पोवारी साहित्य सरिता भाग ३१



पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित

पोवारी साहित्य सरिता भाग ३१

****************************

 आयोजक

डॉ. हरगोविंद टेंभरे

 परीक्षक

श्री. व्ही. बी.देशमुख


                           **********************************************************

               1.

               परमश्रद्धेय श्री आदरणीय परमवंदनीय जी सबला हिरदीलाल ठाकरे को सादर प्रणाम जय राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका,, मोला अष्टावक्र गीता को एक अध्याय याद आवसे, कोहाड ऋषि एक सिद्ध ऋषि होता, एक दिवस कोहाड ऋषि पुराण बाचत होता, पुराण बाचता बाचता उनला अचानक एक आवाज आयी, पुराण मा ज्ञान से का ? कहोड ऋषि ला आश्चर्य भयेव की असो कोण कसे पुराण मा ज्ञान नाहाय , पुराणमा त ज्ञान से , अखिन आवाज आयी पुराणमा ज्ञान से का? कहोड ऋषि न् आपलो अंतर्ध्यान लक देखीस की उनकोच पत्नी को गर्भ लक आवज आयी की चंद्रमा काहा से ? कहोड ऋषि न् उंगली को इशारा लक सांगीस की चंद्रमा उपर आसमान मा से , गर्भ लक आवाज आयी तुमरी उगंली या चंद्रमा नोहोय ,तुमरी उगंली सिर्फ अना सिर्फ चंद्रमा कर इशारा करसे , वोको पर कहोड ऋषि उत्तर देसे की पुराणमा भी ज्ञान नाहाय पुराण त सिर्फ अना सिर्फ ज्ञान को इशारा करसे , ज्ञान त आपलो अंतरात्मा मा से , वोको पर अष्टावक्र कसे जब् पुराण मा ज्ञान नाहाय त तुम्ही सिर्फ पुराणला कायाला बाच् सेव अंतरात्माला भी बाचो ,  कहोड ऋषि ला बहुत  ही धक्कादायक लगेव की मोला अजवरी कोणीच् जवाब नही देयीन ,आब् त येव सिर्फ गर्भमा से तरी येतरो सवाल जवाब करसे, जब् गर्भ लक बाहेर आयेव पर त दुनिया ला सत्यता को पाठ शिकाये अना धीरु धीरु मोरो अस्तित्व कम होय सकसे ,  मी येतरो विद्यावान गुणी माहाज्ञानी सेव येला गर्भमाच अपंग करे पायजे , कहोड ऋषि न् आपलो अहंकार को कारण अष्टावक्र ला श्राप देयीस की मोला ज्ञान अज्ञानपर मार्गदर्शन करने वालो तू आठ जागापर तेढो हो जो , तु प्राणायाम योगासन योग इत्यादि नहीं कर सकजो , अष्टावक्र कसे साहाब आंगन को तेढो होयेव लक आकाश तेढो नही होय सक् ,  तुम्ही सिर्फ अना सिर्फ मोरो शरीरला तेढो कर सक् सेव पर मोरो आत्माला नहीं , अष्टावक्र को जन्म भयेव ,  जन्म पासूनच अष्टावक्र सिर्फ अना सिर्फअंतरात्मा की आवाज़ आयकत होता , अष्टावक्र सत्य साती आपलो बापला भी चुनौती देत होता , अष्टावक्र सिर्फ आठ साल का भया होता तब् उनला राजा जनक को सभा मा जानको सौभाग्य प्राप्त भयेव , अष्टावक्र को शरीर आठ जागापर तेढो देखकर सब सभा मा आया ऋषि मुनि माहात्मा आदि जोर जोर लक हासन लग्या। , सभा जन ला हासता देख अष्टावक्र भी बहुत जोर जोर लक हासन लगेव , अष्टावक्र ला हासता देख राजा जनक कसे अष्टावक्र तुम्ही कायला हास रह्या सेव , अष्टावक्र कसे राजन मी गलत सभामा आय गयेव, मोला लगेव राजा जनक को दरबार मा ज्ञानी माहा पुरूष माहाज्ञानी की सभा रहे , पर मोला याहा सिर्फ अना सिर्फ चर्मकारों की स्वार्थी व आपमतलबी लोग इनकीच् सभा लग रही से, याहा सिर्फ चमड़ी देखकर पहचान करनेवाला व्यक्ति जास्त दिस् सेत पर चमड़ी को अंदर बसी वोन् अंतरात्मा की पहचान करने वाला अना आध्यात्मिक चिंतन करनेवाला , सत्य की परख करनेवाला शख्स बहुत कम सेत , राज जनक तुरंत समझ गयेव की येतरो मोठो अफाट सभा मा एक भी सारथी नाहात जो सत्य को रथ चलाय कर आपलो परिवारला , आपलो समाजला सही दिशा देखाय सक् से ,  मोला त याहा सिर्फ अना सिर्फ आपलोला माहाज्ञानी व माहा पुरूष समझने वाला अना सिर्फ अना सिर्फ आपलोच सर्वार्थ साती झुरने वाला स्वार्थी दिस् सेती , आता समजमा आयेव की मोला सत्य को ज्ञान सत्य धर्म को परिचय देने वाला अष्टावक्र मोरा गुरुदेव बनन को योग्य सेती असो मोला लगसे , येन् अष्टावक्र गीता को भावार्थ असो की येन् मायारुपी संसारमा आपलोलाच् समाजशास्त्री समझने वाला व्यक्ति सिर्फ अना सिर्फ आमरो शरिरला तेढो कर सक् सेत,आमरो मनला नही आमरो अंतरात्मा ला नही ,  प्रत्येक व्यक्तिला अष्टावक्र बननो पड़े आपलो अंतरात्मा की आवाज़ आयकनो पड़े सत्यता को मार्गदर्शक बननो पड़े , काहे की येन् मायारुपी संसारमा दिशाभूल करनेवाला व्यक्ति जास्त सेत असो मोला लगसे , दिशाभूल होयेव लक प्रत्येक सामाजिक व्यक्ती का , प्रत्येक परिवार का , प्रत्येक समाज का , प्रत्येक राष्ट्र का संस्कार अना संस्कृति नष्ट होनको कगारपर रव्हसेत , येको साती दिशाभूल करनेवालों व्यक्ति लक दुय हात दुरच् रव्हन की आवश्यकता से काहे का समाज की दिशाभूल करनेवालों व्यक्ति कभी भी समाज को भलो नही करत ,वोय सिर्फ अना सिर्फ आपलोच मान-प्रतिष्ठा आपलोच सर्वार्थ आपलोच अहंमपणा मा व्यस्त रव्ह सेत असो मोला लगसे , सत्य को समर्थन करे पायजे अना असत्यपर विरोध व अंकुश लगायेच् पायजे असो मोला लगसे जय पोवार जय पोवारी राजा भोज जय माहामाया गढ़कालिका सबको कल्याण करें अना आमला सबला सदबुद्धी प्रदान करें !

                                        

                             लेखक श्री हिरदीलाल नेतरामजी ठाकरे नागपुर महाराष्ट्र

********************************************

2

 My Philosophycal Thoughts-

❤ पोवार समाज : अखण्ड जीवनधारा व संकटग्रस्त भवितव्य ❤

लेखक:-इतिहासकार प्राचार्य ओ. सी. पटले

***************


1. इतिहास को महत्व

*******

          भारतवर्ष विविधता लक संपन्न राष्ट्र से. यहाँ  अनेक धर्म व विविध समुदाय को लोगों को वास्तव्य से. राष्ट्र व समुदायों ला आपलो  अस्तित्व को संरक्षण  साती स्वयं को  इतिहास को जतन करनों पड़़् से व इतिहास को आलोक मा भविष्य कर प्रस्थान (वाटचाल) करनों पड़् से.

2. इतिहास को विकृतिकरण

**********

         प्रत्येक राष्ट्र अथवा समाज ला जीवंत ठेवनसाती  वोको इतिहास को मूलस्वरुप मा जतन करनों आवश्यक रव्ह् से. परंतु इतिहास की तोड़मरोड़  करन को कार्य चित्रपट, नाटक व उपन्यास मा मोठो प्रमाण मा होसे. येन्  क्षेत्र मा नायक को महत्व कम करन  को व खलनायक  ला नायक बनावन को  (उदा.  टिपू सुल्तान चित्रपट,शिवाजी सावंत की मृत्युंजय कादंबरी)प्रयास होसे. काही विचारक, लेखक व स्वार्थी पुढ़ारी भी निजी अथवा आपलो समाज को स्वार्थसिद्धि साती इतिहास मा अदल-बदल करन को कार्य  करत रव्ह सेती. 

         विगत कई सालपासून 36 कुल को पोवार समाज मा भी मूठभर पुढ़ारियों न्  पवारीकरण की नीति अपनाय के  समाज को इतिहास ला विकृत करन को प्रयास  शुरु करीसेन. परंतु येव प्रयास पोवारी जनमानस येको विरुद्ध से. अत: 2018 पासून आम्हीं येन्  विकृतिकरण को प्रयास पर अंकुश लगावन को कार्य  निष्ठापूर्वक कर रहया सेजन.

3. समाज को अस्तित्व को प्रश्न

**********

         पवारीकरण का दुष्परिणाम समझनसाती सर्वप्रथम समाज की अवधारणा (Concept) समझ लेनो अपरिहार्य से. 

      केवल लोगों को समूह  ला समाज नहीं कहेव जाय. समाज  मा  जनसंख्या, भाषा, धर्म, संस्कृति, इतिहास इन पांच तत्वों  को समावेश होसे. ये सब तत्व मिलकर समाज की जीवनधारा बन् से . समाज की जीवनधारा लाच समाज को अस्तित्व  कहेव जासे. पवारीकरण की नीति पोवार व भोयर समाज को विलीनीकरण का प्रयास कर रहीं से. या नीति पोवार समाज को स्वतंत्र अस्तित्व को विरुद्ध से.अत: येको विरुद्ध पोवार समाज मा व्यापक असंतोष व्याप्त से.

         प्रत्येक  समाज ला आपलो अस्तित्व अथवा जीवनशैली कायम ठेवन को  मौलिक अधिकार से. अत: राष्ट्रीय महासभा न्  वोको द्वारा पोवार समाज पर  ज्या गलत नीति  थोपेव जाय रहीं से,  वोको  पर विवेकपूर्वक  पुनर्विचार  करनों आवश्यक से. 

 4. पवारीकरण की समस्या 

*********

        अध्ययन -संशोधन को आधार पर प्रस्तुत लेखक को  स्पष्ट विचार से कि पवारीकरण की नीति या पोवार समाज  साती आत्मघातक से. अत:  प्रस्तुत लेखक राष्ट्रीय संगठन व पवारीकरण को तमाम समर्थकों ला  एकच  प्रश्न  पूंछनों  चाव्ह् से कि  पोवार समाज न् आपलो हाथ लक स्वयं को आत्मघात ( Sucide/Immolation) कर लेये पाहिजे का  ? 

       पवारीकरण की समस्या या साधी समस्या नाहाय. बल्कि बिकट समस्या से. अत: महासभा न्  पवारीकरण पर एक श्वेतपत्र जारी करके आपली भूमिका साफ- साफ शब्दों मा समाज को सामने  स्पष्ट करें पाहिजे. महासभा की भूमिका  यदि समाज ला  मान्य से त्  एक ज्वलंत प्रश्न ला विराम लग जाये. यदि अमान्य से  व समाज आपली मातृभाषा, संस्कृति व पहचान नष्ट करन तैयार नाहाय त्  36 कुल को पोवार समाज न्  पवारीकरण ला हर मोर्चा पर रोकनसाती पूरी ताकत लक उभो होये पाहिजे.  पोवार समाज ला आपलो  ऐतिहासिक जीवनप्रवाह ला विनाश पासून बचावनसाती पवारीकरण को विरुद्ध हर मोर्चा पर  संघर्ष  करनोच पड़े. नियति न्  पोवार समाज की वर्तमान युवापीढ़ी को हिस्सा मा येवच दायित्व सौंपी सेस. 

        पवारीकरण की अनावश्यक नीति अपनायके  पोवार समाज की ऐतिहासिक जीवनधारा ला   कमजोर करेव जाय रहीं से. पोवार समाज को नाव, भाषा, संस्कृति व पहचान ला मिटायेव जाय रहीं से. येव कार्य पोवारी को बुरखा ओढ़के  समाज का अनेक पुढ़ारी व कार्यकर्ता कर रहया सेती. येन् कार्य मा अन्य एक समाज का काही पुढ़ारी भी स्वार्थसिद्धि  को उद्देश्य लक उनला बढ़ावन को काम कर रहया  सेती. अत: पोवार समाज की उर्जावान युवाशक्ति न् पवारीकरण को  वैचारिक व जमिनिस्तर पर विरोध करें पाहिजे.

5. उपसंहार

*****

       समाज ला आपली पहचान बचावन को कार्य की शुरुआत करन ला  यद्यपि बहुत विलंब  भय गयी से  फिर भी समय हाथ  मा से . अगर प्रबुद्ध वर्ग न् आब् भी मन मा ठान लेईस त्  वू हर मोर्चा पर पवारीकरण ला रोकनों मा समर्थ  से .आब् भी   पोवारी भाषा,संस्कृति, ऐतिहासिक पहचान व पोवार समाज  को स्वतंत्र अस्तित्व बचावन को उद्देश्य मा सफलता निसंदेह हासिल होये.


 - ओ. सी. पटले

@पोवार समाज रिसर्च अकॅडमि भारतवर्ष.

बुध.29/09/2021.

***************

3

 🌺🌸पोवारी साहित्य सरिता🌸🌺

पोवारी संस्कृति अना पंवारी क्षत्रिय वैभव🚩


    पंवार, अग्निवंशीय क्षत्रिय होसती परा वैनगंगा क्षेत्रमा बस्या पंवार(पोवार), छत्तीस क्षत्रिय गिनको संघ को नाव से. सैनिक जत्था को रूप मा हाम्रो पुरखागिन ना भारतीय राजाहिन् की मदद लाई आपरो मूल क्षेत्र ला सोडकन नवो विदर्भ क्षेत्र मा आयकन बसी होतीन. वोनो कालमा छत्तीस क्षत्रिय गिनना मिलकन येक संघ को निरमान करी होतिन वा पोवार अना पंवार नाव लका जानजासे. 

    पंवार इन की वीरता कोनी लका छिपी नहीं से अना ईनना औरंगजेब की मोठी सेना ला सेना न हराय देई होतिन अखिन मराठा शासन ला नागपुर क्षेत्र मा आपरी जड़ी जमावन मा मालवा-राजपूताना को यव पंवार क्षत्रिय इनको मोठो योगदान होतो. असा वीर क्षत्रिय इनको आमी वंशज आजन. 

    धारानगरी को पंवार वंश अना उनको रिश्तदार क्षत्रिय गिनको यह पंवार(पोवार) संघ ना माय वैनगंगा को क्षेत्र ला आपरो मेहनत लका धन धनशी मा एतरो समृद्ध बनाइन की हमरो पोवारी समाज को नाव हर ऊजा मोठो भय गयो. लोख दुनियॉ पोवार समाज को नक्सा कदम मा चलनमा आपरी सान समझो सेती. आमी पंवार आपरो चेहरा मोहरा को संग बुद्धि को प्रभाव लका दूर लका ओरख़ो जासेति. क्षत्रिय पँवारी सान हमरो पग पग मा दिससे अना हमरी पोवारी संस्कृति मा सनातनी धरम को दर्शन होसे. 

    हमरी आस्था को केंद्र घर को देवघर होसे अना यवच पुरो पोवारी को नेंग-दस्तूर अना संस्कार को केंद्र होसे. आमरी पोवारी मा कुर गिनको मोठो मान होसे. पोवारी मा श्यादि-बिहाव अना नेंग-दस्तूर मा आपलो पोवारी कुर ला देखसेती. 

    वैभवशाली पोवारी संस्कृति अना क्षत्रिय पँवारी संस्कार ला जतन करनो यव हर पोवार पंवार को पहिलो धरम से तबच हमी आपरी मूल संस्कृति अना संस्कारला नवी पीढ़ीला देयकन आपरो धरमला पुरो करबिन.


✍🏼ऋषि बिसेन, खामघाट(बालाघाट)

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

******************************************


4

। पोवारी संस्कृति को संवर्धन, जतन जरूरी से ।


    पुरो संसारमा बहुत प्रकार की संस्कृति अस्तित्वमा सेत। परिस्थिति , सोच, अनुभव , एकदूसरो की देखासिखी , मानसिक उत्थान अना ज्ञान को विकास को आधार परा जगत मा संस्कृति को निर्माण भयी से । आमी 36 कुल पोवार लोगइनकी बी एक विशिष्ट संस्कृति से । आमरी बोली , रीति रिवाज, परम्परा , दस्तूर, जीवनशैली , खानपान, पहनावा ये सब  पोवारी संस्कृति ला एक विशिष्ट स्वरूप देसेत । येन संस्कृतिमा मानवी जीवनमूल्य बस्या सेत । मनुष्यता को दर्शन यानी आमरी पोवारी संस्कृति आय । संस्कृतिमा आमरी परम्परागत सोच बसी से । समाजमा शांतिपूर्ण जीवन को संदेश आमरी संस्कृति देसे । एकदूसरो को सन्मान को साथ सहजीवन को संदेश देने वाली आमरी संस्कृति बेजोड़ से । आमरी संस्कृति दरअसल भारतीयताको दर्शन आय । आमरी बोली भाषा मा कई पुराना शब्दरचना सेत । आमरो पुरखाईनकी परंपरा स्वच्छ , सुंदर , शांति व स्वास्थ्य पूर्ण जीवन साती अच्छी होती । पर आब धीरे धीरे सबकुछ बदल रही से । कई पुरानी बोली गायब होय रही सेत । संग संग वोन बोलीमा को पुरानो अच्छो अनुभव , ज्ञान, सोच बी मिट रही से । आमरो संस्कृति मा एकदूसरो साती प्रेम,  देखभाल को भाव , अच्छाई बसी से। 

    समय को अंतराल मा परिवर्तन आवसे या बात सही से , परन्तु जो काइ अच्छो रव्हसे वोको विश्लेषण करके पुनः नवो जमानो को संग तालमेल बसाय कर प्रस्थापित करनो जरूरी होय जासे । हर पीढ़ी को, हर व्यक्ति को आपलो समाज को प्रति जरूर कर्तव्य रव्हसे । हर वर्तमान  पीढ़ी को वर्तन , सामूहिक जीवन भविष्य की पीढ़ी साती मार्गदर्शक को कार्य करसे । असो मा आमला आपलो वर्तमान की सांस्कृतिक स्थिति को आकलन पहले करनो पडे । पुरानो जमाना का अच्छा जीवनमूल्यलका सीख लेयकर  भविष्य साती आदर्श की रचना हर वर्तमान पिढी द्वारा करनो भाग से ।

    संस्कृति को संवर्धन बहुत सोच समझकर करनो समाज को हर व्यक्ति की जबाबदारी से अना येन संवर्धन को कार्य जेतरो जमे वोतरो करनो जरूरी से । वर्तमान को जमाना पश्चिमी दुनिया की देखासिखी मा लगी से । परन्तु उतन पश्चिम मा यूनाइटेड नेशन्स वाला संघठन पुरानी बोली , संस्कृति को जतन करनको प्रयत्न कर रह्या सेत । यव जतन दुनिया मा शांति साती बहुत जरूरी से असो दुनिया को बुध्दिजीवी वर्ग ला लगसे । तसोच आमरो पोवारी संस्कृति को संवर्धन बी आमला करनो जरूरी से । येन संस्कृति को जतन साती आमला जेतरि होय सके वोतरी कोशिश करनो पड़े ताकि आमरी संस्कृति जीवित रहे । बोली को अस्तित्व बी बन्यव रहे यव बी जरूरी से । 

    पोवारी संस्कृति को मोठो आधार आमरी पोवारी बोली आय । आमरो बोली को ज़िक्र  गियर्सन को भारतीय भाषा सर्वे मा उल्लेख पोवारी असो लिखयव मिलसे । आमरो संस्कृति  बोलीभाषा को नाव पोवारी से जो पोवार समुदाय को समाज जन साती सदा याद ठेवनकी बात से । येन नाव मा बदलाव करनो यानी आपलो पूर्व की पहचान अना इतिहासलका दूर जानो सरिसो कृत्य आय । आजकल काइ लोग अज्ञानतापूर्वक समुदाय अना बोली नाव को गलत उच्चारण करसेत , या गलत बात से । कमसे कम पुरखाईनकी संस्कृति अना समुदाय को नावको उच्चारण सही करनो जरूरी से । मालवा लका नगरधन आयव आमरो 36 कुल को समुदाय ला पोवार या पँवार यव नाव पुरानो रेकॉर्ड मा दर्ज से । बोली ला पोवारी कसेत । आमरा पुरखाबी खुदला पोवार आजन कवत होता ।  आमरो बोली ला पोवारी कसेत । सही नाव जरूरी से । संस्कृति को जतन यानी वोकी सम्पूर्ण रूपमा मूल पहचान बनाय कर ठेवनो आय । 

    आमला समुदाय, बोली को नाव  मूल रूप मा जीवित ठेवनो पड़े । काहेकि वोन नाव को संग इतिहास बी जुड़ी से । पश्चिम जगत को इतिहास मा अलेक्जांडर को संग लड़नेवालों राजा उज्जैन को पोवार राजा  लिखयव गयी से । सम्राट विक्रमादित्य व राजा भोज ला पोवार होता असो लिखयव मिल से । महान पोवार वंश को इतिहास आमरो संग जुड़ी से या बात भुलनो गलत से । पश्चिमी जगत पोवार शब्द को उल्लेख काहे करसे  एको कारण से । दूसरों सदी में टॉलेमी नावको ग्रीक इतिहासकार भारत आयव होतो वोन आपलो लेखमा उज्जयनी को राजा को पोर्वाराय असो उल्लेख करिसेस। पृथ्वीराज रासो मा बी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पहली रानी इच्छिनी ला  पोवारी पँवारी राजकुमारी असो लिखयव मिल से । बादशाह अकबर को दरबारी अबू फजल द्वारा लिखित आईने अकबरी मा बी पोवार वंश को उल्लेख से । पर्शियन इतिहासकार फेरिश्ता बी पोवार वंश को उल्लेख कर से । ये सब लोग पोवार नावको च उल्लेख कर सेत । आमरो पोवार, पँवार  समाज को नावको संग पुरानो इतिहास बी जुड़ी से । पुरानी पहचान बी जुड़ी से । आमला आपली पहचान , पुरानो नाव अबाधित ठेवन की जिम्मेदारी व्यक्तिगत तौर परा निभावनो पड़े । नाव को संग आमरी संस्कृति को मूल अस्तित्व बी जुड़ी से ।

    सस्कृति को जतन को  जरिये दरअसल आमी पुरखाइनको प्रति आपलो कर्तव्य निभावसेजन । आमला सबला या बात समझ लेनो पड़े की समाज को मजबूत  अस्तित्व साती पोवारी संस्कृति संवर्धन को कर्तव्य आमला निभावनोच पड़े ।


इंजी. महेन पटले 

नागपुर 

************************************************







 मायबोली मी पोवारी


रोज बिचारंसे मोला

मोरी मायबोली पोवारी

मी सेव का गा तोरी?

का भय गयी मोरी चोरी?

घरमा दिवस अना रात

बोलत माय अना अजी 

आता काहेगा पारखो

भयेस तु ना पिढी तोरी 

नोको टुटन देऊस

नार तोरी अना मोरी

मी नोव सिरफ बोली

संस्कृती आव मी पोवारी

मी आव पोवारकी

बन मोरो धुरकोरी

अना जगाव अस्मिता 

मायबोली मी पोवारी


- गुलाब बिसेन (दि. २८/०९/२०२१)

****************************************

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।

धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।1.40।।

....भगवान कृष्ण , गीता

        कुल की मर्यादा को पालन करनो जरूरी से काहे की, मर्यादा को पालन नही भयोव त् कुल को नाश होय जासे । कुल को नाश भये लका कुल धर्म समाप्त होय जासे ।अना कुलधर्म को नाश होयेलका पाप या अधर्म बढ़ जासे । अधर्म संसार मा अशान्ति को कारण आय । मुन सबला आपलो कुल अना कुल की मर्यादा को पालन करे पायजे । नीति , नेम लका रहे पायजे । अगर मनुष्य आजन त् नीतिमत्ता को बंधन स्वीकार करनो पड़े । उच्च संस्कृति को निर्माण करनो से त् नीति , अच्छो संस्कार  जीवन मा धारण करनो पड़े । आपलो कुल अना समुदाय की मर्यादाला सही रूप मा बनायके राखनोमा च आमरी भलाई से । काहे की नाम असो च नही मिल , मिल्योव नाम टिकायके राखनो की जबाबदारी बी आमरी च से । ....


〽️ahen 

********************************************

Comments

Popular posts from this blog

पोवारी साहित्य सरिता भाग ५४

पोवारी साहित्य सरिता भाग ६९

पोवारी साहित्य सरिता