क्षत्रिय पंवार/पोवार संगठनों के दायित्व🚩

 क्षत्रिय पंवार/पोवार संगठनों के दायित्व🚩

समाज के कार्यक्रमों में नई पीढ़ी को हमारे वास्तविक गौरवशाली इतिहास से परिचित कराते हुये उनका सांस्कृतिक उत्थान कैसे हो, पर चर्चा होनी चाहिए। युवाओं के कैरियर मार्गदर्शन, युवा उत्थान जैसे विषय भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये मार्गदर्शन अनेक मंचों पर उपलब्ध हैं, लेकिन समाज के इतिहास, संस्कृति और समाज क़ी भाषा के साथ पुरातन रीति-रिवाजों को नई पीढ़ी को कैसे सिखाया जाया, इस पर हर हर कार्यक्रम में चर्चा होनी चाहिए और हर संगठन को इस हेतु निरंतर काम करना होगा।

हमारा इतिहास गौरवशाली हैं और वर्तमान को और बेहतर बनाने क़ी प्रेरणा भी देता हैं। आने वाले पीढ़ी यदि सांस्कृतिक रुप मजबूत होंगी तो कई सामाजिक समस्याओं का समाधान संभव हैं।

पुरानी पीढ़ी का ज्ञान नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए समाज के संगठनों को आगे आना होगा। विलुप्त होती पोवारी बोली और मिटते रीति-रिवाजों को बचाने के लिए हर किसी को यथा संभव सहयोग करना होगा। पोवारी संस्कृति के जतन क़ी बात सिर्फ पोवार संगठन ही कर सकते हैं, दूसरे क्यों करेंगे। राजनीति करने के लिए कई मंच हैं और किसी भी समाज के मंच का इस हेतु दुरूपयोग नही होना चाहिए।

गांव गांव में समाज क़ी समितियाँ हैं और हर हफ्ते या पंद्रह दिन में इनसे पोवारी पाठशाला लगनी चाहिए, जिसमें पंवार/पोवार समाज के इतिहास, पोवारी बोली, रीति-रिवाज, नेंग-दस्तूर, पोवारी के कुरो का इतिहास और महत्व जैसे विषय पर बुजुर्गो के द्वारा कक्षाएं ली जा सकती हैं। कई संगठनों/समितियों ने ये कार्य शुरू भी किया हैं। लगभग 900 गावों में पोवार समाज रहता हैं, जिनकी समान बोली, संस्कृति, इतिहास हैं उन्हें आपस में जोड़ने का कार्यक्रम चल रहा हैं, पर बहुत धीमा हैं, जिसे तेज करने के प्रयास करने हैं।


जय सियाराम🙏🙏 

जय क्षत्रिय पंवार(पोवार) समाज

✍️ऋषि बिसेन

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