पोवारी साहित्य सरिता, भाग-५२
पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित:-पोवारी साहित्य सरिता भाग ५२
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आयोजक
डॉ. हरगोविंद टेंभरे
मार्गदर्शक
श्री. व्ही. बी.देशमुख
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1.
संघठन मा से शक्ति
संसार मा संघठन की शक्ति की महिमा सबला पता से । जो समाज जुड़के रव्हसे वोकि ताकत को सामने कोनतो बी प्रकार की दुष्टता काइ नही कर सक । आमरो सामने आमरो सामाजिक अस्तित्व को दृष्टिकोणलक अनेक प्रकार की समस्या अजको समय मा मौजूद सेत । एक व्यक्ति काइ नही कर सकनको । या दूय चार बी काइ नही कर सकनका । आमला सबला एक साथ कार्य करनो पड़े । सबला एक साथ जुड़नलाइक पहले जरूरी से की सबमा विचारधारा की समानता रहे । विचारधारा मा भिन्नता नही होना । विचारधारा पक्की होना । विचारधारा इतनउतन बहकन लगी की समाज को नुकसान होसे । आमला असी विचारधारा पक्की करनो पड़े जो समाजहितमा रहे । अना विचारधारा तब पक्की होये जब लगातार चिंतन मनन होये । शिक्षीत लोगइनला सामने आवनो पड़े । उनला समय को रूप मा आपलो योगदान देनो पड़े । समाज उत्थान को कार्य बड़ो महत्वपूर्ण से अना वु आमरो कर्तव्य बी आय। आमला आमरो कर्तव्य निभावनलाइक एकदूसरो को संग जुडनो जरूरी से । एकदूसरो संग विचारइनको आदान प्रदान भी करनो जरूरी से । अगर आमरो बीच का कोणी गलत कर रह्यासेत त् उनला हटकनो बी पड़े ।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार पोवार महासंघ को तहत आब आमला सबला आपलो एकीकृत सामाजिक कर्तव्य पुरो करनको दृष्टिकोणलक एक दुसरो को संग जुड़के महासंघला मजबुत बनावनो पड़े । भविष्य मा महासंघ की ताकत हर क्षेत्र मा बढ़े यव जरूरी से ।
आमरो प्राचीन समुदाय की संस्कृति जमाना को विपरीत प्रवाह मा तबलक नष्ट नही होनकी जबलक पोवारी संस्कृति संवाहक डट के उभा रहेती । .....
महेन पटले
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2.
🌻 पोवारी साहित्य सरिता भाग ५२🌻
🌻सिदोरी🌻
काहे नही आयीस बाई आब वरी,
बाट देखु आता तोरी कब वरी ll
दूय पाथ पड़ गयी से आब वरी,
उपासी रहू कसो आता तरी ll
नाग़रया से उपासी सकार वरी,
तपन से चिरख्यान सकार वरी ll
रोटी संग आनो रायतो की फोड़ी ,
जरासो भात संग जरासी भाजी ll
आय जाय बुगी जल्दी आता तरी,
धरस्यानी घर लक मोरी सिदोरी ll
डॉ हरगोविंद चिखलु टेंभरे
मु.पो.दासगाँव ता.जि.गोंदिया
मो९६७३१७८४२४🙏🙏
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3.
पोवारी साहित्य सरिता भाग - ५२
🌷ओरखो कोन🌷
१)
एक सुपड़ोमा बारा कणीस |
उनला दाना तीस एकतीस ||
अर्धा कारा ना अर्धा पांढरा |
ओरखो कोन सपाई साजरा ||
२)
एक राजाकी अद्भुत रानी |
धीरु धीरु पिवसे वा पानी ||
करसे वा रानी इंधारो दूर |
ओरखो कोन रानीको नूर ||
३)
रंग मोरो से कारो भरारो |
लपासु मी देखके इंधारो ||
उजारोमा तुमला दिसुसू |
ओरखो कोन संग चलुसू ||
४)
मी भाऊ सेव खुब शैतान |
पकडुसू तुमरा दुयी कान ||
बसुसू तुमरो मी नाकपर |
ओरखो कोन मी लवकर ||
*उत्तर - *
१) एक सालका बारा महिना, महिना का तीस एकतीस दिवस, अर्धा कृष्ण पक्ष, अर्धा शुक्ल पक्ष
२) सिमनी/दिवो
३) सावली
४) चष्मा
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4.
पोवार रे, बन राम तू
शोभे असा, कर काम तू |
घबराइ से, सीता यहाँ
सोडायके, कर नाम तू ||
गोकुल
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5.
🌷हरिगीतिका छंद (सम मात्रिक)🌷
लगावली - गागालगा गागालगा गा, गालगा गागालगा
मापनी - २२१२ २२१२ २, २१२ २२१२
(मात्रा भार - २८, यती - १६,१२)
गड़कालिका तू धार वाली,
मालवा की अंबिका |
तू स्वामिनी पोवार कुल की,
भोज की जगदंबिका ||
करदे सुखी संसार मोरो,
मी करूसू प्रार्थना |
गोकुल कसे स्वीकारले तू,
माय मोरी याचना ||
© इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
गोंदिया (महाराष्ट्र),
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6.
आयोजन- पोवार साहित्य सरिता भाग ५२
विषय- ये गाँव का लोग
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ये गांव का लोग,,,,,,
दुय जून की रोटी को जुगाड़ मा
जासेती जंगल , रम जासेती पहाड़ मा
आनन मोहू ,टोरी , हिरड़ा, तेंदूपत्ता
निर्भय फिर् सेती, से संग मा कुत्रा।
तकलीफ़ देसेती, पाय का छाला
भर दुपारी खाली पोट मा निवाला
नसीब मा कहां इनको छेप्पन भोग ,,,,?
गांव का लोग ,,,,,,,,,,,,
माय को पदर मा बच्चा की गठरी
पिचकेव पोट से , झाक् से ठठरी
डोसकी पर ठेयेव से ,काड़ी को गठ्ठा
एक हाथ मा गठ्ठा से , दूजो मा लठ्ठा
नंग- धड़ंग तन से , टूटी से चप्पल
माथो पर सिकुड़न ,नैन आंसू लक छल -छल
शहर गयो बालम , हाय! यो वियोग
गांव का लोग,,,,,,,,,,,,,,
सिरसा को तेल वानी से चिकट दादी ,
टूटेव से चश्मा ,अना कथड़ी से आधी
सकार को नाश्ता मा से , भोजन बासी
दादा की बीड़ी , खोखला अना खांसी
तन मा सेती झुर्रि , देय रहीं से सिसकि
तोंड पर फैली भिनभिनाति माखी
आजन्म मिली से , ग़रीबी को रोग
गांव का लोग,,,,,,,,,,,,,,,,
कोंबड़ी की कोट्ट -कोट्ट , दाना पानी
मिसी पर ताव, डखरती जवानी
खांद पर गमछा ,झोलम-झाल कपड़ा
संकरी गली मा मोहब्बत को लफड़ा
हांसी ठिठौली , मोहब्बत की बात्
बातइनमा कट जासेती, ये काली रात्
इशारों मा बात् , कनखी को संयोग
गांव का लोग ,,,,,,,,,,,,,,
काही त् बस्स ,एक पाव शराब साती
बस येतरो सो हिसाब साती
पूरों दिन बिताय देसेती , दोस्ती जतावत
बाद मा पिवत- पिवत , मज़ा उड़ावत
नशा मा धुत्त, बाद मा बैलइन का सौदा
इतरायकर पड़ जासेती जमीन पर औंधा
समझ् सेती, येलाच जीवन योग
गांव का लोग ,,,,,,,,
✍️ कवि पंकज टेंभरे 'जुगनू'
7583860227
6266293548
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7.
नशा अना मांसाहार
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असो कह्यव जासे की जसो अन्न मनुष्य खासे तसी वोकि बुध्दि होय जासे ।
नशा मनुष्यकी शालीनता , विचारशीलता अना नैतिकता समाप्त कर देसे ।नशा मानसिक संतुलन बिगाड़ देसे ।
मांसाहार अमानवीय क्रूरता को दर्शक आय । मांसाहार करके कोणी मनुष्य देवत्व की प्राप्ति नही कर सक ।
यानी साफ बात से की श्रेष्ठ व्यक्ति नशा व मांसाहार नही कर ।
आमरो पंवार वंश श्रेष्ठ कह्यव गयी से । आमरा पुरखा वंश की श्रेष्ठता को पालन करत होता । वय दारू व मांसाहार का विरोधी होता ।
सौ साल पहले जब काइ पोवार लोग दारू अना माँसाहार करन लग्या त् उनपर रोक लगावनलाइक समाज को बुजुर्ग लोगईनको संघठन को द्वारा दण्ड को प्रावधान करयव गयव होतो ।
बाकी समाज का लोग भलेही मांसाहार करत रह्या रहेत पर आमरा पूर्वज मांसाहारी नोहोता । नशा बिल्कुल मान्य नोहोतो ।
पर आब नशा व मांसाहार बहुत बढ़ गयी से । यको उपाय सामूहिक तौरपर करनो जरूरीसे।
समाज उत्थान को एक पहलू यव बी आय की आमी आब पुनः आचार बिचार, व्यवहार की श्रेष्ठता धारण करबिन ......
महेन पटले
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8.
पोवारी साहित्य सरिता, भाग-५२
शंखनाद
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शंखनाद पोवारी साहित्य निर्माण को।
शंखनाद इतिहास पुनर्स्थापन को॥
शंखनाद पोवार/पंवार अस्तित्व संरक्षण को।
शंखनाद पोवारी संस्कृति बचावन को॥
शंखनाद पोवारोत्थान को।
शंखनाद युवा चेतना जगावन को॥
शंखनाद पोवार महासंघ को।
वैनगंगा तटीय ३६ कुर एकता को॥
डॉ विशाल बिसेन
तारीख़ः २६/०६/२०२२
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9.
🏵️ पोवारी साहित्य सरिता🏵️
भाग-५२, दिनांक: २६/०६/२२
⚛️ गाव वापसी🔯
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प्रीति : पिताजी असो नई होय सिक की आमी सब आपरो गावमा जायकन रवती। इत शयरमा सबसे परा आता तकनीक को जमाना मा गावमा भी नवो तरीका लक गुजरा होय सिक से।
माय : बेटी प्रीति, तोरी गोष्ठी साजरी से परा इत तोरो पिताजी की नौकरी से, गावमा जावबी त यव बी सुटे अना उत जायकन पुरो गवार बनजाबिन। सायनी माय इत आवसे त उनला दूय दिन मा उबासी आय जासे। इत काजक की कमी से। सब मोलाच नाव धरसेति, की मी आपरी सासु की साजरो लक सेवा नई कर सिकसु।
प्रीति : माय असी बात नहाय, सायनी माय इत आवसे त वू आपरो गाव, आपरो घर लाच याद करसे। उनको जवर बसन लाई कोई नहाती। पिताजी धंधा पर जासेती, मी पाठशाला अना तुमरो जवर भी लगत धंधा रहवसे त उनको जवर बसकन गोष्ठी सांगनला कोनि भी नही रहव इत। वू पोवारी मा बोलसे त सब हास् सेती परा यव कोनि हासन की बात नहाय। अना तू कसे की पोवारी मा बोलबी त कसो आगे बढबीन। परा मोरो बिचार लक यव सही नहाय, आमी घरमा आपरी भाषा बोलबिन अना पाठशाला मा अंग्रेजी। तुम्ही मोरी चिंता नोको करो, मोला आपरी मायबोली परा अभिमान से, अना परीक्षा मा मोरो साजरो अंक आवसेति। आपरी जूनी पहिचान अना रीति रिवाज त सायनी माय सांगसे अना उनको संग मोला लागितच साजरो लगसे।
पिताजी : प्रीति की माय, प्रीति सही त कसे, मोरी बेटी लगित सायनी भय गयी से। आपरो गाव मा मोठोजात को घर से अना इत शयरमा नहानसो दूय खोली को किराया का घरमा रह्वनो पढ़से। इत त तोरो बिंद्राबन लाई बी जागा नहाय। घरमा ढोर बासरु रव्हसे त घरको दूध दही होसे, शयर मा कहा को।
माय : तुमरो कव्हन को काजक मतलब से।
पिताजी : हमरी दूय खंडी की जागा से, खेती नयी होन को कारन पड़ियाव से अना मोरो इत आन को बाद आता गऊ बासरु को काइ ठिकाना नाहाय। इत मोरी तनखा दस हजार से अना वोको लक दूय गुना गाव मा मेहनत करबी त हिट जाहे। परा प्रीति की पढ़ाई गाव मा कसी होये।
प्रीति: बाबूजी मोरी चिंता नोको करो। इत को निजी शाला, फीस लेन को धंधा करसेत! भयो। मेहनत त मोलाच करनो पड़से, ओतरी पढ़ाई मोरी आपरो गाव को शाला को संगमा होय जाहे, अना गाव मा गुड्डू भैया भी प्रतियोगी परीक्षा इन की तैयारी कर रही से त उनको लक मोला मार्गदर्शन भेट जाहे।
प्रीति आपरो माय-अजी को संग गाव आयकन सायनी माय को संग रहवन लगी। समय को चक्र को संग विकास की धारा बोहन लगी। गाव मा रहकन भी प्रीति को चयन नीट परीक्षा मा भय गयो अना खेती को संग पशुपालन मा खूब तरक्की भयी। सायनी माय की उमर आता अखिन मोठी भय गयी, ओकि हासी खुशी मा एतरो आशीर्वाद होतो की प्रीति को सपन पुरो भयो अना परिवार मा सबला खुशी भेटी।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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10.
ऐ शब्द मिल्या
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मी जगबगीचा मा फिरत होतो
स्वर्ग फूलको खुशबू आय गयेव
जब् पोवारी मा कोकीला बोली
मी समजेव पोवार आय गयेव
ऐ शब्द काही असा प्यारा होता
मोरो तन मन ला महकाय गयेव ||
पोवारी बसीसे मोरो श्वास मा
बिखरी होती चमक दुनिया मा
फैलेव होतो उजारो डगर मा
तसबीर होती माय की डोरा मा
जब् कदम बढायेव चलन ला
असो लगेव का टकराय गयेव ||
जब् तेज भयी माय की आवाज
होन् लगेव पोवारी को आगाज
मी भुल गयेव आपलो शुद्ध बुद्ध
देखो त जरा येव भोलोपन
जब् हातमा लेखनी खनकी
मोरो जीवन बी बदल गयेव ||
उजेडव् पोवारी को घर होतो
जो चेहरा होतो उ बेगाना होतो
गाव की वा जागा विराना होतो
जो सोये होतो उ अपसाना होतो
होश आयेव त कोणी ना होतो
येव् लगेव की धोका खाय गयेव ||
काही श्याम होता काही राम होता
बेताबी मा भी मोरो साथ होता
मंग पोवारी की बरसात भयी
ऐ शब्द मिल्या अना बात भयी
जो काही पोवार को मनमा होतो
काही न बोलता समजाय गयेव ||
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श्री छगनलाल राहांगडाले
खापरखेडा ९१५८५५२८६०
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11.
हिंदभू पर
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आव् आव् गा धरा पर
भक्ती गयी धुरो पर
तोरो मानुस को मन
असुरी बनीसे दिल भर..
बुध्दी बनीसे नासुरी
कली बसीसे कपार पर
गुनगान करे गंदो किडा
वामपंथ बसीसे कासरोपर.
दीमक से दानव सेक्यूलर
वार पर वार करे हिंदू पर
सोंड्या अन्नपूर्ण का आत
नियत गयी गडरखानो पर..
देवभुमी ला करे हिवरो
कर रया सेत अत्याचार
राम भक्तीला कहे भरम
बस्या सुर्पंकापुत राजपर..
मानुस मानुसकी गयी
भक्ती नास्तिकता पर
हिंदू बचावन चले बल
आव तू प्रभु हिंदभू पर..
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श्री छगनलाल रहांगडाले खापरखेडा
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12.
बेटी की बिदाई🙏
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कसी करु बेटी की बिदाई ,बात आज समझ मा आई बेटी से परायी बेटी से परायी,
जन्म भयो खुसयाली आयी आंचल मा मोरो जसी परी मुस्कायी,
मोरो सुनो जीवन मा खुसी की बहार आयी,
अता भयी कसी परायी बात आज समझ मा आई,
मोठी भयी पढन गयी घडी भर मोरी सखी भयी घडी भर बनी मोरी बेटी,मोरी परछाई,
अता कसी भय गयी परायी बात आज समझ मा आई,
लाड दुलार लक पालन पोषण करयो ,शिक्षा ,संस्कार ,सभ्यता को गुण बेटी ला सिखाय दीयो,
नोको करजो मोरी जग हसाई , बात आज समझ आई,बेटी से परायी,
कसी करू बेटी की बिदाई बात आज समझ मा आई बेटी से परायी बेटी से परायी
माय अजी की राज दुलारी भाऊ बहीन की तु सेस लाडली, करसेजन मिलकर तोरी बिदाई आवसो रोवाई,
कसी करू बेटी की बिदाई बात आज समझ आई बेटी से परायी बेटी से परायी।।
विद्या बिसेन
बालाघाट🙏
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