"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका, June 2021 to June 2022
"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका, June 2022
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"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका
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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा(मायबोली), पोवारी(पंवारी) में बच्चों की पत्रिका, "झुंझुरका" निश्चित ही नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति और भाषा से परिचित कराती है। छत्तीस कुल का पंवार(पोवार) समाज बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में बसा है और पोवारी बोली ही समाज की मुख्य मातृभाषा है। इस भाषा के अस्तित्व को बचाये रखने और इसका नई पीढ़ी तक प्रचार-प्रसार के लिए इस मासिक e-पत्रिका, का योगदान सराहनीय है।
अठारवीं सदी में पोवार(पंवार) समाज मालवा-राजपुताना से नगरधन-नागपुर होते हुए विशाल वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा है। इतने विशाल क्षेत्र में बसने के कारण पोवारी बोली में कुछ क्षेत्रवार विभिन्नता भी देखने में आती है पर मूल पोवारी बोली और संस्कृति का स्वरूप सब तरफ समान है। आज जरूरत है कि अपने पूरखों की इस विरासत को सहेजकर रखें और इसे मूल स्वरूप में आने वाली पीढियों को सौंपे।
छत्तीस कुल से सजा पोवार(पंवार) समाज ने माँ वैनगंगा की पावन धरती पर खूब तरक्की की है और इस घने जंगल के क्षेत्र को कृषि प्रधान बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। साथ में अपने राजपुताना क्षत्रिय वैभव को बचाकर भी रखा है। विकास के साथ समाज ने आधुनिकता की दौड़ में अपनी विरासत, पोवारी बोली को कुछ खोना शुरू कर दिया, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी कलम से इसे संजोना शुरू कर दिया है और समाज को जागृत करने हेतु काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
भाषा और संस्कृति, किसी भी समाज की महान विरासत होती है और इसके पतन से समाज की पहचान खो जाति है और समाज का भी पतन भी संभव है। ऐसे ही छत्तीस कुर के पोवार/पंवार समाज की महान ऐतिहासिक विरासत, "पोवारी संस्कृति" है, जिसे समाज को हर हाल में बचाना ही होगा। अपनी संस्कृति और पहचान का रक्षण, हर किसी का धर्म हैं। भारत का संविधान भी इसकी पूरी स्वतंत्रता देता है और इसी दायरे में रहकर सभी पोवार भाई-बहनों को आगे आकर अपनी महान विरासत, भाषा, पुरातन सनातनी परंपराओं और रीति-रिवाज का संरक्षण और संवर्धन करना है।
यह e-पत्रिका, "झुंझुरका", समाज के युवाओं की अपनी मातृभाषा/मायबोली को बचाने की शानदार पहल है। इसी प्रकार और भी निरन्तर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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