सामाजिक शख्शियत : स्व. श्री. परसराम पटेल, ग्राम पोंडी(उकवा), जिला : बालाघाट
सामाजिक शख्शियत : स्व. श्री. परसराम पटेल, ग्राम पोंडी(उकवा), जिला : बालाघाट
पाँच फुट की ऊचाई के साथ साधारण शरीर, गेहूआ रंग, सुन-हरी आँखे, खादी की धोती, कुरता, कोट, टोपी,और हाथ में छड़ी, सादगी, सौम्यता और अपनत्व की प्रतिमूर्ति अपने जमाने के उत्कृष्ठ समाजसेवी जो सम्पूर्ण पंवार समाज व राष्ट्रीयता को अपने मे समेटे हुये थे ।
इस महापुरुष का जन्म २१ अक्टूबर सन् १८९४ की दिवाली (लक्ष्मीपूजन) के दिन तहसील बैहर के ग्राम पोंडी में हुआ। उनके पिता नबाजी पटेल प्रसिद्ध मालगुज़ार थे और उनकी माता का नाम जानकू बाई था। बालक परसराम जब ४ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। वे चार गांव के मालगुजार थे जिसकी देखरेख उनके काकाजी अनन्दराम पटेल, जीजाजी दुलीचंद मोकासी ग्राम पाथरी तथा मुखत्यार बंसीलाल लाला करते थे।
स्व. परसराम जी पटेल ने केवल प्राथमिक शाला की चौथी कक्षा तक शिक्षा पाई थी । किन्तु वे इतने कढे और बहुश्रुत हुये कि उन्होंने जीवन की हर गहराई और ऊंचाई को स्पर्श किया। १८-२० वर्ष की अवस्था से ही वे समाज सेवा एवं देशसेवा में संलग्न हो गये। वे मनसे, वचन से और कर्मसे गाँधीवादी थे। वे २१ बार डिस्ट्रिक्ट कौंसिल एवं अन्य संस्थाओं मे जनमत का प्रतिनिधित्व करते रहे। वे जनपद सभा बैहर मे शिक्षा समिति के अध्यक्ष और मध्यप्रदेश कृषि सलाहकार समिती के सदस्य रहें।
आपको अपने समाज और अपनी संस्कृति से बहुत लगाव था और अन्य कार्यों के साथ आप समाज के उत्थान और पोवारी संस्कृति के संरक्षण के लिए जीवन भर कार्य करते रहें। आप पंवार राममंदिर बैहर के ४० वर्षो तक व्यवस्थापक रहे। वहां के रामनवमी उत्सव के समय वे अपने घरसे बैलगाडियों मे रसद व अन्य सामग्री ले जाते थे। आप मध्यप्रदेश व बरार पंवार क्षत्रिय संघ के वे दो बार
अध्यक्ष रहे। बालाघाट पंवार छात्रावास का शिलान्यास उन्हीं के कर-कमलों से हुआ था। पंवार समाज ही नहीं, अपितु आप सम्पूर्ण मानव समाज के नेता, स्नेही व शुभचिन्तक थे।
शिक्षा 'सार, महिला शिक्षा, समाज सुधार आदि में उनका विशेष योगदान था । कृषिसुधार के वे प्रणेता थे। चार-पाँच गाँव के सम्पन्न मालगुजार होने के बाद भी उनका सादा जीवन व उच्च विचार वाला संयमी जीवन था । प्रायः प्रत्येक शादी-व्याह या सामाजिक कार्य मे वे उपस्थित होते थे। उन्होंने अपने भानजे ब्रजमोहन रांहगडाले की सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की। उन्हें अपने जीवनकाल में भयंकर बीमारी जैसे माता, प्लेग तथा इन्फ्लूएंजा का कोपभाजन बनना पडा था किन्तु सभी बार स्वास्थ लाभ प्राप्त कर सकें। अन्ततः २६ नवम्बर १९५५ को लम्बी बिमारी के बाद यह कर्ययोगी ६१ वर्ष की अवस्था में इस संसार से चल बसा। आपके तीनों पुत्र हरलाल बिसेन, मेघराज बिसेन तथा जीवनलाल बिसेन उनकी परम्परा निभाने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी व समाजप्रेमी हुये।
सन्दर्भ : भोजपत्र(1986)
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
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