पोवारी कविता : जमानो बदल गयो


 जमानो बदल गयो

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जमानो येव बदल गई से भाऊ,

चलन दूसरोच चल गई से भाऊ.


धरती वसिच, अंबर उच से

सूरज उच से, चंदर उच से.

अदमी ल से जमानो मगर,

अदमी मा ल अदमी गल गई से भाऊ.

जमानो येव बदल गई से भाऊ,

चलन दूसरोच चल गई से भाऊ.


गोटा ला, बनाय देइस मूर्ति,

जान डाकनो मा करिस फुर्ती.

आफुन दिससे बिना जान को,

अदमी खुद गोटा मा ढल गई से भाऊ.

जमानो येव बदल गई से भाऊ,

चलन दूसरोच चल गई से भाऊ.


सामान ल पहचान इंसान की,

दर तय भई जग मा मान की.

चालाकी अदमी की डायन बनी,

अदमी, अदमी लच छल गई से भाऊ.

जमानो येव बदल गई से भाऊ,

चलन दूसरोच चल गई से भाऊ.


लुका-छिपी मा बाबुर बोईस,

देख-रेख मा जप चैन खोइस.

दगा की येन अंधरी खेती मा,

आंबा भी बाबुरच फल गई से भाऊ.

जमानो येव बदल गई से भाऊ,

चलन दूसरोच चल गई से भाऊ.


तुमेश पटले "सारथी"

केशलेवाड़ा

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