एकता की अनूठी मिसाल : क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज

 

एकता की अनूठी मिसाल : क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज

पोवारी अस्मिता( पोवारी/पंवारी संस्कृति) का संरक्षण और संवर्धन तथा देश की एकता और अखंडता

 

मालवा के पंवार(प्रमार) वंश का गौरवशाली इतिहास से हम सभी अवगत है पर वहां राजपाट के अस्तित्व संकट के बाद उनके वंशज और नातेदार सैनिक जत्थे के रूप में कई क्षेत्रों में भटकते रहे।उक्त कालावधि में समान विचारधारा के राजाओं का सहयोग अस्त्र शस्त्र और बाहुबल से करते रहे। संभवतया इसी समय से छत्तीस क्षत्रियों का संघ बन गया हो। इन्होंने बुंदेलखंड में राजपूतों की सत्ता में वापसी के लिए मुगलों से लड़ा और उन्हें परास्त कर दिया था। बुलंद बख्त के आह्वान पर यही क्षत्रिय जत्था जिसे आज पोवार या पंवार कहते हैं, नगरधन आया और इस साहसी और बलिष्ठ सेना ने औरंगजेब की शक्तिशाली सेना को परास्त किया। इनकी अटूट एकता इस विजय का कारण बनी और इन्ही क्षत्रियों की एकीकृत पोवार सेना ने मराठों को नागपुर से पूर्वी भारत के कई क्षेत्रों पर विजय दिलाने में सहयोग किया।साथ ही विदर्भ में मराठा शासन की नींव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया।

इतिहास में नाम तो राजाओ का ही हुआ करता है, और हम छत्तीस कुल के क्षत्रियों का इतिहास कही दब गया था। हालाँकि ब्रिटिश काल में पोवारों के द्वारा प्रदर्शित वीरतापूर्वक कार्यों का विवरण लिखा गया है पर वह भी अल्प तथा संक्षिप्त में ही था। उन्होंने लिखा की पोवार राजपूतों के कटक युद्ध में वीरतापूर्वक कार्यों के कारण वैनगंगा के क्षेत्र पुरस्कार स्वरूप प्रदान किये गए थे। साथ में कुछ किताबों में हमारी संस्कृति और छत्तीस कुलों का इतिहास भी लिखा, पर जहाँ कहीं भी हो और जितना भी लिखा गया उसमें हम क्षत्रियों की एकता और वीरता का विवरण अवश्य मिलता हैं। आज उनके वंशजों को भी अपने पूर्वजों के नाम और सम्मान पर गर्व होना चाहिए। हमारे ये क्षत्रिय पूर्वज क्या नाम लिखते थे, इसका महत्व अपनी पहचान को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं हमें उनकी वीरता का आदर और सम्मान करना चाहिए। उनकी विशिष्ट वीरता पर गर्व होना हम पंवारो के लिए स्वाभाविक है। यह क्षत्रियों की एकता ही थी कि उन्होंने खुद के राज्य खो जाने के बाद भी अनेक विपरीत हालातो तथा मुश्किलों का सामना करते हुए खुद की पहचान, संस्कृति और भाषा को बचाये रखा। अब यह जिम्मेदारी स्वतन्त्र भारत में रह रही वर्तमान पीढ़ी पर है कि कैसे इसे बचाए रखते हुए देश की एकता और अखंडता में अपना योगदान अदा कर सकती है।

 संस्कृति का रक्षण और  समाजोत्थान का समन्वित रूप निश्चित ही सर्वविकास का सर्वोत्तम उदाहरण होगा। इसके लिए हम स्वजातीय बंधुओं को निजहित से परे समाज हित में कार्य करना चाहिए और हर पोवार(पंवार) को आज एक होकर काम करना होगा। आज छत्तीस   क्षत्रियों के संघ, पोवार समाज को उसी तरह से एकता दिखानी होगी जैसे हमारे पुरखों ने दिखाई थी, तब ही हम अपनी पोवारी अस्मिता को बचा पाने में सफलता हासिल कर पाएंगे।

 

पोवारी संस्कृति अमर रहे। जय क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाज🚩

ऋषि बिसेन, बालाघाट


 

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