पोवार समाज

 आज उदास लग रहीसे मन

पोवार समाज ला लगेव ग्रहण

जितं उतं मचेव कहर

फुटीरता की आई लहर

सबकुछ गयेव उथल पुथल

पड्या गट फुटया मत

असो लक कसो होये विकास

 समाजला से उन्नती की आस

देखो कसी भई दशा

कसी पुरी होये आशा

एकमेकका खिचसेंत पाय

 या कशी एकता आय?

राजाभोज को लगावंसेत नारा

करसेत सिर्फ शब्द को मारा

हरएकला लगीसे मीपण को वारा

बनेती कब समाज को सहारा

देखके दुखी मन भयेव दंग

दुःख बाटु मी कोनको संग

मन मा एक तुफान उठेव

रस्ता मोला एकच भेटेव

धरेव कागज उठायेव लेखणी

लिखन बसी समाज कहानी

लेखणी मोरी बने धार

चीर देये सीना आरपार

मन सोचनला करे मजबूर

भटक गया सेती जे दूर

एक माला मा बंधेती जब

समाज उच्चाई पर पोहोचे तब


                     शारदा चौधरी

                         भंडारा

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