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पोवारी चारोली

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  पोवारी साहित्य एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष परिवार आयोजित राष्ट्रीय पोवारी *दुहेरी* चारोळी स्पर्धा दिनांक:  २५.१२.२०२१ (शनिवार) विषय: *निश्चय* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ आयोजक : डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे "प्रहरी" परीक्षक : इतिहासकार प्राचार्य ओ. सी. पटले सर 🏵️🏵️🏵️🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🏵️🏵️🏵️ *पोवारी साहित्य एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष परिवार* आयोजित *राष्ट्रीय पोवारी दुहेरी चारोली स्पर्धा* दिनांक:२५/१२/२०२१ (शनिवार) विषय: *निश्चय* निश्चय करो पोवारी ला बचावन् को। मायबोली ला भेसळ लक् बचावन् को।। निश्चय करो पोवारोत्थान को। वैनगंगा तटीय ३६कुल समाज को।। भोला भाला भ्रमीत समाज ला जगावन् को। निश्चय करो पोवार (पंवार) को महत्व पटावन् को।। निश्चय करो महासंघ संघटन को। दिशाभूल करने वाली बिचारधारा विघटन को।। *निश्चय करो, निश्चय करो* ✍️ *डॉ विशाल जियालाल बिसेन* गाँव: देवसर्रा ता: तुमसर जिल्हा : भंडारा                            🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅 पोवारी साहित्य एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष परिवार आयोजित राष्ट्रीय पोवारी *दुहेरी* चारोळी स्पर्धा दिनांक:  २५.१२.२०२१ (शनिवार) विषय:- *निश्चय* शीर्षक:- *एकजु

रेहका /खाचर

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 रेहका /खाचर गुडुर ला पोवार समाजमा बडो मान रेहका को सवारीलक बढं आमरी शान आसकूड ना दुय भोवरी रवत खाचरला कमची की चाप रवं वरतं झाकणला धुरकरी जुपं बैलजोडी धुरला एकसमान चाप ला सिलाई रंगीन कपडा की काठ ला सुंदरसी झालर चून्नट की अंदर तनिस पर देत गोना बिछायस्यान रंगीबेरंगी झुल दिसं बैलला शोभकर गरोमा बजती झिलं अना घोलर घल्लर घल्लर संगीतमा होय मन रममाण खाचर की बरात लिजात बिहामा डफरी को बाजा मस्त बजं संगमा गजकुंडी फुटं सारी धरती जाय दनान गुडुर पर आणत बहूबैदी नवती  रेहका को धनीला तालेवर समजती बडो आनंद आवं रेहका मा बसस्यांन आयेव जमानो आता गाडी मोटर को नाव निशाण मिट रही सें खाचर को ठेवो या शान की सवारी जपस्यान                             ✍️शारदा चौधरी                                भंडारा 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️

चलो पोवारी साहित्य को मेला

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 पोवारो को पोवारी को साहित्य संगम को लग रही से मेला, छोडो सब काही झमेला  चलो चलो जाबी सब झन भाऊ बहिनी  चलो पोवारी साहित्य  को मेला पोवारी साहित्य की फुले फुल फुलवारी लगी से देखो सुन्दर सुगम संगीत को साहित्य मेला, चलो पोवारी साहित्य मेला, , सुन्दर गुंजेत गीत ,कविता दिसे माय  सरस्वती को रूप  सबमा चलो पोवारी साहित्य मेला, घुल मिल बसनो से काही आपरी काही सबकी सुननो से यो जीवन से संगीत को मेला, काही नही रहे संग बस मिठो बोल गीत संगीत को से यो खेला बडो अनमोल से यो  चलं पोवारी साहित्य को मेला, कोनी को सुर लगे कोनी को सुर मीठो घुले मन गीत संगीत मा झुमे  कोनी कहे कवीता कोनी गीत , रम जाहे रोम रोम साहित्य संगीत मा, चलो  पोवारी साहित्य को मेला, ऐकलो ले चल नही समाज को रथ ला सजायके  धरके चलनो से अम्हाला सबला , अमीर गरीब नहानो मोठो को भेद छोड कर आगे बढावनो से पोवारी को साहित्य  यो मेला चलो पोवारी साहित्य को मेला।। जय राजा भोज जी🙏 विद्या बिसेन बालाघाट🚩🙏🚩

पोवारी

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पोवारी   हर लक्ष्य की एकच बाट से पोवारी, हामी पोवार, हामरो थाट से पोवारी. अंधफंदावो जब पहचान को डोहो मा, तब उतरन लाई एकच घाट से पोवारी. नोको भटको जी मखमल की चाह मा, पाड़ो, बिछाओ, खल्ली खाट से पोवारी. बहेकेत कदम, जब जग की दौड़ मा, तब, माय की दुलार, अजी की डाट से पोवारी. माती खपरेल को हामरो घर की शोभा, तसीच सुंदर चिकनी नाट से पोवारी. तुमेश पटले "सारथी" केशलेवाडा

पोवारी संस्कृति आमरो पोवार समाज की संस्कृति

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   पोवारी संस्कृति   *********************** पोवारी संस्कृति आमरो पोवार समाज की संस्कृति पोवारी संस्कृति छत्तीस कुर को पंवार की संस्कृति पोवारी संस्कृति से पुरखाइन की पुरातन संस्कृति पोवारी संस्कृति से आमरो सम्मान आमरी संस्कृति  

एकता की अनूठी मिसाल : क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज

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  एकता की अनूठी मिसाल : क्षत्रिय पोवार ( पंवार ) समाज पोवारी अस्मिता ( पोवारी / पंवारी संस्कृति ) का संरक्षण और संवर्धन तथा देश की एकता और अखंडता   मालवा के पंवार ( प्रमार ) वंश का गौरवशाली इतिहास से हम सभी अवगत है पर वहां राजपाट के अस्तित्व संकट के बाद उनके वंशज और नातेदार सैनिक जत्थे के रूप में कई क्षेत्रों में भटकते रहे।उक्त कालावधि में समान विचारधारा के राजाओं का सहयोग अस्त्र शस्त्र और बाहुबल से करते रहे। संभवतया इसी समय से छत्तीस क्षत्रियों का संघ बन गया हो। इन्होंने बुंदेलखंड में राजपूतों की सत्ता में वापसी के लिए मुगलों से लड़ा और उन्हें परास्त कर दिया था। बुलंद बख्त के आह्वान पर यही क्षत्रिय जत्था जिसे आज पोवार या पंवार कहते हैं , नगरधन आया और इस साहसी और बलिष्ठ सेना ने औरंगजेब की शक्तिशाली सेना को परास्त किया। इनकी अटूट एकता इस विजय का कारण बनी और इन्ही क्षत्रियों की एकीकृत पोवार सेना ने मराठों को नागपुर से पूर्वी भारत के कई