। पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से ।

 । पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से ।

पुरो संसारमा बहुत प्रकार की संस्कृति अस्तित्वमा सेत। परिस्थिति , सोच, अनुभव , एकदूसरो की देखासिखी , मानसिक उत्थान अना ज्ञान को विकास को आधार परा जगत मा संस्कृति को निर्माण भयी से । आमी 36 कुल पोवार लोगइनकी बी एक विशिष्ट संस्कृति से । आमरी बोली , रीति रिवाज, परम्परा , दस्तूर, जीवनशैली , खानपान, पहनावा ये सब  पोवारी संस्कृति ला एक विशिष्ट स्वरूप देसेत । येन संस्कृतिमा मानवी जीवनमूल्य बस्या सेत । मनुष्यता को दर्शन यानी आमरी पोवारी संस्कृति आय । संस्कृतिमा आमरी परम्परागत सोच बसी से । समाजमा शांतिपूर्ण जीवन को संदेश आमरी संस्कृति देसे । एकदूसरो को सन्मान को साथ सहजीवन को संदेश देने वाली आमरी संस्कृति बेजोड़ से । आमरी संस्कृति दरअसल भारतीयताको दर्शन आय । आमरी बोली भाषा मा कई पुराना शब्दरचना सेत । आमरो पुरखाईनकी परंपरा स्वच्छ , सुंदर , शांति व स्वास्थ्य पूर्ण जीवन साती अच्छी होती । पर आब धीरे धीरे सबकुछ बदल रही से । कई पुरानी बोली गायब होय रही सेत । संग संग वोन बोलीमा को पुरानो अच्छो अनुभव , ज्ञान, सोच बी मिट रही से । आमरो संस्कृति मा एकदूसरो साती प्रेम,  देखभाल को भाव , अच्छाई बसी से। 

समय को अंतराल मा परिवर्तन आवसे या बात सही से , परन्तु जो काइ अच्छो रव्हसे वोको विश्लेषण करके पुनः नवो जमानो को संग तालमेल बसाय कर प्रस्थापित करनो जरूरी होय जासे । हर पीढ़ी को, हर व्यक्ति को आपलो समाज को प्रति जरूर कर्तव्य रव्हसे । हर वर्तमान  पीढ़ी को वर्तन , सामूहिक जीवन भविष्य की पीढ़ी साती मार्गदर्शक को कार्य करसे । असो मा आमला आपलो वर्तमान की सांस्कृतिक स्थिति को आकलन पहले करनो पडे । पुरानो जमाना का अच्छा जीवनमूल्यलका सीख लेयकर  भविष्य साती आदर्श की रचना हर वर्तमान पिढी द्वारा करनो भाग से ।

संस्कृति को संवर्धन बहुत सोच समझकर करनो समाज को हर व्यक्ति की जबाबदारी से अना येन संवर्धन को कार्य जेतरो जमे वोतरो करनो जरूरी से । वर्तमान को जमाना पश्चिमी दुनिया की देखासिखी मा लगी से । परन्तु उतन पश्चिम मा यूनाइटेड नेशन्स वाला संघठन पुरानी बोली , संस्कृति को जतन करनको प्रयत्न कर रह्या सेत । यव जतन दुनिया मा शांति साती बहुत जरूरी से असो दुनिया को बुध्दिजीवी वर्ग ला लगसे । तसोच आमरो पोवारी संस्कृति को संवर्धन बी आमला करनो जरूरी से । येन संस्कृति को जतन साती आमला जेतरि होय सके वोतरी कोशिश करनो पड़े ताकि आमरी संस्कृति जीवित रहे । बोली को अस्तित्व बी बन्यव रहे यव बी जरूरी से । 

पोवारी संस्कृति को मोठो आधार आमरी पोवारी बोली आय । आमरो बोली को ज़िक्र  गियर्सन को भारतीय भाषा सर्वे मा उल्लेख पोवारी असो लिखयव मिलसे । आमरो संस्कृति  बोलीभाषा को नाव पोवारी से जो पोवार समुदाय को समाज जन साती सदा याद ठेवनकी बात से । येन नाव मा बदलाव करनो यानी आपलो पूर्व की पहचान अना इतिहासलका दूर जानो सरिसो कृत्य आय । आजकल काइ लोग अज्ञानतापूर्वक समुदाय अना बोली नाव को गलत उच्चारण करसेत , या गलत बात से । कमसे कम पुरखाईनकी संस्कृति अना समुदाय को नावको उच्चारण सही करनो जरूरी से । मालवा लका नगरधन आयव आमरो 36 कुल को समुदाय ला पोवार या पँवार यव नाव पुरानो रेकॉर्ड मा दर्ज से । बोली ला पोवारी कसेत । आमरा पुरखाबी खुदला पोवार आजन कवत होता ।  आमरो बोली ला पोवारी कसेत । सही नाव जरूरी से । संस्कृति को जतन यानी वोकी सम्पूर्ण रूपमा मूल पहचान बनाय कर ठेवनो आय । 

आमला समुदाय, बोली को नाव  मूल रूप मा जीवित ठेवनो पड़े । काहेकि वोन नाव को संग इतिहास बी जुड़ी से । पश्चिम जगत को इतिहास मा अलेक्जांडर को संग लड़नेवालों राजा उज्जैन को पोवार राजा  लिखयव गयी से । सम्राट विक्रमादित्य व राजा भोज ला पोवार होता असो लिखयव मिल से । महान पोवार वंश को इतिहास आमरो संग जुड़ी से या बात भुलनो गलत से । पश्चिमी जगत पोवार शब्द को उल्लेख काहे करसे  एको कारण से । दूसरों सदी में टॉलेमी नावको ग्रीक इतिहासकार भारत आयव होतो वोन आपलो लेखमा उज्जयनी को राजा को पोर्वाराय असो उल्लेख करिसेस। पृथ्वीराज रासो मा बी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पहली रानी इच्छिनी ला  पांवारी  राजकुमारी असो लिखयव मिल से । बादशाह अकबर को दरबारी अबू फजल द्वारा लिखित आईने अकबरी मा बी पंवार वंश को उल्लेख से । पर्शियन इतिहासकार फेरिश्ता बी पोवार वंश को उल्लेख कर से । ये सब लोग पोवार नावको उल्लेख कर सेत । आमरो पोवार, पंवार समाज को नावको संग पुरानो इतिहास बी जुड़ी से । पुरानी पहचान बी जुड़ी से । आमला आपली पहचान , पुरानो नाव अबाधित ठेवन की जिम्मेदारी व्यक्तिगत तौर परा निभावनो पड़े । नाव को संग आमरी संस्कृति को मूल अस्तित्व बी जुड़ी से । 

संस्कृति को जतन को  जरिये दरअसल आमी पुरखाइनको प्रति आपलो कर्तव्य निभावसेजन । आमला सबला या बात समझ लेनो पड़े की समाज को मजबूत  अस्तित्व साती पोवारी संस्कृति संवर्धन को कर्तव्य आमला निभावनोच पड़े ।


इंजी. महेन पटले 

नागपुर 

🙏🏻🙂



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