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पोवारी संस्कृति अना बिह्या को नेंग दस्तूर मा बदलाव

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 पोवारी संस्कृति अना बिह्या को नेंग दस्तूर मा बदलाव           नवरदेव(दूल्हा) अना नौरी(दुल्हन), बिह्या मा भगवान को रूप मा रव्हसेती, एको लाई बिह्या को संस्कार, रीति-रिवाज अना नेगदस्तूर लक पुरो होवनो चाहिसे। पोवार समाज, सनातनी धरम संस्कृति ला माननो वालो समाज को हिस्सा आय। बिह्या, हिन्दू जीवन को येक पवित्र संस्कार आय अना यन पावन संस्कार मा दारू, मुर्गा, अश्लीलता(प्री वेडिंग) की फोटो लेनो, फुहड़ता असी सामजिक कुरीति समाज मा मान्य नहाय।         अज़ आधुनिकता की होड़ मा नवी पीढ़ी आपरो जूनो संस्कार इनला भुलाय रही सेती अना आपरो पुरखा-ओढ़ील इनको मान सम्मान ला भी बिसराय रही सेत। यव कही लक कहीं वरी सही नहाय। बिह्या को गीत इनमा समाज को पुरो इतिहास अना नेंग-दस्तूर को बखान मिल जासे की आम्ही सभ्य-संस्कारी समाज को वारिस आजन येको लाई हमला आपरो बिह्या मा कोनी भी बाधिक जीनुस जसो दारू अना अश्लीलता लाई कोनी भी जाघा नहाय।            पहले पासून को यव रिवाज होतो की बिह्या मा लगुन, गोधूलि बेला मंजे श्याम मा लग जावत होती परा आता नाच गाना मा नशा को चढ़ावा को कारन लक लगुन ला रात होय जासे। दोस्त भाई इनको नाव पर दारू अना फु

घुगरी

          घुगरी                                     प्रस्तावना :- घुगरी येव शब्द पोवार संबंध बहुत पुरानो से.  पोवार संस्कृती को खेती-किरसानी को संबंधितच नाय तर किरसान मानुस को शरीर संबंधित भी से.  "घुगरी" येन शब्द को अर्थ घु= म्हणजे पौष्टिक ना गर= म्हणजे गाभो (घाभो म्हणजे मुल, निटवल माल) म्हणजे घुगरी म्हणजे निटवल माल को पदार्थ , खजिना, सार इत्यादी आय. शरीर जब थक जासे तब ओला पौष्टिक तत्व की जरूरत रवसे तब पौष्टिक तत्व आपुन आपलो खानपान , आहार को माध्यमलका वोकी शरीर ला पुरती करसेजन.               महत्त्व :-परा सरसे तब, वोन दिवस जेवनमा विसेस करस्यानी पोवारी समाज मा घुगरी देसेत. काय देसेत एको भी वैज्ञानिक कारण से. पुरो दिन भर किरसानी मा राब राबसे तब वोको शरीर मा कमजोरी या थकावट आय जासे. वा थकावट घुगरी को माध्यमलका दूर होसे.               गहू की घुगरी, चना की घुगरी, मुंग की घुगरी इनमा बहुत पौष्टिक तत्व (व्हिटॅमिन) सेती. अज भी गहू की घुगरी, चना की, मुंग की घुगरी बहुत पौष्टिक तत्व रहेलका वैद्य (आजकाल का डॉक्टर) खानला सांगसेती, गहू का ज्वरा पेरण ला ना वोको अर्क पीओ कसेत. पहिले को जमानो

पोवारी सन-त्योंहार का पकवान

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  पोवारी सन-त्योंहार का पकवान १.      अखाड़ी- भज्या , पानबड़ा का साग , बुल्या माता माय को नैवध. २.     जीवती- सुकुड़ा , सुवारी. ३.      राखी - अनरसा , सातु का लाड़ू , आटेल , शेव चिवड़ा . ४.     नागपंचमी - चना लाई अन् दुध , ५.     कानुबा - ठेटली-मटली , सुवारी , सुकुड़ा , करंजी , चना को उसल , लाई कानुबा को फुलोरा बाधनला लगसे. ६.     पोरा - पापड़ी , करंजी , पान बड़ा का साग , सुवारी , पचमीसरा दार भाजी. ७.    गनपती - चना दार गुड़ को मोदक ८.     सराद - बड़ा को साग , दोढ़का झुनकी को साग , कोहरो का साग , मही की कढी , सुवारी. ९.     दसरा - मयरी , कोचई को पान की बड़ी. १०.   दिवारी - चावुर की खीर , सुरुन को साग , पाढरा अकस्या , लाड़ू , चीवड़ा , अनरसा , चाकुली , करंजी ११.   पाड - गुंजा , बड़ा , भटा को साग. १२.   तीर संक्रांती - मुरा का लाड़ू , तिर का लाड़ू , शेव चिवड़ा. १३.   शिवरात्री - अठई , सुकुढ़ा . १४. होरी - पापड़ी , पुरन-रोटी , करंजी , सुवारी , तेल बड़ा १५. तिजा - सुवारी , पापड़ , तेलबड़ा , आंबा को पना , शेवई , आलु भटा का साग.