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पोवार समाज को प्रकाश पर्व

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 पोवार समाज को प्रकाश पर्व  (२०१८पासून आगे को कालखंड) -----------------🌹🌹-------------------- आंबा को झाड़ ला हर साल आय जासे नवो बार l लेकिन सुधारक होत नहीं समाज मा बार-बार ll       कोनी आव् नहीं समाज  ला जगावन बार-बार l                    आय जासे यहां सदियों बाद कोनी एखाद बार ll   मौका समाज ला जागन को मिली से येन् बार l गंवाओं ‌ना तुम्हीं आयी से जो अवसर ‌येन् बार ll संगठित होओं सभी छत्तीस कुल का पोवार l दिव्य प्रकाश मा कर लेव समुदाय को उद्धार ll रोक देव तुम्हीं नामांतरण को दुष्ट प्रहार l गर्व लक कहो भाषा पोवारी ना आम्हीं पोवार ll निज मातृभाषा                                          अना संस्कृति को करों उद्धार l असी हितचिंता आगे दिसनकी नहीं बार- बार ll छायेव होतो अंधारो आयेव प्रकाश को नवो दौर l नवो दौर मा तुम्हीं कर लेव समुदाय को उद्धार ll  इतिहासकार प्राचार्य ओ.सी.पटले प्रणेता:-पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान, भारतवर्ष.  सोम.२४/०१/२०२२. ---------------------💐💐----------------------

विवेक ज्योति अना समाजोत्थान

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 विवेक ज्योति अना समाजोत्थान --------------------🌹🌹------------------ स्वयं की विवेक ज्योति जलाया मातृभाषा  पोवारी मधुर मीठी पाया l स्वयं की विवेक ज्योति जलाया पोवारों की पहचान गौरवशाली पाया ll आम्हीं विवेक ज्योति जलाया अना समाज मा भाषिक अस्मिता जगाया l आम्हीं विवेक ज्योति जलाया अना समाज मा स्वाभिमान जगाया ll जिनन् विवेक ला गठरी मा बांधीन मातृभाषा  पोवारी की उपेक्षा करीन l जिनन् विवेक ला गठरी मा बांधीन पोवारों की पहचान कर पाठ फेरीन ll इतिहास सीन प्रेरणा लेयके आओ  स्वयं  की विवेक ज्योति जलाओ l भयी जे गलती उनला सुधारके  आओ स्वयं की विवेक ज्योति जलाओ ll स्वयं की विवेक ज्योति जलायके मातृभाषा पोवारी को उत्थान करबी l स्वयं की विवेक ज्योति जलायके पोवार  शब्द ला महिमामंडित करबी ll अगर  विवेक ज्योति जलाओ नामांतरण की  साज़िश लक बच पाओ l छत्तीस कुल को विघटन लक स्वयं ला बचायके समाजोत्थान कर पाओ ll -इतिहासकार प्राचार्य ओ.सी.पटले #प्रणेता:-पोवारी भाषाविश्व नवी क्रांति अभियान भारतवर्ष. गुरु.२०/०१/२०२२. --------------------💐💐--------------------

Powari Kavita

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 पोवारी कविता तपन तपन की जिंदगी, नहीं कोई छाव, आखुड़ पूंजी मा कसो, मि लगाऊ दाव. पसी पसी होयस्यार, बोयो मिन् हांसी, पर गोना मा आई, मोठो दुख की राशि. आता आनू कसो, हाट ल् कोई सुख, बहुत ऊंचा सेती, एन् सुख का भाव. आखुड पूंजी मा कसो, मि लगाऊ दाव. मि गांव को सीधो अदमी, जपुसु माटी ला, आसपास जिबली नहात, मोरी घाटी ला. नहीं त् मि भी एक न एक दिन बिकतो, , येन् चतरी दुनिया ला बिना पेंदी की नाव. आखुड पूंजी मा कसो, मि लगाऊ दाव, नोन-तेल, मोटर-मोबाइल, फीस, ड्रेस-साड़ी, येन प्रपंच ला पूरो करता, ठंडी भयिन् नाड़ी. करजा को तीर, असो कोदगरसे भीतर, जनम जनम नहीं भर्, येन् तीर को घाव. आखुड पूंजी मा कसो, मि लगाऊ दाव. तपन तपन की जिंदगी, नहीं कोई छाव, आखुड़ पूंजी मा कसो, मि लगाऊ दाव, तुमेश पटले "सारथी" केशलेवाड़ा (हट्टा) बालाघाट (म. प्र.)

पोवारी कविता : जमानो बदल गयो

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 जमानो बदल गयो 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 जमानो येव बदल गई से भाऊ, चलन दूसरोच चल गई से भाऊ. धरती वसिच, अंबर उच से सूरज उच से, चंदर उच से. अदमी ल से जमानो मगर, अदमी मा ल अदमी गल गई से भाऊ. जमानो येव बदल गई से भाऊ, चलन दूसरोच चल गई से भाऊ. गोटा ला, बनाय देइस मूर्ति, जान डाकनो मा करिस फुर्ती. आफुन दिससे बिना जान को, अदमी खुद गोटा मा ढल गई से भाऊ. जमानो येव बदल गई से भाऊ, चलन दूसरोच चल गई से भाऊ. सामान ल पहचान इंसान की, दर तय भई जग मा मान की. चालाकी अदमी की डायन बनी, अदमी, अदमी लच छल गई से भाऊ. जमानो येव बदल गई से भाऊ, चलन दूसरोच चल गई से भाऊ. लुका-छिपी मा बाबुर बोईस, देख-रेख मा जप चैन खोइस. दगा की येन अंधरी खेती मा, आंबा भी बाबुरच फल गई से भाऊ. जमानो येव बदल गई से भाऊ, चलन दूसरोच चल गई से भाऊ. तुमेश पटले "सारथी" केशलेवाड़ा 🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹