बालकथा : बाल खमुरा

 बालकथा

                 बाल खमुरा


           गिरीश कक्षा तीसरी को छात्र होतो. गिरीश को गुरूजी की एक सीख बड़ी साजरी लगी होती की हमाला समाज को मददगार बननो चाहिसे. 

          एक दिवस की बात से गिरीश शाला लक घर आयरयो होतो. शाला जवर एक नहान सो जूनो घर होतो. वोन घर मा एक बुङ्गी रहत होती.  वोका कोई नोहोता. वा मेहनत मजूरी लक आपरो गुजारा करत होती.

      गिरीश ला बुढगी माय की दुःख लक कुन्हावन की आगाज सुनाई देई. गिरीश जरसो  घर को जवर जायकर देखन लग्यो की बुङ्गी माय ला काजक भय गयो. वोना कवाड़ जवर जाय के हाकलिश की माय तोला काजक भय गयो. गिरीश को होकल्यो पर माय जसी तसी ऊभी भई अना कवाड़ जवर आयकन बोलिश की मोला काइच नई भई से, अना तू आता आपरो घर जाय, तोरा माय अजी गिन तोरी बाट देखत रहेत.गिरीश बोल्यो की माय तोरी तबियत साजरी नहाय, तोला काई तरी होय गयी से, अना यो सांगनोच पड़े की तोला काजक भयो. 

        बुङ्गी माय न सांगीस की मोला बुखार आयो होतो एकोलाई मी चार दिवस लक धंधा पर नहीं जाय री सेव अना मोरों जवर पैसा कौड़ी नहाती, खान को भी सर गयी से. मोला वैद्य जी दवाई त लिख कर देई होतिस पर दवाई दूकान वाला न उधारी मा दवा नहीं देईस . बिना दवा पानी अना जेवन को मोरी तबियत असि भय गयी.

     वोको जवर लक गिरीश वहा लक परात-परात घर कन गयो. घर मा वोको जवर एक गुल्लक होतो वोको नाव वोन बाल खमुरा न ठेई होतीस . गिरीश न आपरो इत-उत को मिल्यो पुरो पइसा ला गुल्लक मा ठेई होतिस अना आन वाली दीवारी मा साईकल लेवन की मिन्नत होती.वोको जवर लक गिरीश वहा लक परात-परात घर को कन गयो. घर मा वोको जवर एक गुल्लक होतो वोला वोना बाल खमुरा नाव दिवो होतो. गिरीश न आपरो इता उता को मिल्यो पुरो पइसा ला गुल्लक मा ठेई होतिस अना आन वाली दीवारी मा साईकल लेवन की मिन्नत होती.

       गिरीश ना लाहकी लक गुलक तोड़ डाकिस अना वहां आठ सौ पचास रुपया होतिन. वोना आपरो घर मा कोई ला नहीं सांगिस अना अखिन परात परात दवाई दुकान लक दवाई की अना किराना दुकान लक खान पान को समाइन ला खरीदकर बुङ्गी माय को घर आ गयो.

      बुङ्गी माय ला ब्रेड दुध देयकर वोना दवाई भी देय देईस. एतरो देर गिरीश का माय अजी वोला ढूंढता ढूंढता बुङ्गी माय को घर मा आईन अना गिरीश ला इत देख वेय पुशीन की बेटा इत तू काजक कर रही सेस.  बुङ्गी माय ना गिरीश को माय अजी ला बोलिश की तुम्ही इत मोरो जवर आय कर बसो. अना गिरीश की दवा अन खान को समाएनआनन् की बात ला सांगिस.

          उनना गिरीश ला पुशीन की बेटा तुन कहां लक या दवाई अना खान को आन लेयस रे. गिरीश न डरतो डरतो पूरी बात ला सांगिस. गिरीश को अजी गिनला नाराजी भई की वोना बिना पुश्यो चोरी लक आपरा गुल्लक तोड़ दाकीस अना एतरो मोठो काम कर डाकिस. गिरीश की माय न बीच बचाव मा बोली की या तो मोरिच साजरी सीख से. मीन वोला शिखायो होतो की हमला सबकी मदद करनो चाहिसे. अना कोई भी खमुरा मदद लाईच होशे. आपरी गुल्लक को नाव भी गिरीश न बाल खमुरा ठेयी होतिस. एको लाइ मोरो बेटा न बुङ्गी माय की मदद लाइ आपरो बाल खमुरा को पइसा लक दवाई अना खान को आनीसेस. पर मदद को येन काम मा वोको लक एक गलती भय गयी की वोन हमाला सांगीस नहीं.

           पर वोकी सोच येतरी मोठीसे की वोन आपरी बचत की पाई पाई दुसरो को मदद लाए अर्पित कर देईस. अना आपरी साइकल की चाह को त्याग़ कर देईस .आता गिरीश को अजी को गुस्सा भी ठंडो भय गयो अना आपरो बेटा की सेवाभाव ला प्रसन्न होयकर वोला माफ़ कर दुसरो दिवस वोको लाइ नवी साइकल आन देईन अन शिख भी देईन की मदद करनो साजरो से पर असो काम माय अजी लक पूछ कर करनो चाहिसे. बुङ्गी माय को आशीर्वाद अना माय अजी की ख़ुशी लक गिरीश को जीवन संस्कारी अना साजरो भय गयो.


बिंदु बिसेन, बालाघाट

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