पोवारी कवितायें संग्रह

 

 

पोवारी  कवितायें  संग्रह

1.         

गंगा बाई नरबदा भरी चली से

चंदन को पाट जो,चंदन को पाट जो धोयो गयी से,

तोला कहु काहार भाऊ तोला कहु काहार भाऊ दुध डाक बहुर जार

हेड चंदन पाट हेड चंदन पाट,

हाथ धरजो सीकरा हाथ धरजो बसला

चंदन को पाट जो तोषयो गयी से,

जीन जीन कन की जीन जीन कन की चौक बसी से

पांच झनी सवासनी पांच झनी सवासनी चौक बसी सेत,

येन घर कोघर धनी ला  येन धर को घरृधनी ला काहे पैदा भयी से

येन घर को घर धनी ला कन्या पैदा भयी से,

कौन की नातिन  कौन की नातिन चौक बसी से

हरचंद भाऊ की नातिन चौक बसी से

कौन की कन्या जो चौक बसी से

राजा राम की कन्या वो राजा राम की कन्या वो चौक बसी से,

खद खद हाससे खद खद हाससे बाई तोरी ओसरी

बाई तोरी ओसरी

सौ.विद्या बिसेन

 

 

 

 

2.         

कौन कसे पोवारीलाच खतरा से

पोवारीला खतरा से

भोयरी ना पवारी बी कहां जिंदा से

पोवार आजन आमी पोवारीच आमरो बाणा से

कोणी कवो पोवार कोणी भोयर पवार सब को एकच ताणा बाना से

पोवारी की अस्मिता रहे खतरा मा

सुरक्षित काहां भोयर, पवार ना परमार से

याद करो युधिष्ठिर की बाणी

आपस की लळाई मा 100 विरूद्ध 5

पर दुसरो संग युध्द मा सेज 105 भाई

कोणी केतरो बी रहे ग्यानी

कर लेये केतरी बी अभिमानी

पोवारी की अस्मिता मिटावन की नही कर सक नादानी

आपलोच सावली ला कंदरावो नोको

सरप को जहर पेक्षा हार्टफेल मर सेत जास्त

तसा मरो नोको.

पोवार आजन आमी पोवारीच आमरो बाणा से.

अहंकार पालो नोको

कोणीला बी कमी लेको नोको

नही पटत रहे आपलो रस्ता चोकारो असी भाषा बोलो नोको

कोणी मानसिंग दिसत रहे

वू शक्तिसिंग कसो बने एको बिचार करो

याहां ना वाहां एक गाणा से

दिसत रव बी अलग अलग पर एकच आपलो ताणाबाना से

श्री राजेश राणे

(पंवार)

 

साजरा जम्या-ठम्या सब घर-बार रहवसेति,

गाँव की जोन गली  हिनमा पंवार रहवसेति!

 

खेती-बाड़ी, नौकरी-चाकरी मा भी अव्वल

कोण्ही-कोण्ही का मोठा ब्यापार रहवसेति!

 

संचय को झाड़ मा संपन्नता का फूल सेत,

उनको बगीचा मा हरदम बहार रहवसेति!

 

मेहनत करस्यार, वोय खून ला करसेत पसीना,

तब उनको घर की मजबूत दीवार रहवसेति!

 

राजाभोज का वंशज, श्रीराम को नारा ऊंचो,

मातृभूमि को साती मरन ला तैयार रहवसेति!

 

तुमेश पटले "सारथी"

केशलेवाड़ा, हट्टा (. प्र.)

 

मी पोवार.

मोरी जात पोवार.

मोरी भाषा पोवारी.

 

या सब पर से भारी.

मोरो स्वाभाव मा से मोठी खुद्दारी.

कोनी समझो नको येला मक्कारी.

 

आपलो जात पर उतरेव मंग सब पर भारी.

येन दिलमा कोनिला जागा देया, वोको सम्मान भी भारी.

मी पोवार, मोरी जात पोवारी.

जय पोवार, जय पोवारी.

 

जय राजाभोज,  जय पोवार, जय पोवारी.

 

First natural poem came from heart in Powari.

ओहो भाऊ बहीनी दादा काका काकी मामा मामी

सुनो सुनो एक राज की सागु सु बात,

हो  हो हो  हो

अरे राखो भाऊ राखो पोवारी को मान पोवारी फले फुले,

पोवारी फले फुले बहीनी पोवारी  ओरया चघे,

 

बडो मोठो सोच की बात गा भैया जिकर चल से माय बोली को

कोनी पोवारी सही से कोनी कसे पोवार,

येन भाषा बोली को चक्कर मा भाऊ दील टुकडा भया हजार,

कोनी ईत गयो कोनी ऊत गयो,

भय गयो गा बन्टाधार ,

अता सागो पोवारी कसी फले फुले,

राखो भाऊ बहीनी दादा

पोवारी को मान पोवारी फले फुले,

 

राजा भोज को मोठो से मान सब जाती वाला करसेत सम्मान ,

पोवार की परचम फैल से गाव शहर लोग करसेत वोला प्रणाम,

 

मग काहे को मन मा रोश भरी से

क्षत्रीय आजन अम्ही काहे जोस मा कमी से ,करलो भाऊ समाधान

मोरो भैया करलो समाधान

 

अपरी पोवारी फले फुले मोरो भाऊ ठेवो ऐको मान ,बहीनी राखो येको सम्मान,

 

आवन वाली से नवी पिढी उनला

पोवारी को शंखनाद

 

आवो जागो पोवार साथीयों

से पोवार घर जगावन को

संकट मा से माय पोवारी

प्रण करो वोला बचावनको

 

कारस्थान को शिकार बन रही

से फासा शिकारी को तोडनको

नोको कोंडनदेव माय पोवारी

अस्तित्व वको से बचावनको

 

मीटाय रह्या सेत  नाव पोवारी

कान पर हात नही झाकन को

नोको कवो तुमी मोरो का जासे?

बेरा आयी पोवारी जगावनको

 

पोवारी की यतरी नफरत कायला?

हिम्मत से का? असो बिचारनको

पोवार की पोवारी  बचे  पायजे

प्रण करो आब् वोला बचावन को

 

चल रही से यव षडयंत्र धरा पर

पोवार पोवारी नाव मिटावन को

मंग कहेत एक होती माय पोवारी

सीर्फ इतिहास पुरानो सांगन को

 

आवो सब बोली को मान बढावो

कोनकीच नफरत नही करनको

जब् आमरोच मायको घर जरायत

तब् करो शंखनाद, उगोमुगो नही रवनको?

**

डॉ. शेखराम परसराम येळेकर

🌻नावतपा🌻

दि.२३.०५.२०२०

 

लग रही से नव तपा, होय जावो तैंयार आता ll

आग बरसे सूर्य लक आता,बांध लेवो अपरो माथा ll

घर लक बहेर जाता जाता, ठेय लेवो जवर एक कांदा आता ll

आजी माय को नुकसा अजमावॊ आता,काम लगे तपन की झाव आता ll

बनाय लेवो पेज सब घर आता,

माजा लेवो आंबा को रस संग सेवई कॊ आता ll

लहान लेकरूबार ला सांगो आता, नही खेलेत तपन गागरा मा

आता ll

जब वरी नही जाय नवतपा आता,

घर माच रहो सबजन आता ll

बाट देखो बरसात को दिवस की आता, तैयार ठेवो छत्ता आता ll

कम होय जाये सूर्य देव को प्रकोप आता, रोहनी नक्षत्र मा जाता जाता ll

********

प्रा. डाँ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु.पो. दासगांव ता. जि. गोंदिया

मो.९६७३१७८४२४🙏🙏

काव्य स्पर्धा क्र.

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           विषय- आंबा को रस

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               पाहुणचार

               ****

आंबा आय सब फल इन को राजा,

वोक् रस मा आवसे बहुत मज़ा.

 

उन्हारो मां कोनी आयेव त् पाहुणा,

आंबा को रस ना घिवारी बनाओना.

 

आंबा को रस संग,उखडेव पीठ की रोटी,

खासेती सब झन आजी,माय ना बेटी.

 

आंबा को रस असो बी पिय सक सेव,

रस नहीं बनायात त् आंबा चुस सक सेव.

 

आंबा पिकेव रव्ह या कच्चो आवसे काममा.

कच्चो सेत् उबालकर,पन्हो बनावोना.

 

आंबा की खटाई बी बनाई जासे,

सब्जी मा डाकन् क् काम आवसे.

 

आंबा क् खुल इनकी बनसे गोडकढी,

सब्जी की सब्जी ना व्यंजन बी भारी.

 

असो येव फल को राजा से उपकारी,

रस,पन्हा,गोडकढी को मजा लेसेत नर नारी.

 

              रचना- चिरंजीव बिसेन

                              गोंदिया.

                           दि.२३//२०

उन्हारो को आंबा

 

उन्हारो को दिन मा आंबा रवसे खास,

येन दिन मा होय जासेत सब आंबा का दास।

 

हिवरो रव का पिवरो, सबको मन ललचावसे,

वोला देखके सबको तोंडला पानी अावसे।

 

आंबा यो फल आय सब फल इनको राजा,

उन्हारो को दिनमा सब बन जासे येकी प्रजा।

 

बिया भयो पर आंबा को रसला बुलावनको से दस्तूर,

मंग बियायीन रव नागपुर नहीत कानपुर।

 

आंबा को रसमा डूबायके खासे बियायीन सेवई,

आंबा को रसला आयके घर को रस्ता भुल गई।

 

आंबा को रसला बुलावन को बहाना रवसे एक,

दुय परिवार ला जोड़न को इरादा से नेक।

 

जेतो बार खावो वोतो बार आवसे याद,

सिर्फ चार महिना रवसे रस को स्वाद।

 

कच्चो आंबा को रस लका नहीं लग झाव,

मुनच कसेती उन्हरो मा आंबा को रस जादा खाव।।

 

   - कु. कल्याणी पटले

     दिघोरी, नागपुर

।।।आंबाकी घात।।।

(चाल-आवो ना समदी----

भप नानिकराम टेंभरे ईनक गानाकी तर्ज)

 

सकाळी आय जावो जवाई,

आंबाकी से आब घात,

बनाईसेव गोड़ साग जवाई ,

बनाईसेव गोड़ साग।।धु।।

 

तुम्हरं सारोकं सुसरो घरका,आंबा आया सेती

आम्हरं अमराईमा अमदा ,झाड़ फर्या नाहाती

गोड़ मोहुको योव रस्सा, खायलेवना एकबार।।१।।जवाई

 

बबली आईसे गाव ,रोज करसे तुम्हरी याद

लहान सारीसंग आवोत ,होय जाय मुलाखात

बहाना नोको सांगो एक तासकी से बात।।२।।जवाई

 

जेवन करोआराम करो,बात चितमा टाईम पास

मोठं बाईला लगीसे गोड़ साग की आस

बहिन गर भाई सुसरो घर जवाई, धरो मनमा बात।।३।।जवाई

 

आंबाकी घात जायपर मंग तुम्ही आवो

रस रोटी घिवारी सेवई पाहुनचार कसो पावो

भेट- भलाई होय जाय स्कुलको बहानकी बात।।४।।जवाई

 

वाय सी चौधरी

गीत

रुक ना मानव हार मानकर,बढ़ता चल तू बढ़ता चल

वक्त तुझे बना दे अपाहिज

मन से पंगु मत होना

कर्म की वेदी में जलता रह

धर्म से विमुख मत होना

 

मंजिल रस्ता देख रही है ,चलता चल तू चलता चल

रुक ना मानव हार मानकर, बढ़ता चल तू बढ़ता चल

 

देशहित से नहीं मुकरना

देश हित में मर जाना

झुके देश जो तेरे खातिर

काम ना ऐसा कर जाना ।।

 

देश भक्ति की पावन धूनी , मलता चल तू मलता चल

रुक ना मानव हार मानकर ,बढ़ता चल तू बढ़ता चल

 

मानव जीवन सरल नहीं है

पग-पग में कठिनाई है

खुले आंख से सपने देखे

उसने मंज़िल पाई है ।।

 

लक्ष्य प्राप्त की खातिर तू , गलता चल तू गलता चल

रुक ना मानव हार मानकर, बढ़ता चल तू बढ़ता चल

 

स्वरचित

🏻 रचना - पंकज टेम्भरे 'जुगनू'

🌻काव्यस्पर्धा क्र.११🌻

       विषय:अहंकार

     दि.२४.०५.२०२०

 

🌻अहम की दीवार🌻

 

मानव जीवन नही आव बार बार,

त्याग करो अहम की दीवार ll

 

यातना सहन करनो पड़ी से माय

माय-बाप ला अपार, कायलाईक बनायात अहम की दीवार ll

 

बर्बाद होय जये समाज मा तुमरो संसार, काहे बिछायात अहम को जाल ll

 

सबला पड़ी से मोठो बिचारं, कोण बनावसे से अहंम की दीवार ll

 

काहे से अहंम लक येतरो प्यार,

एक दिवस नाश करेत असा बिचार ll

 

बच्या नही येकोलक इंद्र का राज दरबार, त्याग करो अहंम का बिचारं ll

 

धन- दवलत रहे जरी अपार, सबला जानो से त्याग कर मोह माया को संसार ll

 

अगर नही त्यागो अहंम  बिचारं,

समाज नही धावन को सोडस्यार

आपरो संसार ll

 

अगर त्यागो अहंम का बिचारं,

मान सन्मान भेटे तुमला अपार ll

 

सुकुन भेटे परिवार समाज ला

अपार होय जाये कुल को उद्धार ll

 

सुख दुःख से जिवन को आधार,

पार लगावबिन आमी आजन पोवार ll

 

सब

पोवारी इतिहास ,साहित्य अना उत्कर्ष  द्वारा आयोजित काव्य स्पर्धा क्रमांक ११

विषय: अहंकार

 

🌷🌷 अहंकार 🌷🌷

 

परम शिवभक्त, महा बलशाली

सुंदर सोनो की लंका को अधिपती।

लंका की नहीं बची महालमाळी

अहंकार लक् मारी गई ओकी मती।।

 

अहंकार को मणमा धससे भूत

माणूस की होसेत भाऊ बडी गती।

चार लोक नहीं रवत सकोली जवर

पैसा की गरमी होसे आगमा सती।।

 

जब सत्ता आयजासे एकबार हातमा

अहंकार को पिल्लू होयजासे साथमा।

स्वार्थ साती देसे समाजको बलिदान

नहीं रव ईमानदारी नेता को बातमा।।

 

कायला येत्तो अहंकार से मानव तोला

कब काया को पक्षि पिंजरा तोड़ उडाये

पंच तत्व की बनी या नश्वर नर काया

एक दिवस येन माटी मा मिल  जाये

 

अच्छो काम कर समाजसाती काही

समाजका आमी सेजन शतशत ऋणी।

अहंकार को जारवा तोड होय तय्यार

पोवारी साती बन तू वाल्मिकी  मुनी।।

 

सौ. छाया सुरेंद्र पारधी

पोवारी इतिहास ,साहित्य अना उत्कर्ष

 द्वारा आयोजित काव्य स्पर्धा क्रमांक ११

विषय : अहंकार

 

चुकेव तोरो गांधारी

 

तू हस्तिनापुरकी महाराणी होतीस

राजा धृतराष्ट्र की होतीस प्यारी

संभाल सकीस घरवालला

चुकेव तोरो गांधारी,

चुकेव तोरो गांधारी।। १।।

 

पट्टी बांधेस आपलच डोराला

तोला दुपारबी लग् अंधारी

अहंकार को तून्  करेस समर्थन

चुकेव तोरो गांधारी,

चुकेव तोरो गांधारी।। २।।

 

धर्म मनुन पट्टी बांधेस डोराला

तोरी शिव भक्ती बी होती न्यारी

पुत्र मोहमाच साधना व्यर्थ

चुकेव तोरो गांधारी,

चुकेव तोरो गांधारी।।३।।

 

वऱ्या वऱ्या की तोरी आत्मीयता

तोर् अंतर मन मा खुन्नस भारी

भगवान कृष्णला बी सराप देयेस

चुकेव तोरो गांधारी,

चुकेव तोरो गांधारी ।।४।।

 

कायला नही देखेस तू खुल् डोरालक्?

भाई भाई की मारामारी

मुकी रयकन चूप रहीस

चुकेव तोरो गांधारी,

चुकेव तोरो गांधारी।। ५।।

 

डोरा खोलस्

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      विषय: अहंकार

 

   🌹 मनुष्य को शत्रु 🌹

 

अहंकार से मनुष्य को शत्रु बडो,

येला जीवन लक दुर ठेयकेच काम करो।।

 

अहंकार मा आदमी नहीं होय सीक कोनीको,

धर्मी,अधर्मी सबलाच काम पडसे पानी को।।

 

अहंकार लक रावन की लंका भी जर गई,

आखिरकार रावन की आत्मा राम की शरणार्थी भय गई।।

 

हर मनुष्य को आत्मा मा से अहंकार,

पर येला आत्मसात कर्योलकाच होसेत दुर घर-दार।।

 

अहंकारी आत्मा मा नही रव वास भगवान को,

पर मरन को बेरा रावन लेईतीस नाव भगवान श्री राम को।।

 

पहचान करन की से जरूरत आपरो गुनी स्वभाव की,

खुद खुश रहो, सबला खुश ठेवो पहचान होये तुमरो हाव-भाव की।।

 

हिवारो की ठंडी मारसे उन्हरों को तपन ला,

निसर्ग मा हरियाली आनसे फायदा होसे सारो जन ला।।

 

धरती को हर मनुष्य मा से अहंकार,

पर ईमानदारी को सागर मा नही होय सीक येकि नैया पार।।

 

आमरो पूर्वज की जन्मभूमि आय धार,

आम्ही आज क्षत्रिय पोवार।।

      

       - कल्याणी पटले

          दिघोरी, नागपुर

काव्यस्पर्धा ११

विषय-अहंकार

 

परमात्माको पुत्र मानव

वकि मयमा न्यारी।

अहंकार यव् दुर्गुन आवताच

नाससे बुद्धी सारी ।।

 

रावन, बाली  शक्तिशाली

अहंकारमा चुर भया

सिदोसाधो मानवलका

यमपुरी चला गया।।

 

                        चार वेद ,सय शास्त्र                       

अठरा पुराण ,सारो पसारा

अहंकारला मिटावनसाठी

होसे आजबि ,लेखन सारा।।

 

एकता संयम त्याग पराक्रम

हारे अहंकार यकलका

भरो ह्दयमा ऊर्जा आध्यात्मिक

हरेती दुर्गुन, चुटकिलका।।

 

राजाभोजक् वंशज आजन्

बनबि योद्धा, योगीबि

जितेंद्रिय बनबि आमी

हरेती सारा दुश्मनबि! ।।

 

पालिकचंद बिसने

सिंदीपार (लाखनी)

काव्यस्पर्धा 11

विषय--अहंकार

 

कोनी कसे अहंकार म्हणजे गर्व

कोनी कसे गर्व नहि ,आत्मसम्मान

एक शब्द का जरी सेती दुय मान्यता

तरी दुही देसेत जीवन मा अपमान ।।

 

तन बि रवसे इंद्रिय पर पुरो निर्भर

अन यव जीवन से दुय घडी को खेल

अहंकार करसे शरीर ला पुरो दूषित

मंग इंद्रिय को बि कसो रहे शरीर मा मेल ।।

 

 

जरा देखो येन हरीभरी प्रकृती ला

केतरी से सत्वशील अन परम उदार

सतत मन मा करसे दान को जतन

नहाय ओकोमा जरासो बि अहंकार।।

 

 

येन धरतीपर कोनी नाहाती नहान मोठा

सब सेती एक दुसरो पर जीवनभर निर्भर

हे मानव!समझाय ले तू या संकल्पना

तो तोरो जीवन नहि होनको असो जर्जर।।

 

 

येन जीवन मा कमाओ चांगली कीर्ती

अन पिरम, शांती को करो अनुष्ठान

जरा अहंकार को नाश करकन देखो

"मनुष्यता"को बस जाये साजरो प्रतिष्ठान ।।

 

 

मानवी मुल्य करसे नर को नारायण

"राम-कृष्ण"धरतीपर भया पतित पावन

आता जार डाको 'मी"पन कि

काव्यस्पर्धा क्र.११

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          विषय- अहंकार

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अहंकार आय आदमी को सबसे मोठो दुश्मन,

सबला आपल् जवर् ठेवो पर अहंकारला दूर ठेवण्.

 

अहंकार लका मोठा मोठा साम्राज्य भया नष्ट,

अहंकार लका आदमी की बुद्धी होय जासे भ्रष्ट.

 

रावण,कंस,दुर्योधनको अहंकार नच् करीस् घात,

मनला बस मा ठेवो करो अहंकार पर मात.

 

येव काम मी कर सकुसू या आय काबलियत,

पर मीच कर सकुसू या आय अहंकार की नियत.

 

आपल् शक्ति पर ठेवो हमेशा विश्वास,

पर आपल् कमी को भी रव्हन् देव आभास.

 

राम, कृष्ण ला होतो आपल् शक्ति पर विश्वास,

आपल् कार्य ल् संसार मा बन गया वोय खास.

 

              रचना- चिरंजीव बिसेन

                              गोंदिया.

             मो.नं.९५२७२८५४६४

📣 पोवारी को जागर📣

 

यन घडीला  आमी सोया सेजन

संकल्प करो सबला जगावनको

ममता भरीसे आमरी माय पोवारी

आवो नाता हिरदयलका जोडनको

 

कोनी सोवसे अना कोनी रोवसे

आयी बेरा सबला समजावनको

सोवनको जेन ढोंगच करीसेस

मुश्किल से वोला जगावनको

 

माय पोवारी से मुश्किल घडीमा

आब् हात गुंडस्यानी नही रवनको

पोवार प्रगती से अभियान आमरो

यको हकदार से सबला बननको

✍✍

डॉ. शेखराम परसरामजी येळेकर नागपूर २४//२०२०

काव्यस्पर्धा क्र.११

 

   ,,💥 विषय-  अहंकार💥

         

नको करू तू अहंकार, जगमा सेस तू काही दिवस को पाहुणा,

रहेव ना रावण सारखो अहंकारी हिरण्यकशप सारखो वरदानी, श्रण मा छुट जाये प्राण नको करू तू अहंकार!!!!

 

 

भया अर्जून सारखा धनुर्धारी, धर्मराज सारखा धर्माचारी, दानी कर्ण सारखा जगमा काही दिवस का पाहुणा नको करुस तू अहंकार!!!!

 

आयक्या होता सिकंदर दारा की कहानी, आयक्या  सम्राट राजा भोज की  सुंदर कहानी विक्रमादित्य सारखा विर जगमा काही दिवस का पाहुना मानव नको करू तू अहंकार!!!!

 

तोरो सारखा लाखो आया लाखो यन माती मा गया

रहेवं ना नामो निशाण मानव नको करू तू अहंकार!!!!

 

.

  ,️,  मुकुंद दिगंबर रहांगडाले

                              (दत्त वाडी नागपूर २३)

             मो.नं.७७९८०८३२८१

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   !! पोवारी इतिहास साहित्य एंव उत्कर्ष  !!

    !! दि, 24-05-2020- दिवस रविवार!!

             !!  काव्यस्पर्धी साती !!

               विषय == अहंकार

लहरलक घबरायके कभी नौका पार नही होय,

कोशिश करेवलक कभी भी हार नही होय!!

जो मनुष्य खुद समाजशिरोमणि समजत रहे,

वोकोलक कभी समाज को ऊत्थान नही होय!!

 

करके वदंन मायबोलीला कसुमी दिलकी बात,

आयगयी आँसू डोरामा जी दिल रोवसे दिनरात!!

नतमस्तक वदंन करुसु वोन समाजशिरोमणिला

जेव माणुस खुदको प्रशंसा साती रोवसे दिनरात!!

 

अभिमान नोको करु येकोमा नाहाय भलाई ,

जरा सोचबिचरकर चल वाये नहीजाय कमाई!!

अगर समाजको अहित करजो मगं समजजाय,

च्यारही आगं फैलत फैलत जाहेत तोरीच बुराई!!

 

अहकांर होतो रावणला हार वोकी भयगयी,

सत्यमार्गपर नही चलेव सारीबात फसगयी!!

जेव खुदला समाजको अनुयायी समजत होतो ,

सांगो आबआता वो

काव्यस्पर्धा -क्र. 11वी

     ।।अहंकार।।

      ।।।गर्व का घर खाली।।

(चाल-अंजनीच्या सुता-----)

 

अहंकार को अवगुन,करसे कंगाल

जीवनमा देखो उनका होसेती बेहाल।।ध्रु।।

 

महाभारत भयोव व्रुती अहंकार की

सर्व नाश भय गयो ,हानी भयीसब कुलकी

सुर विर योद्धा युद्ध मा भया हाला हाल।।१।।

 

कोनिला अहंकार शक्तीना रूपकी

कोनीला धन, विद्या,कला,ना सत्ताकी

पल भरकी या जिनगानी सुधरावो आपली चाल।।२।।

 

अहंकारकं गुनलं नही होय कोनी राजा

जशी करनी तशी भरनी ,होसे ओकी हाशी

गर्वका घर खाली  ,या बात सत्य त्रिकाल।।३।।

 

वाय सी चौधरी

गोंदिया

काव्यस्पर्धा क्रं -11

 

विषय-अहंकार

 

अहंकार बनावसे माणूस ला हैवान

पेहरावसे मुखोटा अमानुषपणा को

नकळत घड जासेत वाईट गोष्टी हातलका

करनो  पडसे पश्चाताप मंग जीवनभरको।।

 

अहंकार लका रावण भी गयेव वाया

करीस वीर पुत्रइनको आपलो हातल संहार

मती मारी गयी होती दशानन की पूरी

झेलनो पडेव मर्यादापुरुषोत्तम राम को वार।।

 

स्वर्गा को राजा देवाधिदेव इंद्र को अहंकार

करीस इंद्रसभाला बी वोन तार तार

दैत्य,असूरनबी करीन आपलो आराधना लका

इंद्र को अहंकार परा करीन अजस्त्र वार।।

 

माणूस करू नको गर्व अना अहंकार

आपलो बुद्धी को प्रयोग लका निसर्ग परा वार

देख कोरोना को सामने भयी कसी से

सारो मानवजातीकी पछाडेववानी हार।।

 

क्षणिक अहंकार करसे अगाध विनास

अहंकार छोडके धरो सत्य अना प्रेम की कास

जरा ध्यान ठेवो आपलो जीवन मा भविष्यको

तबच होय जाये पूरी मानवजात पास।।

 

वर्षा पटले रहांगडाले

।। वीर छंद ।।

 

अर्बुदगिरी सातपुडा की धरती, नर्मदा,वैनगंगा की धार

युगो युगो से है वह गाती, पोवार शौर्य गाथा का सार ।। धृ ।।

 

महर्शी परशुराम ने किया, क्रोध क्षत्रिययो का किया संहार

तब यह धरती हुई निक्षत्रि, मच गया सर्वत्र हा हा कार ।।

 

भारत भु पर रहा ना कोई, उठा सके रक्षा का भार

यज्ञ आबु पर कर मुनियो ने,प्रकट किया "क्षत्रिय पोवार" ।।1।।

 

अग्निकुंड से प्रकट हुए तब, की युद्ध गर्जना मार-मार

अग्णीकुल के क्षत्रिय कहलाए,

कुल का नाम रखे परमार ।।

 

एक हात से गदा चलाए, दुजे हात चली तलवार

द्रृश्टजनो का विनाश कर, जन जीवन है दिया संवार ।।

 

कुलदैवत शिव, जगनारायन माँ अंबे महामाया नाम

शक्ति युक्ती उस माँ से मिल गई, भारत भु पर चमका नाम ।।

 

देवी स्वरस्वती प्रसन्न उनपे, साहित्य मे दी प्रगति कराय

पोवार तो सही क्षत्रिय थे ही, अब वह ब्रम्ह क्षत्रिय कहलाय ।।3।।

 

ईसा

विषय:- अहंकार

 

अहंकारका  दुय सेती नाव

मी ना मोरो यवच मोरो भाव ।।

अहंकारलकाच भयव रावनको नास

कायला मरमर करसेस आये यमको पाश ।।

नाशवान कायासे घडि्को भरोसो नाहाय

छोड् अहंकारला भगवानका धर पाय ।।

अहकार, अभिमान मानुसको धरमकी बात नही

सब यंजाच रहे संगमा कोणी आव नही ।।

मणुनच कसेती--------अभंग

कोणी नाही बाबा जिवाचा संगाती-----

 

डी-पी-राहांगडाले

गोंदिया

"""".        समुंदर

                ---------

या सच बात से कि

समुंदर सबदून महान से,

तरा, बोडी,नदी,बिहिर

सब वोकदून लहान से.

 

सब नदी,तरा को पानी

आखिर जासे समुंदर मा,

सबको समाकाळ होसे

आखिर मा समुंदर मा.

 

समुंदर से सब रत्न

इनकी मोठी खान,

म्हणून समुंदर से

सबदून मोठो महान.

 

पर समुंदर मा बी

सेती दोष काही,

कोणी की प्यास कभी

बुझाय सक् नही.

 

तसोच वु आपल् दून

सामने नही जान दे कोनीला,

सब आपल् दून लहान

 पाहिजे असो लगसे वोला.

 

                    चिरंजीव बिसेन

                              गोंदि

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