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पोवारी साहित्य सरिता, भाग - ५८

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 पोवारी साहित्य अना सांस्कृतिक उत्कर्ष द्वारा आयोजित पोवारी साहित्य सरिता  भाग - ५८ 💐🚩💐🚩💐🚩💐🚩💐🚩  आयोजक डॉ. हरगोविंद टेंभरे   मार्गदर्शक श्री. व्ही. बी.देशमुख 🚩🏵️🕉️🏵️🕉️🏵️🕉️🚩 1.  ll अलौकिक पथ ll मातृभाषा को प्रति नैतिक दायित्व ----------------🔷💐🔷--------------         साहित्य को खुलो आसमान खाल्या मी हिंदी ना मराठी साहित्य की सेवा करत होतो.हिन्दी की कविता ना लेख आगरा, लखनऊ, जोधपुर ना रायपुर लक प्रकाशित होत होता.विश्ववंदित स्वामी विवेकानन्द पर आधारित दिग्विजय महाकाव्य (Epic ) का लगभग दुय हजार छंद साकार भया होता. ग्राम दर्शन (Village Philosophy) ग्रंथ को भी अस्सी प्रतिशत काम पुरो भय गयेव होतो. राह निष्कंटक होती.रस्ता मा कोनतीच बाधा नव्हती.उंचो लक्ष्य हासिल करनो सहज संभाव्य होतो.       साहित्यिक प्रगति को असो यशस्वी पड़ाव पर एक दिवस अकस्मात मोरों कल्पनासाम्राज्य मा मातृभाषा पोवारी, साक्षात् देवी को रुप धारण करके अवतीर्ण भय गयी .           मातृभाषा को मुखमंडल पर उदासी ना भयंकर चिंता छायी होती. देह अशक्त ना पाय लड़खड़ात होता. नेत्र मा लक आंसू का बुंद रुक -रुक के खाल्या टपक