पोवारी साहित्य सरिता भाग ६६
पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता भाग ६६
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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१.
मंगलमय से नवरात्रि त्यौहार🚩
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मां भवानी को से कण- कण मा संचार l
मां दुर्गा महाकाली से संसार को आधार l
मंगलमय से मां दुर्गा को नवरात्रि त्यौहार l
चैतन्यमय कर देसे भक्तजनों को संसार ll
मां दुर्गा को आशीष लक होसे उद्धार l
आदिशक्ति की कृपा लक होसे नैया पार l
माता को व्रत मा से चैतन्य शक्ति अपार l
चैतन्यमय कर देसे भक्तजनों को संसार ll
माता दुर्गा से जगत की पालनहार l
माता दुर्गा भक्तजनों की तारणहार l
माता को व्रत लक होसे जीवनको उद्धार l
चैतन्ममय कर देसे भक्तजनों को संसार ll
इतिहासकार ओ सी पटले
नवरात्रि,मंग.२७/०९/२०२२
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२.
पोवारी बोली से लाखों मा भारी
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पोवारी बोली से बहुत मनोहारी l
पोवारी बोली आमरी लाखों मा से भारी ll
जूनो लोकगीतों मा से पोवारी बोली l
परहा को गानाओं मा से पोवारी बोली l
चंदन राजा को परहा गड़् से,
झिमिर झिमिर पानी पड़् से l
येव गीत से केतरो मनोहारी ?
पोवारी बोली आमरी लाखों मा से भारी ll
जूनो लोकगीतों मा से पोवारी बोली l
बिहया को गानाओं मा से पोवारी बोली l
रामू पुस् सीता ला, तोरोच का
मावशी न् कायको दायजो देईस l
येव गीत से केतरो मनोहारी ?
पोवारी बोली आमरी लाखों मा से भारी ll
मीठों शब्दों लक बनी से पोवारी बोली l
मीठों शब्दों को कारण मीठी पोवारी बोली l
झुंझुरका, महातनी बेरा
लखलखती तपन वानी शब्द देसे पोवारी l
ये शब्द सेती केतरा मनोहारी ?
पोवारी बोली आमरी लाखों मा से भारी ll
पेटाओ क्रांति की आता लाखों मशाली l
निशानाआमरो पक्को जान को नहीं खाली l
बोली से या मधुर मीठी
येला भाषा बनावन की आमरी से तैयारी l
बहुत सुंदर विचार आमरा मनोहारी l
पोवारी बोली आमरी लाखों मा से भारी ll
#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
#प्रणेता -पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
#घटस्थापना,सोम.२६/०९/२०२२.
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३.
पोवारी साहित्य को गजर
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भाषा आमरी मधुर शब्दों को सागsर l
भाषा से समाज की एका को आगsर l
पोवारी साहित्य को करों चौफेर गजsर l
भाषा आमरी होये संसार मा अमsर ll
मामबोली को नाव को करों जागsर l
मायबोली को करों जीवन मा वापsर l
पोवारी साहित्य को करों चौफेर गजsर l
भाषा आमरी होये संसार मा अमsर ll
मायबोली ला जानो माय को आंचsल l
माणिक मोती वाणी भाषा अनमोsल l
पोवारी साहित्य को करों चौफेर गजsर l
भाषा आमरी होये संसार मा अमsर ll
मन मा बढ़ाओं भाषिक स्वाभिमाsन l
मायबोली ला मानों आन बान शाsन l
पोवारी साहित्य को करों चौफेर गजsर l
भाषा आमरी होये संसार मा अमsर ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
रवि.२५/०९/२०२२.
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४.
आता लागी लगन
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आता लागी लगन, भया सभी मगन l
करन लग्या सभी विरासत को जतन ll
छत्तीस कुल मा से, एक रेशमी बंधन l
करन लग्या सभी, मायबोली को जतन l
जाग्या युवा सभी जागी युवती सभी,
करन लग्या सभी पहचान को जतन ll
लग्या होता सभी, मायबोली ला सोड़न l
लग्या होता सभी, पहचान ला मिटावन l
जाग्या युवा सभी जागी युवती सभी,
करन लग्या सभी विरासत को जतन ll
सोया होता सभी, आता लग्या जागन l
मिच्या होता डोरा, आता लग्या देखन l
जाग्या युवा सभी जागी युवती सभी,
करन लग्या सभी धरोहर को जतन ll
एक दिशा मा लग्या,सोचन समझन l
एक भयी सबको, दिल की धड़कन l
जाग्या युवा सभी जागी युवती सभी,
लग्या सभी आता एक दिशा मा बढ़न ll
#इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
#नवरात्रि, बुध.२८/०९/२०२२.
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५.गांव आमरो मोहाड़ी
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आराध्य आमरा राम,गांव आमरो मोहाड़ी l
कर् सेज् जी जिंदगानी, करके खेती- बाड़ी ll
आमरो गांव से मनोहारी
समीप से पांगोली नदी l
व्यवसाय आमरो खेती
पिकाव् सेज् माणिक मोती l
आराध्य आमरा राम,गांव आमरो मोहाड़ी ll
आमरो राममंदिर की से
चारों दिशाओं मा कीर्ति l
अना हनुमान मंदिर की से
चारों दिशाओं मा ख्याति l
आराध्य आमरा राम, गांव आमरो मोहाड़ी ll
नवरात्रि ला उजार् सेज्
मातामाय को बोहला पर ज्योति l
शिवलाबाई भंगाराम की
आमरो मन मंदिर मा से भक्ति l
आराध्य आमरा राम, गांव आमरो मोहाड़ी ll
आमरो गांव का शेजारी सेती
मुंढरीटोला बबई ना बाम्हणी l
रोज आवनो जानो प्रेमभाव से
मानों एकच गांव का रहिवासी l
आराध्य आमरा राम,गांव आमरो मोहाड़ी ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
नवरात्रि,गुरु.२९/०९/२०२२.
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६
अक्टूबर - विश्व शाकाहार दिवस
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अज स्विट्ज़रलैंड मा शाकाहारी अन्न बने। हफ्ता मा एक दिन कमसे कम शाकाहार करन को बिचार मांसाहारी देश का लोग करन लग्या।
चीन मा बी अज शाकाहारी दिवस को उपलक्ष्य मा शाकाहार ला बढ़ावा देनको कार्यक्रम होयेति , वहान अज शाकाहारी अन्न बने। कोरोनाको बाद शाकाहार को महत्व दुनियाला समझ आयव।
या सही बात से की मांसाहार प्राकृतिक अना मानसिक दृष्टिकोणलक मनुष्यलाइक नुकसानदेह से।
निरपराध जीवित प्राणीकी हिंसा करके , हत्या करके वोको शरीर का भाग खानों यानी मांसाहार । मांसाहार को त्याग करनो जरूरी से असो दुनियामा लोगईनला लग रही से।
दुनिया बदल रही से । अगर बदली नही त् आब बदलनो पड़े । नही त् अखिन नवा नवा आघात प्रकृति को द्वारा निश्चित होयेती ।मांसाहार लोगइनन खुदला बदलनो शुरू करीन यव अच्छो संकेत से।
पहले आमरो समुदाय पुरो शाकाहारी होतो असो आमरा बुजुर्ग सांगत । स्थानीय प्रभाव मा आयके लोग मांसाहार करन लग्या । तब समाज संघठन को द्वारा मांसाहार अना दारू पर दण्ड को प्रावधान करनो मा आयव। स्वतंत्रता लक यव प्रावधान लागू होतो । पर स्वतंत्रता को बाद निरंकुशता बढ़ गयी अना धीरे धीरे मांसाहार को प्रमाण बढयव ।
आब बी आमरो समाज मा शाकाहारी लोगइनको प्रमाण ज्यादा से या अच्छी बात से । महिला वर्गमा शाकाहारको प्रमाण ज्यादा से या बात वंदनीय से ।
आमी वापस शाकाहारकी आदत बनायकर आपलो समाजको असली रूप स्थापित कर सकसेजन ।
व्यक्तिगत तौर पर आमला आत्मचिंतन करके खुद आत्मिक उन्नतिको दिशामा अग्रेसर होनो पडे । आपलो आदर्श पूर्व स्वरूप प्राप्त करनो पड़े ।
महेन पटले
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७
|| गडकालिका ||
गडकालिका माई तोरी करू आरती ||टेक||
मन भावन रूप धर दुर्गा आयीसे
मंदिर मा देखो दिव्य ज्योत जरसे |
दर्शनकी भारी भिळ उमळ पडीसे
मायको वरदान की याआस जगीसे |
कुलदेविकी महिमा गान करसेती ||१||
मातामाय की पूजा रोज करसेती
भक्ती भावलक निवज खान देसेती |
सुख को जीवन मिले दुवा मांग सेती
मिल जुल कर व्यवहार कर सेती |
मायको देयेव बिना कसी मिले मुक्ती ||२||
कीर्ती रहे जगमा पोवार समाजकी
घर घर मा बोलो मायबोली प्यारकी |
कसम खावो संस्कृतीला टिकावनकी.
सेवा करो सबकी समाज बनावनकी |
नाव अमर रहे तुम्हरी होये कीर्ती ||३||
पोवारी साहित्य सरिता ६६
दिनांक:१:१०:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
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८
|| भक्ती भाव को वास ||
जे को घर से, भक्ती भाव को वास
घर वोको चांगलो , एक मंदिर से
आनंद मा रहो, जगन की आस
कृपा रिद्धी सिद्धी की भरपूर से ||१||
पोवार कुलमा, भयेव जनम
छत्तीस कुऱ्या, को गुणगानसे
दया धरम पर, करो रहम
जगमा ठेवो, आपली पहिचानसे||२||
गुलाब सरिखो, बनो फुल रोज
सदा खुशबू देवो, करो कल्याण से
चंदन सरिखो, करो कामकाज
पोवारी कीया, आन बान शानसे||३||
उच्च नीच को, खाईला करो दूर
मानव चोला को , पवित्र कामसे
सत्य को बनो, सब पक्षधर
सब संग मिले, जीवन को प्रेमसे||४||
पोवार साहित्य सरिता ६६
दिनांक:१:१०:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
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९
माय वैनगंगा अना पंवार(पोवार) समाज
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पुण्य सलिला माय वैनगंगा का महत्व पुराणमा मिल जासे। एक पौराणिक कथा को अनुसार भंडाक देश का धर्मात्मा राजा बैन, सदा गंगाजी माँ स्न्नान लाई जात होता। अदिक उमर होन को कारन उनला आता गंगा जी जान मा तकलीफ होवन लगी। येक रोज गंगा स्नान को बाद उनना माय गंगा लक़ आव्हान करीन की मोला असो वरदान देय की मी सदा को जसो बुढ़ापा मा बी स्नान लाई पंहुच सकू। माय गंगा प्रकट भई अन उनला यव समाधान सांगिस की तुम्ही गंगा का जल आपरो कमंडल मा लेयकन जाओ अन जेन जागा परा तुम्ही यन जल ला प्रवाहित करहो उत कनलक मि आपरो एक रूपमा प्रकट होय जाऊ।
राजा कमंडल मा गंगा को जलला धरकन वापिस भयो। वापसी मा सिवनी जवर मुंडारा नाम को गावमा राजा आराम करनला बस्यो होतो। उतच उनको हाथ लक कमंडल पड़ गयो अना वहांच लक गंगाजी की धरा बोहान लगी। राजन लगतच दुखी भयो अन गंगाजी ला अखिन सुमरन लग्यो। माय गंगा मुंडारा मा प्रकट भई अन उनना राजा ला कहीन की तुम्ही मोरो सच्चा भगत आव अन तुम्ही निराश नोको होव। सिवनी मा गुप्त रूप मा भगवान शिव को वास् आय अन मी शिवजी की परिक्रमा को बाद तुम्हारो देश की राजधानी भंडारा मा आय जांहू। माय वैनगंगा उद्गम स्थल मुंडारा लक सिवनी क्षेत्र का लखनवाड़ा, मुंगवानी, दिघोरी, छपारा होवता हुए माय बालाघाट, गोंदिया लक भंडारा पंहुच गयी। राजा को नाव लक़ यन गंगा का रूप को नाव वैनगंगा भयो।६४१ किलोमीटर को सफर तय करकन वैनगंगा दक्षिण की गंगा गोदावरी मा मिलकन बंगाल की खाड़ी में भागीरथ गंगा को साथ सागर मा मिल जासे। येक दूसरी प्रचलित कथा मा वैनगंगा आदिवासी युवक युवती वनी और गंगा के पवित्र प्रेम का परिचायक भी माना जासे।
मालवा राजपुताना लत आया पोवार समाज, नगरधन लक होवता हुआ वैनगंगा क्षेत्र मा बसीन। माय को आंचलमा का चार जिल्हा सिवनी, बालाघाट, गोंदिया अन भंडारा मा पंवार समाज का तीस कुर की स्थायी बसाहट भई। महाकाल महादेव को भक्त, पंवार समाज की माय वैनगंगा को क्षेत्र मा खुप तरक्की भई अन आपरो मूलनिवास लक एतरो दूर आनको बाद बी समाज न आपरो पुरातन गौरव को अनुरूप इतन बी खुप नाम रोशन करया। माय वैनगंगा को नाव पर हमारो समाज की वैनगंगा क्षेत्र का पंवार नाव लक़ भी येक पहिचान भेटि से।
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
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१०
स्व. जयपाल सिंह पटले : पोवारी साहित्य का पितामह
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पोवारी साहित्य का पितामह स्व. श्री जयपाल सिंह जी पटले को जनम बालाघाट ज़िला की वारासिवनी तहसील का सालेटेका गाव मा दिनांक १७/०७/१९३५ मा भयो होतो। ओनकी प्रारम्भिक पढ़ाई लिखाई बालाघाट ज़िला मा भयी।बरस १९५६ मा उनना बिलासपुर लक़ इलेक्ट्रिशियन मा आई टी आई का प्रशिक्षन लेयकन महाराष्ट्र विद्युत् मण्डल मा १९९३ वरी नौकरी करीन।
उनको हिरदयमा पोवार समाज को प्रति लगत पिरम होतो। पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा पोवारी भाषा को संरक्षन् अन संवर्धन लाई उनना, "मायबोली पोवारी बचाओ" अभियान की शुरुवात करकन विलुप्त होन की कगार परा उभी यन भाषा ला नवजीवन देनको भगीरथ काम करीन।
पंवार समाज की प्रतिष्ठित वार्षिक पत्रिका, "पंवार भारती" का सन २००१ को अंक मा ओनको येक लेख प्रकाशित भयो होतो। यन लेख मा उनना पोवारी बोली का जतन लाई समाजलक़ आह्वान करी होतिन। यन लेखमा स्व. पटले जी को द्वारा रचित पोवारी मा चंद लाइन होती-
पोवारी बोली की पुकार
आपलोच घर मा मी भई गई पराई गा।
नाहनांग रव्हन की मोरो पर पारी आ गई गा ।।
आपलोच घर मा (1)
बुढ़गी माताराम मोला मान लक बोल सेत।
जवान माय-बहिन कधी-कधीच बोल सेत ।।
जवान बेटा-बेटी मोरी हासीच उड़ावसेत ।
शरम लका मी होय जासू लाल-पीवरीगा ।। अपलोच घर मा..
मोठागन आवन की जब मी सोचू सू ।
भाउ ना दादाजी ला देखकन डरासू ।।
मोठांगन माहारा -मेन्द्रा की गोष्ठी आयकखेन ।।
डर को मार्या मी होय जासू घामघयानी गा। अपलोच घर मा...
मोरा आपराच मोला डरावन लग्या सेती।
आपलाच मोरोलक दुहुर परान लग्या सेती ।।
हिन्दी अना मराठी मा सब बोलन लाग्या सेती...
२००१ मा प्रकाशित यव कविता मा आपरी मातृभाषा की स्थिति दिस रही से की कसो आता पोवारी बोलन वाला कम होय रही सेती। येको बाद स्व. जयपाल सिंह ज़ी ना पोवारी भाषा बचावन लाई आपरो बच्यो जीवनला अर्पन कर देईन। उनना पोवारी भाषा मा छःह महाग्रन्थ की रचना करीसेती अना सातवो ग्रन्थ का प्रकाशन ओनकी बेटी को द्वारा जल्दी होय रही से।
स्व. जयपाल जी की पोवारी भाषा मा पहिली किताब, २००६ मा "पंवार गाथा" प्रकाशित भयी। ओनकी राष्ट्रसंत तुकढ़ोजी महाराज को प्रति अथाह आस्था होती अना स्व. पटले जी न ओनको महाग्रन्थ, "ग्राम गीता" का पोवारी संस्करण २००९ मा प्रकाशित करीन। तसच आदरणीय जयपालसिंह ज़ी न सनातनी हिन्दू धरम को प्रचार-प्रसार आपरो साहित्य को माध्यम लक़ खुप करीसेती । उनना सन २०१२ मा गोस्वामी तुलसीदास ज़ी द्वारा रचित, रामचरित मानस परा आधारित पोवारी संस्करण, "गीत रामायण" महाग्रन्थ की रचना करीन। तसच २०१४ मा उनना "श्रीमद भगवतगीता सार" का पोवारी संस्करण लिखकन, समाज ला समर्पित करीन।
स्व. जयपाल सिंह जी द्वारा कविता संग्रह, सन २०१० मा "पोवारी गीत गंगा" को अना सन २०१५ मा "राजा भोज गीतांजली" को प्रकाशन भयो। ओनकी कई रचना को प्रकाशन पत्र-पत्रिका इनमा भयो होतो। जीवन का आखिर बेरा वरी ओनकी कलम कबीच नही रुकी। उनकी प्रेरणा लक़ २०१८ मा पोवारी साहित्य मण्डल की स्थापना भयी। तसच पोवारी बोली को प्रति जन जन ला जाग्रत कर युवा वर्ग ला प्रोत्साहन देन लाई श्री सी पटले ज़ी, इतिहासकार द्वारा "पोवारी भाषाविद क्रांति" की शुरुवात भयी। २०२० मा "पोवार इतिहास, साहित्य अना उत्कर्ष समूह" को द्वारा "राष्ट्रीय पोवारी साहित्य अना सामाजिक उत्कर्ष संस्था" को गठन भयो। राष्ट्रीय पोवारी साहित्य अना सामाजिक उत्कर्ष संस्था द्वारा प्रकाशित पत्रिका, "पोवारी उत्कर्ष" का विमोचन स्व. जयपाल सिंह जी पटले जी को हाथ लक़ होन को सौभाग्य भेटयों होतो। "पोवारी उत्कर्ष" पत्रिका, असी प्रथम पत्रिका होती जो पूर्ण रूप लक पोवारी भाषा मा छत्तीस कुर पोवार समाज की संस्कृति अना समाजोत्थान लाई समर्पित होती। अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार/पोवार की अधिकृत संस्था पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष को द्वारा समाज का आराध्य महाराजा भोज का जनमदिवस को अवसर परा प्रथम "राष्ट्रीय पोवारी साहित्य सम्मलेन" का हर बरस आयोजन करन की शुरुवात भयी । स्व. जयपाल सिंह ज़ी को द्वारा पहिलो राष्ट्रीय पोवारी साहित्य सम्मलेन का उद्घाटन कर यन कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाइन।
स्व. जयपाल सिंह जी समाज का कई संगठना इनको संग भी जुड़ी होतिन। उनना पंवार युवक संगठन, नागपुर मा संगठन सचिव(१९८५-९६) अना महासचिव(१९९६-९९) को पद परा रहकन समाज सेवा का काम करिसेत्। अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार महासभा मा वय १९९५ लक़ १९९९ वरी सहसचिव को पद परा रहकन समाज का कार्य करीन। पोवार समाज का कार्य को अलावा स्व. पटले ज़ी ना सर्वसमाज कल्याण का बी करीसेन। १९८३ लक़ १९९३ वरी तांत्रिक कामगार संघ मा महासचिव बी रहीन।
उनको द्वारा पोवारी साहित्य मा दियो अभूतपूर्व योगदान को कारन उनला "पोवारी साहित्य का पितामह" कवहनो ही ज़ियादा सही रहें। पोवारी भाषा मा उनको साहित्य ना यन भाषा की समृद्धि अना विकास मा मील का पत्थर साबित भयी से।
अज़ समाज कई साहित्यकार पोवारी भाषा मा अनेक विधा मा साहित्य सृजन का काम कर रही सेती। अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार/पंवार महासंघ की साहित्यिक शाखा, पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष आदरणीय स्व. जयपाल जी पटले को पोवारी उत्थान का स्वप्न ला पूरा करनलाई पुरो मनोयोग लक़ जुटी से। तसच समाज का कई संगठना अना समूह अज़ पोवारी भाषा ला बचावन लाई जुटी सेती।
स्व. जयपाल सिंह ज़ी ना सेवानिवृत्ती को उपरांत पुरो जीवन जीवन पोवार समाज अना पोवारी भाषा का उत्थान अर्पित कर देईन। नागपुर मा उनको निवास स्थान पोवारी साधना का मंदिर होतो। इतकन लक़ उनना कबी पैदल त् कबी सायकिल को सफर करकन मध्यभारत मा पोवार समाज मा आपरी भाषा अना संस्कृति को प्रति पिरम अना मान जगावान का काम करीन। स्व. जयपाल सिंह पटले ज़ी ना आपरी कलम ला पोवारी संस्कृति अना भाषा का उत्थान लाई खुप चलाइन अना येतरा महाग्रन्थ की रचना कर पोवारी साहित्य ला नवो शिखर पर लेय गयीन।
पोवारी को संग हिंदी अना मराठी मा बी उनना लेखन का कार्य करी होतिन। उनको जीवन सादगी का मूरत होतो। सादगी का जीवन अना उच्च बिचार को संग समाज का सांस्कृतिक अना सामाजिक उत्थान, यव प्रेरणा सबको लाई युगो युगो तक अविरत रहे, असो बिस्वास से।
माय सरस्वती को पुत्र अना पोवारी भाषा का पितामह जयपाल सिंह ज़ी ना दिनांक ०४/०८/२०२१ ला यन दुनिया ला अलविदा कहकन स्वर्गलोक मा गमन करीन। आम्ही आपरी मायबोली पोवारी अना समाज की संस्कृति ला सब मिलकन संरक्षित अना संवर्धित करबीन तब यव उनको प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होये।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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११
कसा सोड़्यात जी भैय्या
छंद: विजात (१४ मात्रिक छंद)
मापनी: १२२२ १२२२
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भला मझधार मा नैया
कसो सोड़्यात जी भैया ||
कसी तुमला सुझी दैना
कहां तुमला मिली मैना
नजर अंदाज कर ऐना
कसा चोरी भया नैना
पराई नाव मा सैंया
कसो सोड़्यात जी भैया -१-
भरूसो देयके सबला
नदी नाला भया डवला
कईको छेद कस्तीला
भुलो मौकापरस्तीला
बिराजू आपरो ठिय्या
कसो सोड़्यात जी भैया -२-
खलासी आमरा चोखा
तरी खायात गा धोखा
जरूरी भोवरा मा जो
फसनला जान को होतो
अचंबा! हिट गयो दैया
कसो सोड़्यात जी भैया -३-
मुजोरी आंक सनकीकी
डुबी हांडीच कनकीकी
मुबारकबाद गठबंधन
चुनो संग् बोबदो चंदन
सजावो सेज ना सैया
कसो सोड़्यात जी भैया -४-
बने का लूटमारी लक
वतन लाचार ना याचक
सिरिप खुद को भलोलाई
लुटेरा बन भया भाई
गया सब स्वारथी वाया
कसो सोड़्यात जी भैया -५-
तुम्हारो सोचनो भलतो
बनाये बेवकूफ् चलतो
बिभीसन या लुटेरा को
अगर घरमाच डेरा हो
लुटी जाये कनक चिड़िया
कसो सोड़्यात जी भैया -६-
हुड़ा ठेयात उंज्यारी
जवर टोली जमा सारी
नड़्या आमी नवाजीला
गया वय जीत बाजीला
निशाना मार के ठैया
कसो सोड़्यात जी भैया -७-
पिड़ा जानो कबीला की
पुरातन माय कपिला की
बनावो शाम ला बाका
करम मानो तिरंगा का
नवाजे भारती मैय्या
कसो सोड़्यात जी भैया -८-
अवस्था देश की जानो
खुला गद्दार पयचानो
करे उध्दार जनता को
असो नेता चुनो बांको
करूसू आज बिनती या
कसो सोड़्यात जी भैया -९-
*********
डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव /उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
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१२
कुलस्वामिनी गड़काली
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माय मोरी गडकालीका
निंम खाल्या डेरा
भक्ती भाव लक करो पूजा
कटे अंधकार को फेरा
गर्दभ से वाहन तोरो
शांत शितल निर्भय
तोरो शरण मा आवता
मिले भक्तजनला अभय
पियकन क्रोध ज्वाला
भक्तंसाती शुभंकारी
दुष्टं कापसेत थरथर
भक्तंईंला सबदून प्यारी
कुलस्वामिनी पोवारंकी
करं कुळ उद्धार
जन जन की तू माता
तोरो माय मोला आधार
कालरात्री से कल्यानकारी
लगावो सातवो दिवस ध्यान
अंधकार अज्ञान अहंकार
तोडकन माय करसे कल्याण
शेषराव येळेकर
दि.०२/१०/२२
********************
१३
🌷गढ़कालिका तू धार वाली 🌷
(हरिगीतिका छंद-सम मात्रिक)
लगावली - गागालगा गागालगा गा, गालगा गागालगा
हरेक पंक्ति मात्रा भार - २८, यती - १६,१२ मात्रापर
गड़कालिका तू धार वाली,
मालवा की अंबिका |
तू स्वामिनी पोवार कुल की,
भोज की जगदंबिका ||
से धार नगरी मा जलाशय,
नाव से सागर तरा |
ओको किनारो पर बसी तू,
माय सबकी गड़परा ||१||
पोवार जालमसिंह का बी,
भय गया मन्नत पुरा |
आधार बुड़पण मा मिलेतो,
एक सुंदरसो टुरा ||
माता भवानी को कृपा लक,
वंश से पोवार को |
से ख्याति फैली संसार मा,
नाव मोठो धार को ||२||
सब देशभर का आवसेती,
माय तोरो गड़परा |
मन्नत सपा करसेस पूरी,
भक्त सेती जे खरा ||
करदे सुखी संसार मोरो,
मी करूसू प्रार्थना |
गोकुल कसे स्वीकारले तू,
माय मोरी याचना ||३||
© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१
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१४
🌻 गढ़कालिका माय को दरबार 🌻
सजी से सुंदर माता को दरबार,
विपदा हरे माता माय हर बार ll
नवरात्रि को पावन से त्यौहार,
शीश नमाऊ माय बारम्बार ll
मंदिर मा माय तोरा जव्हारा,
भक्तन ला देसे खूब सहारा ll
दीप खुशी का मन मा जरे,
घट संग आश की जोत जरे ll
देती पँवार जहां शिश कटाय,
कुलदेवी आमरी तू माता मायll
माता माय ला जो माथा टेके,
सुख समृद्धि अना शांति भेटे ll
आदी शक्ति मोरो शीश नमाऊ,
जग ला तोरी गाथा सुनाऊँ ll
हे जगत जननी माता कल्यानी,
जगमा से तोरी अमर कहानी ll
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डॉ.हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏🚩
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१५
कवी कोण होय सकसे
लहानसो टुरा सारखो मन
वू कवी होय सकसे
/बिना मोसम मा दुसरोंको
आसू संग रोय सकसे
चेहरा देखताच जेला
हिरदा बाचता आवसे
पागल पण को नशा मा
वू बेधुंद रवसे
कारो बादल मा जेला
अलग अलग चित्र दिससेत
हवा, पाणी,गरमी, थंडी
जेक् संग बोल सकसेत
इतिहास न बाचता
जो इतिहास बनाय सकसे
समाज को सुख दुख
जेको हिरदा मा दुखसे
अंधारो मा जो व्यक्ती
न अडखळता चल सकसे
उजारो का काही चित्र
जो व्यक्ती लपाय सकसे
परिसर बाचनेवालो
जो शब्द सखा रवसे
सब रंग को प्याला
जो बिनधास्त पिवसे
असा व्यक्ती कवी बन सकसेत
शेषराव येळेकर
दि.०४/१०/२२
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१६
सिंदीपारवाली माय दुर्गा
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सिंदीपार की दुर्गा माय तोला करसू नमन
तोरो दरबार की महिमा अनंत आयोव शरण
माय को कृपा लक गावमा से सुख शांती
पल पल मा ऐक युग की होत जासे क्रांती
तुच अंबे तुच काली सब कार्य कारण
तोरो दरबार की महिमा अनंत आयोव शरण
भक्ती उत्साह की संस्कृती फली फुली
हे सिद्धीदात्री,तोरी कृपा माय सिंदीपारवाली
गावमा से वास,करनला कष्ट दुःख धारण
तोरो दरबार की महिमा अनंत आयोव शरण
सरस्वती रुपमा गावमा रयकन करीस उद्धार
कर्म धरम पालकन ठेया जन्म मरण को भार
आदी-अंत अनंत तू तोला समर्पित जीवन
तोरो दरबार की महिमा अनंत आयोव शरण
ध्यान तोरो माय गावपर असीच कृपा ठेव
तोरोच नाव महिमा गाता गाता रोज आवं चेव
आराधना करे पूरो गाव,माय आव हर विपदा तारण
तोरो दरबार की महिमा अनंत आयोव शरण
शेषराव येळेकर
दि.०४/१०/२२
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१७
🌷🌷जानो,, काहे मयरी ना शेन का दस बड़ा पोवार बनाव सेती🌷🌷
दसरा
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हिंदु संस्कृती मा दसरा को खुप महत्व से. पोवार जातीमा दसरा को सण मोठ धूमधाम लका मनाय ज़ासे. त्रेतायुगमा दसरा क दिवस श्रीरामजी न रावणला मारशान माता सीताला सोळायशान आणी होतीस .
रावण की पत्नी मन्दोधरी या दानव का शिल्पी मयासुर की बेटी होती. ओला कौंच ऋषी न आशीर्वाद देई होतीस की तोरो घरवालो जिवंत रहे तबवरी तुमरो घरको भात अम्बानको नही. जब रावण मरेव त भात अम्बाय गयेव वाच मयरी आय. ना कांच ऋषि न आशीर्वाद देई होतीस मणुन मन्दोधरी न भात की मयरी ना कोचहीक पानाकी बळी बनाई होतीस. रावण यव बामन कुलको होतो मणुन मयरी ला बामनीन कसेती। मयरी पोवर
वोन जमानो मा ब्राम्हण की हत्या (ब्रह्महत्या) ला मोठो पाप मानती। रावण ब्रह्म ऋषि विश्रवा को पुत्र होतो। रामजी क्षत्रिय होता मुन रावण वध करेलका उनला ब्रह्महत्या को पाप लगेव। जब रामजी अयोध्या वापस आया तब ऋषि को आज्ञा लक पाप को निराकरन साती मयरी बनाई गई। रामजी का वंशज पोवार आत मणुन मयरी पोवार घरच बनाई ज़ासे.
त्रेता युग मा राम को पूर्वज राजा रघु.ओन विस्वजीत यज्ञ करीस खुप दान करीस. ओकजवळ कौत्स नावको गुरु पुत्र आयेव ना ओन गुरु दक्षिना देनसाती चौदा करोड स्वर्ण मुद्रा की मांगणी करीस तब राजा रघू ना कुबेर परा आक्रमण करीस. कुबेर हारेव तब औन शम्मी का झाळपरा स्वर्ण मुद्रा की बारीस करीस. जेतरी ओला लगत होती ओतरी लेगीस बाकीकी बाट देईस.महाभारत मा पांडव अज्ञातवासमा गया तब ऊनन आपला अस्त्र शस्त्र शम्मी क झाळ परा ठेई होतीन ना अज्ञातवासक बादमा दसरा क दिवस अस्त्र शस्त्र की पूजा करी होतीन मणुन शस्त्र पूजा करे ज़ासे ना शम्मी का पाना सोनोको प्रतीक मणुन बाटे ज़ासे.
दसरा क दिवसच माय दुर्गा न महीषासुर राक्षस मारी होतीस. दसरा क दिवस आंगण मा दस इंद्रिया का शेन का दस बळा (असत्य) ना दस दिवा की ज्योति (सत्य ) ठेयशान पुजा करे जासे.मणजे सत्य की असत्य् परा ना सच्चाई की बुराई पार जीत को त्योहार मनजे दसरा आय. सब न आपल अंदर को दसेन्द्रीय रुपी दसानन ला काबुमा आनसान षड़रीपु (काम,क्रोध, मद,मत्सर,,लोभ, काम, क्रोध, मद, मत्सर,,लोभ,माया ) रुपी रावण ला मारे पाहिजे.
✍️✍️श्री.डी पी राहांगडाले
गोंदिया
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१८
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
अर्थात,
धरम को नाश कर देन को कारण , वु च धरम , वोको नाश करने वालोंइनको नाश कर देसे । रक्षित करयव गयव धरम रक्षक की रक्षा करसे । यको कारण धरम को नाश कबी नहीं करनला होना, ताकि नष्ट भयव धर्म आमला समाप्त न कर दे।
धर्म यानी नीतिमत्ता , सुसंस्कार, भलाई , सदभाव, ज्ञान की जय हो ।
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मयरी शीर्षक
येन मयरी शीर्षक मा आमरो इतिहास समायी से ।
या महेरी या मयरी आमरो क्षेत्र मा कोणी दूसरी जाती का लोग दसरा को दिन नही बनावत ।
मयरी अखिन कही बनसे का यको शोध लगावन को बाद पता चलयव कि या महेरी राजस्थान , बुंदेलखंड बघेलखंड क्षेत्र मा बनसे । येन आधार पर एक बात समझ आवसे की आमरा पूर्वज उतन लक च इतन आया सेत ।
हालांकि उतन महेरी दसरा को बजाए बाकी दिन बनायकर खायी जासे ।
मयरी शीर्षक वाली येन किताब को द्वारा नायाब पोवारी साहित्य को काव्य रुपमा उदाहरण निर्माण भयी से ।
श्री गोवर्धनजी इनला बहुत बधाई ।
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१९
#Googleभी सम्मान देय रहीं से
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पोवारी की महिमा गुगल भी जान रहीं से l
पोवारी ला गुगल भी सम्मान देय रहीं से ll
पोवारी कविता छंदों मा बंध रहीं से l
पोवारी भाषा बालसाहित्य गढ़ रही से l
साहित्य को विविध रुपों मा ढल रही से l
पोवारी ला गुगल भी सम्मान देय रहीं से ll
पोवारी साहित्य क्लिष्टता त्याग रहीं से l
पोवारी भाषा साफ -सुथरी बन रहीं से l
साहित्य पोवारी को संपन्न बन रही से l
पोवारी ला गुगल भी सम्मान देय रही से ll
नवो साहित्य बहुआयामी बन रही से l
पोवारी भाषा आता उन्नत बन रही से l
साहित्य पोवारी को सुंदर बन रही से l
पोवारी ला गुगल भी सम्मान देय रहीं से ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
गुरु.6/10/2022.
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२०
* शरद*
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बारिश की भय गई बिदाई।
देखो देखो शरद ऋतु आई।।
लक्षण देखो शीतल की बहिन का।
भूलाय रही से याद वर्षा को दिन का।।
दिन मा देखो तो गज़ब की तपन।
रात मा ठंडी की हल्की सी चुभन।।
बारिश को बुढ़ापा की तस्वीर से न्यारी।
कपास जसा बादर की निकली सवारी।।
निलो नीलो अंबर पर बरफ की रैली।
अलग अलग तस्वीर की छटा निराली।।
नाला ढोडा की अकड़ भई ढीली।
शरद ला देखकर शान्त भई नाली।।
सरिता गिन को निर्मल भयो जल।
बंद भय गई सबकी कल कल।।
खेत, सियार मा चादर से पांडरी ।
पढiर घास को फुल की चुनरी।।
डोबरा डबरा सुख गया बिचारा।
बंद भय गई आता मेंडका की टर टर।।
बंद भय गया बारिश का औजार।
मोरिया, छ्तोडी आना छत्ता गया बिसार।।
गुलाबी ठंडी की हल्की हल्की बयार।
याद आवन लगिन आता शाल ना चादर।।
शरद की महिमा का करू बखान।
स्वास्थ्य की मजबूती को बन से आधार।।
शाक, सब्जी आना फल गिनको लगे अंबार।
खान पियवन को आनंद मिले अपार।।
शरद पूर्णिमा ला बरसे अंबर लक अमृत।
येन पल को लाभ को सब कर लेव जतन।।
शरद ला कसेती ऋतु की रानी।
धीरु धीरू बन जाहे बसंत की नानी।।
बहुत लम्बी से इनको रिश्ता की कहानी।
आब याद राखो सिर्फ यशवन्त की जुबानी ।।
यशवन्त कटरे
जबलपुर ०६/१०/२०२२
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२१
आदरणीय इंजी. गोवर्धनजी बिसेन सर, "गोकुल"
तुमरो मयरी यव पोवारी काव्यसंग्रह प्रकाशित होय रही से, या समस्त पोवार समाज साती बहुतही गर्व की बात से. पोवारी मायला सजावनसाती मयरी रुपी हिरा की निर्मिती कऱ्यात यव तुमरो साहित्यरुपी योगदान उल्लेखनिय अना प्रशंसनीय से. मोरं हिसाबलका तुमी पोवारीको हिराच आव. आमची पोवारी बचे तं आमरी संस्कृती बचे. पोवारी मायको प्रचार प्रसार करनेवालंं हर साहित्यकको पोवारी दिलमा सदा राज रहे असी मोरी मनशा से. तुमरो बी नाव पोवारी मायको धुरकरी यनं यादीमा जुड गयोव या खुशी की बात से. पोवारी संस्कृतीमा मयरी जसी पवित्र अना पूजनीय रवसे तसोच तुमरो यव मयरी रुपी पोवारी काव्यसंग्रह बाचनिय अना पवित्र रहे असो मोला लगसे.
मयरीकार गोवर्धनजी बिसेन सर तुमर यनं कार्य ला मोरो बार बार नमन
🙏तुमला हार्दिक अभिनंदन💐💐💐🙏🙏
डॉ शेखराम परसरामजी येळेकर
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आ. गोवर्धन भाऊ की या विशिष्ट मयरी कविता संग्रह (पोवारी बोली मा) अंनत काल लाई पोवारी साहित्य संस्कृति की वारसान मुन जमा खातर भई।
तुम्हारी या अनमोल भेट पोवार समाज साठी अविस्मरणीय रहे। दशहरा को पावन पर्व पर अना पोवारी वारसान की अति विशिष्ट पहचान म्हणजेच "मयरी" जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा आराध्य दैवत श्रीराम जी को रान्धनखोली लक त अज पोवार को रान्धनखोली वरी की यात्रा पूर्ण कर से।
अज लिखित स्वरूप मा अजर-अमर भई या समाज साठी गौरव की बात से।
पुनः तुम्हरो हार्दिक अभिनंदन तसोच अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासंघ को सौजन्य लक विशेष साभार अना अभिनन्दन से।
🚩🚩🙏🏻🌹🌹🚩🚩
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२२
उंदीर
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बिल से ओको घर
सेती दुय दात
टुमकत टुमकत धूम परसे
पायच सेती दुय हात
घर अंगण मा काढ उकीर
काम करसे विध्वंसक
नास धूस जरी स्वभाव
पर निसर्ग को चांगलो रक्षक
पोट साती बारा मयनाकी
वू भी करसे सामा
लहान टुरू पटू
ओला कवसेत मामा
किसान को फसल ला
साफ करन् को डाव
कारा, भूरा,पांढरा रंग
उंदीर से ओको नाव
शेषराव येळेकर
दि.०७/१०/२२
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२३
संस्कार
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माय, मोला दे धोती
बननो से राजा भोज
वाग्देवी को आशिर्वाद
ज्ञान की करनो से खोज
अक्षर साधना करनो से
हात मा कुशलता लावनो से
मी भी नहावं कायमा कमी
दुनिया ला या बात दिखावनो से
माय,तूच गुरू
सांग भोज इतिहास
उंगली तोरी धरेव
लगेव अभ्यास को ध्यास
संस्कार भी सिकून
करून संस्कृती आचरण
अभ्यास योग ला
मनापासून करेव धारण
शेषराव येळेकर
दि. ०७/१०/२२
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२४
कोजागिरी
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आश्विन पौर्णिमा
लक्ष्मी को जागर
रोज चूल्होपर पके
सुख संपन्न भाकर
सोला कलालक चंद्र
भेटे कृष्णानंद
निरोगी कायामा
होये जीवन बंद
कोजागिरी खिर
जीवन की मिठास
ज्ञान साठी सजगला
लक्ष्मी वरदान खास
शेषराव येळेकर
दि.०७/१०/२२
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२५
उठाण बड्डी
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उठाणबड्डी खेत
रेत मुरमाड माती
नापिक, शापित
याच येकी जाती
वऱ्याको पाणीपर
यहान भरसे जुव्वा
बिज पुरती तरी पक्
किसान पुकारसे देवा
बांधी खाल्या बांधी
खचकाको उतार
सदा झिरपतो पाणी
खांडला नही फुट धार
भगवान भरोसा
रकत किसान गाडसे
मी काल को बाप
खेत उठानबड्डी बोलसे
शेषराव येळेकर
दि.०७/१०/२२
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२६
शून्य
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मातीको योव संसार
कोणीच कोणको नहीं
आपला आपला धुंडसेस
दिशा सारी दाही
जानो से अटल
तोरो नोवतो काही
सगा सोयरा सोबती
ना बहीण ना भाई
माया ममता पैसा अदला
कबच तोरो नवतो
हात लकीर या नशिब
तोरो संगमा नवतो
खाली हात को
शुन्य अजनबी
तुच पूर्ण ब्रम्हांड
याच आखरी खुबी
शेषराव येळेकर
दि.०८/१०/२२
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