पोवारी साहित्य सरिता भाग ७१
पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता भाग ७१
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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१. गीत विजय का गावत चल
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हे राही, गीत विजय का गावत चल l
छत्तीस कुल की ध्वजा फहरावत चल l
संस्कृति की खुशबू नित्य लुटावत चल l
मातृभाषा को दर्जा नित्य बढ़ावत चल l
छत्तीस कुल की ध्वजा फहरावत चल l
गीत विजय का नित्य नवा गावत चल ll
जाति नाम आपलो सही सांगत चल l
मूल पहचान आपली बचावत चल l
छत्तीस कुल की ध्वजा फहरावत चल l
गीत विजय के नित्य नवा गावत चल ll
राह की बाधा दूर हटावत चलो l
रस्ता नवो खुद को बनावत चल l
छत्तीस कुल की ध्वजा फहरावत चल l
गीत विजय के नित्य नवा गावत चल ll
-इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.४/११/२०२२.
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२. पोवारी बोली को सफरनामा
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अतीत को आंचल मा होती आमरी बोली l
समाज को आंगन मा से आमरी बोली ll
राजस्थान मा नांदी से या आमरी बोली l
मालवा मा भी नांदी से या आमरी बोली l
पोवारों को मन मा येको ठाव-ठिकाना ,
देवनागरी बाणा मा से या आमरी बोली ll
खेतखलियान मा नांदी से आमरी बोली l
राजवाड़ाओं मा नांदी से आमरी बोली l
पोवारों को मन मा येको ठाव -ठिकाना ,
देवनागरी बाणा मा से या पोवारी बोली ll
संघर्ष करके आयी से या आमरी बोली l
वैनगंगा को आंचल मा से आमरी बोली l
पोवारों को मन मा से येको ठाव-ठिकाना ,
देवनागरी बाणा मा से या आमरी बोली ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.४/११/२०२२.
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36 कुल की माय बोली पोवारी की बुलंद आवाज ला नमन..
36 कुल पोवार की बोली.
मन भावन बड़ी अलबेली.
आपलोपन की पहचान मायबोली.
हाम्रो 36 कुल पोवार की जान.
हाम्रो 36 कुल पोवार की शान.
पोवारी बोली को से मोठो अभिमान.
गर्व की बेला अद्वितीय.
संस्कृति संगति विश्वासनीय.
माय पोवारी संस्कार हमेशा स्मरणीय.
धन्य सनातन धर्म रक्षक.
धन्य 36 कुल पोवारी रक्षक.
धन्य धन्य मायबोली गर्व को रक्षक.
✒️ऋषिकेश गौतम (30-Oct-2022)
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क्षत्रिय पोवार/पंवार
छत्तीस कुर का सेती.
वीर क्षत्रिय सनातनी पंवार..
सियाराम को जयघोष को संग...
वैनगंगा को क्षेत्र ला देईन निखार....
राजपुताना का वैभव.
अना मध्य भारत क़ी शान..
हर ऊजा इनना साबुत राखीसेत...
आपरी गौरवशाली पोवारी पहिचान....
देवघर मा ठेयकन्.
अस्त्र शस्त्र अना निशान..
उन्नत काश्तकारी को संगमा...
हर क्षेत्रमा होय रही सेत् महान....
भाषा जिनकी पोवारी.
नामसे जिनको पोवार पंवार..
भंडारा गोंदिया लका बालाघाट...
अना सिवनी ज़िलामा सेती होनहार....
सप् कसेती हमला.
धारा नगरी का पोवार..
आदर्श से वीर विक्रमादित्य...
राजा भोज अना जगदेव पंवार....
कुलदेव से महादेव.
कुलदेवी से माय काली..
धरम इनको सनातनी हिन्दू...
सनातन क़ी से महिमा निराली....
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
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5
🌸 सांस्कृतिक सामंजस्य🌸
भारतवर्ष को सांस्कृतिक रूपमा संस्कृति को अनेकानेक तत्व समाहित सेती। नहान-नहान सांस्कृतिक अंग मिलकन् मोठी भारतीय पहिचान क़ी निर्मिति करसे। येको लाई यव बात् मायना राखसे क़ी सप् तत्व का मान् से। कोनी को मान मोठो नही अना कोनी को कमती नही। आजादी को बाद आता देश का शासन संविधान लक चलोसे अना संवैधानिक मानता सबला यव आजादी देसे क़ी वय आपरो-आपरो मानता-मूल्य-मानदंड को रक्षन् कर सिक सेत् अना ओनको प्रचार-प्रसार बी कर सिक सेत्। राष्ट्रवादी बिचार आपरो राष्ट्र को हर मूल्य ला मान देसे अना ओको जतन् क़ी आजादी बी देसे। कोनी येक बिचार ला सपपरा थोपन को बजाय सप्पा बिचार इनको मध्य सामनजस्य का भाव शांतिपूर्ण सहस्तित्व अना वसुधैव कुटुंबकम का भाव को अनुरूप आती। यव भाव भारतवर्ष क़ी एकता अना अखंडता लाई सबलक जरुरी से।
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6
मी सांगूसु तुमला मोरी कहानी, मी सांगूसु तुमला मोरी कहानी.....
राजपुताना क़ी माटी लक़, जुड़ी से मोरी कहानी,
संग-संगमा रही से मोरी गति, वीर योद्धा इनकी जुबानी।
सांगूसु मी...
गुजराती, राजस्थानी, मालवी भाषा इनको बीचमा,
होतो मोरो बालपन, वीरता को बल क़ी सींचमा।
मी सांगूसु.....
नहानपन् का वैभव मोरो, मालवा का पंवार इनको बीचमा,
मोरी गति चोटिल भई, विदेशी आक्रनता इनकी खींचमा।
मी सांगूसु...
चल पड़ी मी धर्मयोद्धा इनको संग, धर्म रक्षन क़ी राह परा।
बुंदेलखंड वरी मध्यप्रांत मा आई, योद्धा इनकी तलवार को नोक परा।।
मी सांगूसु....
कई राज्य क़ी माटी का रंगमा, सतरंगी भया मोरो अंग अंग।
विदर्भ मा नगरधन को रस्ता वरी पहुंची, वैनगंगा क्षेत्रमा वीर पोवार इनको संग।।
मी सांगूसु.......
हर ऊजा योद्धा इनना आपरी वीरता लक़, रचीन नवो नवो इतिहास।
वीरता क़ी जीत का इनाम, वैनगंगा क्षेत्र भया मोरो लाई खास।।
मी सांगूसु....
माध्यप्रान्त क़ी भाषा इनको संग, भेटयों मोला मराठी संस्कृति को रंग।
राजपुताना को वीर पंवार, उन्नत काश्तकार भया छोड़कन आता जंग।।
मी सांगूसु.....
नवो रंग नवो रुपमा, आय गयी मी नवो स्वरूप मा।
सनातनी पोवारी संस्कृति का भाग भई, साहित्यिक नाव पोवारी को रूप मा।।
मी सांगूसु....
माय गंगा को रूप वैनगंगा को आंचल मा से, मोला उन्नति क़ी मोठी आशा।
विशेष स्वरूपमा मी आता सेंव, छत्तीस कुर पोवार क़ी मातृभाषा।।
मी सांगूसु तुमला मोरी कहानी, मी सांगूसु तुमला मोरी कहानी.....
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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7
पोवारी की शान
सब भाषा को सार, मिलसे पोवारी मा।
मि सिर्फ बर्तन पर, सांगुसु रिश्ता पोवारी मा।।
पोवारी संस्कृत की भानी आय।
पोवारी हिंदी की टाठी आय।।
पोवारी भोजपुरी की गिलास आय।
पोवारी बुंदेलखंडी की कड़ाई आय।।
पोवारी बुंदेलखंडी को झारया आय।
पोवारी मराठी को लोटा आय।।
पोवारी छत्तीसगढ़ी को प्याला आय।
पोवरी सिंधी भाषा की छाननी आय।।
पोवारी मालवा की हांडी आय।
येको बाद भी पोवार पोवारी लाय सरमाय।।
हाम्ही पुरी कोशिश करबन ।
पोवारी को ध्वज लहराय।।
जय राजा भोज जय माय गड़कलिका 🙏🙏🙏
यशवन्त कटरे
जबलपुर,०६/११/२०२२
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8
पोवारी माय बोली🙏
संग संग चले पोवारी घर घर खिले पोवारी सब संग मिले पोवारी,
पोवारी बोली लक माया लगाओ,
पोवारी बोली भाषा पर मी जाहु बलिहारी,
नौ लय छंद लगाओ पोवारी को दीवो जराओ,
सब संग मिलजुल आओ गीत कविता सुनाओ,
पोवारी बोली लक माया लगाओ
पोवारी बोली भाषा पर मी जाहु बलिहारी,
मन मा बसाओ आओ सब मिल आओ ममतामयी पोवारी भाषा बोली को श्रंगार सजाओ,
पोवारी बोली लक माया लगाओ,
पोवारी बोली भाषा पर मी जाहु बलिहारी,
जग मा से सबकी भिन्न भाषा बोली सबकी से अलग माय बोली,
,माय बोली को अर्थ ला सबला समझाओ ,
पोवारी बोली लक माया लगाओ,
पोवारी बोली भाषा पर मी जाहु बलिहारी,
संग संग चले पोवारी सबमा मिले पोवारी घर घर खिले पोवारी,
पोवारी बोली भाषा पर मी जाहु बलिहारी,।।
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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9
चांगली बदल रहिसे हवा
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धीरु धीरु पोवार जातीकी
चांगली बदल रहीसे हवा |
आयी नव पिढी समाजकी
करन लगी सबकी सेवा ||१||
नव युग से सबको पुढो
पुरानो युग बदल गयो |
धरोवर ला बचावन को
इतिहास से लिखण को ||२||
गर्व से पोवारी भाषा पर
बोली बोलो आपली मधुर |
लिख रहया सेती कविवर
पोवारी का महाजानकार ||३||
पुरखा इनकी धरोवर
अनमोल से जीवनभर |
काम करो सब मिलकर
पोवारी नाव रहे अमर ||४||
छत्तीस कुऱ्याला कवणकी
गरज पढी संघटनकी |
जात पोवारी बचावणकी
मिलझुल कर रव्हनकी||५||
पोवारी साहित्य सरीता ७१
दिनांक:६:११:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
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पवारी को भ्रम
कुछ साहित्यसे जुड़े लोग पवारी ( पवारी = पोवारी + भोयरी) साहित्य निर्मित कर रहे है, प्रचारित कर रहे है , और कुछ लोग उस साहित्य को बनाने में साथ दे रहे है ! दरअसल वे अनजाने में अपनी ही भाषा का , अपने समुदाय का नुकसान कर रहे है !
उनकी गलती नहीं क्योंकि वे लोग इतिहास के रेकॉर्ड से परिचित नही ! उनका ऐसे किसी व्यक्ति पर प्रगाढ़ विश्वास कर बैठ गया है जिनको खुदको भारत पहले भाषा सर्वे के बारे में जानकारी नही है ! और ये भ्रमित लोग साहित्य की खिचड़ी करने के लिए अपने मन मुताबिक मिश्रित साहित्य एक मंच पर , एक ही पत्रिका में प्रस्तुत कर रहे है जो भविष्य के पीढ़ी के लिए भ्रमित करने वाला है ! संभवत: यह कार्य स्वार्थ के कारण या अज्ञान के कारण हो रहा है !
स्पष्ट रूप से भाषाए अलग होते हुए भी उनको जोडकर एक कहना अज्ञान के सिवा कुछ भी नही ! मनुष्य स्वार्थ इतना हावी न हो की वह अपने ही जड़े काटने लगे ! दरअसल अति स्वार्थ समाज का नुकसान कर रहा है !
पहले भाषा के अनुसार पवारी यह भाषा दतिया , झाँसी , बुन्देलखण्ड , ग्वालियर आदि क्षेत्र में पंवार राजपूतो द्वारा बोली जाती है ! वहा उस क्षेत्र में पंवार क्षत्रियो की बहुतायत है ! और भोयरी एक अलग ही भाषा है ! उसका ढांचा हमारे पोवारी से बिलकुल अलग है ! जबरदस्ती भोयरी को पोवारी से जोड़ना यानि पोवारी की बर्बादी है ! बोलियों का कचरा करना बेहद गलत बात है !
शासकीय दस्तावेजो में भोयरी को कही भी पवारी लिखा नही मिलता ! यह नागपुर के कुछ लोगो की मन की उपज है ! असत्य प्रसारित न किया जाये !
सत्य परा आधारित विचारधारा को सामने व्यक्ति, संघठन ,सबन्ध को काइ महत्व नहाय ।
जो सत्य परा आधारित विचारधारा अना आदर्श पर चलसे वुच सज्जन आय।
जो स्वार्थ को कारण असत्य स्वीकार लेसे उनला उनको मंग धूर्त, बदमाश अना चालाक कह्यव जासे ।
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11
नवधानी/ नवतरी
ऑक्टोंबर, नोव्हेंबर, डिसेंबर
ये आती नवधानी का महिना,
किसान क् घर आवसे फसल
अना मनमा वोक् खुशी मावना.
फसल बिककर आयेव पैसाल्
करसे सालभरक् सामानसाती खर्चा,
नवधानी जानोक् बाद हात खाली
पैसा पैसा क् हिशाब की चर्चा.
नवधानी मा पोहा, मुर्रा, चिवडा
सब दनादन लेन को ना खानको,
नवधानी क् बादमा झुरमुरायके
दुसर् नवधानी की बाट देखनको.
कभी ओलो अकाल, कभी सुका
किसान की या हमेशा की कहानी,
सुका पड गयेव त् तुट्या सपना
कहॉ का कपडा, काय की नवधानी.
अच्छी भयी फसल त् मनमा खुशी
हसीन सपना इनकी रव्हसे भरमार,
पर दुय महिना क् बाद मा खतम
होय् जासे नवधानी की रंगीन बहार.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
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12
पोवारी माय बोली मा🙏
हो हो हो
मी रज रज जाऊ रच रच बस जाऊ तोरी टोली मा ,
पोवारी माय बोली मा ,
तोरो संग धुल जाहु तोरो मा मील जाहु सज जाहु तोरी टोली मा,
पोवारी माय बोली मा,
तोरी गाथा मी गाहु गुण गान सुनाऊ टोली टोली मा,
पोवारी माय बोली मा,
संग सबला मिलाहु तोरो जस मी गाहु यश किर्ती बढाहु टोली मा पोवारी माय बोली मा,
झुमु नाचु गाऊ गती लक बढ़त जाहु सारो जग ला सुनाहु टोली मा
पोवारी माय बोली मा,
नवी पिढी़ ला जगाहु सबला सिखाहु काही करके दीखाहु टोली मा ,
पोवारी माय बोली मा,
संस्कार जगाहु संस्क्रति ला बचाहु मी टोली मा ,
पोवारी माय बोली मा,
मी रज रज जाऊ रच रच बस जाऊ तोरी टोली ,
मा पोवारी माय बोली मा,
हो हो पोवारी माय बोली मा,
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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सम्मानीय कविगण
मोरी सबलक विनती से कि हमरा सोलह संस्कार पर पोवारी बोली मा लय ताल पर गावन ला गीत लिखकर गावतीन तो जब कभी जेको घर मा कोई भी संस्कार का कार्यक्रम होसेत तो वोय गीत संगीत संग गाय सकत।
जसो आजकल जनमदिन को बड़ो चलन बढ़ गयी से तो जन्मदिन मा हैप्पी बड्डे न बोलकर गीत या गाना गायो जाहे त अपरी बोली चलन बढ़े।
कोमल प्रसाद राहँगडाले कल्याणपुर धारनाकलाँ तहसील बरघाट जिला सिवनी।
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चिंतन
नैतिकता ,शील , मर्यादा रूप आभूषण रहित व्यक्ति लोगइनको मन मा सन्मान को पात्र नही रव्ह , भलेही मंग वोको पास सत्ता , अधिकार, पैसा केतरोच रहे ।
चरित्र को धन बिना व्यक्ति को पास भौतिक धन केतरो च रहे वु वास्तविक रूपमा निर्धनच रहे जासे ।
पोवारी बोलनो , अना व्यवहार मा आननो, जीवनमा कमीपना नही बल्कि या आमरो पूर्वज की मान मर्यादा आय।
पोवारी तुमरो विकास मा कभी बाधा नही बनअ बल्कि तुम्हारो आपरो सगो संबधी को बीच मा आपसी भाईचारा बढ़ाओ से, सबको मान मर्यादा को ध्यान राखन की सिख देसे।
पोवारी बोलो अना मिठास घोलो।
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14
नवधानी
का सागु येन साल भयी मोठी हानी नवधानी मा,
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
रात दीवस खेती मा धंधा करके आयो बुढापा जवानी मा,
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
एक एक पैसा लाय तरस गयो किसान,
मेहनत कसो करे येन बेहाली मा
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
पानी आयो रदा भर येन साल काही फरक नही नवधानी मा
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
साहुकार को कर्जा पडी़ से चैन नहाय येन जीन्दगानी मा,
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
डोरा लक जप परायी ,जेवन खान की सुध बिसरायी,
किसानी मा मेहनत बिलाय गयी पानी मा,
का सागु येन साल भयी मोठी हानी नवधानी मा,
मोरी मेहनत बिलाय गयी पानी मा
किसानी बिलाय गयी पानी मा,
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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पोवारी भाषा में पर्यायवाची
( क्षेत्रवार विभिन्नता के कारण)
हमारा = आमरो, आम्हरो, हमारो, हमरो
हम = हमी, आमी, आम्ही
अपना = आपरो, आपलो
छोटा = नहान, लहान
तुम्हारा = तुमरो, तुम्हारो
डालना = डाक, टाक
कितना = केतरो, केत्तो
भेजना = धाड़, पठाय
हरा = हिवरा, हिरवा
इसीलिए = येकोलाइ, येकोसाती
दौड़ना = पराय, धाव
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"ज्या पँवार त्या धार"
या कहावत कसी पड़ी यको परा एक कहानी से । वा कहानी असी की ----
धारानगर को एक पँवार राजा न जेसळमेरको एक बेपारीला पकड़कर न्याय प्रक्रिया को अधीन वोको सब धन जप्त कर लेइन । छूट्यव परा वु बेपारी जेसळमेरको राजा देवराजको दरबार मा जायकर गुहार लगावन लग्यौ । देवराज रावलजी न आपरो प्रजाको अपमानला आपरो अपमान समझकर तुरंत क्रोध मा प्रतिज्ञा लेइन कि जबलक धारानगरीला जीत नही लेवु , तबलक पानी बी नही पिऊँ।
धारानगर जेसलमेरलक बहुत दूर होथो अना गए बराबर धारा जीत लेनो बी संभव नोहोतो। तब लक बिना जल पिये देवराज रावळजी कसा जीवित रहेंति, यव सोचकर सब सरदार चिंतित भया। अंतमा एक उपाय सोच्यव गयौ कि माटीकी धारानगरी बनाई जाये अना राजा वोको परा विजय प्राप्त करके जलपान करेंति अना वोको बाद मा असल धारानगरपरा आक्रमण करनकी तय्यारी करी जाये। समझावनों परा देवराज रावळजी न या सलाह मान लेइन। धारानगर सरिसो माटीको दुर्ग बनायो गयौ अना देवराज रावळजीको यहाँन रवनेवाला पँवार सरदार वोन नकली धारानगर की रक्षाको लाय तय्यार भया । देवराज रावळजी बचन पूर्ति लायी सेनाको संग दुर्गको ध्वस्त करन आया त पँवार सरदार तेजसी अना सारंग न सचमुचको युद्ध छेड़ देइन। दुसरो लोगइनन समझाइन त कवन लग्या कि धारानगरी आमरी मातृभूमि आय, वोको नाश आमी नही देख सकजन भले ही वा नकली च काहे नही रहे, जब लक एक बी पंवार जीवित से तब लक देवराज रावळजी येन धारा दुर्गपरा विजय प्राप्त नही कर सकेति -
जहाँन धारा से वहाँन पँवार से अना जहाँन पँवार से वहांन च धारा से ।
अंत मा युध्द करता गिनती का वय वीर पँवार योद्धा मारा गया वोको बाद च देवराज रावळ वोन नकली दुर्गको विध्वंस कर सक्या।
धन्य से वोन पँवार वीरइनको अभूतपूर्व मातृभूमि-प्रेम !
संकलन
महेन पटले
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16
हमरी जाती आय पोवार🙏
जाती हमरी पोवार से भाऊ बोलसेन पोवारी,
नेग दस्तुर का हमी पोवार सेजन बडा़ संस्कारी,
सोलह संस्कार हमरा हमी सबको ठेव सेजन मान,
संस्कार अना संस्क्रति बचावन हमी बनया पहरेदार,
होहे जग मा हसायी हमरी लोग कसेत बन बावरा भया ये पोवार,
कोनी की बात ला मन मा
नोको लगावो भाऊ याच से हमरी दरकार,
राखसेजन सबको मान सम्मान प्रेम लक करो अंगीकार,
कसो भुलबी सबको संग घुल मिलकर रवनो से हमाला ,
काहे की मानुष जन्म मिल्हे ना बारम्बार
छत्तीस कुल का अम्ही क्षत्रीय आजन भाऊ पोवार,
हमरी बोली सबले न्यारी न्यारा हमारा संस्कार,
एक धुरी मा नोको आको अम्ही सेजन अग्नीवंश पोवार,
शीश कटाय देया बलीदानी भया हमरा पुर्वज कोनी को आगे झुकी नही तलवार ,
सत्य सनातन धर्म का हमी वांशीदा श्री रामचंद्र जी सेत हमरा देव अवतार,
माय गढकालीका हमरी कुल देवी चरण वंदन करो माय स्वीकार जय जय क्षत्रीय पोवार🚩🙏🚩
विद्या बिसेन
बालाघाट
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17
संयोगश्च वियोगश्च
वर्तते न च ते न मे ।
नवं नाहं जगन्नेदं
सर्वमात्मैव केवलम् ॥ १५ ॥
तोरो अना मोरो मा न मित्रता से, न दुरावो से, न तु सेस न मी सेव, न यव जगत से । यव सब जो काइ बी से वु केवल परम ब्रह्म च से । । १५ ।
......श्रीकृष्ण
जीवन त् रंगमंच आय । सबको आपलो पात्र से , निभावता चलो । पात्र निभावन को समया बस एक बात ध्यान राखो की भरम रूप निंद्रा घेर न ले कही बी कबी बी ।
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रचना संजोनो अना वोला पोवारिमय स्वरबद्ध करनो येव काम समाज को गरिमा अना संस्कार ला निरंतर ऊँचाई पर पंहुचावनो आय.
येन प्रकार को उत्तम कार्य लका वास्तविक आपलो पोवार समाज को जड़ मा अमृतमय जल को सिंचन करनो आय.
आपलो अना आपलो पूर्ण टीम को कार्य की जेतरी सराहना करी जाय कम से.
आपलो कवनो मा बहुत अच्छो महसूस होय रही से.. कारण आम्ही सब जन अप्रत्यक्ष/प्रत्यक्ष रूप मा टीम को एक हिस्सा महसूस कर सेजन.
बहुत बहुत धन्यवाद
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