पोवारी संस्कृति अना बिह्या को नेंग दस्तूर मा बदलाव

 पोवारी संस्कृति अना बिह्या को नेंग दस्तूर मा बदलाव

          नवरदेव(दूल्हा) अना नौरी(दुल्हन), बिह्या मा भगवान को रूप मा रव्हसेती, एको लाई बिह्या को संस्कार, रीति-रिवाज अना नेगदस्तूर लक पुरो होवनो चाहिसे। पोवार समाज, सनातनी धरम संस्कृति ला माननो वालो समाज को हिस्सा आय। बिह्या, हिन्दू जीवन को येक पवित्र संस्कार आय अना यन पावन संस्कार मा दारू, मुर्गा, अश्लीलता(प्री वेडिंग) की फोटो लेनो, फुहड़ता असी सामजिक कुरीति समाज मा मान्य नहाय।

        अज़ आधुनिकता की होड़ मा नवी पीढ़ी आपरो जूनो संस्कार इनला भुलाय रही सेती अना आपरो पुरखा-ओढ़ील इनको मान सम्मान ला भी बिसराय रही सेत। यव कही लक कहीं वरी सही नहाय। बिह्या को गीत इनमा समाज को पुरो इतिहास अना नेंग-दस्तूर को बखान मिल जासे की आम्ही सभ्य-संस्कारी समाज को वारिस आजन येको लाई हमला आपरो बिह्या मा कोनी भी बाधिक जीनुस जसो दारू अना अश्लीलता लाई कोनी भी जाघा नहाय।

           पहले पासून को यव रिवाज होतो की बिह्या मा लगुन, गोधूलि बेला मंजे श्याम मा लग जावत होती परा आता नाच गाना मा नशा को चढ़ावा को कारन लक लगुन ला रात होय जासे। दोस्त भाई इनको नाव पर दारू अना फुहड़ता देखनमा आय रही से। असो राकस घाई रिवाज आपरी सनातनी पोवारी संस्कृति को हिस्सा नहाय, तसच धेण्डा रोटी को जागहा परा माहंगी रिसेप्शन पार्टी भी सही नहाय।

         मंढा झाड़नी, जसो कोनी भी रिवाज आपरो पोवारी को पुरातन नेंग नहाय। मंढा झाड़नी को नाव परा दारू -मुर्गा को सेवन, बिह्या को पवित्र समापन ला दूषित कर देसे, येको लाई असी परम्परा ला मुरावनो च बेस से।

        सदा लक आपरो छत्तीस कुरया पोवार समाज मा राम नौरा, सीता नौवरी को नाव लकच लग्न को दस्तूर होसे। येको अर्थ से की नवरदेव मा प्रभु राम की छवि अना नौरी मा माय सीता की छवि रवहसे त कसो आता पोवार समाज मा विक्रती आय रही से।

       यव कसेती न की ज़ब जागो तबच सवेरा, त आता भी देर नही भई से। सब मिलकन आपरो पोवार समाज मा बिह्या को सनातनी वैदिक स्वरूप ला जीवित राख सिक सेजन अना समाज मा आय रही बुराई ला रोखकन बिह्या को पावन रूप ला कायम राख सिक सेजन।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट 

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