतन

 आध्यात्मिक चिंतन सारो त्रिगुणात्मक जगत निरंतर परिवर्तनशील अना क्षणभंगुर से. शरीर संसारकोच अंश आय. वू त अत्यंत क्षणभंगुर से. शरीर को उपयोग से एकोमा रवतो रवतोमाच सारो जड़ दृश्यों को मोह सर्वथा त्याग देनो. पूर्ण निर्मोह चित्तच स्वरूपस्थ होसे. पूर्ण निर्मोही होनो मा कृतकार्य से अना जीवन की सार्थकता से. शरीर को अनखी कई दिन बने रवनो या मंग अजच मिट जानो मा काही अंतर नहीं पड़. जेन आत्मविश्राम पाय लेईस, वू धन्य से. ✒️30-04-2022 Rishikesh Gautam