पोवारी साहित्य सरिता भाग ५४


 पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित


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       आयोजक

        डॉ. हरगोविंद टेंभरे


        मार्गदर्शक

     श्री. व्ही. बी.देशमुख

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    1.

      बाल साहित्य

        नाव मा का धरीसे  ?

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      बहुत पयले की गोष्ट आय. ऐक गाव मा शिक्या सवऱ्या लोक नवता. येन कारण लका बडा विचित्र नाव ठेवत रवत. जसा ढेकल्या, फेकल्या काऱ्या, भुऱ्या महारू चमारु, असाच टुरू पोटू का नाव ठेवत रवत. अशीच एक अडाणी बाई आपलो टुराला धरकर नाव भरती करण इसकुल मा गयी. गुरुजी न कहीस नाव भरती होये पर येको नाव रजिस्टर मा काय लिखु. तब बाई कवन लगी, गुरुजी नाव तुम्हीच ठेय देवो ना ? गुरुजी न कही स बाई तोरो टूरा आय. नाव ठेवण को अधिकार तोलाच से. तब बाई  सरमाकर कवन लगी ठणठण पाल.

      ओन समय इसकुल दूर दूर को गाव मा रवत. टुरु पोटू ही बडा मोठा दिसत. ऐक दिवस ठणठण पाल इस्कूलमा गयेव तब वर्ग मा टुरा टुरी जोर जोर लक हासन लग्या. अन कवण लग्या, ठणठण पाल, ठणठण पाल. ठणठण पाल ला बडी घुस्सा आई. हात पाय झाडत वापस घर चली गयेव. ओन इस्कुल का टुरा टुरी का नाव आयकीस. जसा अजय विजय, राम लखन, लक्ष्मी दुर्गा, आपलो मायला सांगण लगेव, असो मोरो नाव काय नही ठेयीस. मोला खूब टूरु पोटू गावका भी चीडाव सेती येन कारण लक मी इस्कुल मा जाने वालो नही सेव . गुसा गुसा लक उ नाव को खोज मा घर लक चली गयेव.

      ऐक टूरी खेत मा काडी बेचत होती. जवर जायके ओको नाव खबर लेयीस. ओन कहीस लक्ष्मी बाई. तोंडपर हात ठेयकर पुड चली गयेव. दुसरो गाव मा घर घर जायकर् भिक मांगने वालो दिसेव. ओला ही नाव खबर लेयीस ओन कहीस धनपाल. बापरे कवत आणखी पुढं गयेव. ऐक मरेव आदमी की सकोली संग बरात जातानी दिसी. जवर जायकरं बरातीला मरणे वालो आदमी को नाव खबर लेयीस . बराती कवण लग्या अमर चंद. रस्ता लक वापस भयेव अन विचार करणं लगेव. नाव मा का धरीसे. आपलो घर जायकर् मोठो जोर लक माय जवर कवण लगेव.

काडी बेचन लगी लक्ष्मी बाई

भीक मागणं लगेव धनपाल. |

अमर चंद त मर गयेव 

मजा मार से ठणठण पाल ||

    गाना कवत कवत खूब नाचन लगेव तब माय कसे बेटा नाव मा का धरीसे.

तात्पर्य: नाव पेक्षा काम ला जास्त मोल देये पाहिजे.


हेमंत पितमलाल पटले

धामणगाव (आमगाव)

९२७२११६५०१

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2.

मातृभाषा को प्रति बुद्धिजीवियों को दायित्व

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     समाज का पदाधिकारी मातृभाषा पोवारी को महत्व भूल्या अना वोला हिनावन लग्या.येको कारण पोवारी की अधोगति भयी व संकटग्रस्त बोलियों की सूची मा समाविष्ट भयी.

         आम्हीं सबजन २०१७-२०१८पासून मातृभाषा को महत्व समझावनों शुरु करया.परिणामस्वरुप समाज मा भाषिक चेतना आयी.जे पोवारी बोलनों सोड़ देई होतीन,वय भी स्वाभिमान लक पोवारी बोलन- लिखन लग्या व तेज गति लक पोवारी साहित्य को सृजन होन लगेव. सबको प्रयास लक समाज मा भाषिक क्रांति आयी. पोवारी का चांगला दिवस आया.

        नवयुग येव शिक्षण, औद्योगिकीकरण व वैश्वीकरण को युग आय.येन् युग मा   स्वाभाविकत: प्रादेशिक, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं को प्रचलन बढ़ गई से.अत: येन् परिवर्तित परिस्थिति मा जबवरि नवी पीढ़ी ला मातृभाषा को महत्व समझावन की प्रक्रिया  निरंतर शुरु रहें,तबवरि मातृभाषा जीवंत रहें अना  सतत् वोको विकास भी होत रहे. परंतु जेन् दिवस बुद्धिजीवी वर्ग मातृभाषा को महत्व भूलें अथवा मातृभाषा को महत्व नवी पीढ़ी ला समझावनों मा असमर्थ होये,वोन् दिवस पासून पुनः मातृभाषा पोवारी ,पोवारी संस्कृति व समाज को पतन प्रारंभ होये. अतः एकच बात ध्यान मा ठेओं कि "मातृभाषा पोवारी को प्रचार -प्रसार या एक अविरत प्रक्रिया (Continue Process ) से."

       मातृभाषा जेला आये वूच समाज को मनमंदिर मा प्रतिष्ठित होये,या बात भी सब न् ध्यान मा ठेये पाहिजे अना मातृभाषा को विकास मा आपलो यथायोग्य योगदान  सतत् देत रहें पाहिजे.


इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.०९/०७/२०२२.

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3.

संगठित रव्हनो से जरूरी । 

असुर , आततायी,  दुष्ट , नराधम हर युग मा होथा अना रहैती ।  धर्म पर चलने वाला शांतिप्रिय लोगइनला इनको संग सामना करनो पडसे । एकलो एकलो रहेके सामना नही होय सक । सज्जनइनला एकजुट रव्हनो जरूरी से । संघठन मजबूत तब रहे जब आमी एकदूसरो संग जुड़या रवहबीन । आमरो मा जुड़ाव की कमी से । आब हर गांव हर शहर आमला सबको संग जुडनो पड़े । संघठन मा शक्ति से अना संघठनमा आमरी वर्तमान अना भविष्य की सुरक्षा से । दुनिया मा जो होसे वोको पर नजर राखनो जरूरी से अना वोको मद्देनजर गफलत मा रव्हनो गलत होय जाहे। आमला हर शांतिप्रिय संघठन संग जुडाव बनायके राखनो पड़े । राष्ट्र को उन्नति मा शांति जरूरी से अना वा बनावन को दृष्टिकोण लक आमला एकजुट त् रव्हनो पड़े। 


महेन पटले

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4.

राजा जगदेव पंवार

राजा परमर्दि की महारानी ला जगदेव पोवार आपली बहिन मानत होतो । राजा परमर्दि कन लक एक बार जगदेव एक शत्रु राज्य पर आक्रमण करनला जासे । युध्द भूमि मा  झुंझुरका को बेरा जगदेव देवपूजा  करत होतो तब शत्रु सेना वोकि सेना परा आक्रमण कर देसे । जगदेव पूजा नही सोड । शत्रु सेना जगदेव की सेना ला अचानक हमला करके परान ला मजबूर कर देसे । गुप्तचर या खबर राजा ला देसे त् राजा परमर्दि नाराज होयके आपलो महारानी ला कसे की तोरो भाई असो कसो , शत्रु हमला कर रहैव होतो अना वु पूजा करन बसैव होतो । रानी पश्चिम दिशा कन देखत उभी रव्हसे । राजा कसे आब उतन का से । हार त् भय गयी समझ लेवो । महारानी कसे मी सूर्योदय की बाट देख रही सेव । राजा कसे सूर्योदय पश्चिम मा नही होय सक। महारानी कसे तसोच जगदेव सरीखो वीर युध्द हार नही सक । राजा रानी को बीच यव संवाद चलत होतो तब उतन जगदेव आपलो पूजा लक उठसे अना वहा मौजूद आपला  500 वीरइनको संग मिलके शत्रु राजा पर प्रचंड आवेग लक आक्रमण करसे अना शत्रु ला असो समाप्त कर देसे जसो सूर्य अंधकार नष्ट कर देसे । अना महारानी को विश्वास सही सिध्द होसे । 


वोन जमाना मा जगदेव पंवार की कीर्ति असी फैली होती कि जहा वोको पराक्रम कि चर्चा नही होय  असो कोनतो गाव नोहोतो, असी कोणती सभा नोहोती , असो कोनतो देश नोहोतो ।

महेन पटले

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5.

पोवार संस्कृति कसी जिंदा रहे ।

पोवार संस्कृति भारत की प्राचीन सनातन सभ्यता को एक रूप आय । या संस्कृति शांतिप्रिय संस्कारित, नीतिमान से । असो संस्कृति को संरक्षण जरूरी से । अज को जमाना मा पाश्चिमात्य संस्कृतिको खुलोपन,  बेजवाबदार स्वतंत्र सोच, स्वार्थी जीवन , स्वकेन्द्रित सोच आमरो नवी पीढ़ी परा हावी होय रही से । कर्तव्य , धर्म , नीति जो भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी से वा कमजोर होन लगी से । अना यको जिमेदार शिक्षा पध्दति, बाहरी पतित वातावरण , गलत फ़िल्म  ,  टीवी सीरियल अना आमी खुद सेजन । आमी नवी पिढीला सही संस्कार देनो मा असमर्थ सेजन । आपलो समाज संस्कृति को प्रति मजबूत विश्वास , प्रेम कुटकुट के जब नवी पीढ़ी मा बचपन लक जाहे तब कही भविष्य मा पोवार संस्कृति, सनातन संस्कृति जीवित रहे । श्रीराम को आदर्श बेटाबेटीला संस्कार मा मिले तब वय संस्कारवान बनेति । पोगो का कार्टून देखकर संस्कार नही मिल सकत। आमला सबला नवी पिढीलाइक असो आदर्श राखनो पड़े की वय आपलो सनातन संस्कृति को प्रति आकर्षित होयती । आमला उनला जानकारी देनो पड़े कि वय कोन आती अना उनका कर्तव्य का सेत । आमी भारतीय समाज मा हरदम मार्गदर्शक , संरक्षक को रूप मा सामने आया सेजन । दूय हजार साल पहले सम्राट विक्रमादित्य न संस्कृति रक्षा करिन , मंग हजार साल पहले राजा भोज न संस्कृति जीवित राखिन,  आब पुनः एकबार मजबूती देनकी बारी आयी से । आमला संस्कृति की रक्षा को कार्य करनो से । जो गलत से वोला नकारनो बी पड़े । जो अच्छो से वोको प्रचार करनो पड़े । मनुष्य जीवन लेयकर प्रगट भया सेजन त् काइ अच्छो कर्म बी करनो पड़े ताकि आमरो जीवन धारण करनो सफल  होय जाहे .... 


महेन पटले

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6. 

विषय - मानवता

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                  मानव जीवन मा आयेव क् बाद चांगला कर्म करन की अपेक्षा रव्हसे. मानव क् संग पूरो सृष्टी को विकास की कल्पना चांगल् कर्म का निहित से. सृष्टी क् विकास क् साथ मा मानव धर्म म्हणजे मानव को मानव संग मानव सरीखो व्यवहार म्हणजे मानवता आय. मानव मात्र एक समान या भावना म्हणजे मानवता आय. पर असो देखनो मा नही आव् . पृथ्वीवर अनेक प्रकार भेद सेती. आमरो देश अनेक प्रकारक् भेद करनोक् बारामा चोटीपर से्. असो कव्हनो अतिशयोक्ती नही होनकी.

                  मानवता येव एक सद्गुण आय. दया, क्षमा, शांति,सहानुभूति, सत्य, अहिंसा, समानता, बंधुता इत्यादी गुणको समुच्चय म्हणजे मानवता आय. प्राणीमात्रपर दया करनो, लहान सहान गलती क्षमा करनो, शांततापूर्ण सहजीवन मान्य करनो, सबक् प्रति सहानुभूति की भावना ठेवनो,  सत्य ना अहिंसा को पालन करनो, सबला समान समझनो, आपस मा बंधुभाव ठेवनो इत्यादी गुण मानवता क् पालन साती ना विकास साती आवश्यक सेती. 

                  सर्वधर्मसमभाव येव गुण भी मानवता क् विकास साती आवश्यक से. वर्तमान समय मा धर्म-धर्म क् बीच द्वेष फैलावन को काम बहुत तेजील् होय रही से. असो माहौल मानवता क् विकास साती घातक से. असो माहौल ला अधिक फैलावन साती राजकारणी ना धर्मगुरू इन को मोठे हात से. पर असो माहौल को सब से ज्यादा खामियाजा जनताला भुगतनो पडसे. वोक् माबी गरीब ना कट्टर धार्मिकता वादी लोक इन को जादा नुकसान होसे. 

                    भारतला महान संत परंपरा प्राप्त भयीसे. संत कबीर, नामदेव, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, चोखामेळा, गोरा कुंभार आदि संत इनन् मानव धर्म ना मानवता को संदेश देईन. पर काही स्वार्थी पंडा-पुजारी इनन गलत प्रचार करके आपल् स्वार्थ साती मानवता को अतोनात नुकसान करीन. 

                 कोणतोबी प्रकार को भेद मानवता साती घातक से. उच्च - नीच, कारो-गोरो, गरीब- अमीर असा भेदभाव मानवतासाती घातक सेती. मानव क् विकास मा बाधक सेती. कोणतोबी भेदभाव न करता सबला विकास की समान संधी देनो मानव ना मानवता क् विकास की पहली सिढी से. असो कव्हनो गलत नही होनको.

                               -चिरंजीव बिसेन

                                           गोंदिया

                     मो. न. ९५२७२८५४६४

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7. 

महायोध्दा जगदेव पोवार

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राजाभोज को बाद. भारत वर्ष मा मालवा राज्य पर. उदयादित्य को राजपाठ होतो. धारा नगरीलक उनन् गौरवमय असो राज करीन.

उनला तिन टुरा होता. एक लक्ष्मणदेव, दुसरो नरवर्मन, तिसरो जगदेव.

जगदेव को जनम चैत चतुर्दशी १०४५ ला धारा नगरी मा भयेव होतो. जगदेव बचपन लक शुरविर होतो. लहान पनमा वोको बिह्या टोंकटोडा को राजा राजसिंह की टुरी वीरमती को संग भयेव होतो. जगदेव की विरता अना उच्चगुण संपन्न व्यक्तीत्व परखकर वोला युवराज करके घोषित करेव गयेव.

                    पिता उदयादित्य को मृत्यू पश्चात धार राजसिंहासन पर नरवर्मन को राजतिलक भयेव. वोकी विमाता को लगातार दुरव्यवहार तथा अपमान लक तंग त्रस्त होयकर धार ला छोडकर निकल गयेव.

जगदेव अना विरमती पाटण शहर(गुजरात) को तरा जवर  आयकर रुक्या. खानपान को बंदोबस्त करन साती घोडा ला उन्ज्यारी सोड कर. जगदेव शहर मा गयेव. इत विरमती ला एकटो देख एक वेश्या न वोला फुसलायकर  घर लिजायीस. अना थोडो समय बाद एक अय्याशी मानुस वन् घरमा दाखिल भयेव वन् वेश्या न बाहेर लक् दरवाजा बंद करीस. विरमती न् आपलो खंजर काढकर वन् अय्याशी मानुस ला मार देईस. या खबर राजा को कान पर पडी राजा वोन् वेश्या को घर आयेव. अना दरवाजा ला बजायकर विरमती ला आवाज लगायीस. राजा न कहीस का '' राजा तोरो रक्षा साती खुद आयी से' 'तु दरवाजा खोल. तु कांह लक् आयीस अना कोन आस. तब विरमती न आपलो परिचय देईस.

"बापजी, पीहर तो नगर टोडे छै. राजाराजरी घीव छूं, बीज कुँवररी बहिन छूं. सासरो धार नगररो धनी, जाती पंवार, राजा उदयादित्य रै लोहडा बेतारी अंतेउर छूं.

वोको अर्थ असो, अजी को नगर टोडे मा मोरो मायका से, राजा राज की टुरी आव. कुंवर बीज की बहिन आव.मोरो ससुराल धार नगरी को स्वामी को यहां से, जाती पंवार, राजा उदयादित्य को लहान टुरा की बायको आव. थोडो समय बाद उन्ज्यारी जगदेव भी आय गयेव. राजा न ससम्मान  आपलो राजमहाल मा लिजायीस. 

पाटन को राजा सिध्दराज जयसिंह न वोको स्वागत करीस अना आपलो सेना को सेनापती बनायीस. जगदेव ला राजा आपलो बेटा समजत होतो वोको संग टुरा सारखो व्यवहार करत् होतो. १८ साल तक जगदेव न सेनापती को पद स्वामीभक्ती अना पूर्णनिष्ठा लक निभाईस. जगदेव ला १२ हत्ती की ताकद होती. डोरा मिचकताच ४०...५०दुश्मन सैनिक ला मौत को घाट उतार देत होतो. वोको नाव लक दुश्मन की सेना थरथर कापत होती. काही जन त रन छोड पराय जात होता. जगदेव न बहुत सी लढाई लढीस अना विजयी होत गयेव. वोला कोनतोच युद्ध मा दुश्मन सेना न नही हराईस. जगदेव न आपलो विरता को बल पर सिध्दराज को राज्य चार दिशा मा विस्तारित करीस.

राजा सिध्दराज न प्रसन्न होयकर आपलो टुरी कमोला को बिह्या जगदेव संग कर देईस. अना आपलो समान सिंहासन देईस.

            देवी चामुंडा को सामने कही बार जगदेव न आपलो डोक्सा ( सिर)  काटकर अर्पण करीस. देवी माय प्रसन्न होयकर वोला जीवन देत होती.

वोन् कही जैन मंदिर, हिंदू मंदिर बनाईस जिर्णोद्धार करिस. सात प्रकार का सोनो का सिक्का प्रचलन मा आनि होतीस. जगदेव न ५२ साल राज करीस. जगदेव की ८५साल मा मृत्यू भयी वा तिथी होती ११३० ला. 

जगदेव की विरता, स्वाभिमान, सदाचार, स्वामिभक्ती, दानवीरता, न्याय अना लोकाभिमुख प्रशासन भारतीय जगत मा अजरामर रहे.

असा परमार, पोवार समाज का राजाभोज का वंशज या उनका भाई का टुरा महायोध्दा जगदेव पोवार पोवार समाज का आदर्श सेत.


श्री छगनलाल राहांगडाले खापरखेडा. 


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8. 

 गीत

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येव् मोरो दिल मोरी जान

सदा रहे तोरो पर कुर्बान

मोरी पोवारी रहे अमर

मायबोली पोवारी जिंदाबाद.

पेरम की माला सुंदर 

बोली मोरी वारसा मोरी जागीर

या मोरो ख्याब् की अप्सरा 

जेला कसेत मोरो आतमा मन.

राजाभोज की आतमीयता

हर युग लक् समाज  बतीता

वैनगंगा तट की   या शानता

पोवार घर की आन शान. 

मोरो आदर्श की तलवार 

मोरो समाज की या पहरेदार

नही मानीसेस यन हार

से येको मा शेर की ललकार. 

भरोसा ठेवजो मोरो मीत

रहे सदा जिंदी आपली प्रीत 

पोवार पोवारी दोहा गीत 

मायबोली को ठेवो जगमा मान. 

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श्री छगनलाल राहांगडाले 

खापरखेडा 

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9.

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  बायको ला केतरो महत्व देहे पायजे 

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       मी हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे मोरी जन्मभूमि मु भजियापार पो चिरचाडबांध ता आमगांव जिल्हा गोंदिया माहाराष्ट्र , कर्मभूमि सत्यमनगर कापशी खुर्द पारडी नागपुर , सबला हिरदीलाल ठाकरे को सादर प्रणाम जय राजा भोज जय  माहामाया ,सबला नतमस्तक विनंती से आपलो बायकोला केतरो महत्व देहे पायजे , येन् महत्वपूर्ण लेखला एक गन तरी जरुर बाचो , सन २००१ को प्रसंग आय मोला याद आयेव ,मी एक टाँप आँप डोनट बेकरीमा एक जिम्मेदार मिस्त्री म्हणून कार्यरत होतो ,  बेकरी को मालक गुरुचरण केवलरमानी अना बेकरी की मालकीन वनिता केवलरमानी इनको सगंमा आमरा चांगलोच पारिवारिक संबध होता , एक दिवस की बात आय मोला याद आयी , मी एक रविवार को दिवस बडो उत्सुकतावश आपलो मालकला कहेव की भैया आज मुझे जल्दी घर जाना है , मालक कसे क्यो भाई क्यो जाना है क्या काम है ?  मी आपलो माय बोली पोवारी मा कहेव साहाब मोला आपलो बायकोला घुमावन फीरावनला लिजानो से अना पुरो नागपुर की सहल करावनला लीजानो से , अगर मी टाइम पर उपस्थित नही होय सकेव त मोला मोरों बायको की बहुत डाँट पडे साहाब मोला वोको मोला बहुत भेव लग् से साहाब , मोरो मालक केवल रामानी कसे अरे हिरदीलाल तु त येतरो चागंलो मिस्त्री को काम करने वालो मोटो कटो धडधाकड अना तोरो हात को खालत्या काम करने वाला सब लेबर तोला येतरा घबरासेत तरी तु आपलो बायकोला येतरो काहे भीव् सेस ?  तोरी बायको त येतरी सुंदर भी नाहाय अना काही पडी लीखी बी ज्यादा नाहाय तरी तु आपलो बायकोला केतरो महत्व काहे देसेव ? मी कहेव साहेब मी आपलो बायको लक घबराव नही मी आपलो बायको की कदर करुसु , मी आपलो बायको ला सम्मान देसु , मोरो मालक येन् बात पर जोर जोर लक हाँसन लगेव अना कवन लगेव अरे बेकुबीकी भी काही हद होसे , चलो भाई तोरी बायको अगर उच्चशिक्षित पडी लीखी रवती या काही उच्चस्तरीय नौकरी मा रवति त मगं आय भयी , मालक की बात मी शांतपण लक आयकत रहेव अना मंग मी बडो उत्सुकता वश आध्यात्मिकता प्रमाणिकता सहनशीलता अना सक्रियता पुर्वक जो जवाब आपलो मालक ला देयेव मोरो जवाब आयक आयककर मालक को  डोरा लक अश्रुधाराच बोहत होती !

          मी आपलो जवाब मा कयेव सहाब मोरी बायको भले ही अनपढ़ से जसी बी से पर मोरो नजर मा वा एक विश्वसुंदरी से अना मोरो साती एक सम्माननीय आदरणीय से , मोरी बायको मोरो स्वाभिमान आय , जेला बायको को महत्त्व समजमा आयेव वोला पुरो संसार समजमा आय गयेव , आता जरा मोरी बात ध्यान लगायकर आयको की बायको ला केतरो महत्व देहे पायजे , येन संसार मा आमला जन्म देने वाला आमरा मायबाप पुजनीय सेत वोय आमरा भगवान आत उनकी पुजा होसे ऊनको संगमा नातो रिस्तो नही ,भाई बहिण को नातो रिस्तो येव जन्मजात रव्ह् से अना सिर्फ अना सिर्फ सुख का संगती रव्ह सेत ,  दोस्तों को नातो येव सिर्फ अना सिर्फ स्वार्थ पुरतोच मर्यादित रव्ह् से , तुमरो अना मोरो नातो येव मालक अना नौकर को से सिर्फ अना सिर्फ काही काळ पुरतोच मर्यादित से , पर मोरो बायको को अना मोरो दुर दुर तक काही भी नातो रिस्तो नोहोतो तरी वा कायम की मोरी अर्द्धांगिनी भय गयी येव त मोरो सौभाग्यच आय ना ? या बात बडो ध्यान लगाय कर मोरो मालक आयकत रहेव ! 

         जब् वा मोरी बायको बनकर मोरो घर् आयी तब् वोन् आपला जन्मदाता मायबाप सोडीस , लाहानपण पासून संगमा खेलने वाला बहिन भाई सोडीस , सेजार की सखी सहेली काका मामा दादा दादी याने आपलो पुरो परिवारला अना सब नातो रिस्तोला सोडकर मोरो संगमा आय गयी , आपलो सब सुखः दुःख बिसर कर मोरो सुखः दुखः मा आपली सक्रिय भागीदारी निभावसे ,, आखरी को स्वाशवरी मोरी काळजी लेनेवाली मोरी बायको मोरो नजरमा वा माहान से , बायको म्हणजे सिर्फ़ एक नातो रिस्तो नही ऋणानुबंध आय , बायको म्हणजे येन् संसार का तमाम नाता रिस्ता निभावने वाली नातो रिस्तो को भंडार आय ,  बिमारी मा जब् जब् बायको आपली सेवा कर् से तब् तब् वा आपलो माय सारखी रव्ह् से ,, जब् जब् वा आमरो जिवन मा आवनेवाला संकट को ऊतार चढाव को बारा मा आमला इशारा  कर् से तब् तब् वा आमरो जिवन की एक मार्गदर्शक रव्ह से , आम्ही जब् जब् आपली पुरी कमाई आपलो बायको को हात मा देसेज् तब् तब् वा आमरो बाप बनकर पुरो परिवार की काळजी लेसे तब वा एक पीता सारखी रव्ह् से ,, जब् जब् वा आमरो लाड प्यार कर् से आमरो गलतीपर मार्गदर्शन कर् से तब वा आमरो बहिण सारखी रव्ह से ,, जब् जब्  वा आमला नविन नविन सामान की मांग कर से अना जिद्द कर् से रुठ जासे तब वा आमरो बेटी सारखी रव्ह् से ,, जब् जब् वा आमरो परपंच चलावन साती आपलो सहकार्य देसे अना चांगलो पारिवारिक सल्ला देसे तब् तब् वा आमरो दोस्त सारखी रव्ह से ,, जब् जब् वा आपलो लाहान लाहान टुरा टुरी इनला सोडकर आमरो गरो मील् से तब् तब् वा एक प्रेमीका सारखी रव्ह से ,, बायको म्हणजे अनेक नातो रिस्तो को भंडार रव्ह से ,, आता तुम्हीच सांगो येतरो नातो रिस्तो निकालने वाली बायको को आदर सम्मान नही करबिन त मगं येव जिवन कोनतो काम को ,, आपलो बायको को आदर सम्मन करो परिवार ला सुरक्षित करो !!

            एक गरीब मजदूर को आपलो बायको को प्रती आपुलकी की भावना , मानसम्मान की भावना , आदर्श आदर की भावना देखकर मोरो ज्ञमालक कसे हिरदीलाल तु आपलो जिवन मा बहुत नाव कमावजो रे बेटा जाय मोरो ना मोरो पुरो सिन्धी परिवार को आशीर्वाद तोरो संगमा से जय राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका सबको कल्याण करें जय झुलेलाल !!

                      !!! लेखक !!!

     श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे 

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10.

पंढरी की वारी 


वारी पंढरीकी।करो एक बेरा।

टले बुरी बेरा। कायम की।।१।।

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पंढरी का राजा। सेती विठूराय।

पडसेती पाय। सुख साठी।।२।।

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संत आवसेती। मिलाप होसेती।

पैदल जासेती। वारकरी।।३।।

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टाड़ मृदंग को। आवाज़ गुंजेव।

आनंदी भयेव। पांडुरंग।।४।।

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आषाढ़ी कार्तिकी। उत्सव पंढरी।

राम कृष्ण हरि। मुखमाच।।५।।

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पंढरी को विठ्ठू। भक्तिको भूखों से।

धाय के आवसे।भक्तं साठी।।६।।

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जग को कैवारी। उद्धार वू करी।

भक्तों को श्रीहरि। मायबाप।।७।।


आनंद को दिन| आषाढी को सण|

वारकरी गण | उत्साहित ||८||

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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)

रामाटोला (अंजोरा) गोंदिया

(ह.मु. देहू पुणे)

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11. 

  गांगोली गाय


लाल रंग जेको देखनो मा सुहाय,

मीरूग को बाद दिससे गाय  ll


आंगन सपरी चलत आवसे गाय,

दिवाल परा उपर चघ जासे गाय ll


बरसात,किसानी को संकेत आय,

किसान भाई ला बड़ी सुहाय ll


टूरू पोटू ला मोठी मज्या आय,

देख सेती जब गांगोली गाय ll


संगठन को देसे मंत्र जब गाय,

सबकी प्यारी गांगोली गाय ll 


अनुशासन प्रतिक गांगोली गाय,

समाज एकता की प्रतिक गाय ll


जसी पोवारी आमरी माय आय,

तसी किसान की गांगोली माय ll


डॉ हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु पो दासगाँव ता.जि.गोंदिया

मो.९६७३१७८४२४🙏🙏

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12. 

                               सामाजिक लेख : आपरी पहिचान 

आपरो अस्तित्व अना मूल पहिचानला जाननलाइ, समाज को पुरखाइनको टोंड लक हिट्यो यव शबद, कि "हमी धारानगरलक इत् आया, छत्तीसकुर का पोवार आजन", ला समझनों पढ़े।

आपरो रोजका व्यवहार, नेंग-दस्तूर अना तीज-तिव्हारमा पुरातन सनातनी संस्कृति को दर्शन होयजासे। यन मायनोमा हमी पंवार, सनातनी हिन्दू धरममा शामिल येक समुदाय आजन। हमरी पोवारी संस्कृति, मोठी सनातनी संस्कृति को अभिन्न भाग से। देश-दुनियामा असी असंख्य नाहनी-नाहनी संस्कृति आती जिनको समन्वय, मोठी सनातनी संस्कृति आय। वृहद सनातनी संस्कृति को अस्तित्व, वोको मूलमा समाहित सप्पाई संस्कृति इनको अस्तित्व रहवन परा निर्भर से। येको लाई आपरो स्थानीय सांस्कृतिक रूप को अस्तित्वला ठेवन की मोठी जरूत से।

पीढ़ी दर पीढ़ी, बरस दर बरस, संस्कृति, पानी को धार वानी बोहत जासे अना पुरखाइन की विरासत, जुनी पीढ़ी लक नवी पीढ़ी को हाथमा आय जासे। अज की नवी पीढ़ीला असच आपरी पोवारी सांस्कृतिक विरासतला सहेजकन आनवारी पीढ़ीला देनो पढ़े।

आपरो ओढ़ीलका मान, आपरी पहिचानला सम्मान, यव लगतच खास से। यन मोठी जिमेदारी का पालन कोनकों हाथलक़ होहे? यव सवाल को जवाब सबला देनो पढ़े! समाज का नवतो-नवाड़ो इनला कोन सांगे की तुमरी वैभवशाली धरोहर से अना सायनी माय को बोलमा संस्कार की शिदोरी से।

अज पोवार समाज का साहित्यकार अना विचारक इनना आपरी कलम की ताकत लक़ समाज को उत्थान को संग सामाजिक-सांस्कृतिक पहिचान रक्षण को बीड़ा उठाय लेयी सेत। दिशाहीन संगठना इनलाबी सांगनो से की आता नव सकार भई, ऊभो होन को से, छत्तीस कुर को पंवार समाजला सुसंस्करत, उन्नत अना संगठित रहवन को से। देशमा निवासरत सप्पाई समाज को संग येकीकृत रहकन देशकी उन्नति मा संग रहवनो से परा आपरी मूल पोवारी पहिचान का रक्षण भी करनो से।


✍🏻ऋषि बिसेन, खामघाट(बालाघाट)

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13. 

🙏वामांगी 🙏

( पोवारी बोली )


बीच मां देऊळ मां गयेव होतो

वंज्या विट्टल दिसेव नही

रूकमाई क् बाजूमां

निसती ईट


मी कहेव रहे

रूकमिनी त् रूकमिनी

कोनी क् पायपरा

माथा टेकावन को


पायपरा ठेयेव

मस्तक कहाळ लेयेव

आपलोलाच पुळा मागं

लगे मुहून


अना जात जात सहज

रूकमिनी ला कयेव

ईटू कहान गयेव

दिसं नही


रूकमिनी कवन लगी

कहान गयेव म्हंजे

उभो नहीं क् मोर्

उजवं आंग


मी अकिन देखेव

खरो का मुहून देखनला

अना कहेव वंज्या

कोsनी नही


कव्हसे नाक क् पुडा

देखनोमां गयेव जनम

बाजू क् मोला 

कमच दिससे


गोटासरीक्सी भयी

मान कसी धरेव देख्

यहान की वहान 

कसी मुन होय नही


कब् आवसे कब् जासे

कहान जासे का करसे

मोला काही बी असो

मालूम नही


खांदोला खांदो लगायस्यान

हरदम बाजू मां रहे ईटू

मुन मी बी बयताळ

उभोच रहेव


आषाढी कार्तिकला

येतरा लोक आवसेत 

मोला कबच कसो कोनी

सांगिन नही....


अज एकदमच मोला

भेटनला धावकन आया

अठ्ठावीस युग को

एकटोपन


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रणदीप कं.बिसने

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14. 

आयक ले तू मोरों मन

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आयक ले तू मोरों मन,

हासिल करनों से यदि मोठोपन,

कर ले तू सागर को अनुसरण l

तू सागर समान बन l

महासागर समान बन ll


सागर समाय लेसे,

नदियों को पानी l

अना नालियों की गंदगी l

फिर भी सागर को पानी निर्मल l

तोरो भी जीवन मा आयेती,

अच्छा -बुरा अनेक अनुभव l

फिर भी तू कायम ठेव अच्छों चिंतन ll


सागर मा सफर कर् सेती यात्री l

कोनी कर् सेती सागर ला नमन l

अना कोनी  धोव् सेती आपला चरण l

फिर भी सागर कर लेसे सहन l

तोरो भी जीवन मा आयेती

निंदा अना वंदन l

फिर भी तू कायम ठेव संतुलन ll


ओ सी पटले

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