घुगरी

          घुगरी 

                        

          प्रस्तावना :- घुगरी येव शब्द पोवार संबंध बहुत पुरानो से.  पोवार संस्कृती को खेती-किरसानी को संबंधितच नाय तर किरसान मानुस को शरीर संबंधित भी से.  "घुगरी" येन शब्द को अर्थ घु= म्हणजे पौष्टिक ना गर= म्हणजे गाभो (घाभो म्हणजे मुल, निटवल माल) म्हणजे घुगरी म्हणजे निटवल माल को पदार्थ , खजिना, सार इत्यादी आय. शरीर जब थक जासे तब ओला पौष्टिक तत्व की जरूरत रवसे तब पौष्टिक तत्व आपुन आपलो खानपान , आहार को माध्यमलका वोकी शरीर ला पुरती करसेजन. 

             महत्त्व :-परा सरसे तब, वोन दिवस जेवनमा विसेस करस्यानी पोवारी समाज मा घुगरी देसेत. काय देसेत एको भी वैज्ञानिक कारण से. पुरो दिन भर किरसानी मा राब राबसे तब वोको शरीर मा कमजोरी या थकावट आय जासे. वा थकावट घुगरी को माध्यमलका दूर होसे. 

             गहू की घुगरी, चना की घुगरी, मुंग की घुगरी इनमा बहुत पौष्टिक तत्व (व्हिटॅमिन) सेती. अज भी गहू की घुगरी, चना की, मुंग की घुगरी बहुत पौष्टिक तत्व रहेलका वैद्य (आजकाल का डॉक्टर) खानला सांगसेती, गहू का ज्वरा पेरण ला ना वोको अर्क पीओ कसेत. पहिले को जमानो मा बाह्य शरीररगत पिचकारी (अजकी सलाईन नव्हती) घुगरी मा बहुत पौष्टिक तत्व रवसेती. परा सरेव म्हणजे जो शरीर की झीज होय वोकी सर काढन साठी वोनो जमानो मा घुगरी की सलाईन (बाह्य शरीररगत पिचकारी) जेवन मा देती. आब भी मोठा मोठा डॉक्टर घुगरी को रस किंवा वोकी भुजली को रस खानला सांगसेती. ना बहुत लाजवाब फायदा होसे. येन जीचजमा दोमत नाय. 

खास करस्यानी पोवार समाज मा एको वापर होतो अज भी से. घुगरी स्वस्थ, निरोगी देह की कालजी वहन करनको ना आपलो शरीर निरोगी ठेवनको महत्व विशद करसेती. घुगरी वोनजमनोमा खान की चीज नही त एक (टॉनिक) स्वस्थवर्धक पौष्टिक रस म्हणून देत होतो परा को आखरी दिवस जेवनमा.

              धार्मिक महत्व ( विज्ञानलका जुडेव ) :-जब आपलो परा सर आपुन घर आवजन आंग-पाय धोयस्यांनी चक होजन वोको बादमा पूजा कर्जन. ना बिरानी चढावजन आब भी आपुन बिरानी  चढाव सेजन तब धुवा निकले से ऊ धुवा मस्तिक मा जायस्यांनी आपलो शरीर की, जेती भी रंगत वहन नलिका सेती उनला शुद्ध करसेती. एवं विज्ञान आय. येन धुवा लका आपला देव त खुश होसेत पन आपला आरोग्य भी प्रदान करसेती. 

             पोवार समाज ना घुगरी को अतूट रिसतो नातो से पोवार समाज की खानपान की शान अन्य समाज न भी बादमा धरीन पन पोवार समाज की आरोग्य की, दुर्दर्सिपना माननो लगे. येन बातपर लका येव सिद्ध होसे की, आपलो बुजुर्ग इनकी शरीर को बाऱ्या मा केता ख्याल ठेवत. 

             चलो घुगरी को बाऱ्यामा अज येतोच पन घुगरी को इतिहास ना वोको महत्त्व एक दुय पान मा नही त सौ पान को वऱ्या की लिखन की बात से 

              !!जय राजाभोज!!


 ✍️ अँड. देवेंद्र चौधरी, तिरोडा 

                (कॉपी राईट)

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