आध्यात्मिक चिंतन

 आध्यात्मिक चिंतन 


सांख्य-दर्शन सविस्तार

               अना 

प्रकृति(जड़)- पुरुष(चेतन) भेद दर्शन


 सांख्य-दर्शन का प्रणेता महर्षि कपिल मान्या जासेती.

येव सबसे पुरानो दर्शन मानेव जासे.


'सिद्धानां कपिलो मुनि:' अर्थात मी सिद्ध मा कपिल मुनि आव येव कथन श्री कृष्ण न भगवद्गीता मा कही सेत.


कपिल मुनि ला बुद्ध पासून एक शताब्दी पूर्व मानेव जासे.


सांख्य-दर्शन को मूल आधार ईश्वरकृष्ण द्वारा लिखित  'सांख्यकारिका' से.


सांख्य को अर्थ से 'सम्यक् ज्ञान' अर्थात पुरुष अना प्रकृति को बीच भिन्नता को ज्ञान. येव ज्ञान न होनोच बंधन को कारण आय.


सांख्य को सारो दर्शन कार्य-कारण सिधाँत पर आधारित से.

कार्य उत्पत्ति को पूर्व उपादान कारण मा अव्यक्त रुप ल मौजूद रहव से.


अपरिवर्तनशील ब्रह्म को रूपान्तर परिवर्तनशील विश्व को रुप मा माननो भ्रांतिमूलक अना महाभ्रम आय.


सांख्य-दर्शन प्रत्यक्ष,अनुमान अना शब्द तीन प्रमाण(ज्ञान प्राप्त करन का साधन) मानसे.


प्रकृति सक्रिय होनो को बावजूद जड़ से. एकोमा गति अन्तर्भूत से. येलाच त्रिगुणमयी कहेव गयी से.

प्रकृति सिर्फ पुरुषलाच बंधन ग्रस्त नहीँ बनाव, बल्कि एको विपरीत पुरुषला बंधन ल मुक्त करन साती भी प्रयत्नशील रहव से.

पुरुष ला मोक्ष दिलावन साती च प्रकृति विकसित होसे.


👉 पुरुष त्रिगुणातीत, चेतन, निष्क्रिय,असंख्य, कार्य-कारण ल मुक्त, अपरिवर्तनशील,अपरिणामी, अनादि अना ज्ञानमय से. 


पुरुष की सत्ता स्वयं-सिद्ध अना संशयरहित से.


पुरुष ज्ञाता, दृष्टा अना साक्षी से. येव ज्ञान को विषय नोहोय.

पुरुष सुख-दुख अना राग-द्वेष ल रहित अकर्ता अना निर्विकार से. परंतु येव (पुरुष )इच्छा लका महसूस होन लगसे.


गुण को दृष्टि ल सब पुरुष समान सेत, परिणाम की दृष्टि ल भिन्न-भिन्न सेती.


अहंकार को वशीभूत होयकर पुरुष आपलोला कर्ता, कामी अना संसार की वस्तु को स्वामी समझन लग से. 


अन्त:करण(मन,चित्त,बुद्धि अना अहंकार) को सम्बन्ध पुरुष ल भूत, वर्तमान तथा भविष्य तीनही काल मा रहव से.


प्रकृति की सत्ता(अविनाशी) अनादिकाल ल जसी कि तसी बनी रवसे, जब वरि समस्त पुरुष ला मोक्ष नहीँ मिल जाय, विकास की क्रिया स्थगित नहीँ होय सक.


👉 सांख्य-दर्शन  योग को साधनात्मक(यम,नियम,आसन,प्राणा याम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान अना समाधि)पक्ष ला अपनाय कर मोक्ष की प्राप्ति को रस्ता देखाव से.


मोक्ष की अवस्था मा पुरुष/आत्मा मा नवींन गुण को प्रादुर्भाव नहीँ होय बल्कि आत्मा आपलो यथार्थ स्वरूप ला पहचान लेसे.

येन अवस्था मा आत्मा को शुद्ध चैतन्य निखर आव से.


👉 मृत्यु को पश्चात वासनायुक्त सूक्ष्म शरीर आत्मा को साथ कायम रयकर, आत्मा ला दूसरो स्थूल शरीर मा प्रवेश कराव से.


जड़-संसार ल पूर्ण(सूक्ष्म और स्थूल माया)अनासक्ति अना अखण्ड वैराग्य, परोक्ष कलपना को त्याग अना अपरोक्ष बोध आजीवन रवनो पर(जीवनमुक्ति) जब मृत्यु होसे तब  स्थूल को साथ सूक्ष्म शरीर भी नष्ट होय जासे.  अना जन्म - मरण का चक्र ख़तम होय जासे. हमेशा साती.


 एको सामने कही शेष नहीं.

😌🙏


प्रस्तुतकर्ता-

✒️ऋषिकेश गौतम 29-04-22

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