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अज्ञातवास

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  अज्ञातवास अज्ञातवास शब्द आदिकाल लक्, पढ़नो ना सुननो मा आव: से। शब्द को सीधो सीधो अर्थ से अज्ञात जाग्हा मा अज्ञात मानुस को वास। आता येनच् शब्द को वर्तमान परिदृश्य मा पोवार आना पोवारी संग गहरो सम्बंध भय गई से। पोवार मुख्य धारा मा किसान आती, समय को साथ सुधार होना महती गरज रव्ह से। आर्थिक विकास ना वैश्विकरण को प्रभाव लक् सब गांव लक् शहर, शहर लक् प्रदेश, प्रदेश लक् विदेश प्रस्थान करीन्। असर असो भयो, जान वालों को त् अज्ञातवास भयो, पर घर: बापस आवनो पर, अज्ञातवासी भाऊ बहिन आप्ली माय बोली ला, अज्ञातवास देत् गईन्। या अज्ञातवास की श्रृंखला बढ़त गई आना माय बोली मावली घर: वापस नहीं आईं। माय बोली को अज्ञातवास मिटावन की जवाबदेही, आब नवा अज्ञातवासी ऊठाय रही सेती। पर यो अज्ञातवास घर गांव मा रवहन् वाला काहे नहीं मिटाय रही सेती। निवेदक यशवन्त तेजलाल कटरे शनिवार १०/०६/२०२३

♦️लिख रहया सेती जे पोवारी मा♦️

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 ♦️लिख रहया सेती जे पोवारी मा♦️ ------------------💜♥️💚--------------- लिख रहया सेती जे पोवारी मा स्वजनों उनको हौसला तुम्हीं बढ़ाओ l बंधुओं लिख सको अगर तुम्हीं मायबोली की सेवा को लाभ उठाओ ll लिख रहया सेती... मायबोली की से मोठी महिमा पोवारी को उत्कर्ष मा हाथ बढ़ाओ l लिख नहीं  सको अगर तुम्हीं त्  लिखने वालों कर पाठ ना फिराओं ll लिख रहया सेती... एक अनमोल नज़र तुम्हारी माय बोली को साहित्य पर घुमाओ l बड़ो अनमोल से समय त् एक लाईक देन ला हाथ बढ़ाओ ll लिख रहया सेती... जाग उठीं से भाषिक अस्मिता  वोन् अस्मिता कर तुम्हीं हाथ बढ़ाओ l होय रहीं से भाषिक क्रांति बंधुओं तुम्हीं पुण्य भागी बन जाओ ll लिख रहया सेती... लिख रहया सेती उनको पर धन दौलत तुम्हीं आपली ना लुटाओ l तुम्हारी मायबोली पोवारी ला केवल आपली शुभकामना दे जाओ ll लिख रहया सेती... 🔶इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले 🔷पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष . ♦️शुक्र.5/5/2023. -----------------💚♥️💜---------------- *♦️लिख रहया सेती जे पोवारी मा♦️* ------------------💜♥️💚--------------- लिख रहया सेती जे पोवारी मा स्वजनों उनको हौसला तुम्ही

पोवारी संस्कार - संस्कृति

 पोवारी संस्कार - संस्कृति बोहुत डाव प्रश्न उठसेत का नवि पीढी पोवारी संस्कार - संस्कृति भूलत जाय रही से। पहिलो प्रश्न मनजे संस्कार अना संस्कृति मनजे काहाय? (१) धार्मिक कहो या आध्यात्मिक संदर्भ मा जहां वरी मोला मालुम से  वैदिक काल पासुन संस्कार ईन ला महत्व देई गई से। संस्कार वेद ईन मा अना स्मृति ईनमा देया गया सेत, उदाहरण क तौर पर - १६ संस्कार, गर्भधान पासुन त अंतिम संस्कार वरी। पर पोवार समाज मा मोजकाच संस्कार पालकन होसेत. पुढ् कही गई से का जहां संस्कार वहां संस्कृति। मनजे जब् मानुस संस्कार पालसे संस्कारित होसे, तब् वोको जीवन मा संस्कृति को जनम होसे। (२) सामान्य लोक  नहान ईनन् मोठो ईनका पाय लगन, पाहुना इन ला पाय धोवन पानी देनो, प्रणाम करनो, मोठो ईनको तोंड ला तोंड नही देनो, मान देनो सारखो व्यवहार ला संस्कार कसेत। (३) काही जाग् पाहट् उठनो, तोंड धोवनो, पूंजा करनो, श्लोक वा आरती करनो, बिंद्राबन ला पानी चढावनो, जेवन को पहिले ठाव का पाय लगनो, आगी मा नैवद्य होम करनो, ठावपरलका उठन को बेरा  ठाव का पाय लगनो वगैरे आचरण ला संस्कार कसेत। (४) घर परिवार मा अनुशासन, मान मर्यादा ला बी आमि संस्कार लेख् से

पोवार समाजको बिह्याकी वर्तमान स्थिती

  पोवार समाजको बिह्याकी वर्तमान स्थिती **********   "धर्मेच अर्थेच कामेच इमं नातिचरामि॥"        एक दोस्तको बिह्यामा पंडितजीको मंघ मंघ, नवरदेव नवरी यव मंत्रको उच्चारन करत होता. मी आपलो साधो सुधो मानुस, बिचारमा पड गयेव. येन् श्लोकको अर्थ का रहे....येला वोला येन् श्लोकको अर्थ बिचारन बसेव, पर पता नही चलेव. बहुत माथापच्ची करनको बाद याद आयेव, अरे! आपलो जवर त् गूगलबाबा से, वोलाच खबर लेय लेबीन. झटकन भ्रमनध्वनीको आंतरजालको जरिया एको अर्थ निकालेव. तब पता चलेव की येन् श्लोकमा सांगीसेन का, "वधू अना वर एकदुसरोला असो बचन देसेत की, धार्मिक या आर्थिक या अन्य कोनतोभी कर्तव्यमा जरुरतको हिसाबलक, एकदुजोकी सलाह लेबीन अना वोको अनुसारच पुढको कार्य सिद्धीला लिजाबिन." आता बिचार करो, अगर येतो गहन अर्थ वालो आपलो विवाह संस्कारको श्लोक रहे; त् आपलो विवाह संस्कार केतो पवित्र रहे. आपलो समाज हिंदू धर्मको अभीन्न अंग से. हिंदू धर्ममा मानवी जीवनका सोला संस्कार सांगीसेन. वोकोमाको एक महत्वको संस्कार मंजे विवाह संस्कार आय. पोवारी बोलीमा येन् विवाहलाच बिह्या कसेत. आपलो हिंदी चित्रपटसृष्टीमा बिह्याको महत्

ज्ञान देनको काम

  ज्ञान देनको काम ज्ञान देनको काम अना समाज कार्य कसो भी तरीका लक़ होय जासे। कोनी फोन पर सब आपरो काम, ज्ञान, धरम अन दान देन का काम कर लेसेति। समाज सेवा अना आपरी संस्कृति रक्षन को काम करन लाई, सामाजिक मंच च लगे, भाषण देनोच पढ़ें, माला पेहरायबीन अना रैली निकालकन वोको वाहटस अप फेसबुक अना अखबार मा देबीन अना वोला जमीनी काम कहकन वोको प्रचार करबीन तबच वोला समाज सेवा समझनो, कोनती समाज सेवा से समझ को बाहर आय।  येला स्वार्थ परक राजनीति कवहनो ज़ियादा उचित रहें। ठीक से की जय राजा भोज, जय माय गड़काली को नारा लगाव, पर आपरी असल पहिचान अना संस्कृति ला बचावनो भी जरुरी से। जमीनी काम त यव से आपली बोली, नेंग दस्तूर ला बचाव, घर घर जायकन पोवार समाज का संस्कार को पतन ला रोकन को काम करो, युवा पीढ़ी ला आपरो धरम सांगो, नवी पीढ़ी ला बचपन लक सांगो की आमरो समाज का बिया पोवारी को कुर माच होसे। यव बी सांगनो पढ़ें की आमरो पुरखा राजा होतिन, आमी उनका वंशज आजन, त अज भी मोठा मानुषच बनबीन। समाज मा अपराध रोकनलाई आपरो महान संस्कार को प्रचार करबीन।

जीवन प्यार को गीत आय वोला सब दिल न गाये पाहिजे

  जीवन  प्यार  को  गीत  आय  वोला  सब  दिल  न गाये पाहिजे जिवन कभी भी कठिन नाय... कभी नळला पाणी नही ...कभी पानी  रहेव पर...घुट भर  पानी  देनों  वालों  कोणी  नहीं  रहव..... कभी  पगार  नहीं होय...कभी  भयव पगार  बच नहीं.... कभी  भेठेव  पगार  कोण पर  खर्च  करनो...असो प्रश्न  पडसे? कभी जागा नही रहव.... कभी जागा रहेव पर भी मन मा जागा नही रहव... कभी जागा अन मन मा जागे रहेव पर भी वोन रिस्ता की ऊब आए जासे.... कभी डब्बा मा मन पसंद भाजी नही रहव.. कभी भाजी मन पसंद पन रोटी करपी रहव से...  कभी दुही मन  सारखी तरी दुसरो को  डब्बा  की भाजी को सुगन्ध  मा मन की इच्छा अडकी रहव से.... कभी कभी कोनी  संग मा  रहेव पर भी...एकटा पना लगसे...कभी एकटो रहेव पर भी मन  भरेव सारखो लगसे.. *कभी आवडता शब्द अचानक! कान पर पड सेती..कभी न आवडता शब्द अचानक  कान पर पड सेती... कभी पसन्द  को माणुस  पासुन नहीअन अपसन्द माणुस पासुन अनुभव आव सेती कभी आपुन कसो जगन  समजत नही...कभी समोर को  असो का कर से समजत नही    पोवारी अनुवाद   चंद्रकुमार जी शरणागत