पोवारी विवाह गीत
पोवारी विवाह गीत
पोवार( छत्तीस कुर पंवार) समाज
में विवाह के समय
गाये जाने वाले
पारंपरिक पोवारी गीत
१. मंडप सुताई दस्तुर पर गीत
बारा
डेरी को मान्डो गड़ी से,
॥धृ.॥
मांडो
पर मंडाईन ओला बेरू
बेरुइनपरबिछाईनजांभूरकीडारी
जांभूरकीडारीखाल्याशोभसेआंबाकीतोरन।।१।।
जवाई
रामलाल मान्डो सूत से।
सूत
गोईता जवाई बापु तुमरो सेला घोरऽ से॥
तोरन
गोईता जवाई बापू तुमरो कास्टोऽ सुटसे ||२||
कुकू
मा डोइता, सुषमा
ओ बाई
तुमरीअंगोरीलालभईसे।
मांडोमातोरनलगी
||३||
दामाद जब मंडप सूतना प्रारम्भ करता है तब महिलायें यह गाना गाती हैं| पोवारों में
१२ डेरी (खंबों) का मंडप शादी में उभारा जाता है। उसपर बांस
बिछाकर जामून की टिहनियों से आच्छादित किया जाता है। बाद में
दामाद (रामलाल) मंडप के चौफेर धागा गुंथता है और आम की तोरन बांधता
है। इस दौरान दामाद का दुप्पटा जमीनपर घोर रहा है और आम की तोरण
बांधते बांधते धोती का कास्टा छूट जाता है। इसी कड़ी में दामाद की
पत्नी (सुषमाबाई) कुंकू का रंग लगाते लगाते उसकी उंगलियां लाल हो जाती
है। इस तरह महिलाऐं हास्य व्यंग गाने में व्यक्त करती हैं।
२. काकन बंधाई दस्तुर पर गीत
चलवो-चलवो
फुफाबाई, काकन
बेरा भई ||धृ.II
आमरी
फुफाबाई, दिवस
भर उपासी रही ।
दिवस भर उपासी रही,
चलवो-चलवो
फुफाबाई, काकन
बेरा भई ||१||
कोष्टी
घर को सूत बाई, कुंभार
घर की कोरी मथनी ।
बारई
घर का पान बाई, सोनार
घर की सरी ।
कामथ
मा का धान बाई, बाप
की आय बहनाई ।
चलवो-चलवो
फुफाबाई, काकन
बेरा भई ||२||
वर तथा वधू को उनके पैतृक घर पर विवाह समारंभ के प्रारम्भिक घटा में काकन बांधा जाता है। बुवा यह रस्म निभाती है। इस अवसर पर बुवा की काकन बांधने हेतु आवभगत की जाती है। इस संदर्भ में महिलाएँ उपरोक्त गीत गाती है
३. कुम्हारीन दस्तुर पर गीत
कुम्हारीन
बाई, कुम्हार
कहां गयो ओ ।
खांद
पर पावडा धर, माती
खंदन गयो ओ ||१||
कुंम्हार
माती खंद से गा बाई खंदसे
कुम्हारीन
माती, टोपलामा
भरसे ||२||
आननला
माती, आता
भय गई राती
अइगघड़
बारा, दिवो
जोती।।३।।
आमरऽअईगला, काहे भयो उसीर।
कुम्हारीन
बाईला, गळसे
कुशीर ||४||
आमरऽ
गावकी, कारी
माती ।
कुम्हारीन
बाईला, लिजासे
खाती ||५||
आमरऽ
गांवकी, गोटा
की चट्टान
कुम्हारीन
बाईला, लिजासे
पठान ||६||
आमरऽ
गाव को, ओंड-
बोंड
कुम्हारीन
बाईला, लिजासे
गोंड ||७||
(अईग: = १२
जोडी मिट्टी के ढकने और झाकनी)
विवाह में बुआ कुम्हारिन बनती है,
तब उस पर कटाक्ष करते हुये
यह गीत गाया जाता है। हमारे गांव की मिट्टी काली है, कुम्हारिन
यहां मौज उडाने
भर आयी है। हमारे गांव में पथरीली चट्टान है,
कुम्हारिन को पठान
उठाकर ले जायेगा। हमारे गांव में ओंडा-बोंडा है, कुम्हारिन को गोंड भगाकर ले जायेगा। उपर्युक्त गीत में हर प्रथम पंक्ति मात्र तुकबंदी के लिए है
व हर दूसरी
पंक्ति में उस पर आक्षेप लगाये जाते हैं। इस प्रकार आक्षेपयुक्त गाने " को “भडना” कहते है।
भडने का यह क्रम विवाह की रस्मों को मनोरंजन बना देता है, जिससे लगातार
चलनेवाले कार्यक्रमों के बावजूद का
महसूस नही होती।
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४. तेलचढ़ाई दस्तुर पर गीत
तेलसाई
ओ तेलसाई, तेलमा
पड़ी काई
हुकुमजी
की डंगो बाई, तेल
चढ़ायकन गई II
तैली
घर को तेल बाई, कोष्टी
घर को सूत ।
कामत
का धान बाई, दुकान
पर को जीरो।।
अर्थात् तेल
चढ़ाने आने वाली ने तेल चढाया या नहीं,
क्योंकि तेल
में तो काई पड़ी दिख रही है। अमुक के यहां की डंगो बाई (ऊँचे कद की स्त्री) तेल
चढ़ाकर जा रही है। तेल पर कभी काई नहीं जमती,
किन्तु गीत
में तेल में काई पड़ना दर्शाकर हंसी का माहौल बना दिया जाता है।
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५. माहे दसाई दस्तुर पर गीत
डव्वा
गाव को आखर पर, बड़
को झाड़
झोड़पामारकनआनिनपाचपान....
वनच
का पान का जवाई रामलाल
सीवs सेती दोणा
सात-सात ||१||
गंगावन
वसरी अमृतधारा पानी
अजी
यादोरावजी तुमरी रानी
अवो
रेखाबाई तोरो नवरा ।
उजरसे
दीवो की जोती ||३||
(बड
के पत्तों के ७ जोडी द्रोण बनाकर नांदड़ के पास पूजा की जाती है) यह गीत नांदड़
घट जलाते समय गाया जाता है।
अर्थात - डव्वा गांव के आखर पर बड़ के पेड़ से पाच पत्ते लाये और उन्हीं. पत्तों से
दामाद (रामलाल) द्रोण तयार कर रहा है। छप्पर को गंगा जैसी शुद्ध करने
दसाई दस्तुऱ्या (यादवरावजी) की पत्नी (बीसापूर) की जलधारा छोड़ रही है
तथा उसका पती दीपकों की ज्योत प्रज्वलित कर रहा है।
६. डेरी-पूजन दस्तुर पर गीत
तुमरो
नाती को बिह्या होय रही से
आवो
बाबाजी सरगलकs, मांडो
सजी से ॥धृ.॥
कसो
कसो आवबीन बाई, चारी
दरवाजा बंद सेती ।
उघडो-उघडो
ओ दरवाजा, आमरा
पूर्वज आवड सेती ||१||
आवो
बाबाजी तुमरो नाती को बिह्या होय रही से ।
आवो
आवो बाबाजी सरगलकऽ, मांडो
सजी से ||२||
आंबा
क अंबराईऽमा, उतर
जाओ,
गंगार
क पानीलक, पाय
धोय लेओ,
पान
क पेवलीमाको, पान
खाय लेओ,
सपरी
क पलंगपर, आराम
कर लेओ ||३||
देवी देवताओं को हलदी चढाने के बाद,
महिलायें मंडप की डेरीओ
का पूजन करती है और अपने पुरखों को आने की प्रार्थना करती हैं -आपके पौत्र का
ब्याह हो रहा है। आप स्वर्ग से कृपया मंडप में पधारें। पुर्वज कहते
है - हम कैसे आयें, चारो
दरवाजे बंद है। परिजन कहते हैं,
हे! द्वारपालों
दरवाजे खोलों, हमारे
पूर्वज ब्याह समारोह में आ रहे हैं|
बाद में परिजन
अपने पूर्वजों से कहते हैं - आमराई में उतर जाना, गंगार के पानी से पाव धो लेना,
पान-पेवली से पान रखा लेना और पलंग पर आराम कर लेना।
७. अहेर अवसर पर गीत
तरा
के पार पर, बारी
ओ मोहरली
ओका
कोवरा ओ कोवरा पान ।।१।।
भाई
की बहीना, ओ
तुरजाबाई
आओ
गा आओ, चांदन्या
राती ||२||
नही
आऊ, नही
आऊ, मि
चांदन्या राती
आऊनगाआऊन, दिवो कोजोती।।३।।
अज
मोरो माय घरS अहेर
सेती
हाथ
मा धरूओ, पंच्या
की घड़ी
भाई
को मांडो मा, शोभा
दिसेऽ भारी ||४||
मालुटोला
को आखरपरा, से
बड़ को झाड़
बड़
को झाड़ रखाल्या, से
कोष्टी की दुकान ||५||
बहीन
पारबताबाईला, चिंता
पड़ी भारी
बाई
पारबता, पंच्या
लेनला गई ||६||
इन वोनच का पंच्या
की,करीस
१६ घड़ी
अहेर
बस्या सेती, भाई
मोराऽ मोती ||७||
धावत-धावत
मांड्रो मा आई
अहेर
कर से, बहिना
पारबता बाई।।८।।
अहेर
भयेव गवराबाई, घर
मा नोको जावो ।
बस्या
सेत पाहुना मांडोमा, उनको
मान पान करो।।९।।
आमरो
गोत आई से मांडो मा दूर लं
जवाईला
समजाओ, पंच्या
सेलु लं ||१०||
गोत
ला समजाओ, हरदी
कुकू लं
बिहाईनलासमजाओ,पानबिडालं।।११।।
बेटी
ला समजाओ चिऱ्या - चोरी लं
बामन
ला समजाओ गाय - गोरी लं ||१२||
शादी समारोह के अवसर पर दुल्हा / दुल्हन की बुवा पर हास्यपूर्ण कटाक्ष किया
गया है। बुवा को मायके से लेने आनेवाला भाई रात में चलने कहता है, किंतु बहन
रात का सफर नापसंद कर सुबह जाने का मनोदय व्यक्त करती है । सफर के दौरान वह मन ही
मन कहती है कि आज मेरे मायके में अहेर है और मै अपने हाथों में धोती पकडुंगी जिससे
मेरे भाई के मंडप की शोभा बढ़ेगी। बाद में उसे मालुटोला के आखर पर बड़ के पेड़ के
नीचे कोष्टी की दुकान दिखती है और वह धोती खरीदने जाती है। उस धोती की वह सोला घड़ी
कर दौडते हुये मंडप में प्रवेश करती है और अपने भाई को अहेर चढाती है। अंत में परिवार की बुजुर्ग
महिला कहती है कि मंडप मे उपस्थित मेहमानों का सम्मान कीजिये। दामाद को धोती या दुपट्टा, अन्य
रिश्तेदारों को हल्दी कुंकू का टीका,
समधन को पान का बीड़ा,
लडकी को साडी चोली तथा ब्राह्मण को गाय-बछुडा देकर सम्मान करों ।
***************
८. बारात प्रस्थान के अवसर पर गीत
बारात
प्रस्थान पूर्व घर में दुल्हे के मन में अनेक प्रश्न उभरते है, जिनका समाधान
माँ आगे प्रस्तुत गीत के माध्यम से करती है। पुत्र का मनोबल सुदृढ़
करती है। सही माने में दिशा निर्देशक की भूमिका निभाती है| साथो-साथ यह
गीत अनजान दूल्हे को विभिन्न रीति-रिवाजों से अवगत कराता है, ताकि किसी भी
भावी कार्यक्रम में वह सफलतापूर्वक रश्म- रिवाज निभा सके। यह गीत इस प्रकार है-
- अ) परनू जासे परायो देश!
अलसी
फूल,चना फूल,चईत मास,
अगा
बार् परनू जासे परायो देश |धृ.।
परायो
देश मोरी माय, कसो
जाऊ ओ ?
परदेश
दाम देजो बार्, परदेश
जाई जो ||१||
परायी
सीव मोरी माय, कसो
खुंदू ओ ?
सीव
दाम देजो बार्, सीव
खुंदी जो ||२||
परायो
आखर मोरी माय, कसो
चापु ओ?
आखर
दाम देजो बार्, मान्डो
चापि जो ||३||
परायो
जानुसा मोरी माय, कसो
जाऊं ओ ।
जानुसा
दाम देजोबार्,जानुसा
जाईजो।।४।।
परायो
हल्दी मोरी, माय
कसो लगाऊं ओ ।
हल्दी
दाम देजोबार्, हल्दी
लगाहेजो।।५।।
परायो
पानी मोरी माय, आंग
कसो धोऊ ओ ?
पानी
दाम देजो बार्, आंग
धोई जो ||६||
परायो
ओसरी मोरी माय, कसो
खुंदू ओ ।
ओसरी
दाम देजो बार्, ओसरी
खुंदी जो ||७||
परायो
बनवत मोरी माय, कसो
खाऊं ओ ।
बनवत
दाम देजो बार्, बनवत
रवाई जो ||८||
परायो
कनगुली मोरी माय, कसो
धरूं ओ ।
कनगुली
दाम देजो बार्, कनगुली
धरी जो ||९||
परायी
नार मोरी माय, कसो
आनू ओ ।
नार दाम
देजोबार्, नार आनिजो।।१०।।
परायो
देश बार्, बड़ो
कुबल ।
नोको
गाकरजो, हासी
की धन।।११।।
नहाव
ना नहाव माय, मि
येड़ा गंवार
सिर
को बासिंग पर, होसू
सवार ||१२।।
बारात घर से प्रस्थान
होकर मंदिर में पूजापाठ के पश्चात दूल्हा रेहके में बैठता है,
माँ उसे दूध पिलाने का दस्तुर निभाती है। उस वक्त माँ- बेटे के बीच
जो वार्तालाप होता है वह इस गीत में संजोया गया है.....
ब) देगा बार्, मोरो दुध को दाम !
तरा
क पार पर, गुडूर
भयो उभो ।
वहाँ
गई नवरदेव की माय, वार्तालाप
भयो ।।धृ।।
देगा
बार्, देगा
बार्, मोरो
दूध को दाम ।
आनू
का आनू मोरी माय, तोरी
जेवन वाढ़नार ||१||
देगा
बार्, देगा
बार्, मोरो
दूध को दाम ।
आनू
का आनू मोरी माय, तोरी
पानी सारनार ||२||
देगा
बार्, देगा
बार्, मोरो
दूध को दाम ।
आनू
का आनू मोरी माय, तोरी
आंग धोवनार ||३||
अज
का जासू मोरी माय, धीर
धर बिह्या लका ।
पाच
गावला देहूं येड़ा, आपलो
आनू जनम् जोड़ा ||४||
तोरी
का होये माय, हांडी
रांधनार ।
अजी की
होये माय,पानी
सारनार||५||
बाई
की होये माय, डोसकी
धोवनार ।
फुफाबाई
की होये माय, पाय
धोवनार ||६||
(बार् = बाळ
अथवा बेटा )
माँ द्वारा
अपने बेटे (पुत्र) के शादी के पश्चात उससे उसकी क्या अपेक्षाएं
होती है, उसकी
झलक यह गीत उजागर करता है। इस गीत में पुत्र भी अपनी पत्नी द्वारा परिवार के प्रति उत्तरदायित्त्व
निभाने की हामी
भरता है।
***************
९. पांव पवारने के दस्तुर पर गीत
लग्न लगने के
बाद तथा दहेज प्रारम्भ होने के पूर्व दुल्हन के पिता और माता द्वारा
दुल्हा-दुल्हन के पांव परवारने (दूध से धोने/पूजने) की प्रथा है| इस अवसर पर
यह गाना गाया जाता है।
-
कारी
कपिला गाय बन मा चरन जाय ओऽ
परत
घर आयी, रामू
खुटला बांध ओऽ।
लछमन
दूध दोह ओ, सीता
दूध अटाय ओऽ
पिता
को हात मा आंबी की डार,
माय सोड़ दूध की धार ओ ||१||
धरतरी
माता की दाब-दुभारी, कपिला
गाय को ओ दूध ऽऽ।
पाय
का धोईता रामचन्द्रजी बाप,
हाथ थुलथुला कापऽऽ।
दूध
का सोडिता सीता की माय,
नवसूत्री पहनाव डाटऽऽ ।
डाटत
जासे माय को थनs, हरकाप
गयो बाप को मनऽ ||२||
***************
१०. दहेज के अवसर पर गीत
अ) दहेज
खरीदने की
दहेज बर्तन की कसार की गाडी वधु के पिता के गांव आती है और
दहेज खरीदने की आतुरता दर्शाता यह गीत-
पाथरगाव
को आखर पर, सूटी
कसार की गाडी
पिता
मोरो चन्दन ला, उसीर
भई भारी।
नही
देखू, नही
देखू पिता की बाट,
गई
रेशम की गाठ ॥
ब) सूम की गोत ड़ालने के समय पर गीत
दादाजी
को आंगन मा, चंदन
की डेरड
चंदन
की डेरीला, बंधी
रेशम की दोरss
रेशम
की दोरीला, लगी
से सोनो की खुरी
खुरीला
बंधीसे, गाय
की दोरी
रामू-सीता
को गरो मा, पड़ीसे
सूम दी दोरी ||१||
क) दहेज दौरान गाये जाने वाला गीत
नवरी
पुसऽ आपलो दादाजीला,
दादाजी
कायको दायजो मोला देयातs?
चऊक
चांदनऽ, गुंड
आंदनs
आमि
बेटी देया, कन्या
दानऽ ।
जवाई
हरिश्चंद्र मा यवढो ज्ञानऽ,
सासू
सुसरो को पड़े पायऽ ||१||
रामू
पुसऽ सीताला,
तोरो
दादाजी नऽ कायको दायजो देईसs,
मोरच
का दादाजी नऽ गुंड दायजो देईसऽ |
गुंड
सरिसो दायजो पायो,
जवाई
पिरमलाल संतोषी भयो ।
हीरा
सरीखी बेटी देयेव,
सोयरो
संतोषी भयो ||२||
रामू
पूसS सीताला
तोरो
जिजानऽ कायको दायजो देईसs,
मोरच
का जिजानS नानो
दायजो देईस ||३||
ड) दहेज
समापन पर गीत
-
बटका
की चरत ला घसराओ नोको,
नवरदेव
को बाप ला घबराओ नोको।
इ) सूम की गोत छोड़ते समय पर गीत
सोनो
की घागर,मोति
की चुम्भर
बाई पुष्पा
पानी भर ।।
सोड़
भाऊ, सोड़
भाऊ, फांसी
की गोत ।
मिचली
गा आपलो देश।।१।।
सोड़ता
सोड़ता लग्यो बाई भारी।
पिता
निवड़ से करप मा की गोन्ही ||
अज
चली खेलुन्या मोरी।
बापसोपेआपलीबेटी
||२||
हास्यरस भरे
ए गीत इस वैवाहिक वातावरण को मीठी हंसी में भर देते हैं। इस
प्रकार मीठी-मीठी बातों के मध्य हास्य का पुट पड़ते ही हंसी की फुलझड़ियों
की खनक गूंजने लगती है। विवाह के अवसर पर वधू पक्ष के लोग जब
हल्की फुल्की हंसी, ठिठोली
भरी मुहावरों की बौछार करते है,
तो कोई बिरला ही होगा जो अपने अधरों को हास्य की रेखा से मुक्त रख पाता हो।
***************
११. बाल के खेल के अवसर पर गीत
काकन छुडाने के बाद बाल (सेमी के
दाने) खिलाने की मनोरंजक
रस्म होती है । इस दौरान वधू की सहेलियाँ वधू से ठिठोली करती है -
बजावो
बजाओ बाजा रे होल्या,
बाज्या नाना परीऽ ।
तोला
देबिन रे होल्या, शोभा
बाई सरीसी घोडीS||१||
नही
मिले रे होल्या, पोवारिन
बायको तोला ।
बजाव
गा बजाव होल्या, तोरो
बाजा ।
तोला
देबीन रे होल्या, या
छमछम घोड़ी ||२||
नवरी
सरीखी नही भेटे बायको तोला ।
येनs जनम मा गा, येनs जनम मा ।
तोला
देबीन रे होल्या,
या साजरी टुरी।।३।।
***************
१२. काकन छुडाई दस्तुर पर गीत
वर-वधू को
मंडप में बिठाकर जब काकन छुडाने का अनुष्ठान होता है तो वर
द्वारा वधू का काकन छोड़ते समय यह गीत गाया जाता है –
आठ
गाँठ को, नौ
फुंडको काकनs
छोडगा
छोड नवरदेव, बाईको
काकनS
नही
छूटतऽ, पूछ
फूफाबाई ला ऽ
घडी
भर बुलाय ले गा, होल्या बापलाऽ ।
अर्थात् - आठ
गाँठों और नौ फूंडकों वाला यह काकन है। हे वर, तुम वधू के काकन की गाँठ खोलो। यदि तुमसे गाँठ न खुलती हो
तो अपनी बुआ
से इसे खोलने का तरीका पूछ लो। यदि फिर भी सफलता न मिले तो होल्या
(बाजा बजाने वाला) गाँठ खोलने बुला लो । गीत में समाहित यह कटाक्ष वर को चुनौति देता है और उस में काकन छोड़ने
के प्रति जोश और उत्साह उत्पन्न कर देता है। ऐसे ही कटाक्ष वधू द्वारा
वर का काकन छोड़ते समय किये जाते है।
***************
१३. पान खिचाई दस्तुर पर गीत
ए गीत फलदान ,बिजौरा, कुसुम्बा आदि
अवसरों पर गाये जाते
हैं। इन गीतों में समदी तथा समदन की मज़ाक उड़ाई गई है ।
अ) समदी की खिचाई
जामुरी
को पान, राखड़
को चूना ।
माटी
की काथ ओ, गोटा
की सुपारी ।
नवरी
को बाप भिकारी
पान
नही पुऱ्या, पान
मांग से उधारी ||१||
से
नवरदेव को बाप ओध्यार बाई
पान भर
भर देसे उधारी।
पडेव
नवरी को बाप दून,
नवरदेव
को बाप भारी ||२||
अर्थात -
हमने तो जामुन के पत्ते में राख का चूना,
माटी की कत्था
और कंकडो की सुपारी डालकर पान बनाया था। वधू का बाप इतना कंगाल
है कि ऐसे पान को भी उधार मांगता है। वर का बाप तो उदार है, वह उसे पान
दे रहा है.
ब) समदन की खिचाई
डोंगर
पर की डोंगरोली, वहाँ
सोनोली को झाड़ऽऽ I
वहाँ
देयो मिनु बाईला, पर
वहां पड्यो सोनो को अकालऽऽ ।।१।।
यनmसमधिन बाईला,
देय देव सोनो उधारऽऽ ।
देय
देव सोनो उधार, सोनार
बनाये पचरंगी हारऽ ||२||
अर्थात् -
हमने जहाँ वधू का संबंध किया है,
सुना था कि वहाँ के पहाड़ पर
। सोने
के पेड़ होते है। फिर भी बिजौरा में इतने कम गहने आये है| शायद वहाँ सोने का
अकाल पड़ गया है। समदन को दे दो सोना उधार
ताकि इस सोने
से सोनार बनाये पचरंगी हार।
***************
१४. सुहासिनियों पर गीत
दुल्हन के
साथ बहन, भाभी, बुआ, मौसी, आदि सुहासिनी
(करोलीन) बनकर
जाती है | इस
खुशी में वे अपनी तयारी करने हेतू कितनी उतावली
होती
है यह इस गीत में बताया गया है -
टवरी
की बात बुझS से तs बुझन देवऽ ।
नवरा
भूकोऽ से तऽ रव्हन देवऽ ||१||
टूरु
रोवऽ सेती तऽ रोवन देवऽ ।
पर
मोरो सिनगार, होवन
देव ||२||
बाई,मिकरोलीनजासू।
ये
आरसा फनी ठेय देव ||३||
***************
१५. बिदाई गीत
बेटी की
बिदाई माँ-बाप एवम् वधू पक्षवालों के लिए करुणाजनक (दुःखद) घड़ी रहती है। इस अवसर पर गाया जाने वाला यह गीत
जहाँ एक ओर
हतोबल माँ-बाप का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करता है, वहीं पिता
माता, भाई, आदि द्वारा
इस अवसर पर निभायी जानेवाली अनेक रस्म रिवाजों से अवगत कराता है। बिदाई गीत इस प्रकार है
अ)
प्रारम्भिक गीत
दादाजी
को आंगन मा, निम्बोनी
को झाड़ |
एकच
खांदा हलायो, पड़ी
रद् - बद् ||
भाई
मोरो भोजराज, खाट
पर रुप्या मोज् ।
उठो उठो
भोवजाई, घुसरन
बेरा भई ||१||
चलओ
बेटी जेवनला दूध भात ।
राजा
को कुँवर आयो बेटी सोप देव ।।
बटकी
को दूध भात, बटकी
मा रह्यो ।
परायो
देश को राजा आयो, बेटी
सोप देओ ||२||
अज
वरी होती ओ तुमरी सत्ता ।
आताभईरामूकीसीता।।
बाप
घर की खेलती, मालती
।
परायो
घरकीधनभई || ३ ||
तरा को
पार पर,भारीओ
अमराई।
वहां
उतरी से, राजा
की सवारी ॥
राजा
खेलऽसे, सोनो
की गोटी ।
बाप सोपेऽ
आपली बेटी ॥४॥
ब) लडकी सोपने के समय पर गीत
अज
ओरी होती तुमरो कोरा
आताजासूपरायोकोराऽऽ
नोको
रोउस माय मोरी
जासू
आपलो घरा ऽऽ ।
***************
१६. बारात वर पक्ष के घर आगमन पर गीत ।
वर-वधू
परिणयबद्ध होकर घर आने पर वर की बहन एवम् बुआ
दरवाजा
प्रवेश रोकती है तब का यह गीत -
बहीनाबहीनादरवाजानोकोधरोनाऽ,
सोड़ो-सोड़ो
दरवाजा तुमरोऽ ।
घडावबिनबाईगरोकीसाकरीऽ,
या, सोनोऽ ।
देबीन
बाई तुमरा
देबीन
बाई तुमरा रुपया सोनोऽ,
आता
दरवाजा सोड़ो गा सोड़ो नाऽ ||१||
आमला
बाई जान देवओऽ,
मंदिर
महाल, मंदिर
महालऽ,
मंदिर
महाल जायकन फोडबीन भंडारs,
घडाय
देबीन सोनो को हारऽ ||२||
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स्रोत : पंवारी ज्ञानदीप
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