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पोवारी अलक

 पोवारी अलक 1. खरो भगवान           अज प्रकाशा मंदिरमा महाशिवरात्रीको मेला लगेव होतो. भक्तजणकी लंबी रांग देव्हारामा जानकी बाट देखत होती. कोनी शिवको जाप करत होतो, कोनी जयकारा त् कोनी डमरू बजावत होतो.        मोरी नजर एक कोनामा पडी. वहा बिना छत, तालाको एकजण सबला सहारा देत होतो. वोला भुकोला अनाज, प्यासोला पानी अना लाचारला हात देता देख मी आपोआप नतमस्तक भयेव. मोला खरो भगवान देव्हारा बाहेरच भेटेव होतो.   ************** 2. आराम            राजू तसो आलसीइंको उस्ताद. "थोडी बकबक, थोडो काम बाकी सब आराम", वोकी येन् वृत्तीलक ऑफीसमा सब परेशान होता.       एक दिवस मोठो साहेबवरी वोकी किर्ती गयी. साहेबन् जाचपडताल करिस अना वोला आराम देय देयिस, मग घरवालीन् सोडचिठ्ठी देयिस. आता वोला भलताच आराम भेट्से.    ✍ऋतुराज ता. ०१/०३/२०२२ *****************************

बालकथा : बाल खमुरा

 बालकथा                  बाल खमुरा            गिरीश कक्षा तीसरी को छात्र होतो. गिरीश को गुरूजी की एक सीख बड़ी साजरी लगी होती की हमाला समाज को मददगार बननो चाहिसे.            एक दिवस की बात से गिरीश शाला लक घर आयरयो होतो. शाला जवर एक नहान सो जूनो घर होतो. वोन घर मा एक बुङ्गी रहत होती.  वोका कोई नोहोता. वा मेहनत मजूरी लक आपरो गुजारा करत होती.       गिरीश ला बुढगी माय की दुःख लक कुन्हावन की आगाज सुनाई देई. गिरीश जरसो  घर को जवर जायकर देखन लग्यो की बुङ्गी माय ला काजक भय गयो. वोना कवाड़ जवर जाय के हाकलिश की माय तोला काजक भय गयो. गिरीश को होकल्यो पर माय जसी तसी ऊभी भई अना कवाड़ जवर आयकन बोलिश की मोला काइच नई भई से, अना तू आता आपरो घर जाय, तोरा माय अजी गिन तोरी बाट देखत रहेत.गिरीश बोल्यो की माय तोरी तबियत साजरी नहाय, तोला काई तरी होय गयी से, अना यो सांगनोच पड़े की तोला काजक भयो.          बुङ्गी माय न सांगीस की मोला बुखार आयो होतो एकोलाई मी चार दिवस लक धंधा पर नहीं जाय री सेव अना मोरों जवर पैसा कौड़ी नहाती, खान को भी सर गयी से. मोला वैद्य जी दवाई त लिख कर देई होतिस पर दवाई दूकान वाला न उधारी मा दवा