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क्षत्रिय पोवार(पंवार) कुलदेवी माँ गढ़कालिका की आरती

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 क्षत्रिय पोवार(पंवार) कुलदेवी माँ गढ़कालिका की आरती  माँ गढकालीका की आरती मैय्या करू गढ़काली तोरी आरती हो माँ-२ मैय्या आरती माँ बेल फूल चढाऊ वो मोरीमाय-२ हल्दी कुंकू नारीयल धुप दीप कपूरल सजी थार-२ आरती गढ़काली की - हो मैय्या-आरती गढ़काली की । गाव हरेक पोवार-२ मैय्या करू गढ़काली तोरी आरती.... ब्रम्हांड की रखवारी तु धारा जुगर ठिकाण-२ राजा भोजला पायव-२तोला बुध्दी अणा ज्ञाब-२ मैय्या करू गढ़काली.... ये धरती को कोना कोना माँ फैल्या जो पोवार आवी सब तोराच बेटा-२देजो बुध्दी अणा बाब-२ मैय्या करू गढ़काली..... तोरो दरशन का प्यासा बेटा माँ कुरखेत पुकार-२ कर सबकी मनसा पुरी-ओ मैय्या-२ धन्य होये हर पोवार-२ मैय्या करू गढ़काली. कुलदेवी माय तु आम्हरी-कर देजो माँ उद्वार-२ गेवरी गाऊ मैय्या कमसे वो काली-२ तोरी महिमा से अपार-२ मैय्या करू गढ़काली... मैय्या करू गढ़काली तोरी आरती हो माँ जय माँ गढ़काली जय क्षत्रिय पोवार(पँवार) राजवंश

सामाजिक शख्सियत : श्री डी. पी. राहंगडाले

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                             सामाजिक शख्सियत : श्री डी. पी. राहंगडाले क्षत्रिय पोवार पंवार समाज के गौरव श्री धनलाल पोतन राहंगडाले जी  का जन्म गोदिया जिले में तिरोड़ा तहसील के ग्राम बरबसपुरा में १६ दिसंबर १९५२ को हुआ था। आपने कला विषय से स्नातक किया और साथ ही शिक्षा में डिप्लोमा प्राप्त किया है। सन १९८० में आपका चयन कनिष्ठ लिपिक के पद पर हुआ। बाद में आपकी वरिष्ठ लिपिक, मंडलाधिकारी और नायब तहसीलदार के रूप में पदोन्नति हुयी। आप वर्ष १९७७ से १९८० तक ग्राम पंचायत बरबसपुरा के निर्विरोध सदस्य रहे। ३१ दिसंबर २०१० आप सेवानिवृत्त हुए और वर्ष २०१२ से २०१७ तक ग्राम बरबसपुरा के निर्विरोध उपसरपंच चूने गये।    वर्तमान में आप गजानन कॉलोनी, गोंदिया में निवासरत हैं। आपके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री हैं। आपको संगीत और साहित्य में हमेशा से रूचि रही हैं। आपने ढंढार झाड़ीपट्टी में भाग लिया है। आपने कई हिंदी नाटक(ड्रामा) लिखे हैं। आपने निरंतर १५ वर्षों तक नाटकों में स्वयं अभिनय किया है। आज भी ग्राम बरबसपुरा में नाट्य मण्डली का सञ्चालन कर रहे हैं और नयी पीढ़ी का मार्दर्शन कर रहे हैं। आपने पोवारी, हिंदी और

"भोज-पत्र"

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        " भोज-पत्र" क्षत्रिय पंवार/पोवार समाज की सर्वोच्च संस्था , " अखिल भारतीय पंवार क्षत्रिय महासभा" के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में अमृत-जयंती के शुभ अवसर पर एक स्मरण ग्रंथ , " भोज-पत्र" सन १९८६ में प्रकाशित किया गया था। संपादक मंडल के द्वारा जारी इस पत्र के उद्देश्य की मूल प्रति सलंग्न है –       यह पत्र क्षत्रिय पंवार/पोवार वंश का ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें इस वंश के अतीत से लेकर बीसवीं सदी के समाजोत्थान कार्यक्रम और संगठनों का   इतिहास दिया गया है।                                              तथ्य संकलन : ऋषि बिसेन, नागपुर                               द्वारा : पोवारी इतिहास , साहित्य , संस्कृति एवं उत्कर्ष परिषद  

पंवार/पोवार जाति सुधारणी सभा

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  पोवारो के प्रथम संघटना का उदय काल सन 1905 पंवार / पोवार जाति सुधारणी सभा              उपलब्ध जानकारी से यह ज्ञात होता है कि पोवार जन समुदाय में सामाजिक जन जागरण की सामूहिक प्रक्रिया बीसवीं शताब्दी के पदार्पण के साथ प्रारंभ हुई। इस प्रारंभिक जन आंदोलन के प्रणेता , जन्मदाता के रूप में अग्रणी थे स्वर्गीय श्री चतुर्भुज पंवार , प्रधानाध्यापक , चरेगांव , जिला बालाघाट तथा साथ में कुछ गणमान्य महानुभावों ने सन 1905 मे पंवार जाति की प्रथम सामाजिक संस्था " पंवार जाति सुधारनी सभा " का गठन किया था। पंवार जाति सुधानी सभा का विधान स्व . श्री चतुर्भुज पंवार हेड मास्टर चरेगांव ने तैयार कर प्रथम महासभा में चर्चा हेतु रखा गया था।        सभा का कार्यक्षेत्र भंडारा , बालाघाट तथा सिवनी जिला की जातीय जनसमुदाय तक सीमित था। संगठन का संपूर्ण संचालन महासमिति करती थी। पांचवी आम सभा का आयोजन दिनांक 25 जनवरी 1910 को सिहारपाठ , बैहर की पहाड़ी पर स्व . श्री चतुर्भु