Posts

Showing posts with the label Powari Asmita Sangharsh

स्वस्थ समाज के कर्णधार "सामाजिक संगठन"

 स्वस्थ समाज के कर्णधार "सामाजिक संगठन" संहतिः श्रेयसी पुंसां स्वकुलैरल्पकैरपि । तुषेणापि परित्यक्ता न प्ररोहन्ति तण्डुलाः ॥ सभी सक्रिय समाज संगठन पदाधिकारियों से विनम्र निवेदन है कि सामाजिक संगठनों का राजनीतिक दुरुपयोग से दूरी बनाये रखनी चाहिए । साथ ही अपने निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करना उचित नही हैं। समाजिक संगठनों की पहली प्राथमिकता समग्र समाजोत्थान ही रहना चाहिए । समाज की अपनी बोली, संस्कृति, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान के तौर तरीके और ऐतिहासिक पहचान को सरंक्षण प्रदान करना हैं। देश में हर तरह के काम के लिए अनेक विभिन्न उद्देश्य को लेकर तरह-तरह के संगठन बने हुए है । अतः संगठन संवैधानिक नियमावली के अनुसार ही कार्य करें तो निश्चित ही संगठन अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे। विशेष तौर पर पोवार/पंवार संगठनों के पदाधिकारियों से अपेक्षा है कि वे समाज की संस्कृति, बोली, इतिहास, रीति-रिवाज और सामाजिक    परंपराओं के संरक्षण को प्राथमिकता प्रदान करें। समाज के ऐतिहासिक मूल नामों तथा अपनी विशिष्ट पहचान को यथावत रखे । संगठनों में जगह बनाकर अपने निजी सोच से समाज की पहचान को

Powari Asmita Sangharsh

समाज से वयोवर्द्ध लेखक, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता श्री ज्ञानेश्वर जी टेम्भरे के द्वारा पोवार समाज से पोवारी साहित्यकारों को पोवारी में साहित्यिक रचनायें देने के लिये आग्रह किया जा रहा है ताकि वे इन्हें पवारी साहित्य सरिता में डाल सके। हाल के दिनों में उन्होंने आपने दो स्वतंत्र बोलियां, पोवारी और भोयरी को मिलाकर पवारी लिखने और इनके स्वंतंत्र अस्तित्व को मिटाकर इतिहास और संस्कृति को दरकिनार करने का जो प्रयास किया वह उचित नही कहा जा सकता। पोवार/पंवार और भोयर समाज के ऐतिहासिक नामों को मिटाकर एक पवार नाम से लिखना अनुचित है। पोवार(पंवार) और उनकी बोली पोवारी की जगह पवार और पवारी लिखने से पोवार समाज की अस्मिता और पहचान समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार नए शब्दों के समाज मे प्रचलन से हमारे पुरखों के ऐतिहासिक नाम समाप्त होंगे।  आदरणीय टेम्भरे सर और उनके समर्थकों से निवेदन है की समाज के पुरातन नामों को ही तवज्जो दे और इन्ही नामों से संस्थाओं के नाम को करे।  सन 1939 में भोयर समाज ने खुद को पवार और भोयरी को पवारी लिखना चालू किया था इसलिए 1951से भोयरी बोली के साथ इसके प्रतिस्थापन में पवारी शब्द आया न कि