कौन हैं अग्निवंशीय पँवार
धर्म से ज्ञान तक, ज्ञान से कर्म तक ।
कर्म से कर्तव्य तक, सजग है पँवार । ।
घर से समाज तक, समाज से देश तक ।
देश से पृथ्वी तक, संरक्षक है पँवार ।।
प्राणी मात्र से, सबके कल्याण तक ।
मानवता से ब्रह्मांड तक, रक्षक है पँवार ।।
क्षत्रिय धर्म से ब्रह्मक्षत्रिय धर्म तक ।
गुरु वशिष्ठ के आशीष में बढ़ा है पँवार ।।
राजा प्रमार से, विक्रमादित्य के शौर्य तक ।
आबू से उज्जैन तक चला है पँवार ।।
राजा उपेंद्र से राजा मुंज की शक्ति तक ।
राजा भोज के कल्याण से शोभित है पँवार ।।
दुश्मनों की तलवार से, राज्य खोने तक ।
कभी न डरा, वो क्षत्रिय वीर है पँवार ।।
धर्म की रक्षा से , अपने हर संस्कार तक ।
कभी न अडिग हुआ, वो योद्धा हैं पँवार ।।
हे वीर क्षत्रिय, इतिहास से आज तक ।
धर्म को धारण किये हुआ तू हैं पँवार ।।
महाकाल के पावन क्षेत्र से नगरधन तक ।
माँ वैनगंगा के आँचल में बढ़ा हैं पँवार ।।
मन से, कर्म से सनातनी धर्म तक ।
पोवारी संस्कारों में समाहित हैं पँवार ।।
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