पोवारी को गजर

 पोवारी को गजर 

(अभंग रचना)

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बोलो जी पोवारी।।भाषा या आमरी।।

लग् से साजरी।। बोलनला।।१।।


माय की वा गोडी।।ममता स्वरूप।।

संस्कृति को रूप।।पोवारीमा।।२।।


देओ सब मान।।संस्कृति की आन।।

बनें पयचान।। समाज की।।३।।


माय बोली खरी।।बचाओ पोवारी।।

लेओ जिम्मेदारी।।सबजन।।४।।


करन प्रचार।। लिखों बाचो शिको।।

हेवा दावा नोको।।आपसमा।।५।।


बोली या आमरी।। बनाओं प्रमान।।

बनों भी सुजान।। ओकोसाठी।।६।।


माय बोली सब।।घर-घर बोलो।।

लाज लज्जा भुलो।।कायमकी।।७।।

 

उमेंद्र करसे।।मातृभाषा दिन।।

सबला आव्हान।। बोलीलायी।।८।।

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उमेंद्र युवराज बिसेन (प्रेरीत)

रामाटोला गोंदिया (श्रीक्षेत्र देहू)

९६७३९६५३११



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