धरम की स्थापना


धरम की स्थापना

आब सही मा आवश्यक भय गयी से कि वैश्विक तौर परा धरम की स्थापना हो । 

मूलतः धर्ममा भिन्नता कदापि नही होय सक,  न धरम मा कोनतो भेद होय सक । समस्त जगत मा धर्म की व्याख्या बदल नही सक । 

जेको पास पानी से वोको धर्म से की वोन प्यासो व्यक्ति ला पानी पिवनला देनो । विद्यार्थी को धरम से वु अध्ययन करे । 

धर्म दरअसल मनुष्यता को कर्तव्य आय ।  धर्म नीतिमत्ता आय । असो धरम समुदाय ,  देश अना काल को अनुसार कसो भला बदल सकसे ।

धरम त् सनातन से । जो भलो व्यक्ति से वोला धर्म को पालन करनेवालो व्यक्ति कवनो पडे । आमी असो  धर्मला धारण कऱ्या सेजन जो परम सत्य ला जानन की कोशिश करसे । आमी वोन धरम ला धारण करसेजन जो धर्म  अज्ञान रहित से । आमी स्वयमला जानन की प्रक्रिया वालो धर्मला धारण करसेजन । आमी आत्मोकर्ष को तरफ बढ़ने वालो धर्मला धारण करसेजन । आमी वोन  धर्म ला धारण करसेजन जो शाश्वत आंनद अना अज्ञान लक मुक्ति को तरफ आमला लेयकर जासे । आमरो धरम यानी सब सुखी रहेती , सबको कल्याण होये, कोणी दुखी न होय असी कामना बी आय ।

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