Powari Asmita Sangharsh

समाज से वयोवर्द्ध लेखक, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता श्री ज्ञानेश्वर जी टेम्भरे के द्वारा पोवार समाज से पोवारी साहित्यकारों को पोवारी में साहित्यिक रचनायें देने के लिये आग्रह किया जा रहा है ताकि वे इन्हें पवारी साहित्य सरिता में डाल सके। हाल के दिनों में उन्होंने आपने दो स्वतंत्र बोलियां, पोवारी और भोयरी को मिलाकर पवारी लिखने और इनके स्वंतंत्र अस्तित्व को मिटाकर इतिहास और संस्कृति को दरकिनार करने का जो प्रयास किया वह उचित नही कहा जा सकता।

पोवार/पंवार और भोयर समाज के ऐतिहासिक नामों को मिटाकर एक पवार नाम से लिखना अनुचित है। पोवार(पंवार) और उनकी बोली पोवारी की जगह पवार और पवारी लिखने से पोवार समाज की अस्मिता और पहचान समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार नए शब्दों के समाज मे प्रचलन से हमारे पुरखों के ऐतिहासिक नाम समाप्त होंगे। 

आदरणीय टेम्भरे सर और उनके समर्थकों से निवेदन है की समाज के पुरातन नामों को ही तवज्जो दे और इन्ही नामों से संस्थाओं के नाम को करे। 

सन 1939 में भोयर समाज ने खुद को पवार और भोयरी को पवारी लिखना चालू किया था इसलिए 1951से भोयरी बोली के साथ इसके प्रतिस्थापन में पवारी शब्द आया न कि पोवारी के अपभ्रंश या पयार्यवाची के रूप में। इसीलिए पवार और पवारी शब्द का पोवार(पंवार) और पोवारी बोली से कोई संबंध नही है, इसीलिए अगर आप पोवार समाज और पोवारी बोली के लिए कार्य कर रहे है तो समाज के ऐतिहासिक और मूल शब्दो का ही प्रयोग करे अन्यथा पोवार/पंवार को हटाकर पवार/पावरी करने वाले समाज को साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट करें कि क्यों अपने लेखों/किताबों में छत्तीस कुल के पंवार/पोवार के लिए पवार शब्द का क्यों उपयोग किया और इनकी बोली पोवारी को पवारी नाम से क्यों लिखा।

पवारी साहित्य मंडल के सभी पदाधिकारियों से यह अनुरोध है कि पोवार/पंवार और पोवारी यही छत्तीस कुल के ऐतिहासिक नाम है और यहीं रहने भी चाहिए इसीलिए समाज के भावनाओं के अनुरूप पवारी साहित्य मंडल को पोवारी साहित्य मंडल और पवारी साहित्य सरिता को पोवारी साहित्य सरिता किया जाय।


समस्त पोवार(पंवार) समाज

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