कायापालट
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कायापालट
येन जीनगी मा बात रवसेत नाना प्रकार की।
जो समजसे वोकी गाड़ी चलसे मस्त संसार की।
साधी बात त् समज जासेत एकदम झटकन भाऊ,
कोनी वाकड़ी तिकड़ी कोनी अन्य बी आकार की।
निरो हुशार रहेलक काही होय नही येन जग मा,
जरूरत रवसे बुद्धि ला बी विवेक को श्रृंगार की।
बदल जासेत संगी अन होय जासे कायापालट,
कोनी कसेत कसो बदलेव अन बात से बिचार की।
येतो डुबो काम मा की सफलता घर ढूंढत आये,
मग जरूरत नहीं लगन की प्रचार अन प्रसार की।
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©®✍️ *एड. देवेंद्र चौधरी, तिरोडा (गोंदिया)*
ता. ०१/०५/२०२३
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