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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास

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 मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेकिन संघर्षों से भरा इतिहास रहा है। ग्यारहवी से तेरहवीं सदी तक मध्य भारत पर मालवा के पंवार राजाओं का शासन था लेकिन मालवा पर इनकी सत्ता खोने के बाद मध्यभारत में पंवारों का कोई और विशेष इतिहास नही मिलता। यह समय पंवारों का संघर्ष भरा समय था और वे समय समय पर भारतीय राजाओं का सहयोग करते रहे। मराठा काल और ब्रिटिश काल में लिखी किताबें, जनगणना दस्तावेज, जिला गैज़ेट और शासकीय रिपोर्ट्स में वर्तमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इतिहास मिलता है और इसमें कहा गया है कि इनका आगमन स्थानीय राजाओं के मुगलों के विरुद्ध संघर्ष हेतु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरता को देखते हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने के लिए प्रेरित किया। वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहट : Central Provinces' Census, १८७२,  के अनुसार वैनगंगा क्षेत्र के पोवार(पंवार) मुलत: मालवा के प्रमार(Pramars) है जो सर्वप्रथम नगरधन, जो की जिला नागपुर के रामटेक के

राजाभोज की महिमा

 राजाभोज की महिमा (वर्ण संख्या - १८, यती - १०)   पोवारवंशी राजाभोजकी, आयको तुमी कहानी  सरस्वतीको वरदपुत्र,  होतो बहुतच ज्ञानी ||१||   उज्जैनमा जनम भयेव, नवशे अस्सीको बेरा  सावित्रीको कुशलं पैदेव, राजा सिंधुलको शेरा ||२|| बीसको उमरमा बनेव, भोज मालवाको राजा  च्यारही दिशामा दुश्मनलं, घिरी होती तबं प्रजा ||३||   दक्षिण, पश्चिममा चालुक्य, वऱ्या तुर्क राजपूत  पुरबमा होतो कलचुरी, सब भया पराभूत ||४|| सरस्वती कृपालक भेटी, चौसट तऱ्हाकी सिध्दी चौऱ्यांशी ग्रंथको रचयिता, हुशार भोजकी बुध्दी ||५||   तपस्या अना साधनालका, वाग्देवी दर्शन देसे मंग भोजशालामा सुंदर, वोकी मुर्ती बनावसे ||६||   होता भोजको राजसभामा, मोठा पाचसौ विद्वान  बनावत रोबोटीक यंत्र, अना जहाज विमान ||७|| बेतवा नदीपर बांधीन,  खेतीलाई सरोवर  उज्जैनीको महाकालेश्वर, संस्कृतीकी धरोहर ||८||   केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ ना मुण्डीर  करीस जीर्णोद्धार सबको, भोजपुरको मंदिर  ||९|| बनाईस हर नगरमा,  भवन कंठभरण  चलं राज भक्तीभावलका, कर वाग्देवी स्मरण ||१०||   ✍इंजि. गोवर्धन बिसेन "गोकुल" गोंदिया.        संपर्क – ९४२२८३२९४१

। पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से ।

 । पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से । पुरो संसारमा बहुत प्रकार की संस्कृति अस्तित्वमा सेत। परिस्थिति , सोच, अनुभव , एकदूसरो की देखासिखी , मानसिक उत्थान अना ज्ञान को विकास को आधार परा जगत मा संस्कृति को निर्माण भयी से । आमी 36 कुल पोवार लोगइनकी बी एक विशिष्ट संस्कृति से । आमरी बोली , रीति रिवाज, परम्परा , दस्तूर, जीवनशैली , खानपान, पहनावा ये सब  पोवारी संस्कृति ला एक विशिष्ट स्वरूप देसेत । येन संस्कृतिमा मानवी जीवनमूल्य बस्या सेत । मनुष्यता को दर्शन यानी आमरी पोवारी संस्कृति आय । संस्कृतिमा आमरी परम्परागत सोच बसी से । समाजमा शांतिपूर्ण जीवन को संदेश आमरी संस्कृति देसे । एकदूसरो को सन्मान को साथ सहजीवन को संदेश देने वाली आमरी संस्कृति बेजोड़ से । आमरी संस्कृति दरअसल भारतीयताको दर्शन आय । आमरी बोली भाषा मा कई पुराना शब्दरचना सेत । आमरो पुरखाईनकी परंपरा स्वच्छ , सुंदर , शांति व स्वास्थ्य पूर्ण जीवन साती अच्छी होती । पर आब धीरे धीरे सबकुछ बदल रही से । कई पुरानी बोली गायब होय रही सेत । संग संग वोन बोलीमा को पुरानो अच्छो अनुभव , ज्ञान, सोच बी मिट रही से । आमरो संस्कृति मा एकदूसरो साती

पोवारी बालकथा : बाल खमुरा

 पोवारी बालकथा बाल खमुरा            गिरीश कक्षा तीसरी को छात्र होतो. गिरीश को गुरूजी की एक सीख बड़ी साजरी लगी होती की हमाला समाज को मददगार बननो चाहिसे.            एक दिवस की बात से गिरीश शाला लक घर आयरयो होतो. शाला जवर एक नहान सो जूनो घर होतो. वोन घर मा एक बुङ्गी रहत होती.  वोका कोई नोहोता. वा मेहनत मजूरी लक आपरो गुजारा करत होती.       गिरीश ला बुढगी माय की दुःख लक कुन्हावन की आगाज सुनाई देई. गिरीश जरसो  घर को जवर जायकर देखन लग्यो की बुङ्गी माय ला काजक भय गयो. वोना कवाड़ जवर जाय के हाकलिश की माय तोला काजक भय गयो. गिरीश को होकल्यो पर माय जसी तसी ऊभी भई अना कवाड़ जवर आयकन बोलिश की मोला काइच नई भई से, अना तू आता आपरो घर जाय, तोरा माय अजी गिन तोरी बाट देखत रहेत.गिरीश बोल्यो की माय तोरी तबियत साजरी नहाय, तोला काई तरी होय गयी से, अना यो सांगनोच पड़े की तोला काजक भयो.          बुङ्गी माय न सांगीस की मोला बुखार आयो होतो एकोलाई मी चार दिवस लक धंधा पर नहीं जाय री सेव अना मोरों जवर पैसा कौड़ी नहाती, खान को भी सर गयी से. मोला वैद्य जी दवाई त लिख कर देई होतिस पर दवाई दूकान वाला न उधारी मा दवा नहीं देईस

समाज को प्रति आमरों समर्पण

 समाज को प्रति आमरों समर्पण -------------------🌹🌹---------------- समर्पित से लेखनी आमरी समाज की भलाई साती l न्यौछावर से जीवन आमरों समाज की खुशहाली साती ll टेक ll बरबाद होन ना देबी पूर्वजों की पहचान ला l गुमराह होन ना देबी समाज की सही सोच ला ll१ll इरादा पूरा  ना होन  देबी समाज को नाव बदलन का l मनसूबा पूरा ना होन  देबी भाषा को नाव बदलन का ll२ll छेड़न न् देबी आम्हीं समाज की धर्मनिष्ठता ला l छेड़न न् देबी आम्हीं समाज को इतिहास ला ll३ll बिकन न् देबी आम्हीं समाज को प्रति इमान ला l मिटन न् देबी आम्हीं आपलो पूर्वजों को सम्मान ला ll४ll कैलेंडर बांटन न् देबी तुम्हाला समाज की पहचान मिटावन ला l मंच पर चढ़न न् देबी तुम्हाला समाज की पहचान मिटावन ला ll५ll ताक़ीद से आमरी तुम्हाला गलत इरादा सुधारण ला l चेतावनी से आमरी तुम्हाला गलत मनसूबा सुधारण ला ll६ll समर्पित से लेखनी आमरी छत्तीस कुल की भलाई साती l न्यौछावर से जीवन आमरों छत्तीस कुल को कल्याण साती ll७ll #इतिहासकार प्राचार्य ओ. सी. पटले #पोवार समाजविश्व आमूलाग्र क्रांति अभियान, भारतवर्ष. #रवि.०३/०४/२०२२. --------------------💐💐------------------

पंवार प्रतिभाएं : चिरंजीव पंकज टेम्भरे(जुगनू)

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 पंवार प्रतिभाएं : चिरंजीव पंकज टेम्भरे(जुगनू)  साहित्य जगत के उभरते कवि श्री पंकज टेम्भरे की कविताओं में समाज के उत्थान के साथ सामाजिक रिश्तों का सजीव चित्रण और अपनी सनातनी संस्कृति का परिचय मिलता है।   हिंदी साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके चिरंजीव पंकज, अपनी पूरखों की बोली, पोवारी में भी साहित्य सृजन और कविता पाठ करके अपनी विरासत को भी बचाकर रखना चाहते है।  समस्त क्षत्रिय पोवार समाज की ओर से चिरंजीव पंकज टेम्भरे(जुगनू) को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए बहुत- बहुत शुभकामनायें। क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाजोत्थान संस्थान, बालाघाट

पोवार समाज

 आज उदास लग रहीसे मन पोवार समाज ला लगेव ग्रहण जितं उतं मचेव कहर फुटीरता की आई लहर सबकुछ गयेव उथल पुथल पड्या गट फुटया मत असो लक कसो होये विकास  समाजला से उन्नती की आस देखो कसी भई दशा कसी पुरी होये आशा एकमेकका खिचसेंत पाय  या कशी एकता आय? राजाभोज को लगावंसेत नारा करसेत सिर्फ शब्द को मारा हरएकला लगीसे मीपण को वारा बनेती कब समाज को सहारा देखके दुखी मन भयेव दंग दुःख बाटु मी कोनको संग मन मा एक तुफान उठेव रस्ता मोला एकच भेटेव धरेव कागज उठायेव लेखणी लिखन बसी समाज कहानी लेखणी मोरी बने धार चीर देये सीना आरपार मन सोचनला करे मजबूर भटक गया सेती जे दूर एक माला मा बंधेती जब समाज उच्चाई पर पोहोचे तब                      शारदा चौधरी                          भंडारा

श्री रमेशजी राहांगडाले

 ======================           श्री रमेशजी राहांगडाले ====================== श्री - श्रीराम को भक्त । माय बाप श्रेष्ठ।।         भाव एकनिष्ठ । समाजमा ,,,,।। र - रक्षक देश को । भारतीय जवान ।।      खुशियां कुर्बान । देश साती ,,,।। मे - मेहनत लका ।।होसे सब काही ।।*        मिटे आवा जाही । संसार मा ,,,   श - शब्द अनमोल । नही तोरो तोल ।।     भजेपार को फुल । सुगंधित ,,।। जी - जीवनमा तोरो । रहे सुखशान्ति ।।      करजो तु क्रान्ति । गांव साती ,,।। रा - राष्ट्रीय  एकता । घड़े तोरो हात ।।       होये विकसित । भजेपार ,,,।। हां -  हांसत खेलत  ।। कटे गां जीवन ।।         पयलो जवान । रमेशजी ,,,।। ग -  गगन मा सेती । चंद्र सुर्य तारा ।।       तसा भाऊ प्यारा । रमेशजी ,,,।। डा - डाट फटकार । प्रेरणा दायक ।।        तु माहानायक । सुरक्षा कर्मी ।। ले - लेखनी ला तोरो । करु सु वन्दन ।।        हृदयाभिन्दन । भाऊ तोला ,,,।। जन्म - जन्मदिन पर । सेती शुभकामना      मन की भावना । व्यक्त सेती ,,,।। =====================            !!!अभंग रजनाकार !!       हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे मु भजियापार पो चिरचाडबांध ता आमगांव जिल्

मराठाकालीन तिरखेड़ी पोवार जमींदारी और पुरातात्विक अवशेष

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 मराठाकालीन तिरखेड़ी पोवार जमींदारी और पुरातात्विक अवशेष -------------------🌹🌹----------------- -  १.एक उल्लेखनीय जमींदारी               ----------------------------------------        मराठा शासनकाल में वैनगंगा क्षेत्र में कृषि उद्योग का विकास करने के उद्देश्य से शासन को युद्ध सहयोग करनेवालों को जमींदारी बहाल करने की परंपरा देखने को मिलती है. भोंसले शासनकाल में जो शेकड़ो नई जमींदारियां अस्तित्व में आई उनमें से एक विख्यात जमीनदारी के रुप में  उल्लेखनीय है तिरखेड़ी जमींदारी ! २.तिरखेड़ी जमींदार बाड़ा ------------------------------------         तिरखेड़ी जमींदारी यह  वर्तमान गोंदिया जिले की सालेकसा तहसील में है. मराठा  शासनकाल में घने वनों में बसी हुई जमींदारियों में से यह सबसे बड़ी जमीनदारी थी ऐसी कल्पना यहां के जमींदार बाड़े की भव्य वास्तु देखकर स्वाभाविक रुप से आ जाती है.          यहां का जमींदार बाड़ा सात एकड़ भूमि में तथा उत्तराभिमुख है. २-१.चतुर्सिमा ----------------------------         उत्तर मुखी इस जमींदार बाड़े के पूर्व में नांग तलाव, पश्चिम में लगभग एक कि.मी.पर बाघ नदी,उत्तर म

पटला कुल की वंशावली

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 हम जब छोटे थे तब हमारे पोवार समुदाय के बुजुर्ग सदा  "आमी पोवार आजन , आमी धारानगरी लका इतन आया, धारानगरी को राजा भोज बी आमरोच समाज का होथा"   ऐसा हमे बताते थे । हम अब पटले कुल लिखते है । हमारे दादा दादी जब भी कुल नाम बताते थे तब वे स्वयम को "आमी पटला आजन" कहते थे । पोवारी में हमारे पटले कुलनाम को पटला कहा जाता है ।  मन मे प्रश्न उठा की अगर हम पटला है तो अवश्य हमारे नाम के लोग पंवार जाती के इतिहास में होने चाहिए । अगर हम राजा भोज से सबंधित है तो हमारे कुल नाम वाले कोई तो राजा भोज के संबधी होंगे ही । प्राचीन इतिहास की किताबो में हमारा कुलनाम जरूर होना चाहिए ।  और वे गलत नही थे ,  यह नाम मिला भी ।  इतिहास की किताबो में वंशावली भी मिली जो 1287 तक कि है । यह इतिहास पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों द्वारा शिलालेखों के आधार पर लिखा गया है ।  सन 1287  के पहले की वंशावली इस तरह हैं--- पटला कुल की वंशावली  वाक्पति मुंज  अरण्यराज  धंधुक कृष्ण द्वितीय  योगराजा रामदेव यशोधवल  धारावर्ष  सोमसिंह  कृष्णराज  प्रतापसिंह पटला  ...... (सन 1287) पोवार या प्रमारो की इस शाखा का यह नाम आजभी नए

मोरो पोवारीका बोल

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 🌷मोरो पोवारीका बोल🌷          (अष्टाक्षरी रचना) बोली छत्तीस कुऱ्याकी आय आमरी पोवारी | वैनगंगा को कोऱ्यामा फली फुलीसे या न्यारी ||१|| मोरो पोवारीका बोल,  जसी बोली कोयलकी | गुंज सबको कानमा,  खणखण पायलकी ||२|| पसरसे बोलीमालं,  गंध धरनी मायको | देसे सुगंध मनला,  घीव बखल सायको ||३|| देईसेस समाजनं मोला पोवारी संस्कार | बोली लिखके फेड़ून समाजका उपकार ||४|| करनला समाजमा रिती रिवाज जतन | येनं मायबोलीसाती करो मिलके सृजन ||५|| पोवारीला बचावन आता करो चुलबुल | बोलो सपाई पोवारी हात जोडसे गोकुल ||६|| •••••••••••••••••••••••••••••••••••• ✍ इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"          गोंदिया (महाराष्ट्र) मो. ९४२२८३२९४१

पोवार राजा महराजा का वंशज आतीन।

 पोवार राजा महराजा का वंशज आतीन। पोवार राज करनवाला क्षत्रिय आत तब तो हमारा पारम्परिक गीत मा हमारी माय बहिन गावत आयीन। (1) कोन गाँव की आई बरात  धारनाकलाँ की आई बरात  झलमा पड़दा की आई गुडूर  लोखंड की असकुड़ माय किस्धूर  बैल जूपी सेत धवल पवर  धुरकोरी बसी सेत राजकुँवर।  हाथ मा धरी सेतीन ढाल तलवार  खाँद मा डाकी सेत फुल्की उल्मार (2)  बेटी बिदाई को बेरा को गीत  गाँव को आखर पर आमा की अमराई।  वहाँ उतरों राजा को रनवास  राजा को रनवास खेल से गोटी  पिता सौंप अपरी बेटी।  (3)कटोरी को दूध भात कटोरी मा  रहयो।  राजकुँवर परनू आयो पिता बेटी सौंपन लगयो।  आज हमी थोड़ो सो पढ़ लिखकर दस बीस साल लक जानन लग्या की हमारा राजा भोज का वंशज आजन  हमी राजा महाराजा की संतान राज करन वाला आजन।  लेकिन येको पहिले हमारी माय बहिन बिह्या का होली का गीत छटी का गीत अन पारंपरिक गीत मा हजारो हजारो साल लक गीत को माध्यम लक साँगत गैन कि पोवार भाऊ की तुम्ही राजा महाराजा की संतान आव।  गीत को माध्यम लक हमारो इतिहास हमला मालूम होत होतो।  दुर्भाग्य लक हमी इन गीत हीनकी उपेक्षा करन लग्या जो कि दुर्भाग्यपूर्ण से।

सब पोवार भाई बहिन लक मोरो निवेदन

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 जयराम जी की जय राजा भोज  गढ़कालिका माय की जय।  ********************* सब पोवार भाई बहिन लक मोरो निवेदन  पोवार समाज की का का सेत पहचान।  बोली चौरी अन नेग दस्तूर गाना  महान।  अगल बगल ढूककर नोको करो नकल।  पीछ लग्गू बनबो तो मिट जाबो सकल।  अपरी जड़ हीन पर नोको डाको मठ्ठा।  सकल पोवार समाज को बस जाहे भट्टा।  बानव बानव कर आन रहा सेजन न ई न ई चाल।  पुरखा हीन की धरोहर हीन ला  नोको करो बेहाल।  बोली चौरी नेग दस्तूर अन गाना सेत महान।  इनको ल बची रहे पोवार समाज की पहिचान।  हजारो हजारो साल का आत अनुभव चिन्तन।  ईन सब पर करो शोध चिन्तन अखिन मनन।  दुसरो ला तुष्ट करन लाई मिटाओ नोको अपरी पहिचान।  आवन वाली पीढ़ी धिक्कारे पोवारी को मिट जाहे नामोनिशान।  उठो जागो अपरी अस्मिता ला पहिचानो।  अपरा पूर्वज पुरखा  हीन की बात सब मानो।  मी जो कह रही सेव इनको बारे मा सोचो।  जेला समझ मा नही आय रही से  त मनभर कोसो।  ********************** कोमलप्रसाद राहँगडाले कल्याणपुर धारनाकलाँ तहसील बरघाट जिला सिवनी म प्र

कोयार सो मिठो बोलो

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 कोयार सो मिठो बोलो। दिनांक:१७अना१८:४:२०२२ ******************************* बड़ी प्यार की से बोली मोरो पोवार की किर्ती संस्कृति जपके ठेवो। बड़ी प्यार की से बोली कोयार सरीखी बोलो।।टेक।। जात भाई बनसेती येकमेक को सहारा। काम पर पड़ सेती मिलसे मोठो आसरा। जीवन की गाड़ी चली हात मा धरो कासरा। सुख दुःख मा कटेती जनम मरण को फेरा। रिती रिवाज कि संस्कृति अनमोल भर्यो ठेवो।।१।। खेती बड़ी उपजाऊ यहा पीक सेती मोती। आलस मा नको रहु घर दार होसे माती। टुरु पोटुला शिकावो इसकुल करो भर्ती। पढ्या लिख्या बन्या रहो बढ़ा वो जात की किर्ती। हेमंत कसे जातीला बोली को बंधन बांधो।।२।। ****************************** हेमंत पटले धामनगांव आमगाव ९२७३११६५०१ ***********************************

कोयार सा मिठा बोल

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 कोयार सा मिठा बोल मोरो माय बोली का कोयार सा मिठा बोल नांद  गुंजसे मनमा सूर ताल को माहोल मोरो पोवारी शब्द को सार गहण सखोल ओवी पोवाडा काव्यमा साधसे अलंकारिक तोल छंद व्याकरणलक सजीसे बोली सोपी अनमोल मिठास भरी से जसो शहद मिसरी को घोल पोवारी साहित्य संपदाको  खजाना से बहुमोल महके सुगंध समान बजाये प्रगतीको ढोल अरे पोवार भाई तू जरा मन ला टटोल मातृभाषा या पोवारी सदा मूखमा संभाल मधुर वाणी को संदेश देसे पक्षी जसो कोकील तसो जगमा तू बजाव माय पोवारी को बिगुल                 शारदा चौधरी                     भंडारा