पोवार(छत्तीस कुल पंवार) समाज संस्कृति अना इतिहास को तत्व

 पोवार(छत्तीस कुल पंवार) समाज संस्कृति अना इतिहास को तत्व

*समाज को परिचय*

पोवार(पंवार) समाज को इतिहास गौरवशाली आय। पोवार समाज वास्तव मा छत्तीस पुरातन क्षत्रिय इनको येक संघ आय। इतिहासकार अना समाज को भाट इनको अनुसार मालवा का प्रमार(पंवार) अना इनको नातेदार कुर इनको संघ च असल मा पोवार समाज से, जेला पोवार या छत्तीस कुल पंवार जाति कहयो जासे।

*समाज को आदर्श:*

      सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट शालीवाहन, राजा  मुंज, राजा भोज, राजा उदियादित्य, राजा जगदेव, राजा लक्ष्मणदेव असो अनेकानेक पोवार योद्धा इनला समाज आपरो पुरखा, आपरो आदर्श मानसेती।

*पोवारी संस्कृति सनातनी संस्कृति:*

     पोवार, सनातन धरम का पालन करन वालों क्षत्रिय समाज आय अना देवघर हर पोवारी घर को प्रमुख पूजाघर आय अना यव मानता से की इतन् आपरो सप्पाई देवी-देवता इनको वास रवहसे अना संग मा आपरो पुरखा ओढ़ील इनकी पावन आत्मा को वास रहवसे। देवघर की चौरी की पवित्र माटी ला पुरातन काल लक पूज्य मानसेजन। नवो स्थान परा जान की स्थिति मा यन माटी ला विधि-विधान लक लेजायकन नवो घर मा देवघर की  बसावन को विधान से।

*पोवार समाज को कुलदेव अना कुलदेवी:*

    महाकाल महादेव, पोवार समाज का कुलदेवता सेती। माय काली भवानी कुलदेवी से। प्रभु श्रीराम समाज समाज का आराध्य आती। कई पोवारी कुर इनको स्थानीय कुलदेवत भी सेती। इतिहास मा दूल्हा देव, बाघ देव, नारायण देव, पटिल देव असो देवत इनकी मानता भी रही से।

*पोवार समाज अना उनको आराध्य प्रभु श्रीराम:*

      पोवार समाज को सम्राट, विक्रमसेन विक्रमादित्य, खुद ला प्रभु श्रीराम को वंशज मानत होतिन अना प्रभु को दर्शन की आस मा वय अयोध्या गइन। असी मानता से की उनला प्रभु श्रीराम ना उतन दर्शन देइ होतिन। उनको आशीर्वाद लक सम्राट विक्रमादित्य ना आपरो आराध्य प्रभु श्रीराम की नगरी को पूनरनिर्माण करीन। अज़ भी पोवार समाज ना आपरी सनातनी परम्परा इनला सोड़ी नही सेत। वैनगंगा क्षेत्र मा आन को बाद मा उनला रामपायली किला उनला मिल्यो  होतो अना उतन किला परा आपरो आराध्य प्रभु श्रीराम को प्राचीन मंदिर को जीर्णोद्धाधार करीन। तसच बैहर की सिहारपाठ पहाड़ी परा उनना श्रीराम मंदिर को निरमान करीन। मराठा काल मा भी क्षत्रिय पोवार अना मराठा शासक इनको बीच मा राजकीय अना सैन्य भागीदारी होती। रामटेक मा प्रभु श्रीराम को प्रवास होतो अना यव पावन नगरी प्रभु श्रीराम की आस्था की नगरी आय। रामटेक मा मराठा शासक इनको सहयोग लक पोवार समाज इनना आपरो आराध्य इनको मंदिर को पुनरनिर्माण को काम भयो। तसच नगरधन किला मा पोवार समाज की कुलदेवी माय काली को मंदिर की निर्मिति पोवार समाज को द्वारा च करन को अनुमान से।

*पोवार समाज को वैनगंगा क्षेत्र मा विस्तार अना पोवारी संस्कृति*

        अठारहवी सदी की शुरुवात लक मराठा काल लक ब्रिटिश काल वरी कई विजय को परिनाम स्वरूप वैनगंगा क्षेत्र को ३२३ नगर/गांव/जागीर इनकी जागीरदारी पोवार समाज इनला भेटी होती। मध्यभारत को नगरधन क्षेत्र मा अज़ लगभग नौ सौ गांव/नगर इनमा पोवार समाज की बसाहट से। समाजजन ला इतन लम्बा समय भय गई से अना पोवारी संस्कृति मा मालवा-राजपुताना की जूनी संस्कृति को संग स्थानीय संस्कृति को कई तत्व इनको सम्मिलन भय गई से।  समाज की भाषा पोवारी से अना भाषा मा भी स्थानीय भाषा इनको प्रभाव क्षेत्रवार सुनन मा आवसे।

*पोवार समाज को सन तिव्हार अना रीति-रिवाज :*

          पोवार समाज, सनातन हिन्दू धरम इनको सप्पाई सन तिव्हार को संग पोरा, बलीप्रतिप्रदा, नार्बोद जसो स्थानीय तिव्हार इनला मा मानन् लगी सेती तसच क्षत्रिय माता डोकरी पूजा, दसरा को मयरी को दस्तूर, अखाड़ी मा विशेष पूजा जसी विशिष्ट पोवारी परम्परा इनको पालन करसेती। जनम लक बिया अना मृत्यु वरी सनातनी परम्परा इनमा हमारो समाज की विशिष्ट पोवारी रीति-रिवाज सेती। पोवार(पंवार) समाज को छत्तीस कुर होन को इतिहास मा उल्लेख से, परा इतन अज़ की बसाहट को अध्ययन को अनुसार इकतीस कुर, वैनगंगा क्षेत्र मा स्थाई रूप लक बसिसेती। बाकी का कुर दुसरो क्षेत्र मा सेती परा आता उनको लक कोनी सांस्कृतिक रिश्ता देखन मा नही आई से अना यव शोध को विषय आय।

पोवारी संस्कृति, गौरवशाली संस्कृति:

        पोवार(छत्तीस कुरया पंवार) समाज ला इतन् कई सौ बरस भय गई से अना समाज को येत्तो लम्बा समय मा विशेष सांस्कृतिक स्वरूप अना भाषा को विकास भई से। समाज महान संस्कृति अना इतिहास को वारिस आय, पूर्ण रूप लक सनातन हिन्दू धरम ला मानन वालों आय तसच सच्चो क्षत्रिय धरम को पालन करनो वालों समाज आय त अज़ की पीढ़ी की यव मोठी जिम्मेदारी से की आपरी यन गौरवशाली, पुरातन अना विकसित सांस्कृतिक स्वरूप ला साबुत ठेयकन राखेती अना येला नवी पीढ़ी ला देहेती तब आपरी यव संस्कृति अना पहिचान बचहे अना युगो युगो वरी अजर-अमर रहें।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट

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