पोवारी साहित्य सरिता






पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता भाग ७३-८१ 
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       आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे

        मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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1.
 दिन रहया नही 
****
घरमा सोवन का दिन रहया नही
जाग जावो कसू छत्तीस कुरया भाई
पोवारी नाव मिटावन हवा चल्या काही |
रोखन की उनला मोठी नौबत आयी ||१||

गरज पढीसे बिचार करन की
पोवारी को जुनो वैभव कसो आये |
काम करो सबजन बचावन की
संस्कृती आपली अमर बनी रये ||२||

पोवारी गानाला बंद करो कसेती
बिहयामा देख्या गया शिक्या मोठा भारी |
पोवारी बोलकार गाव काच सेती 
दस्तुर करनेवाला वयच खरी ||३||

आवने वालो पिढी को बीचार नही 
अक्कल सिक्या इन की कांहा गयी |
पोवार जात धर्म कसो रये सही
नेंग दस्तुर करनकी पारी आयी ||४||

पोवारी साहित्य सरीता ७३
दिनांक:१९:११:२०२२
हेमंत पी पटले
धामणगाव ( आमगाव)
९२७२११६५०१
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2

🌷बोलो पोवारी, सब मिलस्यारी🌷
           (विधा - त्रिभंगी छंद)
मात्रा - ३२, यति - १०, ८, ८, ६ मात्रापर, 
जगण (लगाल) निषेध, पदांत - गा आवश्यक.

बोली मा माया, दुध की साया,
          पिरती भरती, पोवारी |
कोयल की बानी, पयरी वानी,
          खणखण करती, पोवारी ||
से मीठी बानी, राजस्थानी,
          बुंदेली 'ना, गुजराती |
मराठी संगमा, जुड़ी रंगमा,
          या पोवारी, हर्षाती ||१||

से दर्जावाली, भोलीभाली      
          हिंमतवाली, पोवारी |
बोली दिनराती, से सबसाती
          किंमतवाली, पोवारी ||
बिह्या का गाना, सेत सुहाना,
          भऱ्या सेती, ढोली मा |
सबला आकर्षन, होये दर्शन,
          संस्कृती को, बोली मा ||२||

से सब मा न्यारी, प्यारी प्यारी, 
          बोलन नोको, शरमावो |
रीती आधारी, से आकारी,
          किरती येकी, पसरावो ||
मोरी पोवारी, से संस्कारी, 
          बुंदेली की, उपभाषा |
बोलो पोवारी, सब मिलस्यारी, 
          'गोकुल' की से, अभिलाषा ||३||

© इंजी. गोवर्धन बिसेन 'गोकुल' 
     गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१
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3.
______
।  चारित्रिक गुण  ।
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 वास्तविक तथ्य जेको कारण पूर्वज विशिष्ट सामुदायिक व्यवस्था को करत पालन
जीव विज्ञान मा, कोनतो बी जीव का काई अवलोकनीय विशेषता या गुण रव्हसेत , वय या त् अधिग्रहीत रव्हसेत या त् विरासत मा मिल्या रव्हसेत ।  

अधिग्रहीत गुण परिस्थिति को प्रति प्रतिक्रिया आय ।  

विरासत मा मिल्या लक्षण माता-पिता लक संतति मा संचरित जीन द्वारा आवसे। 

(जबकि येन गुणउनकी अभिव्यक्ति हरदम पर्यावरणीय परिस्थिति द्वारा संशोधित होत रव्हसे )।
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आनुवांशिक संशोधन होनला बहुत समय लगसे । 
~~~||

जीव विज्ञान की आनुवांशिकता की बात पुरानो जमाना मा अनुभव लक समाज का बुजुर्ग जानत होता । 

उनला मालूम होतो की कई आनुवांशिक बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होत रव्हसेत । 

शरीर रचना की विशेषता अना गुण पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होत रव्हसेत । 

या जीव विज्ञान की बात अज को जमाना मा कई लोगईनला ज्ञात नाहाय या बात अलग से ।।

सन्दर्भ: 
https://www.britannica.com/science/character-biology

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4
संस्कृती आमरी पोवारी


संस्कृती आमरी पोवारी
मायबोली खरी पोवारी

खिली खेत मा पोवारी
चली बात मा पोवारी
संस्कृती आमरी पोवारी
मायबोली खरी पोवारी

भरी श्वास मा पोवारी
मिली बास मा पोवारी
संस्कृती आमरी पोवारी
मायबोली खरी पोवारी

लहरासे हवा मा पोवारी
बरससे बरखा मा पोवारी
संस्कृती आमरी पोवारी
मायबोली खरी पोवारी

बोल मा प्यारी पोवारी
वचनमा संस्कारी पोवारी
संस्कृती आमरी पोवारी
मायबोली खरी पोवारी

✍🏼 गुलाब बिसेन, सितेपार
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5
संस्कार इनकी शिक्षा 🚩

    अज को येन आधुनिक युग मा हामी आपरा बच्चा गिनला आपरा संस्कार, संस्कृति, रिती -रिवाज़, परम्परा अना आपरा हिन्दुत्व सनातनी धर्म को बारा मा सांगनो भूल रया सेजन। यव दिमाग़ मा आवसे की पहले काही तरी मोठो आदमी बन जाव फिर संस्कार धरम ओको बादमा देखबी।
        हामी आपरो बच्चा इनको मनोरंजन लाइ, दिखावा लाइ, मौज -मस्ती लाइक जेतरो हामरो सीन बन सिक से हामी देसेजन अना पढ़ाई लाइक साजरा स्कूल, अव्वल नम्बर की कोचिंग एक ले बड़के एक साधन देसेजन। एकोलक हामरा बच्चा (टुरू -पोटु)मोठी -मोठी नौकरी, मोठा पद, मोठी कंपनी का भी मालिक बन जासेती, विदेश मा भी उच्च पद परा ज्वाब करसेती उनको जौर पैसा की भी कमी नई रव्ह, साजरो मनमाफिक जीवन साथी भी मिल जासे। पर एको बाद जबा सामाजिक जिम्मेदारी की बात आवसे त वय येको लक़ दूर परा सेती। माय बाप की सेवा, त्यौहार मा बच्चा, नाती -पोता  लक उनकी मिलन की इच्छा, फोन परा गोष्ठी सांगन की इच्छा, छुट्टी इनमा पुरो परिवार की संगमा रवन की इच्छा काहे पूरी नही होय, कई गन त बेटा -बहु, बेटी -जवाई को ताल मेल नई जम त तलाक की बात आय जासे।
        हामरा बेटा -बेटी काहे दूसरों समाज का टुरा -टुरी संग चार रोज की मौज-मस्ती मा आपरा माय बाप, जिनना उनकी परवरिश मा काई कमी नई करिन, उनला भूल जासेत्। उनको त्याग, उनको अथाह प्रेम, रिस्तेदार सब ला भुलाय देसेत्। कायलिक असी नौबत आवसे, आता बिचार करन को समय आय गई से।
        हामी उनला सब जिनुस उनको उज्जवल भविष्य साती देया परा समय की कमी सोचके उनला आपरा संस्कार, सनातनी धर्म, संस्कृति अना आपरा मोठा बुजुर्ग गिन को सम्मान, आदर करनो नई सिखाया, छुट्टी, सन् त्यौहार मा आजा -आजी को संग माननो, कहानी सुननो, गोष्ठी सांगन को नई सिखावजन।
       गलती हामरी से, समाज की से की उनना यव नई पीढ़ी ला नही सिखाया। आब बी समय से आपरी नवी पीढ़ी ला शिक्षा को संग संस्कार, प्यार, रिती-रिवाज अना सबदून सनातनी धर्म ला सिखावनो, समझावनो जरुरी से। नौकरी चाकरी की पढ़ाई को संग संग आपरो सामाजिक संस्कार अना सनातनी धरम की शिक्षा दीक्षा भी देनो जरुरी से। मोठो होनको को बाद यव नही होय सिक, काहे की कोनी भी साजरो आकार कच्चो घड़ा ला देय सिक सेजन, ओको पकन को बाद आकार नही बदल सिक। 
✍️बिन्दुबिसेन🙏
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6
 कंजुस को हाथ
एक बार एक कंजुस आदमी तालाब मा पड़ गयो। आसपास देखने वाला ओला बचावन को उपाय करन लगया। एक आदमी न आप्लो हाथ कंजुस कन बड़ाइस आना कहिस "भाऊ मोला आपलो हाथ दे दे, मि तोला बाहर निकाल देहु"।या बात हर कोई कव्हत गया, पर ओला समझ नहीं आयो। ऊ धीरु धीरू डुबन लग्यो पर कोई ला हाथ नहीं देयिस। लोंगोन ला समझ आयो की यो आदमी बहुत होशियार से आना आप्लो संग कोई ला डुबाओनो नहीं चाव्ह।
     फीर सब बिचार करन लगीन, यो कंजुस तो असो मा पूरो डूब जाहे। तब घुमत घुमत गांव को इक स्यानो उतन लक गुजर रहियो होतो। हल्ला सुनकर वन्हा गयो, आना सब जानकारी लेईस। फिर सबला चुप करके जोर लक कहीस _"भाऊ मोरो हाथ थाम ले, मि तोला बाहर निकाल देहु।"
    बस ओनो कंजूस न हाथ बड़ाए डेयिस। लोग समझ नहीं पाया की योच शब्द त हामही भी कह्या होता, फिर हामला हाथ काही नहीं देयिस।
   तब सायनो न कहिस यो कंजुस सिर्फ दूसरो लक लेनो जानसे, देनो योकों स्वभाव नहाय। तुम्ही हाथ मांग्या होतात, मि हाथ दियो होतो।
  यशवन्त कटरे
   जबलपुर २०/११/२०२२
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7
स्वार्थी इन्सान 
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अरे इन्सान कसो का
स्वार्थीपणा मा गऐस।
खूद को तू स्वार्थ लायी
नाताला तोड़ देऐस।।

यहां मंडाय बजार
नाता करेस बेजार।
कसो आऐव तोला भी
एवं स्वार्थ को बिचार।।
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
रामाटोला गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
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8
समाज संग धोखा नाहाय अपेक्षित

अगर जेहन जिंदा से त् इंसान आपलो स्वार्थलायी आपलो संस्कृति, बोली , कुल , समाज , पूर्वज , परिवार ,राष्ट्र अना धर्म को संग घात नही करअ । 

पर जब जेहन मर जासे तब मानसिक पतन को कारण  स्वार्थ हावी होसे अना जयचंद मनुष्यमा जन्म लेसे । 

समाज को नुकसान येन जयचंद लोगइनको कारण सदा भयी से । 
आमरो आसपास जो जयचंद सेत उनला पहचान लेनो जरूरीसे । 

जो आपलो समाज की अस्मिता बिकनो मा काइ कमी नही कर रह्या सेत उनला पहचान लेनो जरूरी से । 

जसो बांधी मा भुळका रहैव त् पानी नही ठहैर तसो समाज की संस्कृति संरक्षित नही होय सक अगर बाहेर  का अनजान  लोगइनलायी समाज का दरवाजा खुला सेत । 

आमला गम्भीरता लक सोचनो पड़े । आपलो कर्तव्य को पालन करनो पडे । 

आमला पुरखाइनको 36 कुल जो कई कदम लक जिंदा होतो तसोच जिंदा राखनो पड़े यानी समाज को मिश्रण बिल्कुल करनो नाहाय । 

कहा …

36 कुल समाज ला पहले सजग बनावनो पड़े ताकि वोको ताना बाना न बिगड़े । 

जब 36 कुल पंवार समाज  एक मा जुड़यव रहे तब समाज सुद्रण रहे । 

इतनउतन भलतो च ठिकान मा सबन्धी ढूंढन के जोडन को काइ अर्थ नाहाय । जो से वोकी पूरी समाजसेवा करनो पहले जरूरी से। आपली पूरी होय नही अन बाहर  की समाज सेवा करनो यानी पगलापन च कवनो पड़े ।
असी कसी गत भयी 
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9
असी कसी गत भयी

असी कसी गत भयी
समजमा नही आव |
संस्कृती टिकावनला
 अकल काहे नही रव  ||१||

पोवार किसे पोवारी
पक्की करो यहा जात |
जाती रीती रिवाजला
निभावन किसे बात ||२||

भोयर कीसे भोयरी
उनकी से न्यारी रीत |
गरज कसी पडीत 
 चर्चा होसे दीनरात ||३||

पोवारी मातृभाषाला
आनो वैभव का दीन |
सबसंग प्रेमभाव
जूडेती सबका मन ||४||

पोवार जात से बेस
सबको रहे बिचार |
काम पर से किंमत
जात पर जावो मर ||५||


असी कसी गत भयी
दि.२०:११:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१

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10
 ३६ छत्तीस

असोच नहीं बन्या ३६ कुर्या पोवार।
एन बात की बड़ी तेज़ से धार।।
आजा बाबा होतिन् बड़ा ज्ञानी।
सामाज ला देयिन संतन की वाणी।।

शादी बिवाह का ३६ गुण मिलान।
या बात नहाय कोई लाई न्हान।।
राजा भोज समकाल ३६ होता व्यंजन।
येन बात को मिल से सब् लक वर्णन।।

भगवान न देयिष नवों जन्म को रस्ता।
गर्भावस्था मा कट्ट सेती ३६ हप्ता।
देश की खेल सूची को प्रणाम।
पूरा सम्मिलित खेल का ३६ नाम।।

आबकारी नीति मा भी समाहित मान।
नियमावली मा से ३६ को विधान।।
सब ला मालुम से यक्कच भाव।
नाेको खेलों जीवन मा ३६ को ढाव।।

आंकड़ा संतुलित से प्यारो ३६ को।
समाज बंधन भोज की पोवारी को।।
हिन्दी कि गिनती पड़कर तो देखो।

३आना ६ला लिखकर तो देखो।।
अक्श से दुही अंक को एक समान।
एको लाई ३६ को आंकड़ा महान।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर २१/११/२०२२
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11
पोवारी संस्कृति, हमारो स्वाभिमान🚩

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।

आपरी संस्कृति सनातनी आय अना सबला पिरम भाव लक़ देखनो से, परा आपरो सामुदायिक संस्कृति अना पहिचान को संरक्षण बी ओतरो ही मोठो कर्तव्य आय जेतरो की सम्पूर्ण मानवता लक़ बंधु-बांधव का भाव।

 आम्ही ओन महान संस्कृति का वाहक सेजन जेला आपरो पुरखाइन हर मुश्किल मा संयोजकन राखिन। हम ओन विरासत का वारिस आजन, जेला दुष्ट आत्मा इनना भोजशाला मा जरावन की कोशिश करीन, परा विचारधारा अना संस्कार की विरासत आज वरी सबको हिरदय मा से अना सदा जीवित रहें।

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12
   टूंट..रहीं.. से.. घर.. की.. दीवार !
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टूंट रहीं से आता घर की दीवार , 
होय रहया सेती वोको पर प्रहार l
भूल गया जे विरासत की महिमा ,
कर रहया सेती   वोको पर प्रहार l

समाज  को महान पूर्वजों न् ,
घर बनाई होतीन  बड़ों मजबूत l
वोला नवयुग को पुढ़ारियों न् ,
पहले वानी  ठेईन नहीं साबूत ll

मिटाईन पोवारों को घरको नाव,
भूलाईन समाज का  सब उपकार l
मिटाईन मातृभाषा को सही नाव ,
भूलाइन मायबोली का सब उपकार ll

पोवार को नाव कर देईन पवार l
अना पोवारी को नाव करीन पवारी l
नाव बदलके होय रही से साजिश,
विरासत पर होय रही से प्रहार ll

#उठो.. ! जागो.. ! युवा साथीयों !
भाषा ना समाज ला बचावनसाती l
उठो.. ! जागो.. !!  युवा साथीयों !
अस्तित्व की ल…

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13
🚩🙏कुनबा को थाट🙏🚩

गुर्री  याद्  भी   बुराय   गइन,
रीति-रिवाज सब मुराय गइन.

घर  लक  घर की एकच बाट,
कहाँ  गयो   कुनबा  को ठाट.

पहेट, महात्नी   बेरा  पाली,
जेवन, पड़तो  झूला  खाली.

पहेट्या  की  वा  सढ़ा-सारवन,
चहल-पहल  होती  घर-आंगन.

उदबत्ती, कपूर, लुभान, दीव 
पोवार भाऊ  जुग-जुग जीव्.

डहेल-भोटी,        बेला-बाड़ी,
मुर्रा भसी अना  मुल्खी माड़ी.

हथोड़ी  रोटी, सिल को तिखो,
दूध, दही, माखन  को  सीको.

खानपान  की लगी  से  झड़ी,
भजिया सुवारी अकस्या बड़ी.

फुंडका,  बड़ी,    पान   बड़ा,
गुंजिया, करंजी, पापड़ कड़ा.

रस आंबा  को   रोटी   पातर,
रायतो, राब, घीव  की  सातर.

माच घर,  पाटुस,  पेटखोली,
सायनी माय  की गुर्री  बोली.

कूड़ों,  सोरया,  अदली, पाव,
बिसर  गया  ओतराही   नाव.

सिटवा, सेनोड़ी  अन्  सुपड़ो,
पल्लो, पेवली, झांझ, बिवड़ों.

गंगार, हेल,  करसा,  मथनी,
एकच आपरी करनी-कथनी.

सिल   कांडी, मूसर ओखरी,
रई, घुसरन, गदबद ओसरी.

जोड़नी, नाट, पटाव,  पाटन,
सिवार,  जोड़ा,   नेर,  सड्डन.

गाड़ों,  रेहका,   रेडु,      छाटी,
उभारी, अस्कुड, पावठी, टाटी.

जुवाडी,  धूरा,  जोता,  सीवर,
तुतारी, पछटनी, उल्यार  धूर.

डोंग, खूट, गहवान, गहवांडा,
बांडी गाय अना  बइल बांडा.

दावा-दोर,  गेठा  अन्  खुड़ी,
घोलर, टापरू, घुंघरू  जड़ी.

खातवा,   साबर,   इरा-इरोली,
डोकेला, बिस्मर, सांप सिरोली.

टऺग्या,  कुदरी,  बिन्नी,  बसला,
पूजत   होता    हामी   सबला.

नांगर,  फार,  बड़ा,   बारती,
मोहतुर मा खेत  की  आरती.

परहा,  बोवार, रबी,  कठानी,
खेती-बाड़ी   अजब  कहानी.

कोंड्या बनह्यार म्हेंक्या, खार,
बांधी,   टोका,    कोंटा    पार.

चिखल, चिराठा, दात्या दतार,
बूड़- बूड़   की    लगी   कतार.

कोंटा,   पारी,   मारनो    मेर,
पोवार  भाऊ     पक्का   शेर.

कड़पा,  पुंजना,  पारा  कंसी,
ढोला   हिनमा    धान   धंसी.

खरई, फेरा, खोरनी,   दावन,
रास, गोना,  आपरो   आंगन. 

सरवा, बदरो, पिरोसी, तनिश,
रज्जी गागर, से   बड़ी तपिश.

लाखोरी,  अरसी, चना   गहूँ,
लाख, टोरी, आंबा, बोर  महूँ.

गांवखारी  का  वाफा-वपली,
सम्हार,  ढेकरा,  भर टोपली.

श्रम की शक्ति से जेको हाथ,
पोवारी   से   मेहनती  जात.

एकमेक  ला   तुम्हीं   पचारों,
मिल बसकर हर बात विचारों.

परचम ला  लहराओ जग मा,
भोज को ओज हामरी रग मा.

तुमेश पटले "सारथी"
केशलेवाडा बालाघाट
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14
 🙏जल उठी क्रन्ति की मशाल🙏

 36 कुल पोवार की आना बान शान की..
जय हो महाकाल की..🚩

36 कुल पोवार से सनातन को राही..
सत्य पथकी अविचल राह सबसे सही..

असत्य परा सदा सत्य की जीत को से इतिहास..
असत्य का प्रचारक जयचंद को होये उपहास..

36 कुल पोवार की समग्र गरिमा..
ताकतवर सबसे जादा से सहिमा..

36कुल पोवार समाज को रक्षक की निंदा..
कर रही से 36 कुल का लोगइनको वजूद ला जिन्दा..

भोयर को खबराकरण साती मांगेती काही लोग चंदा..
बन्द कराओ इनको पवारिकरण को असामाजिक धंदा..

✒️ऋषिकेश गौतम 23-11-2022

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15
कसी गत भई
===============

सब मिलजुलकर रव्हत होता
माय बाप, भाई भाई मा प्यार होतो, 
पैसा अडका कमी बेसी होतो
पर जिंदगी को अलग मजा होतो.

रव्हनला कवेलू को मोठो घर
सुख सुविधा की कमी होती, 
रहेव वोतरोमाच समाधान की
तब की रितच न्यारी होती. 

कुलर पंखा नोहोता कई घर
लाईट को बी उजाडो नोहोतो,
बिजनाकी हवा, कंदील को उजूडमा
घरमाच संसार सुहानो होतो. 

आता सब सुविधा आय गई
टुरू पोटू पढ लिखकर भया मोठा, 
कामधंदा क् चक्करमा सब बाहेर
घरमा आदमी इन को से तोटा. 

घरमा दुयच जन बोलन चालन साती
घरकी रौनक गायब भय गई, 
सपना देख्या मोठा मुहून भाऊ
बुढापामा असी आमरी गत भई.

शहरमा त् अखिनच बेकार होसे
पडोसी बी पडोसीला नही पहिचान् , 
टी. व्ही., मोबाईल मा करो टाईमपास
नवो जमानोमा येच आपला मित्रगण.  

                              - चिरंजीव बिसेन
                                           गोंदिया
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16

जीवन धारा का सहारा,
ये सब नाम प्यारा।।
पोवारी की शान मा,
हर नाम को होतो डेरा।।
भुलाय गया सब झन,
आता इनको आसरा।।
🙏🙏💯🚩🚩


17
 असी कसी गत भयी
******
गावक जवर की गावखारी
मी धान लगायव दाटफरी
ना पाणी पळेव मोठो भारी
यंदा मिटे कहेव चिंता सारी

धान दटकर आवन सात
ओला मारे्व रंगरंग खात
मेहनत करेव दिवस रात
कहेव,फसल देये यंदा साथ

मस्त आयेव भरमार पाणी
धान आयेव खुप मनमानी
का सांगू किस्मतकी कहानी
खोळकिळा लक धूळधानी 

पोटरामा कोमानेव कोंब
पांढरो च निकलेव लोंब
भगवान को भयेव् कोप
ना भई सबांग बोंबच बोंब 

सारी मेहनत अकारत गयी
अशी कशी या दुर्दशा भयी
जहाँ की इच्छा वाहां च रयी
अशी कशी या गत भयी 
      **
डी.पी.राहांगडाले
    गोंदिया
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18
प्रहरी
****

बनकर तो देखो प्रहरी पोवारी का,
पोवार जात मिली से बचावन पोवरी ला।

नहीं जाय सको लड़न सिमा तक,
टोंड तो हलाय सक सेव माय  बोली लक।

सबकी बोली सजसे सबको ज़ुबान पर,
फिर पोवार ला लाज काहे पोवारी बोलन पर?

सब प्रहरी बन्या सेती अापलो समाज का।
पोवार काहे नहीं लड़त समाज की गरज ला?

सब अगर भुलाय देहेती माय बोली ला,
सकारी कौन पूछे तुम्हारी पोवारी गली ला।

जीवन ना जीतन को होना प्रयोजन प्रहरी,
सब कोई बोलो घर ना बाहर पोवारी।

दादा बाबा लक चली से शान पोवारी।
देश, परिवेश आना प्रकृति की आन पोवारी।

मि भी प्रहरी तुम्हीं भी प्रहरी कुलुप नहाय जरूरी,
सब प्रहरी जवर रहे पाहिजे कुंजी पोवारी।।

जय माय गड़कलिका सरस्वती की वारी,
राजा भोज की संतान पोवार आना बोली पोवारी।

यशवन्त कटरे
जबलपुर २४/११/२०२२
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19
जतन करो 
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गाव की माती न घर को आंगन।
मजा आवंसे ओकी बातं सांगन।।

माती को चुलो सयपाक रांधन।
मस्त पिडा-चौकीपर को जेवन।।

लहानआंग दिसत बिद्रांबन।
घर घर चल सडा न सारवन।।

उभा भया सिरमिट का भवन।
नही कर सक्या जूनो को जतन।।

गया वय दिवस लग्या कवन।
जोर नहीं देया ओला टीकावन।।

जूनो वू सोनो रहेव वू कवन।
लग्या सबच नवो अंगिकारन।। 

लुप्त होय रही से जूनो साधन।
आवो सामने संस्कृति बचावन।।

जूनो जपेवलक मिले मुस्कान।
नवो पिढीला रहे वा पहेचान।।
====================
उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
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20
                   पोवारी भाषा को उत्कर्ष              
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घोड़ो की रेस वानी कलम चलीं l
माय पोवारी  लक्ष्य की ओर चली l
साहित्यिकों को बेचैन से दिल आता,
पोवारी बोली, भाषा बनत चलीं ll

हवा की गति लक बढ़त चलीं l
मंचों पर ध्वजा फहरावत चलीं l
दिन -रात को भेद बिना पहचाने,
पोवारी बोली, साहित्य बनत चलीं ll

गंगा की धारा वानी बढ़त चलीं l
राह की बाधाएं पार करत चलीं l
आठों प्रहर अठखेलियां करत,
 पोवारी बोली,धूम मचावत चलीं ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु 24/11/2022.
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21

🙏 जय गनपति 🙏

जय  गनपती  मोरो देवा,
राखो  किरपा मोरो देवा।
पहिलो पूज्य  तुम्ही देवा,
जय गनपती  मोरो देवा।१।

तुमरी भक्ति  देसे  शक्ति,
भवानी पुत्र  जय गनेशा।
तुमरो पिरम  मिलहे देवा,
मोला सदा  असी आशा।२।

तुम्ही जग का  तारनहारी,
भगत भया सब  नर नारी।
तुम्ही  सप् पर सेव  भारी,
दुःख  संताप  को  संहारी।३।

नीति परा  चलनो से धरम,
धरम की महिमा  से न्यारी।
कसो होये  भावसागर पार,
राह देखाव  मोरो बलिहारी।४।

जगका  तुम्ही  हितकारी,
सिद्धविनायक संकटहारी।
जय  गनपती  मोरो  देवा,
तुमरो सुमरन मंगलकारी।५।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸


22
 मोरो नाव मोरी पहिचान🙏
(कविता पोवारी भाषा मा)
 🔅🌸🔅🔅🌸🔅🔅🌸🔅
मोठा करो छत्तीस कुर पंवार को मान, 
नोको बिसरावो तुम्ही पोवारी सम्मान।
जरासो कमी मा बी होय जाये गुजारा,
आंच नोको आन देव ठेवो स्वाभिमान।

क्षत्रियता को पर्याय से पोवार को नाव,
फैलाओ पोवारी श्यान शहर अना गाव।
नोको रुकन देव सप् आता तुमरो पाव,
साजरी संस्कारी से हमरी पोवारी छाव।

पोवार समाज छत्तीस कुर का महासंघ,
पहिचान से कर्मठ अना उन्नति का रंग।
चल रहिसेत वैनगंगा की धारा को संग,
जीत कन् सप् आपरो जीवन की जंग।

नवी पीढ़ी ला  सांगनो से आपरो नाव,
गर्व लक़ सांगो आपरो कुर अना गाव।
धार लक आयिन  छत्तीस कुर पोवार,
असो सांगत होतिन आम्हरा भाट राव।

बालाघाट की श्यान सिवनी की जान,
गोंदिया भंडारा की पहचान से पोवार।
वैनगंगा को आंचल मा उन्नत किसान,
असो ओरखो सेती छत्तीस कुर पंवार।

✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅


23
मातृभाषा पोवारी  को नाव: एक शास्त्रोक्त विचार
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    लहान बालक -बालिकाओं न् एकदिन दादाजी ला खबर लेईन कि दादाजी ! रात्रि सोयेव व्यक्ति न् केंधावर उठे पाहिजे ? दादाजी न् कहीस कि शास्त्र कसेती कि सूर्योदय को पहले उठे पाहिजे. लेकिन आमला सब चल् से. सकरीच उठो, दूपारी उठो या सायंकाल ला उठो ! आमला सब चल् से.
        उपरोक्त जवाब देनेवालो बुजुर्ग को बारा मा कोनीच सहज कहें कि येन् बुजुर्ग की अकल सठयाय गई से.असीच किस्सा महासभा को बुजुर्गों की से.
       महासभा मा जे महानुभाव सेती, उनला कोनी न् खबर लेईस कि ३६कुलवालों पोवार समाज की मातृभाषा को नाव का से ? येन् प्रश्न पर वय सही जवाब नहीं देत. वय नहीं सांगत कि पोवारों की मातृभाषा ला पहले पासूनच पोवारी(Powari) कसेती.अना आब् भी पोवारीच कहे पाहिजे. येको विपरीत वय कसेती कि आमला सबच चल् से. पोवारी कहो,पंवारी कहो, या पवारी कहो आमला सबच चल् से.इनको जवाब आयक के असो लग् से कि इनकी अकल भी सठयाय गई से.
       मातृभाषा का अनेक नाव सांगन ला प्रोत्साहित करके महासभा पोवार समाज मा अनुशासनहीनता अना स्वैच्छाचार का बीज बोय रहीं से. महासभा की येन् गलत नीति लक पोवार समाज की नवीन पीढ़ी की एकसंघ आस्था मा बिखराव की स्थिति उत्पन्न कर रहीं से.  मातृभाषा को नाव को संबंध मा आस्था को बिखराव  येव धीरु धीरु आमरी नवी पीढ़ी की समग्र आस्था मा बिखराव उत्पन्न करें व  भविष्य मा एक दिन समाज को संपूर्ण विनाश करें.
        अतः समस्त स्वजनों ला निवेदन  से कि मातृभाषा पोवारी (Powari) को सही नाव पोवारी से. बाकी सब नाव गलत सेती या बात  समाज को जनमानस पर सदैव प्रतिबिंबित करत रहो अना समाज मा अनुशासन कायम ठेओ.  संसार मा प्रत्येक भाषा को एकच नाव रव्ह् से. मातृभाषा पोवारी का अनेक नाव सेत असो सांगके पोवार समुदाय की अकल को दिवालो निकल गयी से अथवा येव समुदाय स्वेच्छाचारी बन गयी से असी कोनी की भावना निर्माण होये, असो गलत प्रदर्शन नोको करों.

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
रवि २७/११/२०२२.
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24
 फुगडी फू
    ****
फु बाई फू, फुगडी फू २
बजगया बारा आता
फुगडी फू ||टेक||

घर घर मा बडे पार्टी, जोरमा भयी सुरु
टूरु पोटू को इच्छाला नको कसे मारू
केक काटो कसे आता
फुगडी फू ||१||

झाडू पोच्छा वाली बाई आयी , काम नही बन
खाटपर बसेव बसेव, सांग शहान पन
काम नही जम आता
फुगडी फू ||२||

नवर देव को बिहया मा, डिजेपर को गाणा
नाचणे वाला कुद पड्या, बिघड गयो जमाना
मानपान सेका आता
फुगडी फू ||३||

नवरा बायको को नही, दिस, मेल जोल
घर घर को जिंदगी ला, नही रहीसे मोल
कोन सांगे कसो आता
फुगडी फू ||४||

खेती बाडी करन साती, मजूर नही दिसत 
फिकर नही काम की, बिन काम का बसत
कल युग आयो आता
फुगडी फू ||५||

पोवारी साहित्य सरीता ७४
दि,२६:११:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१

********

25
पर्दा,
माय बाप को मान सम्मान,
धरो जीवन मा उनको ध्यान।
रस्ता बनायकर गया भगवान
पर्दा निभाय कर भया महान।।

हर समय रही से पुण्य ना पाप,
पुण्य करन वाला देव समान।
पर्दा राखन वाला नाम तमाम,
कंचन काया, मन घिव समान।।

पर्दा की बात पर्दा मा होना,
बेपर्दा को कोई नहीं सुनत रोना।
भरयो खजानो जीवन को झोला,
पर्दा माओला ठेवन ला होना।।

पर्दा की अबुझ से महीमा,
पर्दा की पुंजी पर्दा मा होना।
जो नहीं राखत जीवन मा पर्दा।
जीवन ऊड़ाउसे उनको गरदा।।

सीखन लाई सेती असा कई पाठ,
बिन पर्दा को मीट गयो ठाठ।
नज़र पर भी से एक पर्दा,
सही गलत मा झपकःसे सदा।।

जो राखःसे तन आना मन पर पर्दा,
उनको जीवन सुखी से सदा।
नहीं आवः कभी कोई विपदा,
प्रभु को साथ ऊनसंग सर्वदा।।

भाई, बहिन,नर नारी सबला,
विनंती करु सु दुही कर लका।
जीवन मंत्र को  एक भाग पर्दा,
सहज सरल जीवन को खजाना आय पर्दा।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर २७/११/२०२२
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26
शीर्षक: जवाई भाऊ
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जवाई भाऊ कसो तं जी
खीनभर जरसो बसो तं जी -धृ-

भुल्यात घरला सुसरो को
सुत्यात मांडो दुसरो को
कऱ्यात कायला असो तं जी -१-

ढोस्यात बस के बेठार मा
लोऱ्यात नाली कुटार मा
राड़ा मा नोको धसो तं जी -२-

दोना बनायात परसा का
भुल्यात दस्तूर बरसा का
कऱ्यात आमरो हसो तं जी -३-

मांडो को डेरपर चंगस्यारी
भलताच कोनला रंगस्यारी
दुल्हा जसो को तसो तं जी -४-

नवरदेव नवरी को गरो मा
सांगो का बांध्यात खरो मा
गठ्यान कसकस फासो तं जी? -५-

मुहूर्त सारी को बिह्या को
मान तुमरोच मुखिया को
कसो होये गर रुसो तं जी -६-
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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
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27

 बाट से कठिन
बनो तुमी जुझारू 
सब से मुमकिन


तपे ओय जन
बढ़े मंग कीमत
बनो ज़ब कुंदन


दृढ़ संकल्प 
झुकसे या दुनिया
से अविकल्प


द्वंद एकलो
सफलता मा मेला
स्वार्थ को ठेला

अविकल्प : निश्चित
🚩✍🏻नरेश
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28
बेटी लक्ष्मीस्वरूपा नही कोनी जिनुस

हामरो समाज मा दहेज मांगन की कुरुती नहाय।या मोठो गर्व की बात से। 
हामरो समाज की बेटी, बहु साठी सम्मान अना गर्व की बात  से।दिगर समाज मा टीका अना दहेज को नाम परा बेटी -बहु गिनला प्रताड़ित करसेत। दिक्कार से असा समाज परा, जो आपरी बेटी भी देसेती अना मोटी रकम भी, बेटी का कोई समाईन सेका वोको मोल - भाव करसेती।

बेटी शक्ति स्वरुपा,लक्ष्मी स्वरूपा से वोको सम्मान करो!बेटी को कन्यादान कारके पुण्य कमाओ।
बेटी ला शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, आपरा रिती -रिवाज सिखाओ। आपरा माय -बाप समान, सास- ससुर की सेवा, सम्मान अना प्रेम करनो सिखाओ।

धन्य सेजन हामी अना हामरो समाज की बहु बेटी।

हामरो समाज मा कोनी नियम -धरम पालन की सक्ति नहाय, घूँघट प्रथा नहाय। येको मतलब यों नहाय की काई संस्कार नहाती यों प्यार से माय बाप गिन को, येको आजकाल की बेटी बेटा गलत फायदा उठाय रहया सेती। दुसरो समाज मा बिहा करके।

माय बाप को मान - सम्मान,लाड़ प्यार की चिंता किये बिगर,आपरो मन पसंद बिहा कर रहया सेत। असो करन  को पैयले जनम देन वाला माय बाप को बारे मा थोड़ो तो बिचार करो।

हामरा पोवारी संस्कार, सनातनी धरम कसेत की बेटी ला देवी समान पूजा करो, सम्मान करो, लाड़ करो, प्यार लक राखो, उच्च शिक्षा दो अना साजरा संस्कार देव। जेन घर मा बहु बेटी को सम्मान होसे, वोन घर मा सुख -समृद्धि की कभी कमी नही होय।

जय पोवार समाज की
✒️बिन्दु बिसेन बालाघाट

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29
 समाज उत्थान का पथ

उद्यमिता

एक उद्यमी वु व्यक्ति आय जो एक या अधिक व्यवसाय प्रस्थापित करसे अना  वोन व्यवसाय मा निवेश करसे , अधिकांश जोखिमको  वहन करसे अना अधिकांश पुरस्कार को  आनंद या अच्छो फल को आनंद बी लेसे ।  

व्यवसाय स्थापित करन की प्रक्रिया ला उद्यमिता को रूप मा जान्यव जासे ।  

उद्यमी ला आमतौर पर एक नवप्रवर्तक, नवो विचारोंइनका , वस्तुइनको, सेवाइनको अना व्यवसाय प्रक्रियाइनको  स्रोत को रूप मा देख़्यव जासे ।

समाजउत्थान साकार करनो से  त् समाज ला उद्यमीइनकी जरूरत रव्हसे । 

उद्यमी व्यक्ति स्वयमको साथ अनेक लोगइनलायी जीवनयापन की व्यवस्था करसे। 

उद्यम क्षेत्रमा समाजकी पैठ जमावनकोसे त तसो माहौल समाजमा निर्माण करनो पड़े । 

समाज मा उद्यमीइनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण से ।

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30
 हमी बैनगंगा तट का पोवार🙏

बैनगंगा तट पर बसया हमी क्षत्रीय पोवार,
छत्तीस कुरया आजन हमी असल पोवार,

नेग दस्तुर रिती रिवाज की अलग से सोभा न्यारी,
सबले निराली भोली भाली हमरी पोवारी बोली,

संस्कार अना सभ्यता को राख सेजन मान,
साफ सुथरी सुन्दर छवी हमरी सबको साधो से व्यवहार,

हमी पोवारी बोलसेजन भाऊ फर्राटेदार,
कोनी से बालाघाट ,सिवनी मा बसया कोनी भंडारा,गोंदीया,
 
चारयी  कोना मा बसया सेजन हमी पोवारी बोली का पहरेदार,


कोनी बनयो मोठो अफसर कोनी कर से व्यापार,  
सबले अलग जच से हमरी पोवारी से  दर्जेदार,

कास्तकारी मा अव्वल  से हमरो  गांव की जीन्दगानी,
हमी पोवार स्वाभिमानी सबको ठेव सेजन मान पान,

नही कोनी ले बैर हमरो नही कोनी ले तकरार,

सबले मिलजुल रवनो से  हमाला नोको करो हमरी पोवारी माय बोली को तिरसकार,

सच्चाई लाय लड़या हमरा पुर्वज सपन भयो साकार,
सत्य सनातन धर्म की राह करया हमी स्वीकार,

बैनगंगा तट पर बसया हमी क्षत्रीय पोवार,
छत्तीस कुरया आजन हमी असल पोवार,।।

विद्या बिसेन
बालाघाट🚩🙏🚩

*******




31
(भक्ति रचना, पोवारी भाषा मा)

जगत को तुम्ही स्वामी सेव अंतर्यामी,
भक्ति मा तुमरी रंग गई सेजन आम्ही।

करता अना धरता सेव तुम्ही जगका,
राखो मान प्रभु तुमरो यन भगत का।

रस्ता परा होतो इत् कारो गुप इंधारो,
किरपा लक़ तुमरो आय गयो उजारो।

तुमरी किरन लक़ चमको से या जग,
राखी सेव तुमना इतन् ख़ुशी का नग।

होन वारी से आता  ज्ञान भरी सकार,
नहाय कोनी मोला  भक्ति का अकार।

जगत ला कई रंग तुम्ही न् च देई सेव,
तपस न् दुःख ला तुम्ही न् हर लेइसेव।

तुम्ही सत् धरम अना ज्ञान का स्वामी,
तुमरो च संग संग मा जाबिन आम्ही।

महिमामय जगत का सेव रचनाकार,
पिरम भाव लक़ आईसे यव आकार।

मानवका स्वरूप आय तुमरो आकार,
सन्मार्गी करहेती तुमरो सपन साकार।

मन मा ज़ब जगत को स्वामी आवसे,
आयकन सबको दुःख ला बिसरावसे।

जे करेती सच्चो मनलक तुमरी भक्ति,
सदा रहे ओनको संग तुमरी आशक्ति।

जगत को तुम्ही स्वामी सेव अंतर्यामी,
भक्ति मा तुमरी रंग गई सेजन आम्ही।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट🙏
🪷🌸🔅🚩🕉️🚩🔅🌸🪷


32

 समता अना एकता से सबमा जरुरी कौन जाने मग आय रही से या कसी दुरी,
दुरी आयी 
घर परीवार मा बेटा जासे एकागन त बाप  को मन  खिन्न लग से अना आवसे दुही को रिस्ता मा दुरी,
यहा भी समता अना एकता से जरूरी
,
सासु बहु देवरानी जेठानी को खटरपटर आगाज आवसे नहनाग लक त मोठागन वरी,
मग आवसे रिस्ता मा दुरी 
यहा भी समता मा एकता से जरूरी,

समाज को भी योच हाल से बीरी कोनी कसे मी खरो कोनी कसे मी  अना मोरी च सुनो,
भय गयी समाज की कमजोर धुरी,
आवसे समाज मा दुरी,
यहा भी समता मा एकता से जरूरी,

देश दुनीया की भी बात करनो से जरूरी,
देश दुनिया मा महगांई ,राजनीती ,शिक्षा, स्वास्थ स्वच्छता की दसा भयी बुरी,

चल से  राजनेता की जी हुजूरी
मग आय गयी देश दुनिया मा दुरी
यहा भी समता मा एकता से जरुरी,

आम जनता ,समाज ,घर परीवार की देख लाचारी अना मजबुरी लग सारो संसार से झुटो 
,
सबले साचो जय सिया राम को जतन करनो से जरुरी,
समता मा एकता रहे या बात सही  मा से जी जरुरी🙏

विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
******

33
बोधकथा: 
शीर्षक: नमस्कार
***********

मोरा मोठोजी (बडोजीला आमी मोठोजी कवत होता) स्व. खुशालजी हरिणखेडे कबीरपंथ, अध्यात्म अना निर्गुणभक्ती का कट्टर समर्थक होता. आमरो एकच आड़ो को दुय खंड को घर को मोठांग की एकच सपरी होती (आता सिरमीट का दुय अलग अलग घर सेत). ईरभर काम कर के राती जेवनखान को बाद आमरो (प्रायमरी इस्कूल को) अभ्यास कर के भयेव, का वय आमला आपरो जवर बुलावत अना एखाद ग्रंथ मा को परिच्छेद/ अध्याय बाचन लगावत. मंग श्लोक, चौपाई, दोहा, कहानी इत्यादी को अर्थ/ सारांश समजावत होता. उनको सिरिप लिखनो बाचनो पुरतोच शिक्षण होतो. उनका 'याहा रयणा णयी देस बीराणा हे' असा काही वाक्य अज बी मोला याद सेत. वय कवत 'पानी पीवो जान के, गुरू करो छान के'. उलटो नाहाय बराबर से. पानी छानबी तरी सुक्ष्मजीव नहीं छनत मूहून वोको ज्ञान होना अना सारो मुलूक हिंडो तब कहीं एकाद सच्चो गुरू (आबं को जमानो मा 'मित्र') मिल सिके. 

उनारो मा राती आंगनमा खाटं लगी रवत. मंग कहानी को भंडार को दरूजो खुलं. रोज एक नवी कहानी अना वोको बोध वय सांगत. उनकी सांगी कथा/ कहानी मोला काही किताबी अना आधुनिक तंत्रज्ञान पटल पर बाचनला मिलं सेत तं असो लगं से का यव चौर्यकर्म तं नोहोय! असीच उनकी एक कहानी मोरो बाचनोमा आयी. वा सारांश मा असी. 

एक मानुसला हुड़कीपर को मंदिर मा जानो होतो. नियम को हिसाबलक वोनं आपरी चप्पल खाल्याच बाजूला ठेईस. वोको आवत वरी कोनी चपलं नहीं चोरेत पायजे मुहून वोनं एक युक्ती करीस. जवर को झाड़ का काही पाना अना फूलइनलका चपलंइनला झाक देईस अना मंदिर मा चली गयेव. वापसी मा आयके देखं से तं चपलंइनपर बेल, फूल, माला, कुकू को ढेर. हकिकत मा वोको मंघंलक आयेव हरेक दर्शनार्थीला लगं का वोको आंधीच कोनीतरी वहां फूल चढ़ाई सेस मंजे वोऱ्या जान को पयले पायथा को देवता की पूंजा करन को रिवाज रहे. मुहून हरेक जन वहां बेल, फूल, गुल्याल, कुकू, चावूर इत्यादी चढ़ायकन अना वोला (चपलंइनला) नमस्कार करस्यारीच वोऱ्या दर्शन ला जान लग्या. 

मंजे वोकी चपलं सुरक्षित तं होतीच पर वोको मंघंलक आयेव हर व्यक्ती श्रध्दा, भक्तीभाव समर्पित कर वोको पाय को चपलंइनपर माथा टेकत होतो, यव सोचकर की वोकोखाल्या देवता की मुर्ती रहे. वोऱ्या को भव्य सुंदर को पायथा मा असो खुलो मा काहे भगवान की स्थापना करी रहेन? चवबुट्टा तोबी बनावन को आय. देवता की मुर्ती खुली काहे नाहाय? देवता की मुर्ती कसी रहे? असा साधा प्रश्न बी कोनी बिचारन को तं सोड़ो सोचन को बी झंझट(?) मा नही पड़्या. 

चप्पलवालोनं का सोचिस अना दुसरोइननं का समझीन. वोतरो लोकमा चप्पलवालो की सोच अलग अना बाकीकोइनकी अलग पर एकच. बाकीकोइननं सोताहा बिचार न करता 'वोनं करिस तं मी बी करूसू' येनं वैचारिक परावलंबन को अवलंब करिन. काच को भुलभुलैय्या मा एकच बिचार/ माथा का कई प्रतिबिंब. 

सोचो, मस्तक एक उच्च कोटी की गुणवत्ताधारक पवित्र अनमोल वस्तू. अना चप्पल मंजे जेकी लायकी नाहाय असी निम्न स्तर की, अपवित्र वस्तू - परस्पर विरोधी. मस्तक आदर, नमस्कार, कृतज्ञता असी भावना व्यक्त करनलाई योग्य जागापराच झुकावनला होना. पर येको  पयले वा जागा झुकावन योग्य से का नहीं येको बिचार करे पायजे. 

बहुतेक बेरा ज्याहां आमी मस्तक झुकावं सेजन, वा जागा योग्य नहीं रव्हं. वोंज्या उलटो आपरो तिरस्कार, अपमान अना हासा होसे. पर आमरो अविचारलक आमी वोनं जागा को तिरस्कार न करता पुरस्कारच करं सेजन. मंग आमी दुस्मनला न पयचानता वोला कल्याणकारी दोस्तच मानं सेजन अना वोकी पूंजा करनोमा भाराय जासेजन. मंग आमला बेवकूफ बनायके फसायव जासे अना आमला मालुमच नहीं होय काहेका आमी उदात्त, विनम्र भावमा भाराया रव्हं सेजन. कभी कहीं काई उच निच दिसेव बी तरी 'सिस्टीमच खराब से' 'सरकार काहीच नहीं करं' 'मोरो एकटो को कहेव/ करेवलक का होये' असो कय के हात वोऱ्या कर देसेजन. असो करके आमी आमरा न रव्हता, स्वत्व न जपता, विवेक अना बिचार न करता दिगर का भय गया. खुदला बिसर गया, बिचार करनो भुल गया. असलमा अज को घसरतो समाज की याच हकिकत से. समाज को विकास करनो से तं स्वाभिमान जगावे अना बिचार करन की खुदला आदत लगावनो अति आवश्यक भय गयी से. आमरो येनं अच्छो कदम को अनुसरन आवनेवाली पिढ़ी बी करे अना एक सशक्त, सुदृढ समाज बने. आमरो भविष्य की पिढ़ी आमरो हर सोच अना कृती ला विवेकपूर्ण नमस्कार करे.

जेनं रोज मोठोजीनं आपरो देहा ठेईन वोनं रोज मी मोरो एम फिल को प्रबंध को काम बाजूला ठेयके हाकून टाकून उनको अंतिम दर्शन लाई घरं पोहोचेव. आपसुकच मोरा हात उनको पायला स्पर्श कर के जुड़ गया. उनको चेहरा आनंदी दिसेव. मोला उनकी या कहानी कजाने पर आपसूकच याद आयी. मोरो मोठोजी ला मोरो आदरयुक्त नमस्कार 🙏

डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगाव/ उलवे, नवी मुंबई 
मो. ९८६९९९३९०७

********



34
 🌸 पोवारी🌸
 
मायबोली से आम्हरी पोवारी,
भाषा अना  संस्कार  पोवारी।

छत्तीस कुर पंवार  की भाषा,
बड़े खूबच यव सबला आशा।

जन्मभूमि  मालवा की माटी, 
कर्मभूमि  वैनगंगा की घाटी।

आपरी भाषा का राखो मान,
बढावबीन सब येको सम्मान। 

सबझन बोलो पोवारी बिंदास,
यव पोवार समाज लक़ आश।

माता तुल्य से आमरी पोवारी
ठेयो येको मान तुम्ही संस्कारी 

पोवारी प्रचार को करो जतन् 
मोरा सप्पा पोवार भाई बहन

✍️ऋषि बिसेन
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35
आमरी शान मातृभाषा पोवारी
----------------🚩🚩🚩-------------
मातृभाषा आमरी पोवारी l
मातृभाषा की महिमा से न्यारी‍ l
मातृभाषा या माय को समान,
आमरी शान मातृभाषा पोवारी ll

मातृभाषा ला कहो पोवारी l
मिटन न् देव नाव पोवारी l
पवारी नहीं पोवारी कहो,
आमरी शान मातृभाषा पोवारी ll

आमरी भाषा आमरों मान l
याच आमरी खरी पहचान l
नोको करो नाव ला छेड़छाड़,
आमरी शान मातृभाषा पोवारी ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शनि.03/12/2022.
-----------------🚩🚩🚩---------------


36
 पहेली
     ***
बाचनोमा अना लिखनोमा,
पहिलो पडसे मोरो काम |
सदा रहू तुम्हरो संगमा,
 सांगो का कसेती मोरो  नाम |(चष्मा )
    . पहेली
     **
आपलो संगमा खूब निभावसे नातोला,
जमीन, चिखल, पानिमा आवसे कामला |
नाव सांगो सोपो जासे समज आवनला ,
ओको बिगर नही  जम काम करणला  |(चपल)

पोवारी साहित्य सरीता ७५
दिनांक ३:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१

******


37
पहचान साती पोवारों को संघर्ष 
                                          ---------------🚩🚩🚩----------------                                          
पोवार   कभी भटक‌ नहीं सकत l
पहचान कभी बदल नहीं सकत l
पूर्वजों को प्रति से सब मा वफादारी,
संघर्ष लक मंघ् हट नहीं सकत ll

अस्मिता आपली छोड़ नहीं सकत l
सच्चाई लक मुख मोड़ नहीं सकत l
साजिशों को प्रति सावधान सेत सभी,
संघर्ष लक मंघ् हट नहीं सकत ll

इतिहास आपलों भूलाय नहीं सकत l
षड़यंत्रों ला आता चलाय नहीं सकत l
भविष्य को प्रति  सेत जागरूक  सभी,
संघर्ष लक मंघ् हट नहीं सकत ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शनि.०३/१२/२०२२.
------------------🚩🚩🚩---------------


38
बेटी लक्ष्मीस्वरूपा नही कोनी जिनुस

हामरो पोवार समाज मा दहेज मांगन की कुरुती नहाय।या मोठो गर्व की बात से। 
हामरो समाज की बेटी, बहु साठी सम्मान अना गर्व की बात  से।दिगर समाज मा टीका अना दहेज को नाम परा बेटी -बहु गिनला प्रताड़ित करसेत। दिक्कार से असा समाज परा, जो आपरी बेटी भी देसेती अना मोटी रकम भी, बेटी का कोई समाईन सेका वोको मोल - भाव करसेती।
       भोयर अना पवार कवन वाला लोख हामरो समाज की बेटी को रोटी बेटी करबी कसेती। बेटी का कोनी जीनुस दिखसे का इन ला
बेटी शक्ति स्वरुपा,लक्ष्मी स्वरूपा से वोको सम्मान करो!बेटी को कन्यादान कारके पुण्य कमाओ।
बेटी ला शिक्षा, संस्कार, संस्कृति, आपरा रिती -रिवाज सिखाओ। आपरा माय -बाप समान, सास- ससुर की सेवा, सम्मान अना प्रेम करनो सिखाओ।

धन्य सेजन हामी अना हामरो समाज की बहु बेटी।

हामरो समाज मा कोनी नियम -धरम पालन की सक्ति नहाय, घूँघट प्रथा नहाय। येको मतलब यों नहाय की काई संस्कार नहाती यों प्यार से माय बाप गिन को, येको आजकाल की बेटी बेटा गलत फायदा उठाय रहया सेती। दुसरो समाज मा बिहा करके।

माय बाप को मान - सम्मान,लाड़ प्यार की चिंता किये बिगर,आपरो मन पसंद बिहा कर रहया सेत। असो करन  को पैयले जनम देन वाला माय बाप को बारे मा थोड़ो तो बिचार करो।

हामरा पोवारी संस्कार, सनातनी धरम कसेत की बेटी ला देवी समान पूजा करो, सम्मान करो, लाड़ करो, प्यार लक राखो, उच्च शिक्षा दो अना साजरा संस्कार देव। जेन घर मा बहु बेटी को सम्मान होसे, वोन घर मा सुख -समृद्धि की कभी कमी नही होय।

     जय पोवार समाज की
✒️बिन्दु बिसेन बालाघाट

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39
 असी कसी गत भई

सीधो साधो जीवन होतो, नहीं होती पहचान,
एकटी आपरो जीवन को ,करत होती गुनगान।।

ना मनमा होती कला, ना तन मा हाेतो जोश,
असी कसी गत भई, का मला आयो होश।।

कव मम्मी लिख कविता,बढ़ाव आपरी पहचान,
समाज भी तोरो नाव लेये, असी बन लेखीका महान।।

नहीं आयक्यो काही दिवस, मम्मी की मीन बात,
तरी मोरी मम्मी मोला, देत होती साथ।।

जबरदस्ती मा मीन आता, लिख्योच एक कविता,
समाजमा आता आपरी, बनाऊं नवी गाथा।।

लिखनोमा बढ़ी मोरी दिलचस्पी, लिख्यो कविता अनेक,
पोवारी की पहचान बढ़ावु, असो प्रण ठान्यो मीन एक।।

लिखु आता कविता मी, ठेवु आपरा सुबिचार,
असी कसी गत भई, आता मनमा नहाय बिचार।।

सौ. कल्याणी पटले गौतम
मु. नवाटोला (गोंदिया)
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40
मन को घाव
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मन को घाव जेको दीलपर पडसे भारी
समाज सेवा करनकी इच्छा ठेवसे खरी ||टेक||

पोवारी संस्कृतीला आव्हान से टीकावन को
सबजन काम करो संघटन जोडणको |
बिचार करन का दिवस आया सेती खरी ||१||

पोवार को घरमा बोले पाहिजे पोवारी
मन की बात ला सांगे पाहिजे खरी खरी |
जप कर ठेवो कसु माय बोली आमरी ||२||

टूरू पोटुला शिकण की कमतरता नही
भविष्य को बिचार करो सब जन सही |
सुख शांती मा रहो उन्नती होये आमरी ||३||

जाती माच बिहया करो सोच समजकर
रीती रिवाज सोडो नोको करो नेंग दस्तुर |
बिहया को गाना गावन की तऱ्हा से न्यारी ||४||

पहिलो आपलो घर कामला महत्व देवो
समाज सेवा करन की इच्छा मनमा ठेवो |
कीर्ती पोवार जाती की पसरे दुर वरी ||५||

पोवारी साहित्य सरीता ७५
दिनांक ४:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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41
संस्कृति का रक्षण🚩🚩🙏
(सामाजिक लेख: पोवारी भाषा मा)

             धरती मा असंख्य जीव-जंतु सेती जिनमा मानव जात आपरी बुद्धि अन् कौशल को कारन् सब लक़ अनूठी जात आय। आपरो याद राख़न अना वोला पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजकन राखन को गुन् को कारन् ज्ञान अना संस्कृति की निर्मती भई। दुनिया भर मा अलग-अलग प्रकार की परम्परा अना संस्कृति का विकास भयो। समय को साथ कई सभ्यता विकसित भई अना कई संरक्षण को अभाव मा मुराय भी गईन।
            संस्कृति अना सभ्यता का विकास कोनी येक दिवस को काम नहाय अना येला विकसित होनमा सदी लग जासे। इतिहास गवाह से कसो कई आक्रनता इनना आपरो निहित सुवारथ अन् जिद्द को कारन मानवता अना विकसित सभ्यता इनला नष्ट करन मा काई कसर नही सोढ़ीन। अज़ भी देश-दुनिया मा असी सोच का सेती परा सभ्य समाज अना नियमबद्ध समाज मा आता यव बिचार मान्य से की सप समान आती अना सबला आपरी सभ्यता, आपरी संस्कृति ला संरक्षित अना ओको प्रचार प्रसार को अधिकार से।
             सयुंक्त राष्ट्र संघ अना भारतवर्ष को संविधान, मिटती भाषा अना संस्कृति को जतन लाई सप नागरिक इनला अधिकार भी देसे अना सहयोग बी। राज्य शासन बी कई बिसरती बोली इनको संरक्षन अन् सवर्धन को कार्य कर रही सेती।
           हमारो पोवार समाज सैकड़ों बरस लक़ येक समुदाय को रूप मा रह रही से अना कई क्षेत्र मा समाज का विस्थापन भी भयो परा पुरो पोवारी कुनबा आपरो परिवार अना संस्कृति ला संग-संग धरकन चलत रहव्यो, येको कारन आम्हरी विशेष भाषा अना संस्कृति अज़ वरी जीवित रही। परा आता आमरी पोवारी संस्कृति अना भाषा परा बी यव संकट का बादर फिरतो चोय रही से। लोख आधुनिकता अना चलचित्र संस्कृति को प्रभाव मा आय रही सेती मंग आपरी मूल संस्कार इनला सोड़कन पश्चिम का आचार विचार इनला धारन कर रही सेत, जेको कारन् हमारो पुरातन सांस्कृतिक अस्तित्व अना स्थापित सामाजिक मानदंड टूट रही सेती।
          सयुंक्त परिवार को स्वरूप आता कमजोर होय रही से येको कारन् आपरो बुजुर्ग इनकी देखरेख साजरो लक़ नहीं होनको कारन् उनला अदिकादिक तकलीफ होन लगी से। समाज मा तलाक अना व्यभिचार बढ़न को कारन् परिवार को स्वरूप मा  आता दिक्कत देखनमा आय रही से। हमारो सनातनी संस्कार अना समाज का रीति-रिवाज ला मान कम होनको कारन् नवी पीढ़ी ला सही सामाजिक सांस्कृतिक संस्कार नहीं मिलन को कारन, समाज सांस्कृतिक पतन को रस्ता वरी जाय सिक से। असो नहाय की समाज ला यन संकट को भान नहाय, परा संगठित प्रयास को अभाव  को कारन यन दिशा मा मोठो जतन नहीं दिस रही से।
           आपरो सामुदायिक मूल्य, सनातनी संस्कार, राष्ट्रीय अना अतराष्ट्रीय विचारधारा इनमा समन्वय की जरत से अना हर स्तर परा ओको अनुरूप कोशिश करन को से। आर्थिक विकास जीवन को आधार से परा येको संगमा सबला सामाजिक अना सांस्कृतिक बिचार ला बी राख़न को सो। येको लाई अज़, "सतत् विकास" की अवधारना समाज की नवी जरत से। निसर्ग की महत्ता को संग आर्थिक उन्नति अना सांस्कृतिक स्वरूप ला यथावत् राख़कन यन नवी अवधारना को लक्ष्य ला पावनो सरल से।
          हमारो पोवार समाज ना सदा यन लक्ष्य को अनुरूप काम करीसेन येको लाई पंवार ला पृथ्वी की शोभा, असी संज्ञा भी भेटिसे। इतन् आयकन बी हमी ना वैनगंगा को क्षेत्र ला धन-धनसी लक सम्पन बनावन मा लगित साथ देया सेजन्। यन अतीत को गौरव ला नवी पीढ़ी ला सांगनो पढ़े, काहे की इतिहास, वर्तमान ला सीख देसे अना अज़ को काम, भविष्य को आधार से। अतीत, अज़ अना कल को साजरो समन्वय आपरो पोवार समाज, सनातन समाज अना भारतवर्ष ला मजबूत करन लाई खाश रहें, असो मोरो भरुषा आय।
                                                                                                                                                                   ✍🏻ऋषि बिसेन
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42
मन को घाव🙏

चंचल काया चंचल माया मन मा देसे घाव,
निर्मल काया निष्क्षल माया त कसो लगे घाव,

साफ सुथरी छवी धरके सीधो रस्ता चलत जाओ,म
उखी निखी निकालो त मन मा लगे घाव,

साजरो पन का सबच साथी देखसेत डांव,
जरा सी भुल चुक भयी त मन मा लगावत घाव,

अपरी जीन्दगी  की दुख भरी कहानी कोनी ला नोको सुनाव,

मघ हासत करत ठिठौली देखत नही जीव को घाव,

घाव लगयो तन पर त एक दिवस मिटे जरुर,
मन को घाव भरन साठी समय लगसे जरुर,


देवा तोरो सुख दुख को साथी सुमरन करत जाव,
देवा दुनिया देसे घाव तु नोको घबराव,

सबकी जीवन की असीच  कहानी डगमग डोलसे नाव,
खेवनहार श्री राम जी त कसो नही मिटाहे मन को घाव,

विद्या बिसेन 
बालाघाट🙏
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43
                                            💐💐सामाजिक उत्थान को दिशा मा एक कदम💐💐।                                                       
 जय मां गढ़कालीका

 आम्ही सब अच्छा, हमारो कुल परिवार अच्छो यन  आधर पर आमरा विचार भी समाज कल्याण को काम मा आयेती यव अटल सत्य से ।  यको साठी आमला शिक्षण, सकारात्मक विचार, सब मा एकता,संस्कार संस्कृति का आदान प्रदान, आर्थिक मजबूती, व्यावसायिक / नौकरी मार्गदर्शन शिविर अन्  जसो आपलो काम साठी आम्ही समय नीकाल सेजन तसोच समाज उन्नति साठी भी  सहयोग अन्  समय देये पाहीजे तबच समाज मा एकरूपता, समरसता अन एकता पैदा होये।
        समाज मा सर्वगुण संपन्ना 
अन् एक आदर्श समाज बनावन साठी पोवार समाज ला नकारात्मक बिचार, द्वेष भाव , लहान मोठो,असीभावना समाज मालक नष्ट करनो पड़े। काहे की या भावना समाज मा दूरियां पैदा करसे। समाज को उन्नति साती समाज मा आत्मविश्वास पैदा करण की बहुत जरूरत है ।आत्मविश्वास समाज मा तब पैदा होये जब् आम्ही लोग आपलो गौरवशाली इतिहास को आपलो समाज मां प्रचार प्रसार अन्  दर्शन करावबीन।
 सहकार लकाच समाज उत्थान साकार होये।
सर्वे भवंतु सुखीन्ः
क्षत्रिय राजपूत धर्म रक्षित रक्षिता
समाज मा समस्त लोग स्वस्थ रहो, मस्त रहो अन्  सुरक्षित रहो याच मोरी मनोकामना से। 
तुमरो हर एक क्षण मंगलमय अन शुभ रहो।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 
जय राजा भोज            
शुभेच्छूक :-
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राजेश हरिकिशन बिसेन
9420865624
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44
बिहया का पोवारी गीत 

ये गीत या मात्र गाना नोहोत। ये संस्कार आतीन अन परिवार रिश्ते अन दुही पक्ष का संगा सम्बन्धी को बीच रिश्तेदारी को महत्व मान समरसता उल्लास अन आनंद का मंत्र आतीन। 
दुर्भाग्य लक लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति की धुंधाड़ न इनको महत्व ही कम नहीं कर देईस इनला कालबाह्य सिध्द करन मा कोई कसर नहीं छोड़ीस। 
  बंधुओ इनकी उपेक्षा को परिणाम अता समाज चोवन लग्यो कि हमी सांस्कृतिक रुप ला कहाँ होता न कहाँ आय गया ।आज समय की शक्त जरुरत से कि फिरलक हमी अपरी जड़ गिनला पानी सीचजन। नहीं तो समाज को सांस्कृतिक ताना बाना ध्वस्त होन मा ज्यादा समय नहीं लगन वालो से। 
निवेदन से कि समस्त पोवार समाज का भाई बहिन अपरी बोली अपरा रीति रिवाज नेग दस्तूर परम्परा मान्यता आदर्श तीज त्यौहार अन मापदण्ड पर चिन्तन कर फिरलक समाज मा स्थापित करन  अन मान देवावन लाई काम करन की जरूरत से। 
विश्वास से कि येन दिशा सोचकर काम करेहेतिन अना सहयोग 🥀🥀🌹🌹🌷🌷🪷🪷🚩🚩🙏🙏करहेत अन काम करन वाला भाई बहिन को मान बढ़ाहेत। धन्यवाद। 
गीत गावन वाली बहिन बेटी ला कोटि कोटि नमन्।
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45
 वोय बी का दिन होता
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नवतरी मा पोहा मुर्रा की नवधानी,
धानक् बदला पोहा मुर्रा मनमानी. 

नवतरी भर नव् तांदुरका पांढरा अकस्या, 
सुरण की स्याग, तोरक् दानाको रस्सा. 

हातपर की पीठ की मोटी गाकड रोटी, 
दुय रोटीमा आदमीकी भरत होती कोठी. 

पाहुणा आयात् उखळेव पीठ की रोटी, 
वोक् संग पीठकीच गोड वाली लेपशी.

लसूणक् पानाका अकस्या शौकल् खानको,
वोक् पर मुख शुद्धीसाती बिडा पानको.

पांडक् त्योहारला गुंजा बनत होता जरूर, 
तेलका गुंजा, लेपशीका गुंजा खानको भरपूर. 

सुवारी, सुकुडा, आटेल को पाहुणचार, 
खान पिवनको होतो पहले मजेदार. 

आता सब खानको आय जासे रेडीमेड, 
घर बनावन को आता जमानो भयेव डेड. 

                              - चिरंजीव बिसेन
                                           गोंदिया
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46
जय पोवार जय पोवारी की मन मा अलख जगाओ🙏

अगर पगर अधर मा लटकसे सबकी नांव ,

कोनी झिक कोनी तोड़ देखकर डाव
,
समाज सेवा सरल साधो मन लक करके त  देखाओ,

कसी मंजील  मिले नही चाहे कोनी फेकत डाव,

 देख तोरी साधी सच्ची समाज भक्ति सेवा भाव ,

उंदीर वानी लोग देखत टकटकी लगाव,

काहे बडी बड़त चली इनकी  कमजोर डगमग करती नांव

अरे देखो रे भाऊ संगी साथी झिको इनको  हाथ पाय,

गिरनो नहाय पड़नो नहाय सम्भल के राखो सब पाय,

नजर तोरी उच्च शिखर मा खालया राखस नोको पाय,

कौन ईनको संगी साथी  जरा पता त लगाओ,

आव देखो डाव देखो मग धडा़म नर गिराओ,

सम्भलो सच्चाई हमरो संग से देखसे कहा डाव,

समाज सेवा करन निकलया हमी  नही देया कोनी ला भाव,

जय पोवार जय पोवारी की अलख मन मा जगाओ,

विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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47

 ००००दत्त जयंती/पांड पूनवा ०००००
             **
निर्थ लोकमा सती जन्मी , जेकी कीर्ति महान /
अत्री मुनिकी सती अनुसयाजी पतिव्रता जान //

आग  लगाईस नारद मुनीन स्वर्ग मा जायकर/
सांग,  सब नारी मा पतिव्रता से अनुसया नार//

लक्ष्मी,सरस्वती, पारबती तिन्ही  नाराज भई/
सांगसेती वय गरहानों पतिदेवला,चलकर गईं//

तुम्ही तीन देव मिलस्यानी नीर्थलोकमा जावो/
अनुसयाको भंग करो सतित्व ना वापस आवो//

 तिन्ही देव साधु बनगया ना मंग गया चलकर/
अलख जगाईन जायस्यानी अत्रीजी क द्वारपर//

जेवन पाहिजे आमला,वाळजो नांगवी होयकर/
सती पतिव्रता नार अनुसयाला आयेव बिचार//

मंत्रिस पानी मारिस देवपर, पतिव्रता को सार/
लहाना बालक बनगया देव झुलाव पारणापर//

मालुम  भयेव तिन्ही देवीला गयी वहां चलकर/
माफी मांगीन अनुसयाला ना सोळाईन भ्रतार//

त्रिदेव क कृपालका दत्तात्रय को जन्म भयेव/
होउच दि्स पुनवा,पांडपुनवा म्हणुन पुजे गयेव//
              00000000
डी पी राहांगडाले
      गोंदिया
********


48
पोवारी स्वाभिमान🙏

निज पहचान परा गर्व से स्वाभिमान,
निज सम्मान की रक्षा से स्वाभिमान।

पहचान लक़ नहाजन हमी अनजान, 
काय लाई सोडबीन आपरी पहचान।

गर्व से हमला आपरो पुरखा इन पर,
कसो मुरायबीन येला  नवो नाव धर।

सुवारथ को कारन  कसो बिके आन,
नही मिट सिकसे आपरो स्वाभिमान।

आपरी विरासत से  पोवारी अस्मिता,
पूजनीय से या जसो माता अन् पिता।

त्याग बलिदान की कृति स्वाभिमान,
कसो सोडबी हमरो समाज को मान।

जागो जागो ऊभो होनकी आई बेरा,
नाव मिटान वारो ला नोको देव डेरा।

आमरो पुरखा इनको नाव से धरोहर,
जगानो से पोवारी स्वाभिमान घर घर।

🔆🙏🔆🙏🔆🙏🔆🙏🔆
✍🏻ऋषि बिसेन
*************


49
 ll स्वाभिमान की धगधगती ज्वाला ll 
                              ------------------🚩🚩🚩---------------                                  
 मिटाय देयेत अगर नाव पोवारी
ना रव्हन की जात पोवार
ना रव्हन की भाषा पोवारी l
येला मिटावन साती
पाय धोयके दिन -रात भिड़ी से
जयचंदो की सोच आसुरी ll

जगाय दो  पोवारी स्वाभिमान
जाग जाये  गली- गली को पोवार
संगठित होय जाएं पोवारी l
सोटा -दुपट्टा लपेट के ‌
जित् उत्  बभराभांड मुंडा पराये
जयचंदो की सोच आसुरी  ll

स्वाभिमान की धगधगती ज्वाला
जब् जयचंदो को करें बहिष्कार 
दसों दिशाओं मा गूंजे पोवारी l
 मुलुख सोड़के सांधी -कोनटो मा
 चुपचाप दड़ाय जाये 
जयचंदो की सोच आसुरी ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु 8/12/2022.
-----------------🚩🚩🚩----------------



50
माय बोली की माया

कहां लक मीले ममता को आंचल की छाया।
उठ जाहे ढोई पर लक माय बोली को साया।।

माय बोली हाम्रो समाज की शान आय।
येला पराई करके काहे रही सेव मिटाय।।

चंदा सुरज जसी माय बोली देओ चमकाय।
रोज माजो येला काई देओ हटाय।।

स्याही बनाओ जबान की कागज विचार का बनाय।
रोज लिखो माय बोली समाज मा देओ छपाय।।

चार ऋतु बाराही मास माय बोली ईठलाय।
दस दिशा मा येको परचम देओल लहराय।।

माय बोली पोवार समाज को आईना आय।
माय बोली समाज ला सुरत दिखाय।।

नोको करो धुमील आरसा की चमक ला।
बनाय कर राखों धाकड़ की धमक ला।।

रूपया पैसा दौलत समाज ला नहीं सम्भालत।
बांध कर राख से सिर्फ माय बोली को बंधन।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर ०८/१२/२०२२
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51
 मोरी भाषा या न्यारी 
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पोवार की बोली या से संस्कारी 
घर-घर पोहच रही से भारी|
मान बढा़वो ऐला बोलस्यारी
लेवो सबजन या खबरदारी||

मिटाय ना सके पहेचान खरी
आगाज भयी से जोरदार भारी|
चाहे बनजावो ओकोसाठी बैरी
साथ देवो सब आता हीतकारी||

बचावन बोलीभाषा या पोवारी
गुंज ऊठे मिलकर ललकारी|
समाज बांधव देव भागीदारी
तब नाव खिलखिलाऐ पोवारी||

आण-बाण-शान से बोली आमरी
रत्न की खाण से भाषा या पोवारी|
साहित्य निर्मितील देबी उभारी
समाजासाठी बनबी हितकारी||
====================
उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११

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52
 " येव विश्वच आय मोरो घर "

येव विश्वच आय मोरो घर।
असी मती जेकि भयी स्थिर ॥१॥

अखिन ज्यादा का सांगनं।
खुदच  बन गयेव चराचर ॥२॥

असा सांगसेती माऊली ज्ञानेश्वर। 
अस  भक्तइनला  चाव्हसे ईश्वर ॥३॥

केतरा  मोठा  आती  ये   बिचार । 
सारो  जगक् कल्याणका बिचार ॥४॥

वसुधैव कुटुंबकम् या विचारधारा।
सार्थ  करसेत  ये  सनातनी सारा॥५॥

जगतकं कल्याणसाती झिजसेत विभूती ।
माणूस  घडावनला  दिन-रात  झिजसेती॥६॥

करसे टोलिचंद बिनती येकच साती।
ज्ञान येव गीताको तुमरं उद्धार साती ॥७॥

ईं. टोलिचंद नत्थुजी पारधी
सनवार ता. १०.१२.२०२२
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53
 पोवारी पर से संकट की छाया
---------------🚩🚩🚩---------------
पोवारी पर से संकट की छाया  l
मिटावन लग्या सेत वोकी काया l
कर्णधारों न् रचीन मोठो षड़यंत्र,
कमजोर करीन समाज को पाया l
पोवारी पर से संकट की छाया ll

नाव बदलन की नीति अपनाईन l
पहचान मिटावन की नीति अपनाईन l
कर्णधारों न्  रचीन मोठो षड़यंत्र,
कमजोर करीन समाज को पाया l
पोवारी पर से संकट की छाया ll

सोया होता उनला  सोवन देईन l
जागरुकों ला शब्दों लक भरमाईन ‌ l
कर्णधारों न् रचीन  मोठो षड़यंत्र,
कमजोर करीन समाज को पाया l
पोवारी पर से संकट की छाया ll

महाकाल न्  समाज ला जगाईस l
समाज न् क्रांति की राह अपनाईस l
आता सभी समझ गया षड़यंत्र,
सुधारण लग्या समाज को पाया  l
पोवारी पर से संकट की छाया ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शनि.१०/१२/२०२२.
-----------------💜💚❤️----------------


54
मायबोली रुपी तुलसी वृंदावन
--------------💚❤️💜--------------
हृदय ला वृंदावन बनाओं l
वोको मा मायबोली की तुलसी लगाओ l
तुलसी ला रोज देव भावना को पानी,
मायबोली रुपी तुलसी ला बढ़ाओं ll

मायबोली लक आये खुशी l
फलें फूलें आमरी पोवारी संस्कृति l
तुलसी ला रोज देव भावना को पानी,
मायबोली रुपि तुलसी ला बढ़ाओं ll

मायबोली लक आये एकता l
होये पोवारी संस्कृति की जोपासना l
तुलसी ला रोज देव भावना को पानी,
मायबोली रुपी तुलसी ला बढ़ाओं ll

छत्तीस कुल को समाज आमरों l
मायबोली येवच रेशमी बंधन आमरों l
तुलसी ला रोज देव भावना को पानी,
मायबोली रुपी तुलसी ला बढ़ाओं ll

(तुलसी वृंदावन की मूल संकल्पना डाॅ. प्रल्हाद हरिणखेड़े इनकी. 
संकल्पना विस्तार इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले)

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शनि.१०/१२/२०२२.
------------------💜❤️💚----------------


55
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जाग मनुवा
(गालगागा गालगा)
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जाग मनुवा जाग रे
मार भ्रम को नाग रे ||

राख दिलमा जारती
लाल धूनी आग रे ||

डुंडका धर के फिरे
वू नकाबी घाग रे ||

आपरो घरला कहीं
छू न डाके धाग रे ||

आंगपर तोरो हगे
कारतोंड्या काग रे ||

ठेच फन 'ना मुंडका
हेड़ बिख की झाग रे ||

पोछ के आस्तीन का
धोव सारा दाग रे ||

धूर्त को कर खातमा
खोल खुद को भाग रे ||

कर हिफाजत खेत की
लहलहाये बाग रे ||
*******
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
*******


56
खुशबू फैले पोवारी नाव की
--------------🌹🌹🌹------------
आता गजर करों मायबोली को नाव को  l
पोवारी शब्द लिखों मायबोली को नाव को l
महिमा बढ़ जाये  मायबोली पोवारी की,
खुशबू फैले दसों दिशा मा पोवारी नाव की ll

उच्चार सही करों मायबोली को नाव को l
शब्द सही लिखों मायबोली को नाव को l
महिमा बढ़ जाये तुम्हारों समझदारी की,
खुशबू फैले दसों दिशा मा पोवारी नाव की ll

अनुशासन दिसे दुनिया ला समाज को l
बौद्धिक स्तर दिसे दुनिया ला समाज को l
महिमा बढ़े समाज को  बुद्धिमानी की,
खुशबू फैले दसों दिशा मा पोवारी नाव की ll

दर्शन  होन देव नाव की एकरुपता को l
दर्शन होन देव  समाज की एकजूटता को l
महिमा बढ़े समाज को विवेकशीलता की,
खुशबू फैले दसों दिशा मा पोवारी नाव की ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शनि.१०/१२/२०२२.
------------------🚩🚩🚩--------------


57
 मोरो भारत देश

रंग मा रंगी से मोरो प्यारो भारतदेश,
पेहरकन सब इत् सप्तरंगी गणवेश।

कई संस्कृति को संगमा लगसे न्यारो,
सबला मोरो भारत लगसे खूब प्यारो।

प्रकृति ना येको स्वरूपला संवारकन,
देवरूप सजाईसे येला इत् आयकन।

देवता इनकी जन्मभूमि से भारतवर्ष,
इनको आशीर्वाद लक़ सबमा से हर्ष।

भारत मा कन् कन् मा ईश्वरको वास,
धर्म परासे सप भारतीय को विश्वास।

त्याग अन् वीरता की भूमि भारतवर्ष, 
तयार सब  शीश चघावन लाई सहर्ष।

सत्य अन्  धरम को मंघ से जीवन,
सनातन ला  निभायकन् आजीवन।

हर युग होता धरम् अन् ज्ञान मा दक्ष,
भौतिकता नही इत् से मुक्तिका लक्ष।

हर सन ला सब मिलकन मनावसेजन,
बंधुत्व सिखावन वाला आम्ही आजन।

किरपा करो प्रभु  सबमा रहें इत् हर्ष,
हर युगमा महान रहें मोरो भारत वर्ष।

✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट

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58
रंग रूप माया जाल
    *******
रंग रूप माया जाल, दुनिया कसी जासे भूल |
गुण की सेका परख, कोनतो चल से खेल ||ध्रु||

कारी कारी कुचकुची, गान कोकिळा से प्यारी
कुहू कुहु से बोली, रट लगावसे न्यारी |
आवाज की से काबिल, मन करसे घायल ||१||

कारो कूचकूच रंग, कोरसा आवसे काम
बहु उपयोगी गुण, आवसे सबको काम |
सबको से मदतगार, रहो कसे खुशहाल ||२||

पोवार की से शान, संस्कार सेती महान
मती नको करो गहाण,समाज को बढावो मान |
चली आयी परंपरा, नको कसू  जावो भूल ||३||

समाज संघटनकी, सबला पढी गरज
एकता को जोश पर, पुरो करो काम काज |
आयी बल्ला चली जाये, सब रहो मालामाल ||४||

गुण को आधारपर, करो सबको चयन
कर्म को ताकद पर, जीवन करो महान |
प्रगती को पथपर, पोवार ला कसू चल ||५||


कारो कूच कुचो
दिनांक ११:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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59
🔷#पोवारी को अतीत अना भविष्य🔷
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     पोवार समुदाय को कर्णधारों न् आज़ादी को बाद सत्तर साल वरि मातृभाषा पोवारी को उपहास करीन अन् पोवार व पोवारी येन् दूही शब्दों को  तिरस्कार करीन.
        लेकिन मातृभाषा पोवारी को पतन, विधि को विधान ला  नामंजूर होतो. येको कारण पोवारी का सुपुत्र  मातृभाषा की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनर्प्रस्थापित करनसाती  २०१८ पासून तन मन धन लक प्रयत्नशील भय गया. आता मातृभाषा पोवारी को भविष्य उज्ज्वल से.
          मातृभाषा पोवारी ला क्षेत्रिय भाषा को दर्जा प्राप्त करावनों येव आमरों प्रथम लक्ष्य से. आम्हीं  प्रबल इच्छाशक्ति अन् संगठित प्रयासों लक येव उद्देश्य शीघ्र प्राप्त करबी.अना येनच माध्यम लक पोवार समुदाय की ऐतिहासिक पहचान पर जे संकट का बादल मंडराय रहया सेती,उनला भी दूर हटावबी.

🌹#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले 
#पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष🔶सोम.१२/१२/२०२२.
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❤️💚💜♥️🧡💛💙❤️💚💜♥️



50
पोवारी 

भारत को पहिलो भाषा सर्वे मा उल्लेखित पश्चिम राजपुताना की पोवारी मध्य भारतमा आम्हरो पुरखाइनको को संग चली आयी । आवनको 300 साल बाद बी जीवित से या बहुत बड़ी बात से । या आम्हरो समुदाय की विशेष निजी भाषा आय ।  या भविष्य मा बी जिवित रव्हनो जरूरी से । काव्य रूप मा साहित्य निर्माण करके पोवारी संरक्षित करनको यव प्रयत्न प्रशंसा को पात्र कार्य से । तुमरो संचालन मा सब कवि इनन बहुत अच्छो प्रस्तुति करिन । सबको अभिनंदन से ।
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51
स्वार्थलका भरी दुनिया 
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
इन्सान रे इन्सान तू 
कसो का स्वार्थी भयेस
खूद को स्वार्थलायी तू
नाता को बली देयेस.
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यहा मंडाय बजार
नाता करके बेजार
कसो लगेव तोला रे
स्वार्थीपणा को आजार.
---------------------------------------
मंग फिरकन देखो 
नातामा होती चहल
मस्त होता यादगार
आपुलकीभऱ्या पल.
----------------------------------------
शब्दसा वचन देसू 
सोडू ना नाता को हात
खुद को स्वार्थलायी मी
नहीं होन देव घात.
----------------------------------------
 यन कर्तव्य पथ ला 
अच्छो होये बोलबालो
बंधुत्व को नाता जुडे
असोच करो उजालो.
----------------------------------------
आता आयी खरी बेरा 
नाता गोताला संभालो
निःस्वार्थ की भावनाला
हिरदामा सब पालो.
====================
उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
रामाटोला गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे) ९६७३९६५३११

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52
खरारी छंद
(२२१ १२, २२२, २१ १२२, २२१ १२२) 
यती- ८,६,८,१० मात्रा- ३२
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पोवार खरो
       क्षत्रिय से
             राजपुताना
                   परमार घराना
उज्जैन रही
       रजधानी
            एक ठिकाना
                  संस्कार खजाना

आबू गिरि को
        अग्निवंश
                धर्म निशानी
                      योद्धा अभिमानी
'पोवार तना 
        पिरथी' या 
              सार्थ जुबानी 
                     लोकोक्ति कहानी
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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
उलवे, नवी मुंबई (१४.१२.२०२२) 
मो. ९८६९९९३९०७
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53
पोवारी अस्मिता पर एक कविता
------------------♥️💚💜-----------------
पोवरी शब्द समाज को प्राण से l
पोवारी शब्द आमरी पहचान से l
पोवारी शब्द मा आमरों मान से l
पोवारी शब्द मा आमरी शान से  ll

जब वरि रहे येव शब्द जिंदों
तब वरि जिंदों आमरों समाज से l
पोवारी शब्द ला धारण करनों
निज समाज पर प्रेम को समान  से ll

येव शब्द जो नष्ट कर रहीं से 
वू संगठन शनि ग्रह को समान से l
जो सहभागी बनें साजिश मा
वू  स्वजन भी राहू केतु को समान से ll

पोवारी शब्द समाज को प्राण से l
पोवारी शब्द आमरी पहचान से ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

गुरु १५/१२/२०२२.
------------------💜💚♥️----------------

54
पोवारी शब्द को अस्तित्व की खोज 
-------------------🚩🚩🚩----------------
इतिहास की गहराई मा 
जसो जसो मी उतरत गयेव l
पोवारी अन् पोवार शब्दों  पर 
प्रेम  मोरो अधिक बढ़त गयेव ll

ये शब्द  सेती बहुत प्राचीन
नित्य मोरो विश्वास बढ़त गयेव l
ये शब्द पहले  होता लोकप्रिय भी
नित्य अनुभव मी करत गयेव ll

येन्  दूही शब्दों  की उपेक्षा 
करनेवालों लक चिंतित होत  गयेव l
येन् शब्दों को आगे मोरो माथा 
विनम्रता लक अधिक झुकत गयेव ll

पोवारों को इतिहास मा
मी नि:शब्द विचरन करत गयेव l
महान पूर्वजों को शब्दों ला 
मन-मंदिर मा नित्य सजावत गयेव ll

शब्दों को मोल समझावन 
नित्य नवो प्रयास मी करत गयेव l
शब्दों को प्रेम को खातिर 
गीत उनका सबला सुनावत गयेव ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु.15/12/2022.
------------------💚💜♥️----------------



55
साहित्यिक श्री डी. पी रहांगडाले ईनको जन्मदिन पर उनको द्वारा लिखित "पोवारी काव्यदीप" प्रकाशनसाती हार्दिक शुभकामना


डी.पी.जी ईनकी । माय भागरता । 
पोतनजी पिता । पुण्यवान   ।।१।।

बरबस-पुरा । गाव से इनको ।
धार्मिक मनको । धनलाल ।।२।।

अठरावो साल । जीवनमा आई ।
धनवंता बाई । अर्धांगिनी ।।३।।

सेत दुय टुरा । छाया एक टुरी ।
भयी इच्छा पुरी । संतान की ।।४।।

बिह्या को बादमा । भया बी.ए. पास ।
बाप करं आस । नौकरी की ।।५।।

पोट पाणी साती । अर्जनिस काम ।
किसानीमा घाम । काहाड़ती ।।६।।

कनिष्ठ लिपिक । अस्सीको सालमा । 
लगी तत्कालमा । खुशी भयी ।।७।।

पदोन्नती भयी । नायब को भार ।
तहसीलदार । बन गया ।।८।।

निवृती को बाद । बिना परपंच ।
उप सरपंच । भय गया ।।९।।

भजन-कीर्तन । टाळ ना मृदंग । 
हार्मोनिय संग । करसेती ।।१०।।

छंद से इनको । गोंधळ, डंडार ।
ड्रामा, कथासार । करनको ।।११।।

पोवारी, मराठी । हिंदी की कविता ।
ज्ञान की सरिता । लिखसेती ।।१२।।

ईनकी से इच्छा । पोवारी प्रसार ।
बोली को प्रचार । समाज मा ।।१३।।

देये "काव्यदीप" । ज्ञान को प्रकाश ।
अज्ञान को नाश । बिसऱ्याला ।।१४।।

ईनकी किताब । कसे गोवर्धन । 
करे संवर्धन । पोवारीको ।।१५।।

जनम दिन की । देसु मी बधाई ।
करू उतराई । अभंग ल् ।।१६।।

   ©✍ इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
           गोंदिया (महाराष्ट्र) मो. ९४२२८३२९४१
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56
बलिदान की सीख

शहिद भय गया अमर, आजाद,भगत राजगुरू जसा जवान।
अमर कहानी आना अमर गाथा,
सिखावसे उनको अमर बलिदान।।

देश धर्म आना आजादी ला,
बचावन को ईनको फरमान।
आम्ही का सिखया सेजन भाऊ,
बचावन लाई आपलो स्वाभिमान।।

पोवारी प्रगट भई त्रिकुट पर्वत लक,
धारा नगरी नाम महान।
उज्जैनी होती पावन राजधानी,
परमार,पोवार होतो कुलनाम।।

अग्नि वंश को प्रभाव मा,
राजा भोज जसा भया किर्तीवान।
प्रसिद्ध भया सब चक्रवर्ती राजा,
पोवार गीन को नाम भयो महान।।

राजेश्वर भोज का आम्ही सिपाही,
धारा नगरी को राखबिन मान।
शिवाजी का भक्त होता राजा भोज,
हिन्दु धर्म को ध्वज को अभिमान।।

माय बोली पोवारी की महिमा,
आना माय गढ़कालिका को करबन गुणगान।।
मालवा को वैभवशाली होतो राज।
बैनगन्गा किनारे फैलाया शासनकाल।।

नव रत्न की सिख का आम्ही सिपाही,
नवी पीढ़ी का आम्ही जवान।
माय बोली ला बचावन साठी,
हमारो सब कुछ से कुर्बान।।

समाज, सम्बन्ध आना अस्तित्व,
बचावन लाई मी का करु बखान।
मिट गयीन कई समाज,
आना मिट गईन की बोली ना गान।।

इतिहास सिर्फ उनको बच से,
जो आपलो अस्तित्व लाई लड़ से।
नोकों बुझन देओ दिपक पोवारी को,
मोरी सब लक विनंती से।।

समय की धारा लक सिख लेओ,
नवा आचार विचार आना प्रमाण।
पर नोकों भुलो भाऊ सनातन,
आना आपली समाज पोवारी महान।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर १६/१२०२२
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57
पोवारी अस्मिता पर एक कविता
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पोवरी शब्द समाज को प्राण से l
पोवारी शब्द आमरी पहचान से l
पोवारी शब्द मा आमरों मान से l
पोवारी शब्द मा आमरी शान से  ll

जब वरि रहे येव शब्द जिंदों
तब वरि जिंदों आमरों समाज से l
पोवारी शब्द ला धारण करनों
निज समाज पर प्रेम को समान  से ll

येव शब्द जो नष्ट कर रहीं से 
वू संगठन शनि ग्रह को समान से l
जो सहभागी बनें साजिश मा
वू  स्वजन भी राहू केतु को समान से ll

पोवारी शब्द समाज को प्राण से l
पोवारी शब्द आमरी पहचान से ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु १५/१२/२०२२.
------------------💜💚♥️----------------


58
पोवारी शब्द को अस्तित्व की खोज 
-------------------🚩🚩🚩----------------
इतिहास की गहराई मा 
जसो जसो मी उतरत गयेव l
पोवारी अन् पोवार शब्दों  पर 
प्रेम  मोरो अधिक बढ़त गयेव ll

ये शब्द  सेती बहुत प्राचीन
नित्य मोरो विश्वास बढ़त गयेव l
ये शब्द पहले  होता लोकप्रिय भी
नित्य अनुभव मी करत गयेव ll

येन्  दूही शब्दों  की उपेक्षा 
करनेवालों लक चिंतित होत  गयेव l
येन् शब्दों को आगे मोरो माथा 
विनम्रता लक अधिक झुकत गयेव ll

पोवारों को इतिहास मा
मी नि:शब्द विचरन करत गयेव l
महान पूर्वजों को शब्दों ला 
मन-मंदिर मा नित्य सजावत गयेव ll

शब्दों को मोल समझावन 
नित्य नवो प्रयास मी करत गयेव l
शब्दों को प्रेम को खातिर 
गीत उनका सबला सुनावत गयेव ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु.15/12/2022.
------------------💚💜♥️----------------


59
मालवा की  संधि (Treaty of Malwa (nearly 1699A.D.)
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बख्तबुलंद  न् जब् देवगढ़ को शासन संभालिस l
औरंगजेब को सामंत राजा की उपाधि पाईस l  
मन मा स्वराज्य को एक सपना भी संजोईस   l      
वक्त आवन पर स्वराज्य को शंखनाद करीस ll1ll

औरंगजेब की सेना को आगे  पराजय पाईस l
पराजित होयके वोन् मालवा ला प्रस्थान करीस l 
राजा छत्रसाल बुंदेला ला  सब हाल सुनाईस l
महाराजा छत्रसाल न् तुरंत पहल करीस ll2ll   

छत्रसाल न् पोवार सरदारों ला बुलाईस l
बख्तबुलंद अन् पोवारों मा संधि कराईस l
पोवारों न् सैनिक मदद को आश्वासन देईन l
बख्तबुलंद न्  भी राजाश्रय को ‌वादा‌ करीस ll3ll

बख्तबुलंद न् ससैन्य देवगढ़ कर प्रस्थान करीस l
औरंगजेब को खिलाफ वोन् दुबारा युद्ध छेड़ीस l
पोवारों को सहयोग लक विजय हासिल करीस l
देवगढ़ मा निज स्वराज्य की स्थापना करीस ll4ll

विजय को पश्चात पोवारों को सत्कार करीस l
पोवारों ला सेना मा अनेक पद बहाल करीस ‌ l
बख्तबुलंद न् खेती योग्य भूमि दान  मा देईस l
गांव बसावन ला पोवारों ला प्रोत्साहित करीस ll5ll 

पोवारों न् बख्तबुलंद सीन समझौता करीन l 
युद्ध मा बख्तबुलंद ला विजय हासिल कराईन l
शासक निर्माता को रुप मा कामयाबी पाईन l
अन् वैनगंगा अंचल ला समृद्धशाली करीन ll6ll
                                                                                                                       
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
powaribhashavishvanavikranti@gmail.com.
#गुरु15/12/2022.
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60
 पोवारी माय बोली🙏

पोवारी माय बोली पर नोको करो प्रहार सच्चाई से खरो खरी पोवारी भाषा बोली ला सब करो स्वीकार,

गर बदल जाहे पोवारी त नही रहेत माय बोली का रिती रिवाज अना संस्कार नोको करो माय बोली पर अत्याचार,

सरल से भाषा माय बोली पोवारी 
सुन्दर सजीलो से येको लक घर द्वार खिल  से सबको मन बोलो त पोवारी एक बार,

मनभावन बोली नहाय ऐकली सब बनया हमी माय बोली का शिपेशालार अलख जगावनो से बोली की सबला भया हमी तैयार,

जग मा ऊचो से नाव करनो माय बोली को ठेवनो  से मान, करो जतन मन लक माय बोली को नोको करो तिरस्कार,

क्षत्रीय पोवार आजन हमी माय गढ़कालीका कुल देवी हमरी राजा भोज  का वंशज हमी   मन लक करसेजन सबको स्वागत सत्कार,

आओ मिलकर जतन करो भाऊ बहिनी काका मामा मावसी नोको करो माय बोली पर प्रहार नोको करो तिरस्कार,

जय श्री राम जय माय गढ़कालीका जय राजा भोज🚩🙏🚩


विद्या बिसेन 
बालाघाट🙏
*******


61
धारा नगरी
  *****
धारा नगरी का आमी आज पोवार,
समाज का बन्या रहो मदतगार |१|

एकलो दुकलो को रहे कसो काज,
संघटन को काम पर से गरज |२|

तुटत चल्या सेती आमरा दस्तुर,
एकोपर बसकर करो बिचार |३|

समाज संघटन ठेवो मजबुत,
दुसरा कसा करेती मोठी हिमंत |४|

मातृभाषा आमरी ठेवो जपकर,
बोलो शानलक आपलो घरपर |५|

माय बोली की बनीसे मिठास,
 बोलकर देखो सब लगसे खास |६|

गाना गावणला कसी रहे शरम,
नही कवनेवालोंको से का धरम |७|

माय सरीखो करो सब व्यवहार,
जगमा रहे तुमरी कीर्ती अमर |८|

हेमंत कसे ठेवो एवढी समज,
नवो बने आमरो पोवारी समाज |९|

पोवारी साहित्य सरिता ७७
दिनांक:१७:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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62
🌻 पोवारी संस्कृति महान🌻

बसी से भाऊ सबको कंठ जबान,
लहान मोठा करसेती जेको मान ll

जेको लक जुड़ी से संस्कृति ज्ञान,
निभाव सेती सब परंपरा  महान ll

दया करुणा प्रेम रस की से खान,
समाज संगठन को देसे जो ज्ञान ll

 पोवारी त्योहार की बात महान,
विक्रमादित्य राजा ,भोज महान ll

माय गढ़कालिका को से वरदान,
पोवारी संस्कार संस्कृति महान ll

देश की रक्षा अन्नं दाता को ज्ञान,
पोवार/पँवार बेटा बेटी महान ll

शिक्षा क्षेत्र मा से बहुत योगदान,
कर्तव्य निष्ठा नौकरी की शान ll

देश विकास मा मोल को योगदान,
क्षत्रिय धर्म लक बनसे बलवान ll

डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏
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63 
समय की धार , आना कुदरत की मार,
सबको कर देसे छापामार।
जो समय आना समाज लक खेलसे,
ओको नाम इतिहास समाज मा रवहसे बदनाम।।

जयचंद पहले भी होता,
आब भी सेती विद्यमान।
पर बहुत दिन रवह ना टिक,
इनको मान आना समाज सम्मान।।

पोवारी को सिपाही संग,
होय जाहे अगर उनकी टकरार।
ओन दिन ला दिन मा दिखेती,
नव गृह  आना तारा महान।।

तुम्हारी ख्याती ला नोकों करो बदनाम,
पोवारी संग पवारी को नोकों करो गान।
नहीं त मिट जाहे छप जाहे,
तुम्हारी ख्याती ना तुमहारो नाम।।

आज भी इतिहास को गद्दार की उपाधि से,
जयचंद नाम की अपयश भारी से।
नोकों करो आपलो नाम बदनाम,
आज भी सेती समाज मा जागृत इंसान।।

छत्तीस कुल मा खबरा नोकों बनो,
खबरदार सेती समाज का कर्णधार।
आज की या रचना लिख से दिलदार,
ना नाम की चिंता ना जीवन को अरमान।

पर जयचंद होय जाव खबरदार,
मोरो जसा कई मिलेंत सरफीरा,
आना कई मीलेती पहरेदार ।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर १७/१२/२०२३

*******


64

 सामाजिक चिंतन

अगर मूल अस्तित्व को संरक्षण करनो से , कोणी को द्वारा जो बी सामाजिक गलती भयी से वोला सुधारनो से त ढुलमूल की नीति नही चलन कि । 

सत्य की स्थापना को लाय व्यक्तिगत भावनाइनकी , स्वार्थ की तिलांजलि देनो पडसे या बात ध्यान मा राखनो पड़े । 

आपलो समाज की पहचान को असर जीवन मा हर व्यक्ति परा पडसे मुन वोन पहचान की रक्षा की जबाबदारी बी  हर व्यक्ति से । कोणी दुसरो अगर समाज की पहचान बिगाड़े त् वोला सामूहिक रूपमा रोकनो बी पड़े । 

समाज एक दूय को नही त् अनगिनत लोगइनकी धरोहर आय   या बात खुदला समाज को ठेकेदार समझ लेनो वालोइनन समझ लेनला होना । 

बाहर जायके  जाती जोड़के समाजकी बर्बादी करनको कोनीला अधिकार नाहाय । 

कोनीला जाती को नाम बदलनको अधिकार नाहाय । 

कोनीला आमरो समाज मा दुसरोइनला स्थान देनको अधिकार नाहाय । 

समाज धर्म को पालन न करे वोला समाज द्रोही कवनो पड़े। 
कोणी न बी समाज द्रोही नही बल्कि समाजसेवी बनन की जरूरत से ।

*********



65
शीर्षक: नहीं का बुगी?
**********
गुरू बहरा 'ना अंधरा, बस्स, नहीं का बुगी?
चेला चपाटा चंदरा, बस्स, नहीं का बुगी?

उत्क्रांती मा सबदून ऊच्ची, जागा मिली पर
मानव उलटो बंदरा, बस्स, नहीं का बुगी?

गुण भले कागद पर नब्बे, सौ मिल्या ना! 
दिमाग मा दस पंधरा, बस्स, नहीं का बुगी?

लगाय चस्मा सजाय घोगा, गोरी गावता
हिवरो सिवार धुंदरा, बस्स, नहीं का बुगी?

हवस्या संग गवस्या नवस्या, लूटे परसादी
सच्चोला फुल फुंदरा, बस्स, नहीं का बुगी?

मुनीम बनू येनं लालच मा, हुड़की खंदखंद
टोंघरा कुहूंगा लंगरा, बस्स, नहीं का बुगी?

खानो कम फेकनोच जादा, सड़ा पाड़नो
होऱ्या पाखरू उंदरा, बस्स, नहीं का बुगी?

मरी माय ला खलता खाजो, तऱ्हा तऱ्हा को
खरी माय ला घेंगरा, बस्स, नहीं का बुगी?

उलटी गंगा बोह्य बोह्य के खसल्या गोटा
सोचला आयेव मोंदरा, बस्स, नहीं का बुगी? 
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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेड़े 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
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65

शीर्षक: खबराकरन

 शहरमां जायखन टुरा-टुरी भय गया सब बावरा।
आंतरजातिय बिह्या करखन कर सेती खबरा ॥ १॥

पढ-लिखखन समजसेत खुदला मोठा ज्ञानी।
टुरा-टुरी पैसा देखकन कर रह्या सेत मनमानी॥ २॥

भूल गया सब आपलं सनातनी संस्कृतीला।
नौकरशाही शिक्षा पद्धतीन बिगाळीस इनला॥ ३॥

लव जिहाद को चलन चल रहिसे जोर शोरमां।
रव्हसेत नवो रिस्तो 'लिव इन रिलेशनशिपमां' ॥ ४॥

असा रिस्ता रव्हसेत पानी क बुलबुला वानी।
नही टिकत ज्यादा दिन वय आती जुगनू वानी॥ ५॥

परिणाम एका खतरनाक सेती सम्भलजाव।
माय-बाप क लाड-प्यार ला नोको मुकाव ॥ ६॥

मोठा भयात शहाणा तुमी मोठा कर्तबगार।
पोवार समाजला कर रह्या सेव बंठ्याधार ॥ ७॥

पागल नोको बनो कुलको नोको करो नास।
हर बात आपल समयपरच होसे ठेवो आस॥ ८॥

रचनाकार:- ईं. टोलिचंद नत्थुजी पारधी सिव्हिल ईंजिनियर 
भंडारा सोमवार दिनांक:- १९.१२. २०२२
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66

कवि कालिदास कृत
अभिज्ञान शाकुंतलम
को एक प्रसंग , जब शकुंतला कण्व ऋषि को आश्रम सोडके जासे । 

ऋषि कण्व -  हे वन देवताइनलक अधिष्ठित तपोवन का सब  झाड़ झुडुपा  ! 
जो शकुन्तला तुमला पानी देये बिना खुद कबी पानी नहीं पीत होती, शृंगारप्रिय होन पर बी जो प्रेम के कारण कबी तुमरा पत्ता नहीं तोड़त होती ,अना जब तुमरो परा पहले-पहल फूल आवत होता, तब जो उत्सव मनावत होती, वा शकुंतला अज आपलो सुसरो घर जाय रही से । तुमी सब  वोला जान की अनुमति देंवो ।

 (तब कोयार की आवाज़ आवसे।वोको तरफ ध्यान आकृष्ट करके कण्व ऋषि कसेत )

ऋषि कण्व
वनवास का साथी सब झाड़ झुडुपइनन  शकुन्तला ला जान की अनुमति देय देई सेन । तबच  उनन  मधुर कोयार को द्वारा मोरी बात को उत्तर देइसेन। 

ऋषि कण्व शकुंतला ला कसेत- 
 बेटी तोरो मार्ग मा कमल की बेला लक हराभरा रमणीय सरोवर मिलत, सूर्यकिरण को  ताप लक बचायके राखने वाला  झाड़ की छाया रहे ! बेटी तोरो मार्ग की धूल कमल को पराग को समान कोमल होय जाएत् ! पवन शान्त अना  येन यात्रा को लाय रस्ता अनुकूल होय जाहे ! बेटी तुमरो शुभ हो।



67
समाज हितकारी 
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चल रे इन्सान चल तू
हात मा धर मशाल तू .१

पोवारी को पताका
समाजमा फैराव तू..२

सत्य को देयके साथ
कर गलत बेनकाब तू...३

पोवारी उत्थान ला
बन जाय जहाल तू....४ 

मार्ग भटकू नोकोस
बन हितकारी खास तू.....५

समाज को काम लायी
सेस समाज कि आस तू......६

समाज हित मा झोककर
साजरो कर विकास तू.......७
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११
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68
 संस्कृति की संवाहक

धरती परा शांतिपूर्ण अच्छी सभ्यता लायी अच्छा संस्कार, नीतिमत्ता , सदभाव जरूरी सेत्। 

अच्छी संस्कृति, नीति, धर्म, संस्कार की मूल संवाहक अगर कोणी रहे त् वा आय नारी । 

नारी द्वारा च भविष्य कसो रहे यव तय होसे । 

भविष्य गढनो से त् समाज की नवी पीढ़ी की बेटाबेटी मा संस्कार को रोपण आवश्यक से । 

पाश्चिमात्य खुलोपन, स्वतंत्रता, उदण्डता , अनियंत्रित सोच, स्वार्थपूर्णता, निर्बन्धता , अल्हडता , व्यभिचारिता रोकनो से त् भारत की नारी ला स्वयमसिध्द रूप लक आब अच्छी संस्कृति की संवाहक बननो पड़े । परम धर्म व निष्ठावान कर्म लक नारी उत्थान की  दिशा खुदच तय करनो पड़े, ताकि सुंदर सुसंस्कृत भविष्य को निर्माण होय सके ...

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69
स्वाभिमान

स्वाभिमान जोपासन साती धरम पायजे
पोवार कवनला कायला शरम पायजे

जात संस्कृती जपनो सच्चो आपलो कर्तव्य 
पोवार पवार एक, नही भरम पायजे

महाकाल को ध्वज वाहक से पोवार खरो
आता पवार नाव सुधारण् मरम पायजे

देश धरम जाने पोवार, वीर पुत्र खरो
स्वर्ग समाज मा जागा भेटं करम पायजे

सुख अना दुख योवच जीवन को सत्य से
समाज संभालन् स्वभाव नरम पायजे

अहिंसा का पालक सनातनी विचार सेती
अग्णिवंशीय पोवार, सत्य चरम पायजे

बिड़ंबन पोवारंकी खुदला पवार कसे
बडबोल दात तोडन खान तुरम पायजे

शेषराव येळेकर
दि.२२/१२/२२
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70
गुमनाम इतिहास की नवी खोज ( कालखंड लगभग 1700A.D.)
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सुनो इतिहास नवो सुनावू  सू  l
गुमनाम इतिहास लक परदा उठावू सू l
पोवारों को स्थानांतरण मा,
राजा छत्रसाल की भूमिका समझावू सू  ll

उत्तर मा मालवा का राज्य होतो l
दक्षिण मा देवगढ़ को राज्य होतो l
प्रजा को नित्य आवनो जानो होतो l
एक दूजो को दर्द  मालूमात होतो ll
सुनो इतिहास नवो...

छत्रसाल मालवा को राजा होतो l
बख्तबुलंद देवगढ़ को राजा होतो l        ‌‌         
दूही औरंगजेब ला शत्रु जानत होता l
शिवाजी ला प्रेरणास्रोत मानत होता  ll 
सुनो इतिहास नवो ...

बख्त न्  युद्ध जब  छेड़ीस l
औरंगजेब न्  वोला हराईस l
हारकर भी हार नहीं मानीस l
मालवा जायके छत्रसाल की भेंट लेईस ll
सुनो इतिहास नवो...

छत्रसाल न्  बख्त को हाल जानीस l
बख्तबुलंद का हौसला बढ़ाईस l
मालवा मा ‌‌सैनिक  संधि कराईस l
पोवार सरदारों की सेना देवाईस ‌ ll
सुनो इतिहास नवो...

पोवारों को दल देवगढ़ आईन l
बख्तबुलंद ला विजय  देवाईन l
सेना मा पद -प्रतिष्ठा खूब पाईन l
वैनगंगा अंचल में गांव बसाईन ll
सुनो इतिहास नवो...

पोवारों को स्थानांतरण अनोखो होतो l
स्वराज्य की प्रेरणाच प्रेरक तत्व होतो l
छत्रसाल को भी वोको मा योगदान होतो l
येव सत्य अजवरि गुमनाम होतो ll
सुनो इतिहास नवो...

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुरु.23/12/2022.
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71
                           पोवारी क्रांति को काया प्रवेश   ‌                          
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कसो बितेव 2018 पासून
2022  को पांच साल को समय 
कसो बित गयेव  सपनवानी
पोवारोत्थान की धुन मा 
काही पता भी नहीं चलेव l

वा दूर उभी मुस्कुरात होती 
तुम्हीं भी थोड़ो मुस्कुराय‌ देयात  l
मिट गयी दूही को बीच की दूरी 
वा तुम्हारों जवर आय  गयी l
तुम्हारों मन मा समाय गयी 
तुम्हारी काया मा प्रवेश कर गयी l
येव सब कसो संभव भयेव?
पोवारोत्थान की धुन मा 
काही पता भी नहीं चलेव l

वोको आयेव लक मिट गयी
तुम्हारों मन की  निद्रितावस्था l
वोको आयेव लक आय गयी
तुम्हारों मन मंदिर मा चैतन्यता l
वा तुम्हारों मन मा समाय गयी 
तुम्हारी काया मा प्रवेश कर गयी l
तुम्हीं  वोला अपनाय लेयात  l
येव सब कसो संभव भयेव ?
पोवारोत्थान की धुन मा 
काही पता भी नहीं चलेव ll

ध्वजा होती क्रांति की वोको हाथ मा
तसी ध्वजा तुम्हीं अपनाय  लेयात  l
पोवारोत्थान को उदघोष करत 
सबजन ध्येय पथपर बढ़ गयात  l
वा तुम्हारो मन मा समाय गयी 
तुम्हारी काया मा प्रवेश कर गयी l
येव सब कसो संभव भयेव  ?
पोवारोत्थान की धुन मा 
काही पता भी नहीं चलेव ll

बिखरया होतात सब चौफेर
धीरु धीरु महासंघ बन गयेव l
मातृभाषा मुस्कुरान लगी 
पोवारी क्रांति भी मुस्कुरान लगी l
वा तुम्हारों मन मा समाय गयी 
तुम्हारी काया मा प्रवेश कर गयी l
येव सब कसो संभव भयेव?
पोवारोत्थान की धुन मा 
काही पता भी नहीं चलेव ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवार समाज वैचारिक क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शुक्र 23/12/2022.
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72
 बीहया सोच समजकर करो |
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        बीहया सोच समजकर करो, नही त पच्छतावन की धन से, असा बीहया का जाणकार कसेती, वा गलत बात कसी रहे. आता त जमानो केतरो बदल गयी से. बीहया को पयले फोटो शुटिंग, कपडा लेनो, डीजे, रथ, लायटिंग, घोडा, गाडी, येन सबकी डिमांड बड गयी से. माय बाप की जमीन बिक गयी त चले, कर्जा भयगयेव त चले, पर शान को बीहया होये पाहिजे. अना आपलो तोरा नही जाये पाहिजे. गाव को गावला हांडी हटका देनोमा आवसे. बारा डेरीको मांडो गाळत होता .चहा पर निपट जात होतो. आता मांडो त नही रव, वोको ऐवज मा मंडप डेकोरेशन आयेव अना मांडो को जेवण सुरु भयेव. सादी हरद संग नहानो रव, आता त संगीत हरद, संगीत मेहंदी, संगीत नाच गाना सुरु भयेव. गाव का रेहका, खाचर मुराय गया. अना जीप, कार, लक्झरी गाडी को जमानो आयेव. नवरा नवरी घर आयोव परा डेंडा लगत होतो, पर आता त जबरदस्त रिसेप्शन पार्टी करण की चलन आयीसे. पयले का बीहया अना आता का बीहया मा जमीन आसमान को फरक से.
बीचार करण की बात से. पैसा की उधळपट्टी कायला ?

        नवरा नवरी को भविष्य को कोनीच बीचार करणेवाला दिसत नही. अना फिजुल को खर्चा करनला मंग् पुढं देखत नही. माय बाप की मजबुरी से. पढ्या लिख्या, समजदार सेव ,बिचार करण की सबला गरज पढी से.

           मनेरी गावको सेवकराम भाऊ सांगत होतो. आमरो गाव नवरा नवरी का माय बाप न एक जागा बसकर मोठो चांगलो बीचार करीन. उ असो बीहया मा तुम्हला केतरो खर्च आये त टुरी को बाप न कहीस बारा लाख अना टुरा को बाप न कहीस पंधरा लाख, बात अशी बनी, नवरा नवरी को बँक खाता मा अदल बदल करके नोट जमा करणो पढे. बीहया साधो रूप लक होये. बीहया मा पाय धोवन कासो की बटकी, पाणी पिवन गळू, गिलास मिले ओको ओरत्या काहीच नही . ये बीचार केतरा मस्त सेती. ओनच बीचार लक बीहया भया, साधो जेवण, पैसाकी बचत, असो करेव परा नवरा नवरी का भविष्य का स्वप्न पुरा भया. उ घर अज मालामाल से. येलाच कसेती अकल मंद अना हुशारी, पोवारी समाज ला बीहया करण आता तरी नवो जमानो मा सोच बीचार करण की जरुरत से.

पोवारी साहित्य सरिता ७८
दिनांक:२४:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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73
 बुनियादी ढाचा 
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        जेन समाज को बुनियादी ढाचा बिगड़ जासे उ समाज वोन झाड़ को समान होसे जेको जड़ मा डीमक (उध -ई) लग जासे न उ झाड़ धीरु धीरु मुरझाय कर सूखन लगसे अन एक दिन पड़कर अपरो अस्तित्व ला मिटाय  देसे।
    कोई समाज का बुनियादी ढाचा का प्रकार मा पहली बोली होसे। 
  दूसरो समाज का नेग दस्तूर होसेत। 
    तीसरो समाज का रीति रिवाज  होसेत। 
    चौथा संस्कार 
   पाचवा मान्यता 
   छटवा आदर्श 
   सातवा इतिहास 
    आठवा संस्कार 
   नवमा संस्कृति। 
दुर्भाग्य लक आज पोवार समाज को बुनियादी ढाचा भी चरमराय रही से। वर्तमान  मा पोवार समाज  भी अपरी मौलिकता अस्मिता अन अपरी पहिचान लक दूर होय रही से।समाज अन समाज का संगठन भी येन दिशा मा ज्यादा गंभीर नजर नहीं आवत। 
     आज पोवार समाज येन केन प्रकारेण भौतिक साधन अन भौतिक सम्पति अर्जन करन की दिशा मा ज्यादा अग्रसर नजर आय रही से जो कि समय की माँग होय सकसे किन्तु वोको मा खोय नहीं जान चाहिए अपरा पूर्वज पुरखा गिनन जो अपरी पहिचान को रूप हमला विरासत मा उपरोक्त नौ आधार देयी सेत उनको जतन करनो नितांत आवश्यक से। नहीं तो जसो रोम , मिश्र की संस्कृति अन वोय देश खतम भय गयीन। ग्रीक हूण शक यवन अन हिन्दुस्तान मा भी लगभग एक सौ बीस बोली समाप्त भय गयीन वसी च नौबत पोवार समाज की होय जाहे ।येको लाई कोमलप्रसाद राहँगडाले को पुरो पोवार समाज अन समाज का संगठन हिनला निवेदन से कि येन दिशा मा गंभीरता कल विचार कर अन काम कर अपरी पहिचान ला बनाओ। धन्यवाद।

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74
पोवारी क्रांति : सामाजशास्त्रीय ज्ञान को वरदान
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   महासभा नामक संगठन द्वारा-        
 1.पोवार कहो या पवार कहो  l
2.सीयाराम कहो या सांई राम कहो l
3.सजातीय विवाह करों या विजातीय !
4.सनातन धर्म ला मानो या न मानों l    
5.आमला सब चल् से l
      उपर्युक्त प्रकार की नीति अपनायके पूरो पोवार समाज  ला अस्थिरता कर धकेल देईस. लेकिन सामाजशास्त्रीय ज्ञान  अन् सामाजिक दृष्टि लक महासभा की नीति की समीक्षा करनों पर या बात  खुलकर सामने  आयी कि * वोकी नीति को कारण पोवार समाज की मातृभाषा, संस्कृति व विशिष्ट पहचान नष्ट होय रही से व समाज अस्थिरता अन् अराजकता को दिशा मा  जाय रही से. अतः सोयेव  समाज ला जगायेव गयेव . परिणामस्वरुप वर्तमान मा  *महासभा की गलत नीतियों को विरुद्ध समाज मा सर्वत्र क्रांति को माहौल को चित्र स्पष्ट रुप लक दिस रहीं से.
       उपर्युक्त क्रांति को श्रेय कोनी व्यक्ति को नहीं बल्कि  सामाजिक शास्त्रों को ज्ञान ला जासे. वर्तमान पोवारी क्रांति या सामाजिक शास्त्रों को ज्ञान अना सही भाषिक , धार्मिक व सामाजिक  दृष्टिकोण (Ligustic , Religious and Social approch) की देन आय.
जय सियाराम l जय पोवारी ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
रवि.25/12/2022.
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75
🪷पोवारी साहित्य सरिता🪷
ऐतिहासिक सामाजिक लेख
 
🌟नगरधन अना पोवार संघ🌟

            मध्यभारत मा आमरो समाज को इतिहास रामटेक को जवर नगरधन लक़ शुरू होसे। नगरधन को जूनो नाव नंदिवर्धन होतो अना यव विदर्भ की प्राचीन राजधानी होती। नगरधन परा कई राजवंश को शासन रहयो। महाराजा भोज को काल मा उनको राज्य विस्तार मध्यभारत वरी होयों होतो। उनको भतीजा राजा लक्ष्मणदेव पँवार ला मध्य भारत को शासन मिल्यो होतो अना वय खुद नगरधन आयकन विदर्भ का राजा भइन। इतिहास मा सन ११०५ मा उनको नगरधन आयकन शासन करन को उल्लेख  भेटसे ।

             १३१० मा मालवा मा प्रमार राजा इनको शासन ख़तम होनको को बाद मध्य भारत मा बी पँवार शासन को अदिक इतिहास नही मिलसे।
देवगढ़ को राजा बुलंद बख्त ना औरंगजेब को प्रभाव लक़ मुक्त होन लाई मालवा राजपुताना का योद्धा इनको सहयोग का आह्वान करीन अना येको बदला मा उनला सैन्य अना राजकरण मा सहयोग देनको उल्लेख से। हमारों पुरखा गिन आपरो परिवार, हाथी, घोड़ा अना अस्त्र-शस्त्र ला धरकन नगरधन मा आयीन। इतन् उनना नगरधन ला मध्यभारत की सबलक मजबूत सैनिक छावानी बनायकन औरगजेब की सेना को प्रभाव ला खत्म करीन। यन समय मा नगरधन को संग सानगढ़ी, सौंदड़, आम्बागढ़ जसो मोठा मोठा किला परा पोवार सेनापति इनको नियंत्रण होतो तसच भंडारा लक सिवनी ज़िला मा पोवार राजपूत इनको विस्तार भयो।

             नागपुर शहर की स्थपना को बाद आमरो पुरखा इनको कई परिवार नागपुर मा बी आयकन रहीन अना मुख्य राजधानी नगरधन देवगढ़ लक़ नागपुर भय गयी। नागपुर परा भोसला शासक इनको कब्जा होनको बाद मा पोवार सेना मराठा सेना मा शामिल भय गयी अना उनना इनको ओडिशा लक़ बंगाल वरी उनकी विजय मा खूब मदद करीन। यन विजय को बाद पोवार इनला वैनगंगा को पार का क्षेत्र पुरस्कार मा मिल गयो। समाज को विस्तार लाँजी क्षेत्र वरी भय गयो। रामपायली, प्रतापगढ़, लाँजी आदि किला पोवार सेना को नियंत्रण मा आ गयीन अना पोवार समाज का अधिकांश कुल नागपुर नगरधन छोड़कन भंडारा(अज़ का बालाघाट अना गोंदिया ज़िला) अना सिवनी ज़िला मा जायकन स्थायी रूप लक़ बस गईन।
           आता नगरधन को आसपास आपरो समाज की बसाहट नहाय परा ज़िला गज़ेट, जनगणना दस्तावेज को संग छत्तीस कुर पंवार इनको भाट इनकी पोथी मा समाज को नगरधन आयकन मध्यभारत मा विस्तार का पुरो इतिहास वर्णित से। नगरधन मा आयकन् आपरो पोवार समाज को छत्तीस कुर को संघ एक सैन्य समूह को रूप मा स्थापित भया अना यहाँ लक़ एकतीस कुर की वैनगंगा क्षेत्र मा स्थाई बसाहट भई जिनकी आपरी भाषा अना विशिष्ट संस्कृति से। आपरी गौरवशाली पोवारी विरासत को जतन कर साबुत राखनों हर पोवार को धरम अना दायित्व से।
🚩🙏🙏🚩🙏🙏🚩🙏🙏🚩

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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76
   कसी से पोवारी लौकी

लगी से आमरो बड़ी मा लौकी,
नज़र से येको पर सबकी चौकी ll

कसेती एक भाजी की देवो लौकी,
लंबी गोल तुम्बा वाली जी लौकी ll

लहान मोठा सबला भाये लौकी,
धापुड़ा की शान ताजी  लौकी ll

मांडो पर की शान बेला की जान,
ताजी भाजी की लौकी से शान ll

बनवो जूस आता पटकन आता,
रोग भागावो सब झटकन आता ll

पोवार/पँवार को से पोवारी नाता,
माय गढ़कालिका आमरी माता ll

जसी भाषा पोवारी आमरी जान,
बनावसे पोवारी संस्कृति महान ll

पोवारी भाजी मा से लौकी महान,
किसकन बनवो अक्सया समान ll

डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏
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77
समाजोत्थान  की नीति के लिए सात दृष्टिकोण   
(Seven Approaches for Policy of Upliftment of the Powar Community.)   
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1. भाषिक दृष्टिकोण(Linguistic Approach) :- मातृभाषा के प्रति प्रेम  विकसित करना, मातृभाषा के ऐतिहासिक नाम का संरक्षण, मातृभाषा का संवर्धन एवं उन्नयन.
2. सामाजिक दृष्टिकोण(Social Approach) :- सामाज के प्रति प्रेम का विकास, इतिहास की जानकारी, समाज की ऐतिहासिक पहचान का संरक्षण. सजातीय विवाह को प्रोत्साहन.
3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण(Cultural Approach) :- सांस्कृतिक अस्मिता का विकास, संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन.
4. धार्मिक दृष्टिकोण(Religious Approach) : - धार्मिक अस्मिता का विकास, सनातन हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा और निष्ठा का विकास.
5. आर्थिक दृष्टिकोण (Economical Approach):-  व्यावसायिक मार्गदर्शन, न्याय-नीतिपूर्वक धनोपार्जन. आर्थिक समृद्धि.
6.राष्ट्रीय दृष्टिकोण(National Approach) :- परिसर प्रेम,अन्य सभी समुदायों के प्रति सामाजिक समरसता, एवं राष्ट्र के प्रति प्रखर स्वाभिमान.
7. वैचारिक दृष्टिकोण ( Conceptual Approach) :- नयी पीढ़ी का वैचारिक उत्थान.  भाषिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों की समझ का विकास.
       उपर्युक्त सात दृष्टिकोण यह पोवार समाज के इतिहास एवं उसके वर्तमान स्वरूप के आधार पर सुनिश्चित किए गए हैं. इन सात दृष्टिकोण के एकात्म स्वरुप को पोवारोत्थान के दर्शन ( Philosophy of Upliftment of the Powar Community.)के नाम से संबोधित किया जा सकता है.पोवार समुदाय के सर्वांगीण विकास के लिए उसके सामाजिक संगठनों को दार्शनिक अधिष्ठान प्राप्त होना नितांत आवश्यक है.

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि, भारतवर्ष.
सोम.26/12/2022.
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78
येरोनी

जसी देखेव मी येरोनी
तोंड मां सुटेव पाणी

येरोनी मां असो गुण
अलग से वा सबदून

हेंबट से हिरवी से जब्
मिठी होसे कारी होयेपर

येन् घातमां खेत् रस्तापर
येरोनी को फर जोरोपर

बोर ला जो सिकसे पचाय
वुच येरोनी ला सिके पचाय

काटा मां छपी जरी रव्हसे
तरी सबको ध्यान वु हेरसे

असी येरोनी ओको अभिमान
आमी खेतीपूत्र बखसेज् बखान

🖊️रणदीप बिसने
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78
पोवार समुदाय को उत्थान को सिद्धांत. 
Theory of Upliftment of the Powar Community.    
      (पोवारोत्थान की सप्तपदी)             
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‌     पोवार समुदाय को  उज्ज्वल भविष्य को निर्माण साती सामाजिक संगठनों की एक स्पष्ट नीति रव्हनों आवश्यक से. पोवार समुदाय को इतिहास व वोको स्वरुप को अध्ययन को आधार पर पोवारोत्थान की नीति मा निम्नलिखित प्रमुख सात पहलू समाविष्ट होनो आवश्यक से - 
1. भाषिक पहलू ( Ligustic aspect) :- मातृभाषा को प्रति प्रेम  विकसित करनो, मातृभाषा को ऐतिहासिक नाव को संरक्षण, मातृभाषा को संवर्धन व उत्थान.
2. सामाजिक पहलू(Social aspect):- सामाज को प्रति प्रेम व अस्मिता को विकास, इतिहास की जानकारी, समाज की ऐतिहासिक पहचान को संरक्षण. 
3. सांस्कृतिक पहलू ( Cultural aspect) :- संस्कृति को
 संरक्षण व संवर्धन, सांस्कृतिक अस्मिता व स्वाभिमान को विकास. सजातीय विवाह ला प्रोत्साहन.
4. धार्मिक पहलू(Religious aspect aspect) : - धार्मिक अस्मिता को विकास, सनातन हिन्दू धर्म को प्रति श्रद्धा अना निष्ठा को विकास.
5. आर्थिक पहलू (Economical aspect aspect) :-  व्यावसायिक मार्गदर्शन, न्याय-नीतिपूर्वक धनोपार्जन. आर्थिक समृद्धि.
6.राष्ट्रीय पहलू (National aspect) :- परिसर प्रेम,अन्य सभी समुदायों को प्रति सामाजिक समरसता व राष्ट्र को प्रति प्रखर स्वाभिमान.
7. वैचारिक पहलू (Conceptual aspect):- नवी पीढ़ी को  शैक्षणिक व वैचारिक उत्थान.  भाषिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विषयों की उत्तम समझ को विकास. वैज्ञानिक व तार्किक दृष्टिकोण को विकास. पुस्तक संस्कृति को विकास.
       उपर्युक्त सात पहलुओं को एकात्म स्वरुप ला  शास्त्रीय दृष्टिकोण लक पोवारोत्थान की सप्तपदी अथवा पोवारोत्थान को सिद्धांत ( Theory of Upliftment of the Powar Community.) असो संबोधित करनो अधिक उत्तम से .येव सिद्धांत सनातन हिन्दू धर्म मा निहित सभी समुदायों साती समान रुप लक उपयोगी व महत्वपूर्ण से.

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि, भारतवर्ष.
बुध.28/12/2022.
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79
 खाई

बड़ी खास बात से विश्वास की कढ़ाई मा।
नोकों पढ़ो भाऊ बाई अविश्वास की खाई मा।।

मिठी मिठी बात की मिठाई,मिले कढ़ाई मा।
झगड़ा की जड़ से अविश्वास की खटाई मा।। बड़ी खास..

माय ला बेटी को भरोसा से बढ़ाई मा।
पर सासु बनकर का मिल से लड़ाई मा।। बड़ी खास...

बेटी भी बहु बनकर माय नहीं मान: सासु माईला।
सासु भी बेटी नहीं मान: बहु बाईला ।। बड़ी खास...

बेटा को भरोसा घट जा से बिह्या को छह माही मा।
दूसरों बेटा दिखन लग्यो नवतो जवाई मा।। बड़ी खास....

घर लक बाहेर जासेती मजा से ज्यादा कमाई मा।
फिर भरोसा काहे टुटयो जीवन की तन्हाई मा। बड़ी खास....

जप नहीं लग आता दौलत की रजाई मा।
केतरो सुकुन होतो कथडी संग चारपाई मा।। बड़ी खास.....

घर छुटयो कुटुंब छुटया रह गया यादन की कहानी मा।
दौलत मिली पर छेद भय गया सुख चैन की भानी मा।। बड़ी खास.....

ठेओ भरोसा येकमेक पर, नोकों जाओ कहासुनी मा।
वापस मिठास आय जाहे कढ़ाई की चासनी मा।। बड़ी खास....

यशवन्त कटरे
जबलपुर 
२८/१२/२०२२
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80
 दिनचर्या का चार प्रहर 
**********
सुर्य निकलता होसे 
चैतन्यमयी पहाट 
चौतरफा पसरसे
पक्षीं की किलबिलाट.

आयेव माथा को वऱ्या
सुर्य महातनी बेरा
लगेव से जीवनमा
एवं प्रहर को घेरा.

तिसरो प्रहरमा दिसे 
सांजबेरा को सुर्यास्त
पुजा पाठ सांजबात 
करो घर घर रास्त.

दिनचर्या को चवथो
प्रहर से रात काल
करसे कार्यमालका
मस्त विश्रांती बहाल.
====================
उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११
**********


81
मी पोवार
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पोवारी माय बोली,ना पोवार जात मोरी
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//ध्रु//

एक धारानगरिको होतो महान राजा भोज
सार मालवा पर होतो जेको एकछत्र राज
उच पूर्वज आमरो,चक्रवर्ती सम्राट भारी  
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//१//

ओन्ज्या लका पोवार आया फी=या दिषदिशा
शिवणी,बालाघाट,गोंदिया भंडारा मा बस्या
पोवारी बाना आमरो,माय बोली पोवारी
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//२//

वैनगंगा क तटपर भयी आमरी बसापती
क्षत्रिय से कुल आमरो, कुल छत्तीसच सेती
राजा भोज का वंशज,दैवत कालिका आमरी 
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//३//

पोवारी मायबोली बोलबिन घरमा दारमा
चाहे आम्ही रवबिन गाव खेळा या शहरमा 
जतन पोवारी को करो ना सुलगावो चिंगारी 
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//४//

पोवार की छत्तिस कुर्,जिनला क्षत्रिय कसेती
खेळा पाळामा आय बस्या खेति बारी करसेती 
तन मन मा पोवारी हर पोवार घर पोवारी 
छत्तीस कुरका पोवार,मोठीजात बिरादरी//५//
                    **
डी. पी.राहांगडाले 
  गोंदिया

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82
 हां मी आव पोवार

हां मी पोवार बोली मोरी पोवारी ౹
हां  गर्वलं  बोलूसू बोली पोवारी ॥१॥

या आय राज घरानों की पोवारी बोली ౹
विक्रमादित्य अना राजा भोज की बोली॥२॥

नोको हिनाओ येला संपृक्त से या बोली౹
खुलकर  शानलं  बोलो  या मीठी बोली॥३॥

गर्वलं सांगूसू मी आव क्षत्रिय पोवार ౹
जगुसू बोलूसू शानलं क्षत्रिय  पोवार  ॥४॥

सनातन धर्म आमरो जगमां महान ౹
सनातन संस्कृती आमरी से महान ॥५॥

संस्कार आमरा ये क्षत्रिय पोवारका ౹
नाहात लेचापेचा संस्कार पोवारका ॥६॥

आराध्य  दैवत आमरा  श्रीराम ౹
अनुकंपा  बरसावसेती  श्रीराम  ॥७॥

नही मिटायसकत कोणी पोवारला౹
नही मिटायसकत कोणी पोवारीला ॥८॥

कवि :- ईं. टोलिचंद नत्थुजी पारधी सेवानिवृत सिविल इंजीनियर 
भंडारा शुक्रवार दिनांक:- ३० दिसंबर २०२२
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83
परमपिता परमात्मा को पावन चरणों मा ३६ कुल पोवारी की प्रार्थना
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🙏हे सर्वशक्तिमान परमपिता🙏

#1. अगर तुमला काही तोड़न को मन करें, त्  आमरों समाज को अहंकार ला  तोड़ देवो .

#2. अगर तुमला काही जोड़न मन करें त, आमरो समाज को स्वाभिमान ला जोड़ देवो.

#3. अगर  तुमरों काही जलावन को मन करें त् आमरों समाज को क्रोध ला  जलाय देवो.

#4. अगर तुमरों  काही बुझावन को मन करें, त् आमरों समाज मा व्याप्त घृणा को भाव ला बुझाय देवो.

#5. अगर तुमरों काही मारन को मन करें त् , आमरों समाज मा व्याप्त दुष्टता ला मार देवो.

#6.अगर तुमरो स्नेह बरसावन को मन रहें त्  आमरों ३६कुल पोवार समाज कर देख देवो, अना आपलो स्नेह की बरसाद कर देवो.

#7. परंतु हे सर्वशक्तिमान प्रभु  मोरों ३६ कुल पोवार समाज पर सदैव आपली कृपादृष्टि ठेवो.

#8. मोरों समाज की मातृभाषा, संस्कृति व ऐतिहासिक पहचान ला नष्ट होन लक बचाय लेवो.

भारतवर्ष, सनातन हिन्दू धर्म अना मानवता को प्रति मोरों समाज की निष्ठा ला बचाय लेवो. 

तुम्हीं सिरजनहार!  
धरती माता को गोद मा मोरों समाज अना मोरी मातृभाषा तुम्हारो सुंदर सर्जन आय!

आमरों समाज, आमरों स्वाभिमान ,आमरों गर्व आय !!

llॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ll

#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.३०/१२/२०२२.
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नवो साल
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हिंदुको नवो साल गुढी पाडवा पासुन सुरू होसे
पर आमला नविन साल १ जानेवारी च दिससे

काय को थर्टी फर्स्ट ना कायको वू नवो साल
भूल गया आपली संस्कृती म्हणून होसेत बेहाल

नवो  साल को धांगडधिंगा,ना पाश्चात्य संस्कृती
जितउत दिससे मानव क मनकी बेढंगी विकृती

थर्टी फर्स्ट क नावपर कही होसे पब मा नाच
कही दारूको चलसे सर्राटा,संस्कृती पर आच

कसे आता जगे नवी उमेद, ना लगे नवो साल
मस्त रातभर रोडपर,नालीमा जिवनको बेहाल

नही काही बातविचार ना लाज लज्जा कशी
अशी कशी पाश्चात्य संस्कृती डोस्कापर बसी

भ्रममालक बाहेर निकलो जिवन करो खुशाल
सब मनाव बिन गुढी पाडवा लाच नवो साल
                  ***
डी.पी. राहांगडाले 
  गोंदिया

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85
मातृभाषा संवर्धन नीति‌ का लाभ : एक महत्वपूर्ण विश्लेषण
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     मातृभाषा संवर्धन  विरुद्ध पवारीकरण की नीति पर एक विश्लेषण निम्नलिखित से-   
                        
      १. मातृभाषा संवर्धन नीति को कारण पोवारी साहित्यिक  निर्माण होय रहया सेत. पवारीकरण नीति को कारण पोवारी  साहित्यिक निर्माण होनो कठीन होय जातो.

      २. मातृभाषा संवर्धन नीति को कारण पोवारी का ग्रंथ प्रकाशित होय रहया सेती. पवारीकरण की नीति को कारण पोवारी साहित्य भी गलत नाव लक प्रकाशित भया रव्हता.

       ३.भाषा संवर्धन नीति को कारण मातृभाषा की जोपासना करन को आनंद  पोवार समुदाय ला  मिल रहीं से. पोवारीकरण की नीति लक आमरों समुदाय येन् आनंदपासून  वंचित होय जातो.

        ४.भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवारी भाषा व पोवार समाज  ये दूही साहित्यिक क्षेत्र मा चर्चा का विषय बन गया.  पवारीकरण की नीति को कारण  पोवार व पोवारी  ये दूही नाव धूमिल होय जाता.

       ५.भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवार समुदाय को नाव साहित्यिक क्षेत्र मा  प्रतिष्ठित होये. पवारीकरण को कारण  पोवार नाव नष्ट होन की  प्रबल संभावना होती.

       ६. सही भाषिक नीति को कारण पोवार समुदाय को वैचारिक विकास  को एक मजबूत आयाम प्राप्त भयेव. पवारीकरण की नीति न्   पोवार समुदाय ला येन्  महत्वपूर्ण आयाम पासून वंचित करी रव्हतीस.

       ७. भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवार समुदाय मा भाषिक अस्मिता विकसित होसे.पवारीकरण की नीति या भाषिक अस्मिता साती घातक होती.

     ८. भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवार समुदाय की युवाशक्ति ला रचनात्मक कार्य को एक उत्तम क्षेत्र उपलब्ध भयेव. पवारीकरण की नीति को कारण येव क्षेत्र लुप्त भयेव रव्हतो.

     ९. भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवारी भाषा कालजयी साबित होये.

       १०. भाषा संवर्धन नीति को कारण पोवार समाज की एकता कायम करन को मार्ग प्रशस्त होये. पोवारी संस्कृति को संरक्षण - संवर्धन ला या नीति पोषक से.

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.३०/१२/२०२२.
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36 कुल की पोवारी को अखिल भारतीय  महासंघ को  पुनर्जीवन : काहे ना कसो ? 
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           राष्ट्र को उद्धार साती समय समय युगांतरकारी  महापुरुष अवतरित होसेती. येला एक  नैसर्गिक नियम को दृष्टि लक देखनो पर  प्रत्येक समुदाय मा भी वोको उद्धार साती  काही व्यक्ति समोर आव् सेती, येन् बात पर  आमरो दृढ़ विश्वास प्रस्थापित होय जासे  .
        36 कुल ‌पोवार समुदाय भी  दिशाहीन होय रहेव होतो. समुदाय की पहचान, मातृभाषा, संस्कृति अना इतिहास ला बदलन को  व नष्ट करन को प्रयास शुरु होतो. पोवार समाज को उत्कर्ष साती १९०५ मा ३६ कुल क्षत्रिय पोवार समुदाय की  एक राष्ट्रीय प्रतिनिधिक संस्था की स्थापना करेव गयी होती. परंतु नागपुर को काही व्यक्तियों की गलत सोच को कारण १९९८  पासून येन् संस्था  पर संकट का कारा बादर मडरान लग्या अना २००६ मा येन् संस्था  मा दूसरों जाति को लोगों ला धसाईन. येको कारण पोवार समाज को अखिल भारतीय संगठन को लोप भय गयेव.
       उपरोक्त परिस्थिति मा  पोवार समुदाय की  ऐतिहासिक पहचान अना सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण साती,  जिनको मा पोवार जाति को प्रति अटूट प्रेम होतो व पोवार जाति को अस्तित्व नष्ट नहीं होये पाहिजे असो जेन् व्यक्तियों ला लगत होतो, असा व्यक्ति कंबर कसके व खांब ठोक के  सामने आवनों स्वाभाविक होतो. अत: विचारों की ज्योति लक ज्योति जलत गयी व अंततः   भारत भर में बिखरया पोवार समुदाय का  अनेक प्रबुद्ध जन २०२० मा अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ को रुप मा एक सूत्र मा बंध गया. अना आपली ऐतिहासिक पहचान ( समाज व मातृभाषा को 
ऐतिहासिक नाव)  व सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण -संवर्धन मा पूरो शक्ति को साथ जुट गया.   
      समस्त पार्श्वभूमी को आधार पर संकेत मिल रही से कि महासंघ को माध्यम लक आमरों समुदाय ला वर्तमान  सामाजिक संकट लक छुटकारा प्राप्त होये.  अना महासंघ को माध्यम लकच  आमरों समाज को उद्धार व पोवारोत्थान  होये. यदि असो नहीं रव्हतो त्   विपुल क्षेत्र मा इतन-उतन बिखरया , विविध  प्रकार का क्षमता  संपन्न अनगिनत व्यक्ति  नि:स्वार्थ भाव लक समाजोत्थान को पावन उद्देश्य लक महासंघ को रुप मा संगठित होयके सही दिशा मा कसा कार्य प्रवण होय जाता ? ये सब व्यक्ति आपलो पोवार समाज ला बचावन को उद्देश्य लक आवश्यक जनजागृति करन दिन- रात  कसा जुट जाता ?   येव काही जादु को चमत्कार नोहोय ! 
      मोरी अंतर्रात्मा कसे कि  विधि को विधान अथवा अदृश्य सामाजिक नियमों  को अनुसारच वर्तमान मा सबकुछ घटित होय रही से.  अतः  प्रत्येक सुशिक्षित व्यक्ति न् नैसर्गिक नियमों ला समझन की कोशिश  करें पाहिजे अना आम्हीं सब जन  अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ द्वारा प्रारंभ करेव गयेव "पोवारोत्थान को महायज्ञ"  सीन आपलो ला जोड़ के  यहां आपआपली आहुति पूर्ण निष्ठापूर्वक देन को कार्य संपन्न करें पाहिजे. आमला आपलो ३६ कुल पोवार समाज ला बचावन को पुनीत कार्य करके  येन् नश्वर जीवन ला सार्थक करनों से . येव एक सुअवसर आमरो  वर्तमान पीढ़ी ला मिली  से. या  आमरों सब  साती परम् सौभाग्य की बात से.

 इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु.29/12/2022.
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🔅 सामाजिक लेख🔅
पोवारी भाषा : पोवार(३६ कुर पंवार) समाज को स्वाभिमान

          आज़ लक़ पच्चीस तीस बरस पहिले आम्हरो अधिकतर समाजजन् आपस मा पोवारी भाषा मा बोलत् होतिन। आजादी को बाद मा शिक्षा को स्तर मा खूब तरक्की भई। नवी शिक्षा राज्य की भाषा को हिसाब लक़ तयार भई परा अंग्रेजी भाषा रोजगार परक भाषा होन को कारन् यव सबको ऊपर आय गयी। पुरातन बोली भाषा जसो पोवारी बोलन वालों आता राज्य वार हिंदी/मराठी बोलन लगया अना टुरू पोटू इन् संग यन् च भाषा मा बात करन लगिन। आजादी को बाद यव धारणा बढ़न लगी की जूनी भाषा लक़ चिपकन रवहबीन त् उन्नति मा मंघ रह जाबिन अना सब हमला गंवार समझेती। उनको बिचार केत्तो सही होतो यव कवहनो जरसो कठिन से परा धीरु-धीरू लक़ पोवारी भाषा पिछड़ती गई।
         
          शहर वाला त् खूबच तरक्की करीन परा अंग्रेजी को शबद मिलायकन हिंदी/मराठी की खिचड़ी कर डाकिन अना आम्हरी जूनी भाषा पोवारी त् हासन की भाषा भय गई। "दीदी ये तो पोवारी ढसरा मारती हैं, पिछड़े लोग हैं, गांव के हैं, पोवारी बोलते हैं, इनको तो हिंदी भी नहीं आती। ये पिंकी तुम तो कान्वेंट में जाती हो, इनसे दूर ही रहो........." असो उपहास देखना मा आयो।
           
           आम्ही त् पोवार क्षत्रिय आजन, धारानगरी का पंवार, राजा भोज का वंशज, त् काय लाई कोनी को मंघा रवहबन, यव त् साजरी सोच सबमा जगी परा पुरखा इनकी भाषा ला उनको च संग मा सोड़ देईन। अज जेन बी चालीस लक़ सत्तर साल का सेती वय साजरी पोवारी समझs सेत् न् बोल भी सिक सेत परा उनना सबलक पहिले खुद पोवारी बोलना सोढ़ीन अखिन आपरी अगली पीढ़ी ला सीखन/बोलन बी नहीं देईन, परिनाम अज़ सबला दिससे। पोवारी भाषा आता जूनी पीढ़ी मा सिमट गयी से । आम्हरी पोवारी आता माय, बडीमाय, काकीजी, फूफाबाई तक अना नहानागन वरी सिमट गई। पुरखाइन की श्यान अना विरासत आमरी भाषा आता उनको संग च ऊपर जाय रही से।

     गोंदिया, भंडारा अना सिवनी ज़िला मा त् गांव गांव मा पोवारी अज़ भी से परा सब लक़ मोठो पोवार संख्या वालो बालाघाट ज़िला मा पंवार भाई-बहिन जरसो ज़ियादा बेहरहम भय गयीन अना सबच आता आपरी धरोहर आमरी यन् भाषा ला नहानागन मा बी मुराय डाकिन। माय बी आता नाती नतरु लक़ टूटी फूटी हिंदी/मराठी मा बोलसे, नही त् वय पिछड़ जाहेत सोचकन, आपरी भाषा ला आपरो हिरदय मा दफ़न कर देईस। रिंकी, पिंकी, पप्पू, गुड्डू न् पोवारी सोडिस त् अहाना, ख़ुशी, मानव, हेयांश, आरना कसो पोवारी मा दुय लाइन सीखेती। उनला त् फ्रेंच, जापानी भाषा भी आवसे परा आपरी मूल भाषा, पोवारी को दुय शब्द भी मालूम नहाय।
 
               दस साल को अंदर मा पोवारी को प्रति थोड़ो पिरम दिस रही से। अज़ सोशल मीडिया को माध्यम लक़ पोवारी मा लिखन वाला, गावन वाला अना बोलन वाला दिस रही सेत्। भाषा ला बचावन लाई कोनी पोवारी मायबोली बचाओ, त् कोनी पोवारी भाषा विश्व क्रांति, त् कोनी पोवारी सत्याग्रह चलाय रही सेत्। कोनी झुंझुरका नाव की मासिक पोवारी पत्रिका निकाल रही सेत् त् कोनी पोवारी उत्कर्ष पत्रिका, कोनी पोवारी साहित्य सम्मेलन, पोवारी साप्ताहिक कार्यक्रम चलाय रही से त् कोनी पोवारी भाषा मा किताब लिख रही सेती। शहर जायकन रहवन वाला जिनना पहिले पोवारी ला मुराईन आता वयच आपरी पोवारी भाषा अना संस्कृति को जतन् का प्रयास कर रही सेत। अज़ भी सबला भाषा को प्रति पिरम से परा झिझक से की कितन् लक़ येकी शुरुवात करबीन।

              सामाजिक संगठना बी आपरी भाषा को प्रति उदासीन भया अना दूसरों समाज ला पोवार मा मिलावन लाई पोवारी भाषा ला खतम् करन मा जुटीन। भाषा संस्कृति ख़तम् त् संस्कृति विहीन समाज ला दिशाहीन करनो सबलक सहज़ रहवसे, येको लाई गौरवशाली पोवारी संस्कृति ला हेंगली अना पिछड़ी संस्कृति सांगकन आधुनिकता को पाठ पढ़ावन लगिन। यव बी यक कारन भयो की पोवार समाज मा सौ को आसपास सामाजिक संगठना भय गई सेत् परा यव समाज को संस्कृति/नाव/इतिहास/भाषा बचावन का काम करता नही दिससेत्। कोनी कर भी सेत त् उनको उपहास होसे। असो मा कसो सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान होहे। अज़ भी सब जगहेत त् आपरी भाषा अना संस्कृति बच जाहे।

            छत्तीस कुर पंवार समाज लाई यव स्वाभिमान को विषय से की येनकी येक आपरी भाषा से। आता बीती बात ला बिसराय कन् आपरी भाषा को प्रति पिरम अना स्वाभिमान जगावनो से। बुजरुग, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज का राजनेता, सामाजिक संगठना अना सप्पाई बुद्धिजीवी इनला येक अभियान चलायकन् आपरी भाषा अना संस्कृति ला बचावन लाई, बढ़ावन् लाई मिलकन अभियान चलावन् की जरत से अना जो अभियान चल रही से उनको सहयोग करन को से।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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88
वाह! वाहा
       ****
काम करो हटके जरा, सब कहेती वाह! वाहा |
माणूस की को से पसारा, भूल गया त स्वाह! स्वाहा |१|

मन पर जेको राज से, काबू मा ठेवसे मनला |
मन जीते उ सब जिते, चमत्कार मिले देखनला |२|

इंद्रिय से जेको बसमा, ओला कसेती महाराजा |
मोह माया को तोळ फंदा, सबको बने प्रिय राजा |३|

निवृत्ती अना वैराग्य को, जेको पवित्र से चोला |
गहरो मन सदबुद्धीको, महापुरुष कसेती ओला |४|

सुख दुःख सहन कर, पक्की होसे आपली आत्मा |
अनुभव की प्राप्ती संग, कृपा करसे परमात्मा |५|

गुरू देवता शास्त्र संत, इनपर अटल श्रद्धा |
बन जासे महामानव, कीर्ती अमर होसे सदा |६|

छट्टी पायरी को मिलसे, समाधान पक्को ओला |
योगी सरिखो बन जासे, आनंद मय रहे चोला |७|

हेमंत सांगे करो आब, खुद को पहलो विकास |
पोवारी समाज को तब, जगमा चमके प्रकाश |८|

पोवारी साहित्य सरिता ७९
दिनांक:३१:१२:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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       पोवारी आँगन

चल रही धीरु धीरु ठंडी की गाड़ी,
पयनो सुट्टर एक बखल्ल जाड़ी ll

ग़लाबंद अना टोपरा पयनो आता,
नहींत होये सर्दी खाँसी आता ll

उठो सकारी चलो पैदल आता,
राम राम लेवो चलता फिरता ll

बोलो पोवारी एक मेक भेटता,
लिखों पोवारी समय भेटता ll

आनो तनिस अना पेटावो धगाड़ी,
चलत रहे आमरी पोवारी गाड़ी ll

धगाड़ी लक भगावो ठंडी गाड़ी,
पँघरो स्याल आता सुंदर जाड़ी ll

संस्कर बचावो हर घर द्वार आँगन,
संस्कृति से पर्व पोवारी आंगन ll

डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏




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🔅🌅 नवोबरस 🌅🔅

नवोबरस को आगमन को करो स्वागत,
नवो लक़ होसे नवी ऊर्जा की आगत।

नवोपन लक़ होसे ख़ुशी को अहसास,
नवो कर देसे सबको जीवन ला खाश।

प्रसन्नता लक़ हिरदय मा सृजन को वास,
सृजनता आनसे नवयुग यव से विश्वास।

अतीत को पदचिन्ह परा नवी पहिचान,
होहे आलोकित भविष्य अना वर्तमान।

गाबीन सब नववर्ष परा सुवागत को गान,
आन्हे यव सबको जीवनमा मधुर मुस्कान।

ख़ुशी अना मधुरता की नहाय कोनी लागत,
आवो मिलकन करबी नववर्ष को सुवागत।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट

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 🚩क्षत्रिय पोवार🚩

भाग्य वाला सेत्  वीर पोवार,
जिनको आपरो  इतिहास से।
जिनकी कई वीरता की गाथा,
हिरदय मा  सनातनी वास से।।१।।

खून मा तोरो लगत उबाल से,
जवर तोरो वीरता की ढाल से।
क्षत्रियता को प्रहार लक़ तोरो,
अधर्मी इनको हाल बेहाल से।।२।।

रणभूमि मा  विजेता पोवार, 
धर्मयुद्ध मा भेटे विजयगति।
मंघा नही रव्हन् वाला कभी,
चाहे मिलहे इनला वीरगति।।३।।

क्षति लक़ करसेती सदा रक्षा,
नाव से जिनको क्षत्रिय पोवार।
वीरता लक इतिहास रचिसेत,
भोज अन् विक्रमादित्य पंवार।।४।।

लेयकन धरम रक्षन् की कसम,
क्षत्रियता को  संस्कार धरकन्।
खुशहाली का लहरायेती झंडा,
सबको दुःख संताप ला हरकन्।।५।।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
🔅🔅🌸🔅🔅🌸🔅🔅


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पूस को महिना

पूस को महिनामा थंडी करसे परेशान, 
रजई ओढकर चुपचाप सोवसे इन्सान.

दिवस रव्हसेती लहान रात रव्हसे मोठी, 
थंडी भगावन गावमा पेटावसेत सेकोटी.

सकारी बिस्तरल् उठन की नही होय इच्छा, 
दस बजेवोरी थंडी करसे सब को पिच्छा. 

सुटर, कोट, गरम कपडा की पडसे जरूरत, 
थंडीक् कारण बाहेर जानकी नही होय हिम्मत. 

आंग धोवनला लगसे जास्त गरम पानी,
आंग धोवनला टुरू पोटू करसेत आनाकानी. 

पांड अना संक्रांत आवसेत पूस महिनामा,
गुंजा ना तीर का लाडू बनसेत हर घरमा. 

कब बितसे येव महिना असो लगसे सबला,
थंडील् परेशान होसेती बच्चा, बुढ्ढा, अबला. 

अंग्रेजी नवो साल बी आवसे पूस महिनामा, 
वातावरण लपटेव रव्हसे धुंधक् कोहरामा. 

                            - चिरंजीव बिसेन
                                        गोंदिया
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93
 राम नाम

राम नाम जपो, भवसागर पार होय जाहो।
राम नाम की गहराई जीवन मा नाप नहीं पाओ।।

राम नाम की याद मा दशरथ याद आहे।
राम नाम की रट मा कौशल्या भी दिस जाहे।। राम नाम...

राम नाम को जाप मा भरत को त्याग याद आहे।
राम नाम को ताप मा लखन को तप मिल जाहे।। राम नाम..

राम नाम को राग मा सीताजी को सत याद आहे।
राम नाम को प्रेम मा उर्मिलाको विरह याद आहे।। राम नाम...

राम नाम की जिद्द मा शबरी को जाति भेद मिटाहे। 
राम नाम को सत मा अहिल्या को तरण याद आहे।। राम नाम...

राम नाम रुपी सादगी जीवन बनाय सरल।
राम नाम की गहराई मा उतरसेती विरल।।राम नाम..

यशवन्त कटरे
०३/०१/२०२३
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अभंग वाणी
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लेगा  लेगा हरी नाव /जगे मन भक्तिभाव//
मन इंद्रियाको राजा /ओकीच करून पूजा//
ठायी  ठायी फिर मन /फिर सारो त्रिभुवन //
मन  फिर  रानोरान / तरी नही समाधान //१//

दस इंद्रिय को ठान / वऱ्या  मनको आसन//
जेको मन हात नहीं/ओंज्या गुरू कर काही//
पयले  मनला मुंडो / ना मंगच  ब्रह्म  धुंडो//
मन  मारो मैदा करो /चरण  गुरूका  धरो //२//

पाच तत्वकी या काया/पृथ्वी,आकाश समाया//
अग्नि,पाणी अना वारा/ जैको सब जाग थारा//
सोळा सांधा लग्या जोळ/कोठुळी गा बाहात्तर//
दरवाजा  सेत्ती  नव /दसवी खिडकी  भाव//३//

सप्त  सागर  को  घेरा / वर सत्रावी को फेरा//
ओकी उल्टी बहे धारा /जसो अमृत को झरा //
वाच  गा जिवन कला / जीवजंतू कोभी ठेला//
संत मुनी आंग धोव/जेंज्या सुधबुध खोव //४//

शुध्द आचार बिचार / होय  भवधारा पार//
सब जिव ब्रम्हरूप /जानो वु आत्म स्वरूप//
सब दया माया जाणो /देव उनक मा मानो//
वाच जाणोआत्मभुती/जैकी सबठाई बस्ती//५//
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ह.भ.प.डी.पी.राहांगडाले
         गोंदिया
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95
पोवार समाज गौरव- 
                                           श्री.रमेशजी बोपचे                                                

श्री.रमेश बोपचे मूलग्राम राजेगाव(मोरगाव) ता.लाखनी जि.भंडारा.शिक्षण एम.ए.(मराठी साहित्य ) बि.एड.पोवार समाज का लखलखता तारा कहेव जाये असोच तुमरो प्रेरणादायी आभामंडल.बचपन मां  शारीरिक व मानसिक दृष्टीलक सुस्वस्थ भेटेव पर ऐन तरूणावस्था मां असाध्य व्याधीन् आक्रमण करीस अना शारीरिक दृष्टीलक अशक्त बनाय टाकीस.पर  मानसिक शक्ती मां प्रचंड वृद्धी भयी.तुमी अजून अजून मनोबलसमृद्ध भया.तुमला ९०% विकलांग मुहून सरकारी नोकरी मां संधी नही भेट सकी.परा तुमी मनलका हार्या नहीं.येन् ऐहिक संसार मां शरीर अना धन येको मोठो मान पान रव्हसे.येन् धागाला पकडस्यान कर्मयोगी बाबा आमटेजी क् वरोरास्थित आनंदवनमां आपलो सृजनत्व को दर्शन करनको अवसर तुमी जिक्यात अना प्रवास सुरू भयेव् तुमर् सृजन अभिव्यक्ति को.जन्मलकच तीव्र स्मरणशक्ती को वरदान तुमला भेटी से.कल्पनाशक्ती को प्रसाद बी भेटी से.अना कल्पनाशक्ति को विकास स्वयंस्फूर्तिलक होये असो समृद्ध आनंदवन को आनंदमय वातावरण तुमला जो भेटेव वोको तुमी स्वर्ण कर देयात.अना आपलो नावपर तीन-चार साहित्य को सृजन कर्यात.
[05/01, 08:29] Randeep Bisen: पोवार समाज गौरव- श्री.रमेशजी बोपचे                                                श्री.रमेश बोपचे मूलग्राम राजेगाव(मोरगाव) ता.लाखनी जि.भंडारा.शिक्षण एम.ए.(मराठी साहित्य ) बि.एड.पोवार समाज का लखलखता तारा कहेव जाये असोच तुमरो प्रेरणादायी आभामंडल.बचपन मां  शारीरिक व मानसिक दृष्टीलक सुस्वस्थ भेटेव पर ऐन तरूणावस्था मां असाध्य व्याधीन् आक्रमण करीस अना शारीरिक दृष्टीलक अशक्त बनाय टाकीस.पर  मानसिक शक्ती मां प्रचंड वृद्धी भयी.तुमी अजून अजून मनोबलसमृद्ध भया.तुमला ९०% विकलांग मुहून सरकारी नोकरी मां संधी नही भेट सकी.परा तुमी मनलका हार्या नहीं.येन् ऐहिक संसार मां शरीर अना धन येको मोठो मान पान रव्हसे.येन् धागाला पकडस्यान कर्मयोगी बाबा आमटेजी क् वरोरास्थित आनंदवनमां आपलो सृजनत्व को दर्शन करनको अवसर तुमी जिक्यात अना प्रवास सुरू भयेव् तुमर् सृजन अभिव्यक्ति को.जन्मलकच तीव्र स्मरणशक्ती को वरदान तुमला भेटी से.कल्पनाशक्ती को प्रसाद बी भेटी से.अना कल्पनाशक्ति को विकास स्वयंस्फूर्तिलक होये असो समृद्ध आनंदवन को आनंदमय वातावरण तुमला जो भेटेव वोको तुमी स्वर्ण कर देयात.अना आपलो नावपर तीन-चार साहित्य को सृजन कर्यात.
       पैरलक चल नही सिकसेव पर सन्मार्ग अना कल्पना की उडा़न तुमी लेया सेव.हात मां पेन पकडन को बल नाहाय पर शब्द स्फुरण क् कारण प्रचंड शब्दनिर्मिती तुमी कर्यात.
        आनंदवन क् मूकबधिर विद्यार्थीइनला गणित भाषा विषय तुमी सिकावसेव.उनक् भोजनालय की व्यवस्था देखसेव.व्हीलचेयर पर सतत बसकन आनंदवन मां भ्रमण...असो तुमरो दिनक्रम आमरो सरीखोसाटी प्रेरणादायी से.
    सुविद्य, सेवाव्रती असी धर्मपत्नी तुमला भेटी से.आतिथ्य को समर्पक संस्कार पोवारी दर्शन कराय देसे.जेतरो कल्पनासृजन तुमरो होसे वोको कागजपर लेखन करन को महत्वपूर्ण कार्य जेन् करीसेन असी सुज्ञ कन्या तुमरो गहना से.
              तुमला स्वस्थ सुंदर आरोग्य निरंतर भेटे अना साहित्य सृजन असोच होत रहे या ईश्वरचरण  मा प्रार्थना👍👍🌹

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96
जगत पिता भगवान🙏

जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी की आन,

कौन धर्माती कौन उत्पाती कौन से निष्क्षल निर्बल यहान ,
से तोला महादेव येको भान
राखो सबकी आन,

जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन,

धर्माती चल धर्म कर्म लक फिर भी कठीन परीक्षा  देसे काहे भगवान,
राखो सबकी आन,
जगत को पिता सेस तु भगवान देवा राखो सबकी आन,

उत्पाती उत्पात मचाव फिर भी जगत मा जीव से सीना तान काहे भगवान,
राखो सबकी आन ,
जगत को पिता सेस तु भगवान देवा राखो सबकी आन,

निष्क्षल क्षलयो जासे पग पग पर
क्षल बल माया को बल पर,
कलयुग घोर छायो भगवान 
राखो सबकी आन
,
जगत को पिता सेस तु भगवान देवा राखो सबकी आन
तु देव देवो को देव महादेव शिव संभु भगवान ।।

विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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97
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जीवन यशस्वी बनावन को मुलमंत्र
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सन्माननीय परमश्रद्धेय श्री आदरणीय समस्त सजातीय पोवार समाजबंधु सबला हिरदीलाल ठाकरे को सहृदय सादर प्रणाम जय राजा भोज, समाजोत्थान साती सबला कोटि-कोटि अनंत कोटि अभिनंदन अना सामने को समाजोत्थान वाटचाल साती मंगलमय शुभकामना सेती, एक बात मोला याद आयी, एक दिवस मी बहुत बहुत गहराई तक समाजोत्थान को बिचार करत बसे होतो, येतरोमाच एक माहान विचारवन्त देव माणूस संगमा चर्चा करता करता मी उनला सहजच खबर लेयेव की येन् संसारमा आपलोला यशस्वी होनको से येको साती आपलोला काजक काजक करनो पड़े, वोन् विचारवन्त देव माणूस न् कहिस की तुम्ही पयले एक लिस्ट असी तयार करो की तुमरो जीवनमा तुमला भली-भांति मदत करनेवाला जिनन् जिनन् तुमरी आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक मदत करी सेन असो सब व्यक्ति को नाव लिखो !!
        बडो उत्सूक्तावश वोन् विचारवन्त देव माणूस की बात आयककर मोरो जीवनमा आर्थिक, शारीरिक, शैक्षणिक, सामाजिक, मानसिक तौर-तरिका लक मोरी सहायता करनेवाला सब सहयोगी की एक लिस्ट तयार करनो चालू करेव, पयलो नाव मोरो मायबाप को लिखेव, वोको बादमा फटाफट काका काकी, माहालपा माहालपी, मामा-मामी, भाऊ भोवजी, मोहला पड़ोसी, संगसगंमा गायढोर चरावनेवाला संगी-साथी, जिनको संगमा सायकलपर स्कुल गयेव असा मित्र परिवार, नागपुर मा आयेवपर जिनको जिनको संगमा रहेव असा मोरा सहयोगी, रोजी-रोटी कमावनोमा मदत करनेवाला सबको नाव अना भुल्याचुक्या जानो अंजाम मा सहयोग करनेवालों को नाव लिखता लिखता वा लिस्ट येतरी लंबी चौड़ी भयगयी मंग वा लिस्ट धरकर वोन् विचारवन्त देव माणूस जवर देय देयेव, लिस्ट हातमा धरन को बाद उनन् कहीन बेटा आता तू दुसरी लिस्ट तयार कर वोन् लोक् इनकी, जिनकी तू सिर्फ अना सिर्फ परोपकार स्वरुप  निस्वार्थ भावना लक मदत करी रहेस!!
         मोला बडो बिचार आयेव पर हातमा कागज कलम धरकर जब् बसेव अना बहुत बहुत याद कर करके बडो मुस्किल लक सिर्फ अना सिर्फ असा असाच नाव वोन् लिस्ट मा लिखेव जे जे बिचारा इंसानियत अना ईमानदारी लक सहृदय खरोखर मोरो मंगलमय जीवन साती अना मोरो निस्वार्थ परोपकारी जनकल्याणकारी व समाजोत्थान को वाटचाल साती आपलो अंतरात्मा लक स्वयम कुलदेवी माहामाया गढ़कालिका अना परमपीता परमात्माला दुआ मांग् सेत, अना उनको शुभाशीर्वाद लक मोला बहुत काही प्राप्त भयी से, बस असाच काही बहुत नाव लिख सकेव, अना काही दिवस बाद वा दुसरी लिस्ट धरकर वोन् विचारवन्त देव माणूस जवर गयेव, अना दुसरी लिस्ट भी उनको हातमा देय देयेव, लिस्ट हातमा धरकर वोय विचारवन्त देव माणूस मोरो कर देखन लग्या, आता मोला लगेव की आपलोला आता ष्याबाशीच मिले पर मोरो सोचनो गलत होतो, वोन् विचारवन्त देव माणूस न् हात मोरो डोस्कीपर ठेयकर कहिस बेटा जेन् दिवस या तोरी दुसरी लिस्ट पयलो लिस्ट पेक्षा मोठी होय जाहे वोन् दिवस तू खरोखर परिपुर्ण यशस्वी होयजाजो, वोन् दिवस पासून मी सिर्फ अना सिर्फ कोशिश करच रही सेव बाकी को कुलदेवी माहामाया गढ़कालिका अना परमपीता परमात्मा को हातमा से, जीवन अगर यशस्वी बनावनो से त येवच मुलमंत्र अपनाओं बहुत बहुत आनंद मिल् से, जय राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका!!
                   लेखक
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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 कोहरा

देखो देखो पुस माह को कोहरा।
नाम से धुंध, कुहासा,पाला आना कोहिरा।।

ओस बरस रही से बारीस जसी बिन बदरा।
आकाश ढाक कर राखी सेस जीव भया अंधरा।।

घर को अंदर बंद करके जर रही सेती जगरा।
बाहेर जबरदस्त लगीसे धुंध को पहरा।।

नाक असी बोहय् रही से जसो धार नहरा।
सुई घानी गढ़ रही सेती रोम रोम मा शीत लहरा।।

सुर्य देव लुकाय गया कान भया बहरा।
कसो बंधे असो ठंडी मा नवरदेव ला सेहरा।।

येनच बात ला सोचकर पुस भयो माह असुरा।
बढ़ा ज्ञानी आना समझदार होतीन पुर्वज हमारा।।
यशवन्त कटरे
०६/०१/२०२३
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ईमानदारी लक सांगों गलती कोनकी
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परमश्रद्धेय श्री आदरणीय जी सबला सहृदय सादर प्रणाम जय राजा भोज, आता तुमीच सांगो गलती कोनकी रहे पायजे, पोर को उन्हारो की बात आय, आमरो घर् पाहुणा पाहुणी आया होता, उनको चाय-नाश्ता भयेव वोको बाद, मोरी धर्मपत्नी श्रीमती मंगलाबाई न किराना सामान को लिस्ट बनायकर देयीस अना बजार लक काही स्याग भाजी को आनन् सांगीस, मी आपली मोटरसाइकिल निकालकर सामने उभोच होतो, वोतरोमाच आमरो सत्यमनगर को एक भाऊ जेको नाव माणिकभाऊ शाहूजी ये आया अना आपलो धर्मपत्नी को अती संवेदनशील तबियत की खबर बिल्कुल घबराहट लक सांगताच होता, मी तुरंत मोटरसाइकिल चालू करेव अना उनला गाड़ी पर बसन को इशारा करेव, लकरधकरमा आपलो मोबाइल धरनो भूल गयेव, पेशेंटला भवानी हास्पिटल पारडी नागपुर मा भर्ती करनो मा आयेव, पेसेंट की तबियत बहुत नाजूक अना माणिकभाऊ शाहूजी बिल्कुल भोलाभाला येको कारण उनला सोडकर आवनो असंभव होतो, डाक्टर को कहेव नुसार उनको पेसेंटकी उम्मीद बहुत कम होती, समय समय की बात माणिकभाऊ शाहूजी जवर पौसा जरा कम होता अना प्रायवेट दवाखाना को हाल सबला मालूमच से, मानवता धर्म अना सेजारधर्म आपलो जवर का पैसा देनो पडेव, कुलदेवी माहामाया गढ़कालिका को आशीर्वाद लक सब बढ़िया त भयेव पर,,,,,,!!
           दवाखाना लक रात्रि करीब करीब १ बजे घर् आयेव, सब जेवनखान करके सोयगया होता, एक दुय गण आराम आराम लक आवाज मारेव पर काही जवाब नही आवन को कारन मीन् भी चूपचाप कसो मूसो जेवन करेव अना सोय गयेव, सकारी सकारी मंगलाबाई को चेहरापर गूस्सा जसा भाव दिसत होता पर पाहुणा पाहुणी रहेव को कारण आपलो गूस्सा शांत ठेयी रहेस असो मोला लगेव, बरतन की दचड आपट सूरु होती वोतरो मी पाहुणा इनला धरकर आपलो सारो साहाब को घर कर चली गयेव जाय उत चिल्लाय बटाला,,,,!!
          दुसरो दिवस माणिकभाऊ शाहूजी दवाखाना जान साती मोला बूलवन आया रहेत, मीन् जो पैसा दवाखाना मा देये होतो वोय पैसा वापस करता करता आपलो धर्मपत्नी की तबियत बिगड़ी होती म्हणून दवाखाना जो परिस्थिति लक इलाज करनो मा यशस्वी कसा कसा भया येको पर चर्चा चालूच होती वोतरोच मा आम्ही आय गया तबवरी मंगलाबाई को चेहरापर आनंद दिसत होतो, सबको सामने मोरो धर्मपत्नी मोरो हात मा हात धरकर कयीस, तुमला आपलो अंतःकरण की बात कहुका ? रात्री सहीमा तुमरोपर बहुत बहुत गुस्सा आये होतो म्हणून तुमला जेवन देन साती नही उठी पर आब् मोला बहुत बहुत पछतावा होय रही से एक नेक काम करेव को बादमा भी तुमला आपलो हात लक लेयकर खानो पडेव, दुसरो को भलाई साती खूद दुःख सहन करनेवालों पती पर मोला अभिमान से जय राजा भोज,,,,!!
         समाजमा सामाजिक कार्य करन साती आध्यात्मिकता प्रामाणिकता सहनशीलता व शिष्तपालन ठेवनो बहुत जरूरी से अना बगैर कोणी की सच्चाई जानेव कोणीपर टिका टिप्पणी करनो बिल्कुल गलत से, निस्वार्थ भाव लक समाजसेवा करनेवाला समाजसेवक दुसरो को गायला किचड मा लक निकालन साती आपलो बेदाग कपड़ा दागदार होन की पर्व नही करत, ग़रीब को बच्चा बच्चीला मुस्किल घड़ी लक बचावन साती आपलो मुस्किल घड़ी की पर्वा नही करत, दुसरो को बच्चा बच्चीला मृत्यु को तोड़ लक बचावन उनकी जिंदगी बचावन साती भीख मांगने वाला समाजगुरु होसेत, भिखारी नही, समाजमा एक-दुसरो को भावनाला समझन की गरज से, समाजमा समाजोत्थान करन साती गु  लक भरी ( हगला लक भरी ) चुंभर भी डोस्की पर धरनो पड् से,,,,,!!
                   लेखक
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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100

कली कसी खिली नहीं
मराठी को वृत्त: कलिंदनंदिनी
(लगालगा x ४)
हिंदी को छंद: पञ्चचामर 
(१२१२ x ४) 
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सकार को पहारला कली कसी खिली नहीं?
कसीक एक बी तिरीप आयके मिली नहीं? 

निरास का भयी रहे उदास का भयी रहे?
गयेव का उठाय कोन कोन उंगली नहीं 

कयीक पाखरू गया उड़ाय देख देख के
परंतु एक बात भी करीन दर्दिली नहीं 

हवा गयी हलाय के डगाल मा झुलाय के
परा असी कसी कली जरा हली डुली नहीं? 

अरे! मिजास मा बसेव एक ढग अड़ाय के
कसी तिरीप तेज वा करे हवा ढिली नहीं? 

भदाड़ रूप सुर्य को जसो भयेव डोरला
कली फटाक फुल बनी रहीच बाहुली नहीं 

हटेत ढग असा अना तिरीप ओसरी भरे
खरीच तबवरी सही बनेत कुंडली नहीं 
***********
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेड़े 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
(दि. ०६.०१.२०२३)
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101
 पोवारी साहित्य सरिता भाग ८०
दिनांक:७:१:२०२३
भोज राजा का वंशज चल्या
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लग्या जोळण पोवार जातीला,भोज राजा का वंशज चल्या |
जगावन छत्तीस कुऱ्याला,घर पोवार को जान लग्या ||ध्रु||

भोज राजा की जयंती पर,भारी कान्हा फुसी होन लगी |
मी अना मोरो समाज की,बात समज मा आवन लगी |
कृपा गड कालिका माय की,समाज मा बिचार होन लग्या ||१||

सोयेव पडेव समाजला, सांगणे वाला नव्हता कोनी |
घर का नेंग् दस्तुरला, बिसर गया केतरा आमी |
समाज एक अना जोडनला, विक्रमादित्य का वशंज चल्या ||२||

पोवारी बोलन माय बोली, सबला घाम रव्ह फुटत |
 आपलीच सांगणला बोली, शरम वाला नही बोलत |
मातृभाषा बोलन आपली, राम राजा का वंशज चल्या ||३||

संघटन शक्ती को आधार, बनावो मजबुत जातीला |
समाज का सेती संस्कार, बेफिकर बनावो पिढीला |
समाज को करो सब भला, पोवार जात कव्हन लग्या ||४||

हेमंत पी पटले धामणगाव 
(आमगाव)९२७२११६५०१

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102
पँवार धर्मोपदेश

             स्व. श्री लखाराम पँवार तुरकर जी, राजस्व निरीक्षक, ग्राम दौन्दीवाड़ा, ज़िला सिवनी को द्वारा अज़ लक़ लगभग १३० बरस पहिले पोवार समाज परा, "पँवार धर्मोपदेश" नाव लक़ किताब लिखी गई होती। यन् किताब को प्रकाशन सन् १८९० मा भयो होतो। यन किताब मा पोवार समाज को विषय मा लिखान से।

      यन किताब ला कोनी बी आपरो समाजजन को द्वारा रचित प्रथम किताब से यव कवहन मा आवसे। यन् किताब मा पंवार समाज का छत्तीस कुर को दोहा रूप मा उल्लेख से। आपरो पोवारी का कुर को पोवारी शैली मा नाव पढ़नमा आवसे। अज़ को कुर का नाव को लिखान मा कुछ बदलाव देखना मा आवसे परा यव सर्वमान्य तथ्य की पंवार(पोवार) समाज, छत्तीस कुरया समाज से जेको अज़ लक़ एक सौ तीस बरस पहिले की किताब मा भी उल्लेखित से।

       १७०० को आसपास रामटेक, ज़िला नागपुर को जवर नगरधन मा पोवार समाज को पुरखा इनना आमरो समाज का सामाजिक विधि-विधान की निर्मति कर देई होतिन, जो अज़ वरी यथावत साबुत से। पोवार समाज, वास्तव मा छत्तीस पुरातन क्षत्रिय इनको संघ से अना येको इतिहास सर्वविदित से। यवच "पँवार धर्मोपदेश" से यना स्व. श्री लखाराम तुरकर जी ना येक दोहा मा लिखी सेत्। यन दोहा की आखिर की पंक्ति से-

"निज जातिन की कुरी सबे निकसी छतिसि धाम, जो इनसे ज्यादा कहे, सो लिखे अपनो नाम।"

     निज जाति यानि छत्तीस कुर को पोवार अना यवच से आमरी पुरातन पहचान, येला साबुत राखन को यथा संभव प्रयास सबला मिलकन करनो से।

जय सियाराम 🙏🚩
जय क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज🚩
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103
पसारा
   ****
माया रुपी संसार यंहा षड़रिपू को मारा  /
झुटो जगत सारो झुटो माया को पसारा //ध्रु//

मालुम नहीं बचपन  कसो कसो निपटेव /
जवानिमा कामदेव मंग सबपरा झपटेव //
मोरी या माहाल माळी हत्ती घोळा मोरा /
 झुटो जगत सारो झुटो माया को पसारा //१//

एक त पळेव गृहस्थिमा बडी कुटुंब दारी /
बेटा कसे अजी मोरो ना पती कसे नारी //
काही नही सुच जब जाला पळे डोरापरा /
 झुटो जगत सारो झुटो माया को पसारा //२//

आशा मनसा दुही न बापा टाकदेईस डेरा /
जबलक रहे पैसा कवळी सब कहेत मोरा //
बुळगा पनमा कोणी नही मरघट को थारा /
झुटो जगत सारो झुटो माया को पसारा //३//

कलयुग की अल्प आयु गलती क्षमा करो /
मस्त रहो रामनाम मा चरण गुरुका धरो //
झटपट तूट जाये,पार भवसागर को मारा /
 झुटो जगत सारो झुटो माया को पसारा //४//
                  *****
डी. पी.राहांगडालें 
      गोंदिया

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104
मातृभाषा या मातृतुल्य होसे 
-इतिहासकार प्रचार्य ओ सी पटले
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        मायबोली या माय समान मायारु रव्ह् से, येको कारण वोला मातृतुल्य मानेव जासे. तसोच समाज आपलो नवी पीढ़ी को भलाई की सोच् से. येको कारण वोला पितृ तुल्य  मानेव जासे.
        लेकिन आश्चर्यजनक बात या से कि पोवार समाज को काही तथाकथित प्रगतिवादी व्यक्तियों को मन मा माय बोली  पोवारी अना पोवार समाज को‌ मूल ऐतिहासिक  नावों को प्रति तिरस्कार को भाव से. येको कारण उनन् 1998 पासून
"पोवारी ला पवारी कहो"  व "पोवार ला पवार कहो"  असो प्रकार को मातृभाषा व समाज को नाव बदलन को अफलातून अभियान चलाई सेन. मातृभाषा व समाज को नाव बदलके आपली ऐतिहासिक पहचान मिटावन को कार्य येव सत्य ला दबाय के झूठ ला प्रतिस्थापित करन को समान निंदनीय से. 
       ‌‌लेकिन  सत्य ला नष्ट करनो असंभव से. सत्य एक ना एक दिवस उभरकर सामने आव् से. येको कारण विगत पांच साल पासून (2018पासून) समाज  को अनेक सपूतों न्  मायबोली अना समाज को शाश्वत हित को विचार करके  "ऐतिहासिक नाव व पहचान बचावो अभियान" शुरु करी सेन. परिणामस्वरुप पहचान मिटावो अभियान पर "नैतिकता की लगाम" लग गई से.
      पहचान बचाओ अभियान को जाहिर आवाहन से कि-" मायबोली अना समाज की पहचान मिटावन को अभियान ला अज भी जे व्यक्ति साथ देय रह्या सेत वय एकघन आपली आत्मा ला बिचारों कि  आपलोच प्रिय माय बोली अना समाज को नाव मिटावन को प्रयास ला साथ  देनो सही से या गलत ? यदि तुमरी अंतरात्मा कव्हत रहे कि तुम्हीं जेव कर रहया सेव वू सरबसर गलत से त् वोन् गलत अभियान को साथ  छोड़ के  मायबोली व समाज की ऐतिहासिक पहचान बचावन को अभियान मा नि:संकोच सम्मिलित होवो. मायाबोली पोवारी अना पोवार समाज को  पूर्ण आशीर्वाद तुमला मिले. तुमरो नाव पोवारी मायबोली व पोवार समाज को इतिहास मा  स्वर्णाक्षरों लक अंकित होये. सकार को भुलेव सायंकाल को समय  भी घर् आय गयेव त् वोला भुलेव नहीं कव्हत. तुम्हारी मायबोली व तुम्हारो समाज,  हरपल तुम्हारो आवन की बांट देख रहीं से."
प्रथम प्रकाशन -न्यूज़ प्रभात डिजिटल *नेटवर्क, शुक्र 06/01/2003.
सृजन- 06/01/2023.
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105
 "नोको करो पोवारीको संकर"
          (सोळाक्षरी रचना)

भाऊ तुमी असा कसा आव पोवार समाजी ।
आळ  जातमां  बिह्या करनला भयात राजी ॥१॥

जरासी  बी   नाहाय   समझदारी    तुमरमां  ।
कसा  भूल गयात सब तुमी पैसाक रंगतमां  ॥२॥

आपलो  कूर  पुरखोंको  नही  ठेयात  मान  ।
छेत्तीस कु-या पोवारोंको  क-यात अपमान  ॥३॥

नोको बिसरावो आपलं पोवार संस्कृतीला   ।
शूर  क्षत्रियोंकी  सनातनी  येनऽ संस्कृतीला ॥४॥

मजाक  बनाय  देयात  आपलं   संस्कृतीला ।
बट्टा  लगायात  आपलं   पोवार   रिवाजला  ॥५॥

हिन्दू  संस्कृती  आपली दुनिया मां से महान । 
बाचो  समझो  अपनाओ  नाहाय  या  नहान ॥६॥

पोवारी  आय  आमरी  मायबोली  या  महान । 
नोको करो एको नास या बोली आय  महान ॥७॥

पढलिखके  नोको  बनो  असा   घनचक्कर   ।
सांगसे टोलिचंद नोको करो पोवारीको संकर  ॥८॥

कवि:- ईंजी. टोलिचंद नत्थुजी पारधी सेवानिवृत सिव्हिल इंजीनियर 
भंडारा सनवार तारीख:- ७ जानेवारी २०२३

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106
चरण गुरुका पखारो
💐🚩🙏.

असार संसार मा नोको झूरो.
काही नाहाय संसार मा मोरो.

मन की माया को मोठो विस्तार.
गुरुबीना एको नाहाय उपचार.

शरीर मरे पन ना मरी माया.
जीवन असो वाया ना काम आयी काया.

लेवो असो गुरु की दीक्षा.
रहनी सम्पन्न अध्यात्मिक शिक्षा.

गुरुका चरण पखारो.
निज रूप दर्शन स्वयं को निहारो.

हे गुरुवर बिनती मोरी स्वीकारों.
अंतरदृष्टील आपलो शिष्य ला तुम्ही निहारो.

✒️ऋषिकेश गौतम (7-Jan-2023)
*****


107
 देखावो आता संस्कृति दिवो

धुँधरो से समाज काही नही चोव,
बचेव से जो आता नोको खोवो ll

संस्कर समाज ला कही तरी देवो,
निस्वार्थ भावना काही तरी ठेवो ll

जरावो एक जरूर तुमी सब दिवो,
संस्कार रूपी बात सबजन ठेवो ll

समाज सन्मान नोको जी खोवो,
अंधारो मा जरावो संस्कार दिवो ll

पेटायेती सब जरूर संस्कार दिवो,
बची से जो आता नोको खोवो ll

बुझ गया संस्कार त सबजन रोवो,
कोन जराये मंग संस्कार दिवो ll

डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏

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108
लोभ मायघर को 
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मायघर लक जोड्या 
रव्हसेत स्त्री का नाता।
सुख दुःखमा भी याद 
आवसेच खाता पिता।।

मायघर को यादमा
मन अंदर रोवसे।
गोडधोड खाओ तरी
कडू तोंडला लगसे।।

कब मिले जानलायी
मनोमन इच्छा होसे।
अवसर मिलताच
मंग मायघर जासे।।

मायघर की यादला
बिसरता नही आवं।
माय,अजी,बाई,भाऊ
सेती सुरक्षा का नावं।।

मायघर को रव्हसे
लोभ आईमाईनला।
नहीं बिसरता आवं 
जुनो भी यादईनला।।
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत) 
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११

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109
छत्तीस कुर पोवार

पोवारइनको छत्तीस कुर,
सेती सब सर्व गुणवान।
बिनती से या सब लक़  
ठेओ इन सबको ध्यान।।

गौतम चौधरी येड़े बिसेन,
राणा डाला चौहान कटरे। 
रावत बघेले क्षिरसागर,
शरणागत परिहार पटले।।

अम्बुले पारधी हरिनखेड़े,
टेम्भरे फरीदाले हनवत।
बोपचे परिहार रहाँगडाले,
रिनायत सोनवाने रणमत।।

ठाकुर कोल्हे राजहंस,
पारधी पूंड रणदिवा जैतवार।
भगत भैरम तुरकर सहारे,
पोवारी बोलने वाला पंवार ।।

मालवा की माटी लक़ आया,
गंगा को रूप वैनगंगा को धाम।
भूलो नोको आपरी पहिचान,
अना छत्तीस कुरया पोवार नाम।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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110
🙏 प्रभु राम की महिमा 🙏
      (दोहा : पोवारी भाषा मा)

राम की महिमा न्यारी, बोलो जय श्रीराम।
जग को सार से तुममा, पुरो होहेत काम।।

धरम को जीवन होहे, भेटे तुमरो साथ।
पथ साजरो कट जाहे, थामो मोरो हाथ।।

तोरोच संग संग मा,  मी आय रही सेव।
सोड़ सकू न मी तोला, मोला अस वर देव।।

तोरो गुन गाँऊ मी, शक्ति तोरी अपार।
मन म दे जागा मोला, पिरम से अपरम्पार।।

हर जागा तोरो भान, से कन कन मा वास।
हर पहर तोरोच जवर, करन को से निवास।।

भक्ति को रंग म रंगयो, होय गयो रंगीन।
नवो रुप को भयो मन , ईश्वर का संगीन।।

राग द्वेष दूर करावो, बोहओ असो पिरम।
हिरदय मा देओ दया, साजरो रहे करम।।

तुम्ही सेव तारनहार, मोरो प्रभु श्रीराम।
दुःख ख़तम होय जाहे, जपहेति राम नाम।।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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111
नाचीज ना समझो तुमी
वृत्त/छंद: मंदाकिनी/ हरिगीतिका
(गागालगा x ४)
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चाहे गरो को आपरो ताबीज ना समझो तुमी
पर वा पड़ी रस्तापरा की चीज ना समझो तुमी -धृ-

इतिहास मा पोवार की सोनोलिखी गाथा मिले
नामी गिरामी नावला नाचीज ना समझो तुमी -१-

नेकी हमेशा भाव मा नेती नहीं खोटी दिसे
खाली पठाये आमरी दहलीज ना समझो तुमी -२-

पारस सरीखो हात से लोखंड ला सोनो करे
उग ना सके वू कूट पाकर बीज ना समझो तुमी -३-

चट्टान सी छत्तीस की छाती भरे बैरी डरे
दुश्मन कभी जुर्रत करे हरगीज ना समझो तुमी -४-

जलमेव मी क्षत्रिय घराना को सदा पालू धरम
गद्दारला मिल के करूं तजबीज ना समझो तुमी -५-

मोरो दरारा देख के साड्डा भरे मक्कार ला
होये कभी अन्याय की बेरीज ना समझो तुमी -६-

ईमान को मी आरसा आसल झरा निर्मल नदी
कुदरत करे मोला कभी खारीज ना समझो तुमी -७-
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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेड़े 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
(दि. ०५-०९.०१.२०२३)
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112
 स्वधर्म

भलेहि  स्वधर्म  रहे मोठो कठिन ।
तरी करो वोकोच नित्य आचरन  ॥१॥

भलेहि  परधर्म  रहे बड़ो अच्छो ।
तरी आपलोच धर्म से सादो सच्चो॥२॥

का  दूसरोंका  सुंदर  घर   देखकन ।
आपलो जुनो पुरानो घर तोड़सेजन ॥३॥

का आपली बायको नाहाय  सुंदर। 
मून का नही करजन आप्लो संसार ॥ ४॥

केतरो बी अड़चन ना तरास को रहे ।
तरी आपलोच धर्म परलोक मां सुख देहे॥५॥

भलेहि   सेती  गुरा दूध ना साकर । 
पर सेती ये जंत रोगमां अहितकर ॥६॥

भलेहि परधर्म रहेती मोठा हितकर  ।
वय धर्म आपलोला सेती अहितकर ॥७॥

एतरोच नही त आपलो धर्माचरन करता।
भलेहि जीव जाहे धर्म को आचरन करता॥८॥

तरी  नही  सोड़े  पायजे  आपलो  धर्म । 
श्रीमद् भगवद् गीता को आय येव मर्म ॥९॥

च्यार वेदोंक सार की आय या शिकवन । 
कसे टोलिचंद करो स्वधर्म कोच आचरन ॥१०॥

कवि:- ईंजी. टोलिचंद नत्थुजी पारधी सेवानिवृत सिव्हिल इंजीनियर 
भंडारा सोमवार दिनांक:- ९ जनवरी २०२३
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113
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासंघ: #पोवार समुदाय की व्याख्या
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      पोवार समुदाय की  काही विभेदक विशेषताएं  सेती. पोवार समुदाय को स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट करन साती ये विभेदक विशेषताएं नष्ट करन का प्रयास शुरु सेती.अत:  पोवार समुदाय की प्रमुख परंपरागत विशेषताएं निम्नलिखित  सेती -

१. जेव समुदाय क्षत्रिय कहलाव् से अना १७००को आसपास मालवा, राजस्थान धार लक आयके वैनगंगा अंचल मा स्थायी रुप बस गयेव.

२. जेन् समुदाय की मातृभाषा पोवारी से.

३.जेन् समुदाय की सनातन हिन्दू धर्म पर अधिष्ठित असी श्रेष्ठ संस्कृति से.

४. जे सोलह संस्कारों मा लक काही प्रमुख संस्कारों का अज भी ‌पालन कर् सेती.

५.जेन् समुदाय का प्रथम आराध्य प्रभु राम सेती. 

६.जेव समुदाय आखर पर की मातामाय ला अनन्य भाव लक मान् से.

७. जेन् समुदाय मा चौरी पूजा ला अनन्य साधारण महत्व से.

८.जेन् समुदाय मा महादेव, बाघदेव व पटील देव का बोहला  प्रस्थापित करन की प्रथा से.

९.जेन् समुदाय मा ३६कुर सेती. जेव समुदाय स्वयं ला स्वाभिमान लक ३६कुरया पोवार असो संबोधित कर् से.

१०.जेव समुदाय आपलो अंतर्गत ३६ कुल मा वैवाहिक संबंध प्रस्थापित कर् से.

(जेन् संकल्पनाओं को आधार लेयके पोवार समुदाय को स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट करन का प्रयास होय रहया सेती, वोन. संकल्पनाओं ला उपर्युक्त विशेषताओं मा उल्लेख नाहाय.)

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
सोम.09/01/2023.
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114
बायको को मंगलसूत्र
(😂हास्य कविता😀)
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बायको लायी मंगलसूत्र
आणण गयेव दुकानमा
तिन तोरा को लगेव अच्छो
पैसा गयेव खंत मनमा.

पहिली पुरायव हाऊस
बायको भी भयी जाम खूश
मोला लगेव मनमा बटा
फुकट पैसा की नासधूश.

मंगलसूत्र अलंकारल
बायको लग अप्सरा नटी
सोना चांदी की हाऊस ओकी
मोरो खिसाकी तिजोरी आटी.

भयेव ओको मनसारखो
लगेव खिसाला मोरो भार
मंगलसूत्र लेयेवमून
मज्यामा से मोरो संसार.

पर समज आयेव मोरो
मंगलसूत्र भेट नाताकी
ओको सुख मा मोरो सुख
मंग चिंता सोडेव खर्चकी.
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११
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115
●●● अंतर्यात्रा - मन की शून्यता ●●●

मनुष्य को मन की  स्थिति का विभिन्न प्रकार सेत जो परिस्थिति को अनुसार समय समय परा प्रदर्शित होसेत । 

अभिलाषा, आकांक्षा, अपेक्षा, उत्कंठा, ईप्सा, लिप्सा, इच्छा, वाचा, तृष्णा, लालसा, स्पृहा, क्रोध, गूढ़ चिंतन , श्रद्धा, मत्सर, रुचि, द्रोह, आशा, आशीष, असमंजस , मनोरथ, आस्था, अभिनव, उत्साह, अनुबन्धित, आग्रह, विमर्श, मनीषा, अभिप्राय, पक्षपात, लोभ, असंग, अभिस्वांग, शक्ति, मोह, कूटिल, कुतुहल, विस्मय, राग, वेग, द्वेष, अध:पतन , व्यवसाय, कामना, वासना, स्मरण, संकल्प , भावुक , रस (हास्य ), रति , प्रीति , दक्ष , अनुग्रह , वात्सल्य , आक्रोश , विश्वास , विश्राम , वशीकर , प्रणय , प्राप्ति , पर्याप्ति , समाप्ती , अभिमनाप्ति , स्नेह ,प्रेम आल्हाद , निवृत्ति, निर्मोह, विभत्स , करुण , भ्रमित, मूढ़ , मूर्ख , निरुत्साह, ध्यान , शांत, उद्विग्न , क्रूरता, चंचल, निशब्द .....  

येन सब लक मुक्ति मिलेपर मन की  शून्यता प्राप्त होय सकसे । अंतर्यात्रा की शुरुवात करनो से त् पहले एक एक करके येन सब स्थिति लक बाहर निकलनो जरूरी से । 
पर इन लक मुक्ति पानो या काइ सामान्य बात नाहाय । 

😌🚩

(  मन की स्थिति का प्रकार राजा भोज को ग्रन्थ "श्रृंगार प्रकाश" परा आधारित 

सही मा 

राजा भोज की साहित्य रचना देखके त् मन की अवस्था शून्य होय जासे । 

कोनिको भी ज्ञान को अहम टुकड़ा टुकड़ा होय के खाल्या पड़ जाहै असो उनको साहित्य से ।  

राजा भोज की जय नही बल्कि उनको साहित्य बाचन की जरूरत से ।)

 वैज्ञानिक अध्यात्मवाद

हिंदू धरम दरअसल एक जीवन शैली को स्वरूप आय जेका विभिन्न तत्वदर्शन , शास्त्र , पथ सेत । 

येन धरम मा जीवन अना अस्तित्व को सबन्ध मा आपला आपला सिद्धांत राखन की स्वतंत्रता से ।  

अस्तित्व को निर्माण को बारा मा प्राचीन भारतीय दर्शन मा जेला ईश्वर कह्यव गयी से, वु एक वैज्ञानिक सिद्धांत को समान से ।  

मूल रूपमा , या बात प्राचीन शास्त्रइनमा वर्णित से कि कोणीला बी येन ब्रह्मांड को वास्तविक सत्य मालूम नाहाय । असो कह्यव जासे कि सब अस्तित्व को मंग एक मूल ऊर्जा एकमात्र कारण से।  अना येन ऊर्जा ला समझयव  जाय सकसे लेकिन जो बात नहीं समझी जाय सक वु परम तत्व आय । वोन परमतत्व को बारामा जानन की कोशिशला भारत मा आध्यात्मिक यात्रा कसेत ।  

भारत मा आध्यात्मिक  यात्रा का अनेक पथ  सेत, तरीका सेत, सोच सेत। आधुनिक विज्ञान बी येन दिशा मा अग्रेसर से । विज्ञान को तरीका आधुनिक, उत्तम , प्रायोगिक अना वास्तविक से । परम सत्य की खोज आध्यात्मिकता अना विज्ञान को लक्ष्य रव्हसे । असो मा सत्य की खोज मा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद सबदुन बेहतर मार्ग होय सकसे। 

🙏🏻😌🚩


116
 पोवार समाज: बुनियादी दायित्वों
की चतु:सूत्री
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♦️♦️♦️पोवार समाज को उज्ज्वल भविष्य साती प्रत्येक व्यक्ति का चार प्रमुख दायित्व सेत. येला बुनियादी दायित्वों की चतु:सूत्री असो संबोधित करेव गयी से.या चतु:सूत्री निम्नलिखित से -

१. मातृभाषा को संरक्षण व संवर्धन.

२. संस्कृति को संरक्षण व संवर्धन.

३.समाज की परंपरागत पहचान को संरक्षण.

४.परंपरागत पहचान को  प्रति जागरूक समाज को निर्माण साती प्रयत्नों की पराकाष्ठा. 

                    -ओ सी पटले                                      
बुध.११/०१/२०२३.
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आपली प्रशंसा नहीं, विरोध होये पायजे
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समस्त सम्माननीय सजातीय जनसमुदाय सबला हिरदीलाल ठाकरे को सहृदय सादर प्रणाम जय राजा भोज, कांटों के पग पर चलाना है, समाजोत्थान कोई खेल नहीं, परहितार्थ मरने वालों का पुलों से कोई मेल नहीं !! सबला करबद्ध प्रार्थना से की, समाजोत्थान, समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याणको कार्य करन साती कांटा बिछाया रस्तापर चलनो पड् से, समाजोत्थान करता  करता आपलो जीवनमा आपलोला चाहानेवाला व आपली प्रशंसा करनेवाला माणूस भलाई कम रहेत तरी चल् से, पर आपलो विरोधक इनकी गर्दी जरा जास्तच पायजे, कारण जेतरा जास्त आपला विरोधक रहेत वोतरोच जास्त मजबूत आपलो आत्मविश्वास होये, वोतरोच जास्त आपलो कार्य को प्रचार प्रसार होय अना दुर दुर को मोठो मोठो संगठनवरी आपलो नाव चर्चीत होये अना समाजोत्थान, समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण करन को संकल्प अखिन जास्त मजबूत होये, आमरो पुरातनकाल पासून चलत आयेव गौरवशाली पोवार/पंवार नाव को संरक्षण व संवर्धन अखिन जास्त मजबूत होये !!

    यह राह नही है पुलों की, काटें ही इसपर मिलते हैं, लेकर दर्द ज़माने का, बस सिर्फ हिम्मत वालें चलतें है!! समाजोत्थान को काम करनो येतरो आसान नाहाय, हगला लक भरी चुंभर भी डोस्की पर धरनो पड् से, तुमरो समाजोत्थान, समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण को कार्य की वाटचाल रोकन साती तुमरा विरोधक तुमरो रस्तापर कांटा बिछाया जायेत, तुमरो आत्मविश्वास कमजोर करन साती हथियार धरकर अडावन की पुर्ण कोशिश करेत, वोय तुमला अडावन साती नाना प्रकार का प्रयत्न भी करेत, तुमला धमकायेत चमकायेत, तुमरो बारामा नाना प्रकार लक षड़यंत्र रचेत, मोठो मोठो अधिवेशनमा तुमरो नाव की चर्चा करके विरोध भी करेत, तुमरो विरुद्ध नाना प्रकार की बैठकी भी करेत, तुमरो बारामा मोठो मोठो लोक् इनला फोन कर करके सांगेत की अमूक अमूक माणूसला जरा कोणी समझाओं, म्हण्जे सिर्फ अना सिर्फ तुमला दबावन साती नाना प्रकार लक नाकाम कोशिश करेत, तरीपण समाजोत्थान, समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण को प्रगतीमार्गपर चलता चलता आमरो उत्साह येतरो प्रचंड, येतरो प्रबल रव्हनला पायजे की वोन् उत्साह को वेगमा तुमला आडवा आवनेवाला तुमराच विरोधक तुमरो कार्यशैलीला एक दिवस जरुर वाहा वाही देहेत अना तुमरो कार्य का समर्थक भी होयेत येव मोरो आत्मविश्वास से जय राजा भोज!!
                   लेखक
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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118
मायबोली पोवारी
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पोवारी या पोवारों साती
माय की छत्रछाया वानी से l
आपस मा मेलजोल साती
मन को दरवाजों वानी से ll

पोवारी आमरी मायबोली 
संस्कृति की आत्मा वानी से l
पोवारी आमरी मायबोली 
समाज की आत्मा वानी से  ll

मायबोली पोवारी आमरी
मानों अमृतधारा वानी से l
अना पोवारों को घरों मा 
स्वरों की  महारानी वानी  से ll

मायबोली की खुशबू 
मायभूमि की माटी वानी से l
मायबोली की झनकार 
कोयल की मीठी वानी  से ll

मायबोली  प्रिय आमला 
पावन गंगाजल वानी से l
मायबोली पूज्य आमला
मां भारती की वाणी वानी से ll

हर शब्द येको अनमोल
मानों मानिक मोती वानी से  l
हर वाक्य येको अनमोल
मानों कंठ को हार वानी से ll

#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
#पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
#मकर संक्रांति, शनि.14/01/2023.
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119
                                            पोवार समुदाय‌ ला सिद्धांतों का पंख मिल्या -                                          
 पोवार समाजोत्थान ला  सिद्धांतों को नवो आयाम.
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 1.सामाजिक सिद्धांतों की उत्पत्ति         
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         भौतिक शास्त्रों को सिद्धांतों की उत्पत्ति भौतिक प्रयोगशाला मा संपन्न प्रयोगों मा लक होसे. सामाजिक शास्त्रों को सिद्धांतों की उत्पत्ति समाज मा करेव गयेव प्रयोगों मा लक होसे.
             प्रस्तुत लेखक को मन मा 
 पोवार समाज की भाषिक, सामाजिक, धार्मिक व वैचारिक स्थिति को संबंध मा भयंकर असंतोष व्याप्त होतो.  परिणामस्वरुप   लेखक न् विशिष्ट परिकल्पना (Hypothesis) को आधार पर 2018 पासून पोवार समाज मा भाषिक, सामाजिक व वैचारिक क्रांति आनन को प्रयास शुरु करीस.  समस्त प्रयासों ला  एक प्रयोग (An Experiment) को दृष्टि लक देखेव गयेव.  लेखक द्वारा शुरु करेव गयेव क्रांति ला उच्चशिक्षाविभूषित युवाशक्ति को व्यापक समर्थन प्राप्त भयेव. येको कारण क्रांति सफल भयी. अंततः जेन् विचारों को आधार पर पोवारी क्रांति सफल भयी, वोन् विचारों ला सिद्धांतों को स्वरुप देयेव गयेव.  विचारों ला सिद्धांतों को स्वरुप देन को कारण दुय सिद्धांतों की उत्पत्ति भयी. प्रथम,  पोवार समुदाय को उत्थान को सिद्धांत (Theory of Upliftment of the Powar Community.)व द्वितीय, समुदाय को जैविक सिद्धांत(Organic Theory of the Community.)
      दूही सिद्धांत प्रत्यक्ष अनुभव- अध्ययन, निरीक्षण -परिक्षण व निष्कर्ष पर आधारित सेती.  
2.समाज ला सिद्धांतों को नवो आयाम
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         उपर्युक्त दूही सिद्धांत समाज को उच्चशिक्षाविभूषित महानुभावों द्वारा  उपयुक्त व महत्वपूर्ण मानेव गया सेत. उनको द्वारा येन् सिद्धांतों को आलोक मा समाज ला उत्तम दिशा देन का प्रयत्न निरंतर शुरु सेत. इन सिद्धांतों  द्वारा  सामाजिक संगठनों ला भी  आपलो दायित्व अना समाजोत्थान की सही दिशादृष्टि प्राप्त भयी.भविष्य मा ये दूही सिद्धांत समाज ला नि:संदेह पथप्रदर्शक साबित होयेत.
     ‌ उपर्युक्त सिद्धांत न केवल पोवार समुदाय साती बल्कि सनातन हिन्दू धर्म को अनुयाई समस्त समुदायों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ला समान रुप लक उपयोगी व पथप्रदर्शक साबित होयेत, असो पूर्ण विश्वास से.

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.13/01/2023.
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      120
      माणुसकी
     ***
माणुसकी का गुण धरो, तब आये सतजुग
नही त दुःख दरद मा, चल रहीसे कलजुग ||१||

मंदीर मा पुजा करसे, देसे घर मा बडो दुःख
माय बाप बोझा बन्या, कसो मिले मनला सुख ||२||

बच्या कंहा सेती आब, दया धरम अना इमान
गोटा सरीखा मन इनका, गोटा सरीखा इंसान ||३||

गोटा को देवला खानला, देव छप्पन तरी को भोग 
मर जासेती रस्ता पर का, भुख, प्यास भऱ्या लोग ||४||

पांखंड को जमानो आयेव, पसर गयीसे अंधार
पापी करन बस्या ढोंग, मच गयीसे बडो शोर ||५||

धरम को नाव पर, चल रहिसे घोर पाप
वसुली करनलग्या, घर रव्हसे भुखो बाप ||६||

शिकावो, पढावो घर मा, शिक्षण देवो महान
संस्कार को बिना अधुरो, आदमी को से जिवन ||७||

हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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121
तीर-गुळ की पक्की दोस्ती 

तीर-गुळ का लाड़ु खायखन ।
करो  निर्धार मीठो बोलखन ॥१॥

गोड बोलबिन पूरो सालभर ।
पक्की गांठ बांधलो सालभर ॥२॥

मनमाको कड़ू काहाळो बाहर।
उत्कर्षको अत्तर फैलावो अंदर॥३॥
अत्तर को सुगंध सबांगऽ सिपबिन।
सुखका  मंगल  क्षण अनुभवबिन ॥४॥
ठंडी को डटकर मुकाबला करनला।
तीर-गुळ का लाड़ु खासेत संक्रातीला॥५॥
सालभर तब्येत रव्हसे ठीक ठाक। 
तीर-गुळ की पक्की दोस्तीसे पाक॥६॥

कवी:- ईंजी. टोलीचंद नत्थुजी पारधी सेवानिवृत सिव्हिल इंजीनियर 
भंडारा सनवार ता:- १४.०१.२०२३
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122
मायबोली भी थोड़ी थोड़ी बोलो जी 
-----------------🙏🙏🙏-----------------
हिन्दी मराठी धड़ धड़ बोल् सेव l
अंग्रेजी भी  धड़ धड़ बोल् सेव l
मायबोली भी थोड़ी थोड़ी बोलो जी l
मायबोली को विकास आता करों जी ll

हिंदी मराठी की तुमला माया से l
अंग्रेजी की भी तुमला माया से l
मायबोली की माया नोको तोड़ो जी l
मायबोली को विकास आता करों जी ll

मायबोली की समाज पर छाया से l
मायबोली की मन मा छुपी माया से l
मन की माया आता  नोको तोड़ो जी l
मायबोली को विकास आता करों जी l

#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
#शनि.14/01/2023.
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123
 ▪️ पोवार संस्कृति को संरक्षण काहे ।  ▪️


पोवार संस्कृति बड़ी आदर्श से । वोला संरक्षित करनकि जरूरत आब आय गयीसे। 

पोवार संस्कृति को संरक्षण कमसे कम होय जाहै त् पुरखाइनको को समाज बच जाहै । 

पोवार संस्कृति संरक्षण को प्रति चेतना जागरण आब समय की मांग से । 

हर घर , हर गाव मा आमरो संस्कृति को प्रति आमला सजग होयके तसो माहौल बनावनो पडे, अगर कही बिगड़ रही से त् । 

सभ्य बनैव रव्हनो त् ग़लत नाहाय। 

आमी आपली इज्जत करबि त् बाकी दुनिया बी आमरी इज्जत करे ।

सांस्कृतिक जतन कोणी एक व्यक्ति को नही बल्कि जन जन की जिमेदारी आय ।

पतन को विरुध्द आमला आब सचेत होनो पड़े , तब आमरी सभ्यता बची रहे ।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🚩



124
स्नेहभाव की संक्रांत.... 

पौष महिनामा||आवं यव सण||
खुशी का क्षण|| धरस्यान||१||

कृषी या संस्कृती||खेतील् जुडेव||
सण से बनेव|| संक्रांत को||२||

चना,ऊस,बोरं||गहू,तिर,धान||
खेती की या शान||पुजा साठी||३||

सुर्य संक्रमण||उत्तरायण मा||
मकर राशीमा|| होत जासे||४||

तिर गुड देत||गोडी बढा़वन||
उत्साह की खान||संक्रांत या||५||

संकल्प मनमा||हेवा दावा सोड||
संक्रांत या गोड||करो सब||६||

स्नेह वृद्धिंगत||करो सब जन||
जोडस्यार मन|| आपसमा||७||

सांगसे उमेंद्र||गरज नितांत||
मनावो संक्रांत||आनंदकी||८||
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
रामाटोला अंजोरा गोंदिया
९६७३९६५३११

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125
वैचारिक लेख(पोवारी भाषा मा)

सनातनी भारतीय संस्कृति मा वसुधैव कुटुंबकम को भाव

                सबको मनमा आपरो अस्तित्व, अतीत, आपरी पयचान जानन की अन् वोला संरक्षित करन की भाव रवहसे। अखिन यव मानुष को असली गुन भी से। यन् सुभाव लक़ मानव न सभ्यता को सृजन करीन अना सभ्यता को संगमा संस्कृति को विकास भयो। देश-दुनिया मा कई सभ्यता भई सेत अना समय-समय परा कई संस्कृति को विकास भी भयो। मानव जात की भौतिक अना तकनीकी उन्नति लक़ समाज की सोच अना संस्कृति मा बदलाव भयो परा हर संस्कृति मा सामनजस्य को गुन होसे येको लाई भौतिक क्रांति को बावजूद भी देश-दुनिया मा नाहनी अना मोठी हर रंग की संस्कृति सबआंग चोय जासे। संस्कृति को संघर्ष अना सांस्कृतिक विघटन कोनी भी समाज लाई सही नही कहयो जा सिकसे, येको लाई संघर्ष को खात्मा अना हर संस्कृति को रक्षण को संग सामनजस्य का भाव येको समाधान से।
                 भारत देश की प्राचीन संस्कृति मा, "वसुधैव कुटुंबकम" माने पुरो धरती येक कुटुंब आय यव मानता होती अना यव बिचार अज़ को भूमंडलीकरन को युग मा चरितार्थ होसे। सभ्य समाज मा सबको सहअस्तित्व को भाव का विकास अना प्रचार-प्रसार पर सबको जोर से अखिन अज़ भारतवर्ष को सनातनी बिचार ला लोख-दुनिया, आंतकवाद को खात्मा को रूप मा देख रही सेत्।
                अज़ भी दुनिया मा कई क्षेत्र मा संघर्ष होय रही से अना मानवता परा खतरा मंडराय रही से। कई धरम आपरो प्रचार-प्रसार लाई दूसरों को खात्मा पर बल देसेती। मोरी संस्कृति दूसरों ला मोठी, यव भाव मानवता को दुश्मन से। सच यव आय की कोनी भी सभ्य संस्कृति नाहनी अन् मोठी नही रहव। येको निवारण कसो, कसो सब शांति लक़ रहहेती अना सबमा पिरम को भाव को जगाहे। कोनती संस्कृति अनीति को खात्मा कर सबमा पिरम का भाव ऊभो करन को माद्दा राखसे त् येको एकच उत्तर से की सनातनी भारतीय संस्कृति।
             माय दुर्गा को नव रूप येको साजरो उदाहरण से कसो येक देवी विविध रूप ला धरकन यन् धरा पर पाप को नाश करखन् येको कल्याण करसे। यव से आपरी सनातनी भारतीय संस्कृति, जेको आखिरी लक्ष्य, धरा अन् मानवता को कल्यान् से। शक्ति अना पिरम को सामनजस्य को संग शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को भाव संग, "वसुधैव कुटुंबकम" का भाव देवन् वाली, सनातनी भारतीय संस्कृति, यन् धरा पर हर मुश्किल को समाधान राखन वारी संस्कृति से। हम सबला आपरी यन् संस्कृति अना आपरी सभ्यता परा स्वाभिमान कर येको पुरो दुनिया मा प्रचार-प्रसार की जरत से।
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
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126
पोवारी कविता की अखिल भारतीय ९६वो मराठी साहित्य संमेलन साती  चयन
#"इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले इनको कविता की  दखल."
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       भारत मा स्वतंत्रता प्राप्ति को पश्चात  तब्बल ७० सालवरि, शिक्षण को प्रसार को कारण पोवारी बोलीकर पोवार समाज को दुर्लक्ष भयेव. परंतु इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले इनन् मातृभाषा को महत्व पहचान के आपलो समाज मा २०१८ पासून "पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान,भारतवर्ष." येन् नाव लक एक व्यापक अभियान प्रारंभ करीन. येन् अभियान को माध्यम लक उनन् समाज ला मातृभाषा को महत्व पटाय ‌देईन. ऐतरोच नहीं त् उनन् आपलो साहित्य को माध्यम लक युवाशक्ति मा भाषिक प्रेम, अस्मिता व स्वाभिमान जगाईन. परिणामस्वरुप २०१८ मा येन् क्रांति ला भरपूर यश मिलेव. अज को हालात मा लगभग  १०० पोवारी साहित्यिक प्रतिदिन नवनवीन दर्जेदार पोवारी साहित्य की निर्मिति कर रह्या सेती. 
      पोवारी बोली को विकास होये पायजे येन् उद्देश्य लक हिन्दी व मराठी साहित्य संस्थाओं न् आपलों मंचों पर पोवारी बोली ला भी स्थान देन को बारा मा मन को मोठोपन देखाईन. येन् च श्रृंखला मा आता आगामी ३/२/२०२३ ला  वर्धा  मा आयोजित अखिल भारतीय ९६ वो मराठी साहित्य सम्मेलन को  "कविकट्टा" येन् व्यासपीठ पर सादर करनसाती पोवारी भाषिक क्रांति का प्रणेता इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले, आमगांव, जि. गोंदिया (महाराष्ट्र) इनको " आनंद का आंसू"  येन् पोवारी कविता को  चयन भयी से.
        येन् कविता मा मान्यवर कवीं महोदय न् पोवारी भाषिक क्रांति यशस्वी भयी से , मातृभाषा पोवारी को दिन प्रतिदिन उत्कर्ष होय रही से, पोवारी भाषा नष्ट करन को षड़यंत्र ला प्रतिबंध लग गयी से, येको कारण कवि को मन मा आनंद को ज्वार आयी से अना  वोको डोरा मा लक आनंदाश्रु बह रहया सेत, असी आपलो मन की अवस्था बहुत नाजुकता लक वर्णन करी सेन. उनकी या भावपूर्ण कविता निम्नलिखित से -  
      🌹आनंद का आंसू🌹 
----------------------------------------
धीरु धीरु पोवारी आगे बढ़् से l
नवो -नवो इतिहास‌ रोज  गढ़् से l
रोज आगे -आगे कदम बढ़् से  l
साहित्यिकों‌ ला नवी धुंद चढ़् से ll

सपूतों को दिल मा जागा धर् से l
महिमा पोवारी भाषा की बढ़् से l
मिश्रीकरण को इरादा जर् से l
षड़यंत्र को रंग फिको पड़् से ll

मायबोली आमरी आगे बढ़् से l
डोरा लक आनंद को आंसू पड़् से  l
दिल मा विचारों की ज्योति जर् से l
प्रयासों  ला नवो-नवो रंग चढ़् से ll

*#धनराज भगत, उपसंपादक - न्यूज़ प्रभात डिजिटल नेटवर्क 
#रवि.15/01/2023
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127
 पोहा
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

      नाहाणपन की एक बात याद आय रही से मोला, संक्रात को पंधरा बिस दिवस पहले पासून तयारी चालू होय जात होती.."बाई गीन साती खाजो लिजाय देनको से पोहा पिसायकर आनो नही का?, टुरीपटी पायली भर पोहा की भुकोती रव सेती,, बाई गिन खाजो की बाट देखत रहेत", मंग् दुसरो आवाज आव, धान कायनी टाकेस त पोहा का , धान टाक फिजनला, मी आन देऊन पोहा पिसायके.
     मंग माय पोहा का धान फिजन टाक,तीन दिवस वय धान फिजती, मंग उनको पाणी झारनो, पोता मा भरणो,अना मंग वू पोता सायकल पर सवार होयके मसिन मा पिसावन लिजाती,,, मशीन पर भिडी रव,,मुन नंबर लगन दूसरो दिन भी लग् जाय.
      बडो मेहनत लक पिसाया पोहा घर आवत..अना असो लग सही मा संकरात आयी…चाय पोहा चाय मुर्रा खाणला औरच मजा आव.. आब तसो सवाद कही नहीं मिल सक…

✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी
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128
💐पोवार समाज स्वाभिमान💐

श्रीमती पार्वती बाई रहाँगडाले

         ग्राम साकड़ी, ज़िला भंडारा निवासी श्रीमती पार्वती बाई रहाँगडाले जी ना भारत को स्वाधीनता संग्राम मा भाग लेयी होतिन। अंग्रेजी सरकार न उनला छ:ह मास की कैद की सजा देन को इतिहास मा उल्लेख से। संभवतया वय पोवार समाज की प्रथम महिला आय जिनना स्वाधीनता आंदोलन मा सक्रिय रूप लक भाग लेइ होतिन अना जिनला कारावास की सजा भई।

पोवार समाज की यन महान विभूति ला शत शत नमन से।
💐🙏💐💐🙏💐💐🙏💐

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129
विचार प्रवर्तक लेख -     
पोवार समाज आत्महत्या करन तैयार से का ?
  \मेंढा अधिवेशन (1965) को प्रस्ताव: पोवार समाज की आत्महत्या को समान
------------------🚩🚩🚩----------------
         मेंढा अधिवेशन 1965 मा भयेव. येन् अधिवेशन मा  पोवार समुदाय को तथाकथित कर्णधारों द्वारा विभिन्न जातियों को एकीकरण को प्रस्ताव प्रखर विरोध को बावजूद पारित करेव गयेव. असो एकीकरण का निम्नलिखित अनिष्ट परिणाम होयेत -
1. पोवार समाज की मातृभाषा पोवारी नष्ट होये.
2.पोवार समाज की संस्कृति नष्ट होये.
3.पोवार समाज की ऐतिहासिक/परंपरागत पहचान नष्ट होये.
4.  पोवार समाज ला एक ‌विशिष्ट अन्य जाति सीन  अंतर्जातीय विवाह   करन की मान्यता देयेव लक  वोला  अन्य सभी जातियों सीन अंतर्जातीय विवाह करन  की आपोआप छूट मिल जाये.
5.पोवार समाज को स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त होये.
     ‌‌तात्पर्य, मेंढ़ा अधिवेशन को प्रस्ताव येव पोवार समुदाय की आत्महत्या को समान से. अतः  पोवार समाज को मुठ भर पुढ़ारीयों ला, पूरो पोवार समाज की आत्महत्या (Suiside)को प्रस्ताव पारित करन को अधिकार से का ? असो रोक-ठोक सवाल  निर्भयता लक पोवार समाज को हितचिंतकों द्वारा एकीकरण को समर्थकों ला पूंछे पाहिजे.
      उपर्युक्त  प्रश्न को उत्तर देन को नैतिक साहस (Moral Courage)एकीकरण को समर्थकों मा अजिबात नाहाय.अत: पोवारी मातृभाषा, संस्कृति, ऐतिहासिक पहचान अना पोवार समाज को स्वतंत्र अस्तित्व कायम ठेवन साती प्रयत्नशील व्यक्तियों व संगठनों को भविष्य उज्ज्वल से.

ll जय श्रीराम ll
ll जय पोवारी ll

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
रवि.15/01/2023.
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130
                                             विचार प्रवर्तक‌ लेख-                                         
मी यदि काही बात् कहूं त् तुम्हीं सहन करों का ?
------------------🚩🚩🚩----------------
      ये काही बात् निम्नलिखित सेत -
1.मोला तुम्हारी मातृभाषा पोवारी ला नष्ट करनो से. 
2. मोला तुम्हारी पोवारी संस्कृति नष्ट करनों से.
3. मोला तुम्हारी ऐतिहासिक/परंपरागत पहचान नष्ट करनो से.
4. मोला तुम्हारी पोवार जाति ला जड़मूल सहित नष्ट करनो से.
     उपर्युक्त चार बात् मी अथवा कोनी भी तुमला कहें त् तुम्हीं अजिबात सहन नहीं कर सको. एकीकरण वाला भी असो कव्हन की हिम्मत  नहीं कर रहया सेत. लेकिन एकीकरण वाला  दिन रात तुम्हारी ये चारही बात् जड़मूल सहित नष्ट करन का प्रयास‌ कर रहया सेत. येकोसाती जागो ! एकीकरण को तीव्र विरोध करो !!  अना आपली अनमोल विरासत को संरक्षण करो !!!

इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
रवि.15/01/2023.
------------------🚩🚩🚩-----------------


131
 सामाजिक लेख(पोवारी भाषा मा)
🙏🚩देवतुल्य कार्य🚩🙏

          इतिहास मा यव तथ्य से की भारतवर्ष को कई राजा इनको शासन विस्तार भारतभूमि को परे पुरो दुनिया मा होतो। पोवार सम्राट विक्रमादित्य को विषय मा यव कह्यो जासे की उनको शासन विस्तार पुरो दुनिया मा होतो तसच भारतवर्ष का कई विचारक, बुद्धिजीवी सेती जिनकी बिचारधारा पुरी दुनिया मा दिस जासे। भारतीय दर्शन, राजधर्म मा मानवता अना प्रकृति को रक्षन को तत्व येला सबलक ऊंचो राखसे। यवच कारन से की भारतवर्ष का कई लोख इनना मानवता को कल्याण लाई आपरो जीवन न्योछावार कर देईन त् प्रजा न उनला देवतुल्य स्थान देइन। पन्ना धाय माँ आपरो कर्तव्य अना त्याग लक़ देवतुल्य भय गई।
       महाराजा भोजदेव, महाराणा प्रताप सिंह, पृथ्वीराज चौहान, राजा जगदेव पंवार जसो कई राजा महाराजा इनना जन कल्याण लाई आपरो सबकुछ न्योछावर कर देइन। परम उदार जनहितेषी राजा जगदेव पंवार की दानवीरता असी की उनना माय काली को सम्मुख आपरो शीशदान देयकन कर्ण, ऋषि दधीचि को जसो दानवीरता को परिचय देयकन देवता इनको जसो पूजनीय भय गया।
               दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता अना कई हितेषी नातेदार, मित्र भी आपरो परिवारजन लाई हितकारी कार्य करसेत अना त्याग करखन देव तुल्य होय जासेती। आपरो करम अना धरम को सही लक़ पालन करखन, मनुष्य भी देव तुल्य होय सिकसेत्। आदर्श अना धर्मसम्मत समाज की स्थापना करखन इतिहास रचन वाला अनेकानेक उदाहरन सेती अना वय उनको कई सदी का बेरा जान को बाद बी समाज मा उनका बिचार अज़ भी ओतरोच मान्य जेतरो उनको कालमा होतिन ।
                      मानवता, मानुष ला समाज मा, मान्य मानदंड अना मानता इनको अनुरूप बिव्हार करन की सीख देसे। काल अन् परिस्थिति को मंघ इनमा बदलाव भी होसे, परा प्रकृति अना मानव को भला कसो होय यव लक्ष्य हर युग मा रवहसे। अज़ राजतन्त्र नहाय अना कोनी भी अज़ जूनो बेरा का राजा को माफिक उचो लक़ उचो ऊभो होय सिक से, समाज ला नवी दिशा देय सिक से। कई कसेत ना की हामी काय लाई कोनी को मंघ जाबिन, आपरो खुद का नवो इतिहास रचबीन। गलत को भी इतिहास होसे परा मार्गदर्शक इतिहास वा होसे जो युगो युग वरी समाज को सर्वविकास को भाव राखसे। येको लाई समाज को स्वरूप अना येको अतीत को भान लगत जरूरी से, काहे की यवच शास्वत् समाजोत्थान करहे।
                अज़ की पीढ़ी ला भी नवी तकनीक को संग मानवता को भाव ला समझनों पढ़े, तकनीकी ज्ञान कसो देश-दुनिया की पीड़ा ला दूर करहे, येला समझनों पढ़े। यव सच से की अतीत प्रेरित करसे परा वर्तमान ला अखिन साजरो कसो करबीन यव यन् प्रेरणा अना नवो तकनीकी ज्ञान को समन्वय परा निर्भर करसे। आपरो पुरखा इनको पीढ़ी न् दर का अनुभव अना इतिहास मा नवोनवेश करन् वालों युगपुरुष इनको ओन बेरा मा मानवता को कल्याण लाई होयो जतन को अनुभव अज़ को भला चाहनो वालों इनको लाई दिवो को माफिक प्रकाश स्तम्भ होय सिक से। भौतिकता रवहन को बावजूद अज़ भी समाज मा रामराज्य माने आदर्श समाज होय सिक से, बौद्धिकता, भौतिकता मा रंग्यो समाज ला नियंत्रित कर सिक से, वोला साजरो रस्ता परा चलाय सिक से, नवी दिशा देय सिक से।
               यव समन्वित विकास आपरो भारत देश की सबलक मोठी धरोहर, आध्यत्मिक ज्ञान को संग शक्तिशाली असो रहें, ला युगो युग वरी जीवित राखे। समय को अनुरूप परिवार, समाज, राष्ट्र अना सम्पूर्ण मानवता को सर्वहित् मा देवतुल्य कार्य  करन की अज़ की जरत से त् यव जों करहेती वय भविष्य मा इतिहास का भाग बनहेति।

✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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132
दान नही दाम

संसार मा उनकी जरूरत से जो लोगइनला  दान नही बल्कि लोगइनला काम देयकर वोन कामको दाम देय सकेत। 
दान को कारण  दान प्राप्त करने वालो व्यक्ति आलसी बन जासे । काम को बदले देयव जाने वालो दाम लक व्यक्ति कर्मठ अना आत्मविश्वासी बनसे । असोलक समाज को उत्थान बी होसे । 

आज को युग मा उद्यम की आवश्यकता , रोजगार की आवश्यकता से । असो नेतॄत्वइनकी जरूरत से जो रोजगार निर्माण करनलाय पुरुषार्थ कर सकेत् । असो व्यवस्थापकइनकी  आवश्यकता से जो समाज ला उन्नतीको तरफ अग्रेसित करेत् । परन्तु असा लोग बिरला च रव्हसेत जबकि उनकी अत्यंत जरूरत समाज मा रव्हसे। 

आम्हरो भीतर वय पुरुषार्थ करनलायक गुण,  आमला विकसित करनो पड़े अगर आमला सामूहिक उन्नति  को तरफ बढनो से । 

उन्नति की सामूहिक यात्रा व्यक्ति निर्माणको द्वारा सम्भव से । यानी आमला सामूहिक उन्नति को पथ परा चलनलायी पहले व्यक्ति निर्माण परा कार्य करनो  पड़े ......


133
खेती बाडी

भसी बसीसेत डोबरामा, 
भेबा बोंबलेव खोदरामा. 

चिकनी माती तरा की, 
कानुबाला बसावन की. 

बांधीमा को चिखल, 
टोंघरा टोंगरा खपन. 

प-हा लगावनकी खार, 
भुडकाक् पानीकी धार. 

पेंडी फेको झोट झोट, 
खाली होसे भरेव पोट. 

नांगर चलसे आरी आरी, 
काम करसेत आरी पारी. 

बाई लोककी प-हाकी पाथ, 
प-हा लगावसेत गात गात. 

बैलला लगावसेत मुस्का, 
आमरो नांग-या होतो ठुस्का. 

पानमा टाकसेत सुपारी, 
नांगर हकालनकी तुतारी. 

नांगर जुपनको जोता
धानल् भरसेत पोता.

बैल ईनको लंबो कासरा, 
नांगर हकालनको आसरा. 

नांगर जुपनकी बारती,
दिवस बुळता होसे आरती. 

                           - चिरंजीव बिसेन
                                        गोंदिया
**********

134
गलत को विरोध

गलत को विरोध करन को समया निश्चित रूपलक प्रतिरोध निर्माण होये । 

प्रतिरोध ला रोकनलाय रोधक शक्ति प्राप्त करनो से त् सबलक पहले आपलो सामने को अंतर्गत अवरोध दूर करनो आवश्यक से।आपली कमी पहले दूर करनो आवश्यक रव्हसे। 

अवरोध साथ मा राखके वोको संग उलझ कर आपलो मा च लड़नोमा अगर ऊर्जा व्यय होन लगी त बाहरी प्रतिरोधको सामना करके गलत को विरोध नही कर सकबिन अना सत्य की स्थापना बी नही होनकी। विकास की यात्रा बी रुक जाहै ।

🙏🏻😌🚩


135
सिंहासन बत्तीसी

हाेतो राज़ उज्जयनी मा, महान राजा भोज को।
दुध को दूध,पानी को पानी,न्याय होतो उनको।।
एक चमत्कार की कहानी, किस्सा बन्यो किसान को।
पूर्ण खेत हरो भरो, खाली रह्यो खाट भर को।।
ख़ाली जाघा मा बनयो मचान, खेत की रखवाली को।
जब सोयो मचान पर, आरोप लग्यो राजा ला राज्य चोरी को।।
हवा संग फैली बात, सम्मान घट्यो राजा को।
चिन्ता भई राजा ला, जुड़ाव करीस ज्ञानी गिनको।।
ज्ञानी मिलकर राज खोलिन, गड़यो सिंहासन को।
भई खुदाई रात दिन, निकल्यो सिंहासन बत्तीस पुतली को।।
नहीं सरकाय सकिन हाथी घोड़ा,सत् होतो देवन को।।
भई पुजा अर्चना, ऊपर उठयो सिंहासन रत्नन को।
शोभा, चमक देख हैरान सब, बत्तीस परीयन को।।
करके सिद्धी सिंहासन की, समय आयो विराजन को।
बेजान पुतली हास ऊठीन, आसान नहाय काम येला सम्हालन को।।
यो सिंहासन आय, प्रतापी राजा विक्रमादित्य को।।
बत्तीस नाम की बत्तीस पुतली, करीन बखान आपरो राजन को।
सही बात से प्रतापी ला ही, प्रताप मिल से देवन को।।

यशवन्त कटरे
जबलपुर १७/०१/२०२३
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136
कम से कम इन्सान बनों.... 
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अगर होय सके त कभी 
रोवतो की मुस्कान भी बनों...

जो सेती दुःख दर्दमा कोणी
उनको सुख को मार्ग बनों....

सेती जो घबराया उनला 
धीर देनला सक्षम बनों...

जो भटक गया अंधारोमा
उनको लायी रोशनी बनों...

जेव से अनाथ दुनियामा
ओको जीवन का नाथ बनों....

जो भी से राह लक भटकेव
ओन राही की मंजिल बनों...

सेव अगर सही समर्थ
दुसरो को भी सहारो बनों....

नहीं बन सको दानीदाता
कम से कम इन्सान बनों.....
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
रामाटोला गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
९६७३९६५३११
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