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संस्कृति का रक्षण

 संस्कृति का रक्षण🚩🚩🙏 (सामाजिक लेख: पोवारी भाषा मा)              धरती मा असंख्य जीव-जंतु सेती जिनमा मानव जात आपरी बुद्धि अन् कौशल को कारन् सब लक़ अनूठी जात आय। आपरो याद राख़न अना वोला पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजकन राखन को गुन् को कारन् ज्ञान अना संस्कृति की निर्मती भई। दुनिया भर मा अलग-अलग प्रकार की परम्परा अना संस्कृति का विकास भयो। समय को साथ कई सभ्यता विकसित भई अना कई संरक्षण को अभाव मा मुराय भी गईन।             संस्कृति अना सभ्यता का विकास कोनी येक दिवस को काम नहाय अना येला विकसित होनमा सदी लग जासे। इतिहास गवाह से कसो कई आक्रनता इनना आपरो निहित सुवारथ अन् जिद्द को कारन मानवता अना विकसित सभ्यता इनला नष्ट करन मा काई कसर नही सोढ़ीन। अज़ भी देश-दुनिया मा असी सोच का सेती परा सभ्य समाज अना नियमबद्ध समाज मा आता यव बिचार मान्य से की सप समान आती अना सबला आपरी सभ्यता, आपरी संस्कृति ला संरक्षित अना ओको प्रचार प्रसार को अधिकार से।              सयुंक्त राष्ट्र संघ अना भारतवर्ष को संविधान, मिटती भाषा अना संस्कृति को जतन लाई सप नागरिक इनला अधिकार भी देसे अना सहयोग बी। राज्य शासन बी कई बिसरती बोली इनको संरक्

पोवार(36 कुरी पंवार) समाज का मध्यभारत/वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसने का इतिहास

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  पोवार(36 कुरी पंवार) समाज का मध्यभारत/वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसने का इतिहास आओ बचाये अपनी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को, और दे सच्ची श्रद्धांजलि अपने पूर्वजों को सन् 1700 क़े आसपास हमारे पुरखों ने नगरधन(रामटेक क़े समीप) और वैनगंगा क्षेत्र में आकर, 36 क्षत्रिय कुलों क़े रूप में संगठित होकर नये युग की शुरुवात की। ********************** राजा भोज धर्मपरायण राजा थे और उनके शासन का आधार सनातनी धर्म था। उनके युद्ध भी धर्मयुद्ध होते थे और उनकी कोई स्थायी सेना न होकर, धर्म के लिए लड़ने वाले योद्धाओं का समूह था। यही वजह थी की उनकी, हर युद्ध में विजय होती थी। लेकिन चौदहवी सदी के शुरुवात में मालवा पर मुस्लिमों के आधिपत्य के बाद उनके वंशजों और सहयोगियों को कठिन वक्त से गुजरना पढ़ा। मालवा पर मुस्लिमों के आधिपत्य के बाद उनके वंशजों और नातेदारों ने सैन्य समूह के रूप में दुश्मनों के विरूद्ध संघर्षों में अनेक राजाओं का सहयोग किया। कूछ अन्य दूसरे क्षेत्रों में जाकर भी बस गये। उनका एक बड़ा सैन्य जत्था अठारवी सदी में देवगढ़ राजा के अनुरोध पर नगरधन(रामटेक के पास) आया था जो बाद में वैनगंगा क्षेत्र में अपने परि

क्षत्रिय पँवार

  क्षत्रिय पँवार आबूगढ़ की पावन भूमि से उपजा ये पँवार उज्जैन धार की वीरभूमि से जन्मा ये पँवार मालवा राजपुताना से इधर आया ये पँवार नगरधन में क्षत्रिय वैभव को लाया ये पँवार माँ वैनगंगा के आंचल में पला बढ़ा ये पँवार प्यारी पोवारी बोली को बोलता है ये पँवार पोवार नाम के साथ भी जाना जाता ये पँवार पोवारी सनातनी संस्कृति को जीता ये पँवार नागपुर से छत्तीसगढ़ तक बढ़ता रहा ये पँवार बैहर में बसाता रहा अपना तीर्थस्थल ये पँवार सिवनी बालाघाट जिलों का गौरव हैं ये पँवार भंडारा व गोंदिया जिलों की शान हैं ये पँवार 36 क्षत्रिय कुरो का एक संगठन हैं ये पँवार कुलदेवी माँ गढ़कालिका भक्त हैं ये पँवार राजा मुंज की शक्ति से शुशोभित ये पँवार राजा जगदेव की भक्ति से भगत है ये पँवार राजा भोजदेव के ज्ञान से ज्ञानी है ये पँवार गुरु भृतहरि के ज्ञान से कुंदन बना   ये पँवार विक्रमादित्य के शौर्य से जाना गया ये पँवार लक्ष्मणदेव की कर्मभूमि पर बसा ये पँवार शासक से कृषक तक सफल रहा ये पँवार ज्ञान से विज्ञान तक आज बुलंद हैं ये पँवार सनातनी से क्षत्रिय धर्म निभाता हैं ये पँवार भारतवर्ष में विजय पताका फ

वैनगंगा क्षेत्र के क्षत्रिय पँवार

  वैनगंगा क्षेत्र के क्षत्रिय पँवार गुरु वशिष्ठ की यज्ञ वेदी से आबूगढ में प्रगट हुआ था पँवार।प्रथम पुरुष प्रमार हुआथाजिसने किया असुरों का संहार।। बचाने धरती को धरा इसने एक हाथ गदा दूजे हाथ तलवार।धरती को पाप मुक्त किया ऐसा हुआ क्षत्रिय राजवंश पँवार।।   अग्निकुंड की ज्वाला से प्रगट हुए ये क्षत्रिय अग्निवंशीय पँवार।धधकती वीरता की चिंगारी से इन्होने धरती को दिया संवार।। प्रमार वंशियो ने अपने   सत्कर्मों से पृथ्वी को किया फुलवार।लिखा गया पृथ्वी पंवारों की है और पृथ्वी की शोभा हैं पँवार।।   सम्राट विक्रमादित्य ने दिया शासन को सुशासन का आकार।उनके अयोध्या पुर्ननिर्माण के साथ ही कीर्तिवान हुआ पँवार।। राम राज्य के स्वप्न को महाराजा भोज देव ने   किया साकार।श्रेष्ठ शासन और   शीशदान के साथ अमर हुए जगदेव पँवार।।   उदियादित्य की शक्ति और भृतहरि की भक्ति   हुयी साकार।मध्यभारत में प्रसिद्ध हुए नगरधन महाराज लक्ष्मणदेव पँवार।। मालवा में पूर्वजों को दुश्मनों ने धोखे से दिए थे दुःख अपार।इन्हीं दुश्मनों से लड़नें हेतु बुलंद बख्त के साथ   हुआ पँवार।।   राजपुताना के इन वीरों ने नगरधन