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नवो ग्रंथ आये,भाषा ला वैभव देवाये

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 नवो ग्रंथ आये,भाषा ला वैभव देवाये -----------------------------------------------          "पोवारी भाषा संवर्धन: मौलिक सिद्धांत व व्यवहार "येव ग्रंथ आगामी काही दिवस मा नचिकेत प्रकाशन नागपुर को माध्यम लक प्रकाशित होय रही से. पृष्ठ संख्या 210 को येन् ग्रंथ मा जिन विचारों व कविताओं को माध्यम लक 2018 मा पोवार समाज मा भाषिक प्रेम, अस्मिता व स्वाभिमान की आंधी आनके भाषिक क्रांति को सपना साकार भयेव वोन् सब कविता, गीत व विचारों को समावेश से.         येन् ग्रंथ को प्रकाशन लक पोवारी भाषा की गुणवत्ता, वैभव व परिणामकारकता जगजाहिर होये.अत: येन् ग्रंथ को प्रकाशन या  पोवार समाज साती एक गौरव को विषय से. 2018 मा पोवारी भाषिक क्रांति  साकार होनो कसो संभव भयेव, येको इतिहास येन् ग्रंथ मा समाविष्ट से.पोवारी भाषा की बुनियादी व्याकरण को साथोसाथ पोवारी भाषा संवर्धन को मौलिक सिद्धांतों को समावेश भी येको मा से. अत: येन् ग्रंथ की ‌विषयवस्तु लक पोवारी भाषा ला सम्मुनत करन को प्रयत्नों ला  नवी दिशा दृष्टि प्राप्त होये अना पोवारी बोली को स्तर उन्नत करके वोला भाषा को दर्जा प्राप्त करावन को मार्ग भी प्रशस्त

बिह्या को कार्यक्रम भयेव पोवारीमय!

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 ========================== बिह्या को कार्यक्रम भयेव पोवारीमय! ========================== आमला सौभाग्य प्राप्त भयेव की दि ११-०५-२०२२ रोज बुधवारला , अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार/पंवार माहासंघ भारत का कोषाध्यक्ष परमश्रद्धेय श्री नरेशजी गौतम इनको लाहान भाई श्री संदिपकुमार संग दिपालीबाई (बाली ) इनको बिह्यामा आमला उपस्थित रवन को सौभाग्य प्राप्त भयेव , येन् मंगलकार्य मा उपस्थित परमश्रद्धेय श्री ऋषीजी बिसेन , श्री रोशनजी राहागंडाले , श्री योगराजजी गौतम , श्री हरगोविंदजी टेभंरे , श्री हिरदीलालजी ठाकरे , श्री रमेशजी चौधरी गुरुजी , श्री भुमेश्वजी ठाकरे अना अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार/पंवार माहासंघ तसोच पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर का समस्त पदाधिकारी व सदस्य उपस्थित होता ,येन् कार्यक्रममा साक्षात कुलदेवी मातामाया गढ़कालिका अना विद्या की देवी माय सरस्वती अना क्षत्तीस कोटि देबी देवता सुक्ष्म रुप लक उपस्थित होता अना उनको भव्य दिव्य संरक्षण येव मंगलकार्य पार पाडेव ,  सबसे पहले पोवारो की कुलदेवी मातामाय गढ़कालिका अना पोवारो का कुलदैवत कुलश्रेष्ठ चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज को जयकारा लक पुरो वधु मंड़प ग

बायको ला महत्त्व

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 श्रीमती मंगला हिरदीलालजी ठाकरे इनको जन्मदिन पर कोटि कोटि शुभकामनाएं =====================        ( बायको ला महत्त्व )     ================ सोड मायबाप। पती संग आयी।।  कायमकी भयी ।अर्धांगीनी,,,,,।।  बायको म्हण्जे। नातो को भंडार।।  सुख को संसार। चलावसे ,,,,,,,,,।। मायबाप तोरा। पुज्यनिय सेती।।  देव रुप आती । सर्वश्रेष्ठ ,,,,,,,,,,।।  भाई ना बहिण। जन्मजात आती ।।  सुख का संगाती। सब सेती,,,,,,,।। गलती  पर  वां। देसे  शिकवणं।।  तब वां बहिण। बनजासे,,,,,,,,,।।  बिमारी मा सेव। करसे बायको।।  फर्ज वां मायको। निभावसे,,,,,।।  बाँप बनकर। घर संभालसे ।। काळजी करसे। सब साती,,,।।  भव सागर मा। डुबजासे कस्ती।।  रिस्तो येव दोस्ती। बनजासे,,,,,।। अंतीम वां घडी। बायको ला चिंता ।।  बाकी नाता रिस्ता।परपंचका,,,,,,।। कसे गां हिरदी। सब गां आयको।।  रिस्तो मा बायको। निस्वार्थ ,,,,।।  सुकर्म की पुंजी। देसे गां साहारा।।  याच विचारधारा।  रहे सदा,,,,,,।।     सब अधिकार सुरक्षित             !!! कवी!!!  श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे

माय की माऊली

 माय की माऊली ************************ माया की माऊली मोरो घर की सावली, मोरी लाड़ली बेटी कब मोठी भय गयी मोला खबर नही।।१।। अजी की दुलारी भाऊ की सयानी दादा माय को डोरा को काजर, बेटी कब मोठी भय गयी मोला खबर नही।।२।। परायो घर जान की बेरा आई, बेटी से परायो धन या बात समझ आई, बेटी कब मोठी भयी  मोला खबर नही।।३।। मोरो जीव को टुकडा़ करेजा की कली ,मोरो घर आंगन मा छम छम खेली, दुध रोटी  भात की डोरा मिचौनी, बेटी कब मोठी भयी  मोला खबर नही।।४।। अजी को हाथ थामत चल ठुमुक ठुमक खेलत कुदत जाने कब मोठी भयी, बेटी कब मोठी भयी मोला खबर नही।।५।। जीव घबराव मोरो ,बोह डोरा लक पानी, कसो मिले राजकुवर बेटी ला रात दिवस फिकर मन मा लगी बेटी कब मोठी भयी मोला खबर नही।।६।। नहाय  मोरो जवर धन,  अना दौलत, बेटी से मोरी हीरा वानी, कन्या को दान से सबले मोठो कवसेत गुणी, ज्ञानी, बेटी कब मोठी भयी मोला खबर नही।।७।। माय की माऊली मोरो घर की सावली बेटी कब मोठी भयी मोला खबर नही।। ************** विद्या बिसेन बालाघाट🚩🙏🚩

परिवार एक आधार

 परिवार एक आधार  *************************** जीवन को राहपर से मोला आस या आधार की। बढी़या रहे घरदार साथ मिले परिवार की।। प्यार ममता को सुगंध रवतो मोरो जीवन मा। सुख समृद्धि मिलती वा मोरो येन परिवार मा।। परिवार मा रहे सुख मोला आस या आधार की। हर्ष उल्लास लका बिते हर घड़ी वा जीवन की।। परिवार को जेला मिले हमेशाच सही आधार। कठिनाई मा भी सक्षम होये वू भव सिंधु पार।। सही आधार परिवार जीवन को हर घड़ीमा। धीर देसे परिवारच मन सारखोच होनोमा।। ≠==================≠ ✒️ उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)  रामाटोला गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे) ९६७३९६५३११

@ बगड़ा @

@ बगड़ा @ ********************* से मुखमा राम,बगलमा छुरी। कपटी बगड़ा,कर गयो चोरी।। टेक।। ढोंग रचसे महात्मा बनकर उभो रव्हसे एकच पायपर। कसो मसरीला धोका देयकर चोचमा खासे मस्त धरकर। समजमा आयीत करो हुशारी।।१।। ढोंगी बगड़ा समाज मा भारी  अनोखीसे इनकी दुनियादारी।  स्वार्थ पणा इनको खान की भारी मानुस की मा यव कलंक भारी। संघटकलक दुर करो बिमारी।।२।। अच्छो काम मा सबकी भलाई से किर्ति नाव की अमर होय जासे ।                           बुरो काम मा बुरी दुर्गती होसे                          कलंक बदनामी को लग जासे।   ज्ञानकीद्रुष्टीआनो,समजदारी।।३।। ********************************** हेमंत पटले धामनगांव आमगाव ९२७२११६५०१

खमोरा

खमोरा आमरो समाज मा स्त्री धन यानी खमोरा कि प्रथा होती । अज भी बहु को माय घरकी वस्तु या धन को उपयोग करके सुसरो, जेठ, देवर या अन्य रिश्तेदार आपलो जीवनयापन नही करत ।  या भारतीय संस्कृति आय , आमरी परम्परा आय जो प्राचीन से । हर समाज असो नाहाय । आमी प्राचीन भारत की सभ्यता , विचार प्रणाली पर अज बी चलसेजन ।  मनुस्मृति को तिसरो अध्याय को 52 वो श्लोक कसे --  स्त्रीधनानि तु ये मोहादुपहजीवन्ति बान्धवाः ।  नारी यानानि वस्त्रं वा ते पापा यान्त्यधोगितम ।।५२।।  अर्थात  जो वर का बांधव ( सुसरो , देवर आदि रिश्तेदार) , लोभ मा वशीभूत होयके स्त्रीधन यानी खमुरा, बहु को माय घर को वाहन, वस्त्र आदि को उपयोग करके आपलो जीवनयापन करसेत उनकी अधोगति होसे । उनला पापी नीच कह्यव जाहे ।

अज को चिंतन

 अज को चिंतन जिनन गलत उदाहरण स्थापित करिन , जिनन मर्यादा को पालन नही करीन , उनला कोनतो बी प्रकारलका महत्व देनो यानी गलत बातला महत्व देनो आय । अच्छी बात को आदर्श सामने आहै त् नवी पीढ़ी अच्छी बात को प्रति आकर्षित होये । गलत करने वाला अगर आदर्श बन्या त् नवी पीढ़ी बी गलत को प्रति आकर्षित होये । आमला सामाजिक पतन की तरफ नही बल्कि सांस्कृतिक मजबूती , उत्कृष्टता को तरफ जानो से । 🙂🚩🚩🚩🚩 इतिहास आमला बहुत काइ सिखाय कर जासे ।  भारत गुलाम काहे बन्यव । काहे की भारतीय आपली सोच अना विचारधारा मा  एक नोहोता  । जब बी भारत मा आततायी आक्रांता आया तब लोग तितरबितर भय गया । काइ सत्ता प्राप्तिलाइक आपस मा भीड़ गया, त् काइ  आक्रांताओं को पक्ष मा पहुच गया । काइ स्वार्थ मा आततायी लोगइनका साथी बनके आपलो च लोगइनका दुश्मन बन गया । यव पहलेलका चल रही से। आपलो च लोगइनको विरोध करके दुश्मन को काम हलकों करनो पहले लका चल रही से । जब देश का , धर्म का दुश्मन को प्रतिकार करनो से त् आपस मा लड़ाई नही होना । सब एक होना । सत्ता को संघर्ष मा खींचातानी ठीक नाहाय । या खींचातानी दुश्मन पक्ष ला मजबूती देसे । जो गलती पहले भयी से वर्तमान

बुराई कसी फैल से

बुराई कसी फैल से पहले गाव मा कोणी बी एक दुसरो को झाड़ को आंबा नही तोड़त होता । सब ईमानदारी लका रव्हत । आम्बा को झाड़ वालो खुद आम्बा उतारकर घर आनके मंग सबला मोहल्ला मा बाटत होतो । पाड को आम्बा पड़त लक आम्बा झाड़ परा रव्हत होतो ।  एकदूसरो को प्रति बड़ी सदभावना होती । चोरी चकाटी नोहोती ।  बीस साल पहले की बात रहे । गाव मा को एक दुर्जन नावको आदमीकी मति फिर गयी । मति फिरन को कारण होतो गलत संगत । वोन बाजू को गाव को दूसरों कोनिको आम्बा को फर रातोरात उतारकर दूय गाड़ा भरके आनिस ।  मंग झुंझुरका उठके शहर मा जायके बिक टाकीस । आजूबाजू वालो कुटुम ला या बात समझ आय गयी। दुर्जन न बिचार करीस की अगर वोकि करतूत लका मिल्यव पैसा वु चुपचाप खाय लेये त् गड़बड़ होये । लोग सोडन का नही । मीटिंग भरे । दण्ड होये । वोन दुसरो च दिवस गाव को समाज संघठना ला वोकि आम्बा लका मिली कमाई को 20% हिस्सा दान देइस । संघठन बड़ो खुश भयव ।  मंग कोणी न वोला टोकन की हिम्मत नही करिन । दुर्जन की हिम्मत बढ़ी । वोन अखिन आपलो कार्य सुरु ठेय के बहुत पैसा जमाय लेइस । पैसा देखके वोला दिवारी को मंडई को कार्यक्रमको अध्यक्ष बनाय देइन । गाव को टुरु पोटुइनला

प्रेरणादायक कहानि

 प्रेरणादायक कहानि एक रेस्टोरेंट मा कई बार मीन देखेव कि, एक व्यक्ति आवसे अना भीड़ देख कर चुपका लका नाश्ता करके बिना बिल देयकन चुपका ल निकल जासे. एक दिन जब वू खाय रहेव होतो त मीन चुपका लका रेस्टोरेंट मालिकला सूचित करेव कि अमुक आदमी बिना बिल चुकायेव चुपका ल निकल जाये. मोरी बात आयकश्यानी रेस्टोरेंट को मालिक मुस्कराय कन कसे,  वोला बिना काही कहेव जान देव, आम्ही एको बारेमा बाद मा बात करबिन. हमेशा को तरीका लका नाश्ता करिस अना भीड़ को फायदा ल बिना बिल चुकायेव निकल गयेव. वोको जान को बाद मीन रेस्टोरेंट को मालिक ला पूछेव कि मोला सांगो तुम्ही वोन व्यक्ति ला जान काहे देयात?🤔 रेस्टोरेंट को मालिक द्वारा देयेव गयेव जवाब होतो कि, तुम्ही एकटा नाहाव कि वोला देख्यात अना मोला सांग्यात. वू रेस्टोरेंट को सामने बस से अना जब देख से कि भीड़ से, त चुपका ल खाना खाय लेसे. मीन हमेशा नजरअंदाज करेव अना वोला कभी रोकेव नहीं, वोला कभी पकडेव नहीं, ना ही कभी वोको अपमान करन कि कोसिस करेव..काहेकि मोला असो लगसे कि मोरो दुकान कि भीड़ वोन भाई कि प्राथना को कारण लका से. वू मोरो रेस्टोरेंट को सामने बस स्यानी प्रार्थना करसे कि जल्द

मार्ग सत्यको

 साहित्य प्रकार- त्रिपदीराना काव्य  मार्ग सत्यको  *********************************** सत्यको मार्गच सही रव्हसे आवसेत अडथडा मार्गलक चलता समाधान मार्गमाच दिससे. मार्ग सत्यको हिरदामा धरो ध्येय धोरण सत्यलाई बनावता जयघोष सत्यकोच करो. सत्कर्म मनला आनंद देसेत प्रफुल्लित करन मनच सहसा दुःख मनको हरसेत. दिशा जीवनला सही मिले उद्धार मनुष्य जीवनको होता खुशी जीवनमा खिले. ==================== उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत) गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू) ९६७३९६५३११

आध्यात्मिक चिंतन

 आध्यात्मिक चिंतन  सांख्य-दर्शन सविस्तार                अना  प्रकृति(जड़)- पुरुष(चेतन) भेद दर्शन  सांख्य-दर्शन का प्रणेता महर्षि कपिल मान्या जासेती. येव सबसे पुरानो दर्शन मानेव जासे. 'सिद्धानां कपिलो मुनि:' अर्थात मी सिद्ध मा कपिल मुनि आव येव कथन श्री कृष्ण न भगवद्गीता मा कही सेत. कपिल मुनि ला बुद्ध पासून एक शताब्दी पूर्व मानेव जासे. सांख्य-दर्शन को मूल आधार ईश्वरकृष्ण द्वारा लिखित  'सांख्यकारिका' से. सांख्य को अर्थ से 'सम्यक् ज्ञान' अर्थात पुरुष अना प्रकृति को बीच भिन्नता को ज्ञान. येव ज्ञान न होनोच बंधन को कारण आय. सांख्य को सारो दर्शन कार्य-कारण सिधाँत पर आधारित से. कार्य उत्पत्ति को पूर्व उपादान कारण मा अव्यक्त रुप ल मौजूद रहव से. अपरिवर्तनशील ब्रह्म को रूपान्तर परिवर्तनशील विश्व को रुप मा माननो भ्रांतिमूलक अना महाभ्रम आय. सांख्य-दर्शन प्रत्यक्ष,अनुमान अना शब्द तीन प्रमाण(ज्ञान प्राप्त करन का साधन) मानसे. प्रकृति सक्रिय होनो को बावजूद जड़ से. एकोमा गति अन्तर्भूत से. येलाच त्रिगुणमयी कहेव गयी से. प्रकृति सिर्फ पुरुषलाच बंधन ग्रस्त नहीँ बनाव, बल्कि एको विपरीत पु

नवो युगकी कहाणी

 नवो युगकी कहाणी  (त्रिपदीराना काव्य प्रकार) नवो युगकी कहाणी लिखबी परिवर्तन नवो युगलायी होये बदल युगसाठीच स्विकारबी. युग बदलतो हमेशा रव्हसे असो नवो बदलाव देखनला खूदमा बदलच करसे. नवो लक्ष्यकी गुंज पसरसे आपलो जीवनको लक्ष्यलायी हरकोणी मेहनत लक्ष्यवेधी करसे. जीवन वास्तवमा व्यथित करबीन नवो युगमा वास्तवला स्विकारकन राह वास्तवकी धरबीन. ==================== उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत) गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू) ९६७३९६५३११

आध्यात्मिक चिंतन

 आध्यात्मिक चिंतन सारो त्रिगुणात्मक जगत निरंतर परिवर्तनशील अना क्षणभंगुर से. शरीर संसारकोच अंश आय. वू त अत्यंत क्षणभंगुर से. शरीर को उपयोग से एकोमा रवतो रवतोमाच सारो जड़ दृश्यों को मोह सर्वथा त्याग देनो. पूर्ण निर्मोह चित्तच स्वरूपस्थ होसे. पूर्ण निर्मोही होनो मा कृतकार्य से अना जीवन की सार्थकता से. शरीर को अनखी कई दिन बने रवनो या मंग अजच मिट जानो मा काही अंतर नहीं पड़. जेन आत्मविश्राम पाय लेईस, वू धन्य से. ✒️30-04-2022 Rishikesh Gautam

स्वरूप युद्धको.....

 स्वरूप युद्धको.....  (त्रिपदीराना काव्य प्रकार नाविन्यपूर्ण संशोधीत) परिणाम युद्धको गलत रव्हसे जीवित हाणी युद्धलका होता द्वेष युद्धमालच बढसे. युद्ध जनताला त्रस्त करसे हीत पुरो जनताको दूर युद्धलक जनताच मरसे. संबंध दोस्तीका युद्धलका छुटसेती व्यवहार राष्ट्रका दोस्तीमाच चांगला युद्धलक दोस्तीभी तुटसेती. युद्ध तिरस्कारला जन्म देसे आपसको प्यार तिरस्कारमा बदलकन हीरदामा तिरस्कारच भरसे.  युद्ध भावनाको त्याग करबिन राह आपुलकीकी भावनात्मक देख प्यार भावनाला बढावबिन. ==================== उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत) गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू) ९६७३९६५३११