पोवारी साहित्य सरिता , भाग - ५९
पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता
भाग - ५९
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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1.
अमृत पुत्र
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अमृत पुत्र आम्हीं, ठेओ एकच ध्यान l
परम् पिता की आम्हीं, प्रिय संतान ll
मानव जीवन येव एक अनुष्ठान l
आत्मविश्वास लक करों हर काम l
नहीं आम्हीं शोषित पीड़ित बिगारी,
परम् पिता की आम्हीं प्रिय संतान ll
जीवन मा समय से बड़ो बलवान l
सत्कर्मों पर केंद्रित करों निज ध्यान l
नहीं आम्हीं पापी जुल्मी अत्याचारी,
परम् पिता की आम्हीं प्रिय संतान ll
कर्मफल को ठेओं जीवन मा ध्यान l
जीवन ला हो न्याय नीति को अधिष्ठान l
नहीं आम्हीं भूका कंगाल भिखारी,
परम् पिता की आम्हीं प्रिय संतान ll
परम् पिता से कुबेर दुन भी धनवान l
वोकी प्रिय संतान ला नाहाय जग मा वाण l
नहीं आम्हीं अधर्मी अन्यायी अपराधी,
परम् पिता की आम्हीं प्रिय संतान ll
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2.
चैतन्य समाज को निर्माण
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कर लो उत्तम मानव को निर्माण l
कर लो तुम्हीं चैतन्य समाज को निर्माण ll
आम्हीं सब एकच ईश्वर की संतान l
दैवी गुण से सबकी आत्मा मा समान l
येव जीवन- दर्शन मन मा जगायके,
कर लो सुंदर समाज को निर्माण ll
स्वयं ला मानों ईश्वर की संतान l
सत्कर्मों लक बन जाओ महान l
येव जीवन दर्शन मन मा जगायके,
कर लो सुंदर समाज को निर्माण ll
सनातन धर्म से जग मा महान l
उत्तम संस्कारों ला से येको मा स्थान l
येव जीवन दर्शन मन मा जगायके,
कर लो सुंदर समाज को निर्माण ll
स्वराष्ट्र ला हो जीवन मा सम्मान l
स्वभाषा ला हो जीवन मा सम्मान l
येव जीवन दर्शन मन मा जगायके
कर लो सुंदर समाज को निर्माण ll
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3.
बैहर श्रीराममंदिर की परिभाषा
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बैहर की माटी मा,
पूर्वजों न् मंदिर बनाईन l
आराध्य श्रीराम को मंदिर बनाईन l
मानों संस्कृति को प्रतीक बनाईन l
अना समाज की नवी पीढ़ी ला,
सनातन धर्मसीन नातो समझाईन ll
सिहारपाठ की माटी मा,
पूर्वजों न् देवस्थान बनाईन l
आराध्य श्रीराम को मंदिर बनाईन l
मानों संस्कारों को प्रतीक बनाईन l
अना समाज की नवी पीढ़ी ला,
पोवारी को जीवन-दर्शन समझाईन l
निसर्ग को सान्निध्य मा,
पूर्वजों न् आपली शक्ति लगाईन l
समाज को श्रीराममंदिर बनाईन l
मानों सुंदर तीर्थस्थान बनाईन l
अना समाज की नवी पीढ़ी ला,
समाज को जीवन की राह समझाईन ll
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4.
इतिहास नवो रचबी ...
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येव नवो दौर से
नवी उमंग जगावबी l
पोवार समाज को
इतिहास नवो रचबी ll
शिक्षण को क्षेत्र मा
ऊंचाई हासिल करबी l
मातृभाषा को प्रेम
हर दिल मा जगावबी ll
साहित्य पोवारी को
सुंदर सुंदर रचबी l
स्वजनों को मन मा
नवचेतना जगावबी ll
उन्नत समाज को
सपना साकार करबी l
पोवार समाज ला
गौरवशाली बनावबी ll
पताका समाज की
संसार मा फहरावबी l
पोवार समाज को
झंडा संसार मा गाड़बी ll
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5.
इक्कीसवीं सदी, उत्कर्ष की सदी
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आयी आयी देखो आयी
इक्कीसवीं सदी आयी l
पोवारी को उत्थान की
खुश खबरी ले आयी ll
समाज को युवाओं मा
साहित्य की उमंग आयी l
पोवारी को साहित्य मा
साहित्य की बहार आयी ll
भाषिक संकट ला
दूर करन या आयी l
पोवारी मायबोली मा
शक्ति संचारण आयी ll
पोवारी मातृभाषा को
भाग्योदय करन आयी l
पोवारी को उत्थान साती
संजीवनी धरके आयी ll
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6.
हर घर मा हो राष्ट्रप्रेम
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हर घर मा राष्ट्रप्रेम, हर घर मा हों पोवारी l
हर घर मा श्रीराम, हर घर मा हों गिरधारी ll
चांद-सूरज ज्ञान -विज्ञान की हों आराधना l
घरदेव की चवरी पर पूर्वजों की हों साधना l
महान क्षत्रिय वंश को सदैव ध्यान हो,
पूरो समाज हों निर्व्यसनी अना शाकाहारी ll
रामायण ना गीता की नित्य हों आराधना l
तुलसी वृंदावन ना गौमाता की हों साधना l
हर घर मा माय -बाप को सदैव मान हो,
पूरो समाज हों निर्व्यसनी अना शाकाहारी ll
हर घर मा सनातन धर्म की हों आराधना l
भोलेनाथ ना माता पार्वती की हों साधना l
हर त्यौहार मारबद होली सात्विक हो,
पूरो समाज हों निर्व्यसनी अना शाकाहारी ll
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7.
वसंत की बहार होना साहित्य मा
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वसंत की बहार वानी
भावों की बहार होना पोवारी साहित्यमा l
सावन की बरसात वानी
भावों की बरसात होना पोवारी साहित्यमा ll
बहती हवा की गति वानी
गति होना साहित्यिकों की लेखनीमा l
गंगा मा पानी को आवक वानी
रचनाओं की आवक होना पोवारीमा ll
चंद्रमा को शीतल प्रकाश वानी
मनभावन विचार होना साहित्य मा l
फलदार वृक्ष को समर्पण वानी
साहित्यिक समर्पण होना पोवारीमा ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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8.
अम्रत महोत्सव मनाओ🙏
घर घर तिरंगा फहराओ अम्रत महोत्सव मनाओ,
गली गली मा तोरन सजाओ चौक चंदन पुराओ,
मां भारती की आरती गाओ
घर घर तिरंगा फहराओ अम्रत महोत्सव मनाओ,
एक दीवस लाय अपरो काम भुल जाओ समय निकालो तिरंगा रैली मा धुम मचाओ,
कौमी एकता की अलख जगाओ
घर घर तिरंगा फहराओ अम्रत महोत्सव मनाओ,
देश का गद्दार देश द्रोही ला एक होयकर सबक सिखाओ,
धर्म भ्रष्ट नोको करो देश को सनातन धर्म की शक्ति ला सुद्रढ सजग बनाओ,
घर घर तिरंगा फहराओ अम्रत महोत्सव मनाओ,
हाथ लक हाथ मिलाओ सब एक माला मा गुथ जाओ ,
चलो सब मिलकर एक दीयो जराओ, जय भारत जय भारती की जगमग जोत जराओ,
घर घर तिरंगा फहराओ अम्रत महोत्सव मनाओ,।।
जय हिंद वंदे मातरम्
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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9.
हर हर महादेव, जय जय पोवारी
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हर हर महादेव, जय जय पोवारी l
मायबोली को संकट हर ले पोवारी l
दिव्य शक्ति तूं महाकाल की,
उन्नत मायबोली को वरदान दें पोवारी ll
हर हर महादेव, जय जय पोवारी l
नामांतरण को संकट हर ले पोवारी l
अद्भुत शक्ति तूं महाकाल की,
चिरंतन नाव को वरदान दें पोवारी ll
हर हर महादेव, जय जय पोवारी l
मातृभाषा को तिरस्कार हर ले पोवारी l
अलौकिक शक्ति तूं महाकाल की,
सद्बुद्धि को सबला वरदान दें पोवारी ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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10.
|| फूल, पक्षी केता ||
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एक तराको पाणीमा कमल फूल अना जंगल को झाड पर पक्षी रव्हती. एक दिवस पक्षी तरापर आया पार पर बस कर बीचार करन लग्या अना जा यकर फुल पर बस्या. फुल कमी गया करके पुन्हा पार पर बस्या अना पुन्हा बीचार करीन. आता उडकर बस्या येन बेरा एक फुल पर दुय पक्षी बस्या फुल बी बराबर अना पक्षी बी बराबर भया. आता सांगो ओन तरा मा फूल केता अना ओन जंगल मा पक्षी केता.
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एक फूल अना दुय पक्षी
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पोवारी साहित्य सरीता भाग ५९
दिनांक १४:८:२०२२
हेमंत पी पटले
धामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
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11.
पोवारी साहित्य सरिता भाग - ५९ साती
विषय - खेती मा यांत्रिकीकरणको नफा अना नुकसान
खेती भारतीय अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण आधार से. भारत मा ६०-७० प्रतिशत लोक खेती पर आश्रित सेती. पहले खेती पारंपरिक पद्धतील् करनो मा आवत होती. बईलक् मदत लका नांगर चलायकर खेती का सब काम करनो मा आवत होता. बरसात का सब काम अना चुरनी का बी सब काम परंपरागत रूपल् करनो मा आवत होता. पर पिछलो १० - १५ साल मा खेती मा मोठ् प्रमाणमा यांत्रिकीकरण भय गयी से. बईल जोडी की जागा आता टेक्टर ना रोटरन् लेय लेईस. काटनी चुरनी मा बी हार्वेस्टर सरीखा आधुनिक साधन को उपयोग होन लगेव. म्हणजे खेती को लगभग पुरो यांत्रिकीकरण करनो मा आय रही से. खेती की तरक्की होय रही से.
खेती मा यांत्रिकीकरण को फायदा भयेव साथ मा काही नुकसान बी होय रही से उनकी चर्चा करनो जरूरी से. पहले आमी फायदा की बात करबीन.
१) समय की बचत- यांत्रिकीकरण ल् समय की बहुत बचत भयी. दिवसभर नांगर क् मंघ फिरनो बंद भयेव. दुय चार तासमा टेक्टरल् काम करनो संभव भयेव. पहले प-हा को काम २० - २५ दिन चल् आता ५-७ दिनमा खतम होय जासे. चुरनी को काम महिना देड महिना चल् पर आता दुय तीन दिन मा होय जासे.
२) श्रम की बचत- पहले नांगर, दतार,कोहपर को काम दिनभर चल्. हकालने वालोला बहुत मेहनत करनो पड. चुरनो मा दावन, बेलन को काम चल बईल ना आदमी थक जात होता. वा मेहनत आता कम भई.
३) कम लोक इन को काम- आता खेती कम लोक बी कर सिकसेत. पहले पुरो जत्था नांग-या, कोनटापारवालो, खार खंद्या असो अनेक लोक ईनकी जरूरत पड. पर आता एक दुय लोक इनल् बी काम चल जासे.
४) सब काम किरायाल् करनो संभव - सब काम किरायाल् होय सिकसे. वोक् साती ज्यादा डम्फान की जरूरत नाहाय. बैल जोडी पालो, वोक् देख रेख करो, नौकर चाकर ठेवो, उनला जेवन खान देव या बला कम भयी. अना करनो बी पडेव त् चार पाच दिन मा काम खतम होय जासे. बाकी सब आरामच् आराम रव्हसे.
५) सोच बदली - पहले खेती म्हणजे बाप दादा की से मून नफा होय या नुकसान येकी चिंता न करता एक परंपरा मून खेती क-यो जात होती. पर आता हर काम का पैसा देतो पडसे मून खेती फायदा की कशी होये येको बिचार करके आधुनिक पद्धतील् खेती करनो सुरू भयेव. खेतीला पानी की सुविधा करके वरथमी खेती कम करनो मा आय रही से.
खेतीमा यांत्रिकीकरण को नुकसान
१) खेती को खर्च बढेव - सब काम किरायाल् करनो क् कारण खेती को खर्च बढेव. पहले लहान कास्तकार घर घरका लोकच खेती करत होता. सिर्फ आंग मेहनतल् खेती होत होता. फसल कम भयी तबी किसान ला मेहनत बेकार गयी येतरोच एहसास होत होतो. पर आता फसल कम भयी तबी किराया को टेक्टर, रोटर, हार्वेस्टर को खर्च देनो पडसे. वोको खर्च बैलजोडी क् खेती दून जादा बी आवसे.
२) जनावर कम भया - खेती मा लगनेवालो बईल इनकी संख्या कम भयी. साथ मा घर की जोडी ना दुध होसे मून गाय पाली जात होती. पर आता गाय पालन बी बंद भयेव. जीन क् यहा १०-१२ जनावर रव्हत उनक् यहा एक बी जनावर नही रव्हत.
गोबर की जरूरत पडी त बाहेरल् आननो पडसे. "गरज सरो वैद्य मरो" या कहावत जनावर इन साती लागू भयी.
३) वातावरण बदल गयो - पहले जेव खेती को माहौल होतो वु नही रहेव. खेतीला सहाय्यक मून चलनेवाला लोहार, सुतार का धंदा बंद भया. उनला दुसरो रोजगार ढूंढनो पडेव.
कुल मिलायकर सारांश असो निकलसे की यांत्रिकीकरण का फायदा जादा भया, नुकसान कम. पैसा को खर्च बढेव पर समय अना मेहनत की बचत भयी. खेती पर आश्रित लोक इनकी संख्या कम भयी अना खेती करके दुसरो काम बी करनो संभव भयेव.
-चिरंजीव बिसेन
गोंदिया.
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12.
सफल उद्यमी वॉरेन बफेट का बेहतरीन बिचार :
कमाई को बारामा-
कबी बी एकल आय पर निर्भर रव्हनो गलत से । दूसरी आय प्राप्त करनको मौका निर्माण करनलाइक निवेश जरूर करनला होना ।
खर्च करन को बारामा:
अगर तुमी असी चीज की खरीददारी करसेव जेन चीज की तुमला जरूरत नहाय, त जल्द च तुमला तुमरी जरूरत की चीज बिकनो पड़ सकसे ।
बचत को बारामा
खर्च करन को बाद जो बच से वोला बचत फण्ड मा राखन को बजाए जेतरो बचावनो जरूरी से वोतरो बचावन को बाद खर्च करनला होना ।
जोखिम लेन को बारामा
कबी बी दूय पाय लक नदी की गहराई को परीक्षण करनला नही होना । डुबनो तय रव्हसे ।
निवेश को बारामा-
कई बार सब आम्बा एकच टोकरी मा राखनो गलत साबित होय जासे ।
उम्मीद को बारामा
ईमानदारी बहुत महंगो उपहार से। ईमानदारी की उम्मीद हलकट लोगइन संग राखनो आपली च गलती कवनो पड़े ।
.....Mahen Patle
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13.
देश को गुणगान...
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देश आमरो रहे पाहिजे
एकोपामा अना अखंडीत
नाव करबीन वू लौकिक
गावबी स्वातंत्रता का गीत.
देखावबी आपलो सामर्थ्य
रव्हबीन सब मिलकर
देशहित येव खरो ध्यास
उमटे पाहिजे हर मनपर.
झेंडा भारतको होये उचो
उन्नतीको रस्ता देखबीण
आपसमा बंधुभाव अना
प्रेमभाव येव बाटबीन.
सुख शांती को संदेश येव
सारो जगमा फैलावबीण
आपलो देश की या संस्कृती
विष्व स्तरला देखावबीन.
भारतीय आजं येको गर्व
अना अभिमान करबीन
गीत भारत भूमीका सदा
मुखमा आपलो ठेवबीन.
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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)
रामाटोला (अंजोरा) गोंदिया
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14.
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दानवीर श्री रेखलालजी ( बाबा ) कटरे
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माणूसला माणूस लक , समाजला समाज लक , गांव ला गांव लक,देशला देश लक जोड़कर ठेवने वाला ,समाजला विकसित बनावन साती प्रत्येक कार्यमा सक्रियता निभावने वाला, समाजला सामाजिकता एकजूटता प्रामाणिकता सहनशीलता अना आध्यात्मिकता को संदेश देने वाला, प्रयत्नवादी कर्तुत्वनिष्ठ ब्रम्हनिष्ठ निष्ठावान पोवार समाजगौरव दानवीर परमश्रद्धेय आदरणीय श्री रेखलालजी ( बाबा भाऊ ) कटरे जन्मभूमि खमारी ता तिरोडा जिल्हा गोंदिया व कर्मभूमि राजा भोज कालोनी पुनापुर भवानीनगर पारडी नागपुर इनको करलक समाजोत्थान साती अज दि १५-०८-२०२२ रोज सोमवारला भारतीय स्वातंत्र्य ७५ वो आजादी अमृत महोत्सव को शुभ अवसर पर पोवार समाज एकता मंचला ५१ ००० रु एकावन हजार रुपए की दान राशि देनो मा आयी कुलदेवी माहामाया गढ़कालिका को चरणों मा प्रार्थना से इनको जीवन सदा परोपकारी जनहितकारी सदाचारी व कल्याणकारी रहे याच अपेक्षा से
जय राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका !!
!!! कवी !!!
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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15.
कबी कबी बडो बिचार आवसे की
कोणी संघठन केतरोच अच्छो काम करे , पर पोवारीमा जब मिश्रण करसेत त् सपा अकतार कवनो पड़े । तसो देखयव जाहै त् पोवारीको मंचपरा पोवारच होना। नही त् पोवारी को नाम को मंग दुनिया भर का लोग घुसाय के काइ मतलब नाहाय । पोवारी कोणी बचाय नही सक त् कमसे कम कचरा करके बर्बाद नही करनला होना । कोनीला बी सबको लाइक नेतागिरी करनो से त् सर्व समावेशक संघठनमा जुडनला होना। अगर 36 कुल परिवार को संघठन को नेतृत्व करनो से त् मंग वोको हिसाब लक 36 कुल का च लोग संघठन मा होना । कएक लोगइनकी का मजबूरी से पता नही , होय सकसे अज्ञान बी रहे , पर भलतो च लोगइनला पोवार समझसेत अना समाज मा जोड़ लेसेत। कही इनमा खुदमा काइ कमी रव्हत रहै का पता नही जो दूसरोंइनको बिना संघठन को काम चल नही ।
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16
नगरधन
नगरधन मा लक्ष्मणदेव को शासन होतो पहले । यव पुरो क्षेत्र पोवार शासन को अधीन होतो पर बाद मा दुसरोइनको शासन आयव ।
पर इतिहास अना आमरो भाट लोगईनको पोथी को हिसाब लक आमरो 36 कुल को कुनबा 17 वी सदी को आखिर मा इतन आया । यानी 1695 लक त् 1720 को दरमयान स्थानांतरण भयी से । आमरो कुनबा दरअसल सैन्य दल आय । आमरा अलग अलग परिवार सिंध, गुजरात, राजस्थान , मध्यप्रदेश मा पहले अलग अलग समय मा रहया सेत् । गया 550 साल मा पुरो कुनबा एक साथ रही से । वोको पहले अलग अलग स्थान पर तैनात होता । आमरी बोली अना परम्परा लक साफ चोवसे आमरो इतिहास ।
....Mahen Patle
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17.
🪷ओरख राजा भोज की🪷
लेखक - गोवर्धन बिसेन
भारत मा असा कम लोक रहेत, जे राजा भोज ला ओरखत नही. राजा भोज ला अज हजार साल भया रहेती, पर ओको नाव अज बी अजर अमर से. येनं महान राजा की चर्चा हर घर मा होसे. पोवार समाज येला आपलो आराध्य मानसे. या चर्चा, वय प्रतापी या मोठो राजा होता येनं कारण लका नही होय तं, वय खुद एक बहुत मोठा विद्वान अना कवि होन को कारण लका चर्चा होसे. खुद कवि अना विद्वान रहे लका वय उनको राज मा का कवि अना विद्वान इनको मोठो आदर करत होता. वाग्देवी माय को कृपालका कई विषय पर ८४ ग्रंथ उननं लिखी होतीन. उनको राजमा जवरपास १४०० विद्वान राजाश्रयमा रव्हत होता. राज्यसभा मा ५०० विद्वान रोबोटिक्स तकनीक अना जहाज निर्मितीको काम करत होता. स्थापत्यशास्त्र मा बी राजा भोज की बराबरी अजवरी कोनीनं नही करीन. उनको कालमाच बेतवा नदीपर सिंचाई साती बहुत मोठो माती को धरण बनेव. अकरावो सदीमाच राजाभोज को हात लका उज्जयीनी को महाकालेश्वर मंदिर, केदारनाथ को मंदिर, रामेश्वर को मंदिर, सोमनाथ को मंदिर अना मुंडीर को मंदिर को जीर्णोध्दार भयासेती. आब को भोपाल बी राजा भोजनंच बसायी सेस. यहांच एक मोठो तरा बी बनाईस. जवरच भोजपूर को शिवमंदिर आपलो अजी को स्मृती बनायीतीस. तब तरा को पानी येनं मंदिर वरी रव्हत होतो. येनं तरा को पानी पवित्र अना बिमारी ठिक करने वालो होतो. राजा भोज को विशेष वर्णन करन को कारण की आपलो पोवार वंशमा असा प्रकारका महान प्रतापी, साहित्यिक अना धार्मिक सम्राट राजा भया होता जिनको अकरावी सदीमा पुरो भारतपर भक्तीभावलका माय वाग्देवीको कृपामा इसवी सन १०५५ वरी राजकाभार चलेय.
राजा भोज को बारा मा "कहां राजा भोज, कहाँ गंगु तेली" या कहावत तं भारत को सपाई टुरूपोटू इनन आयकी रहेन, जेकोपर हिंदी सिलिमा का गाना बी बन्या सेती " येनं कहावत मा "राजा भोज" अना "गंगु तेली" को उल्लेख आयी से. यहान राजा भोज तं आय धार देश को परमार वंशीय राजा - राजा भोज परमार ला "राजा भोज" अना चालुक्य नरेश तैलप ला "गंगु तेली" कही गयी से, चालुक्य राजा तैलप ला ....या कहावत काहे पड़ी, येको साती तुमला इतिहास का पाना पलटनो पड़े.
राजा भोज को जनम परमार वंश मा भयी से. संस्कृत मा परमार शब्द को अर्थ से :- "परान मारयतीति परमारः" जेको अर्थ होसे, शत्रु इनला मारने वालो. येनच परमार वंश मा विक्रमादित्य को जनम भयी से, जिननं विश्वविजय करीतीन."
सीयक-दुसरो जेव कि महाराज भोज को दादाजी (स्यायनोजी) होता, उनको इतिहास लकाच आमी घटना को वर्णन करं सेजन, जेको लका तुमला इतिहास समझनला सोपो होये.
परमार वंश मा सीयक दुसरो नाव को एक प्रतापी राजा भयी से, इननं आपलो समय मा सबदून ताकदवालो सुमार राष्ट्रकूट ला बड़ो बेकार परिस्थिती लका हाराईस. सीयक-दुसरो ला एक टुरा भेटेव, वू टुरा कोनी सैनिक को टुरा होतो, जेव बाप को मृत्यू को बाद मा अनाथ भय गयेव होतो, सीयक-दुसरो, ओनं टुरा ला राज महल मा आनं से, वू टुरा येतरो हुशार निकलसे की, ओनं सीयक-दुसरो ला येतरो अधिक प्रभावित कर देईस, की सीयक-दुसरो नं आपलो खुद को टुरा सिंधुराज ला राजा घोषित न करता, ओनं अनाथ टुरा ला राजा घोषित कर देईस. ओनंच सम्राट को नाव पुढं चलकर पृथ्वीवल्लभ - वाक्यपती - मुंज नाव लका प्रख्यात होसे. पृथ्वीवल्लभ को अर्थ से, सप्पाई पृथ्वी को राजा, वाक्यपति को अर्थ से, आपलो बचन (वाक्य) वाया नही जाने देने वालो.
मुंज मोठो कुल को नोहोतो, पर ओनं विजय को तुफान असो मचाय देईस का, कर्नाटक पासून केरल वरी को प्रदेश ओनं एक संगमा जीत लेईस. छेदी को कलचुरी नरेश राजदेव दुसरो ला हारायकर ओको राजधानी ला पूरो लुट लेईस. मेवाड़ पर चढ़ाई करस्यान आहाड़ ला जीतीस अना चित्तौड़गढ़ को भाग बी मालवा मा मिलाय देईस. येनं ६ बार चालुक्य नरेश तैलप ला हारायीस, पर सातवो बेरा मुंज ला कैदी कर लेईन, अना बाद मा मोठी यातना देयकर राजा मुंजला मार टाकीन.
राजा मुंज को ज्योतिष अना पुरोहित नं मुंज ला सांगी होतीन की तुमी येनं बेरा गोदावरी नदी पार नोको करो, तुमरो नाश निश्चित से. मुंज काही मानेव नही, पुरोहित नं आत्महत्या कर लेईस, तरी बी मुंज नही रुकेव.
तैलप नं मुंज ला कैद जरूर करीस, पर राजसी व्यवस्था को संग मा आपलो महल माच कैद करीस. यहान तैलप को बहिन संग मुंज ला पिरम भय गयेव. धार का सैनिक मुंज ला सोड़ावन साती महल मा सुरंग बी खोद लेईन, पर मुंज राजकुमारी को प्रेम मा असो फस गयेव होतो, की वू सुरंग मा लका बाहेर आयेवच नही, उल्टो आपलो सैनिक इनकी सुरंग दरवाजा वाली बात आपलो प्रेमिका ला सांग देईस. मंग का भयेव? तैलप नं मुंज ला भिखारी वानी अवस्था मा पोहचायकर रस्ता पर भीख मांगन लगाईस, ओको बाद ओला ओनं तड़पाय तड़पायकर मार देईस.
येको बाद सिंधुराज को टुरा अना मुंज को पुतन्या "महाराज भोज परमार" नं प्रतिज्ञा करीस, की "मी तैलप ला तसोच मारून, जसो ओनं मोरो काका मुंज ला मारीतीस"
अना कसेत, भोज नं आपली प्रतिज्ञा पूर्ण बी करीस, भोज नं अशुभ मुहूर्त को बेरा गोदावरी नदी पार करीस, अना जसो ओको काका मुंज ला तड़पाय तडपायकर मारीस तसोच भोज नं बी तैलप ला तड़पाय तड़पायकर मारीस.
राजा भोज अना वाक्यपति मुंज ला धरकर एक कथा बहुत प्रचलित से ....
कहेव जासे की जब भोज आपलो सावित्री माय को गर्भ मा होतो, तब ओको अजी सिंधुराज ला राजसत्ता को लड़ाई मा मार देईतीन, इ.स. ९८० को बसंत पंचमी को बेरा बालक भोज को जनम भयेव. अजी को छत्रछाया को बिना आपलो माय को शिक्षण लका वु टुरा नहानपन माच आपलो तेज को प्रकाश च्यारही बाजुला पसरावन लगेव. एक दिवस जब बालक भोज नं हत्ती पर सवार आपलो राज्य को मोठो सेनापति ला जमीन पर रयकर हाराय देईस तं, भोज को काका मुंज ला बड़ी चिंता भयी, तुरंत ज्योतिषि ला बुलायकर उनला आदेश देईस, "भोज की जन्मपत्री देखस्यान सांगो कि कहीं यव टुरा मोठो होयकर मोला अना मोरो टुराईन साती अडचन तं नही करन को?"
जब की नहान भोज की अद्भुत सुंदरता अना भोलोपन को कारण लका मुंज बी ओको खूब लाड़ करत होतो, पर राजसत्ता असी चीज से का, जेको लोभ लका महाभारत होय जासे --
ज्योतिषी नं भोज की जनम कुंडली देखकर सांगीस, "जेव टुरा तुमरो आंगन मा खेल रही से, येव साधारण पुरुष नाहाय, येको भाग्य तं ब्रह्माजी बी नही सांग सक, तं मी कसो सांग सकुसू. हं येतरो जरूर सांगुसू का, येव येनं देश को संगमाच दक्षिण मा का पुरा देश जीत लेये, आर्यावत का सप्पाई राजा येको अधीपत्य स्वीकार कर लेयेती. अना येव पचपन साल, सात महिना, तीन दिवस वरी बंगाल सहित पुरो दक्षिण मा राज करे."
वाक्यपति मुंज नं जब असो आयकीस तं ओको पाय को खाल्या की जमीन सरक गयी, ओको चेहरा उतर गयेव. ओला रातभर झोप नही लगी. अना सोच मा पड़ेव, येव मालवा पर राज करे, तं मोरा टुरा का करेती ?? ओनं दुसरो दिवस आपलो सैनिक वत्सराज ला आज्ञा देईस - "येला गुरुकुल मा लका भुवनेश्वरी को निर्जन बन मा लिजायस्यानी मार टाको. अना ओकी कटी मुंडकी मोरो सामने पेश करो."
वत्सराज नं राजा मुंज ला बहुत समझाय बुझायकन असो करन साती रोकीस, पर राजा काही मानेव नही. अना वत्सराज पर नाराज भय गयेव. आता राजा की आज्ञा पालन करेव बिगर काही चारा नाहाय असो सोचकर काही सैनिक ला धरकर ज्याहान भोज शिकत होतो ओनं गुरुकुल मा गयेव अना नहान भोज ला ओको काका नं बुलायीस असो सांगस्यानी भुवनेश्वरी को भयावन बन मा नहान सो भोज ला लिजायकर राजा मुंज की आज्ञा को बारा मा सांगीस.
बालक भोज नं बड़ो हिंमत लका काका मुंज की आज्ञा आयकीस अना वत्सराज ला कहीस, "तुमी निडर होयकर राजा को आज्ञा को पालन करो. पर मी तुमला एक पत्र देसु. वु तुमी मोरो काका राजा मुंज वरी पोहचाय देव."
सैनिक वत्सराज तयार भय गयेव. भोज नं बड़ को पाना तोड़स्यान ओको दोना बनाईस. सुरी लका आपलो मांडी ला चिरकर खून लका दोना भरीस. गवत को दांडी लका बड़ को दुसरो पाना पर एक श्लोक लिखीस अना वत्सराज को हात मा देयकर मरन साती तयार भय गयेव. पत्र देखस्यान वत्सराज को हिरदा पिघल गयेव अना डोरा मा लका पानी निकलन बसेव. ओनं राजकुमार भोज ला माफी मांगीस अना मारन को बिचार सोड़कर भोज ला रथ पर बसायकन आपलो घरं लिजायस्यान लुपाय देईस. बाकी सैनिक इनन बी ओला साथ देईन.
एक मुर्तिकार जवर लका भोज की हुबेहुब मुंडकी तयार करस्यान रात को इंधारो मा राजा मुंज जवर आनस्यान ठेय देईन. सैनिक इनन कईन, "महाराज आमीनं बालक भोज ला मार देया. पर मरन को बेरा ओनं तुमरो साती एक पत्र देईस" वाक्यपति मुंज दूर लकाच मुंडकी निहारन बसेव. खुश होयकर वत्सराज ला खबर लेईस, "मरन को बेरा भोज नं अनखी काही कहीस का?" वत्सराज नं चुपचाप भोज को लिखेव पत्र राजा को हात मा देईस. रानी नं दिवो पेटायकर राजा जवर आनीस. दिवो को उजारो मा मुंज पत्र बाचन बसेव…..
पत्र मा श्लोक असो लिखेव होतो….
मान्धाता स महीपति: कृतयुगालंकार भूतो गत:
सेतुर्येन महोदधौ विरचित: क्वासौ दशस्यांतक: |
अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतिभि: याता दिवम् भूपते
नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति ||
अर्थात - हे राजा, सतयुग को राजा मान्धाता भी चली गयेव, त्रेता युग मा, समुद्र पर पुल बांधकर रावण ला मारने वालो राम बी नही रहेव, द्वापरयुग मा युधिष्ठिर बी स्वर्ग लोक चली गयेव. पर धरती कोनी संग नही गयी, पर होय सिक से, की कलयुग मा, तुमी येनं धरती ला संगमाच लिजाय लेवो.
येनं श्लोक ला बाचकर वाक्यपति मुंज ला बहुत पश्चाताप होसे. "हाय! यव मिनं का कर टाकेव, मिनं येतरो होनहार बालक ला मारकर धरती अना राष्ट्र को संग येतरो मोठो अन्याय कर देयेव , मोला आता जीतो रव्हन को काहीच अधिकार नाहाय." असो कयकर आपली खुद की मुंडकी काटन ला मुंज नं तलवार उचलीस, तब सैनिक वत्सराज नं मुंज ला पश्चाताप भयेव देख ओला रोककर कव्हन बसेव, "असो अनर्थ नोको करो महाराज, बालक भोज आब बी जीतो से ! आमीनं ओनं महिमामयी बालक की महिमा लका मोहित होयकर ओला लुपाय देया होता."
"ओला जल्दी मोरो डोरा को सामने धरकर आनो." मुंज भोज ला मिलन साती येतरो तड़पत होतो का, जसो पानी बिना मसरी. जब सैनिक भोज ला धरकर आया, तं मुंज नं आपलो पुतन्या ला कसकर गरो ला लगाय लेईस, अना ओनच बेरा घोषणा कर देईस, की भोजच मालवा को पुढ़ चलस्यान राजा बने.
मुंज को मृत्यू को बाद बीस साल को उमर माच इ.स. १००० मा बालक भोज राज सिंहासन पर बससे अना आपलो राजपाट सम्हाल लेसे. तब मालवाकी च्यारही दिशा दुश्मनलका घिरी होती. दक्षिण पश्चिममा चालुक्य, उत्तरमा तुर्क अना राजपूत, पुर्वमा युवराज कलचुरी असा दुश्मन होता. माय गडकालीकाको आशीर्वादलक राजा भोज नं सबला हाराईस. तपस्या अना साधनालका सरस्वती माताकी बी उनला विशेष कृपा होती. उनला चौसट प्रकारकी सिध्दी प्राप्त होती. भोजशाला को निर्माण करीन अना वहान सरस्वती माता सारखीच वाग्देवी माताकी मुर्ती बनाईन.
अना यहा लका शुरुवात भयी भारत को एक असो राजा की, जेव वीरता, ज्ञान अना विज्ञान की नवीन सीमा रेसा तय करे, जहां वरी शायद मंग को हजार साल मा कोनी नही पहुंच पाया रहेत.
© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१
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18.
खेती किसानी
खेती पेट भरन को प्रमुख साधन अना भूमि जमीन को टुकड़ा मात्र नोहोय, हमारो जीवन को येक संस्कार आय।हमारा पुर्वज पुरखा खेती ला माता को तुल्य मानी सेत अन भारत माता को नाम लक संबोधित करी सेत। किसान ही असली भारत माता को सच्चो सपूत आय।किसानी वोकी पूजा आय। किसान अपरी मेहनत की कमाई लक़ अपरो भी पेट भर से अन दुसरो को भी पेट भर से। किसान ही हमरो सच्चो आराध्य आय। दुर्भाग्य लक हमारी दृष्टि बदल गए अन सरकार की गलत नीतियों लक आज किसान परेशान ही नहीं आत्महत्या करन लाई मजबूर से।
आज हमारी सबकी जिम्मेदारी से कि किसान ला वोकी फसल की सही किमत अन फसल खराब होन पर उचित मुआवजा मिल येको लाई हमी सबला मिलकर प्रयास करन की जरुरत से। अन किसान ला देवता समझकर मान भी देन की जरूरत से काहे कि वोय मालिक आत। किसानी ला लाभ को व्यवसाय बनावन भी प्रयास करन की जरुरत से काहेकि आखरी मा खेती ही सबको सहारा बने।
येको लाई सब मिलकर बोलो
जय जवान जय किसान।
भारत माता की जय। वंदेमातरम।
✍️ कोमल प्रसाद रहाँगडाले, धारना(जिला-सिवनी)
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