राजा जगदेव पँवार
राजा जगदेव पँवार
पँवार प्रमार राजा जगदेव पँवार ने माँ गढ़कली के सम्मुख अपना शीश अर्पण किया पर माता ने राजा को फिर से जीवित कर दिया और उन्हें भगत नाम दिया. उनके वंशज आज क्षत्रिय पँवार वंश के 36 कुलों में से एक कुल भगत कुल हैं.
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गढ़ावाली लोकगीत को पोवारी अनुवाद
पांच देव की लगी से सभा
भगवान शंकर ध्यान मा से,देवी पार्वती भी
सभा को मुकुट स्वयंम् भगवान विष्णु सेत्
तब् इनको बीच मा भगवान बोल्या
की येन दुनिया मा असो वीर भी होतो
जेन् आपलो सिर काटकर दान देईस
जेन् सिर को दान देयेलक
वोन गढ़वाल को राज्य लेइस्
वहा बसी होती चंचू भाट की बेटी बनी काली कंकाली(मां काली)
तब् भगवान कसेत्, हे काली कंकाली
दुनिया मा तुलना करेंव् पर ओकोसरीखो कोनी नहाय
की जो आपलो सिर काटकर दान देय सके
तू त. रवसेस् कंकाली मृत्युमंडल मा
अन् मी भगवान पृथ्वी पर को भेद लेसु
तब् काली माता पृथ्वी पर आईं
वहा मलासीगढ़ मा चंचु भाट को यहां बस गई
अशी से माता काली मलासीगढ़ की प्यारी
मन लक मायाळू से वा काली कंकाली
तब चौहान राणीन् वोला कय् देईस्
देयेव दान वापस नहीं लेयेव जाय, जसो कि थुकेव थूका
तब देवताओं न् वोन धड परच नवीन सिर उगाईंन
ओला मंतर मारीन
तब जीतो भयेव् जगदेव पंवार
देवताओं न तब ओला गढ़वाल को राज देईन
वचन असो सबको मन मा , जयसिग सभा मा बोलेव
वचन से जगदेव पंवार को की जेन
आप लो सिर काटकर काली ला देईस
गढ़वाल देश को राज लेईस
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✍️अनुवाद-सौ छाया सुरेंद्र पारधी
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