पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता भाग ६४
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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1.
🚩१.पोवार समुदाय को संक्षिप्त इतिहास🚩
(Short History of the Powar Community.)
( विगत पांच वर्षों को अध्ययन -संशोधन पर आधारित,बिंदु मा सिंधु-अनमोल मुक्तक)
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♦️१.समुदाय को स्वरुप♦️
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क्षत्रिय पोवारों को येव संगम निरालो से l
मानों छत्तीस फूलों को येव हार निरालो से l
खून को रिश्ता मा बंध्या सेत कुल सभी,
सुंदर भाषा , हिन्दू जीवन-दर्शन वालों से ll
♦️२. पोवारों की उत्पत्ति ♦️
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छत्तीस कुल को होतो सैनिक संघ l
परस्पर रिश्तेदारी मा गयेव बंध l
समान भाषा ना संस्कृति को कारण,
जाति की संकल्पना मा गयेव बदल ll
♦️३.स्थानांतरण को इतिहास ♦️
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पोवारों न् बख्तबुलद ला देईन साथ l
वैनगंगा को आंचल ला करीन आबाद l
संस्कृति बचाईन वतन सोड़के भी ,
पूर्वजों को पदचिन्हों पर करों प्रस्थान ll
♦️४.पोवारों को मुख्य व्यवसाय ♦️
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वैनगंगा को आंचल मा बसाईन गांव l
खेती किसानी मा बहायीन आपलो घाम l
जीवनयापन करीन किसानी करके,
नवयुग मा शिक्षा को दामन लेईन थाम ll
♦️५.पोवारी तीर्थस्थान♦️
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सतपुड़ा अंचल मा बसाईन गाव-गव्हान l
नवो गांवों मा करीन राममंदिरों को निर्माण l
सिहारपाठ पर बनायके श्रीराम-मंदिर,
देईन सुंदर नाव वोला पोवार तीर्थस्थान ll
♦️६.पोवारी को अर्थ व व्याप्ति♦️
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पोवारी या एक मायबोली से l
पोवारी येव एक समुदाय से l
पोवारी या से एक संकल्पना,
पोवारी या एक जीवनशैली से ll
🌹७.संस्कृति की प्रमुख विशेषता🌹
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आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम l
रामायण अना गीता पोवारों का श्रद्धास्थान l
पोवार समाज से अनुयाई राजाभोज को,
संस्कृति ला से सनातन धर्म को अधिष्ठान ll
🌹८.मातृभाषा को महत्व 🌹
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पोवारी या से पोवारों की शान l
पोवारी या से समाज को प्राण l
पोवारी या पहचान पोवारों की,
मातृभाषा या मायमाता समान ll
🌹९.साहित्य व साहित्यिक 🌹
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साहित्य समाज को से दर्पण l
साहित्य सर्जन मा से समर्पण l
जनजागृति ना सुधारों मा,
महत्व साहित्यिक को से अनन्य ll
🌹१०. भाषिक दायित्व 🌹
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पोवारी या बोली से सुंदर l
पोवारी या बोली से मधुर l
भाषा को दर्जा मिलावन का,
संगठित प्रयास करों भरपूर ll
🌹११.नवयुग को नवो संकल्प🌹
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पोवारी की कभी शाम ना होन देबी l
पोवारी ला कभी बदनाम ना होन देबी l
बनी रहें देह मा जबवरि प्राणशक्ति ,
पोवारी को आंचल नीलाम ना होन देबी ll
🌹१२.पूर्वजों ला वंदन 🌹
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मालवा मा सोड़के आपलो पूरो वतन l
माय वैनगंगा को थाम लेईन आंचल l अलौकिक से इतिहास पोवारों को,
पूर्वजों की यादों ला शत् शत् वंदन ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि,भारतवर्ष.
रवि.११/०९/२०२२.
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2.
🛑🛑२.पोवारी भाषा : स्वरुप व महत्व🛑
(विगत पांच वर्षों को अध्ययन-चिंतन -मनन पर आधारित)
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♦️१.पोवारी भाषा को स्वरुप♦️
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निसर्ग की बहारों वानी सुंदर से पोवारी l
चंद्रमा ना चांदनी वानी शीतल से पोवारी l
पोवारी समाहित से जुनो लोकसाहित्य मा,
मानव मन ला सहज मोह लेसे पोवारी ll
पोवारों को कंठो की झंकार से पोवारी l
पोवारों की वाणी को श्रृंगार से पोवारी l
पोवारी या पोवारों को मन की बहार,
परस्पर संवाद को आधार से पोवारी ll
पोवारी भाषा या से छैल छबीली l
पोवारों को घरों की या से लाड़ली l
बोलनों- लिखनों मा या से सरल,
दुनिया की बोलियों मा से निराली ll
पोवारी बोली या से बड़ी भोलीभाली l
या से पोवारों को अंतर्रात्मा की बोली l
जहां- जहां पोवारी बोली जासे ,
वहां बढ़ जासे संबंधों की खोली ll
ग्रामीण अंचल मा पली से पोवारी बोली l
येको कारण या से बड़ी भोली भाली l.
शब्द वैभव येको बड़ो अलौकिक से,
जीवंत चित्रण मा या से सामर्थ्यशाली ll
मधुर लोकगीतों लक समृद्ध से पोवारी l
उत्तम संस्कारों लक संपृक्त से पोवारी l
सनातनी परंपराओं लक सिंचित से,
गौरवशाली बोली- भाषा से पोवारी ll
बिह्या को गीतों पर से रामायण को संस्कार l
वर वधू ला रामसीता मानके होसेती दस्तूर l
भारत की माटी सीन जुड़ी से पोवारी बोली,
पोवारीबोली से राजसीअंदाज लक भरपूर ll
राजभाषा हिन्दी दुन प्राचीन से पोवारी l
हिन्दी की उपभाषा कहलाव् से पोवारी ll
पोवारी या हिन्दी दुन भी ज्यादा मधुर ,
हिन्दी समान सरल भाषा से पोवारी ll
माय की ममता वानी कोमल से पोवारी l
गंगा की धारा वानी निर्मल से पोवारी l
विरासतों मा या से सबसे मूल्यवान ,
समाजकी एकता मा कमाल की से पोवारी ll
पोवारी भाषा से मीठी मन-मोहिनी l
साहित्य गगन की या चटक-चांदनी l
अनमोल धरोहर से या समाज की,
भाषा पोवारी से समाज की संजीवनी ll
सूर्य रश्मि समान तेजस्वी से पोवारी l
चन्द्र रश्मी समान शीतल से पोवारी l
मनोभावों अनुसार देखावसे असर ,
सुहागिनों वानी श्रृंगारित से पोवारी ll
उड़तो पंछी वानी से मायबोली पोवारी l
बहती गंगा वानी से माय बोली पोवारी l
हिन्दी वानी से पोवारी भाषा की व्याकरण,
माय को समान कल्याणकारी से पोवारी ll
मायबोली या माथो को चंदन समान से l
मायबोली या पूर्वजों ला वंदन समान से l
या से माय को पावन आंचल समान,
मायबोली या एकता को बंधन समान से ll
♦️२.पोवारी भाषा को महत्व♦️
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पोवारी भाषा पोवारों की शान से l
पोवारी भाषा समाज को स्वाभिमान से l
पोवारों की पहचान से पोवारी भाषा,
पोवारी भाषा पोवार समाज को प्राण से ll
पोवारी संस्कृति की संवाहक से पोवारी l
पोवार समाज की प्राणतत्व से पोवारी l
पोवारी से सभी दृष्टिकोण लक अनमोल,
पोवार समाज की सारसर्वस्व से पोवारी ll
मायबोली को कारण एकता से फली फूली l
मायबोली को कारण संस्कृति की फूलवारी l
मायबोली की महिमा से पूरो जग मा महान,
समाज की नींव से मायबोली की हरियाली ll
मायबोली या से सब भाषाओं की मूल l
स्वभाव ला ढाल देसे संस्कृति अनुकूल l
जसी नारियों मा माय केवल माय होसे,
तसीच भाषाओं मा मायबोली से अतुल ll
पोवारी भाषा पर निर्भर पोवारी संस्कृति से l
पोवारी संस्कृति पर निर्भर पोवार समाज से l
भाषा से जिंदी तबवरि जिंदों रहे समाज,
उन्नत समाज को मूल उन्नत मातृभाषा से ll
माय-माता या जग मा केवल एक होसे l
मातृभाषा भी जग मा केवल एक होसे l
माय अना मातृभाषा ये दूही सेत अतुल,
मातृभाषा को उत्थान लक समोजोत्थान होसे ll
♦️भाषिक क्रांति को सुझाव ♦️
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बढ़ाओं आपलो चिंतन की उंचाई,
ज्यादा उंचाई पर पहुंचाय पाओं मायबोली l
बढ़ाओं आपलो चिंतन की खोली,
नवो शब्दों लक वोला बनाय पाओ समृद्धशाली ll
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३.
पोवारी को अतीत अना वर्तमान
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जूनो जमानों मा
पोवारी बोली की धारा
गंगा जी की धारावानी
अविरत,बिना अवरोध बव्हत होती l
लेकिन आजादी को बाद
जसी मारबद घर लक काहाढ़ के
आखर पर फेकी जासे,तसाच शिक्षित लोग
पोवारी ला हेदाड़के बाहेर खेदाड़न लग्या ll
आजादी को बाद,सत्तर साल वरि
समाज प्रेम को अभाव मा
करप रहीं होती काया
अना मुरझाय रहीं होती पोवारी l
जसो मान्सून की वर्षा को अभाव मा
करप जासे, मुरझाय जासे
बलिराजा को पिकपानी ll
लेकिन दुय हजार अठरा की
भाषिक क्रांति पासून
बरस रहीं से समाज को भाषिक प्रेम
अना बरस रहीं से साहित्य मा पोवारी l
जसो सावन को महिना मा
ढगों की गड़गड़ाहट को साथ
धरा पर धुआंधार होसे वर्षा
अना गली-गली मा बव्हसे पानी ll
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४.
प्रतिक्रांति को प्रति आवश्यक सावधानी
Be Alert ! About the Conter- Revolution.
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आशा को सितारा कहीं ढल न पाये l
उम्मीदों को पर्वत कहीं बिखर न पाये l
कोनी गुमराह न कर पाये समाज ला,
आओ, जागृत रहके क्रांति आगे बढ़ाओं ll
मेहनत लक आम्हीं क्रांति का बीज बोया l
बड़ी मुश्किल लक क्रांति सफल बनाया l
कोनी क्रांति ला ना मोड़ पाये उलटी दिशा मा ,
आओ, जागृत रहके क्रांति आगे बढ़ाओं ll
चेतना को अलख समाज मा जगाया l
नवी क्रांति की फसल समाज मा उगाया l
कोनी क्रांति की आग न् बुझाय पाये समाज मा,
आओ ,जागृत रहके क्रांति आगे बढ़ाओं ll
मायबोली को प्रेम समाज मा जगाया l
पहचान की जाणीव समाज ला कराया l
कोनी स्वार्थी प्रतिक्रांति न आन पाये समाज मा,
आओ, जागृत रहके क्रांति आगे बढ़ाओं ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
सोम.१२/०९/२०२२.
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५.
डाॅ. दीपक हरिणखेड़े: पोवारी स्वाभिमान का प्रतीक
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भारत की आज़ादी को बाद पोवार समाज मा शिक्षा को प्रचार-प्रसार भयेव.पोवार समाज का शिक्षित व्यक्ति पोवारी मा न् बोलता हिन्दी अथवा मराठी को वापर करन लग्या. पोवारी बोलनों मा संकोच करन बस्या.असो स्थिति मा भी स्वाभिमान लक पोवारी बोलने वालों बुद्धिजीवियों की संख्या बहुत होती. लेकिन समाज मा पोवारी स्वाभिमान की चर्चा न करता पोवारी बोलनो मा संकोच -शरम की चर्चा ज्यादा रंगी. पोवारी अस्मिता का उदाहरण काल भी होता ,अज भी सेत अना भविष्य मा भी रहेत 'आवश्यकता से स्वाभिमान लक पोवारी बोलने-लिखने वालों महानुभावों को "पोवार समाज गौरव" को स्वरुप मा स्वीकार करन की !
इन दिनों मी गोंदिया का सुप्रसिद्ध डाॅ. पुष्पराज गिरी इनको द्वारा संचालित श्री राधाकृष्ण क्रिटिकल हाॅस्पिटल, गोंदिया मा सेव. मोरी धर्मपत्नी को इलाज शुरू से. यहां एक दिवस एक डाॅक्टर पोवारी भाषा मा मोरी धर्मपत्नी पामेश्वरी पटले ला तब्येत को हालचाल खबर लेता निदर्शन मा आया. मोला आश्चर्य को धक्काच लगेव. मोला असो लगेव कि पोवारी भाषिक क्रांति को असर आता मोठो ख्यातनाम दवाखानों को भीतर भी पहुंच गयी से.
उपर्युक्त डाॅकटर साहेब को नाव से डाॅ.दीपक हरिणखेड़े! कुलपा (म.प्र.) येव इनको गांव आय.
गोंदिया जिला मा पोवार समाज की संख्या अधिक से.येको कारण पोवार समाज का चार -पांच पेशेंट हमेशा येन् एकच दवाखानों मा देखेव जासेती. डाॅ.हरिणखेड़े साहेब ये यहां हमेशा पोवारों संग् ,पोवारी मा बात कर् सेती. पोवार समाज व पोवारी भाषिक क्रांति साती या विशेष उल्लेखनीय व अत्यंत गौरवपूर्ण बात से. पोवारी स्वाभिमान का प्रतीक आदरणीय डॉ.दीपक हरिणखेड़े * *इनको समस्त पोवार समाज कर लक बहुत बहुत हार्दिक अभिनन्दन.
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.
शुक्र.१६/०९/२०२२.
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6.
|| चूक कोनकी से ? ||
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एक इसकुलमा पालक सभा को आयोजन करनो मा आयेव. केंद्र प्रमुख मुन मोला मार्गदर्शन करणला बुलाईन. इसकुल शिकनेवाला टुरा टूरीका बहुत माय बाप आया . अना आपलो घर की कहानी सांगण लग्या. जवान जवान टु रा टुरी भय गया पर अक्कल नही आय रहीसे. पड्योव काळी को काम नही करत. माय बाप सांगसेती त मुजोरी कर सेती. गुस्सामा आयकर डोरा देखावसेती. दिनभर मोबाईल पर पासला पड्या रव्ह सेती. काही समज मा नही आव. काम की बात करो त इत उत पराय जासेती. जेको एक टुरा से वय भी बायको आयोपरा अलग रव्ह सेती. आता माय बाप न का करे पाहिजे.
मी उनला समजाव न लगेव. जेको घरमा समजदा री से ओको घरमा या बात नही आवती पर काही घरमा या समस्या आव सेती. येला जबाबदार माय बापच सेती. मोला येव सांगो, तूम्हरो टुरा टुरी का बाप तुम्ही च सेव का? का तुम्हरा टुरा टुरी तुम्हरा बाप आती. सबकी बोलती बंद भयी. माय बाप को कर्तव्य करन मा काहीतरी चूक भयी से. काही घरमा असा प्रकार देखनो मा आवसेती. जायरे जायरे करस्यानी तुम्हीच बाहेर जान लग्यात त कसो होये. येको साठी घर घर मा टुरा टुरीला खूब शिकाये पाहिजे. समज दारी आयेव पर या समस्या दूर होयेत. नहीत घर दार बरबाद होतेय. आता भय गयी चूक ला सुधारण की घळी आय गयी से नहीत जीवन भर रोवन की पाळी आये.
पोवारी साहित्य सरिता
भाग ६४
दिनांक:१७:९:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
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7.
|| हातपर हात !||
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हात पर हात देयकरके, काम धंदा काही बनत नही |
काही तरी काम करो जमके, पुढ जानको रस्त्ता भेटे सही||१||
पोवारी का होतकरू टुराला, मदत करणला पुढ आवो |
दान को फंड जमा करणला, हिमत आनकर सामने जावो ||२||
इत उत बसनो बेकारसे , पुस्तक कट्टा पर बाचन जावो |
ज्ञान ध्यान की जाणकारी होसे, योजना भविष्य पर बनावो ||३||
गावको व्यायाम शाला बिगर, तन मन मा स्फूर्ती आव नही |
धडधाकड रहेव बिगर, काम करन जोश भर नही ||४||
बुवा बाजी अंध श्रद्धा को रोग, घरला बरबाद कर जासे |
सोच समजकर करो संग, आधार जीवन को बनजासे ||५||
घुसा क्रोध मा नही से फायदा, प्रेम की भाषा सब संग बोलो |
पोवार जात को छत्र छायामा, हासी खुशी को जीवन बितावो ||६||
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पोवारी साहित्य सरिता
भाग ६४
दिनांक:१७:९:२०२२
हेमंत पी पटले धामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
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8.
कविता : प्रभु की भक्ति 🙏
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तुम्ही आव मानव, मानवता को भाव ला भरो।
कर्म साजरो करो, फल की चिंता नोको करो।।
प्रभु परा राखो भरुषा, संताप मा नोको मरो।
आशीर्वाद से तुमला, कसो फसे तुमरो गरो।।
आपरो हिरदयमा, तुम्ही विश्वासला असो भरो।
भक्ति लक प्रभु की, सूखो बाग़ बी होये हरो।।
ईर्ष्याका करो त्याग, मन दुखी कर नोको जरो।
प्रभू का आर्शीवाद लक, होय जाहो तुम्ही खरो।।
नोको करो कोनी अन्याय, प्रभु लक सदा डरो।
आपरो नितकर्म तुम्ही, धरम को अनुरूप करो।।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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9.
कविता: हर हर महादेव🙏
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हे देवो का देव, महाकाल महादेव,
सेंव मी तोरो भक्त,
हर हर महादेव.........
तोरी से कृपादृष्टि, धन्य भयो मी देव,
राखो असच किरपा,
हर हर महादेव......
सबका करो उद्धार, ओ मोरो देव,
तुम्ही जगत का तारनहार,
हर हर महादेव......
कलयुगी माया, दूर करो मोरो देव,
धरम पथ परा राखो,
हर हर महादेव......
जीवन की नैया, पार लगाव मोरो देव,
सबला निष्कंटक राखो,
हर हर महादेव......
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
🕉️🔅🕉️🔅🕉️🔅🕉️
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10.
जगत पिता भगवान🙏
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जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन,
कौन धर्माती कौन उत्पाती कौन से निष्क्षल यहान से तोला भान
राखो सबकी आन,
जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन,
धर्माती चल धर्म कर्म लक फिर भी कठीन परीक्षा देसे काहे भगवान,
राखो सबकी आन,
जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन,
उत्पाती उत्पात मचाव फिर भी जगत मा जीव से सीना तान काहे भगवान,
राखो सबकी आन ,
जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन,
निष्क्षल क्षलयो जासे पग पग पर
क्षल बल माया को बल पर,
कलयुग घोर छायो भगवान
राखो सबकी आन
,
जगत को पिता से तु भगवान देवा राखो सबकी आन
तु देवा देवो को देव महादेव भगवान ।।
**********
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
**************************************
11.
पोवारी को मान बढ़ाओ
********
पोवारी को मान बढ़ाओ
ऐको मा सबको सम्मान
बोली से हमरी मनभावन
बची रहे पोवार की पहिचान।
सबको घर मा नाँद बोली
ऋतु वसंत न ओढ़ी चोली
हर डार पर कोयल बोली
मंगलाचार की सजी थाली।
येको मा सबको सम्मान
बची रहे हमरी पहचान।
**********
पोवारी मा बोलन अन लिखन वाला सभी भाई बहिन ला मोरो प्रणाम।
धन्यवाद। 🚩🚩🙏
कोमल प्रसाद राहंगडाले, धारना, जिला-सिवनी
********************************************
12.
जगत माती को ढेला रे......
-----@@@-----@@-----@@@-----
छोड़ सब झोल झमेला रे....
जगत माती को ढेला रे......||धृ ||
जगत की रीत पुरानी |
कमाओ सब दाना-पाणी ||
जिवन की झुक -झुक गाड़ी |
जमा भयी दौलत बाड़ी ||धृ ||
रूबाब को अंधरो धंदा |
बन गयो गरो को फंदा ||
मीटाय कर हातकी लकीर |
गयेव जगतलं जसो फकीर ||धृ ||
छीना-झपटी को संसार |
धन-दौलत की मारामार ||
छोड माया को निशान |
बाट देखं आखरी मा मशान ||धृ ||
चलं जिवन को खेल |
जेतरो इंजन मा से तेल। ||
खेल जिवन को बडो अलबेला रे...|
जगत माती को ढेला रे... ||धृ ||
---@@@------@@-------@@-----
रचना - सतीश सु़. पारधी
तारीख -१७/०९/२०२२
**************************
13.
🌷माय, तोरो आशिर्वाद🌷
(मुक्तायन काव्य)
**************
मायसाती पुरेत एवढ़ा
शब्द नाहात कहान |
मायसाती का लिखू?
मायपर लिख सकु एवढ़ो
मोरो व्यक्तित्व नाहाय महान ||१||
जीवन येव खेत आय तं
माय म्हणजे बिहीर |
माय म्हणजे का नोहोय?
जीवन येव डोंगा आय तं
माय म्हणजे नदीको तीर ||२||
माय म्हणजे भजनमा
गुणगुणासे असी संतवाणी |
मायको बारामा अनखी का सांगू?
माय म्हणजे रेगिस्तानमा
पिवो असो ठंडोगार पाणी ||३||
माय तू तपनमाकी सावली
माय तू बरसातमाकी छतरी
माय तू मोरोसाती का नाहास?
माय तू थंडीमाकी शाल |
माय तोरो आशीर्वाद लका
मोरो जीवन से खुशहाल ||४||
*****
✍ इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया (महाराष्ट्र) मो. ९४२२८३२९४१
***********************************
14.
🌷अष्टविनायक (पोवारी अभंग)🌷
********
स्वयंभू गणेश | अष्टविनायक |
प्रसन्न दायक | मंदिर हे ||१||
बस्या मोरगावं | बाप्पा मोरेश्वर |
बल्लाळ ईश्वर | पाली गावं ||२|
सिध्दटेक वासी | सिध्दी विनायक |
वरद नायक | महडको ||३||
रांजण गावको | महा गणपती |
थेऊर रव्हती | चिंतामणी ||४||
गिरिजा आत्मज | लेण्यांद्रि निवासी |
ओझर का वासी | विघ्नेश्वर ||५||
अष्टविनायक | जावो रे निश्चित |
संकल्प ईच्छित | पुर्ण होये ||६||
दुर होये विघ्न | करो दरसन |
कसे गोवर्धन | पुण्य भेटे ||७||
*********
© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया, मो. ९४२२८३२९४१
***************************************
15.
बदलयव जमाना
*******
आयव कसो यव जमाना
भक्ति देखो बनी तमाशा ।
इज्जत घरकी मैदानमा
नाचअ खूब ताता थैया ।
घुरसेत दीगर मरद माना
येकी नही फिकर कोनीला ।
बन्या सब आमी बन्दरा
देखासीखी को चक्करमा ।
भक्तिभाव मिले आब कहा
सब व्यापारकोसे बोलबाला ।
😐
महेन
**********************
16.
राष्ट्रीय लेख
भारतवर्ष- अनेकता मा एकता
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भारतवर्ष को बारामा यव बात कही जासेकी यन देश की खास बात येको अनेकानेक रंग का विविधस्वरूप आती। येको, "अनेकता मा एकता" का रंग सबांग चोय जासे। फूलमाला वानी आपरो भारतवर्ष आय अना यन माला का हर फूल अलग प्रकार, रंग अना रूप का आती।
भारतीय संस्कृति रूपी धागामा विविध आयाम का फूल गूथी सेती। सप् फूल की सुगंध अलग-अलग आय अखिन यव मोठी जात की माला ला देखकन दुनिया जहानला बी अचरज बी होसे परा सबको हिरदय लक येकी सुंदरता को गुनगान गायो जासे। येला देखकन एकान एकान फूल का बारामा जेतरो बी कहवबीन ओतरो कम से, काहे की हर फूल ना मोठी माला मा समावन लाई दूसरो फूल को संग धरीसेस, तबच येत्ती मोठी माला का अस्तित्व आय। हर फूल की आपरी पहिचान अना सुगंध बी आय, जेला फूलला हर हाल मा बचायकन राख़नों से, काहे की सबको गुन का साझा रूप, मोठी माला को गुन से।
भारतवर्ष रूपी मोठी माला को हर अंग ला आपरी-आपरी सांस्कृतिक पहिचानला बचायकन ठेवनो से। भाषा, जाति, क्षेत्र असो अनेकानेक तत्व की आपरी बी पहिचान से, जेको सयुंक्त रूपला, "भारतीय संस्कृति" कहव्यों जासे। कोनी बी अंग येक दूजो लक़ न त मोठो आय, न त नाहनो आय, सबका आपरो-आपरो अस्तित्व से, सप भारतीय संस्कृति मा समाहित सेती अना येको अभिन्न अंग आय।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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17.
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समाज को सामाजिक उत्थान कसो होये
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समस्त सम्माननीय पोवार समाजको भाई बंधू सखा इनला हिरदीलाल ठाकरे को सहृदय सादर प्रणाम जय राजा भोज , पोवार समाजको सामाजिक समाजोत्थान साती काही काही गोष्टी बहुत आवश्यक सेती , जेन् प्रकार लक मानवी शरीरला हमेशा निरोगी व स्वास्थ्य ठेवन साती चागंलो आहार व चांगलो ख़ान पान अना नियमित रूप लक व्यायम की गरज रव्ह से तब् मानवी शरीर हमेशा निरोगी व स्वास्थ्य रहे , जेन् प्रकार लक सत्यता को मार्गपर चलन साती योग्य सल्ला देनेवालो एक निस्वार्थ व प्रयत्नवादी कर्तृत्वनिष्ठ ब्रम्हनिष्ठ निष्ठावान मार्गदर्शक की गरज रव्ह से तब् आपलो जीवन की वाटचाल योग्य दिशा मा होसे , जेन् प्रकार लक एक सच्चो समाजसेवक बनन साती समाजकी व समस्त जनमानस की सेवा निस्वार्थ भाव लक करन की गरज रव्ह से तब् एक चागंलो निस्वार्थी समाजसेवक कहेव जासे , जेन् प्रकार लक एक आज्ञाकारी विद्यार्थी बनन साती एक आदर्श शिक्षक व शिक्षिका की गरज रव्ह से तब् एक आज्ञाकारी व शिष्तपालन विद्यार्थी को निर्माण होसे , वोन् प्रकार लक समाजला विकसित बनावन साती व समाजमा प्रामाणिकता आध्यात्मिकता सहनशीलता व शिष्तपालन ठेवनेवालो समाज को निर्माण करन साती एक सच्चो समाजसेवक व एक सच्चो प्रयत्नवादी कर्तुत्वनिष्ठ ब्रम्हनिष्ठ निष्ठावान सामाजिक कार्यकर्ता व निस्वार्थ भाव लक समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण करनेवालों तसोच कुशल नेतृत्व करनेवालों व समाजमा पारदर्शिता ठेवनेवालो मार्गदर्शक की गरज रव्ह से तबंच एक प्रयत्नवादी कर्तुत्वनिष्ठ ब्रम्हनिष्ठ निष्ठावान आदर्श व नेतृत्वान समाज को निर्माण होसे असो मोला लग् से !!
पर आपलो समाज साती काही काही गोष्टी बहुत ही शोकांतिका सेत की काही काही आमरा माहानुभव आपलो सर्वार्थ सिद्धि साती कोणी कोणी मोठो मोठो संगठन का मोठा-मोठा पदाधिकारी भया पर उनको भी समाजोत्थान साती खास लगाव नोहोतो उनन् सिर्फ आपलो सर्वार्थ सिद्धि साती आपलो पद अना मान-प्रतिष्ठा को फायदा उठायकर समाजमा खबराकरन को कार्य करीन , कोणी कोणी मोठा-मोठा समाज प्रबोधनकार भया पर वोय भी सिर्फ लोभ मोह माया को अधीन होयकर भ्रष्ट भया उनला भी समाजोत्थान साती काही लेन-देन नाहाय , कोणी कोणी मोठा-मोठा राजनीतिक जनप्रतिनिधि भया पर उनन् भी आपलो राजनीतिक सर्वार्थ साती समाजको उपयोग करीन पर समाजको समाजोत्थान साती कभी बिचार नही करीन , पर आता अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार/पंवार माहासंघ अना कुशल युवा नेतृत्व को अथक परिश्रम लक समाजमा प्रामाणिकता आध्यात्मिकता सहनशीलता व शिष्तपालन स्वरुप समाजोत्थान साती विकासात्मक वाटचाल पारदर्शिता पुर्वक शुरु से याच विकासात्मक गतिविधियों निरंतर चलत रहेत याच अपेक्षा से जय राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका सबको कल्याण करें!!
लेखक
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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18.
स्व. बाबूलाल भाट की पोथी अना क्षत्रिय पोवार/पंवार समाज
मध्यभारत मा पोवार समाज बालाघाट, गोंदिया, सिवनी अना भंडारा जिला मा मुख्य रूप लक निवास कर सेती। पुरातन दस्तावेज अना आपरो बुजरुग इनलक यव तथ्य मिलसे की हमारो समाज का छत्तीस कुल(कुर) आती। समाज का कई लेखक, इतिहासकार अना विचारकों को माध्यम लक़ यव बात सुननमा आवसे की आम्ही धारानगरी/मालवा राजपुताना लक़ इतन् आया सेजन अखिन पोवार समाज का छत्तीस कुर सेती। असलमा अज वैनगंगा क्षेत्र मा तीस कुर स्थायी रूपलक़ बसीसेत।
पंवार/पोवार समाज
अठारवी सदी की शुरुवात मा देवगड़ को राजा ना मुग़ल सेना ला यन क्षेत्र लक़ भगावन् लाई उत्तर, उत्तर-पश्चिम भारत लक़ कई योद्धा कुल ला बुलायकन येक पक्की सेना का गठन करी होतिस। जिनमा शामिल क्षत्रिय या राजपूत कुल इनको संयुक्त सैन्य जत्था ला "पोवार या पंवार समाज" कहीं गयी से ।
छत्तीस कुर : पुरातन सनातनी क्षत्रिय कुल
१८७२ मा ब्रिटिश काल की मानवीय गणना की किताब मा सिवनी जिला मा पोंवार समाज का तीस कुर होन को उल्लेख से। १९१६ मा ब्रिटिश अधिकारी अना इतिहासकार रसेल की किताब मा यव तथ्य उल्लेखित से की पंवार समाज का छत्तीस अंतर्विवाही कुल आती। रसेल न् आपरी यन् किताब मा "नागपुर पंवार" नाव लक़ हमारो समाज को विषयमा लगित लिखान लिखी से परा समाज का कई तथ्य इनका उनको लिखान मा अना हमारो भाट की पुरातन पोथी को लिखान लक़ सामयता नही दिस। ओना हमारो काई पुरातन कुर का नाव मुस्लिम नाव लक़ राखन की भूल करीस। छत्तीस कुर मा शामिल येक कुर का भाट की पोथी मा नाम फरीदाले(दाहिया) से जेला वोना गलत नाव, फरीद देयी से। तसच येक कुर का नाव रहमत लिखी से परा यव रणमत को बिगडयो नाव दिससे। हमारो भाट न् तुरकर कुर ला दिल्ली हस्तिनापुर का तंवर होन का उल्लेख करीसेस जेला रसेल न् तुर्क मुस्लिम लक़ जोड़न की भूल करीसेस। हाम्रो सप्पा कुल "पुरातन सनातनी क्षत्रिय" आती अना कहीं लक़ कहीं तक बी पोवारी कुर का दीगर धरम लक़ कोनी सम्बन्ध नहाय।
बाबा फरीद को प्रभाव
मालवा को क्षत्रिय समाज का आन को बेरा मा देवगढ़ राजा बुलंद बख्त न् मुग़ल राजा औरंगजेब को दबाव मा मुस्लिम धरम ला अपनया लेयी होतिस अना ओनकी गिरड़ का बाबा फरीद परा लगित आस्था होती जेको प्रभाव स्वरूप हमारो कुछ पोवार कुर इनना भी बाबा फरीद ला माननो चालू करीन पर यव आता कम भय गयी से। यवच कारन भयी रही की फरीदाले कुर ला फरीद लिखन की गलती भयी अना येको दुष्प्रचार भयो की पोवारी को ऊपर मुस्लिम या फरीद का प्रभाव से।
पोवारी भाषा अना एकरूप संस्कृति
दूसरों भ्रम यव से की कई सैनिक इनना आपरो परिवारला नही आनिन अना स्थानीय समाज लक़ उनका बिया सम्बन्ध भयो। यव तथ्य बी पूरी तरह लक़ निराधार से काहे की मालवा लक़ पोवार समाज का पुरो जत्था आपरो परिवार अना संस्कृति ला धरकन स्थायी रूपलक़ वैनगंगा का क्षेत्र मा आयकन बसीन। अज़ पोवार समाज विस्तृत क्षेत्र मा बसन को बावजूद बी समाज की येक भाषा अना संस्कृति से जेला समाज ना अज़ भी संजोयकन राखी सेत।
स्थानीय राजा इनको इत आन का आव्हान
कई लोख यव कहकन नाव धरसेती की पोवार समाज मालवा लक़ परायकन आयी सेत, परा यव तथ्य बी सही नहाय काहे की स्थानीय राजा इनको निवेदन परा वय आपरो दुश्मन इनलक युद्ध लड़नला इतन् आया होता। इतन् को राजा इनना उनकी मदद लाई आयो सैनिक जत्था ला इतच बसन को आह्वान करीन, उनला जागा ज़मीन, जागीरदारी, किला अना सैन्य पद देईन, जेको कारन हमारो पुरखा इनना आपरो परिवार ला बी इत आनिन अन् इतच स्थायी रूप लक़ बस गयीन।
क्षत्रिय वंश समूह का संघ पोवार/पंवार समाज अना उनका नगरधन आगमन
भाट की पोथी लक़ यव तथ्य मिलसे की परमार वंश का विस्तार मालवा लक़ नगरधन अना वैनगंगा क्षेत्र मा भय गयो। संगमा उनना यव बी उल्लेखित करिसेत की नगरधन मा मालवा राजपुताना लक़ जो क्षत्रिय जत्था आइसे उनमा अग्निवंशीय पंवार को संग चंद्रवंशीय, सूर्यवंशीय अना यदुवंशीय क्षत्रिय बी आया होता। हामरो भाट न् क्षत्रिय इनको कुल नाव अना उनका उपनाव का बी उल्लेख करीसेत। भाट न् जेन् कुर की मध्यभारत मा स्थायी बसाहट भयी, ओनकी वंशावली लिखिसे। संगमा उनना कुल गिनको मूल स्थान जसो उमरकोट, दिल्ली, ठाकरगढ़, उज्जैन, धारानगरी, टांक, चित्तोड़गढ़ आदि का उल्लेख करीसे। पोथी को संग, पुरातन् जनगणना का दस्तावेज, ज़िला गज़ेट, इतिहास की किताब मा यव तथ्य उल्लेखित से की मालवा लक़ पोवार/पंवार या राजपूत जत्था सबलक पहिले केवल नगरधन मा आया। यन बेरा मा मुग़ल लक़ युद्ध करन को उद्देश्य लक आया जत्था नगरधन मा ठहरीन अना येको सिवाय कोनी दूसरों किला या जागा मा ठहरन् का कुछ विचारक का मत इतिहाससम्मत नहाय। बाद मा यव जत्था आपरो पुरो परिवार को संग वैनगंगा क्षेत्र मा बसीन। यवच कारन से यन् जत्था को दीर्घकाल तक संगमा रहवन को कारन येनकी अलगच संस्कृति अना भाषा से।
मालवा का पंवार(परमार) राजा, समाज का आदर्श
नगरधन लक़ वैनगंगा क्षेत्र मा बस्यो जत्था ला छत्तीस कुर का पंवार या पोवार नाव को संग अज़ आपरी विशिष्ट पहिचान अना संस्कृति लाई जानजासेत। यव समाज मालवा का राजाइनला आपरो पुरखा अना आदर्श कसेती। भाट की पोथी मा यव बी तथ्य उल्लेखित से की राजा भोज का भतीजा, राजा जगदेव पंवार का वंशज, भगत आती जो छत्तीस कुर मा शामिल येक कुर आय। पोथी को अवलोकन को बाद यव बात स्पष्ट होय जासे की मालवा का पंवार अना उनका नातेदार क्षत्रिय कुर राजा भोज का जमाना लक़ संगमा रहीसेती। येको लाई इनको संघ का नाव पोवार या छत्तीस कुर का पंवार आय। छत्तीस मा लक़ छह कुर फरीदाले, रावत, रणमत, रणदीवा, राजहंस अना डालिया आता मध्यभारत मा नही दिसत। यव प्रबल संभावना से की यव कुर नगरधन मा नही आया होता या आयी बी रहेत त लड़ाई ख़तम होन को बाद आपरो मूल क्षेत्र मा चली गयी रहेती।
हमारो पोवार समाज का भाट स्व. बाबूलाल जी न् समाज का सही इतिहास पोथी मा देयीसे परा लोख इनना आपरो-आपरो सुवारथ को कारन समाज का गौरवशाली इतिहास को कई तथ्य ला गलत रूप मा राखकन समाज की गरिमा का हनन करीसेत। अज़ हमारो पोवार/छत्तीस कुर पंवार समाज का इतिहास का सही अध्ययन अना लेखन की जरत से।
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साहित्यकार की कलम
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साहित्य समाज का आरसा होसे, ओकोमा समाज ला नवी दिशा देनकी क्षमता होसे। समाज को पतित होनकी स्थिति मा साहित्यकार की कलम वोला सही का मार्ग परा आनन को जतन करसे। साहित्य असो की जनमानस वोको लक़ जुड़ सिक, ओको लक़ ग्यान लेय सिक, साहित्य असा की सबला सहजता लक़ ग्रहण होय जाय। जसो गोस्वामी तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, आम जन की भाषा मा, ओन बेरामा ज़ब आम्हरो धरम पर विदेशी इनको आक्रमण होय रहयो होतो। यन ग्रन्थ की सहजता येतरी की आमजनला बी प्रभु श्रीराम की भक्ति की चौपाई कंठस्थ भयी अन अज बी प्रभु को चरित जन जन की जुबान परा से। असो जनजन का साहित्य, ओनकी भाषा मा होनो लगित जरुरी से।
✍🏻ऋषि बिसेन, बालाघाट
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19.
कसो उध्दार होये रे
छंद: विधाता (१२२२ x ४)
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पटिलकी सांग के तोरो, कसो उध्दार होये रे ||
नवाबी ठाठमा तोरो, कसो अवतार चोये रे ||
टुरा पोवार को सोभे, सिदो सादो अना ज्ञानी
वतन की शान माथापर मिठी कोयार की बानी
हमारी बैनगंगा की, जहां लक धार बोहे रे
नवाबी ठाठमा तोरो, कसो अवतार चोये रे ||१||
पुरातन को कमाईला, उधड़स्यारी कहां जाजो
सरे ढोला बिके सोनो, भिकारी चोर के खाजो
अभागा बायको बच्चा मगजला मार रोये रे
नवाबी ठाठमा तोरो, कसो अवतार चोये रे ||२||
कहावत से सही की 'मर, गया शौकीन जाड़े से
पड़ा है काम गाड़े से, कमाये कौन भाड़े से'
मिजासी मा मरू नोको, पनौती पार गोये रे
नवाबी ठाठमा तोरो, कसो अवतार चोये रे ||३||
करो मेहनत किसानीमा, सिको कौसल्य धंदा को
जमे तो उच्च विद्या मा, बनो माहीर खंदा जो
अमन सुखचैनमा तोरो, कुटुम परिवार सोये रे
नवाबी ठाठमा तोरो कसो, अवतार चोये रे ||४||
अगर संभालजो यौवन बने आयुष्य सोनो सो
भुजा बलवान को कारण बिराजे तू जवानो सो
विवेकानंद स्वामी का सदा संस्कार बोये रे
नवाबी ठाठमा तोरो, कसो अवतार चोये रे ||५||
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डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
20.
●●●●● अंतर्यात्रा - मन की शून्यता ●●●
राजा भोज मन की भिन्न अवस्था को बारामा सांगसेत
अभिलाषा, आकांक्षा, अपेक्षा, उत्कंठा, ईप्सा, लिप्सा, इच्छा, वाचा, तृष्णा, लालसा, स्पृहा, लल्य, गर्द, श्रद्धा, रुचि, द्रोह, आशा, आशीष, असमंजस , मनोरथ, आस्था, अभिनव, अनुबन्ध, आग्रह, विमर्श, मनीषा, अभिप्राय, पक्षपात, लोभ, असंग, अभिस्वांग, शक्ति, मोह, अकूट, कुतुहल, विस्मय, राग, वेग, अध्यव्यवसाय, व्यवसाय, कामना, वासना, स्मरण, संकल्प , भाव , रस (हस ), रति , प्रीति , दक्षिण्य , अनुग्रह , वात्सल्य , अनुक्रोश , विश्वास , विश्राम्ब , वशीकर , प्रणय , प्राप्ति , पर्याप्ति , समाप्ती , अभिमनाप्ति , स्नेह ,प्रेम आल्हाद , निवृत्ति
राजा भोज श्राव्य प्रबन्ध का 24 प्रकार सांगसेत
आख्यायिका
निदर्शन
प्रवाहलिका
मधुलीका
मनीकुल्य
कथा
परिकथा
खण्ड कथा
उपकथा
बृहतकथा
चंपू
पर्वबन्ध
कन्दबन्ध
सर्गबन्ध
अश्वशक बन्ध
संधि बन्ध
अवक्षन्द बन्ध
काव्यशास्त्र
शास्त्र काव्य
कोश
संघट
संहिता
साहित्यप्रकाश
साहित्य
*****
राजा भोज पद्य का तीन प्रकार सांगसेत
अक्षरछंद
मात्राछंद
गणछंद
येन हरेक छंद प्रकार का तीन प्रकार रवहसेत
सम
अर्द्धसम
विषम
येन सब लक मुक्ति मिलेपर मन की शून्यता प्राप्त होय सकसे । अंतर्यात्रा की शुरुवात करनो से त् पहले एक एक करके येन सब स्थिति लक बाहर निकलनो जरूरी से ।
पर इन लक मुक्ति पानो या काइ सामान्य बात नाहाय ।
( मन की स्थिति का प्रकार राजा भोज को ग्रन्थ "श्रृंगार प्रकाश" परा आधारित सही मा
राजा भोज की साहित्य रचना देखके त् मन की अवस्था शून्य होय जासे । कोनिको भी ज्ञान को अहम टुकड़ा टुकड़ा होय के खाल्या पड़ जाहै असो उनको साहित्य से । राजा भोज की जय नही बल्कि उनको साहित्य बाचन की जरूरत से ।)
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ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता
शौर्यस्य वाकसंयमो
ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य
विनयो वित्तस्य पात्रे व्ययः।
अक्रोधस्तपसः क्षमा
प्रभवितुर्धर्मस्य निर्व्याजता
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं
शीलं परं भूषणम् ॥
ऐश्वर्य को गहना से सज्जनता,
वीरता को गहना से संयमित वाणी
ज्ञान को आभूषण से चित्त की शांति, श्रवण करन की नम्रता,
धन को आभूषण से वोला सुपात्र परा व्यय करनो,
क्रोध को न होनो से तपस्या को आभूषण ,
समर्थ को आभूषण से क्षमा ,
धर्म को आभूषण से निश्चलता निष्कपटता
परन्तु येन सबको कारण स्वरूप परम भूषण से मनुष्य को शील , सदआचार ।
भृतहरिनाथ
नीति शतकम
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21.
साहित्य मा रुचि काहे से आमला
सन 1300 लक आमरो पूर्व अस्तित्व को दरमियान उत्तम साहित्य को निर्माण भयव असो इतिहास लक पता चलसे । पोवार राजा ज्यादातर सब शास्त्र मा रुचि वाला होता । उनन अनेक ग्रंथ को निर्माण करिन असो मालूम पडसे ।
सन 1300 को बाद समया बडो खराब आयव । बिना नीतिमत्तावाला आततायीइनको क्रूर आक्रमण को सामने धरम पर चलने वाला आमरा पुरखा सम्भल नही सकया । हाथ लक राज गयो । फिर बी लगातार लड़ाई चलती रही । उतन लक इतन आया । आमी जंगल क्षेत्र मा आया , आमला आदिवासी लोगको संग रव्हनो पडयव । मुख्य धारा लक दूर भया । कला , साहित्य, विद्या , शिक्षा आदि लक दूरी निर्माण भयी ।
आब धीरे धीरे पुनः आमला आपलो अस्तित्व की पहचान भयी । आमरो भीतर को साहित्य प्रेम प्रगट होन लगयव ।
आमरो समाज मा शिक्षा को प्रमाण जब बढयव त् आमरो समुदाय को लोगइनन अन्य पेशा को बजाए शिक्षक , इंजीनियर, डॉक्टर, वकीली पेशा को चुनाव करिन । यको मा काइ त् कारण से । आमी विद्या , ज्ञान को क्षेत्र को चुनाव कऱ्या । यको कारण आमरो खून मा मूलतः ज्ञान व शास्त्र को प्रति प्रीति बसी से ।
आमी आब साहित्य निर्माण को दिशा मा बढ़न लग्या । आब आमी पुनः आपलो खुदला साकार करन लग्या ।
साहित्य को निर्माण सबको बस की बात नाहाय । साहित्य निर्माण की चेतना समाज मा निर्माण होनो या काइ सामान्य बात नोहोय । जरूर यको मंग नियति को प्रयोजन से असो लगसे । आमला श्रेष्ठ साहित्य को निर्माण को तरफ बढ़नो से । काहे की आमला आमरो उत्तम अस्तित्व की पहचान दुनियाला देनो से ।
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णमादाय पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
अर्थात
वु परब्रह्म सब प्रकारलक सदा सर्वदा परिपूर्ण से । यव जगत् बी वोन परब्रह्मलक च पूर्ण से ; काहेकि यव पूर्ण वोन असीम पूर्ण लक च उत्पन्न भयी से । परब्रह्मकी पूर्णतालक जगत् पूर्ण से , एकोलाय जगत परिपूर्ण से । वोन पूर्णब्रह्ममा लक पूर्ण निकाल लेनपर बी वु पूर्ण च बच जासे ।
त्रिविध ( दैहिक, भौतिक व दैविक तापकी शान्ति हो ।
ॐ
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चिंतन
लिख्या पढया होन को यव मतलब नही की खुद की पहचान लक परहेज करनो । आमी खुद की इज्जत करबिन त् दुनिया आमरी इज्जत करे ।
सत्य की रक्षा करनो से जरूरी, असत्य को पूर्ण विरोध करनला होना , भले ही मंग असत्य वाला आमरा सगा सबन्धी काहे नही रहेत ।
झूठ भलेही केतरो बी सोनो को रहे पर वोको लक परहेज करनला होना ।
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22.
गाव समिति द्वारा आवश्यक कार्य परा चिंतन
1)सामाजिक सुरक्षा को प्रबन्ध
2)सामाजिक नीतिमत्ता का प्रचार
3)संस्कृति व बोली संरक्षण व प्रचार
4)सनतिवार को उत्कृष्ट आयोजन
5)सामाजिक व व्यक्तिगत विकास की योजना बनावनो
6)स्वयमपूर्ण गाव को निर्माण
7)गाव स्वच्छता की देखरेख
8)सत्संग गोष्ठी को आयोजन
9)भजन कीर्तन को आयोजन
10)संस्कार शाला को आयोजन
11)कौशल विकास को आयोजन
12)शिक्षा प्रोत्साहनपर कार्यक्रम को आयोजन
13) गावमा सबकी जानकारी वालो रेकॉर्ड राखनो
14) गाव मा सबको सम्पर्क क्रमांक की लिस्ट बनावनो
15) गावमा वृक्ष रोपण आयोजन
16) गाव सुंदर बनावन की योजना को कार्यान्वयन
17) समयदानको द्वारा सृजनात्मक कृति करनो
18)गावलायी यातायात की सुविधा सरकार द्वारा करवावनो
19) गावमा मेडिकल सुविधा को प्रबन्ध करनो
20)गाव मा पानी बिजली कि व्यवस्था परा ध्यान देनो ।
21)गाव विकास, खेती विकास, मूलभूत सुविधा, व्यापार , संसाधन निर्मिति परा कृति को कार्यान्वयन
.....
23.
महाराज भोजदेव द्वारा लिखित श्रृंगार प्रकार मा
अलंकार का प्रकार
बाह्य अलंकार (शब्द )
जाती, गति, रीति, वृत्ति, रचना, घटना, मुद्रा, छाया, युक्ति, उक्ति, भानीति, प्रतीति, श्राव्यत्व, प्रेक्ष्यत्व, अभिनयत्व, अध्येयत्व, वाकोवाक्य, प्रहेलिका , गूढ़ , चित्र, श्लेष ,यमक और अनुप्रास येन हर एक अलंकार का सय
प्रकार सेत ।
अभ्यन्तर अलंकार (अर्थ)
जाती, सूक्ष्म, सार, संहिता, भाव, विभावना, हेतु, अहेतु, संभव, विरोध, दृष्टान्त, व्यतिरेक, अन्योन्य, परिवृत्ति, मिहत, वितर्क, स्मरण , भ्रांति, उपमान , अनुमान, अर्थपत्ती, अभाव, आगम, प्रत्यक्ष
बाह्यभ्यंतर अलंकार (उभय)
उपमा , रूपक , साम्य , समस्या, समाधी , समसोक्ति , सहोक्ति , समुच्च्यय , तुल्य, योगिता , लेश , अपहनुति , अप्रस्तुतप्रशंसा , उत्तप्रेक्ष, अर्थातंरन्यास , दीपक , परीकर, क्रम, पर्याय, अतिशय,आक्षेप , विशेष, श्लेष , लेगा , भाविका , संसृष्टि
..........महेन पटले
************************
24.
पोवारी
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पोवार को शिश मुकुट की
पोवारी होती कोहिनूर
मालवा लक् से चली आयी
पोवार को माथा की बिंदी...
आडि भाषा बनि कोहिनूर
आमरो छल लक् मजबूर
घर मा से बेगानी पोवारी
बनकर रय गयी मांदी...
पोवार बन गया सेत् आडी
करत दुसरो की आरती
खुद ला समज सेत हुशार
भूल्या आपली जुगलबंदी...
पोवारी को गहरायी ला
आधुनिकता की बडाई न
हिसक लेईस पोवारी शान
कर देईस घरमाच् बंंदी...
घडी आयी से बचावन की
आडि भाषा तार तोडन की
दैनिक जीवन मा बोलन की
तब चमके गगन पोवारीबंदी...
बोलो लिखो खोजो गहरायी
पोवार रोप जडी जाये लंबी
जब् पोवारी जग पाये बुलंदी
तब् होये जग माथा की बिंदी...
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श्री छगनलाल रहांगडाले
खापरखेडा
----------------------------------------
25.
माय बोली ला बचावबी जरूर🙏
चमकसे जेको चेहरा मा माय बोली को गुरूर वोय सेत असल पोवारी माय बोली का नुर,
अपरी माय बोली ला भुलायकन कर देईन भाषा बोली को चकनाचुर वोय कसा पोवार सागो भाऊ बहिनी मोला जरूर,
बोलो पोवारी लिखो पोवारी सिखो पोवारी कवता बोलता अम्ही भया बदस्तुर,
अना वोय भया मगरूर,
भला वोय कसा पोवारी का हुर,
निर्मल निस्वार्थ भाव लक चल से पोवारी माय बोली बचावन को मेलजोल बोलचाल
वोय आत असल पोवारी माय बोली का कोहीनुर
उनला मोरो राम राम करूसु जरूर,
मन मा लगसे का आवन वाली नवी पिढी़ ला माय बोली को लगाव लगे त जरूर,
कासरा देबी उनला एक दीवस माय बोली रथ को भाऊ अम्ही जरूर,
चलो सब मिलकर एक अलख जगावबी अखिन अपरी पोवारी माय बोली ला ओरया बडा़वबी,
जेला काही कवनो से कहेत बोलेत वोय जरुर,
कवनो नाव धरनो योच त आय दुनिया को दस्तुर,
अपरी अपरी जीन्दगी मा सब भया मशहुर आम्ही काही झन टिम टिम टिम,
पोवारी की जग जोत जगावबी जरूर,
माय बोली ला बचावबी जरूर
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
*******************************
26.
माय बोली
तिनका तिनका जोड़कर बन जासे नीड ,
तुम्हारो जसा एक एक बन जाहेत भीड़।
माय बोली को बचाव मा बन जाहे किला,
बहिन भाई मिलकर जोड़बन माय बोली को मेला।
****
यशवंत कटरे, जबलपुर
******
27.
चयन/चुनाव
आनंद रव्हन को तरीका करो चयन,
सबला देयीस प्रभु न पुलकित मन।।
मानव प्रजाति मा ज्यादा सरल से चयन,
बाकि जीव गिनला नहाय येको अध्ययन।
गुस्सा करो चाहे करो तुम्ही प्रेम,
दुही बात को अवसर रवहसे हरदम।
पसंद नापसंद लक उपजसेती भाव,
ओन भाव गिनमा लक करनो से चुनाव।
जब जब करो प्रेम को चुनाव,
हरदम मिले भक्ति, शक्ति आना जुडाव।
जब जब करो कोप को चुनाव,
हरदम होय भक्ति, शक्ति आना प्रेम को घटाव।
आनंद जिवन को अनमोल खजाना,
बीना प्रेम भाव को नहाय एको तराना।
कोप जिवन को बेमोल खजाना,
धीरु धीरू सुखाय देसे जीवन को झरना।
प्रेम आना क्रोध को बीच एक चयन की दीवार।
आदमी ला महान बनावसेती सिर्फ ओका विचार।
पंडित विज्यशंकर जी का एक लाइन को सार,
बन गई साजरी कविता सकार सकार।।
यशवंत कटरे
जबलपुर (२२/०७/२०२२)
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28.
खुटिउपाड लोगइनको बीच समाजसुधार
आमरो शहरमा पहले नललक पानी बडो गंदो आव । बारिस पानी को दिवस मा त् पानी चाय वाणी चोव्ह ।
मी एक दिन सोशल मीडिया परा लिखयव की
"पीने का पानी शुद्ध होना चाहिए। गंदा पानी स्वास्थ्य के लिए ठीक नही ।"
मी अखिन लिख्यव की
"आब त अच्छो भयोव कोनीला चायपत्ती की जरूरत नाहाय । बस पानी गरम करो दूध साखर मिलाओ बन गयी चाय ।"
जल जीवन है वाली तक्ति हटाओ अना चाय जीवन है वाली तक्ति लगावो ।
बधाई हो दूय महीना जनता को खर्च बचायके महंगाई परा अंकुश लगावनो बचन पुरो होय रही से ।"
आब एक दूय खुटिउपाड छूट भैया लोगईनकी आग भयी । ये सब मोला अच्छो लक पहचानत नोहोता।
एक कवन लग्यव तुम हो कौन ।
एक कवन लग्यव जमीन पर आव फिर बात करो ।
एक कवन लग्यव हम इतने दिनों से समाज की सेवा कर रहे , तुम आकर हमको हमारे काम पर आरोप लगा रहे हो ।
एक कवन लग्यव पानी का रंग ऐसा ही रहता है । पानी गंदा नही मिट्टी मिश्रित है । स्वास्थ्य के लिए अच्छा है । पानी में मिट्टी पुराने जमाने से ही मिली हुई रहती है ।पानीमें मिट्टी मिलनेसे पानी का टेस्ट बना रहता है । ये चाय नही ।
एक मिल्यव कवन लग्यव तुमने
जो कहा कि मंहगाई पर अंकुश लगाने का बचन पूरा हुआ । किसने दिया था बचन । हिम्मत है तो नाम लो । व्यक्तिगत बात मत करो । हम भी चाहते है पानी शुध्द होना चाहिए पर तुम किसको ये सब बोल रहे हो ।
मोला मालूम होतो असा कएक लोग दुनिया मा मिलसेत जिनको काम सिर्फ खुटि उपाडन को रव्हसे । पानी शुध्द करन की चिंता उनला बिल्कुल नही । न उनलक काइ जम । बस नेता गिरी झाड़न को । बल्कि कोणी पानी शुध्द करन कि चर्चा करिस की तकलीफ असो इनला होसे । उनकी इच्छा एकच की कोणी उनको संगी साथीइनला नकारा , गलत या बेकार नको ठहराओ । जो चलसे वु चलन देव ।
पर हर कोणी असा नही रव्हत । बात सोशल मीडिया पर चली । अशुध्द पानी वाली बात कोणी अच्छो समझदार लोगईनको ध्यान मा आयी । जल्दी च पानी शुद्धिकरण की नवीन यंत्रणा शहर मा आयी । अच्छो शुद्ध जल घर घर पहुचयव । अना "जल ही जीवन है" वाली तक्ति को मतलब सही मायनों मा प्रगट होन लग्यव ।
..........महेन पटले
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29.
जासू
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वोन् गल्ली मा तू दिस् जासेस
जेन् गल्ली लक् मी गुजर जासू
डोरा लक् डोरा तोरा लग् जासेत
दिलको तुनतुना लक् बहर जासू...
जब् लक् लब् ह्रदय पर बसिसेस
मन तन नयन लक् निखर जासू
तोरो रंग असो रग् रग् मा चढी से
हर श्वासमा मी स्विकार कर जासू...
जब् मी कलम की धार बनावू सू
तब् बोली लक् शिखर चढ जासू
जहां आपलो निशान छोड देयीस
वोन् डगर लक् किताब लिख जासू...
जब् कभी मी रस्ता भटक गयेव
तब् बोली लक् मी गजर जासू
जब् मोरो पर वार का वार करसे
तब् ह्रदय बोली लक् सवर जासू ..
जीत् भी मी जावू उत् मिलसेस्
युग२मायबोली लक् निहार जासू
जन्म मरन तक् तोरा बंधन सेत
पोवारी लक् पोवार पैचान जासू...
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श्री छगनलाल रहांगडाले
खापरखेडा
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30.
आमरी भक्ति
गयव साल राजस्थान को एक व्यक्ति संग मुलाकात भयी । समाजमा बढतो गरबा कल्चर परा चर्चा भयी ।
उनन सांगिन की "उनको यहान पहले गरबा की खूब शुरुवात भयी अना दूय साल भया त् गरबा बिल्कुल बन्द भय गयव।"
मी कह्यो असो चमत्कार कसो भयोव । जहा गांव गांव गरबा बढ़ रही से उनको यहान कसो का बन्द भयोव ।
उनन सांगिन की "गावमा तीन साल लक गरबा आयोजन भयव । स्त्री पुरुष मिलके खूब नव दिवस गरबा खेलत । चौथो साल वहान गरबा आयोजन को बारामा काइ लोगइनन विरोध करिन ।बडो वाद विवाद भयोव । उनको गाव मा बुजुर्गइनकी पंचायत से । सब पंचायत की बात मानत सेत । मुन बात पंचायत मा निर्णयलायी गयी । पंचायत मा आयोजनकरताइनन लोगईनकी , स्वतंत्रता, देबीकी भक्ति मा नृत्य, जीवन को आनंद, उत्साहपूर्ण माहौल , व्यायाम की दलील देइन।"
बुजुर्ग पंचायत न खूब सोच बिचार करिस । उनन निर्णय लेइन की
1)गरबा त् होये पर आयोजन अलग अलग जागा पर होये
2)महिला गरबा अलग अना पुरुष गरबा अलग ।
3)महिला गरबा पण्डाल सब आंग लक बन्द , पण्डाल मा जानको सिरफ एक दरवाजा । महिला गरबा वीडियो ग्राफी व फोटो पर मनाई रहे ।महिला गरबा मा मोबाइल संग प्रवेश नही ।
4)महिला गरबा मा आदमी लोगईनको प्रवेश नही अना आदमी लोगइनको गरबा मा महिला प्रवेश पर रोक । सब बहुत भक्तिभाव लक गरबा खेलो पर एकसाथ नही ।
वोन साल तसोच आयोजन भयव । महिला व पुरुष गरबा अलग अलग । अना एकदूसरो को गरबा मा प्रवेश नही । फोटोग्राफी बन्द । सिर्फ भक्ति पूर्ण नृत्य ।
दुसरो साल गरबा खुद च बन्द भय गयो । आयोजन बन्द । बिना विरोध ।
सब लोग रोज दिवस बुडता मंदिर मा देबी माय की पूजा करके प्रसाद लेयकर आपलो आपलो घरमा भजन त् कही कीर्तन करन लग्या । आब गाव मा असो लगसे जसो पुनः सही मायना मा देबी की भक्ति लोगइनको मन मा प्रवाहित होन लगी ।
..........महेन पटले
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31.
मुलाकात
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वोक् संग भयी रस्तामा
अशीच एक दिन मुलाकात,
नजरल् नजर मिली होती
पर नही भयी काही बात.
बात सामने बढावनोपर
मीन् देयेव आपलो ध्यान,
पर मी होतो खाली पीली
वोका ऊचा होता अरमान.
भाऊ वा हवामाच उडाय
आमी होता धरतीका बासी,
बात सामने नही बढेवल्
मनमा मोर् आयी उदासी.
मंग मीन् बी सोड देयेव
करनको वोको पिछा,
का करतो एकटो मीच्
वोकी नोहोती काही इच्छा.
तब पासून वोक् संग
मुलाकात काही नही भयी,
मी आपलो रस्ता धरेव
वा आपल् रस्ताल् गयी.
- चिरंजीव बिसेन
गोंदिया
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32.
जहर
जीवन संग जहर
अविभाज्य अंग
पल पद पर दिखावं
जहर आपलो रंग
दिल, मन ,बुद्धी मा
भेटे कम ज्यादा जहर
पूरो अवती भवती
पैलेव कारो कहर
मन संग तन ला
मनभावन करे प्रभावित
माणूस भोग मा
बनिसे शापीत
यन जहर पासून सुटन
धरो निसर्ग का पाय
परिस्थिती कसी भी रये
पर तुम्ही बनो गाय
शेषराव येळेकर
सिंदीपार
दि.२३/०९/२२
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33.
कौन?
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अपरो मन की कर सेत सब सबको मन की सोचसे कौन
,
अपरो मन का राजा सब सबको मन का राजा कौन,
मिच खरो मिच सयानो ऐडानो पन राखसे कौन,
मोरी डपली मोरो च राग दुसरो को बाजा सुन से कौन,
अपरी अपरी करम कहानी सागत दुसरो को धिगांना सुन से कौन
,
अपरी बुनी जीवन की कथडी दुसरो की चिथडी, देखसे कौन,
मोरी माया मोरो साजरो पन दुसरो की माया जार ला जान से कौन,
अपरो को धाव अपरो को छाला दुसरो को जाला देख से कौन
कौन कौन को कौन की जीन्दगीं अपरी च अपरी सुनावसेत कौन
कौन कौन की कांव कावं मा
समय पर काम आवसे कौन,
बडो गडबड़ से येन कौन को खेला समय सागसें बेरा पर काम आवसे कौन,?
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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34.
साहित्य की प्रेरणा
पंवारवंश कुलशिरोमणि सम्राट विक्रमादित्य को दरबारमा ज्ञानी मनुष्यइनमा आपलो विद्वतताको कारण चमकतो असो महाकवि कालिदास सरिसो रत्न शोभामयान होतो । जेन प्रकार लक समंदरमा यात्रा करती नावला किनारोंपर उभो दीपस्तम्भ मार्गदर्शित करसे तसोच अनेक संस्कृत ग्रन्थइनको लेखक कवि कालिदासकी रचना हर युग मा साहित्य जगत ला मार्गदर्शित करत रहे ।
उनको एक ग्रंथ से रघुवंशम
वोन ग्रन्थ मा महाराज रघु को दिग्विजय को उल्लेख आवसे।
चार ही दिशा मा उनको प्रतापको वर्णन अत्यंत सुंदर तरीकालक कवि कालिदास करसेत ।
कवि कालिदास लिखसेत् -
प्रचंड वेग लक बव्हति नदी मा तनकर उभो झाड़ला नदी को प्रवाह जड़मूल सहित उखाड कर फेंक देसे । वहा को वहान झाड़झुडुप की बेला झुक जासे , अना वोकोपरलक आवेगमा बव्हतो नदी को उमड़तो पानी बिना वोला उखाड़े निकल जासे । तसोच महाप्रतापी रघुको प्रचंड शौर्य धारामा जो राजा उदण्ड बनकर सामने आयव वोला राजा रघु न पुरो तरीका लक समाप्त कर देइस । अना जो राजा वोको सामने विन्रमता लक स्वागतोत्सुक होयके मिलनला आया उनकी रक्षा खुदच भय गयी ।
उपमा अलंकार युक्त उनकी साहित्य रचना बाचो त् लगसे जसो आमी वोनच समया मा हाजिर सेजन ।
साहित्य असो होना की वोकि समधुरता समस्त जगत मा प्रख्यात होय जाहै । आमला बी असोच अप्रतिम रचनाइनको निर्माण करनो जरूरी से । पर वोकोलायी आबलक दुनिया मा जो साहित्य का महान उदाहरण प्रस्तुत भया सेत उनको अभ्यास जरूरी पडे। वोको बाद खुदच दर्जेदार साहित्य को निर्माण होये।
निश्चित तौरपरा दर्जेदार साहित्य आमरो बोलीला अमर कर सकसे
..........महेन पटले
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