डोरा मा आयो पानी

 

  डोरा मा आयो पानी

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बदल गयो जमानों;आयो डोरा मा पानी!

कलयुग लक होय रही से प्रदूषणकारी हानि।

आवश्यकता बढ़ी आविष्कार होसे मनमानी!

बड़ी दुखित होय रही से मानव की कहानी।

हो -हो लुप्त होत सब;आवसे डोरा मा पानी:---------

 

पुरातनता नष्ट होय रही से; कलयुग को कारण!

विनाशकता दिस रही से; विकराल रुप धारण।

संस्कृति संस्कार मिट रही से;कसो होये निवारण?

हों -हो हाल देख बूरो;आवसे डोरा मा पानी::---------

 

खेती बाड़ी का पुराना औजार मिटाय रया सेती!

नवीन कृत्रिम साधन लक होय रही से खेती।

नांगर बक्खर कोहपर सब नष्ट होय रया सेती!

नवीनता ला कह रया सेत सब कोन्ही प्रगति।

हों -हो लुप्तता लक आवसे डोरा मा पानी:::--------

 

देवघर नहीं दिसत;चवरी टवरी मिट गईं !

गाड़ो बईल जोड़ी की प्रथा चलन हट गई।

हर घर घर मा बाईक कार स्कूटी आय गई!

घर मा गडर नाली गतिमान होय रही?

हों -हो नहीं दिसत पशू;आवसे डोरा मा पानी::::--------

 

माटी को घर मिटकन;सिंमेट को होय गयो!

घर देखो आता कई मंजिल मा बन गयो।

प्लास्टिक को प्रचलन को महत्व बढ़ गयो!

ढोंमन्या नहीं दिसत सब भांडा टूट फूट गयो।

हों -हो नीति बिगडेव लक; आवसे डोरा मा पानी:::::

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सुज्ञान

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इच्छाओं को त्याग करेव लक;

सब दुःख को निवारण होसे!

पूजा पाठ विधान करनो तो;

मानव को मन समाधान होसे।

 

महादेवी को सुमरण करेव लक;

हर संकट विपदा को शमन होसे!

महादेव को जप तप करनो तों;

बिना मांगे च वरदान मिल जासे।

 

हर वक्त शांत संयम रव्हनो लक;

मन संतुलित संतुष्ट संतृप्त होसे!

शिव पुराण को श्रवण करनो तों;

कई जनम जनम को पाप मिटसे।

 

 

मधूरमय वाणी मधूर व्यवहार लक;

हर काम मा ईंन्शान सफल होसे!

आध्यात्मिक सत्संग महिमा लक;

परिपूर्णता सर्व हासिल होय जासे।

 

सिर्फ हरि ॐ नमः कव्हनो तो;

दुय भगवान को दर्शन होय जासे!

शंकर;बिष्णू जी को मनन करेव लक;

भक्त; भगवान ला समर्पित होसे।

 

माय दुर्गा को जागरण आयको तो;

सदा संतान सुख वैभव लक रव्हसे!

माय भवानी को उच्चारण लक;

सर्व गुण परम सम्पन्न होय जासे।

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परम सत्य विधान

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जेतरो च ज्ञान बखान करनो तों!

ओतरोच मन मा ज्ञान समाय।

जेतरो धन सद उपयोग करनो तो;

ओतरीच सम्पदा बढ़त सब आय।

 

कोन को मन मा का चल रही से!

माय भवानी अन्तर्मन तर्क लगाय।

ज्ञानी ला भी अज्ञानी बनाय देसे!

मुर्ख ला कभी समझ मा ना आय।

 

ज्ञानी लक बढ़कन;सुज्ञानी मिलसे!

ज्ञानी अटपटो सो मन मुर्झाय।

ज्ञानी होयकन अनजान बन जासे!

ओकी वाहवाही खत्म होय जाय।

 

ज्ञान को अपार खूब भंडार सेत!

ज्ञान का कई सेती अनेकों प्रकार।

परन्तु ईंन्शान; गर्व गुमान करसेत!

अंत मा विद्वानता होसे सब बेकार।

 

"वाल्या"कर्म लक वाल्मिक बनेव!

मिलेव भगवान लक साक्षात्कार।

रामायण रचनाकार भव्य भयेव!

जेकी होसे सब संसार मा जयकार।

 

जब दुय ऋषि मा विवाद भयेव!

वशिष्ट; विश्वामित्र को वृत्तांत!

वशिष्ट ऋषि जब समझ गयेव!

सम्मान प्रतीक बनेव सुदृष्टांत।

 

ज्ञानी ज्ञान को कदर सदा करो!

तो मन कभी विचलित ना होय।

हे मानव हृदय मा एहसास धरो!

बुध्दिमान काहे कर्म लक रोय।

 

अध्दजल घघरिया झलकत जासे!

सागर ओला देख खूबच मुष्काय।

आभास कर ओकी पहिचान होसे

आध्यात्मिक ज्ञान परख मा आय।

 

व्यथा कथा या सबको जीवन की!

संक्षेपक अवलोकन कर जतलाय।

महिमा सब भवानी सुप्रवचन की!

देवी गीतकार-रामचरण फरमाय।

 

हे अदृश्य स्वरुपा महादेवी भवानी!

नवरात्रि मा तोरी करसेत सब जयकार।

करदे कसेती भक्त सब दया मेहरबानी!

आवसे सारो संसार तोरो दरबार।।

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भवानी भक्त पर मेहरबान

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सत्य घटित आयकनो कहानी!

वैष्णोदेवी माय  महा वरदानी।

ध्यानू भक्त पर करसे मेहरबानी!

जय जय हो माय महा विद्वानी।

 

ज्या पर भवानी होसे  मेहरबान!

करदेसे ओको जीवन को उत्थान।

माय भवानी लक होसे कल्याण!

बचाय लेसे दुखीत भक्त का प्राण।

 

जब ध्यानू भक्त पर संकट आयो!

माय जगदम्बा प्रगट भयी तत्काल।

कष्टकारी दुष्ट को शिघ्र पतन भयो!

धायी वैष्णोदेवी तब भयी विकराल।

 

कटेव घोड़ों ला जीवन देयकन!

अकबर तब भयो होतो परेशान।

ध्यानू भक्त पर दया दृष्टि करकन!

भवानी निवारण करसे समाधान।

 

घोड़ों की गर्दन काटकन अकबर!

लेयकन भक्त ध्यानू को इम्तिहान।

भक्त की कठिन परीक्षा लेयकर!

अंत मा अकबर खूब भयो हैरान।

 

अकबर माफी मांगसे भवानी दरबार!

ग़लती अकबर की नहीं भयी स्वीकार।

अकबर गलती करसे गुनाहगार!

अकबर की तब होय जासे  हार।

 

सत्यता की सदा जीत होय जासे!

भवानी को भव्य रुप होसे साकार।

 

दुनिया देखकन तब अचम्भित होसे!

माय अद्वितीय करसे खूब चमत्कार।

 

पोवारी मायबोली मा से विवेचन!

लिखकन किर्ती पटले रामचरण।

माय दुर्गा शक्ति को करके सुमरण!

माय ज्वाला भगवती को गुणगान।

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जीवन अनुभूति

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जब हर ईंन्शान जीवन मा!

करसे जीवन की अनुभूति!

होसे तब दुःख को घड़ी मा!

मांगसे भगवान ला अनुमति।

 

कभी मन को मन मा कहकन!

कभी कभी बायको ला सांगकन!

कभी कभी इष्ट मित्र ला बोलकन!

कभी हर सत्संग मा जायकन।

 

चिंता लक जीवन को ह्रास होसे!

चिंता लक चतुराई नष्ट होय जासे!

चिंता या चिता को समान रव्हसे!

म्हणून सत्संग मा भवानी कव्हसे।

 

 

हे रे नर आयी सेस तों जीवन मा?

अच्छो सुकर्म कर कल्याण करले!

भुगतनो पड़से चौरासी यौनी मा!

प्रसिद्धि साती अहंकार त्याग ले।

 

सुख मिलेव पर प्रभू ला भूलकन!

धन नष्ट करयोस सर्वत्र फिरकन।

नहीं करयोस भगवान को सुमरण!

अंत मा आयोस शिव भगवान शरण।

 

ईच्छा ईंन्शान की अपूर्ण च रव्हसे!

चाहे लुटाय दे सम्पत्ति अधूरी रव्हसे।

जेव जन्म से तो ओला मरनो पड़से!

माय जगदम्बा भक्त ला अनुभव सांगसे।

 

 

जय हो माय गढ़काली भवानी!

तुच ब्रम्हाणी कल्याणी रुद्राणी।

या रचना तोरी अदभुत सुहानी!

सबको या साती अन्मोल वाणी।

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देवी गीतकार-रामचरण हरचंद पटले

महाकाली नगर नागपुर

मोबाइल नं.९८२३९३४६५६

मुकाम :पोष्ट कटेरा तहसील -कटंगी जिला बालाघाट (म.प्र)

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