प्री-वेडींग - बिह्या को नवो दस्तूर - कुरीति का सुरीति?

 प्री-वेडींग - बिह्या को नवो दस्तूर - कुरीति का सुरीति?

मी काही दिवस पयले नागपुर मा आपलोच रिस्तेदारी को एक बिह्या मा गयो होतो। बिह्या नागपुर पासुन १०-१२ किलोमिटर दूर मोठो रिसॉर्ट मा होतो। लगुन की बेरा गोधुली बेरा देई गई होती। मुहुन आमी दिवस बुडता घरलक कारलक निंघ्या अना  सात बजे पोहुच गया। लॉन मा मोठो पेंडालखाल्या खुर्चीइंकी एककं-मंघं-एक रांगं लगी होती। बिजली की रोशनाई अना लॉन की साजसज्जा मनमोहक होती। 

पाहुनाइंको जमनो जसतस सुरु भयो होतो। साडे़-आठ नौ बजेवरी पाहुनाइंलक पेंडाल मा पाहुना जमन लग्या। मंग थंडो पानी, कोल्डड्रिंक, टोमेटो सुप अना स्टार्टर धरकन सेवाकर्मी एक-एक लाइन मा फिरन लग्या। सब जन गप्पागोष्टी अना खानोपिनो मा दंग होता। बाजूमाच आर्केस्ट्रा संच नाचगानोलक पाहुनाइंको मनोरंजन करत होतो। 

बिह्या को स्टेज जवर बाजूला भल्लीमोठी स्क्रीन लगी होती।काही बेरा मा वोकं पर व्हिडिओ, टीजर्स फोटोशूटिंग सुरु भई। एक को बाद एक फोटो (छायाचित्र) सिलिमा- संगित संग धावन लग्या। मोला लगेव कोनी फिलम क हिरो हिरोइन को रोमांस का ए सिन रहेती। पाहुनाइंको मनोरंजन साति देखावत रहेति। मी सहजच आपलो नाती ला खबर लेयेव - "बेटा, ए कोन हिरो हिरोइन आती अना कोनतो फिलम का ए सीन आती?"

मोरो नाती मोला हासत कव्हन बस्यो - नानाजी ए सीन कोनी फिलम या हिरो हिरोइन का नोहोती। ए पोज यनं बिह्या क नवरदेव-नवरी का आती। बिह्या को पयले नवरदेव टुरा अना नवरी टुरी एखादो रिसार्ट, होटल या सहल को ठिकानपर गया रहेती। संग मा फोटोग्राफर लिजाई रहेन अना असा हॉटपॅंट फोटो काढीन, उनकी पुनर्रचना कर एडिटिंग, सजाय-धजायकन देखाय रह्या सेती!

मोरो बाजुलाच मोरी बायको बसी होती। आमरो आजा-नाती को बोलनो आयकत होती। वा आपली प्रतिक्रिया अंदर को अंदर दबाय नही सकी अना कव्हन लगी - "यव कोनतो तमाशा आय, बिह्या को पयलेच नवरदेव नवरी चिपककन बस्सेती, निर्लज्ज होयकन रंगरंग का नखरा करं सेती, इनका कपरा देखो, वधूनं त लगसे चड्डीच पेहरी सेस।  सब लाज-सरम सोड़ देईन! हात मा हात अना डोरा मा डोरा टाकं सेत! हासं सेती, वानावं सेती अना उनका मायबाप लगीन को पयलेच सब पाहहुनाइंला खुल्लम खुल्लो ए चित्र देखावं सेत!!!"

मोरो नाती हासत कसे - "देखो नाना - नानी, वय कसी एक दुसरो की पप्पी लेसेत!" 

मी बिचार करन लग्यो- आमी भारतीय संस्कृति की वाट्स अप, फ़ेसबुक, किताब, लेख, कहानी, गीत, कविता अना गपसप मा मोठी डिंग मारं सेजन। पोवारी दस्तूर इनला धार्मिक, संस्कृति, संस्कार का प्रतिबिंब समजं सेजन। आपलोला सुसंस्कारित, सुसंस्कृत, क्षत्रिय हिंदूधर्म का समाजजन होनको ठिंडोरा पिटं सेजन। सामाजिक मंच पर "संस्कृति बचाव, कुरीति मिटाव" को पोंगा फुकत नही थकजन। अना इतं असो निर्लज्ज तमाशा सोरा संस्कार माको महत्वपूर्ण बिह्या संस्कार समारोह मा देखावं सेजन। दिगर समाज का लोक भी चुपचाप, डोरा फाड़-फाड़कन यव तमाशा देखं सेती। काही लोक अभद्र कामेंट भी मारं सेती। कोनी बुजुर्ग न टोकिस त - "गयो तुमरो जमानों, आधुनिक जमानो मा सब चलं से" कव्हत आयोजक यनं विषय को मुक समर्थन करं सेती!

काही बिह्या समारोह मा चक्क प्रेम कहानी का सीन देखावं सेत। कॉलेज, बगीचा, सहल, होटल मा मिलनो, सब कॅमरा मा बंदकरखन, प्रासंगिक सीन, गाना भरकन फोटोशूट बनाया जासेती।


मी काही दिवस बाद वोनं बिह्या भयेव आमरो रिस्तेदार को घरं गयेव। संयोगवश नवविवाहित नवरा-बायकोच घरं होता। मोरो मानसम्मान करत ड्राइंग हाल मा सोफापर बसाइन, नास्तापानी कराइन अना गप्पागोष्टी करन लग्या। बात-बात मा मीनं नवती नवाडी़ मोरी नातबोहू ला पुछेव - "आमरो जमानो मा बिह्या को बाद बी नवरा बायको ला सबको सामने एक-दुसरो ला मिलन, बोलन की उजागिरी नोहोती। बायको को डोई पर हरदम पदर (घोंघूट) रव्ह। तुमरो जमानो मा त बिह्या को पयलेच दुही को मेल-मिलाप, घुमनो-फिरनो होय जासे।"

 नवति-नवाडी बोहु कव्हन बसी - "दादाजी, तुमरो जमानो मा कम उमर मा बिह्या होत होता, मायबाप बिह्या जोड़त होता, एक-दुसरो को घरानो, घरदार  अना  धनसम्पत्ति देखत। आता जमानो बदल गयो। टुराटुरी २५-३० साल कं उमर मा बिह्या करं सेती। दुही की पसंद, स्वभाव, आचार, बिचार, रहन-सहन साजरो समजन साती उनला बिह्याको पयले एकांतवास मा मेलमिलाप की संधी देनो जरुरी से. आमी दुई आयटी कंपनी मा काम करं सेजन। दुही को कार्यक्षेत्र अना पगार जवर-जवर समान से। आमी एकदुसरो की सुंदरतालक जोड़ीदार बननो बरोबरच मनलक, समजलक भी एकसारखा पायजे ना! आमरी आवड़-निवड़ एक जसी पायजे का नहीं? तबच त दाम्पत्य जीवन सुखी रहे! मुहुन दुय-चार बैठक इनमा एकदुसरो ला परख सेजन। अना सब पसंदी पर होकार देसेजन। बिह्या पक्को होसे पत्रिका छपं से। मंग एक दिवस पिकनिक स्पॉट पर जायकन फोटोग्राफर को मतलक योग्य ठिकान ढुंडकर, कपड़ा, बिसरो (इमिटेशन ज्वेलरी), मेक अप कर फोटोशूट याददाश्त मुहुन बनायेव जासे। खर्चा खुप आवं से पर जीवन भर की याद मुहुन पेनड्राइव मा जमा रव्हसे।"

मी उनकी बातं शांतिलक आयकत अवाक रह्य गयेव। आखिर मा एकच प्रश्न करेव का तुमरी आधुनिक सोच एक दृष्टि लक सही लगं से पर बिह्या समारोह मा लगीन लगन को पयले यो प्रीवेडींग शूट देखावन की सोच का से? आमरो जवाई बोल उठेव - "यो आधुनिक युग को आधुनिक युवावर्ग को मनपसंद दस्तूर आय! सब प्रगतिशील समाज इनमा देखायो जासे। मंग आमीच काहे मंघं रव्हनको?" लोकहिन ला बी नवो जोड़ा को सौंदर्य दिसे पायजे। फ़ोटो त फोटोच आती, मंग एतरो जुनी सोचलक बिचार करनो मा का अर्थ से?

मी नातजवाई को अर्थ -अनर्थ भरेव उत्तर आयकताच दंदराय गयो। पर थोरो बेरा मा आपलोला सावरेव अना उनकी बिदाई लेयकन घरं वापसी की रस्ता धरेव।

डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे/४-४-२०२३

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