मायबोली पोवारी

 🌷🌷 मायबोली पोवारी 🌷🌷


             कोनतोही समाज की बोलीभाषा या आेन समाज को दर्पण रवसे जेकोमा ओन समाज का रितिरिवाज, संस्कृति की झलक मिलसे । बोलीभाषा सब समाज जनला एक माला मा बांधकर ठेवसे। उनकोमा आपसी प्रेम, बंधुता बनाएकर ठेवनला मदत करसे। अना वोन समाज की पहचान बन जासे। असि मोरो पोवार समाज की मोरी मायबोली पोवारी से।


          मोरपंख सी सुंदर पोवारी

          शहद सी मीठी बोली मोरी

          अनोखो शब्दों कि फुलवारी

          सजावो मायबोलीकी क्यारी


        पोवारी आमरो पोवार समाज की मायबोली, येकि ध्वनी भी मधुर से। माधुर्य मोरी मायबोली को गुणधर्म से। येको हरेक शब्द मा मधुरता अन नम्रपना से। मोठो व्यक्ति साती आदरसुचक शब्द सायनो दादा, सायनी माय,काका माय , माम माय, बड़भाऊ, बड़ीबाई असा शब्द सेती। हर शब्द मा प्रेम ,आदर झलकसे।


            मोरी मायबोली मुख्यत बालाघाट, भंडारा, सिवनी, गोंदिया,नागपुर जिलामा बोली जासे। शोधकर्ता को अनुसार  पँवार मध्यभारत  लक पंवारी भाषा धरकन नगरधन आया। वहा लक वैनगंगा को किनारा पर आया । यहां को जमीन ला सुपिक बनाईंन। यहां आयेपर मूल पोवारी बोली पर मराठी , हिंदी ना अन्य भाषा का काही शब्द पोवारी बोलीमा घुल मिल गया। ना मूल पोवारी बोली मा वक्त प्रमाटी बदल भयेव।।


             पहले सब पोवार आपली पोवारी भाषा बोलत होता । उनको आसपास का अन्य जाती का लोक भी पोवारी बोलत होता। येतरी सुंदर,मीठी ना बोलनला सोपी से आमरी पोवारी।


             मोरी मायबोली बोलुन कौतुका।

             जसी गोड अमृतकी धारा ।। 

             बोलबिन सारा । प्रेमलका।।


       मोरी मायबोली मा शब्द भी तसाच अलगथलग सेती। मोठो शब्द संग्रह से। मासी इंधारो,झुनझुरका,महातनी बेरा ,भूमसारो, लखलखती तपन, घामचरचरो, कारो कुचकुचो,लाल गुजगुजो, भानी, बटकी , गंगार, सोर्या,इत्यादि अनेक शब्द जो कोनतोच भाषा मा नहीं सपड़त। हाना ( म्हणी) लका समृद्ध असी बोली से। जसो: कारी की पिवरी होनो ,कारी मस पड़नो, कोल्ह्या कुत्रा की धन , कारो धुव्वा को जानो,गलड्या गडू,डोरा वरत्या आवनो,  दीठ लगनो ,कमाई न धमाई टेकरी पर पुंजना, मोठो मोठो की मांदी ना भागा बाई की चिंधी ,मुद्दल दुन ब्याज प्यारी  ,आयतों पर रायतो। असो मोठो शब्दसंग्रह भी से। पर आमरो दुर्भाग्य की अामरी बोली या लिखित नहाय। 

              पिढी दर पिढी बीह्या का गाणा , जातो पर का गाणा, खेतमा परा लगावन को घनी,परा सरेपर का गना, जातोपर का गाना,ये  गाया जाय रहया सेत। पर ओको लिखित साहित्य उपलब्ध नोहोतो। मुन धीरू धीरू सब पोवारी भाषा भूलन बस्या। आब पोवारी भाषा भुलनको मुख्य कारण अन्य भाषाओ को प्रभाव, जीवनयापन साती स्थानांतरण, आपलो बोली को बारा मा उदासीनता, अना भाषा को प्रती हिन् भावना ये प्रमुख कारण सेती।

         पर आब समाज मा बोली भाषा को प्रती जागरूकता आई से। हीनभावना धीरू धीरू कम होय रही से। एक मेक को प्रेरणा लक सब बंधु भगिनी बोली भाषा को प्रसार प्रचार साती प्रयत्नशील सेती। सब आपापलो तरीका लक प्रयत्न कर रहया सेती। एक आशा की किरण पोवारी इतिहास, संस्कृति, साहित्य अना उत्कर्ष परिषद को द्वारा दृष्टिगोचर होय रही से।२० जानेवारी २०२०ला बनेव येव समूह पो वारी साहित्य ला लिपिबद्ध करस्यानी वोको  जतन को महत्व पूर्ण कार्य कर रही से।


या आमरो साती गर्व की बात से।

जय राजा भोज।।


✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी

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