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जगदेव पँवार री वात

  करीब 250 साल पहले राजस्थान मा प्रचलित जगदेव पँवार की कहानी का काइ अंश अना वोको पोवारी अनुवाद --  जगदेव पँवार री वात--- _तिठै राजा बोल्यो, बेटीं चावड़ी, थारौ पीहर किसे नगर , नै किनरी बेटी छै, नै थारौ सासरो किसै नगर छै, सुसरा रो नाम खांप कासूं छै। तरै चावड़ी जाणियो कोई मोटो लायक दीसै छै, इण आगे कह्यौ चाहीजे । तरै कह्यौ, बापजी, पीहर तो नगर टोडे छै । राजा राजरी धीव' छू, वीजकॅबररी बहिन छू, सासरो धार नगररो धणी, जाति पंवार, राजा उदियादीत रे लोहड़ा बेटारी अंतउर" छू_। पोवारी अनुवाद ---- _तबs राजा कसे, बेटीं चावड़ी, तोरो मायघर कौन नगर को आय । अनै कोनकी बेटी आस ,  तोरो सुसरोघर कौन नगर मा से, सुसरो को नाम , कुल  का से । तबs चावड़ी न समझीस की कोणी मानवाईक  दीसै से, इणको  सामने कवनला होना। तब वोन कहिस, अजी, मोरो मायघर तो  टोडेनगर से । राजराजा की बेटी आव, वीजकंवर की बहिन आव, सुसरो धार नगरको धणी से, जाति पंवार से , अनै राजा उदियादीत को नहानो बेटाकी घरवाली आव।_ (100 साल पुरानो पोवारी नमूना मा अना को जागा परा अनै से।)

पोवार(छत्तीस कुल पंवार) समाज संस्कृति अना इतिहास को तत्व

 पोवार(छत्तीस कुल पंवार) समाज संस्कृति अना इतिहास को तत्व *समाज को परिचय* पोवार(पंवार) समाज को इतिहास गौरवशाली आय। पोवार समाज वास्तव मा छत्तीस पुरातन क्षत्रिय इनको येक संघ आय। इतिहासकार अना समाज को भाट इनको अनुसार मालवा का प्रमार(पंवार) अना इनको नातेदार कुर इनको संघ च असल मा पोवार समाज से, जेला पोवार या छत्तीस कुल पंवार जाति कहयो जासे। *समाज को आदर्श:*       सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट शालीवाहन, राजा  मुंज, राजा भोज, राजा उदियादित्य, राजा जगदेव, राजा लक्ष्मणदेव असो अनेकानेक पोवार योद्धा इनला समाज आपरो पुरखा, आपरो आदर्श मानसेती। *पोवारी संस्कृति सनातनी संस्कृति:*      पोवार, सनातन धरम का पालन करन वालों क्षत्रिय समाज आय अना देवघर हर पोवारी घर को प्रमुख पूजाघर आय अना यव मानता से की इतन् आपरो सप्पाई देवी-देवता इनको वास रवहसे अना संग मा आपरो पुरखा ओढ़ील इनकी पावन आत्मा को वास रहवसे। देवघर की चौरी की पवित्र माटी ला पुरातन काल लक पूज्य मानसेजन। नवो स्थान परा जान की स्थिति मा यन माटी ला विधि-विधान लक लेजायकन नवो घर मा देवघर की  बसावन को विधान से। *पोवार समाज को कुलदेव अना कुलदेवी:*     महाकाल म

विषय:-तिज

 विषय:-तिज                      ******** भई  चैत   अमावस शुध्द वैशाख तृतीया तिज ओलाच कसेती वाच  अक्षय  तृतीया  यन  दिवस   करणं पितृ  देवको  दर्पण भरो करसा,ना पूजा पाच आंबा को अर्पण शुध्द दिन शुध्द तिथी  तन मन शुध्द ठेवो  करो स्मरण पीतृको तब आशीर्वाद पावो तिज पासुनच सुरु होसे चालु लाक्तखार खेती किसानी साठीच  चेतो होसे कास्तकार करो खेती सुरवात सुरू खारी खरपळा पिके खेती चांगलीच  दूर होय अवकळा  गया दिवस बिसरो करो नवी सुरवातं दिन चांगला आयेती व-या कालीकाको हात       ******** डी पी राहांगडाले       गोंदिया

तीज (अक्षय तृतीया)

 तीज (अक्षय तृतीया) वैशाख को भरेव तपन मा आवसे तीज। पूर्वजों को मानपान को सन आय तीज।। सकार पासुन रवसे गड़बड़ घाईं सबला। किसान मंग बखर धरकर जासे खेतमा।। अजपासुन होसे खेतिको काम की मोहतूर। बखर फिरावसेती धान टाकसेत पांच मुठ।। कोयार पक्षी भी अज़ आवसे सुसरो घरं। सांगसेत बुढा अखाढीला जासे वा माहेरं।। सब पोवार घरं भरसेत तिजला लाल करसा। चवरी जवर शेण को बेठ पर ठेवसेत करसा।। कासो को भानीमा परसा को पान की पत्राली।। सुवारी ,सेवई,पनो, बड़ा की पुर्वजला बिरानि।। बड़ो भक्ति लका पांच आंबाको करसामा घड़। कागुर मंग टाकेव जासे जोड़ीलं बरण को ऊपर।। पूजापाठ होएपरा लेसेत मोठो को आशीर्वाद। सब मिलकर लेसेत पनों, सेवई को आस्वाद। असो आमरो पोवारको तीज को त्योहार। नवीन पीढ़ीला भी देबिन चांगला संस्कार।। ✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

पोवारी विवाह गीत

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    पोवारी विवाह गीत   पोवार( छत्तीस कुर पंवार) समाज   में विवाह के समय गाये जाने वाले पारंपरिक पोवारी गीत     १. मंडप सुताई दस्तुर पर गीत बारा डेरी को मान्डो गड़ी से , ॥धृ.॥   मांडो पर मंडाईन ओला बेरू बेरुइनपरबिछाईनजांभूरकीडारी जांभूरकीडारीखाल्याशोभसेआंबाकीतोरन।।१।।   जवाई रामलाल मान्डो सूत से। सूत गोईता जवाई बापु तुमरो सेला घोरऽ से॥ तोरन गोईता जवाई बापू तुमरो कास्टोऽ सुटसे || २ ||   कुकू मा डोइता , सुषमा ओ बाई तुमरीअंगोरीलालभईसे। मांडोमातोरनलगी || ३ || दामाद जब मंडप सूतना प्रारम्भ करता है तब महिलायें यह गाना गाती हैं | पोवारों में १२ डेरी (खंबों) का मंडप शादी में उभारा जाता है। उसपर बांस बिछाकर जामून की टिहनियों से आच्छादित किया जाता है। बाद में दामाद (रामलाल) मंडप के चौफेर धागा गुंथता है और आम की तोरन बांधता है। इस दौरान दामाद का दुप्पटा जमीनपर घोर रहा है और आम की तोरण बांधते बांधते धोती का कास्टा छूट जाता है। इसी कड़ी में दामाद की पत्नी (सुषमाबाई) कुंकू का रंग लगाते लगाते उसकी उंगलियां लाल हो जाती है। इस तरह महिलाऐं हास्य व्यंग गान