पोवारी साहित्य सरिता, भाग - ५८
पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित
पोवारी साहित्य सरिता
भाग - ५८
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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1.
ll अलौकिक पथ ll
मातृभाषा को प्रति नैतिक दायित्व
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साहित्य को खुलो आसमान खाल्या मी हिंदी ना मराठी साहित्य की सेवा करत होतो.हिन्दी की कविता ना लेख आगरा, लखनऊ, जोधपुर ना रायपुर लक प्रकाशित होत होता.विश्ववंदित स्वामी विवेकानन्द पर आधारित दिग्विजय महाकाव्य (Epic ) का लगभग दुय हजार छंद साकार भया होता. ग्राम दर्शन (Village Philosophy) ग्रंथ को भी अस्सी प्रतिशत काम पुरो भय गयेव होतो. राह निष्कंटक होती.रस्ता मा कोनतीच बाधा नव्हती.उंचो लक्ष्य हासिल करनो सहज संभाव्य होतो.
साहित्यिक प्रगति को असो यशस्वी पड़ाव पर एक दिवस अकस्मात मोरों कल्पनासाम्राज्य मा मातृभाषा पोवारी, साक्षात् देवी को रुप धारण करके अवतीर्ण भय गयी .
मातृभाषा को मुखमंडल पर उदासी ना भयंकर चिंता छायी होती. देह अशक्त ना पाय लड़खड़ात होता. नेत्र मा लक आंसू का बुंद रुक -रुक के खाल्या टपकत होता.मातृभाषा ला असी दु:खद अवस्था मा देखके मोरों मन दुखी व व्यथित भय गयेव.मी भावविभोर भय गयेव . मातृभाषा को आंसू सारखाच मोरों डोरा मा लक भी आंसू धीरु -धीरु खाल्या टपकन लग्या.असो भावपूर्ण अवस्था मा मातृभाषा कव्हन लगी -" मोरी दशा मोला देखेव नहीं जाय. बेटा ! तू , हिन्दी ना मराठी साहित्यसागर मा पोहता -पोहता कुशलता हासिल करीसेस. समाज दिग्भ्रांति को चौराह पर उभो से. एकमात्र तूच मोरों उद्धार कर सक् सेस. मोला उन्नत करके गौरवान्वित कर सक् सेस.
देवी स्वरुप मातृभाषा का करुण स्वर आयक के मोला कर्तव्यबोध भयेव. हिन्दी ना मराठी साहित्य की राह पर बढ़नो रुक गयेव. "मातृभाषा या मायवानी श्रेष्ठ से.वोकी वेदना दूर करनो प्रथम दायित्व से." असा स्वर अंतरात्मा लक आयकु आवन लग्या.अना मी तत्काल हिन्दी ना मराठी साहित्य की सेवा को कार्य जहां को वहां ठेयके मातृभाषा की सेवा मा लग गयेव .
"मातृभाषा पोवारी ला पुष्ट करनो, वोला अधिक समृद्धशाली,अधिक सौंदर्यशाली, अधिक वैभवशाली ना ओजस्वी बनावनो,जगमगाहट करनेवाला वस्त्र परिधान करावनो,वोको अंतरात्मा मा आनंद ना मुखमंडल पर प्रसन्नता को भाव प्रकट करावनो येवच मोरों प्रथम ना सर्वप्रथम दायित्व से." येन् सत्य ला स्वीकार करके मी मातृभाषा की सेवा मा तत्पर सेव. मातृभाषा ला विस्तृत ना उन्नत करन को नैतिक दायित्व सफलतापूर्वक संपन्न करके, यदि समय मिलेव त् हिंदी साहित्य को अपूर्ण कार्य ला भी पूर्णता प्रदान करन को संकल्प से. राष्ट्रभाषा हिन्दी को प्रति भी अंतरात्मा नतमस्तक से. यहां मोरी अंतर्रात्मा मा दुय काव्यपंक्ति स्पंदित होय रही सेत. ये काव्यपंक्ति निम्नलिखित सेत.-
मातृभाषा को सेवासाती, निकल पड़ेव तुफान बनकर l
उत्कर्ष मातृभाषा को,करजाबी वोला संजीवनी देयकर ll
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2.
चिंतन ! मायबोली को उत्थान को
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हर घड़ी हर पल मा l
हर दिन हर रात मा l
चिंतन से मायबोली को उत्थान को l
पोवारी बोली को पुनरुत्थान को ll
हर खुशी हर गम मा l
हर त्यौहार हर मौसम मा l
संघर्ष से मायबोली को उत्थान को l
पोवारी बोली को पुनरुत्थान को ll
हर गीत हर लेख मा l
हर ग्रंथ हर अध्याय मा l
उल्लास से मायबोली को उत्थान को l
पोवारी बोली को पुनरुत्थान को ll
मन- मंदिर से चिंतन मा l
येव जीवन से लेखन मा l
उद्देश्य से मायबोली को उत्थान को l
पोवारी बोली को पुनरुत्थान को ll
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3.
पोवारी भाषा सुधार आंदोलन, भारतवर्ष
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पोवारी कमजोर से कहके
कमजोरी आपली ना छुपाओ l
थोड़ी -थोड़ी अकल लगायके,
पोवारी ला शानदार बनाओ l
पोवारी हेंगली से कहके
नादानी आपली ना छुपाओ l
थोड़ो आपलो लहजा सुधारके,
पोवारी ला शानदार बनाओ ll
पोवारी फिकी से कहके,
नादारी आपली ना देखाओ l
सुंदर- सुंदर शब्द वापरके,
पोवारी ला शानदार बनाओ ll
पोवारी गावठी से कहके
गावठीपन आपलो ना छुपाओ l
शानदार शब्द वापरके,
पोवारी ला शानदार बनाओ ll
पोवारी क्लिष्ट से कहके
अज्ञान आपलो ना देखाओ l
साफ सुथरी रचना करके,
पोवारी ला शानदार बनाओ ll
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4.
छत्तीस कुल की भीष्मप्रतिज्ञा
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आराध्य आमरा प्रभु श्रीराम l
पोवारी याच आमरी पहचान ll
बदले जमानों चाहें
बदले सूरज- चांद l
ना तोड़बी घेरा छत्तीस कुल को,
ना सोड़बी पूर्वजों की पहचान ll
बदले जमानों चाहें
बदले धरती- आसमान l
ना सोड़बी धर्म आपलो,
ना सोड़बी हिन्दू धर्म महान ll
बदले जमानों चाहें
बदले आमरो जीवनमान l
ना सोड़बी आदर्शों ला,
ना सोड़बी आपलो स्वाभिमान ll
सर्वोपरि से पोवारों ला
पूर्वजों की पहचान l
ना सोड़बी मातृभाषा ला,
ना सोड़बी भाषा को उत्थान ll
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5.
कालजयी से पोवार
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कालजयी से पोवार l
नोको बदलों पहचान l
नोको भूलों कुल खानदान l
लक्ष्य ठेओं मायबोली को उत्थान ll
कालजयी से पोवार l
कुलदेवी मातामाय l
कुलदेवता महाकाल l
लक्ष्य ठेओं मायबोली को उत्थान ll
कालजयी से पोवार l
संस्कृति ना संस्कार भी महान l
सनातन धर्म को से अधिष्ठान,
लक्ष्य ठेओ मायबोली को उत्थान ll
कालजयी से पोवार l
भारत को अन्नदाता किसान l
शिक्षण की महिमा की से जाण,
लक्ष्य ठेओ मायबोली को उत्थान ll
कालजयी से पोवार l
दिल मा ठेओ राष्ट्र को गुणगान l
राष्ट्र साती करों त्याग ना बलिदान l
लक्ष्य ठेओ मायबोली को उत्थान ll
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6.
मातृभाषा ला कालजयी बनावबी
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मातृभाषा ला कालजयी बनावबी l
आपली भाषा ला विजयी बनावबी ll
युवाओं मा भाषिक प्रेम जगावबी l
युवाओं मा साहित्यिक सोच जगावबी l
हर घर मा भाषा को अलख जगायके,
पोवारी ला आम्हीं कालजयी बनावबी ll
मायबोली को नित्य सम्मान करबी l
मायबोली मा सुंदर साहित्य लिखबी l
हर घर मा भाषा को अलख जगायके,
पोवारी ला आम्हीं कालजयी बनावबी ll
अमर हो मायबोली ! प्रार्थना करबी l
चिरायु हो मायबोली ! अर्चना करबी l
हर घर मा भाषा को अलख जगायके,
पोवारी ला आम्हीं कालजयी बनावबी ll
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7.
सबदुन प्यारी,पोवारी मायबोली
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जिंदगी मा अनेकों कामना सेती l
जिंदगी मा अनेकों भावना सेती l
लेकिन आमला सबदुन प्यारी से ,
आमरी बोली, पोवारी मायबोली ll
जिंदगी मा अनेकों काम सेती l
जिंदगी मा अनेकों मुकाम सेती l
लेकिन आमला सबदुन प्यारी से,
आमरी बोली , पोवारी मायबोली ll
जिंदगी मा अनेकों विषय सेती l
जिंदगी मा अनेकों विचार सेती l
लेकिन आमला सबदुन प्यारी से,
आमरी बोली, पोवारी मायबोली ll
जमानों मा अनेकों बोली सेती l
जमानों मा अनेकों भाषा सेती l
लेकिन आमला सबदुन प्यारी से,
आमरी बोली, पोवारी मायबोली ll
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8.
बड़ी अनमोल से, आमरी मायबोली
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बोलेव लक येला, बढ़ जाये एकता l
सोड़ेव लक येला,मिट जाये एकता l
बड़ी अनमोल से, आमरी मायबोली ll
समाज की या शान से l
समाज की पहचान से l
बड़ी अनमोल से, आमरी मायबोली ll
बोलेव लक येला...
संस्कृति की संवाहक से l
संस्कृति की संरक्षक से l
बड़ी अनमोल से, आमरी मायबोली ll
बोलेव लक येला...
एकता की या बंधन से l
पूर्वजों की धरोहर से l
बड़ी अनमोल से, आमरी मायबोली ll
बोलेव लक येला...
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9.
पोवारी चेतना
(Powari Conciousness)
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आया आया रे!
पोवारी चेतना का दिन आया l
युवाओं का साहसी प्रयास,
दसों दिशाओं ला भाया ll
आया आया रे!
मायबोली का अच्छा दिन आया l
पोवारी चेतना का प्रयास,
दसों दिशाओं ला भाया ll
आया आया रे !
धर्म चेतना का अच्छा दिन आया l
पोवारी चेतना का प्रयास,
दसों दिशाओं ला भाया ll
आया आया रे !
छत्तीस कुल का अच्छा दिन आया l
पोवारी चेतना का प्रयास,
दसों दिशाओं ला भाया ll
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10.
वी पीढ़ी को प्रश्नचिन्ह!
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अगर माय बोली ला तुम्हीं
भाषा न् बनाय पायात l
नवी पीढ़ी तुम्हाला भला का कहें ?
लेकिन तुम्हारी चेतना पर प्रश्न उठाये ll
अगर निज पहचान ला तुम्हीं
सुरक्षित न् ठेय पायात l
नवी पीढ़ी तुम्हाला भला का कहे ?
लेकिन तुम्हारी चेतना पर प्रश्न उठाये ll
अगर छत्तीस कुल को घेरा तुम्हीं
टिकायके न् ठेय पायात l
नवी पीढ़ी तुम्हाला भला का कहे ?
लेकिन तुम्हारी चेतना पर प्रश्न उठाये ll
अगर हिन्दू धर्म की महिमा तुम्हीं
समाज मा न बचाय पायात l
जमानों तुम्हाला भला का कहे ?
लेकिन तुम्हारी चेतना पर प्रश्न उठाये ll
11.
उखाव ( मदत /सहयोग)
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थोड़ो समय निकाल के l
युवाओं को उत्थान ला l
थोड़ो उखाव लगाय देओ त् ,
समाज रोशन होय जाये राष्ट्र मा ll
थोड़ो समय निकाल के l
मायबोली को उत्थान ला l
थोड़ो उखाव लगाय देओ त् ,
समाज रोशन होय जाये राष्ट्र मा ll
थोड़ो समय निकाल के l
धर्म को उत्थान मा l
थोड़ो उखाव लगाय देओ त् ,
समाज रोशन होय जाये राष्ट्र मा ll
थोड़ो समय निकाल के,
संस्कृति को उत्थान मा l
थोड़ो उखाव लगाय देओ त् ,
समाज रोशन होय जाये राष्ट्र मा ll
जिंदगी को हर मौसम मा l
मां भारती को सेवा मा l
थोड़ो सहयोग कर देओ त् ,
राष्ट्र रोशन होय जाये संसार मा ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
शुक्र.०५/०८/२०२२.
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12.
🌻 पोवारी साहित्य सरिता भाग ५८🌻
बाट देखुसू तोरी
नही कहेव मन की बात मोरी,
दिसत होती साजरी सुरत तोरी ll
कभी नज़र नही उठायव मोरी,
मन मा बसी होती सूरत तोरी ll
हर दिवस लगावत होतो हाजरी,
खाली एक कुर्सी रहव बस तोरी ll
सब कवत कसो रहेंव आज वरी,
लग मोला आय जाये मोरी परी ll
सपन मा आयी बुलावन लगी परी,
कयेव कसी फुर्सत भेटी परी ll
धड़ी पर बसेव याद आयी तोरी,
मन कसे नोको देखु बाट मोरी ll
संघर्ष मोड़ पर याद आये मोरी ll
अधूरी लगसे जिंदगानी मोरी ll
सपन ला हकीगत बनावो परी,
देखुसू बाट मी तोरी अज वरी ll
डॉ हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो.९६७३१७८४२४🙏🙏
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13.
🌹 अमृत वचन 🌹
सुख ना दुःख ये दुही महान शिक्षक आती. जेतरो शिक्षण मनुष्य ला भलो व्यक्ति पासून मिल् से, वोतरोच शिक्षण वोला बुरो व्यक्ति पासून भी मिल् से.सुख ना दुःख मन को सामने लक जान को बेरा वोको पर अनेक प्रकार का चित्र अंकित कर जासे. ना येन् चित्रों या संस्कारों को समग्र रूप को फल ला च आम्हीं व्यक्ति को "चरित्र " येन् नाव लक संबोधित कर् सेज्.
स्वामी विवेकानंद
शिक्षा का आदर्श, पृष्ठ.क्र.२४, (रामकृष्ण मठ,नागपुर)
संकलक -- डी.के. भगत
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14.
गीत पोवारी का गावत चलों...
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गीत पोवारी का गावत चलों l
झंडा पोवारी को गाड़त चलों ll
बोली बचें त् संस्कृति बचें l
संस्कृति बचें त् समाज बचें l
गीत पोवारी का गावत चलों l
झंडा पोवारी को गाड़त चलों ll
आपस मा पोवारी बोलो l
साहित्य पोवारी मा रचो l
गीत पोवारी का गावत चलों l
झंडा पोवारी को गाड़त चलों ll
बोली ला भाषा बनावनो से l
हृदय मा एकच उद्देश्य ठेओ l
गीत पोवारी का गावत चलों l
झंडा पोवारी को गाड़त चलों ll
मेहनत स्वयं करत चलों l
आशीष समाज को लेत चलों l
गीत पोवारी का गावत चलों l
झंडा पोवारी को गाड़त चलों ll
इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले
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15.
🪷 पोवारी साहित्य सरिता🪷
करबीन सदा आपरो समाज की बात।
उत्थान लाई देव सबझन आपरो हाथ।
करबीन आपरी मूल संस्कृति की बात।
आपरी पहिचान लक़ होहे मुलाक़ात।।
छत्तीस कुर का आजन आमी पोवार।
हमला कसेती धारा नगरी का पंवार।
आजन वैभवशाली अतीत का वारिस।
सर्वगुन सम्पन्न से छत्तीस कुर परिवार।।
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16.
क्षत्रिय पोवार/पंवार का छत्तीस कुर
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परिहार तुरकर हरिनखड़े।
चौहान भैरम बिसेन बघेले।।
भगत शरणागत सोनवाने।
पुंड पारधी रनदीवा अम्बुले।।
क्षीरसागर गौतम फरीदाले।
येड़े हनवत डालिया कोल्हे।।
राजहंस रावत भोयेर कटरे।
ठाकरे रिनायत चौधरी पटले।।
बोपचे रनमत राणा सहारे।
जैतवार परिहार रहाँगडाले।।
🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸
✍️ ऋषि
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17.
पोवारी साहित्य सरिता भाग - ५८
🪷याद राखीला आवंसे🪷
(अष्टाक्षरी काव्य)
प्रेम पवित्र बंधन
धागा रेशमको प्यारो |
भाई बहिनको यव
राखी त्योहार से न्यारो ||१||
याद राखीला आवसे
मोरो विजया बाईकी |
मोला राखीला ओवाळं
स्नेह भरी दुहाईकी ||२||
मोरी लाड़की बहीन
देत होती मोला साथ |
जग सोड़के गयीस
भास्या भयेव अनाथ ||३||
मोला यादच आवंसे
तोरो मृत्यूको प्रसंग |
मोरो हृदय दाटंसे
शांती होसे मोरी भंग ||४||
याद खुबच आवंसे
बाई तोरी बारंबार |
जब गयीस सोड़के
भये होतो थंडगार ||५||
तोरी यादच आवंसे
होसे कासावीस मन |
मन मनमा रोवंसे
भाऊ तोरो गोवर्धन ||६||
© इंजि. गोवर्धन बिसेन 'गोकुल'
गोंदिया (महाराष्ट्र) मो. ९४२२८३२९४१
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18.
याद
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नही रुक् आसू की धारा
मोला आवसे जब् याद
डोरा भर के देखू बाट
कब् आवजो मोरी माय...
जेन् कुसिन् जनम देईस
भयेव वोको दुसरो जनम
जेन् जग जगन सिखाईस
वा मोला याद आय गयी माय...
मोरी नजर जासे वो दूर
जब् आवसे नदीला पूर
तुमी आवसेव काम कर
तुमरो रुपमा देखू माय...
यन् धरा पर जे फुल खिल्या
खुशबू बन कर बिखऱ्या
देईन असो झाडला जखम
एकटी रय गयी गाव मा माय...
जब् छोड गयी दुनिया
काटा फूल भी आया याद
जब् उफान मारी लाट
ह्रदय मा आयी याद माय...
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श्री छगनलाल रहांगडाले
खापरखेडा
९१५८५५२८६०
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19.
रामचरितमानस
""""""""""""""""""""""""""
आयकनो सब सज्जन गण;
रामायण को संक्षेपण सार!
तुलसीदास जी का वचन;
भया दुनिया मा सत्य प्रसार।
सीता जी को खोज करनला;
रामजी सेना गई लंका दरम्यान!
एक सौ ग्यारह दिन राम रया;
लंका को पवित्र भयो हर स्थान।
विभीषण जी न आग्रह करीन;
थाम जाओ काही दिवस भगवान!
राम जी को खूब सम्मान करीन;
लंका नगरी को भयो कल्याण।
चार सौ पैंतीस दिन सीता जी;
लंका मा अशोक वाटिका ठिकान!
संरक्षण मा रही त्रिजटा जी;
हर पल ठेओ सीता को ध्यान।
तुलसी कृत रामायण गाथा मा;
चौपाई संख्या सेती --४६०८!
सीता रानी बनी ३३वर्ष अवस्था मा;
सोरठा संख्या सेती जी:२०७ ।
श्लोक संख्या सेती सताईस;
छंद संख्या सेत कूल छयासी!
रचना भवानी जी न लिखाईस;
यौनी जसी से लख चौरासी।
आब येतरोच दर्शाय रही सेव;
रचना करत रहूं नव निर्माण!
पंध्यांशीकरण पठावत रहूं;
दोहा पद लक करु व्याख्यान।
************************
रामचरितमानस(विवरण काव्य क्रमांक भाग -२)
तुलसीकृत रामायण
राम चरित मानस रचना करीस;
होती उमर तुलसीदास की:७७!
दिव्य भव्यमय रचना ला रचीस;
बहु भाषा सहज साहित्य स्तर।
सुग्रीव जी मा शक्ति होती प्रबल;
दस हजार खूब हाथी को समान!
तीन लोक मा मचाव उथल पुथल;
पल माच उडत होतो आसमान।
विश्वामित्र न;राम ला वन लेजाईस;
करनो होतो यज्ञ हवन संरक्षण!
दस दिवस साती;संग मा ठेईस;
ताड़का वध भयो सुबाहु पतन।
विश्वामित्र ला;राम जी
न कहीस;
आता कहां जानों से कहो वचन!
तब विश्वामित्र न आदेश देईस;
मिथिला मा आता करनो से गमन।
सब रचना होती शंकर भगवान की!
वहां होतो सीता जी को स्वंयम्बर!
अवतार भयी होती बेटी जनक की!
राम न उठाईस धनुष; पत्नी
मिली सुंदर।
बिष्णू जी ला श्राप लगेव होतो;
भृगु ऋषि लक पत्नी वियोग कारण!
श्राप बिष्णू जी ला भुगतनो होतो;
त्रेतायुग मा भयो राम जी रुप धारण।
रामायण सीख कलयुग मा चली;
हर घर घर मा घटसे असो विधान!
दुनिया मा खूब मच गई खलबली;
जय जय हो शंकर बिष्णू भगवान।
आता यहां को वृतांत यहां ठेऊं;
सांगू सामोर को घटेव प्रमाण!
राम जी को सब पूर्वज ला दर्शाऊ;
सबका नांव सांगकन खानदान।
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रामचरितमानस(काव्य विवेचन भाग:-३ )
तुलसीदास कृत रामायण
आता आयकनो असो विवरण;
राम को दादा परदादा बखान!
रामचरण पटले करसे विवेचन;
क्रमबद्ध सब वशंज को ऐलान।
ब्रम्हा जी लक मरीचि भयो;
मरीचि लक ;कश्यप उत्पन्न!
कश्यप लक;विवस्वान जनम्यो;
विवस्वान लक;मनु प्रगटकन।
मनु को समय;जल प्रलय भयो;
मनु लक इक्ष्वांकु पूत्र गुणवान!
इक्ष्वांकु लक बेटा कुक्षि भयोव;
कुक्षि को पूत्र विकुक्षि नीतिवान।
विकुक्षि को बेटा को नांव बाण;
बाण को बेटा अनरण्य विद्वान!
अनरण्य की पृथु पूत्र बुद्धिमान;
पृथु लक;त्रिशंकु बेटा ज्ञानवान।
त्रिशंकु को पूत्र धुंधुमार भयो;
धुंधुमार को बेटा युवनाश्व नांव!
युवनाश्व लक मान्धाता जनम्यो;
मान्धाता लक सुसन्धि रुपवान।
सुसन्धि लक दुय बेटा जनमकन;
पहलो ध्रुवसन्धि;दुसरो
प्रसेनजित!
ध्रुवसन्धि लक भरत प्रगटकन;
भरत लक बेटा कीर्तिमान असीत।
असित को बेटा सगर लेयकन;
सगर लक पूत्र नांव असमंज!
असमंज लक अंशुमान जन्मकन;
अंशुमान को पूत्र दिलीप विद्वज।
दिलीप की सन्तान भागीरथ;
भागीरथ लक भयो ककुत्स्थ!
ककुत्स्थ लक रघु दिव्यमान;
राजा रघु लक प्रवृध्द शौर्यवान।
प्रवृध्द लक बेटा शंखन बलवान;
शंखन को बेटा सुदर्शन महान!
सुदर्शन लक अग्निवर्ण शक्तिमान;
अग्निवर्ण लक पूत्र शीघ्रग धनवान।
शीघ्रग लक बेटा मरु पुण्यवान;
मरू को बेटा प्रशुश्रुक शौर्यवान!
प्रशुश्रुक लक अम्बरीष भाग्यवान;
अम्बरीष लक नहुष क्रांतिमान।
नहुष को बेटा भयो ययाति;
ययाति लक नाभाग उत्पत्ति!
नाभाग लक पूत्र अज प्रख्याति;
अज राजा लक दशरथ विख्याति।
दशरथ राजा लक चार संंतति!
राम भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न प्रीति!
उन्चालीसवी पीढ़ी लक संस्कृति!
भगवान श्रीराम जी की धर्मनीति।
मायबोली लक करेव संक्षेपण;
हे आयको सकल सज्जन गण!
अन्तर्मन शक्ति लक से विश्लेषण;
रचनाकार नांव पटले रामचरण।।
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देवी गीतकार-रामचरण पटले
महाकाली नगर, नागपुर
मोबाइल नं.८२०८४८८०२८/९८२३९३४६५६
जन्म पता -कटेरा तहसील -कटंगी
जिला बालाघाट (म.प्र.)
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20.
शर्मींदगी नोकों जताओ
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मायबोली लेखन मा नाहाय म्हणून;
बोलनला भाऊ बहिन नोको शर्माओ!
पोवारी लब्ज ला सुधारके;
पोवारी मायबोली ला बढ़ाओ।१।
हेंगली बोली से कहकन;
नोकों मर्यादा ला छुपाओ!
मधूर मधूर बोली बोलकन;
पोवारी आन बान शान बढ़ाओ।
खुदला नाजूक समझकन;
लाचारी ला नोको दिखाओ!
सब संगठन ला बनायकन;
राजा भोज को मान ला बढ़ाओ।
गावठी बोली से कहकन;
डोस्की खाल्या नोकों झुकाओ!
सब समाज मा गरजकन;
स्वयं को शक्ति शौर्य दिखाओ।
बोली निम्न स्तर की से म्हणून;
नोकों लाज शरम झलकाओ!
गर्व स्वाभिमान ला दर्शायकन;
भवानी माय की वीरता देखाओ।
पोवारी ओछी से समझकन;
नोकों नाक ला तों कटाओ!
सुरक्षित जग मा रहकन;
समाज की कदर तों बढ़ाओ।
का?बोलता नहीं आव म्हणून;
कतरायकन घबराय जाओ!
का,?आपरो धन दौलत छोड़कन;
यहां वहां इत उत परात जाओ।
हे पोवार समाज का सज्जन;
एकता समता ला तो देखाओ!
का?असाच आपस मा झगड़कन;
संसार का दर दर पर ठोकर खाओ!
आता भी समय से सुधर तो जाओ।
रचनाकार -रामचरण पटले महाकाली नगर नागपुर
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21.
आदरणीय समस्त कविश्रेष्ठजन, इतिहासकार, लेखकवृंद, सामाजिक
कार्यकर्तागण अना विविध संघटन का सदस्य पदाधिकारीगण सबको कार्य
अना साहित्यिक कृति समाजिक दृष्टिकोण लका बहुत महत्वपूर्ण सेती, सबको
यथाशक्ति अना समयानुसार आपलो आपलो परी लका सब समयदान,
अंशदान , अनुभव की व्याख्या अना आपलो कार्यक्रम की उत्कृष्ट जानकारी
समुह मा प्रेषित कर सेती....कभी - कभी भलो मानुस कुतूहल वश, शून्य भाव,
जानो अनजानो मा सही-गलत को फर्क करेव बिना पोस्ट शेयर कर सेती।
सबच पोस्ट वाजिब रहेती या होयेच पाहिजे एवं भी समझकर चलनो उचित
नाहय, सबको स्वागतवन्दन से सब समाज का हितैषी सेती ।
सबको मनमा आपलो समाज की मूलभूत
संस्कृति, बोली-भाषा, रीति-रिवाज, ला जोपासन की भावना लक अग्रसर सेती।
हर बात को उत्तर-प्रतिउत्तर जरूरी नाहय कभी कोणी को संज्ञान मा काही बात
नही रवहति पर दिल-मनसा साफ रवहसे।
हर सामाजिक लोग बहुत धीरज लका काम करता आय रह्या सेती सबकी
तारीफ बन से।
आपलो उद्देश्य को भटकाव न करता निरंतर आपलो कार्य ला कर रह्या सेती या
बात प्रशंसनीय से।
कभी - कभी लिखनो मा भी भूल-चुक या टाइपिंग चूक भी होय जासे ...
कोणी ला काही न कव्हता सब प्रेमपूर्वक सबको सहयोग लक आपलो कार्य
यथावत जारी ठेवनो बहुत महत्वपूर्ण से।
सबको प्रयास लक 36 कुल को इतिहास, पोवारी बोली अना संस्कृति ला नवी
पहचान मिली से येन प्रखर मेहनत ला शत शत नमन से.....सबको ह्रदय को
अनन्त गहराई लक धन्यवाद से ।
तुमरो कारंवा असोच नवनीत समाज उत्थान मा लगेव रव्ह याच माय
गढ़कालिका को चरण मा अर्जी से।
जय पोवार/पंवार
जय पोवारी।
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22.
राखी को त्योहार
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श्रावणी पुनवा /राखी को त्योहार//
गरोको वु हार/ भाई मोरो//१//
राखी को बंधन/ प्रेम को वु धागा//
नोको देजो दगा/ भाई मोरो//२//
लहानपण को /तोरो मोरो साथ//
धरशानी हात /जात होती//३//
द्रोपदी कृष्ण ला/बांधीस गा राखी//
बहीण ना सखी/जन्म भर //४//
लक्ष्मी न बली ला /राखीकीच पाती//
सोळाईस पती /द्वार पाल//५//
गणेश की ताई/मनसा वा बाई//
जब घर आई/राखी साती//६//
गणेश का टूरा /लाभ शुभ बरा//
बहीण आम्हला/पाहिजेणा//७//
गणेश को बल /संतोषी उत्पती//
रूद्धी सिद्धी,पती/ गणेशजी//८//
पोरस ला राखी/रोक्साना की भक्ती//
मंग भेटी शक्ती /पोरसला//९//
यम ला यमुना /राखी बांधू भाई//
अमर वा भई /जगत मा//१०//
कर्णावती मान /हुमायु ला भाई//
राखी साती गई /संकट मा //११//
भाई ताई प्यार/राखी को त्योहार//
पती पत्नी प्यार/ आय बापा//१२//
राखी को बंधन /एकमेक प्यार//
भवसिंधु पार /होय जाय //१३//
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ह.भ.प.डी.पी.राहांगडाले
गोंदिया
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23.
पोवारी साहित्य सरिता भाग - ५८
हर घर मा तिरंगा
(दुहेरी अष्टाक्षरी काव्य)
चलो अमृत उत्सव, स्वतंत्रता को मनावो |
हर घर मा तिरंगा, शान लका फयरावो ||धृ||
तीन रंग को तिरंगा, व-या केसरी से रंग |
त्याग बलिदान रुप, देखावसे झेंडा संग ||
मर मिट्या बलिदानी, याद उनकी करावो |
हर घर मा तिरंगा, शान लका फयरावो ||१||
रंग पांढरो बिचमा, चक्र अशोक संग मा |
शांति एकता प्रकाश, मिल गयीसे रंग मा ||
सुख शांति मिलनला, एकजुट होय जावो |
हर घर मा तिरंगा, शान लका फयरावो ||२||
खाल्या रंग से हिवरो, माय धरती को खास |
येन रंग मा दिससे, मोरो देश को विकास ||
करो प्रगती सप्पाई, खुशहाली बी मनावो |
हर घर मा तिरंगा, शान लका फयरावो ||३||
रंग चक्र को से निलो, सत्य गुणलं निपुण |
आरी चोवीस देखावं, पुरा मानुस का गुण ||
देशप्रेम हित लका, गंगा ज्ञान की बहावो |
हर घर मा तिरंगा, शान लका फयरावो ||४||
© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१
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24.
दर्शनीय स्थल झिरी
प्रकृति को सुंदर नजारा जवाहरनगर झिरी रोड पर देखनला भेट रही से |कवडसी गांव को दक्षिण मा आयुध निर्माणी को पहाड़ी को कोर्यामा लका् एक सुंदर सो धबधबा यन बरसात को दिवस मा पहाड़ी को चोटी लका पहाडी कोपायथा मा मोठो मोठो गोटाईन परा धबधब पडसे | पक्षियों को चहचहाहट को संगमा तुम्ही यन मानसून को दिवस मा यन प्राकृतिक स्थल पर मसूरी (उत्तराखंड) को केंपटी फॉल को मजा लेय सक् सेव | यव नजारा मानसून को दिवस मा जब बहुत ज्यादा बरसात आवसे तभ देखन ला भेटसे | यन धबधबा को 200 मीटर को दूरी पर झिरी देवस्थान से, जहां पर शंकर भगवान को मंदिर से, यन धार्मिक स्थल जवड भी एक लहानसो झरना से, यव साल भर झरत रव्हसे, यहा पर महाशिवरात्रि को दिवस मोठी यात्रा भर से | तूम्ही यन धार्मिक स्थल को भी दर्शन कर सक सेव | कवडसी लका जहारनगर वरी पहाड़ी को समांतर मा एक सर्पमोडी वालो रोड से , मानो यव पहाड़ी को आंचल आय असो प्रतीत होसे | तुम्ही यन रोड पर गाड़ी चलावन को लुफ्तभी लेय सक सेव | यन भाग दौड़ भरी जिंदगी मा राहत अन् सुकून को पल को आनंद लेन साठी कही दुर जान की आवश्यकता नाहाय , तुम्ही यन् प्रकृतिको सानिध्य मा आपलो परिवार को संगमा काही पल बितायकर मन ला आनंदित कर सक् सेव |
राजेश बिसेन
जवाहरनगर भंडारा
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25.
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आमरो जवर कोणतीच दैविक शक्ति नाहाय
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पोवार समाज का आराध्य चक्रवर्ती सम्राट राजा भोज , कुलदेवी माहामाया गढ़कालिका अना चरचरमा वास करणारी सदगुरूदेव शक्तीला नमन , कुलश्रेष्ठ ब्रम्हनिष्ठ निष्ठावान प्रयत्नवादी कर्तुत्वनिष्ठ सजातीय समाज बंधुला हिरदीलाल ठाकरे को सादर प्रणाम , येनं वसुंधरापर एकनिष्ठ भाव लक कुशलता पूर्वक समाजोत्थान करनेवाला असंख्य कुशल समाजसेवी इनला मोरी करबद्ध प्रार्थना से की जबं जबं भी आम्ही समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण को कार्य बहुत ही कुशलता पूर्वक करं सेजन तबं तबं आपलोच समाज का काही काही षड्यंत्रकारी खबराकारी माणसं आमरोच विरुद्ध केतरो छल-कपट व द्वेष की भावना ठेवं सेत येव आमला मालूम नही रव्ह व आपलोच परिवार आपलो प्रती केतरो नाकारात्मक या साकारात्मक बिचर ठेवंसे येव भी आमला मालूम नही रव्ह तसोच आपलाच ग्रामवासी व रिस्तेदार व मित्रमंडली भी आमरो विरुद्ध केतरा नाकारात्मक या साकारात्मक विचार ठेवं सेत येव कभी भी आमला मालूम नही रव्ह , कारण की येव सब मालूम करन साती आपलो जवर कोणतीच दैविक शक्ति व ईश्वरशक्ति नाहाय अना आम्ही दुसरोको मन का आंतरिक भाव जान सकं सेजन असा भी आम्ही अंतरज्ञानी नही , खोद खाद धरती सहे , काट कुट बनराय , और कुटिल बचन साधू संत सहे ,औरों से साहा नही जाय !!
जबं भी कुशलता पूर्वक व निर्भयता पुर्वक समाजोत्थान करता करता आमला आपलो समाज को समाजोत्थान व समाज को स्वाभिमान साती अना समाज को संस्कृति व संस्कार तसोच आपलो समाज को सामाजिक संगठनात्मक एकात्मता व समाजमा प्रामाणिकता आध्यात्मिकता सहनशीलता व शिस्तपालन साती आमला चांगलो काजक करता आहे या विचारधारा सिर्फ अना सिर्फ आपलोलाच मालूम रव्ह से , आपलो परिवार को संरक्षण व बाल-बच्च को सर्वोच्च उच्चशिक्षा साती आपलो नेतृत्व कसो रहे पायजे येव आपलोलाच मालूम रव्ह से , आपलो जन्मभूमिला विकसित व आपलो गांवला एक आदर्श गांव बनावन साती आमला कसा प्रयत्न करता आहेत पायजे ये उद्देश्य सिर्फ अना सिर्फ आपलोलाच मालूम रव्ह से , आपला रिस्तेदार व मित्रमंडली इनको संगमा आपला साकारात्मक बिचर कसा रहेत पायजे या जवाबदारी सिर्फ अना सिर्फ आपलोलाच मालूम रव्ह से , आता मोला सांगो जे जे गोष्टी आपलोला मालूमच नाहात की दुसरो व्यक्ती आमरो विरुद्ध नाकारात्मक विचार या साकारात्मक विचार ठेवंसे वोनं गोष्टी पर बिचार करता करता आपलो टाइम खराब करन को बजाय जे जे गोष्टी आमला आपलो समाज को समाजोत्थान , आपली जन्मभूमि आपलो गांव ला एक आदर्श गांव बनावन साती , आपलो परिवारला खूश ठेवन साती , आपला रिस्तेदार व मित्रमंडली इनको उत्थान साती आमला चांगलो काजक करता आहे येव सिर्फ अना सिर्फ आपलोला मालूम सेत अना आम्ही वोय गोष्टी ( उद्देश ) पुरा कर सकं सेजन का ? वोको पर ज्यादा लक ज्यादा ध्यान देन की आवश्यकता से असो मोला लगंसे , जो रहेगा जिन्दा उसी की होगी निन्दा बस तारिफ तो समशानभुमी में होंगी !!
!!! लेखक !!!
श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर
पोवार समाज एकता मंच पुर्व नागपुर
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26.
आनन आवजो का भाऊ🙏😚
आनन आहु कहके आयोस नही भाऊ बाट देखसे तोरी बहना,
छः मास बीत गया भाऊ आयी नही माहेर बाट देख देख थक गयी बहना,
अवदां को साल राखी मा आनन आहे मोरो भाऊ सोचत सोचत बीत गयो सावन महीना,
माय अजी की याद बिकट आयी से जीव कर उडा़यकर आय जाहु जसी उड मैना,
काही नोको नेंग देजो राखी को भाऊ मोला ,याद करत रवजो दर साल राखी मा याच कव तोरी बहना,
भौजी अना भज्जो की बनु सखी सहेली सागजो खैर खबर हाथ जोड तोरी बहना,
आनन आहु कहके आयोस नही भाऊ बाट देखसे तोरी बहना,
छः मास बीत गया भाऊ आयी नही माहेर बाट देख देख थक गयी तोरी बहना।।
विद्या बिसेन
बालाघाट
🙏🙏
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#अनमोल रत्न वृक्ष #
धरा का अनमोल रत्न झाड़ आती,
एक बार मा तीन काम कर सेती।
ठंडी छाया, शुद्ध हवा आना धरती की काया ,
येन तिन्हि रूप मा जीवन समाया।।
धनी _गरीब, शक्ति _आशक्ति ,
ये व्यक्तिगत उन्नति का आंकड़ा आती।
पर झाड़ लगाए पुण्य जो पाय,
असो धरा पर काम दूसरो नहाय।।
धन, सम्पत्ति आना वंश की वृद्धि,
ये सब एक घर की खुशी आती।
इनको तुलना मा एक झाड़,
पुरो समाज को कर से उद्धार।।
फलदार, फूलदार आना छायादार,
ये सब धरती की शोभा आत।
जो भी बढ़ाएं इनकी गिनती,
ओन पुरुष ला होय मोक्ष की प्राप्ति।।
एक झाड़ आना एक बेहर,
परोपकार का आती ये घर।
इनको लक जुड़ी से आराम ध्यान।
जिनको भोग लक होय मन प्रसन्न।।
धरा मा सेती जाल बिछाय कर,
हवा मा सेती सिर उठाय कर।
टहनी आना पत्ता को साया,
सबला देसेती प्राण वायु ना छाया।।
यशवंत कटरे
जबलपुर १२/०८/२०२२
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27.
🌹अनमोल वचन🌹
गुरु नानक
स्वामी विवेकानंंद न सन १८९७ मा लाहौर मा ,भाषण देई होतीन. स्वामी विवेकानंद को कथन से कि "येनच् स्थान पर काही काल पहेले दयावान नानक न् सकल संसारसाठी अद्भुत प्रेम को प्रचार करीन.येन् स्थान परच उनको विशाल ह्रदय का पट (दरवाजा) खुल्या होता,ना उनकी भुजा फैली होती जिनन् आपलो आलिंगन मा संपूर्ण संसार को केवल हिंदूच नहीं बल्कि मुसलमान ला भी लेय लेई होतीन."
गुरु नानक की वाणी
रामकृष्ण मठ, नागपूर(पृष्ठ क्र. ६)
क्रमशः ...........
संकलन -- डी.के. भगत
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