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सामाजिक शख्शियत: श्री जयपालसिंह पटले

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                        सामाजिक शख्शियत: श्री जयपालसिंह पटले      श्री जयपालसिंह धाडूजी पटले का जन्म ग्राम सालेटेका, तहसील-वारासिवनी ,जिला- बालाघाट में १७ जुलाई १९२५ को हुआ था। उन्होंने सन १९५६ से १९९३  ,,तक MSEB में कार्य किया। वे सेवानिवृत्ति के उपरांत में नागपुर में साहित्य सृजन और ईश्वर भक्ति के साथ अपना अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।       उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन समाज की सेवा और साहित्य सृजन के लिए अर्पित कर दिया है। उन्होंने पोवारी, मराठी और हिंदी भाषाओं में लेखन का कार्य किया है। साहित्य के साथ उनकी विशेष रूचि भजन और कीर्तन में रही है। उन्होंने वंदनीय राष्ट्रसंत श्रीतुकडोजी महाराज द्वारा रचित ग्रामगीता का पोवारी में अनुवाद किया।       इसके अतिरिक्त पोवारी गीत गंगा, एवं राजाभोज गीतांजलि नामक काव्य संकलन श्री पटले जी के द्वारा लिखा गया है. उन्होंने गीत रामायण और श्रीमद्भागवतगीता सार का पोवारी बोली में अनुवादित किया. उनके द्वारा लिखित और अनुवादित  पोवारी साहित्य, क्षत्रिय पोवार पँवार समाज के लिए ऐतिहासिक धरोहरें है।हम सभी उनके दीर्घायु होने की कामना करते हैं. तथ्य संकलन : श

महाराजा उदियादित्य पँवार

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                                                       महाराजा उदियादित्य पँवार                                                                                                                                                                                                              महाराजा भोजदेव के आकस्मिक निधन के बाद मालवा में कुछ समय के लिए संकट के बादल खड़े हो गए थे।  राजा जयसिंह पँवार ने राज्यपाठ तो संभाल लिया पर चालुक्य और कलचुरियों के आक्रमण निरंतर जारी थे। उदयपुर प्रशस्ति लेख के अनुसार प्रमार वंश में नए सूर्य का उदय, महाराजा उदियादित्य पँवार के रूप में हुआ जिसने वापस मालवा के गौरव को लौटाकर धारा नगरी को प्रकाश से भर दिया। नागपुर शिलालेख के अनुसार महाराज भोज के बाद उनके रिश्तेदार महाराज उदियादित्य ने चालुक्य शासक कर्ण के प्रभाव को विफल कर पँवार वंश के गौरव को पुनरस्थापित किया ।                   जैन मान्यताओं के अनुसार महाराजा उदियादित्य, सम्राट राजा भोज के भाई थे। उन्होंने १०५९ से १०८८ तक मालवा पर शासन किया। उनके पुत्र नरवर्मन देव, लक्ष्मण देव और जगदेव बाद में मालवा और अन्य क

महाराज जगदेव पँवार

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 महाराज जगदेव पँवार                                                                                                                                                                                                      प्रमार(पँवार) वंश के महाप्रतापी, शौर्यवान और दानवीर योद्धा महाराज जगदेव पँवार ने देश के बड़े भूभाग पर शासन किया था। वे माँ गढ़काली के परम भक्त थे और कहते है की उन्होंने माता के सामने सात बार शीश अर्पण किया और माता ने हर बार इस दानवीर राजा को बचा लिया और आठवीं बार में  माता ने राजा जगदेव को अपने चरणों में जगह दी । धार में गढ़कालिका माँ मदिर के पास ही महाराज जगदेव पंवार की समाधी है । अदिलाबाद से प्राप्त अभिलेखानुसार- “यशोदयादित्य नृप: पितासिदैव पितृव्यस्त च भोजराजः विरेजंतुयों वसुंधिपत्य प्राप्तप्रतिष्ठाविद पुष्पदंतो” अर्थात- जिसका (जगदेव) पिता नरेश उदयादित्य था और नरेश भोजराज पितातुल्य था; जिन्होने वसुंधरा स्वामी (प्रमार वंश को) बन प्रतिष्ठा दिलाई । जय माँ गढ़कालिका जय महाराज जगदेव पँवार जय क्षत्रिय पँवार पोवार  राजवंश

वैनगंगा क्षेत्र के अग्निवंशीय पँवार(पोवार) क्षत्रिय

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 वैनगंगा क्षेत्र के पँवार(पोवार) धार, मालवा से आये हुए अग्निवंशीय क्षत्रिय हैं.  🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺🌸🌺 स्रोत : अखिल भारतीय पंवार क्षत्रिय महासभा, द्वारा प्रकाशित स्मरण ग्रन्थ  *भोज पत्र*, 1986 से 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

भगवान कृष्ण की पोवारी आरती

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  भगवान कृष्णकी आरती आरती कानोबा की, देवकीक् बेटा की विष्णुजी को अवतार, खुशी बढी गोकुलकी, आरती कानोबाकी।। धृ।। देवा तोरो बचपन, खुश भयोव वृंदावन अगाध तोरी लिला, तोला साथ गोपिकाकी आरती कानोबाकी।। १।। बासुरीको तुच धनी, राधा बासुरी दिवानी सबको तोला हित, तोला चिंता भक्त की, आरती कानोबाकी।। २।। अघासुर नरकासुर, असा मारेस असुर पुतनाला मारेस देवा, हत्या करेस कंसकी आरती कानोबाकी।। ३।। धर्म साती लढेस देवा, द्रौपदीन करीस धावा धावकन गयेस देवा, लाज राखेस द्रोपदी की आरती कानोबाकी।। ४।। नही मानेव दुर्योधन, वको भयोव पतन अर्जुन को तुच साथी, जीत भयी पांडवकी आरती कानोबाकी।। ५।। भक्त कसे देवा तोला, कसे जय नंदलाला धावत आव देवा, लाज राख भक्त की आरती कानोबाकी।। ६।। बोलो कृष्ण भगवान की जय *** ✍ डॉ. शेखराम परसराम येळेकर नागपूर दि १२/८/२०२०

कौन हैं अग्निवंशीय पँवार

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    कौन हैं अग्निवंशीय पँवार   धर्म से ज्ञान तक, ज्ञान से कर्म तक । कर्म से कर्तव्य तक, सजग है पँवार । । घर से समाज तक, समाज से देश तक ।  देश से पृथ्वी तक, संरक्षक है पँवार ।। प्राणी मात्र से, सबके कल्याण तक ।  मानवता से ब्रह्मांड तक, रक्षक है पँवार ।। क्षत्रिय धर्म से ब्रह्मक्षत्रिय धर्म तक ।  गुरु वशिष्ठ के आशीष में बढ़ा है पँवार ।। राजा प्रमार से, विक्रमादित्य के शौर्य तक ।  आबू से उज्जैन तक चला है पँवार ।। राजा उपेंद्र से राजा मुंज की शक्ति तक ।  राजा भोज के कल्याण से शोभित है पँवार ।। दुश्मनों की तलवार से, राज्य खोने तक ।  कभी न डरा, वो क्षत्रिय वीर है पँवार ।। धर्म की रक्षा से , अपने हर संस्कार तक ।  कभी न अडिग हुआ, वो योद्धा हैं पँवार ।। हे वीर क्षत्रिय, इतिहास से आज तक ।  धर्म को धारण किये हुआ तू हैं पँवार ।। महाकाल के पावन क्षेत्र से नगरधन तक ।  माँ वैनगंगा के आँचल में बढ़ा हैं पँवार ।। मन से, कर्म से सनातनी धर्म तक ।  पोवारी संस्कारों में समाहित हैं पँवार ।।                               

क्षत्रिय पँवार श्रीराम मंदिर, बैहर

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 #पँवार_श्रीराम_मंदिर_बैहर  मध्यप्रदेश में बालाघाट जिले के बैहर नगर  में सिहारपाठ की पहाड़ी पर सन 1909 में क्षत्रिय पंवारों के द्वारा भगवान श्रीराम के मंदिर का शिलान्यास किया गया था.मंदिर का निर्माण कार्य 1912 में पुर्ण हुआ. इस पहाड़ी पर हमारे पूर्वजों के द्वारा 20 एकड़ जमीन खरीदकर एक पँवार वंशीय तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया है.  प्रतिवर्ष रामनवमी के अवसर पर यंहा मेले का आयोजन होता है jha दूर दूर से स्वजातीय बंधू यंहा आकर भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना करते है. पंवार राम मंदिर ट्रस्ट, बैहर इस स्थल में सभी मंदिरो का रखरखाव एवं व्यवस्था  का कार्य करता है. यह तीर्थ स्थल इन अग्निवंशीय पंवारो की जन्मस्थली आबू पर्वत की याद दिलाता है. देश के विभिन्न क्षेत्रो से पंवार यंहा आकर बाबा सिहरपाठ के दर्शन कर १५० सीडियो पर चलकर श्रीराम मंदिर के दर्शन हेतु चढाई करते है. पहाड़ी पर माँ दुर्गा और हनुमान जी के सुन्दर मंदिर हैं. ऊपर जाने के लिए सड़क मार्ग भी जो बहुत ही सुन्दर है.  जय श्रीराम !!!  जय क्षत्रिय पँवार(पोवार) राजवंश  ✍🏼ऋषि बिसेन

भगवान श्रीराम, अयोध्या और पँवार पोवार वंश के सम्बन्ध

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  # भगवान_श्रीराम_अयोध्या_और_पँवार_पोवार_वंश_के_सम्बन्ध राजा मान्धाता, श्रीराम के पूर्वज थे और उनका वंश प्रमारा(परमार) वंश भी उल्लेखित मिला हैं. इतिहासकार जेम्स टाड राजा मान्धाता को पँवार राजा मानते थे. ऐतहासिक दस्तावेजो व लोकोक्तियों के अनुसार *रोहतक शहर पँवार राजा रोहिताश्च द्वारा बसाया गया । राजा रोहिताश्च राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र थे । राजा हरिश्चंद्र श्रीराम के पूर्वज थे । राजा हरिश्चंद्र, भी श्रीराम के पूर्वज थे और खुद को पँवार वंश का मानते थे। राजस्थान में एक पुराना नाट्य मंचन होता था उसका अंग्रेजी रूपांतरण किया गया है । उसमें राजा हरिश्चंद्र कहते है कि मैं सूर्यवंशी तो हु पर उसके पहले पँवार हु । सम्राट विक्रमादित्य पँवार प्रमार वंश से और वे भगवान राम को अपना पूर्वज मानते थे और उन्होंने अयोध्या नगरी का पुनर्निर्माण भी करवाया था. हाल ही के दिनों में इसके अवशेष भी प्राप्त हुए हैं जो सम्राट विक्रमादित्य के समकालीन हैं. सोशल मीडिया में इसके समर्थन में मुहीम भी चलाई हैं. कुछ हमारे वंश भाई यह मांग कर रहे हैं की अयोध्या में सम्राट विक्रमसेन विक्रमादित्य की प्रतिमा स

कुर(कुल)

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कुर(कुल) पोवारों के 36 कुर हैं और हरएक भी एक क्षत्रिय कुल हैं. कुल के लिए कुर शब्द का प्रयोग होता हैं और पोवारी में भी कुर ही कहा जाता हैं जसो, तुम्ही कोन कुर को सेव भाऊ Ravindra K Jain, Between History and Legends: Status and Powar in Budelkhand में पंवार को 36 कुर के राजपूत की शाखा बताते हैं. इस प्रकार स्पष्ट हैं की कुर शब्द पोवारी के अलावा भी हिंदी में भी दूसरों के द्वारा प्रयोग किया गया हैं. 36 कुर के क्षत्रिय समूह एक संघ के रूप में पोवार पंवार कहलाये और भाट की पोथी में इनके लिए मालवा राजपुताना से आये परमार शब्द का भी प्रयोग हुआ हैं                                                                                                         संकलन : ऋषि बिसेन, नागपुर