पोवारी साहित्य सरिता भाग ५६



पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित:-पोवारी साहित्य सरिता भाग ५६

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पोवारी कविता, आत्मकथा, संस्मरण, एकांकी, निबंध, कहानी, लघुकथा , पत्र, ऐतिहासिक समाजिक, सांस्कृतिक लेख


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       आयोजक

डॉ. हरगोविंद टेंभरे


        मार्गदर्शक

श्री. व्ही. बी.देशमुख

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1. 

 नव-चेतना को महापर्व (२०१८लक आगे)

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नव- चेतना अस्मिता को येव पर्व से l

समाज  निर्माण को येव महापर्व से ll 


समाज ला बोली को अधिष्ठान से l

समाज ला धर्म को अधिष्ठान से l

समाज ला अधिष्ठान से इतिहास को,

नव- चेतना अस्मिता को येव पर्व से ll


भाषिक चेतना को येव पर्व से l

धार्मिक चेतना  को येव पर्व  से l

येव पर्व से ऐतिहासिक चेतना को, 

नव- चेतना अस्मिता को येव पर्व से  ll


भाषिक अस्मिता को येव पर्व से l

धार्मिक अस्मिता को येव पर्व से l

येव पर्व से सामाजिक अस्मिता को,

नव-चेतना अस्मिता को येव पर्व से ll


मातृभाषा संवर्धन को येव पर्व से l

संस्कृति संवर्धन को येव पर्व से l

येव पर्व से पहचान को जतन को ,

नव-चेतना अस्मिता को येव पर्व से ll


इतिहासकार  प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/७/२०२२.

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2, 

पोवारी भाषिक अभियान

(Powari Linguistic Movement)

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युवाओं को साथ होना l

लिखने वाला हाथ होना l

बोली बनें आता भाषा,

मन मा एकच बात होना ll


भावों की बरसात होना l

समाज को प्रतिसाद होना l

बोली बनें आता भाषा,

मन मा एकच बात होना ll


ना वाद ना विवाद होना l

समाज मा संवाद होना l

बोली बनें आता भाषा,

मन मा एकच बात होना ll


मन मा ना अदावत होना l

मन मा ना खिलाफत होना l

बोली बनें आता भाषा,

मन मा एकच बात होना ll


इतिहासकार प्राचर्य ओसीपटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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3. 

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*गांव  आपलो सोड़के आयेव *

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मी नवो शहर मा आयेव l

गांव आपलो सोड़ के आयेव l

छूट गयेव स्वाभाविक जीवन ,

औपचारिक जीवन यहां पायेव ll


यंत्रों की भिनभिनाहट मा आयेव l

गायी -भसी सोड़ के आयेव l

छूट गयी पूर्वजों की खेती बाड़ी,

यहां धन-दौलत की उलाढ़ाल पायेव ll


पैसा को बाजार मा आयेव l

निच्छल प्रेम सोड़ के आयेव l

छूट गया माई -प्रित का संबंध ,

यहां हर चीज  निलाम होता पायेव ll


जीवन संघर्ष साती आयेव l

मन आपलो मारके आयेव l

छूट गया भाई-बंध , संगी-साथी,

यहां चकाचौंध मा अशांति पायेव ll


इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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4.

मातृभाषा कालजयी बनाओं

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लताओं ,साहित्यिकों पर

सुंगधित फूल बरसाओ l

हवाओं, साहित्यिकों की

कीर्ति चौफेर फैलाओं l

नवी भाषिक क्रांति आयी से 

मातृभाषा को गौरव बढ़ाओ ll


चंदामामा,साहित्यिकों की

लेखनी ला सौम्यता देओ l

सूर्यदेवा , साहित्यिकों की 

लेखनी ला तेजस्विता देओ l

नवी भाषिक क्रांति आयी से 

मातृभाषा ला कालजयी बनाओ ll


हे मेघों,साहित्यिकों को

मन ला भावसंपृक्त बनाओं l

हे आकाश, साहित्यिकों को

मन ला विशाल बनाओं l

भाषिक क्रांति आयी से 

मातृभाषा ला कालजयी बनाओं ll


हे नदियों,साहित्यिकों की

लेखनी ला  बव्हनों सिखाओ l

हे  सागर, साहित्यिकों मा 

आपली गहराई देओ  l   

नवी भाषिक क्रांति आयी से 

मातृभाषा  ला कालजयी बनाओं  ll


इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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5. 

आमरो समाज को परिचय 

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 हर हर महादेव को नारा से l

पोवारी नाव सबला प्यारा से l

मातृभाषा आमरी से पोवारी ,

संस्कृति की  एकच धारा से ll


महादेव आमरो कुलदेवता से l

कुलदेवी माता गढ़कालिका से l

मातृभाषा आमरी से पोवारी,

संस्कृति की एकच धारा  से ll


प्रभु श्रीराम आराध्य देवता से l

भोज विक्रम सीन रिश्तों -नाता से l

मातृभाषा आमरी से पोवारी,

संस्कृति की एकच धारा से ll


छत्तीस कुल को  कबिला से l

एक-दूजोंसीन  रिश्ता- नाता से l

मातृभाषा आमरी से पोवारी,

संस्कृति की एकच धारा से ll


 इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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6. 

आओ ! पोवारी ला भाषा बनावबी

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       (भाव:- पोवारी भाषा  की रचना यदि साफ- सुथरी रहें त् पोवारी साहित्य ताज़गी पूर्ण दिसे . ताज़गीपूर्ण  साहित्य लक पोवारी बोली या सहज भाषा को स्तर पर पहुंचे. )


कविता लिखों साफ सुथरी

लगे पाहिजे ताजगी भरी l

मेहनत करनों से तुम्हाला,

पोवारी या भाषा बनत वरि ll


कविता होना माधुर्य भरी

भावना लक होना भरीपूरी l

मेहनत करनों से तुम्हाला

पोवारी या भाषा बनत वरि ll


पोवारी या से शान आमरी 

येवच भाव जगाओं अंतरी l

मेहनत करनों से तुम्हाला

पोवारी या भाषा बनत वरि ll


अविचल आगे बढ़ो तुम्हीं

मंजिल हासिल होत वरि l

अविश्रांत चलनों से तुम्हाला

पोवारी या भाषा बनत वरि ll


इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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7. 

पेरम् जतावनो सोपो से

पेरम् निभावनो कठीण से

नातो बनावनो सरल से 

रिस्ता संभालनो कठीण से... 

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श्री छगनलाल राहांगडाले खापरखेडा 

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8. 

”आमी पोवार”


जीवन को सार।

प्यार, भाईचारा भरमार॥

अपनाओ आपलोला येन् संसार।

येवच से पोवारी संस्कृती को उपकार॥

कर्तुत्ववान आमी पोवार।

आजन आमी मुलवासी धार॥

राजा भोज, सम्राट विक्रम आमरी पहचान।

साधो रहेनो अन् बिचार महान॥

डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, व्यवसायी, नेता अन् आमी किसान।

वैनगंगा को आंचल मा बस्या आमी ३६ कुर का पोवार॥


✍️ डॉ विशाल जियालाल बिसेन

मोरो गाँव: देवसर्रा ता: तुमसर जिल्हा : भंडारा (२३.०७.२०२२)

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9.

 बाल साहित्य

 पिकेव पान 

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ऐक गाव मा शंकर नाव को महाजन रव. खुरापती दिमाखालक नवा नवा कारस्थान रचत रव. ओला बडी मज्जा आव . जब ओको बेटी को बिह्या करण को समय आयेव तब ओन नवर देव को बापला आपली असीअट मान्य करण लगवाइस . बराती तीस को अंदरका च आयेत पाहिजेत. तीस को वऱ्या का अना बुजरूक इनला घरच ठेयेत पहिजेत . या बात काही समज मा आवत नव्हती. येन कारण लक गाव को दादी ला सांगण गयेव . दादी बडो अनुभवी अना ग्यानी. ओन बात ला समजन की कोशिस करीस अना कवण लगेव, दार मा काहीतरी कारो से भाऊ. जवान बराती संग ऐक शिकेव पिकेव पान ला उनको संग पठा वन की जरुरत से. येन बात की खबर उनला नही लगे पाहिजे. तसी ओकी व्यवस्था गुपचूप करकर पडदा लगेव रेहकापर ठेये पाहिजे. बिह्या मा अडचण पडेव पर ऐक जन चुपचाप जायकर् ओको संग सल्ला मसलत करेव पर तूमरो काम फत्य होय जाये.

    लगीन लगावन को दिन नवजवान बराती की जानकी तयारी भयी. आत्माराम बुजरूक ला गुपचूप रेहकापर बसायेव गयेव. नवरी को घर नाच गाना भया. धुमधाम लक लगीन लगी. जेवण मांडोमा जवान बरातकी पंगत जेवण ला बसी. नवरी को बाप न आपली अट की घोषणा करीस. तसोच बरातिको उजवो हात ला कमची को बेंडेज बांधेव गयेव. आता जेवण करण की पंचाइत पडी. बँडेज लगेव हात लक घास तोंड मा कसो जाये ऐको बीचार मा सब जन ऐक दुसरो कर देखन लग्या. रमेश ला दादी की बात यादआयी अना चुपचाप जाय कर आत्मारामला हकीगत सांगीस. घबरावण की जरुरत नहीं से. बंडेज भरयोव हात लक बाजू वालोला जेवावो म्हणजे भयोव. रमेश चुपचाप आपलो जागापर बस गयेव. अना काना फुसी करण लगेव. मी जसो करू तसो सब जन करण लगो. बराती बेंडेज बंधेव हात लक दुसरोला घास भरावण लग्या. सब आनंद लक जेवण लग्या. येव देखकर शंकर ला शंका आवन लगी. अन ओन रेहका मा बसेव शिकेव आत्मारामला खोज नि कालीस . सांगणं को तात्पर्य येव से की पिकेव पान सरिखा शिकेव बुजरूक इनको आदर करे पाहिजे. इनका अनुभव का बोल अडचण पडेव पर बडा काम मा आवसेती .

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पोवारी साहित्य सरिता भाग ५६ सहभाग

हेमंत पटले धामणगाव (आमगाव)

९२७२११६५०१

दिनांक:२३:७:२०२२

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10. 

आओ ! झोपड़ी ला वाड़ा बनावबी 

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(भाव:-   पोवारी बोली झोपड़ी वानी से.जहां सामान कम अना मामुली किंमत की रव्ह् से. पोवारी मा विपुल व दर्जेदार साहित्य निर्मित होयेव पर येला  भाषा को दर्जा प्राप्त होये , वाड़ा को स्वरुप प्राप्त होय जाये अना  वाड़ा वानी मशहूर होय जाये.)


पोवारी  ला भाषा बनावबी l

आओ! झोपड़ी ला वाड़ा बनावबी ll 


साफ -सुथरी रचना लिखबी l

क्लिष्टता ला आता दूर करबी l

आओ! थोड़ी अकल लगायके,

पोवारी  ला भाषा बनावबी ll

आओ ! झोपड़ी ला...


ताज़गी भरी रचना लिखबी l

हेंगली स्वरुप ला सुधारबी l

आओ! थोड़ी अकल  लगायके,

पोवारी ला भाषा बनावबी ll

आओ! झोपड़ी ला...


व्याकरण को अनुसार लिखबी l

शुद्धलेखन  की  कोशिश करबी l

आओ थोड़ी  अकल लगायके,

पोवारी  ला भाषा बनावबी ll

आओ! झोपड़ी ला...


बोली को रुप संवारके लिखबी l

बोली को रुप निखारके लिखबी l

आओ थोड़ी अकल लगायके,

पोवारी  ला भाषा बनावबी ll

आओ ! झोपड़ी ला...


 इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

शनि.२३/०७/२०२२.

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11. 

पोवारी साहित्य सरिता भाग - ५६


🌷गड़कालिका तू धारवाली🌷

         (हरिगीतिका छंद)


लगावली - गागालगा गागालगा गा, गालगा गागालगा

मापनी - २२१२ २२१२ २, २१२ २२१२

हरेक पंक्ति मात्रा भार - २८, यती - १६,१२ मात्रापर


गड़कालिका तू धारवाली, 

                 मालवा की अंबिका |

तू स्वामिनी पोवार कुल की, 

                 भोज की जगदंबिका ||

से धार नगरी मा जलाशय,

                 नाव से सागर तरा |

ओको किनारो पर बसी तू,

                 माय सबकी गड़परा ||१||


पोवार जालमसिंह का बी,

                 भय गया मन्नत पुरा |

आधार बुड़पण मा मिलेतो,

                 एक सुंदरसो टुरा ||

माता भवानी को कृपा लक,

                 वंश से पोवार को |

से ख्याति फैली संसार मा,

                 नाव मोठो धार को ||२||


सब देशभर का आवसेती,

                 माय तोरो गड़परा |

मन्नत सपा करसेस पूरी,

                 भक्त सेती जे खरा ||

करदे सुखी संसार मोरो, 

                 मी करूसू प्रार्थना |

गोकुल कसे स्वीकारले तू, 

                 माय मोरी याचना ||३||


© इंजि. गोवर्धन बिसेन "गोकुल" 

    गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१

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12. 

🪷 पोवारी साहित्य सरिता🪷

      ✍🏻 पोवारी लेख✍🏻 

  🌀   जीवन का रस्ता🌀

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आम्हरो जीवनरूपी रस्ता मा कई मोड़ आवसेती। दुःख अना सुःख यव दुही यनपरा जावतों जावतो भेटोसेती। सुःख को बेरा को भान क्षणिक अना दुःख को बेरा लम्बा रहवसेती। दुःख को बेरामा असो लगसे की यव आपरी जिंदगानी की असफलता से, परा यव बात सही नही कय जायसिक से। काहे की सुःख अना दुःख दुही जीवन रस्ता का भाग आती त् येक ला गोढ़वानी अना दुसरो ला कढ़ू कसो कह सिकसेजन परा यव सच त् से।  येको काईत् उपाय रहे की दुःखको बेराला, जीवन की असफलता नही बनन देनको से अना केतरो बी मोठो दुःख आये त् कठिन रस्ता ला पार करनोच पढ़े।

येको उपाय से की हमला आपरो आराध्य देवपरा श्रद्धा राख़नों से अना उनला सुमरनो से की तुम्ही आता मोला रस्ता देखाओ।

भागवत धर्म सार यव कसे-

"ध्येयं सदा परिभवघ्नमभीष्टदोहं

तीर्थास्पदं शिवविरिञ्चिनुतं शरण्यम्।

भृत्यार्तिहं प्रणतपाल भवाब्धिपोतं

वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्॥"

            हे मोरो शरणागत-रक्षक पुरुषोत्तम! तुमरो पाव की मी वंदना करूसु। यव सदा ध्यान करन का योग्य, अवनती ला ख़तम करन वाला अना साजरा फल देनवारा आती। भक्त का दुःख प्रभुला सुमरनमा हर जासे। तुम्ही तीर्थ का स्वरूप सेव। ब्रह्मा, महेश अना शिव का स्वरूप तुममा समाहित से। तुमरी भक्ति की नौकालक़ यव जीवन रूपी मोठो सागर ला पर पाय जाबिन।

यव वंदना भक्तला मोठी हिम्मत देहे अन दुःख ला सहन कर जीवनरूपी रस्ता ला पार करन का बल भेटे असो भरुषा से।

✍🏻 ऋषि बिसेन, खामघाट(बालाघाट)

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13. 

पोवार भाऊ

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आवो आवो पोवार भाऊ, संघटन मा आवो.

पोवार जात की महिमा, दुनिया मा बढावो ||टेक||

पोवरी का दस्तुर हर घर मा करे पाहिजे.

पुरखाईन की धरोवर सब नही सोळे पाहिजे.

आन बाण शान लक सब रिवाज मनावो ||१||

टुरू पोटुला पहिले शिकण धाडे पाहिजे.

पढ लिख कर ओला मोठो बनाये पाहिजे.

हुशारी को काम से, सब घर घर जगावो ||२||

येको वोको निंदा बदीला नही करे पाहिजे.

चांगलो काम की खूब तारीफ करे पाहिजे.

सेवा भाव करन की मनमा ज्योत जगावो ||३||

काट कसर वाला पोवार जात ला कसेती.

काम धंदा आपला जुगाड लक कर सेती.

मिल जुलकर रव्हण का भाव मस्त ठेवो ||४||

पोवार संग पोवरी बोलीला बोले पाहिजे.

आपली माय बोली पर गर्व करे पाहिजे.

हेमंत को बीचार ला सब घर पोहचावो ||५||

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पोवरी साहित्य सरिता भाग ५६ सहभाग

हेमंत पटले धामणगाव (आमगाव)

दिनांक २४:७:२०२२

९२७२११६५०१

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14, 

🪷 पोवारी साहित्य सरिता🪷


     🚩 मालवा का पंवार🚩


पुरखाइन की शाला होती भोजशाला,

सस्थापक जेको वाग्देवी भक्त भोजदेव।

नगरधनमा पंवार राज्य स्थापित भयो,

इत शासन करनला आया राजा लक्ष्मणदेव।।


मुग़ल का अत्याचार ख़तम करनला,

बुलंदबख्तला याद आयिन मालवा का पंवार।

निवेदन भयो वीर क्षत्रिय योद्धाओं लक़, 

आयकन देवो यन मध्यभारतला संवार।।


माय वैनगंगा को पावन आंचल मा,

बस गयीन धारानगरी का वीर पंवार।

जित चली माय की पावन धार,

पंवार समाज ना करीन मोठो उद्धार।।


सनातनी धर्मका करसेती पालन,

हिंदुत्व का पुरोधा आती क्षत्रिय पंवार।

माय वैनगंगा की पावन माटी मा,

बनीन उन्नत काश्तकारी का आनहार।।


बुद्धि अना बल का धनी आती पंवार,

आपरी वीरता लक देईन पृथ्वीला संवार।

वार जिनको कबी नही गयो खाली,

तलवार लक़ भया अन्यायी का सीना पार।।


✍️ ऋषि बिसेन, बालाघाट

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15. 

🌻 पोवारी साहित्य सरिता भाग ५६ 🌻


ऑनलाइन पास भयव


जसो जसो कोरोना जवर आयव,

कालेज लक बुलावा आयव ll


ऑनलाइन सिकावनो शुरू भयव,

एक दिन बी कालेज नहीं गयव ll


मोरो मन मा बिचार बहुत आयव,

बटा अउंदा कालेज नही गयव ll


मोबाइल पर कालेज कसो आयव,

मन मा यव बिचार पयले आयव ll


किताब कापी पेन झोरा मा ठेयेव,

आता स्कूल मोबाइल मा आयव ll


पेपर को जब टाइम टेबल आयव,

ऑनलाइन से लिखस्यान आयव ll


देख स्यानी बिचार बहुत आयव,

कसो ऑनलाइन जमानों आयव ll


आनलाइन को समझ नही आयव,

पेपर ऑनलाइन मी कसो देयेव ll


निकाल मोरो मोबाइल पर आयव,

देख स्यानी मि बहुत घबरायव ll


कसो मि पास भयव देख स्यानी,

मोरो मन भाऊ बहुत चकरायव ll


दूय साल वरी कोरोना जब रहेंव,

बिचार मी पास कसो भयव ll


ऑनलाइन मि परीक्षा जब देयेव,

निकाल मोरो पास को आयव ll


दिमाग को दही मोरो भाऊ भयव 

बिचार बटा पास मि कसो भयव ll


डॉ हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया 

मो.९६७३१७८४२४🙏🙏

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16. 

पोवारी साहित्य सरिता भाग -५६


🌷झम झम या बरसात (बाल कविता)🌷

          (बाराक्षरी काव्य)


बादर गरज्या  धड़ाम धड़ाम |

बिजली कड़की कड़ाम कड़ाम ||१||


निकल्या मोर देख बादर कारा |

नाचके  मंग  फैलाईन  पिसारा ||२||


बरसी  झम  झम  या  बरसात |

खेलन पानीमा मिली से सौगात ||३||


चलावो नाली मा कागद को डोंगा |

बजावो झुक झुक गाड़ीको पोंगा ||४||


भेपका  बोंबलं  डराव डराव |

झुलीर संगमा गानाको सराव ||५||


भयेव पानीलका रस्ता सपाट |

देखसे माय  घरं  तुमरी  बाट ||६||


खेलनो भयेव  आता मनमानी |

सपाई घरं जावो स्यायनोवानी ||७||


© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल" 

    गोंदिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१

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17. 

साहित्यिकों पर  फुलों   की वर्षा  !

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          पोवारी बोली या भाषा को स्वरुप मा विकसित होये पाहिजे,असा प्रयास विगत चार साल पासून अविरत शुरू सेत. येको कारण  "समाज न् साहित्यिकों पर   फुलों की वर्षा करके उनको अभिनन्दन करें पाहिजे."  असी एक अफलातून कल्पना  शायद मोरों मन मा अदृश्य स्वरुप मा रहीं रहें. परिणामस्वरुप  शनि. २३/०७/२०२२ की पोवारी साहित्य सरिता भाग ५६ साती "मातृभाषा कालजयी बनाओं " येन् कविता की रचना मोरी लेखनी को माध्यम लक साकार भयी . येन् कविता मा "लताओं साहित्यिकों पर सुगंधित फूल बरसाओ l " या प्रथम पंक्ति अनायास अवतरित भी भय गयी.

        उपर्युक्त   कविता पर  श्री ऋषिकेश गौतम द्वारा  एक अभिप्राय देयेव

 गयेव  कि -"झुंझूरका  बालमासिक" को कार्य समाज द्वारा फूलों की वर्षा  करके गौरवान्वित करन लाईक से."  येव  एक संयुक्तिक अभिप्राय  से. येन् अभिप्राय सीन मी पूर्णतः सहमत सेव.

         नवीन साहित्य पर काही अभिप्राय असा आय जासेती कि  वय मोला स्वयं ला अंतर्मुख करके  मोरों चिंतन  ला  अलग दिशा मा मोड़ देसेती.  श्री ऋषिकेश गौतम इनको अभिप्राय न् भी  मोला असोच प्रभावित करीस. विचार करतां -करतां मोरों मन मा अकस्मात एक विचार प्रगट भयेव कि "आपलो समाज को एक व्यक्ति पोवारी साहित्यिकों पर चुपचाप,कौनसो भी गाजा- बाजा  न् करता नि:स्पृह भाव लक अविरत फुलों की वर्षा करके उनको अभिनन्दन कर रही से. "

        मोरो मन की बात आयक के आता सब स्वजनों को मन मा  विचार उत्पन्न भयी रहें कि  "आमी त् कोनीला साहित्यिकों‌ पर  सुगंधित फुलों को बर्षाव करता देख्याच नहीं."  येन् विचार को साथोसाथ  सबको मन मा या जिज्ञासा भी उत्पन्न भयी रहें कि "असो येव परोपकारी, समाज हितकारी, महान व्यक्ति कौन होये ?"

         येन् व्यक्ति सीन  सब स्वजन सुपरिचित सेत . लेकिन अलग नज़रिया को कारण येव व्यक्ति सबला दिसके भी नहीं दिसेव. येव व्यक्ति अन्य कोनी नोहोय !  ये व्यक्ति आत, तुमला -आमला -सबला सुपरिचित श्री ऋषि बिसेन (IRS) !  जिनला सबजन  प्रेम पूर्वक ऋषि भैया को नाव लक संबोधित कर् सेत.

        ऋषि बिसेन ये कौनसो भी पोवारी साहित्यिक की चांगली रचना ला  कोनी को  सांगेव बिना  स्वेच्छापूर्वक ग्राफिक्स को माध्यम लक डिजाइन करके " पोवारी साहित्य व संस्कृति उत्कर्ष" येन् ग्रुप मा पठाय देसेती.  येन् घटना कर  देखन की एक अलग दृष्टि मोला कसी प्राप्त भयी, येको  रहस्य निम्नलिखित से -

           " मातृभाषा ला कालजयी बनाओ"  येन् कविता मा  "लताओं साहित्यिकों पर सुगंधित फूल बरसाओ," असो आपलो मनोभाव मी अनायास  लिख देयेव. लेकिन  ऋषिकेश गौतम इनको  उपरोक्त उल्लेखित अभिप्राय को बाद मा अंतर्मुख होयके विचार करन लगेव त्  "श्री ऋषि बिसेन ये  प्रत्येक साहित्यिक को उत्तम रचना ला डिज़ाइन करके वास्तविकत: पोवारी साहित्यिकों पर  सुगंधित फुलों की वर्षा करन को  कार्य कर रहया सेत." असो मोरों अंतर्रात्मा की आवाज मोला ‌आयकु आवन लगी.

       मोरों स्वयं को अनुभव सांगन को भयेव त्  ऋषि भैया न् २०२०-२०२२ येन् दुय वर्ष को कालखंड मा  मोरी लगभग ३५रचनाओं ला  शानदार डिज़ाइन कर देईन. ये सब रचना मी पोवारी "भाषा संवर्धन : मौलिक सिद्धांत व व्यवहार " येन् ग्रंथ मा समाविष्ट करी सेव.

       श्री ऋषि बिसेन इनला साहित्य की अच्छी पारख से. इनन् जेन् रचना ला डिज़ाइन कर देईन वा रचना श्रेष्ठ से,असो वोको अन्वयार्थ होसे.

         मातृभाषा को प्रेम, समाज को प्रेम, स्वजनों को प्रति प्रेम,  मातृभाषा पोवारी व समाज को उत्थान की तीव्र आकांक्षा आदि.अनेक गुण उनको येन्  "फुलों को वर्षाव"  मा लक खुलकर समाज को सम्मुख जगजाहिर होसेती. उच्च प्रशासनिक पद (IRS) पर रहके भी समाज को प्रति ‌उनको लगाव  निश्चितच सब साती प्रेरक व अभिनंदनीय से.


इतिहासकार प्राचार्य ओ सी पटले

मंग.२६/०७/२०२२.

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18. 

🌻 पेटावो धगाड़ी 🌻


लवर लवर कापरी लग से ठंडी,

सुन्न पड़ गयी से शरीर की गाड़ी ll


कोनी आनो वारेव गवत की पेंडी,

लगी से मोला भाऊ बहुत ठंडी ll


झड़ लगी से जी बरसात की लंबी,

गारपिटी पड़ी सेती बहुतच ठंडी ll


भगावू मि आता कसी मि या ठंडी,

माचिस बी भय गयी से जी ठंडी ll


पेटावो चुलोला आता लगी ठंडी,

मोबाइल मा चार्जिग एक डांडी ll


बाड़ी माकी आनो जरासी बुराड़ी,

पेटावों आंगन मा जल्दी धगाड़ी ll


सुंदर चले या परिवार की गाड़ी,

पेटावो ग़लत संगत की धगाड़ी ll


शांति लक चले मन की गाड़ी,

पेटावो ग़लत वेसन की धगाड़ी ll


डॉ. हरगोविंद चिखलु टेंभरे

मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया

मो.९६७३१७८४३४🙏🙏

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19. 

 साहित्यिकों पर फूलों की वर्षा


येव अमृत लेख समाज को सर्वभौंमिक विकास को द्योतक आय. जसोकी येन लेख मा लिखेव गयी से, अना मोला भी असो लगेसे की, येव लेख कोनी एक व्यक्तिविशेष साती नहीं लिखेव गयी से. पण समाज मा व्याप्त समाज का साहित्यिक प्रेमी को रूप मा बस्या तपस्वी ऋषि मुनी को बारेमा लिखेव गयी से. 

बिना कोनी अपेक्षा को समाज साती समय निकाल कर वोको संवर्धन अना विकास साती चुप चाप काम करत जानो..

पण सफलता को आगाज होसे तब चुप चाप काम करने वाला समाज का ऋषि मुनी को काम स्वाभाविक उजागर होसे.

साहित्यिक तपस्वी अलग अलग नाव लका नजर आयेति त कोनी सांकेतिक नाव लका..जसोकी "गोकुल", "जुगुनू" कोनी "प्रहरी", "सारथी" त कोनी "रामकमल". काही निश्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता त कोनी रोजगार निर्माण कर्ता. काही मोटिवेशनल व्याख्याता त कोनी इतिहास खोजी, कोनी कीर्तनकार त कोनी पारंपारीक पोवारी गाना गायक/गायिका संवर्धक/प्रचारक त काही अन्य मार्ग लका. असा सब प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष समाज का तपस्वी ऋषिमुनि ला समाजकन लका पुष्प अना सादर अभिवादन नमन.

मोला गहराई ल असो लगसे की समाज का असा बहुत विशिष्ट पहलू का व्यक्तिमत्व को आबवरी समाज को सार्वजानिक पटल पर परिचय भी नहीं भई से. असा अपरिचित अप्रदर्शित समाज का ऋषिमुनि ला पुष्प अना सादर अभिवादन नमन.

आदरणीय प्राचार्य श्री ओ सी पटले सर बहुत गहराई ल 36 कुल पोवार समाज को संवर्धन अना विकास को काम मा समाज का सब ऋषिमुनी को मोल कर रह्या सेती. स्वयं समाज साती तपस्या त करसेती पण अन्य ला भी प्रेरित कर सेती.. अना अन्य ला भी समाज को तपस्या मा शामिल कर येन पुण्य कार्य को कांरवा मा समाहित करनको पुण्य कार्य कर रह्या सेती.

दादामुनी समाज मा भया सेती अना कालांतर मा होत भी रहेती.. उन सब को अनंत उपकार..पण वर्तमान मा येव बीड़ा को का वाहक कोन रहे..? या असो कहो की ये गुण कोन कोनमा रहेती.. अना असा कोन कोन व्यक्ति समाज मा सेती येन बात पर बिचार करनो पर सहजच येन वर्तमान मूर्ति को चित्र सामने आवसे.. अतिश्योक्तिक कथन नहीं पण सार्थक काम को वहन करने वाला असाच अनखी दादामुनी आमला आमरो समाज ला पायजे.. काही पड़दा आड़ मा रहेती.. काही रहेती पण मालूमात नहीं रहे.. काही समाज कर्तव्य मा व्यस्त रहेती.. असा सब वर्तमान अना भावी दादामुनी ला सादर नमन अभिवादन.🚩💐🙏


✒️ऋषिकेश गौतम (26-07-2022)

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20 

<<<<<< तू खरो पोवार >>>>>>

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हिरदामा ठेव पोवारी तं तू खरो पोवार

निज अस्मिता से प्यारी तं तू खरो पोवार


'नोन' जेको खानं वोको फेड़नं उपकार

से दिलमा या तैयारी तं तू खरो पोवार


डोरामालक पोवारीला ओझल नोको करू

पोवारीकी से खुमारी तं तू खरो पोवार


काहीतरी तू सोच पोवारीको बारामा

निभाव जवाबदारी तं तू खरो पोवार


बेईमानीकी तिजोरी नहीं होय फलितमान

तोरोमा से ईमानदारी तं तू खरो पोवार


क्षत्रिय कुलको तू देवी देवको कूलको

वान्हाये दुनिया सारी तं तू खरो पोवार


दुनियालका एक रोज तं जानोच से सबला

असी काही कर गुजारी तं तू खरो पोवार

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डॉ. प्रल्हाद हरीणखेडे "प्रहरी"

डोंगरगाव /उलवे, नवी मुंबई 

मो. ९८६९९९३९०७

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