Powari Sanskar
पोवारी साहित्य की गरिमा बनायके राखन को जबाबदारी हर पोवार की से ।
हर प्रकार को साहित्य समाज संस्कृति को आइना आय ।
पोवारी संस्कार अच्छा सेत उनला संरक्षित करके मजबूती देन की जरूरत से ।
आमरा एक रिश्तेदार सेत वय खुद ला अलग, नवो जमानाका देखावन को चक्कर मा नहानोपना लका च आपलो बेटाबेटीइनला पोवार समाज लका दूर राखिन ।
अज असो हाल से की उनको हाल देखकर आमरो डोरा मा आंसू आव सेत । 😐
मुन आपला संस्कार नही सोडनको । आपली बोली कि इज्जत करनो जरूरी से । संस्कार को असो से जसो बीज फोकबिन तसी फसल आये ।
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करीब 850 साल पयले कवि चंद बरदाई पृथ्वीराज रासो मा लिखसे ---
धरं धावरं धीर ,
पांवार पांवार संघं ।
चल्यौ तोवरं पार ,
सौं साहि वत्थं ॥१३ ॥
असो लगसे पंवार संघ ला धीर धरन कहै रही से ।
आमला आपलो पुरखाइनकी विरासत बनायके राखनलाइक दृढ़ता पूर्वक महामेरू को समान उभो रव्हनो पड़े । जरूरत पड़े त् समाजधर्म अना कर्तव्य की रक्षालाइक वीरता को प्रदर्शन करनो बी पड़े ।
आमरो पोवार समुदाय अगर 12 लाख संख्या को से त् निश्चित तौर परा पोवारी को प्रति समर्पित स्वाभिमानी 1199500 लोग तुमरो बिचार लका सहमत रहेती । आब 500 लोग अगर आपलो समाज सोडके दुसरो को मंग चलन लग्या सेत त् वा उनकी गलती से । धीरे धीरे उनला मालूम चले कि समाज द्रोह करनो गलत से । दूसरा लोग जब धोखा देयती तब पता चले । उनला बाहर को रस्ता समाजच देखाहे ।
आमरा जात मा येन समाज द्रोही लोगईनन दूसरी जात जोड़ देइ सेन । जिनको इतिहास मालूम नाहाय , जिनको संग कबि रिश्तेदारी नोहोती उनला पोवार समाज मा स्थान देन को प्रयत्न ये कर रह्या सेत । इनको विरोध कर रह्या सेव त् यको मा काइ गलत नाहाय । आपलो समाज की अस्मिता अना अस्तित्व की लड़ाई लडनो त् वीरता आय । असो सबला नही जम । क्षत्रियता को पालन करनो सबला नही जम । अना क्षत्रिय धर्म को पालन करनेवालों को सन्मान सदा भयी से , होत रहे ....🚩
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